नक़ली नाक
सफ़र
गर्मियों का मौसम था। मैदानों के रहने वाले बड़े लोग गर्मी से तंग आ कर रामगढ़ की हरी-भरी पहाड़ियों में पनाह ढूँढने जा रहे थे उनमें विदेशी सैलानी भी थे, जिन्हें रामगढ़ की पुरानी इमारतें देखने की ख़्वाहिश खींच लायी थी।
इस वक़्त पहाड़ियों के ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर टट्टुओं और ख़च्चरों की लाइनें धीरे-धीरे रेंगती हुई दिख रही थीं। हालाँकि यहाँ बस सर्विस भी है, लेकिन बहुत-से मुसाफ़िर सिर्फ़ कुदरती मंज़र का मज़ा लेने के लिए टट्टुओं या ख़च्चरों पर सफ़र करते हैं, लेकिन फ़रीदी के बारे में दावे के साथ नहीं कहा जा सकता कि उसने सैर के लिए यह रास्ता चुना था या फिर वह हमीद को तंग करना चाहता था। वह रास्ते भर उसकी झल्लाहटों से ख़ुश होता चला आ रहा था। इस वक़्त भी वह उसे बात-बात पर छेड़ रहा था। एक जगह चलते-चलते अचानक हमीद के ख़च्चर ने ठोकर खायी और गिरते-गिरते बचा। हमीद घबरा कर कूद पड़ा। फ़रीदी को भी अपना ख़च्चर रोक देना पड़ा।
‘‘अरे, अरे, यह क्या भई?’’ फ़रीदी हँस कर बोला।
‘‘जी कुछ नहीं, बेचारा थक गया है।’’ हमीद मुँह बनाते हुए बोला। ‘‘अब यह मुझ पर सवार हो कर बाक़ी रास्ता तय करेगा। मैं कहता हूँ आख़िर... आपको यह सूझी क्या थी?’’
‘‘भई, मैंने सिर्फ़ तुम्हारी सैर के लिए यह सिरदर्द मोल लिया था, वरना मुझे पागल कुत्ते ने नहीं काटा था।’’
‘‘सैर... जहन्नुम में गयी सैर!’’ हमीद ने ख़च्चर की लगाम पकड़ कर पैदल चलते हुए कहा।
‘‘अरे, यह क्या।’’ फ़रीदी बनावटी हैरानी ज़ाहिर करते हुए बोला। ‘‘तो क्या पैदल ही चलोगे।’’
‘‘जी हाँ...!’’ हमीद झटकेदार आवाज़ में बोला।
‘‘च्च च्च... धत्त तेरे की... अजीब बेवक़ूफ़ हो... देखो वह ऐंग्लो इण्डियन लड़की तुम्हें इस हालत में देख कर शायद अपने साथियों में तुम्हारा मज़ाक़ उड़ा रही है।’’
हमीद ने मुड़ कर देखा तो वाक़ई कुछ ऐंग्लो इण्डियन मुसाफ़िर उसकी तरफ़ देख कर ताना देने के अन्दाज़ में मुस्कुरा रहे थे। उनमें इत्तफ़ाक़ से एक लड़की थी। हमीद पर बौखलाहट का दौरा पड़ा। उसने रस्सी की रक़ाब पर पैर रखा और उछल कर ख़च्चर पर बैठ गया और बैठा भी तो इस शान से जैसे नेपोलियन अपने बड़े-से घोड़े पर सवार आल्प्स के मुश्किलों से भरे रास्ते तय कर रहा हो।
‘‘शाबाश मेरे शेर...!’’ फ़रीदी मुस्कुरा कर बोला। ‘‘तुम्हें राह पर लाने के लिए हमेशा एक औरत की ज़रूरत पड़ती है।’’
‘‘जी हाँ, मेरी पैदाइश के सिलसिले में भी एक औरत की ज़रूरत पड़ी थी।’’ हमीद जल कर बोला।
‘‘अरे, तुम तो फ़िलॉसफ़ी झाड़ने लगे... भई, मैं दरअसल इसीलिए तुम्हारी क़द्र करता हूँ।’’
‘‘क़द्रदानी का शुक्रिया।’’ हमीद ने कहा। ‘‘इस वक़्त आप भी फ़िलॉसफ़र ही मालूम हो रहे हैं।’’
‘‘क्यों...?’’
‘‘ईं सआदत बज़ोर ख़च्चर नीस्त...!’’
