एक नया संसार

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josef
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Re: एक नई रंगीन दुनियाँ

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"अब हमें चलना चाहिए बेटा।" गौरी ने गंभीर भाव से कहा__"ज्यादा देर यहाॅ पर रुकना अब ठीक नहीं है।"
"पर माॅ, ।" विराज अपनी बात भी न पूरी कर पाया था कि गौरी ने उसकी बात को काटते हुए कहा__"अभी यहां से चलो बेटा। अभी सही समय नहीं है ये किसी चीज़ के लिए। यहाॅ हम उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकते क्योकि यहा उनकी ताकत ज्यादा है। पुलिस प्रसासन भी उनका ही कहना मानेंगे इस लिए कह रही हूं कि यहां रह कर कुछ भी करना ठीक नहीं है। मैं जानती हूं कि तुम्हारे अंदर प्रतिशोध की आग है और जब तक वो आग तुम्हारे अंदर रहेगी तुम चैन से जी नही सकोगे। इस लिए अब मैं तुम्हें किसी बात के लिए रोकूॅगी नहीं, हाॅ इतना जरूर कहूॅगी कि जो कुछ भी करना ये ध्यान में रख कर ही करना कि तुम्हारे बिना हम माॅ बेटी का क्या होगा?"

"आप दोनो की सुरक्षा मेरी पहली प्राथमिकता होगी माॅ।" विराज को जैसे उसकी मन की मुराद मिल गई थी। अंदर ही अंदर कुछ भी करने की आज़ादी के एहसास को महसूस करके ही वह खुश हो गया था किन्तु प्रत्यक्ष में बोला__"अब वह होगा माॅ जिससे आपको अपने इस बेटे पर गर्व होगा। चलिए अब चलते हैं यहाॅ से।"

इसके बाद तीनों ही चल पड़े वहाॅ से। सामान ज्यादा कुछ था नहीं। पैदल चलते हुए लगभग बीस मिनट में तीनो मेन रोड के उस जगह पहुॅचे जहाॅ से बस मिलती थी। हलाकि ये जगह उनके गाॅव के पास की नहीं थी किन्तु गौरी ने ही घूम कर इधर से आने को कहा था। शायद उसके मन में इस बात का अंदेशा था कि अगर शिवा की पिटाई का पता उसके घर वालों को हो गया होगा तो वो लोग उसे ढूॅढ़ते हुए आ भी सकते थे।

हलाकि ये गौरी के मन का वहम ही साबित हुआ। क्योकि अभी तक कोई भी उन्हें ढंढ़ने नहीं आया था जबकि वो बस में सवार हो कर शहर के लिए निकल भी चुके थे। कदाचित शिवा की हालत के बारे में अब तक किसी को पता न चला था। वरना अब तक वो शहर के लिए निकल न पाते। मगर गौरी के मन में उन लोगों के आ जाने का ये डर तब तक बना ही रहा जब तक कि ट्रेन में बैठ कर मुम्बई के लिए निकल न गए थे। जबकि विराज और निधि ऐसे वर्ताव कर रहे थे जैसे उन्हें इस सबका कोई भय ही न था।

ट्रेन जब स्टेशन से बहुत दूर निकल गई तब जा कर गौरी के मन से थोड़ा भय कम हुआ और वह भी सामान्य हो गई। दिलो दिमाग मे विचारों का बवंडर सा चल रहा था। कैसा समय आ गया था उनके जीवन में जिसकी शायद उन्होंने स्वप्न में भी कल्पना न की थी। अपने ही घर से बेदखल कर दिया गया था उन्हें और आज ये आलम था कि उन्हें अपनी जान तथा इज्जत बचाने के लिए भी बहुत दूर कहीं छिप जाने पर बिवस होना पड़ रहा था। गौरी विचारों के सागर में गोते लगा रही थी। उसका चेहरा बेहद ही विचलित और उदास हो उठा था। आखों में आसू तैरने लगे थे। विराज अपनी माॅ को ही देखे जा रहा था। उसे एहसास था कि उसकी माॅ के दिलो दिमाग मे इस समय क्या चल रहा है। उसके माता पिता हमेशा ही उसके लिए एक आदर्श थे। वह अपनी माॅ और बहन को एक पल के लिए भी विचलित या उदास नहीं देख सकता था। उसकी बहन निधि उसकी एक बाह थामे उसके कंधे में अपना सिर टिकाए बैठी थी। आज उसे अपने बड़े भाई पर पहले से कहीं ज्यादा स्नेह और प्यार आ रहा था। उसे लग रहा था कि उसके भइया के रहते अब दुनिया की कोई बला उन पर अपना असर नहीं दिखा सकती थी।

