Romance अभिशाप (लांछन )

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Masoom
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Re: Romance अभिशाप (लांछन )

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डॉली ने जब बिस्तर छोड़ा तो उसकी आंखें बेहद थकी-थकी थीं। यों लगता था मानो वह रात भर न सो पाई हो। मानो विचारों का कोई अंधड़ उसे रात भर झंझोड़ता रहा हो। और यह सब हुआ था आनंद के कारण। यह तो ठीक था कि उसने आनंद से संबंध तोड़ लिए थे। किन्तु उसकी आत्मा यह सहन न कर पा रही थी कि आनंद किसी अन्य से संबंध स्थापित करे। डॉली ने उसे भारती के साथ देखा था। देखकर लगा था-जैसे आनंद उसे जलाना चाहता था। जैसे आनंद ने भारती से संबंध केवल उसे जलाने के लिए बनाए थे या फिर आनंद उसे चुनौती दे रहा था।
वह नाश्ते की मेज पर भी विचार मग्न एवं खोई-खोई रही। आलोक नाथ से बेटी का यह मानसिक द्वंद्व छुपा न रहा। बोले- ‘डॉली! लगता है-रात भर सो न पाई हो।’
‘यूं ही पापा!’
‘अवश्य ही कोई उलझन रही होगी।’
‘उलझन तो न थी-सर में दर्द था।’
‘टेबलेट क्यों नहीं ली?’
‘ली थी-कोई लाभ न हुआ।’ डॉली ने उत्तर दिया।
आमलेट का टुकड़ा मुंह में डालकर आलोक नाथ उसे देखने लगा। डॉली के चेहरे पर अब भी उलझनों का जाल था। कुछ क्षणों के मौन के बाद वह फिर बोले- ‘राज कैसा है?’
‘ठीक है। उसने शांतिनगर में एक कोठी और खरीद ली है।’
‘अच्छी बात है।’
‘आपका काम तो चल रहा है।’
‘हां।’
‘आप राज से मिलते नहीं।’
‘मेरा सीधा संबंध सक्सेना से है। राज से मिलने की आवश्यकता ही नहीं रहती। कल शाम आनंद मिला था।’
डॉली अपने पिता की ओर देखने लगी। मानो पूछ रही हो कि क्यों? आलोक नाथ फिर बोले- ‘अब तो उसकी हालत काफी सुधरी हुई लगती है। साथ में एक युवती और थी।’
डॉली ने रोष एवं घृणा से कहा- ‘भारती होगी।’
‘भारती कौन?’
‘है एक आवारा लड़की।’
‘तुम जानती हो उसे?’
‘नहीं! ठीक से नहीं।’
‘फिर तो तुम्हें उसके बारे में कोई ऐसी-वैसी राय नहीं बनानी चाहिए। हो सकता है तुम्हारा अनुमान गलत हो।’
‘मेरा अनुमान कभी गलत नहीं होता पापा!’
‘हो सकता है।’ आलोक नाथ बोले- ‘वैसे मेरा अनुभव यह है कि तुम्हारे अधिकांश अनुमान गलत ही सिद्ध हुए हैं। यों लगता है-मानो तुम्हारे पास किसी को पहचानने की बुद्धि न हो।’
‘आप! आप किसके विषय में कह रहे हैं?’
‘यूं ही-आनंद की याद आ गई थी। विवाह का प्रस्ताव तो तुम्हीं ने रखा था उसके सामने।’
डॉली के चेहरे पर कड़वाहट फैल गई। उसने नाश्ता छोड़ दिया और एक झटके से उठकर घृणा से बोली- ‘पापा! मेरी समझ में नहीं आता कि आप बार-बार आनंद का नाम क्यों दोहराते हैं? क्या रिश्ता रहा है आपका उससे?’
आलोक नाथ ने उठकर निःश्वास ली और शांत स्वर में बोले- ‘रिश्ता तो उससे तुम्हारा भी है डॉली! केवल कह देने मात्र से रिश्ते नहीं टूट जाते। उनके लिए पहले भावनाओं को मोड़ना पड़ता है और फिर हृदय को तोड़ना पड़ता है। हम समझते हैं ये सब तुम नहीं कर पाओगी।’
‘मैं-मैं ऐसा कर चुकी हूं पापा!’
‘नहीं, डॉली नहीं! तुम ऐसा कर ही नहीं सकतीं। यदि तुमने ऐसा किया होता तो तुम आनंद के लिए पूरी रात न जागतीं।’
‘मैं उसके लिए नहीं जागी। मेरी कल्पना में तो रात भर वह लड़की घूमती रही, जो आनंद के साथ थी।’
आलोक नाथ धीरे से हंस पड़े।
बोले- ‘और जानती हो-तुमने उस लड़की के बारे में रात भर क्यों सोचा? इसलिए क्योंकि वह तुम्हारे आनंद के साथ थी। तुम नहीं चाहतीं कि तुम्हारे अतिरिक्त कोई दूसरा आनंद के समीप आए-उससे प्रेम करे। तुम्हारे मन में ईर्ष्या उत्पन्न हुई उसके लिए। उस लड़की को आनंद के साथ देखकर तुम्हारी रगों में तूफान-सा चीख उठा। और बेटे! हृदय में इस प्रकार का तूफान तभी उठता है, जब कोई अपने प्यार पर डाका डालता है। जब कोई अपने हरे-भरे संसार को उजाड़ने का प्रयास करता है।’
‘बस कीजिए पापा! बस कीजिए।’ डॉली ने पीड़ा से होंठ काट लिए और तड़पकर चिल्लाई- ‘मत नाम लीजिए मेरे सामने आनंद का। मैं-मैं उससे घृणा करती हूं पापा! मैं उससे घृणा करती हूं।’
‘किन्तु तुम शायद यह नहीं जानतीं कि अत्यधिक घृणा के पीछे अत्यधिक प्रेम ही छुपा होता है। हम इस संसार में कभी किसी ऐसे व्यक्ति से घृणा नहीं कर सकते-जिसे हमने प्रेम न किया हो। इसलिए तो कहते हैं-जहां घृणा होती है-प्रेम भी वहीं होता है।’
‘पापा! आप मुझे पागल कर देंगे।’
‘पागल तो तुम हो ही।’ आलोक नाथ बैठ गए और निःश्वास लेकर बोले- ‘विधाता ने तुम्हें कितना हरा-भरा संसार दिया था। किसी प्रकार का कोई भी तो अभाव न था तुम्हारे जीवन में। किन्तु तुम्हारी एक भूल ने सब कुछ तहस-नहस कर डाला। एक ऐसी राह, जिस पर तुम्हें जीवन भर चलना था-तुमने राज की बातों में आकर छोड़ दी। यह तुम्हारा पागलपन न था तो और क्या था?’
‘बुद्धिमानी थी मेरी। मुझे अपना भविष्य अभी से नजर आ रहा था। आनंद के साथ मैं सुखी न रह पाती।’
इतना कहकर डॉली मुड़ी और तेज-तेज पग उठाते हुए कमरे से बाहर चली गई।
आलोक नाथ मुस्कुराते रहे।
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भारती अपने स्कूल से निकलकर ज्यों ही मुख्य सड़क की ओर बढ़ी-एकाएक कोई अदृश्य शक्ति उससे पूछ बैठी-कहां जा रही हो भारती?’
‘प्रोफेसर आनंद से मिलने।’ भारती ने मन-ही-मन अदृश्य शक्ति के प्रश्न का उत्तर दिया।
‘क्यों?’
‘उसकी पीड़ाएं बांटने के लिए। उससे यह बताने के लिए कि जीवन घुट-घुटकर जीने का नाम नहीं। मैं उसे अपनी मुस्कुराहटों से नया जीवन देना चाहती हूं। यदि ऐसा न हुआ तो वह जी नहीं पाएगा।’
‘यह क्यों नहीं कहती कि तेरे दिल में उसके लिए प्रेम उत्पन्न हो गया है और तू उसे चाहने लगी है?’
‘नहीं! यह झूठ है। मेरे हृदय में उसके लिए केवल सहानुभूति है।’
‘और तू उसकी पीड़ाओं को बांटना चाहती है?’
‘हां!’
‘किन्तु तेरे यों मिलने से आनंद की पीड़ाएं कम न होंगी। तू भली-भांति जानती है कि उसे ये पीड़ाएं डॉली ने दी हैं। केवल डॉली ही उसकी पीड़ाएं मिटा सकती है। क्या तू डॉली को उसके समीप नहीं ला सकती?’
‘वह कैसे?’
‘डॉली को जलाकर, उसके हृदय में ईर्ष्या की आग भड़काकर तू उसे आनंद के समीप आने पर विवश कर सकती है।’
‘मैं समझी नहीं।’
‘सुन-यह ठीक है कि तू आनंद से प्रेम नहीं करती। किन्तु तुझे डॉली के हृदय में ईर्ष्या की आग लगाने के लिए आनंद से प्रेम का नाटक करना होगा। तुझे ऐसा कुछ करना होगा कि डॉली तुझे आनंद के साथ देखे।’
‘इससे क्या होगा?’