‘‘शाबाश... मैंने सुना है कि हज़रत ईसा का गधा लातीनी बोलता था, मगर तुम ख़च्चर पर बैठ कर अच्छी-ख़ासी फ़ारसी बोल रहे हो।’’
हमीद के ख़च्चर ने फिर ठोकर खायी और हमीद गिरते-गिरते बचा।
पीछे से फिर ज़ोरदार हँसी की आवाज़ आयी और हमीद दाँत पीसता रहा। उसे सचमुच फ़रीदी पर ग़ुस्सा आ रहा था। अगर बस ही से सफ़र किया जाता तो कौन-सी मुसीबत आ जाती। कोई तुक है कि सामान और कर्मचारी बस पर जायें और ख़ुद ख़च्चरों पर। फ़रीदी की ऐसी ही अजीबो-ग़रीब हरकतों पर हमीद कभी-कभी इतना नाराज़ हो जाता था कि उसे फ़रीदी की सूरत से नफ़रत होने लगती थी। ऐसे मौक़े पर वह बिना यह सोचे-समझे कि फ़रीदी उसका अफ़सर है, जो कुछ मुँह में आता, कह डालता और फ़रीदी... वह उसकी चिड़चिड़ाहट से ख़ुश हुआ करता था। वह उस वक़्त भी हमीद की झल्लायी हुई हरकतों से ख़ुश हो रहा था।
‘‘मेरा ख़याल है कि अब तुम इस ख़च्चर को कन्धे पर उठा लो।’’ फ़रीदी फिर बोला।
हमीद ने कोई जवाब न दिया। उसके चेहरे से ऐसा लग रहा था जैसे फ़रीदी के इस जुमले पर उसके ज़ेहन में कोई ऐसा जुमला गूँजा हो जिसे न कहना ही बेहतर था।
‘‘अमाँ, तो इस तरह ख़राब मुँह क्यों बना रहे हो?’’ फ़रीदी ने कहा।
‘‘तो मेरा मुँह अच्छा ही कब था।’’ हमीद जल कर बोला।
‘‘मेरे ख़याल से तो अच्छा-ख़ासा था।’’
हमीद फिर चुप हो गया। थोड़ी देर के बाद फ़रीदी फिर बोला।
‘‘हमीद...!’’
‘‘जी...!’’
‘‘ज़रा इन हरी-भरी पहाड़ियों की तरफ़ देखो...!’’
‘‘देख रहा हूँ।’’
‘‘कैसा लग रहा है?’’
‘‘ऐसा लग रहा है जैसे मैं एक नम्बर का गधा हूँ।’’
‘‘और ख़च्चर पर सवार हो।’’
हमीद ने फिर कोई जवाब न दिया।
‘‘हमीद...!’’
‘‘फ़रमाइए...!’’
‘‘इधर उस चट्टान के पास देख रहे हो... वह पहाड़ी लड़की।’’ फ़रीदी बोला।
‘‘मुझे फ़िलहाल उसमें कोई दिलचस्पी नहीं... क्योंकि यह पहाड़ी ख़च्चर...!’’
‘‘अमाँ, ख़त्म भी करो।’’
‘‘अभी यह कमबख़्त मुझे ही ख़त्म कर देता।’’ हमीद ने झल्ला कर ख़च्चर को एक डण्डी मारते हुए कहा।
ख़च्चर एक ढलवाँ चट्टान की तरफ़ जा रहा था। डण्डी पड़ते ही उछल पड़ा। अगर हमीद फ़ौरन ही उसकी गर्दन से न लिपट जाता तो वह उसकी पीठ पर से ज़मीन पर आ जाता।
हमीद ने नीचे उतर कर उसे दो-चार डण्डियाँ मार कर लगाम छोड़ दी... ख़च्चर ढलान में दूर तक चला गया।
‘‘ऐ साहब, ऐ साहब।’’ ख़च्चर वाला पीछे से चिल्लाया और वह ऐंग्लो इण्डियन लड़की अपने साथियों समेत हँसे जा रही थी। हमीद को उसकी सुरीली आवाज़ ज़हर मालूम होने लगी। उसने पलट कर उसकी तरफ़ देखा। फ़रीदी भी अपने ख़च्चर पर से उतर पड़ा था।
ख़च्चर वाला हमीद के ख़च्चर को पकड़ने के लिए दौड़ा जा रहा था।
‘‘क्यों भई, यह क्या किया तुमने।’’ फ़रीदी ने हमीद से कहा।
‘‘अब बेहतर यही है कि आप मुझे किसी ऊँची चट्टान से नीचे धकेल दें।’’ हमीद हाँफता हुआ बोला।
‘‘नहीं, मैं इसे ठीक नहीं समझता।’’ फ़रीदी ने शरारती मुस्कुराहट के साथ कहा।