विराज का चेहरा एकाएक पत्थर की तरह शख्त हो गया। मन ही मन उसने शायद कोई संकल्प सा ले लिया था। आखों में खून सा उतरता हुआ नजर आया। नथुने फूलने पिचकने लग गए थे। सहसा गौरी की नजर अपने बेटे पर पड़ी। बेटे की हालत का अंदाजा होते ही उसकी आखें भर आईं। उसने शीघ्रता से विराज को अपने सीने में छुपा लिया। माॅ का ह्रदय ममता के विसाल सागर से भरा होता है जिसकी ठंडक से तुरंत ही विराज शान्त हो गया। 'फिक्र मत कीजिए माॅ अब ऐसा तांडव होगा कि हमारा बुरा करने वालों की रूह काॅप जाएगी।' विराज ने मन ही मन कहा और अपनी आखें बंद कर ली।

विराज अपनी माॅ और बहन को लेकर मुम्बई के लिए निकल चुका था। जबकि यहाॅ हवेली में माहौल बड़ा ही गर्म था। शिवा का जब शाम तक कोई अता पता न चला तो उसके पिता अजय सिंह तथा माॅ प्रतिमा को चिंता हुई। अजय सिंह ने अपने आदमियों को शिवा की तलाश मे पूरे गाॅव तथा आस पास के गावों में भेज दिया और खुद अपने खेत में बने मकान की तरफ चल दिया। उसके साथ कुछ आदमी और थे।

अजय सिंह अपनी वकील की नौकरी छोंड़ चुका था। अब वह बिजनेस मैन था तथा सारी जमीनों पर मजदूरों द्वारा फसल उगाता था। उसने अपने सबसे छोटे भाई अभय को भी अपनी तरफ कर लिया था। ये कैसे हुआ ये तो खैर बाद में पता चलेगा।

अजय सिंह अपने आदमियों के साथ जब खेत वाले मकान पर पहुचा तो वहा का नजारा देख कर हक्का बक्का रह गया। मकान में जो कमरा विराज की माॅ और उसकी बहन के लिए दिया गया था वो खुला पड़ा था और बाहर शिवा की मोटर साईकिल एक तरफ पड़ी थी। कुछ दूरी पर अजय सिंह का बेटा अधमरी हालत मे पड़ा था खून से तथपथ। अपने बेटे की ऐसी हालत देख कर अजय सिंह की मानो नानी मर गई।

अजय सिंह को समझ न आया कि उसके बेटे की ये हालत कैसे हो गई? उसने शीघ्र ही अपने बेटे को उठाया और अपनी गोंद मे लिया। एक आदमी जल्दी ही ट्यूब बेल से पानी लाया और शिवा के चेहरे पर हल्के हल्के छिड़का। थोड़ी ही देर मे शिवा को होश आ गया। अजय सिंह ने अपने आदमियों से कह कर उसे अपनी कार मे बिठाया और हास्पिटल की तरफ बढ़ गया।

रास्ते में अजय सिंह के पूछने पर शिवा ने सुबह की सारी राम कहानी अपने पिता को बताई। अजय सिंह ये जान कर चौंका कि उसका भतीजा विराज यहा आया था और उसने ही शिवा की ये हालत की है। इतना ही नही वो ये सब करने के बाद उसकी जानकारी में आए बग़ैर बड़ी आसानी से अपनी माॅ और बहन को अपने साथ ले भी गया। अजय सिंह को ये सब जानकर बेहद गुस्सा आया। उसने तुरंत ही किसी को फोन लगाया और कुछ देर बात करने के बाद फोन काट दिया।
josef
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Re: एक नई रंगीन दुनियाँ