‘डॉली ईर्ष्या की आग में जलकर राख हो जाएगी। वह कभी सहन न कर पाएगी कि आनंद से कोई दूसरा प्रेम करे। और जिस दिन ऐसा हुआ, डॉली राज का साथ छोड़कर आनंद को स्वीकार कर लेगी।’ अब दैवी शक्ति ने उसे सलाह दी।
भारती कुछ भी न समझ पाई।
तभी किसी ने अपनी आवाज से उसकी विचार श्रृंखला तोड़ दी- ‘नमस्ते दीदी!’
भारती ने चौंककर चेहरा उठाया। ये राज था-जो गाड़ी से उतरकर अभी-अभी उसके समीप आया था।
राज को देखकर भारती के चेहरे पर घृणा फैल गई। किन्तु उसने मुंह से कुछ न कहा और आगे बढ़ने के लिए पग उठाए। ये देखकर राज ने उसका मार्ग रोक लिया और बोला- ‘दीदी! मैं आपसे मिलने आया था। स्कूल में पहुंचा तो पता चला कि आप अभी-अभी गेट से निकली हैं।’
‘क्यों-क्या काम था तुझे मुझसे?’
‘क-काम तो कुछ भी न था दीदी! सिर्फ एक छोटी-सी बात कहनी थी।’
‘वह क्या?’
‘दीदी!’ राज पलभर तो दुविधा में रहा और फिर बोला- ‘आपका आनंद के साथ यों घूमना-फिरना उचित नहीं।’
सुनते ही भारती की मुखाकृति कठोर हो गई और उसकी आंखों से घृणा की चिंगारियां छूटने लगीं। घृणा से दांत पीसकर वह बोली- ‘तू कौन होता है मुझे ऐसी सलाह देने वाला? क्या रिश्ता है तेरा मुझसे?’
राज के हृदय पर चोट लगी।
वह बोला- ‘रिश्ता तो खून का है दीदी! और यह आप भी जानती होंगी कि खून के रिश्ते जीवन में कभी नहीं टूटते। भले ही आप मुझसे कोई संबंध न रखें। भले ही आप यह मान लें कि राज मर चुका है, किन्तु समाज और संसार की दृष्टि में मैं आपका भाई ही रहूंगा। कोई यह कह सकता है कि राजू भारती दीदी का भाई नहीं है।’
‘मैं भूल चुकी हूं कि कोई मेरा भाई थी था।’
‘बेशक भूल सकती हैं दीदी! मम्मी और पापा की बातों में आकर आप सब कुछ भूल सकती हैं। किन्तु मेरा वह बचपन जो आपके साथ बीता है; मेरी वो बचकानी हरकतें जो आपने अपनी आंखों से देखी हैं; मेरी वो तोतली आवाज जिसे सुनकर आपका हंसते-हंसते बुरा हाल हो जाता था। आप यह सब नहीं भूल सकतीं दीदी! कभी नहीं भूल सकतीं।’
भारती ने चेहरा घुमाकर घृणा से कहा- ‘तेरे जैसों को भूलना ही बेहतर है।’
‘किन्तु क्यों? क्या गुनाह किया है मैंने? कौन-सा पाप किया है जिसके कारण आप मुझे भूल जाना चाहती हैं? बस-इतना ही तो हुआ है मुझसे कि मैंने अपनी ईमानदारी, सच्चाई ओर आदर्शों को ठोकर मारकर दौलत से रिश्ता जोड़ा। न जोड़ता तो क्या करता? मारा-मारा फिरता सड़कों पर-कॉलेज की फीस भी न दे पाता-पैबंद लगे कपड़े पहनता-घृणा सहन करता उनकी जिन्हें मैं अपना समझ बैठा था। चारों ओर से उपेक्षा, घृणा, तिरस्कार और अपमान-क्या यह ही लिखा था मेरे भाग्य में? जिंदगी इसी का ही नाम था? मैंने-मैंने यही तो किया कि अपने भाग्य से लड़ाई लड़ी-अपने जीवन का ढंग बदला और अपनी आत्मा को मारकर ही सही-मैं कंगले से दौलतमंद बन गया। क्या आप इसी को पाप कहती हैं?’
भारती ने कुछ न कहा।
राज भावावेश में कहता रहा- ‘और यदि आप इसे पाप कहती हैं तो बताइए इस संसार में पाप के अतिरिक्त और क्या है?
यह ऊंचे-ऊंचे महल, आलीशान बंगले, सड़कों पर दौड़ती चमचमाती मोटरें और एक-एक व्यक्ति के पास दस-दस नौकरों की फौज क्या यह सब पाप की कमाई का परिणाम नहीं? क्या आप इसे मेहनत और ईमानदारी का फल कहेंगी? यदि कहेंगी तो बताइए, एक मेहनतकश और ईमानदार मजदूर के पास गाड़ी क्यों नहीं होती? दिन-रात अपना खून-पसीना बहा बहाने वाला एक मजदूर झोंपड़ियों में क्यों रहता है? क्यों सोता है भूखे पेट खुले आकाश के नीचे? क्यों शरीर को कपड़ा और खाने को रोटी नहीं मिलती उसके बच्चों को?
‘दीदी! यह सब मैंने अपनी आंखों से देखा है और देखकर एक ही बात सीखी है। और वो यह कि इस संसार में शराफत और ईमानदारी का कोई मोल नहीं। व्यर्थ हैं झूठे आदर्श और व्यर्थ है आत्मा की आवाज पर ध्यान देना। मूर्ख हैं वे लोग जो जीवन भर गले में आदर्शों का ढोल और माथे पर ईमानदारी की पट्टी लगाए जीते हैं। कोई उन्हें कौड़ियों के भाव भी नहीं खरीदता दीदी! कोई नहीं पूछता उनकी ईमानदारी और शराफत को। ऐसे लोग जब मरते हैं तो उन्हें कफन तक नसीब नहीं होता, क्योंकि कफन भी पैसे से आता है और ईमानदारी के पास कभी पैसा नहीं होता।
‘अतः मुझे ईमानदारी छोड़नी पड़ी दीदी। ठोकर मारनी पड़ी अपने आदर्शों को। गला दबाना पड़ा अपनी आत्मा का और इन सब बातों का परिणाम यह हुआ कि राजाराम चपरासी का बेटा तीन सौ पैंसठ दिनों के पश्चात जब अपने घर लौटा तो उसका जीवन पूरी तरह से बदल चुका था। अमीर बन चुका था वह। गुजरे हुए जमाने में जो लोग उससे घृणा करते थे, वही उससे प्रेम करने लगे। जिन लोगों ने उसका अपमान किया वही, उसे सम्मान की दृष्टि से देखने लगे। प्रणाम करने लगे उसे। कितनी बड़ी खुशी दी दौलत ने मुझे।’
‘दौलत ने तुझे तेरे परिवार से अलग कर दिया।’ भारती इस बार बोली- ‘इसे तू खुशी कहता है। संसार तेरा अपना हो गया-किन्तु तेरे अपने तो पराए हो गए।’
‘मैं इस परायेपन की चिंता नहीं करता दीदी! क्योंकि मैं जानता हूं कि यह ही पराए फिर से अपने हो जाएंगे।’
‘कब?’
‘उस दिन-जब वे लोग दौलत का महत्व समझेंगे। मुझे विश्वास है कि उस दिन मुझसे घृणा न की जाएगी, बल्कि प्रेम किया जाएगा।’
‘ऐसा कभी न होगा राजू! यह दौलत तुझे सब कुछ दे सकती है, किन्तु तेरा परिवार नहीं लौटा सकती। और कुछ कहना है?’
‘आनंद के विषय में।’
‘तू कहता है-मैं प्रोफेसर आनंद से मिलना बंद कर दूं?’
‘हां दीदी!’ राज बोला- ‘और यह सब मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि आनंद अच्छा आदमी नहीं।’
‘अच्छा तो तू भी नहीं। तूने आनंद से उसकी पत्नी छीन ली। तूने एक सरल हृदय वाले व्यक्ति को जीवन भर का रोग दे दिया। क्या इसे तू अच्छा कह सकता है?’
‘दीदी! आप मेरी बात छोड़िए और...।’
‘बात छोड़ने की नहीं राजू! बात समझने की है। मनुष्य को चाहिए कि वह दूसरों के गिरेबान में झांकने से पहले अपने गिरेबान में भी झांक कर देख ले।’
‘दीदी! आप...।’
‘फिर भी मैं तेरी बात मान सकती हूं राजू! मैं तेरी सलाह मानकर आनंद से मिलना बंद कर दूंगी। किन्तु तुझे भी मेरी एक बात माननी पड़ेगी।’
‘वह क्या?’
‘आज के पश्चात् तू डॉली से नहीं मिलेगा। तू उससे किसी प्रकार का कोई संबंध नहीं रखेगा।’ भारती ने कहा और ध्यान से राज का चेहरा देखने लगी।
राज का चेहरा उतर गया।
किसी अपराधी की भांति अपना सर झुकाकर वह बोला- ‘यह-यह असंभव है दीदी! शायद आप नहीं जानतीं कि मैं उसे आरंभ से ही चाहता हूं। वह-वह पहला प्यार है मेरे जीवन का। मैं-मैं उससे दूर रहने की कल्पना भी नहीं कर सकता दीदी!’
