Adultery बुरी फसी नौकरानी लक्ष्मी

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josef
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Re: Adultery बुरी फसी नौकरानी लक्ष्मी

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49
विक्की

मैनेजर ने तय समय पर सुबह 5 बजे फोन कर हमें उठाया। मैंने सन्नी को उठाया पर लक्ष्मी आंटी पहले ही उठ चुकी थी और टॉयलेट की बत्ती जल रही थी।

"नशेड़ी को नशा और लक्ष्मी आंटी को पढ़ाई से दूर रखना मुश्किल है।"

लक्ष्मी आंटी ने मुस्कुरा कर अपनी कॉपी बन्द करके कहा, "टीचर ने कहा है कि अगर मैं जल्दी से सब सीख लूं तो एक साल में मेरी डिग्री पूरी हो जाएगी। कल रात आप दोनों ने मुझे ऐसे थका दिया कि सुबह जल्दी आंख खुली। मैं आप दोनों को सोने को मिले इस लिए यहां बैठ गई।"

सन्नी ने मुंह धोते हुए कहा, "हमने बताया वैसे लक्ष्मी आंटी ने कोई कपड़े नहीं लिए पर अपनी कॉपी लेना नहीं भूली।"

हम दोनों ने वहीं अपने कपड़े उतारे और शॉवर में नहाने लगे।

लक्ष्मी आंटी, "वो सब छोड़ो। बाबू आप दोनों इतनी जल्दी क्यों उठ गए? अभी तो सूरज भी नहीं उगा!"

"यही सही वक़्त है यहां से निकलने का। मैनेजर ने चाय और नाश्ता तयार किया है। बेड पर तुम्हारे लिए नए कपड़े रखे हैं। जल्दी से निकलना है, तो कपड़े पहन कर नीचे आ जाओ।"

इतना कह कर हम चकराई लक्ष्मी आंटी को छोड़ बाहर आ गए और कपड़े पहन कर बैग भर दी। लक्ष्मी आंटी नहाकर बाहर आने से पहले ही हम सामान गाड़ी में रखने ले जा चुके थे।

लक्ष्मी आंटी ने लाउंज में अपने कदम रखने की खबर हमें मैनेजर के चेहरे से हुई। मैनेजर ने झट से अपने हाथ में से चाय का tray मेज पर रखा और सूखे गले के लिए पानी गटक लिया।

लक्ष्मी आंटी हमारे पीछे से इठलाते हुए आई और हमें पीछे से एक साथ गले लगते हुए कहा,
"पता नहीं था कि कल रात मैं इतना थक गई थी। ऐसे सोई की अब नींद खुली। मैनेजर साहब आप का होटल मुझे बहुत पसंद आया। आप दोनों ये मत समझो कि मैं गांव से हूं तो गंवार हूं। मैं खूब जानती हूं कि बेड पर क्या बू आ रही थी। अगर मेरे होते हुए ऐसा दोबारा किया तो आप दोनों की शिकायत कर दूंगी।"

हम सब नाश्ता कर के जल्द ही गाड़ी में बैठ गए और गाड़ी निकल पड़ी। लक्ष्मी आंटी किसी बच्ची की तरह उतावली हो रही थी कि हम सब कहां जा रहे हैं? इतनी जल्दी से क्यों निकले? कब तक पहुंचेंगे? आधे घंटे बाद हम ने अपनी गाड़ी एक गांव की ओर मोडी और गाड़ी खुली जगह पर पार्क की। लक्ष्मी आंटी ने गाड़ी से बाहर दौड़ कर इर्द गिर्द देखा।

लक्ष्मी आंटी, "यहां पर कुछ नहीं दिख रहा! बस ये गांव का मंदिर और वो पहाड़।"

"अगर मैं ये कहूं कि इस मंदिर में मांगी हर बात मिल जाती है तो?"

लक्ष्मी आंटी, "बाबू आप दोनों के हाथ लगने के बाद मेरी सारी इच्छाएं पूरी हो गई है। और ज्यादा मांग कर लालची क्यों बनूं?"

सन्नी, "हाय लक्ष्मी आंटी! ऐसा कह कर तो तुमने हमें धर्म संकट में डाल दिया! ऐसे इंसान को क्या दें किसके पास सब कुछ है।"

"लक्ष्मी आंटी, कपड़ों से तो समझ गई होगी कि मंदिर नहीं जाने वाले। तो चलो सूरज बढ़ने से पहले पहाड़ चधते हैं।"

पहाड़ पर चढ़ने के लिए सीढ़ियां बनी हुई थी और हम सब खेल खेल में चढ़ने लगे। थोड़ी ही देर में लक्ष्मी आंटी ने साबित कर दिया कि वह अब भी किसी पहाड़ी घोड़ी की तरह अपनी लंबी टांगों से कोई भी चढ़ाई पार कर सकती है। लेकिन हम दोनों शहरी अड़ियल टट्टू निकले जो रोज दिन में तीन बार लक्ष्मी आंटी की चढ़ाई कर झंडा गाड़ने के बाद भी आधे रास्ते में हांफने लगे।

लक्ष्मी आंटी, "हा! हा! हा! बड़े आए मुझे चौंकाने वाले! लगता है कि आप दोनों का पासा उल्टा पड़ गया! वैसे ये किला है ना? इसका नाम क्या है? ये इतना सुनसान क्यों है? यहां कोई आता जाता नहीं क्या?"