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"तुम फिक्र मत करो बेटे।" फिर उसने शिवा से कहा__"बहुत जल्द वो हरामज़ादा तुम्हारे कदमों के नीचे होगा। मैंने पुलिस को इनफार्म कर दिया है और कह दिया है कि उन सबको किसी भी हालत में पकड़ कर हमारे पास ले कर आएॅ।"

"उस कमीने ने मुझे बहुत मारा है डैड।" शिवा ने कराहते हुए अपने पिता से कहा__"मैं उसे छोड़ूॅगा नहीं, जान से मार दूॅगा उस हरामजादे को।"
"चिन्ता मत करो बेटे।" अजय सिंह ने भभकते हुए लहजे में कहा था__"सबका हिसाब देना पड़गा उसे। अभी तक मै नरमी से पेश आ रहा था। मगर अब मै उन्हें दिखाऊगा कि मुझसे और मेरे बेटे से उलझने का अंजाम क्या होता है?"

"मालिक हम हास्पिटल पहुॅच गए हैं।" ड्राइविंग करते हुए एक आदमी ने कहा।

उस आदमी की बात सुन कर अजय सिंह ने कार से उतर कर शिवा को भी सहारा देकर नीचे उतारा और हास्पिटल के अंदर की तरफ बढ़ गया।

एक घंटे बाद अजय सिंह अपने बेटे के साथ हवेली मे पहुचा। शिवा की हालत अब बेहतर थी क्योकि हास्पिटल में उसकी ड्रेसिंग हो गई थी। अजय सिंह ने अपनी पत्नी प्रतिमा को सब बताया कि क्या क्या हो गया है आज। सारी बाते सुन कर प्रतिमा की भी भृकुटी तन गई। उसने तो सर पर आसमान ही उठा लिया।

"ये सब आपकी वजह से हो रहा है।" प्रतिमा ने गुस्से से कहा__"मैं तो उस दिन भी कह रही थी कि नाग नागिन और उनके सॅपोलों को कुचल दीजिए मगर आप ही नहीं माने।"
"धीरे बोलो प्रतिमा।" अजय ने सहसा तपाक से बोला__"दीवारों के भी काॅन होते हैं।"

"मुझे किसी की परवाह नही है।" प्रतिमा ने कहा__"आज अगर मेरे बेटे को कुछ हो जाता तो आग लगा देती इस हवेली को।"
"मैने उनका इंतजाम कर दिया है।"अजय सिंह ने कहा__"वो हमसे बच कर कहीं नही जा पाएंगे। बस इंतजार करो वो सब तुम्हारे सामने होंगे फिर जो दिल करे करना उन सबके साथ।"

"डैड मैं तो बस निधि को चाहता हू।" शिवा कमीने ढंग से मुस्कुराया था बोला__"बाकी का आप और माॅम जानो।"
"जो कुछ करना सोच समझ कर करना बेटे।" अजय सिंह ने राजदाराना लहजे में कहा__"तुम्हारे दादा दादी की चिन्ता नहीं है हमें। बस अपने चाचा अभय से जरा सावधान रहना। उसे ये सब पता न चल पाए कि हम क्या कर रहे हैं? हमने बड़ी मुश्किल से उसे अपनी तरफ किया है।"

"वो तो ठीक है डैड।" शिवा ने कहा__"लेकिन ऐसा कब तक चलेगा? आखिर चाचा लोगो को हम अपने सभी कामों मे शामिल कब करेंगे?"
"बेटा ये इतना आसान नहीं है।" अजय ने कहा__"तुम्हारे चाचा और चाची लोग जरा अलग तबियत के हैं।"

"अगर ऐसा नही हो सकता तो।" प्रतिमा ने कहा__"तो फिर हमारे पास एक ही रास्ता है।"
"हमें कोशिश करते रहना चाहिए।"अजय ने कहा__"तुम भी करुणा पर कोशिश करती रहो।"