‘प्यार-हूं!’ भारती घृणा से बोली- ‘लज्जा नहीं आती तुझे किसी दूसरे की पत्नी को अपना प्यार कहते हुए? उसने आनंद से विवाह किया-अग्नि को साक्षी करके आनंद को अपना पति माना और तू उसे अपना पहला प्यार कह रहा है।’
‘दीदी! मैं-मैं सच कहता हूं।’
‘तेरे झूठ और सच से मेरा कोई संबंध नहीं। मैं तो सिर्फ यह चाहती हूं कि तू डॉली से हमेशा के लिए संबंध तोड़ ले। बोल-करेगा तू ऐसा? अपनी दीदी को सही राह दिखाने के लिए तू डॉली से संबंध तोड़ देगा?’
राज ने इस पर कुछ न कहा।
वह कुछ क्षणों तक तो विचार मग्न-सा खड़ा रहा और फिर मुड़कर आगे बढ़ गया।
सड़क पर उसकी गाड़ी खड़ी थी।
फिर एक क्षण ऐसा भी आया जब राज अपनी गाड़ी में बैठा और उसकी गाड़ी भारती की दृष्टि से ओझल हो गई।
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आनंद ने अंतिम बार दर्पण में अपना चेहरा देखा और इसके पश्चात् ज्यों ही द्वार की ओर बढ़ा-कमरे में आती भारती को देखकर उसके चेहरे पर खुशियों भरी मुस्कुराहट फैल गई।
आनंद के आगे बढ़ते कदम रुक गए।
‘गुड इवनिंग सर!’
‘गुड इवनिंग भारती!’ आनंद ने भारती के अभिवादन का उत्तर दिया और बोला- ‘आओ-बैठो।’
भारती ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा और बोली- ‘मेरा विचार है मैं ठीक समय पर नहीं आई।’
‘क्यों?’
‘आप कहीं जा रहे थे।’
‘यूं ही-थोड़ा घूमने का मन था, लेकिन तुम खड़ी क्यों हो? बैठो।’
‘सर! बैठने से तो अच्छा है कि हम लोग कहीं बाहर घूम लें। आपका मन भी बहल जाएगा और...।’
‘विचार तो बुरा नहीं। वैसे-चलना कहां है?’ भारती की आंखों में देखते हुए आनंद ने पूछा।
‘जहां आप कहें।’
‘सागर सरोवर?’
‘अच्छी जगह है।’ भारती बोली।
अगले ही क्षण दोनों होटल से बाहर आ गए और टैक्सी पकड़कर सागर सरोवर की ओर चल पड़े। लंबे मौन के पश्चात् आनंद ने भारती से कहा- ‘एक बात पूछूं भारती?’
‘पूछिए।’
‘भारती! तुम्हारा लगभग प्रतिदिन ही स्कूल से चलकर मेरे पास आना और ज्योति को लौटना-यह सब तुम्हें कैसा लगता है?’
‘बहुत अच्छा। और आप?’
‘मैं क्या?’
‘आपको कैसे लगता है?
‘एक स्वप्न की भांति।’ आनंद ने निःश्वास ली और बोला- ‘बहुत अच्छा लगता है स्वप्न देखना, लेकिन तुम जानती हो कि भोर होने पर स्वप्न टूटता अवश्य है। और जब टूटता है-तो बहुत दुःख होता है।’
भारती ने चौंककर आनंद को देखा। आनंद के चेहरे पर पीड़ा के भाव फैल गए थे। किन्तु आनंद के इन वाक्यों में जो रहस्य छुपा था-वह भारती न समझ सकी।
तभी आनंद फिर बोला- ‘स्वप्न तो तुमने भी देखे होंगे भारती?’
‘देखे हैं सर!’
‘कैसा लगता है-उनका टूटकर बिखरना?’
‘अच्छा नहीं लगता सर!’
‘बहुत पीड़ा होती है-होती है न?’ आनंद ने कहा और ध्यान से भारती का चेहरा देखने लगा।
भारती उसकी बात का अर्थ न समझ पाई और धीरे से बोली- ‘जी!’
फिर तो अच्छा यह है भारती! कि स्वप्नों से कोई संबंध न बनाया जाए। ऐसे संबंध से क्या लाभ जिससे पीड़ा के अतिरिक्त अन्य कुछ भी न मिले।’
‘मैं समझी नहीं सर!’
‘भारती! मैं पिछले कई दिनों से तुम्हारे विषय में सोच रहा हूं। तुम्हारा मुझसे मिलना-मेरी पीड़ाओं को बांटने का प्रयास करना-यह सब यूं ही तो नहीं हो सकता भारती! मैं यह भी नहीं मानता कि तुम मुझे छलने का प्रयास कर रही हो। तुम्हारी जैसी निष्कपट एवं सरल हृदय लड़की किसी को छल भी नहीं सकती। स्पष्ट है कि तुम्हारे हृदय में मेरे लिए प्रेम का अंकुर फूट पड़ा हो। न-न-बुरा मत मानो भारती! यह सब होना स्वाभाविक है। मन कब किसे अपना मान बैठे, हृदय के तारे कब किसी दूसरे से जुड़ जाए, यह सब कहना बहुत मुश्किल होता है। विश्वास करो! मुझे यह सब बुरा भी नहीं लगता है। कौन नहीं चाहता कि संसार में कोई उसका अपना हो। कोई हो जो उसके दर्द को बांट सके-कोई हो जो उसे प्यार दे सके।’
भारती सुनती रही।
आनंद कहता रहा- ‘बहुत खुशी हुई थी तुमसे मिलकर, आज भी होती है। लेकिन...।’
‘लेकिन...।’ भारती के होंठ खुले।
‘पीड़ा भी होती है भारती!’
‘वह क्यों सर?’
‘यह सोचकर कि तुम्हारे यह स्वप्न कभी साकार न हो पाएंगे।’
भारती के होंठों पर मुस्कुराहट फैल गई। सोचने लगी-आनंद ने उसे कितना गलत समझा था। उसके हृदय में आनंद के लिए अपनेपन की भावना थी और सहानुभूति थी-किन्तु प्रेम न था। आनंद ने उसके अपनेपन को ही प्रेम समझा था।
तभी आनंद बोला- ‘तुम शायद बुरा मान गईं?’
‘वह क्यों?’
‘मैंने यह सब कहकर तुम्हारा हृदय दुखाया।’
‘नहीं प्रोफेसर साहब! ऐसा बिलकुल नहीं हुआ।’ इतना कहकर भारती ने एक पल के लिए खिड़की से बाहर देखा और फिर आनंद से बोली- ‘कारण यह है सर! कि मुझे स्वप्न देखने की आदत नहीं है। मैंने अपने जीवन में कल्पनाओं के ऐसे महल कभी नहीं बनाए जो बनते ही टूट गए हों। सच्चाई यह है कि मेरे मन में आपके लिए केवल श्रद्धा तो है, सहानुभूति भी है-किन्तु प्रेम नहीं है।’
‘सॉरी भारती!’
‘और।’ भारती फिर बोली- ‘ऐसा इसलिए है सर! क्योेंकि मैंने किसी के प्रेम को लूटना कभी नहीं सीखा है। मैं दो हृदयों के बीच दीवार बनकर खड़े होना पाप समझती हूं। आप डॉली के हैं सर! और मैं ईश्वर से प्रार्थना करती हूं कि आप हमेशा उसी के होकर रहें। डॉली के अतिरिक्त कोई दूसरा आपके जीवन में कभी न आ सके।’
आनंद ने पश्चातापपूर्ण स्वर में कहा- ‘आई एम रियली सॉरी भारती! मैंने तुम्हें गलत समझा था।’
तभी टैक्सी रुक गई।
सागर सरोवर आ चुका था।
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डॉली ज्यों ही किनारे पर आई-राज ने उसे हाथ पकड़कर खींच लिया। डॉली उससे किसी लता की भांति लिपट गई। राज उसे चूमकर बोला- ‘आओ अब चलें।’
‘ऊंहु! अभी नहीं।’
‘और कब?’
‘चांद के उदय होने पर। कहते हैं चांद की किरणें जब सरोवर को चूमती हैं तो ऐसा लगता है मानो पृथ्वी पर स्वर्ग उतर आया हो।’
‘स्वर्ग तो यहां अब भी है।’ राज शरारत से बोला।
‘वह कहां?’ डॉली ने पूछा।
‘मेरी बांहों में।’
‘ऊंहु! बहुत बनाते हो तुम।’
‘अच्छा बाबा! अब न बनाएंगे।’ कहते हुए राज ने उसे फिर से चूम लिया और बोला- ‘कॉफी तो लोगी?’
‘मन तो है।’
‘मैं ले आता हूं-बैठो।’
डॉली ने बैठकर अपने पांव सरोवर में डाल लिए। राज सड़क के उस पार बने रेस्तरां से कॉफी लेने चला गया। माझी अपनी नाव दूसरे किनारे पर ले गया था।
एकाएक डॉली चौंककर उठ गई।
देखा-आनंद उससे कुछ ही दूरी पर एक वृक्ष से सटा सरोवर की लहरों को गिन रहा था और भारती कुछ ही आगे एक चट्टान पर बैठी थी। हवा के झोंके उसका आंचल उड़ा रहे थे और वह उसे बार-बार संभालने का प्रयास कर रही थी।
न जाने आनंद और भारती यहां कब आए थे।
उन्हें देखकर डॉली के जबड़े भिंच गए। उसे यों लगा-मानो हृदय में एकाएक ही कोई ज्वालामुखी फूट पड़ा था। मानो एक तूफान आया और उसने डॉली के मस्तिष्क को झंझोड़ डाला। इसके पश्चात् वह स्वयं को न रोक सकी और आनंद के पास पहुंचकर घृणा से बोली-
‘तुम बता सकते हो-मेरा पीछा करने से तुम्हें क्या मिलता है? क्यों आते हो तुम बार-बार मेरे मार्ग में?’
आनंद ने डॉली को देखा। होंठों पर दर्द भरी मुस्कुराहट फैल गई। बोला- ‘यह गलत है कि मैं तुम्हारा पीछा करता हूं। वैसे भी मैं उन राहों को मुड़कर नहीं देखता, जो पीछे छूट जाती हैं।’
‘तुम्हारा भारती से मिलना और जान-बूझकर मेरे सामने से गुजरना क्या इसका अर्थ यह नहीं कि तुम मुझे जलाना चाहते हो? तुम-तुम राखकर डालना चाहते हो मुझे?’
‘राख तो तुम्हें होना ही है डॉली! किन्तु तुम्हारे राख होने का संबंध मुझसे न होगा। और हां-यह भी झूठ है कि मैं तुम्हें जलाना चाहता हूं। तुम्हें अपनी मंजिल मिल गई-मैं अपनी राहों पर चल पड़ा-अतः इसमें जलने जैसी कोई बात भी नहीं।’
‘क्या तुम भारती को नहीं चाहते? तुम-तुम भारती से प्रेम नहीं करते?’ डॉली ने घृणा से पूछा। इस घृणा में भी पीड़ा छुपी थी।
आनंद ने उत्तर दिया- ‘किसी से प्रेम करना और न करना-यह सब अपने वश में नहीं होता डॉली!’
‘इसका मतलब है?’
‘नहीं डॉली! यह सच नहीं। मुझमें और तुम्हारे विचारों में एक अंतर ये भी है कि तुम प्रेम को भी बाजार में बिकने वाली वस्तु मानती हो। जब मन हुआ खरीदा, जब मन हुआ-किसी दूसरे को बेच दिया। किन्तु मेरी दृष्टि में यह प्रेम नहीं। प्रेम सदैव किसी एक से ही होता है और उसे बांटा नहीं जाता।’
‘अर्थात् तुम भारती से प्रेम नहीं करते?’
‘डॉली! मैंने केवल तुमसे प्रेम किया है और मैं केवल तुमसे प्रेम करता हूं। यह भी यकीन रखो कि मेरे जीवन में तुम्हारे अतिरिक्त कोई दूसरा कभी नहीं आएगा।’ आनंद ने कहा। फिर एकाएक उसे कुछ ध्यान आया और उसने जेब से निकालकर एक कागज डॉली की ओर बढ़ा दिया।
डॉली ने कागज लेकर कड़वाहट से पूछा- ‘क्या है?’
‘मैं तुम्हारे वकील से मिला था। पता चला कि तुमने मुझ पर तलाक के लिए जो आरोप लगाए हैं-वे पर्याप्त नहीं हैं। अतः मैं अपनी ओर से कुछ आरोप लिखकर लाया हूं ताकि तुम्हें दिक्कत न हो और अदालत का निर्णय तुम्हारे पक्ष में हो।’
‘कितने घटिया इंसान हो तुम।’ डॉली घृणा से दांत पीसकर बड़बड़ाई और इसके साथ ही उसने आनंद के कागज को टुकड़े-टुकड़े कर दिया। इसके पश्चात् वह मुड़ी और तेज-तेज कदमों से चलकर राज की गाड़ी के समीप आ गई।
राज कार्पेट पर बैठा था।
कॉफी का थर्मस एवं मग सामने रखे थे। डॉली के तमतमाए चेहरे को देखकर वह बोला- ‘तुम्हारी तबीयत तो खराब नहीं हो गई डॉली?’
‘नहीं!’ डॉली ने धीरे से कहा और मग में कॉफी डालने लगी।
‘लेकिन तुम्हारा चेहरा?’
‘क्या हुआ मेरे चेहरे को?’
‘मुझे लग रहा है कि...।’
‘राजू! यह तुम्हारी आदत है कि छोटी-छोटी बातों पर बहुत ध्यान देते हो। कॉफी लो।’
राज ने मग उठा लिया।
कॉफी समाप्त होने तक दोनों मौन रहे।
इसके पश्चात् डॉली उठकर बोली- ‘आओ अब चलें?’
‘इतनी जल्दी?’
‘हां।’
‘चांद को न देखोगी?’
‘चांद तो रात में उदय होगा।’
‘तो क्या हुआ?’
‘देर हो जाएगी।’
‘इसमें दिक्कत क्या है? आज की रात यहीं रुक जाएंगे। ठंडी हवाएं, वातावरण पर बिखरी चांदनी और हम-तुम। क्या ये सब तुम्हें अच्छा नहीं लगेगा?’
‘नहीं! आज नहीं।’
‘और कब?’
डॉली झुंझलाकर बोली- ‘देखो राजू! यदि तुम्हें यहीं रुकना है तो रुको। मैं चलती हूं।’ इतना कहकर वह गाड़ी में बैठ गई।
राज को भी बैठना पड़ा। उसने गाड़ी स्टार्ट की और मुस्कुराकर बोला- ‘बहुत सुंदर लगती हो तुम।’
‘राजू! मेरा मन ठीक नहीं।’
‘मन तो हमारा भी ठीक नहीं।’
‘तुम्हारे मन को क्या हुआ?’
‘आग-सी लगी है।’
‘तो फिर गाड़ी रोक दो।’
‘क्यों?’
‘सरोवर अभी निकट ही है।’
‘उसमें क्या होगा?’
‘आग बुझ जाएगी।’
‘वह आग तो हम यहां भी बुझा लेंगे डॉली रानी!’ राज ने कहा और इसके साथ ही उसने गाड़ी रोककर डॉली को अपनी ओर खींच लिया।
डॉली उसकी गोद में गिर पड़ी और राज उसके होंठों पर चुंबनों की बौछार करने लगा। किन्तु डॉली का मन उसके चुंबनों की ओर न था। वह इस समय भी आनंद के विषय में सोच रही थी।
* * ** * ** * ** * ** * ** * ** * ** * ** * ** * *
कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्‍वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
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Re: Romance अभिशाप (लांछन )

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‘तुम क्या सोचती हो?’ आनंद ने एक कंकड़ उठाकर जल में फेंकते हुए भारती से कहा- ‘डॉली के हृदय में वास्तव में जलन हुई होगी?’
‘स्त्रियां इस मामले में बहुत कायर होती हैं।’
‘मतलब?’
‘स्त्री कभी नहीं चाहती कि कोई उसके पति की ओर आंख उठाकर देखे और उससे प्यार करे।’
‘डॉली तो संबंध तोड़ चुकी है।’
‘नहीं सर! संबंध अभी टूटे नहीं हैं। यदि ऐसा होता तो आपके साथ मुझे देखकर उसे इतनी ईर्ष्या न होती। ईर्ष्या केवल इसीलिए हुई है क्योंकि वह आपको आज भी उतना ही चाहती है।’
‘मैं विश्वास नहीं करता।’
‘आपको उससे मिलना चाहिए।’
‘किसलिए?’
‘उससे यह बताने के लिए कि आप उसे आज भी उतना ही चाहते हैं।’
‘न-नहीं डॉली!’
‘किन्तु क्यों?’
‘यह कायरता होगी।’
‘फिर-मन को क्योंकर समझाएंगे?’
‘अपने आपको यह सोचकर तसल्ली दूंगा कि वह किसी-न-किसी को तो चाहती है।’
‘सर!’ आनंद की पीड़ा भारती का हृदय चीर गई।
‘भारती!’ आनंद ने उठकर निःश्वास ली और बोला- ‘मैं केवल यह चाहता हूं कि वह जहां भी रहे, जिसके साथ भी रहे-खुश रहे। कभी कोई पीड़ा न हो उसे। कभी कोई कांटा न चुभे उसके पांव में। कोई अभाव न हो उसके जीवन में। वह जीवनभर कलियों की भांति मुस्कुराए और फूलों की तरह हंसती रहे। उसने मुझे न चाहा, यह उसका सौभाग्य था। मैं उसे चाहता हूं यह मेरा सौभाग्य है।’
‘आप-आप महान हैं सर!’
‘नहीं भारती! यह मेरी महानता नहीं। यह तो मेरे हृदय की आवाज है। मेरी आत्मा की आवाज है यह। भले ही यह प्यार मुझे जलाकर राख कर दे। भले ही यह पीड़ा मेरे अंदर इतना विष भर दे कि मेरा प्राणांत हो जाए। किन्तु मैं यह भी चाहूंगा कि उसका एक भी सपना न टूटे। उसे वह सब मिले, जिसकी उसने कल्पना की है।’
इतना कहकर वह एक ओर को चल पड़ा।
भारती उसके साथ-साथ चलती रही।
मौन के पश्चात् भारती ने पूछा- ‘आपके मुकदमे की तारीख कब है?’
‘शीघ्र ही है।’
‘उस दिन क्या होगा?’
‘मुझे एवं डॉली को बयान देना होगा।’
‘बयान में आप क्या कहेंगे?’