तभी अजय का मोबाइल बजा।
"लो लगता है उन लोगों को ढूॅढ़ लिया गया है।" अजय सिंह ने अपनी कोट की जेब से मोबाइल निकालते हुए कहा और मोबाइल की काॅल को रिसीव कर कान से लगा लिया। उधर से जाने क्या कहा गया जिसे सुन कर अजय के चेहरे पर गुस्से के भाव आ गए।

"ऐसा कैसे हो सकता है?"अजय सिंह गुर्राया__"वो लोग ट्रेन से कैसे गायब हो गए? तुम उन्हें ढूॅढ़ो और शीघ्र हमारे पास लेकर आओ वरना ठीक नहीं होगा समझे?"
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"अरे जाएगे कहाॅ?" अजय ने कहा__"ठीक से ढूॅढ़ो उन्हें।" कहने के साथ ही अजय ने फोन काट दिया।
"क्या हुआ?" प्रतिमा ने पूछा__"किससे बात कर रहे थे आप?"
"डीसीपी अशोक पाठक से।" अजय ने बताया__"उसका कहना है कि विराज अपनी माॅ और बहन सहित ट्रेन से गायब हैं।"

"क् क्या...???" प्रतिमा और शिवा एक साथ उछल पड़े___"ऐसा कैसे हो सकता है भला? वो सब मुम्बई के लिए ही निकले थे।"
"हो सकता है कि वो लोग ट्रेन में बैठे ही न हों।" प्रतिमा ने सोचने वाले भाव से कहा__"कदाचित उन्हे ये अंदेशा रहा हो कि उनकी करतूत का पता चलते ही उन्हे पकड़ने के लिए आप उनके पीछे पुलिस को या अपने आदमियों को लगा देंगे। इस लिए वो ट्रेन से सफर करना बेहतर न समझे हों।"

"ऐसा नहीं है।" अजय ने कहा__"क्योकि विराज ने तत्काल रिज़र्वेशन की तीन टिकटें ली थीं। रेलवे कर्मचारियों के पास इसका सबूत है कि उन्होने तत्काल रिजर्वेशन की तीन टिकटें ली थी मुम्बई के लिए।"

"तो फिर वो कहाॅ गायब हो गए?" शिवा ने कहा__"उन्हे ये जमीन खा गई या आसमान निगल गया?
"चिंता मत करो।" अजय सिंह ने कहा__"हम उन्हें जरूर ढूंढ् लें

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josef
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उधर विराज अपनी माॅ और बहन को ट्रेन से उतार कर अब बस पकड़ चुका था। उसका खयाल था कि बस से वह किसी अन्य शहर जाएगा और फिर वहाॅ से किसी दूसरी ट्रेन से मुम्बई जाएगा।

"तुम हमें ट्रेन से उतार कर बस में क्यों लाए बेटा?" माॅ गौरी ने सबसे पहले यही सवाल पूछा था।
"ट्रेन में जाने से खतरा था माॅ।" विराज ने कहा__"बड़े पापा ने हमें पकड़ने के लिए अपने आदमी भेजे थे जो सभी जगह चेक कर रहे थे।"
"क् क्या..???" गौरी बुरी तरह चौंकी___"पर तुम्हें कैसे पता?"

"मुझे इस बात का पहले से अंदेशा था माॅ।" विराज ने कहा__"इस लिए मैंने अपने एक दोस्त को बड़े पापा की हर गतिविधि की खबर रखने के लिए कह दिया था फोन के जरिए। जब हम लोग ट्रेन मे बैठ कर चले थे तब तक ठीक था। आप जानती है ट्रेन वहा से निकलने के बाद एक जगह रुक गई थी और फिर छ: घंटे रुकी रही। क्योंकि उसमें कोई तकनीकी खराबी थी। मेरे दोस्त का फोन शाम को आया था उसने बताया कि बड़े पापा ने हमे ढूढ़ने के लिए हर जगह अपने आदमी भेज दिये हैं। मुझे पता था ट्रेन मे उनके आदमी हमे बड़ी आसानी से ढूढ़ लेंगे क्योकि उन्हे रेल कर्मचारियो से हमारे बारे में पता चल जाता और हम पकड़े जाते। इस लिए मैंने आप सबको ट्रेन से उतार कर किसी अन्य तरीके से मुम्बई ले जाने का सोचा।"