‘यही कि मेरे कई लड़कियों से अनैतिक संबंध हैं। मैं शराब पीता हूं ओर डॉली पर अत्याचार करता हूं।’
‘क्या यह अन्याय न होगा?’
‘कैसा अन्याय?’
‘अपने हृदय एवं आत्मा के साथ?’
‘नहीं।’
‘आपकी आत्मा क्या कहेगी?’
‘सिर्फ यह कि मैं डॉली को चाहता हूं।’
‘और-हृदय?’
‘वह तो पहले ही डॉली का हो चुका है। अतः गवाही भी देगा तो उसी की।’
‘विचित्र हैं आप भी।’
आनंद ने तुरंत बातों का विषय बदल दिया। बोला- ‘चलोगी नहीं?’
‘कहां?’
‘अपने घर।’
‘थोड़ी देर और रुकिए न।’
‘अंधेरा बढ़ रहा है।’
‘आपकी तो मित्रता हो गई है अंधेरों से-फिर भय कैसा?’
‘तुम साथ हो न। सोचता हूं कहीं इन अंधेरों की छाया तुम पर न पड़ जाए।’
‘विश्वास कीजिए, यह छाया मुझ पर न पड़ेगी।’
‘तुम जानती हो-राज थोड़ी देर पहले यहीं था।’
‘वह मुझे देख चुका है, किन्तु अब उसमें इतना साहस नहीं कि आपके और मेरे विषय में कुछ कह सके।’
‘क्यों?’
‘उसने मुझसे कहा था कि मैं आपसे न मिलूं। और मैंने उससे कहा था कि यदि वह डॉली का साथ छोड़ दे तो मैं प्रोफेसर से कभी नहीं मिलूंगी।’
‘राज ऐसा कभी न करेगा।’
‘फिर उसे यह भी कहने का अधिकार नहीं कि मैं आपसे न मिलूं।’
आनंद रुक गया और फिर से छोटी-छोटी कंकड़ें उठाकर पानी में फेंकने लगा। हवाएं अब शांत थीं-लहरों में भी उतनी हलचल न थी।
* * ** * ** * ** * ** * ** * ** * ** * ** * ** * *
राज ने फिल्म का प्रिंट देखा।
देखते ही कमरे में विस्फोट गूंज गया। राज के मस्तिष्क की धज्जियां उड़ गईं। यों लगा-मानो बिजली गिरी हो। गुस्से में उसने शराब की बोतल स्क्रीन पर दे मारी और इसके उपरांत वह पूरी शक्ति से चिल्लाया- ‘पाशा!’
पाशा उसी समय कमरे में आ गया। कमरे में आकर उसने एक नजर स्क्रीन के टुकड़ों पर डाली और इसके उपरांत वह राज से बोला- ‘यह-यह क्या हुआ सर?’
‘हरामजादे!’ राज की आंखों से आग बरस रही थी। उसने दोनों हाथों से पाशा का गिरेबान जकड़ लिया और गुस्से से दांत पीसकर चिल्लाया- ‘कमीने! मैं-मैं तेरा खून पी जाऊंगा। मैं तुझे जिंदा नहीं छोडूंगा पाशा के बच्चे!’
‘पर-पर हुआ क्या?’
‘कुत्ते तूने मेरी बहन का अपहरण कराया। तूने शूटिंग के नाम पर रातभर मेरी बहन की इज्जत से खिलवाड़ की। ब्लू फिल्म बनाई उस पर।’
‘न-नहीं।’
‘हरामजादे! वह आरती थी। मेरी छोटी बहन-मेरी नन्हीं गुड़िया। हर वर्ष राखी बांधती थी वह मेरी कलाई पर। मंगल टीका लगाती थी मेरे मस्तक पर। कहती थी-मेरी उम्र भी मेरे भइया को लग जाए।’ क्रोध एवं दुःख की अधिकता के कारण राज रो पड़ा और कहता रहा- ‘और तू-तूने मेरी उसी गुड़िया को लूट लिया पाशा! सिर्फ तूने ही नहीं-उसे सलीम, असगर और भीमा ने भी लूटा। जी भर कर लूटा उसे।’ और इसके उपरांत वह चकराकर बिस्तर पर गिर पड़ा और फूट-फूटकर रोने लगा।
यह देखकर पाशा के होंठों पर विचित्र-सी मुस्कुराहट थिरक उठी। उसने एक बार अपने गले पर हाथ फिराया और फिर राज से बोला- ‘माफ करें सर! इसमें मेरी कोई गलती नहीं। मुझे अपनी फिल्म के लिए किसी नए चेहरे की तलाश थी-अतः कल शाम जब एक खूबसूरत लड़की मुझे नजर आई तो मैंने सलीम से कहकर उसे किडनैप करा लिया। इसके पश्चात् तो वही होता सर!’
‘पाशा! मैं लुट गया। मैं बर्बाद हो गया। इतनी दौलत होते हुए भी आज मेरे पास कुछ न रहा। मैं-मैं इस दौलत में आग लगा दूंगा। पाशा! जलाकर राख कर दूंगा इसे। इस दौलत ने मुझसे मेरा परिवार छीन लिया। मेरी बहन की इज्जत लूट ली। नागिन बनकर मेरा ईमान डस लिया। मैं-मैं इस दौलत को जिंदा नहीं छोडूंगा पाशा!’ राज ने गुस्से से कहा।
और इसके पश्चात् ही उसने सोफे से उठकर लाइटर निकाल लिया। इस वक्त उसकी आंखों में पागलपन के भाव स्पष्ट झांक रहे थे। यों लगता था-मानो उसने सचमुच ही सब कुछ जलाकर राख करने का निश्चय कर लिया हो।
पाशा उसकी मुखाकृति देखकर डर गया।
वह बोला- ‘यह-यह आप क्या करने जा रहे हैं सर?’
‘हट जाओ। सामने से हट जाओ पाशा! आज मैं यहां कुछ भी शेष नहीं रहने दूंगा। आग लगा दूंगा इस दौलत को। यह-यह दौलत मेरी दुश्मन है पाशा!’
पाशा कांपकर रह गया।
तभी भड़ाक से दरवाजा खुला और इसके उपरांत राज ने जो कुछ देखा-उसे देखते ही उस पर चट्टान टूट पड़ी। अखिल ने मूर्छित अथवा मृत आरती को कंधे पर उठाए अंदर प्रवेश किया था।
अखिल का चेहरा भट्टी की भांति दहक रहा था और आंखों से जैसे अंगारे बरस रहे थे। आगे बढ़कर उसने आरती को राज के पैरों में डाल दिया ओर फिर क्रोध से एक-एक शब्द को चताबे हुए कहा- ‘यह गुड़िया है मिस्टर राज वर्मा! जो अब मर चुकी है। मैं इसे इसलिए नहीं लाया कि यह तुम्हारी बहन है। इस संसार में तुम्हारी कोई बहन हो भी नहीं सकती राज वर्मा! इस संसार में कोई ऐसी लड़की भी नहीं हो सकती जो तुम्हारे जैसे कमीने इंसान की कलाई पर राखी बांधने का साहस कर सके। मैं इसे इसलिए लाया हूं-क्योंकि यह मेरी बहन है। यह एक गैरतमंद भाई की छोटी बहन है।’
राज को मानो सांप सूंघ गया।
आंखों से आंसू बहते रहे।
‘और।’ मानो शब्दों के रूप में अखिल अंगारे चबाता रहा- ‘तुम जानते हो यह सब क्यों हुआ? एक भोली-भाली लड़की एकाएक लाश में क्यों बदल गई, जानना ही चाहते हो तो लो-पढ़ो इस कागज को। पढ़ो इसमें लिखी हुई दास्तान।’ कहने के साथ ही अखिल ने मुट्ठी में दबा एक कागज राज की ओर उछाल दिया।
कागज आरती की लाश पर गिरा।
राज उसे उठाने का साहस न कर सका।
यह देखकर अखिल गुस्से से चिल्लाया- ‘उठाओ राज वर्मा! मैं कहता हूं-उठाओ इस कागज को। पढ़ो अपने काले कारनामे को।’
राज ने झुककर कागज उठा लिया। पढ़ा-पढ़ते ही उसने नीचे बैठकर बहन को अपनी बांहों में उठा लिया और फूट-फूटकर रोते हुए बोला- ‘मुझे माफ कर दे गुड़िया! माफ कर दे मुझे। मैं स्वीकार करता हूं तेरा खून मैंने किया है। मेरे पाप तुझे नाग बनकर डस गए आरती! मेरी दौलत तेरी चिता बना गई। उठ-उठ मेरी बहन! और आग लगा दे मेरी इस दौलत को। राख कर दे सब कुछ। यकीन कर आरती! आज मुझे कोई अफसोस न होगा, बल्कि यह सोचकर खुशी होगी कि जिस दौलत ने मुझसे मेरा परिवार, मेरा ईमान और मेरी बहन छीनी है, आज उसका अस्तित्व खत्म हो चुका है।’