"आपने बहुत अच्छा किया भइया।"निधि ने कहा__"अब वो हमें नही ढूढ़ पाएंगे।"
"इतना लम्बा चक्कर लगाने का यही मतलब है कि वो हमें उस रूट पर ढूढ़ेगे जबकि हम यहा हैं।" विराज ने कहा__"मैं अकेला होता तो ये सब नही करता बल्कि खुल कर उन सबका मुकाबला करता मगर आप लोगों की सुरक्षा जरूरी थी।"

"अभी मुकाबला करने का समय नही है बेटा।" गौरी ने कहा__"जब सही समय होगा तब मैं खुद तुझे नही रोकूॅगी।"
"आप बस देखती जाओ माॅ।" विराज ने कहा__"कि अब क्या करता हूॅ मैं?"

"हाॅ भइया आप उन्हें छोंड़ना नहीं।" निधि ने कहा__"बहुत गंदे लोग हैं वो सब। हमे बहुत दुख दिया है उन्होने।"
"फिक्र मत कर मेरी गुड़िया।" विराज ने कहा__"मैं उन सबसे चुन चुन कर हिसाब लूॅगा।"

ऐसी ही बातें करते हुए ये लोग दूसरे दिन मुम्बई पहुॅच गए। विराज उन दोनो को सुरक्षित अपने फ्लैट पर ले गया। ये फ्लैट उसे कम्पनी द्वारा मिला था जिसमें दो कमरे एक ड्राइंग रूम एक डायनिंग रूम एक लेट्रिन बाथरूम तथा एक किचेन था। पीछे की तरफ बड़ी सी बालकनी थी। कुल मिलाकर इन सबके लिए इतना पर्याप्त था रहने के लिए।

विराज चूॅकि यहाॅ अकेला ही रहता था इस लिए वो साफ सफाई से ज्यादा मतलब नही रखता था। हलाॅकि सफाई वाली आती थी लेकिन वो सफाई नही करवाता था ऐसे ही रहता था। फ्लैट की गंदी हालत देख कर दोनो माॅ बेटी ने पहले फ्लैट की साफ सफाई की। विराज ने कहा भी कि सफर की थकान है तो पहले आराम कीजिए, सफाई का काम वह कल करवा देगा जब सफाई वाली बाई आएगी तो लेकिन माॅ बेटी न मानी और खुद ही साफ सफाई में लग गईं।

इस बीच विराज मार्केट निकल गया था किराना का सामान लाने के लिए। हलाकि कंपनी से रहने खाने का सब मिलता था लेकिन विराज बाहर ही होटल मे खाना खाता था। फ्लैट में गैस सिलेंडर और चूल्हा वगैरा सब था किन्तु राशन नही था। दो कमरों मे से एक कमरे में ही एक बेड था। किचेन बड़ा था जिसमें एक फ्रिज़ भी था। ड्राइंग रूम मे एक बड़ा सा एल सी डी टीवी भी था।

लगभग दो घंटे बाद विराज मार्केट से लौटा। उसने देखा कि फ्लैट की काया ही पलट गई है। हर चीज अपनी जगह ब्यवस्थित तरीके से रखी गई थी। विराज को इस तरह हर जगह आॅखें फाड़े देखता देख निधि ने कहा__"न आप खुद का खयाल रखते हैं और न ही किसी और चीज का। लेकिन अब ऐसा नही होगा, अब हम आ गए हैं तो आपका अच्छे से खयाल रखेंगे।"

"ओहो क्या बात है।"विराज मुस्कुराया__"हमारी गुड़िया तो बड़ी हो गई लगती है।"
"हाॅ तो?" निधि विराज के बगल से सट कर खड़ी हो गई__"देखिए आपके कंधे तक बड़ी हो गई हूॅ।"

"हाॅ हाॅ तू तो मेरी भी अम्मा हो गई है न।" गौरी ने कहा__"धेले भर की तो अकल है नहीं और बड़ी बड़ी बाते करने लगी है।"
"देखिए भइया जब देखो माॅ मुझे डाॅटती ही रहती हैं।"निधी ने बुरा सा मुह बनाते हुए कहा।

"मत डाॅटा कीजिए माॅ गुड़िया को।" विराज ने निधि को अपने सीने से लगाते हुए कहा__"ये जैसी भी है मेरी जान है ये।"
"सुन लिया न माॅ आपने?" निधि ने विराज के सीने से सिर उठा कर अपनी माॅ गौरी की तरफ देख कर कहा__"मैं भइया की जान हूॅ और हाॅ...भइया भी मेरी जान हैं...हाॅ नहीं तो।"

"अच्छा ठीक है बाबा।" गौरी ने हॅस कर कहा__"अब भाई को छोंड़ और जा जाकर नहा ले, फिर मुझे भी नहाना है और खाना भी बनाना है।"
"मैं खाना बाहर से ही ले आया हूॅ माॅ।" विराज ने कहा__"आप लोग खा पी कर आराम कीजिए कल से यहीं खाना पीना बनाना।"
josef
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Re: एक नई रंगीन दुनियाँ

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"अब ले आया है तो चल कोई बात नहीं।" गौरी ने कहा__"लेकिन आज के बाद बाहर का खाना पीना बंद। ठीक है न??"
"जैसा आप कहें माॅ।" विराज ने कहा और सारा सामान अंदर किचन में रख दिया।

गौरी के कहने पर निधि नहाने चली गई। जबकि विराज वहीं ड्राइंग रूम में रखे सोफे पर बैठ गया। अचानक ही उसके चेहरे पर गंभीरता के भाव गर्दिश करने लगे थे। गौरी किचेन में सामान सेट कर रही थी।

विराज के मोबाइल पर किसी का काॅल आया। उसने मोबाईल की स्क्रीन पर फ्लैश कर रहे नाम को देखा तो होठों पर एक अजीब सी मुस्कान उभर आई।

"मैं आ गया हूॅ।" विराज ने कहा__"और अब मैं तैयार हूॅ उस काम के लिए, बोलो कहाॅ मिलना है?""
"__________________"
"ठीक है फिर।" विराज ने कहा और फोन काट दिया। 'अजय सिंह बघेल अब अपनी बरबादी के दिन गिनने शुरू कर दे क्योकि अब विराज दि ग्रेट का क़हर तुम पर और तुमसे जुड़ी हर चीज़ पर टूटेगा'

उस ब्यक्ति का नाम जगदीश ओबराय था। ऊम्र यही कोई पचपन(55) के आसपास की। सिर के नब्बे प्रतिशत बाल सिर से गायब थे। शरीर भारी भरकम था उसका किन्तु उसे मोटा नही कह सकते थे क्योकि कद की लम्बाई के हिसाब से उसका शरीर औसतन ठीक नजर आता था। भारी भरकम शरीर पर कीमती कपड़े थे। गले में सोने की मोटी सी चैन तथा दाएं हाॅथ की चार उॅगलियों में कीमती नगों से जड़ी हुई सोने की अॅगूठियाॅ। इसी उसकी आर्थिक स्थित का अंदाजा लगाया जा सकता था कि वह निहायत ही कोई रुपये पैसे वाला रईश ब्यक्ति था।

"तो तुम तैयार हो बरखुर्दार?" जगदीश ओबराय ने कीमती मेज के उस पार कीमती सोफे पर बैठे विराज की तरफ एक गहरी साॅस लेते हुए पूछा।
"जी बिलकुल सर।" विराज ने सपाट स्वर में कहा।
"तुम हमें सर की जगह अंकल कह सकते हो विराज बेटे।" जगदीश ने अपनेपन से कहा__"वैसे भी हम तुम्हें अपने बेटे की तरह ही मानते हैं। बल्कि ये कहें तो ज्यादा अच्छा होगा कि तुम हमारे लिए हमारे बेटे ही हो।"