‘बहुत हो चुका राज वर्मा!’ अखिल ने गुर्राते हुए आरती को राज की बांहों से छुड़ा लिया और बोला- ‘बंद कर अब इस नाटक को और डूब मर चुल्लू भर पानी में। कमीने! तू तो राक्षसों से भी गया गुजरा निकला। एक राक्षस भी अपने परिवार का खून नहीं पीता-मगर तूने तो एक इंसान होकर भी अपनी सगी बहन की इज्जत लूट ली। हुआ है इस संसार में कभी ऐसा? बोल हरामजादे!’ अखिल ने गुस्से में राज का गिरेबान पकड़ लिया और घृणा से बोला- ‘इस संसार में किसी भाई ने अपनी बहन की इज्जत लूटी है? अपनी बहन की इज्जत से दौलत कमाई है? मगर तूने ऐसा किया कुत्ते! ऐसा किया। मैं तुझे जिंदा नहीं छोडूंगा राज! मैं तेरे खून से स्नान कराऊंगा अपनी बहन को और तब इसकी चिता को अग्नि दूंगा।’
‘अखिल मेरे भइया!’ राज रोते-रोते बोला।
‘मर गया तेरा भइया। मर गए तेरे माता-पिता और जलकर राख हो गया तेरा घर। मत कह अपनी गंदी जुबान से मुझे भइया। मत याद दिला मुझे मेरे बचपन की। बस इतना ही याद दिला कि तूने मेरी बहन की इज्जत लूटी है। बस इतना ही कह कि तूने मेरी गुड़िया का खून किया है। कमीने! शैतान!’ और इसके उपरांत तो वह जैसे पागल हो गया और राज के मुंह पर घूंसे बरसाने लगा।
पाशा यह देखकर शीघ्रता से बाहर चला गया।
राज ने अपना बचाव न किया। उसकी आंखों से झर-झर आंसू बहते रहे और एक क्षण ऐसा भी आया जब वह चकराकर गिर पड़ा।
यह देखकर भी अखिल का पागलपन दूर नहीं हुआ। उसने तत्काल जेब से चाकू निकाला और राज की छाती पर सवार हो गया।
राज ने इस बार अपने दोनों हाथ ऊपर उठाए और रोते-रोते अखिल से बोला- ‘ठहर भइया! मेरे अख्खी! बस एक पल के लिए ठहर।’
अखिल का ऊपर उठा हाथ रुक गया।
राज बोला- ‘तुझे अपना वचन तो याद है न अख्खी? तूने कहा था मैं तेरे खून से गुड़िया को स्नान कराऊंगा। तो सुन-मुझे थोड़ा मेरी बहन के करीब कर दे ताकि मेरी छाती से जब रक्त का फव्वारा निकले तो वह सीधा मेरी गुड़िया पर गिरे। यकीन कर अख्खी! मुझे अपनी मौत का कोई दुःख नहीं होगा। मैं-मैं जीना ही नहीं चाहता अख्खी! मैं मरना चाहता हूं।’
‘कुत्ते! शैतान!’ अखिल ने इस बार फिर अंगारे चबाए।
और इससे पूर्व कि उसके हाथ का चाकू राज के सीने में उतर पाता-किसी ने एकाएक उसके हाथ से चाकू छीन लिया।
अखिल ने चेहरा घुमाकर देखा।
यह उसका पिता राजाराम था।
‘पापा! आप।’
‘यह-यह तू क्या कर रहा था अखिल?’ राजाराम ने पूछा।
‘मैं इस पापी से अपनी बहन की मौत का बदला ले रहा था पापा! लाइए।’ अखिल उठकर राजाराम से बोला- ‘यह चाकू मुझे दीजिए-दीजिए पापा!’
‘खबरदार! यदि चाकू को हाथ भी लगाया तो गोली मार दूंगा।’ इस आवाज से कमरे में धमाका-सा हुआ।
राजाराम एवं अखिल ने देखा कमरे के द्वार पर एक पुलिस इंस्पेक्टर खड़ा था। इंस्पेक्टर ने आगे बढ़कर राजाराम के हाथ से चाकू ले लिया। उसी समय बाहर खड़े कांस्टेबल भी अंदर आ गए।
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42
तीन महीने बाद
एल अल्बर्ग होटल,
ओलान्तेताम्बू, पेरू
मैं कैफे में बैठी कॉफी पी रही थी। माचू पिच्चू ले जाने वाली छोटी नीली ट्रेनें समय-समय पर आ-जा रही थीं। मैंने अपने फोन से लैपटॉप में बैकअप के रूप में मेरी ट्रिप पिक्चर डाउनलोड की। लैपटॉप ने आज की डेट फ्लैश की : 23 मार्च। इसी के साथ एक रिमाइंडर आया : ‘बी को मैसेज करना है।’ गोवा में हुए तमाशे को तीन महीने पूरे हो गए थे, लेकिन मैं अभी तक मैसेज करने की हिम्मत नहीं जुटा पाई थी। ध्यान भटकाने के लिए मैं अपनी यात्रा की तस्वीरें देखने लगी।
पिछले महीने मैंने लंदन से पूर्व दिशा में अपनी यात्रा शुरू की थी। मैं बर्लिन, काहिरा, बीजिंग और सिडनी जा चुकी थी। फिर मैंने पेरू में लीमा की फ्लाइट पकड़ी। लीमा से मैं ओलान्तेताम्बू पहुँची, जो माचू पिच्चू पहुँचने के लिए सबसे अच्छी जगह मानी जाती है। मैं यहाँ मिनी ट्रेन स्टेशन पर मौजूद इस खूबसूरत होटल में ठहरी थी।
एक घंटा बीतने और दो कैपिचिनो पी लेने के बाद मैंने अपना फोन निकाला।
सुषमा, जस्ट डू इट। ज़्यादा-से-ज़्यादा क्या होगा?
मैंने राज को एक वॉट्‌सएप मैसेज भेजा।
‘हाय।’
मैं आधे घंटे इंतज़ार करती रही। आखिरकार ब्लू टिक्स नज़र आईं। उसने मेरा मैसेज देख लिया था, लेकिन कोई जवाब नहीं दिया। मेरा दिल बैठने लगा।
‘हाय, क्या चल रहा है?’ कुछ मिनटों बाद उसका जवाब आया।
‘आज तीन महीने हो गए। हमारी ऑलमोस्ट वेडिंग एनिवर्सिरी को।’
उसने एक स्माइली भेज दी।
‘सॉरी अगेन।’
‘हे, लाइफ में ये सब होता रहता है। क्या कर रही हो?’
‘गुड। ट्रैवलिंग। मैंने कहा था कि मैं एक लंबे सफर पर निकल जाऊँगी?’
‘राउंड द वर्ल्ड?’
‘यस।’
‘सर्कल पूरा हुआ?’
‘ऑलमोस्ट। दो फ्लाइट और पकड़नी हैं।’
‘कूल। और तुम अभी कहाँ हो?’
‘पेरू। माचू पिच्चू देखने आई हूँ।’
‘नाइस।’
‘और तुम कहाँ पर हो?’
‘ऑफिस में, और कहाँ?’
‘राज, मैं तुमसे कुछ पूछना चाहती हूँ।’
‘श्योर।’
‘मेरा अगला स्टॉप सैन फ्रांसिस्को है। मैं वहाँ तीन दिन बाद पहुँच रही हूँ।’
‘ओह, कूल।’
‘यस। क्या तुम एक कॉफी पीने मुझसे मिलोगे?’
उसने कुछ मिनटों तक जवाब नहीं दिया। मैंने एक और मैसेज भेजा :
‘अगर तुम नहीं आ सको या आना नहीं चाहो तो भी मुझे कोई दिक्कत नहीं होगी।’
‘सॉरी, मुझे बॉस ने बुला लिया था। श्योर, तुम्हारे साथ कॉफी पीकर बहुत अच्छा लगेगा।’
‘रियली? ग्रेट।’
‘क्या हम मेनलो पार्क में मिल सकते हैं? इससे मुझे आसानी होगी।’
‘ऑफ कोर्स। जो भी तुम्हारे ऑफिस के करीब हो। तो बुधवार को मिलें?’
‘श्योर। मेनलो पार्क में फिल्ज कॉफी पर। चार बजे।’

फिल्म कॉफी,
मेनलो पार्क
मैं पाँच मिनट पहले पहुँच गई थी। फिल्ज कॉफी फ़ेसबुक कैम्पस के ठीक बाहर मौजूद है। मैंने खिड़की के पास वाली एक सीट ले ली और एक ऐसी कंपनी के ऑफिस को देखने लगी, जिसने दुनिया के डेढ़ अरब लोगों को जोड़ रखा है। मैंने ब्लू-व्हाइट चेक्ड ड्रेस पहनी थी, जो कैलिफोर्निया की धूप को रिफ्लेक्ट करती लग रही थी।
‘हाय।’ राज ने मेरी टेबल के करीब आने पर कहा। मैं उठ खड़ी हुई और हमने एक छोटा-सा हग किया।
‘मुझसे मिलने के लिए थैंक्स।’ मैंने कुछ-कुछ सेल्फ-कांशियस होते हुए कहा।
‘नो इशूज़ मेरे शहर में स्वागत है।’ उसने कहा। उसने एक ब्लैक हुडी और ब्लू जीन्स पहन रखी थी। उसके कंधे ज़्यादा चौड़े लग रहे थे, जैसे कि वह पहले से ज़्यादा मज़बूत हो गया हो। उसने गले में फ़ेसबुक कॉर्पोरेट आईडी बैज पहन रखा था।
‘तुम्हें काम पर देखकर थोड़ा अजीब लग रहा है।’
‘हाँ, रिश्तेदारों के बिना। लेकिन तुम्हें देखकर मुझे लग रहा है, जैसे अभी कहीं से मेरी कोई आंटी बाहर निकलकर आ जाएगी।’
‘बिलकुल। मुझे भी यही लग रहा है कि बुआ और मासी कहाँ हैं?’
‘और मुझे किसी के पैर छूने की ज़रूरत महसूस हो रही है।’
हम दोनों हँस पड़े।
वह बरिस्ता काउंटर पर गया और दो कैपिचिनो ले आया। उसके बैठने के बाद मैं बोली।
‘हालाँकि कोई भी माफी नाक़ाफी ही होगी, फिर भी, एक बार फिर सॉरी। जिस एक इंडियन लड़की से तुम आखिरकार शादी करने आए, उसने ऐसा ड्रामा कर दिया।’
उसने अपने हाथ लहराते हुए कहा : ‘तुम्हें ऐसा कहने की ज़रूरत नहीं है। मैं लगभग उससे उबर चुका हूँ। लाइफ गोज़ ऑन। हालाँकि मैं लगातार सोचता रहा हूँ कि तुमने वैसा क्यों किया था।’
‘तो तुम्हें क्या लगा?’
‘यही कि तुम्हें या किसी भी लड़की को खुद को जानने के लिए किसी मर्द की ज़रूरत नहीं है। तुम्हें एक ऐसे इंसान की ज़रूरत है, जो तुम्हें सपोर्ट कर सके, इंस्पायर कर सके, या तुम्हें समझ सके। जो तुम्हें सबसे बेहतर बनने में मदद कर सके, फिर चाहे वह बैंकर बनना हो या माँ बनना या दोनों ही हो या और कुछ हो। और जब तक तुम ऐसा कोई इंसान खोज नहीं लेतीं, तब तक तुम सेटल होना नहीं चाहती।’
मैंने राज की ओर देखा और मन ही मन उसकी समझ की सराहना की।
‘तुम्हें ऐसा लगता है?’
‘बिलकुल। और तुम केवल एक इंडियन गर्ल नहीं हो। तुम एक स्पेशल इंडियन गर्ल हो।’
मैं मुस्कराई और उसे एक थैंक्स का ईशारा किया।
‘फिर भी मैं खुद को दोष देती हूँ। बहुत ज़्यादा दोष। मैंने तुम्हें अपने रिलेटिव्स के सामने इतना बुरा महसूस कराया।’
‘ऐसा मत करो। एक्चुअली, मैं तो जब भी गोवा को याद करता हूँ तो मेरे रिलेटिव्स के बारे में सोचता तक नहीं।’
‘दैट्‌स गुड। तो तुम्हें कोई अफसोस नहीं?’
‘ऐसा तो नहीं। ओके, एक अफसोस है।’
‘क्या?’
‘तुम्हें पुलिस स्टेशन वाली वो रात याद है?’
‘ओह यस। जब हम अंजुना गए थे। वो इंस्पेक्टर। हमारे पैरेंट्‌स का वहाँ पर आना। टेरिबल।’
‘हाँ, और वो जो सब हमने किया था, वह मैं तुम्हारे बिना कभी नहीं कर पाता।’
‘वेल, मेरी सोहबत बुरी है। वो एक क्रेज़ी रात थी।’
‘यस, तो बात यह है कि उसके बाद मैं तुम्हारे साथ ऐसी ही एक क्रेजी ज़िंदगी बिताने के सपने संजोने लगा था। वो हो ना सका और यही मेरा अफसोस है।’ उसने कंधे उचकाए और मुस्करा दिया।
हमारी आँखें मिलीं। मेरे पास इसका कोई जवाब नहीं था। इसलिए मैंने यह विषय बदलना ही बेहतर समझा।
‘तुम पहले से ज़्यादा फिट लग रहे हो।’
‘ मैंने एक जिम ज्वॉइन कर लिया है। मैं वहाँ रोज जाने की कोशिश करता हूँ।’
‘हाँ, दिख रहा है।’
‘थैंक्स। तुम भी रिलैक्स लग रही हो। तुम्हारे चेहरे पर अब ज़्यादा शांति है।’
‘मेरे मन में भी। एक महीने की ट्रैवलिंग का यह फल है।’
‘यस, आई एम श्योर। तुम अच्छी लग रही हो।’
मैं मुस्करा दी। हमने अपनी कॉफी सिप की।
‘काम कैसा चल रहा है?’ मैंने पूछा।
‘बढ़िया। मेरा बिज़नेस आइडिया भी आगे बढ़ रहा है। इंटरनेट ऑफ थिंग्स या आईओटी एप्स को डेवलप करने के लिए एक सर्विस प्रोवाइडर। आईओटी नेक्स्ट बिग थिंग है। जो भी कंपनी आईओटी एप्स बनाएगी, उसके लिए स्कोप है।
‘सो तो है।’
‘लेकिन वीसीज़ के लिए मुझे एक फॉर्मल बिज़नेस प्लान की ज़रूरत है, जो तकलीफ दे रहा है। उन्हें फाइनेंशियल मॉडल्स और प्रोजेक्शंस और क्या कुछ नहीं चाहिए।’
‘तुम चाहो तो मैं मदद कर सकती हूँ।’
‘रियली?’
‘यही मेरा काम है।’ मैंने कहा और मुस्करा दी।
‘ओह यस, ऑफ कोर्स।’
‘मुझे बिज़नेस को समझना होगा। और फिर उसे नंबर्स से भरी एक स्प्रेडशीट में बदल देना होगा। मैं पूरे समय यही करती रहती हूँ।’
‘मैं तुमसे डिटेल्स शेयर करूँगा। तुम यहाँ कितने समय के लिए हो?’
‘मेरे पास पाँच दिन की छुट्‌टियाँ और हैं। मैं एक-दो दिन में एक क्विक मॉडल बना सकती हूँ।’
‘ओह, यह तो बहुत कमाल होगा। क्या हम वीकेंड में इस पर काम कर सकते हैं?’
‘नो प्रॉब्लम।’ मैंने कहा।
हम चुपचाप अपनी कॉफी सिप करते रहे।
‘वैसे, वीकेंड में ही यहाँ पुनीत सिंह का एक कॉन्सर्ट भी है।’
‘ओह कूल। मुझे वो बहुत पसंद है।’ मैंने कहा। उसने मुझे कॉन्सर्ट के बारे में बताया। लेकिन मैं समझ नहीं पाई कि उसने इशारों-इशारों में मुझे अपने साथ कॉन्सर्ट में चलने को कहा है।
‘यस। तो?’ उसने कॉफी का एक और सिप लेते हुए कहा। उसके होंठों पर झाग का एक घेरा बन गया था।
मैं उसके होंठों की ओर इशारा किया।
‘क्या?’
मैं अपने फोन का कैमरा खोला, उसे सेल्फी मोड पर किया और उसे उसका चेहरा दिखा दिया।
‘ओह नो।’ उसने झेंपते हुए कहा। उसने एक टिशू से झाग वाली अपनी मूँछें साफ कर दीं।
‘राज, क्या तुम मेरे साथ पुनीत सिंह के कॉन्सर्ट में चलोगे?’ मैंने धड़कते दिल से पूछा।
‘ऑफ कोर्स। मैं वही तो कहना चाह रहा था। तुम काम में मेरी मदद कर रही हो तो हम साथ में कॉन्सर्ट तो जा ही सकते हैं।’
‘मुझे तुम्हारे साथ जाकर बहुत अच्छा लगेगा।’
‘हाँ, और मुझे तुम्हारे साथ और वक्त बिताकर बहुत अच्छा लगेगा।’
हमारी आँखें मिलीं। उसने कॉफी का एक और सिप लिया। उसके होंठों पर झाग की एक और मूँछ बन गई। मैंने उसे फिर अपने फ़ोन के कैमरे से उसका चेहरा दिखाया। वह मुस्करा दिया। मैं भी मुस्करा दी। और फिर हम दोनों ठहाका लगाकर हँस पड़े।


samapt
कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्‍वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
Masoom
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Re: Romance अभिशाप (लांछन )

Post by Masoom »

आलोक नाथ ने रिसीवर रख दिया। उसी समय डॉली ने अंदर प्रवेश किया। वे उससे बोले- ‘डॉली! आज राज से न मिलोगी?’
‘नहीं! इस समय नहीं पापा! शाम को जाऊंगी।’
‘तो ऐसा करना-पुलिस स्टेशन जाना।’
‘पुलिस स्टेशन!’ डॉली चौंककर बोली- ‘वहां क्यों?’
आलोक नाथ ने व्यंग्य से मुस्कुराते हुए कहा- ‘क्योंकि तुम्हारा राज इस वक्त पुलिस स्टेशन में है और पुलिस उसे गुजरात के नागरिक बैंक को लूटने तथा ब्लू फिल्में बनाने के अपराध में जेल भेजने की तैयारी कर रही है।’
डॉली पर व्रजपात-सा हुआ।
आलोक नाथ फिर बोले- ‘पुलिस ने उसकी फिल्म कंपनी में छापा मारकर ब्लू फिल्मों के कई प्रिंट और शूटिंग का सामान बरामद किया है। राज का मुख्य व्यवसाय यह ही था। वह फिल्मों की आड़ में ब्लू फिल्में बनाता था। उसका कैमरामैन और डायरेक्टर पाशा भी गिरफ्तार हो चुका है। उन्होंने भी अपना अपराध स्वीकार किया है।’
डॉली के मस्तिष्क पर सन्नाटा छा गया।
‘और।’ आलोक नाथ ने फिर कहा- ‘तुम शायद यह भी जानना चाहोगी कि राज के पास इतनी दौलत कहां से आई थी।’
‘उसका चाचा!’