"आप मुझे अपना समझते हैं ये बहुत बड़ी बात है अंकल।"विराज ने गंभीर होकर कहा__"वर्ना अपने कैसे होते हैं ये मुझसे बेहतर कौन जानता होगा?"
"इस युग में कोई किसी का नहीं होता बेटे।" जगदीश ने कहा__"हर इंसान अपने मतलब के लिए रिश्ते बनाता है और रिश्तों को तोड़ता है। हम भी इसी युग में हैं इस लिए हमने भी अपने मतलब के लिए तुमसे एक रिश्ता बना लिया। ये आज के युग की सच्चाई है बेटे।"

"आपके मतलबीपन में एक अच्छाई है अंकल।"विराज ने कहा__"आप अपने मतलबीपन में किसी का अहित नहीं करते हैं और न ही किसी को तकलीफ देकर खुद के लिए कोई खुशी हासिल करते हैं।"

"ये तुम्हारा नज़रिया है बेटा।" जगदीश ने कहा__"जो तुम हमारे बारे में ऐसा बोल रहे हो। मगर सोचो सच्चाई तो कुछ और ही है, हम जो करते हैं उससे भी तो सामने वाले को तकलीफ होती है फिर भले ही वह खुद कोई देश समाज के लिए किसी अभिशाप से कम न हो।"

"बुरे लोगों को मार कर या उन्हें तकलीफ देकर अच्छे लोगों को खुशिया देना कोई अपराध तो नहीं है।"विराज ने कहा।
"ख़ैर, छोड़ो इन बातों को।" जगदीश ने पहलू बदला__"हम अपने मुख्य विषय पर बात करते हैं।"

"जी अंकल।" विराज ने अदब से कहा।
"हमने सारे कागजात तैयार करवा दिये हैं बेटे।" जगदीश ने बड़ी सी मेज पर रखे अपने एक छोटे से ब्रीफकेस को खोलते हुए कहा__"तुम एक बार खुद देख लो। फिर हम आगे की बात करेंगे।"

"इसकी क्या जरूरत थी अंकल।" विराज ने कहा।
"जरूरत थी बेटे।" जगदीश ने कहा__"इतने बड़े बिजनेस एम्पायर को हमारे बाद सम्हालने वाला हमारा अपना कोई नहीं है। तुम तो सब जानते हो कि एक हादसे ने हमारा सब कुछ तबाह कर दिया था। हम नहीं जानते कि हमारे साथ ईश्वर ने ऐसा क्यों किया? हमने तो कभी किसी का बुरा नहीं चाहा...हाॅ शायद ये हो सकता है कि हमारे पिछले जन्मों में किये गए किन्हीं पापों का ये फल मिला है हमें।"

विराज कुछ न बोला, बस देखता रह गया उस शख्स को जिसके चेहरे पर इस वक्त ज़माने भर का ग़म छलकने लगा था।
josef
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"तुम हमारी कंपनी में दो साल पहले आए थे।" जगदीश ओबराय कह रहा था__"तुम्हारे काम से हर कोई प्रभावित था जिसमे हम भी शामिल थे। कंपनी की जो ब्राॅच अत्यधिक नुकसान में चल रही थी वो तुम्हारी मेहनत और लगन से काफी मुनाफे के साथ आगे बढ़ गई। तुमने उन सभी का पर्दाफाश किया जो कंपनी को नुकसान पहुॅचा रहे थे और मज़े की बात ये कि किसी को पता भी नहीं चल पाया कि किसने उनका भंडाफोड़ कर दिया।" जगदीश ने कुछ पल रुक कर एक गहरी साॅस ली फिर बोला__"हम तुमसे बहुत प्रभावित थे बेटे और बहुत खुश भी। हमने तुम्हारे बारे में अपने तरीके से पता लगाया और जो जानकारी हमें मिली उससे हमें बहुत दुख भी हुआ। हमें तुम्हारे बारे में सब कुछ पता चल चुका था। हम जान चुके थे कि सबके सामने खुश रहने वाला ये लड़का अंदर से कितना और क्यों दुखी है? हमारा हमेशा से ही ये ध्येय रहा था कि हम हर उस सच्चे ब्यक्ति की मदद करेंगे जो अपनो तथा वक्त के द्वारा सताया गया हो। हमने फैसला किया कि हम तुम्हारे लिए कुछ करेंगे। हम एक ऐसे इंसान की तलाश में भी थे जिसे हम खुद अपना बना सकें और जो हमारे इतने बड़े बिजनेस एम्पायर को हमारे बाद सम्हाल सके।"