‘नहीं! वह कहानी झूठी थी। राज के किसी चाचा के पास इतनी दौलत न थी।’
‘फिर...?’
‘असल में राज अपनी गरीबी से तंग आकर गुजरात चला गया था। शायद नौकरी की तलाश में गया हो, किन्तु जब नौकरी न मिली तो वह जरायम पेशा लोगों के साथ रहने लगा। वहीं उसकी मुलाकात मोहन पाटिल से हुई। मोहन पाटिल किसी समय नागरिक बैंक में कैशियर था और धोखाधड़ी के आरोप में नौकरी से निकाल दिया गया था। मोहन पाटिल ने राज के सामने बैंक लूटने का प्लान रखा।’
‘और-इस प्रकार राज ने नागरिक बैंक लूटा।’
‘हां! काफी चालाकी और होशियारी के साथ उन्होंने नागरिक बैंक के वॉल्ट से करोड़ों रुपए निकाले, किन्तु राज ने एक चालाकी यह दिखाई कि उसने मोहन पाटिल को लूट का हिस्सा न दिया और उसे धोखे से गोली मार दी। इसके पश्चात् राज यहां आ गया क्योंकि उसे एकाएक अमीर व्यक्ति के रूप में देखकर पुलिस उस पर संदेह करती-अतः उसने यह प्रचार किया कि यह दौलत उसे चाचा से मिली है।’
डॉली की आंखें भर आईं।
सर चकराता रहा।
आलोक नाथ फिर देर तक चुप रहे और बेटी को ध्यान से देखते रहे। इसके पश्चात् वह बोले- ‘तुम्हारे लिए एक खुशखबरी और है।’
‘वह क्या?’
‘आनंद भारती से विवाह कर रहा है।’
डॉली के सर पर मानो चट्टान टूट पड़ी। वह कुछ क्षणों तक तो अपने पिता का चेहरा देखती रही और फिर अविश्वास से चिल्लाई- ‘नहीं-नहीं यह नहीं हो सकता।’
‘यह सच है डॉली! मुझे अभी-अभी आनंद ने फोन पर बताया है कि वह भारती से विवाह कर रहा है। आनंद इस समय सूर्या होटल में है। और वैसे जब तुम अपने जीवन की दिशा बदल सकती हो-तो क्या आनंद ऐसा नहीं कर सकता? आखिर वह भी इंसान है-जीने की चाह तो उसके हृदय में भी है।’
डॉली ने फिर कुछ न कहा।
उसने पीड़ा से होंठ काट लिए और उंगलियों की पोरों से अपनी आंखें पोंछते हुए कमरे से बाहर चली गई।
आलोक नाथ मुस्कुराते रहे।
* * ** * ** * ** * ** * ** * ** * ** * ** * ** * *
पुलिस स्टेशन का एक कक्ष।
फर्श पर बैठे राज की आंखों से अभी भी पश्चाताप के आंसू उबल रहे थे और इंस्पेक्टर गिरि उससे पूछ रहा था- ‘मोहन पाटिल तुमसे कब मिला था?’
‘तीस तारीख की शाम।’
‘बैंक लूटने का प्लान किसने बनाया था?’
‘मोहन पाटिल ने।’
‘किन्तु पाटिल तो अकेला भी वॉल्ट तोड़ सकता था, फिर उसने तुम्हारी मदद क्यों ली?’
‘दो बातें थीं।’ राज बोला- ‘पहली तो यह कि पाटिल का दिमाग जितना तेज था-उतना ही उसका दिल कमजोर था।’
‘अर्थात् उसके अंदर बैंक लूटने का साहस न था।’
‘हां। और दूसरी बात यह थी कि वाल्ट तोड़ने के लिए दो व्यक्तियों का होना आवश्यक था।’
‘लूट की रकम कितनी थी?’
‘दस करोड़। किन्तु मैंने पहले ही यह निश्चय कर लिया था कि मैं पाटिल को एक भी पैसा नहीं दूंगा। अतः जब हम नोटों से भरा बैग लेकर प्रज्ञा मंदिर के खंडहर में गए तो मैंने मोहन पाटिल को गोली मार दी।’
‘मोहन पाटिल की लाश?’
‘मंदिर के निकट ही प्रज्ञा नदी बहती है। पाटिल की लाश मैंने नदी में डाल दी थी।
‘खैर!’ इंस्पेक्टर गिरि बोला- ‘यह ब्लू फिल्म बनाने का काम तुमने कहां से सीखा?’
‘मुझे इस व्यवसाय की कोई जानकारी न थी। अचानक ही मेरी मुलाकात पाशा से हुई। पाशा ने ही मुझे सलाह दी कि मैं अपना पैसा इस व्यवसाय में लगा दूं।’
‘यह फिल्में कहां-कहां जाती थीं?’
‘नेपाल, चाइना और बर्मा।’ राज ने बताया।
इंस्पेक्ट गिरि को इसके अतिरिक्त और कुछ न पूछना था। वह उठ गया। राज उससे बोला- ‘इंस्पेक्टर! मेरी आपसे एक प्रार्थना है।’
‘अपने परिवार वालों से मिलना चाहते हो?’
‘नहीं इंस्पेक्टर! मेरे अंदर इतना साहब नहीं कि उन लोगों की नजरों का सामना कर सकूं।’
‘और क्या बात है?’
‘इंस्पेक्टर! आपका अपराध विज्ञान कहता है कि कोई भी अपराधी बुनियादी तौर पर अपराधी नहीं होता। इंसान जब अपराधों की दुनिया में कदम रखता है तो उसके पीछे कुछ ठोस कारण होते हैं।’
‘तुम अपना कारण बता सकते हो?’
‘मेरा प्यार।’
‘क्या मतलब?’
राज ने निःश्वास ली-बोला- ‘इंस्पेक्टर! एक सुंदर-सी लड़की थी डॉली। मेरा विचार है उस जैसी चंचल और शोख लड़की पूरे शहर में न होगी।’
‘फिर?’ गिरि ने उत्सुकता से कहा और बैठ गया।
‘न जाने उस राजकुमारी ने मुझमें क्या देखा कि वह मुझसे प्यार कर बैठी।’
‘और तुम भी?’
‘हां इंस्पेक्टर साहब! यह जानते हुए भी कि मैं एक चपरासी का बेटा हूं, मैं भी उससे प्यार कर बैठा।’
‘फिर क्या हुआ?’
‘हमारा प्रेम पूरे एक वर्ष चला। किन्तु फिर-एकाएक वह मुझसे घृणा करने लगी। घृणा का कारण थी मेरी गरीबी। स्वयं उसके पिता ने भी मेरा अपमान किया था।’
‘उसके पश्चात् तुम गुजरात चले गए।’
‘इंस्पेक्टर साहब! मैं डॉली को कुछ बनकर दिखाना चाहता था। अपने खोए हुए प्यार को पाने के लिए मेरे पास दौलत का होना बहुत जरूरी था।’
‘अर्थात् सिर्फ अपनी डॉली को पाने के लिए तुम गुजरात गए और वहां तुमने नागरिक बैंक को लूटा?’
राज बोला- ‘यह सच है इंस्पेक्टर! आज मैं पूरी ईमानदारी के साथ कह सकता हूं कि यदि मुझे मेरी डॉली का प्यार मिला होता। यदि उसने केवल मुझसे प्रेम किया होता तो मुझे दौलत से रिश्ता जोड़ने की कोई आवश्यकता न थी। उस समय मेरा प्यार ही मेरे लिए सबसे बड़ी दौलत होती।’
‘किन्तु अमीर बनने के पश्चात् तो...।’
‘डॉली मेरी हो गई थी। मेरे लिए उसने अपने पति को भी त्याग दिया था! अपनी भूलों पर वह फूट-फूटकर रोई थी।’
‘और तुम इसे उसका प्यार समझ बैठे।’ इंस्पेक्टर गिरि बोला- ‘मिस्टर राज वर्मा! सच्चाई यह है कि उस लड़की ने तुमसे कभी प्यार नहीं किया था। प्यार किया होता तो वह तुम्हारी गरीबी से घृणा न करती। प्यार कभी गरीबी-अमीरी नहीं देखता मिस्टर राज! प्यार सिर्फ हृदय को देखता है। बाद में उसने अपने पति को छोड़ दिया-मगर तुम्हारे लिए नहीं-तुम्हारी दौलत के लिए। उसे तुम्हारी दौलत की जरूरत थी।’
‘इंस्पेक्टर साहब! मैं उससे मिलना चाहता हूं।’
‘सॉरी राज! मैं तुम्हें ऐसी इजाजत नहीं दे सकता।’
इतना कहकर इंस्पेक्टर बाहर चला गया।
राज की आंखें भर आईं।
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