"आज के समय में किसी ग़ैर के लिए इतना कुछ कौन सोचता और करता है अंकल?" विराज गंभीर था बोला__"जबकि आज के युग में अपने ही अपने अपनों का बुरा करने में ज़रा भी नहीं सोचते या हिचकिचाते हैं। मेरे साथ मेरे अपनों ने जो कुछ किया है उसका हिसाब मैं सिर्फ अपने दम पर करना चाहता था अंकल।"

"हम तुम्हारी हिम्मत और बहादुरी की कद्र करते हैं बेटे।" जगदीश ने कहा__"लेकिन ये हिम्मत और बहादुरी बिना किसी मजबूत आधार के सिर्फ हवा में लाठियाॅ घुमाने से ज्यादा कुछ नहीं होता। तुम जिनसे टकराना चाहते हो वो आज के समय में तुमसे कहीं ज्यादा ताकतवर हैं। उनके पास ऊॅची पहुॅच तथा किसी भी काम को करा लेने के लिए रुपया पैसा है। जबकि तुम इन दोनो चीज़ों से विहीन हो बेटे। किसी से जब भी जंग करो तो सबसे पहले अपने पास एक ठोस और मजबूत बैकप बना के रखो जिससे तुम्हारे आगे बढ़ते हुए कदमों पर कोई रुकावट न आ सके।"

विराज कुछ न बोला जबकि जगदीश ने उसके चेहरे पर उभर रहे सैकड़ों भावों को देखते हुए कहा__"हम जानते हैं कि तुम खुल कर पूरी निडरता से उनका मुकाबला करना चाहते हो वो भी उनके ही तरीके से। कुछ चीज़ें अनैतिक तथा पाप से परिपूर्ण तो हैं लेकिन चलो कोई बात नहीं। तुम सब कुछ अपने तरीके से करना चाहते हो मतलब 'जैसे को तैसा' वाली तर्ज पर।"

"मैं आपके कहने का मतलब समझता हूॅ अंकल।" विराज ने अजीब भाव से कहा___"और यकीन मानिये ये सब करने में मुझे कोई खुशी नहीं होगी पर फिर भी वही करूॅगा जिसे आप अनैतिक और पाप से परिपूर्ण कह रहे हैं। आज के समय में जैसे को तैसा वाली तर्ज पर अमल करना पड़ता है अंकल तभी सामने वाले को ठीक से समझ और एहसास हो पाता है कि वास्तव में उसने क्या किया था।"

"खैर छोड़ो इन बातों को।" जगदीश ने पहलू बदला__"ये बताओ कि उनके खिलाफ तुम्हारा पहला कदम क्या होगा?"
"मेरा पहला कदम उनके उस ताकत और पहुॅच का मर्दन करना होगा जिसके बल पर वो ये सब कर रहे हैं।"विराज ने कठोर स्वर में कहा।

"तुम्हारी सोच ठीक है।" जगदीश ने कहा__"मगर हम ये चाहते थे कि तुम वैसा करो जिससे उन्हें ये पता ही न चल सके कि ये क्या और कैसे हुआ?"
"पता तो ऐसे भी न चलेगा अंकल।" विराज ने कहा__"आप बस वो कीजिएगा जो करने का मैं आपको इशारा करूॅ।"

"ठीक है बेटे।" जगदीश ने कहा__"वही होगा जो तुम कहोगे। हम तुम्हारे साथ हैं।" कहने के साथ ही जगदीश ने विराज की तरफ एक कागज बढ़ाया__"इस कागज पर साइन कर दो बेटे और अपने पास ही रखो इसे।"

"इस सबकी क्या जरूरत है अंचल?" विराज ने कागज को एक हाॅथ से पकड़ते हुए कहा।
"हमारे जीवन का कोई भरोसा नहीं है बेटे।" जगदीश ने कहा__"दो बार हमें हर्ट अटैक आ चुका है, अब कौन जाने कब अटैक आ जाए और हम इस दुनियाॅ से......"
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