"हुफ… बताता हूं लक्ष्मी आंटी, बताता हूं। इस किले का नाम लोहगड है और यह एक जाना माना tourist spot है। पर आज गुरुवार की सुबह लोग बहुत कम आयेंगे। शनिवार रविवार को यहां भीड़ होती है। हम लगभग पहुंच गए हैं। उपर बैठ कर बात करते हैं।"

लक्ष्मी आंटी, "जो पहले पहुंचा वो राजा!!"

लक्ष्मी आंटी अपनी लंबी टांगों से सीढियों को पार करते हुए भाग गई।

सन्नी, "तुझे लगता है यहां हमें कोई पकड़ेगा?"

"पता लगाने का एक ही तरीका है। जो पहले पहुंचा वो राजा!!"

हम दोनों लक्ष्मी आंटी के पीछे भागने लगे।

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josef
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सन्नी

लक्ष्मी आंटी ने अपनी लंबी टांगों के लुभावने दर्शन करते हुए किले की रानी का पद जीता तो हम दोनों एक साथ पहुंचने के कारण राजा न बनते हुए सिपहसालार बने। किले के विशाल दरवाजे के अंदर एक छोटा सा नया कमरा बना था जहां से हमें टिकट लेनी पड़ी। रानी साहिबा ने बड़े शान से हम तीनों की टिकट खरीदी और हम अंदर गए।

लक्ष्मी आंटी ने हम दोनों के हाथों में अपने हाथ डाले और हम सब किला देखने लगे। लोहगड़ देखने का सही मौसम सर्दी या बरसात का होता है उसमें भी हम गुरुवार की सुबह वहां पहुंचे थे। पूरा किला मानो अतीत की स्मृतियां केवल हमारे लिए दिखा रहा था। सुबह होटल से नाश्ता करके निकले थे इसलिए हम सुबह 6 बजे लोहगढ़ के नीचे पहुंचे थे। उपर चढ ने में और 1 घंटा लगा तो हम सब किले में 7 के थोड़ी देर बाद पहुंचे। सूरज अभी उगा था और किले की सरद हवाओं में सूरज की किरणों की गरमी एक सुखद अनुभव था। किले के चार बड़े दरवाजे पार कर अंदर घूमने लगे। धान के पुराने गोदाम के आगे एक दर्गा बना था और आगे कुछ कमरे थे जिसमें लोग रहा करते होंगे।

लक्ष्मी आंटी, "बाबू, आप को लगता है कि यहां लोग रहते थे?"

सन्नी, "हमारे घर अगर 300 साल बन्द रहें तो ऐसे ही दिखेंगे। जो चुराने लायक था वो अंग्रेज ले गए और जो बचा वो वक़्त खा गया।"

लक्ष्मी आंटी, "मैं आज इस किले की रानी हूं और आप दोनों मेरे सिपाही। याद है ना?"

हम दोनों ने अपने सर हिलाकर हां कहा।

लक्ष्मी आंटी, "मुझे भूक लगी है और आप दोनों अभी मेरे लिए इंतजाम करोगे।"

"लक्ष्मी आंटी! यहां पर कुछ खाने को नहीं मिलता। खाने को अब नीचे जाने के बाद मिलेगा। पानी पियोगी?"

लक्ष्मी आंटी ने मुंह फुलाकर कहा, "आप दोनों को तो कुछ समझ में नहीं आता।"

लक्ष्मी आंटी ने हमारे पीछे देखा और हमें खींच कर एक कमरे में ले गई। अंदर अंधेरा था और जमीन भी काफी मैली थी। लक्ष्मी आंटी ने हम दोनों को दरवाजे के बगल में खड़ा कर दिया और हमारे सामने घुटनों पर बैठ गई। लक्ष्मी आंटी ने अपनी उंगलियों से हमारे लौड़े पैंट के ऊपर से सहलाते हुए हमारी चैन खोली और हमारे लौड़े बाहर निकले। आगे क्या होगा यह जानकर हम दोनों चुप चाप खड़े हो गए।

लक्ष्मी आंटी ने अपनी उंगलियों को मुठ्ठी में मोड़ कर हमें हिलाने लगी और हम दोनों बड़ी मुश्किल से अपनी आहें दबाकर लक्ष्मी आंटी की मुठ मारने का मजा उठाने लगे। लक्ष्मी आंटी ने हमारे सुपाड़े को बारी बारी चूमकर उस गीला किया और उस पर आयी रस की पारदर्शी बूंद को चाट लिया। हम दोनों को उत्तेजना असेहनिय होने लगी थी कि लक्ष्मी आंटी अचानक उठकर बाहर भाग गई।

हम दोनों ने जैसे तैसे अपनी पैंट बन्द की और उसके पीछे भागने लगे। लक्ष्मी आंटी कुछ ही कदम दरवाजे के बाहर टिकिट बेचने वाले से टकराई थी और अब उसके पीछे छुप कर खड़ी थी। टिकट बेचने वाला हमारी ओर संदेह से देख रहा था।

"देखो साहब, यही है वो दो लोग जो मेरा पीछा कर रहे हैं। पकड़ो इन्हें!!", लक्ष्मी आंटी ने पीछे से कहा।

"लक्ष्मी आंटी! ये अच्छी बात नहीं! उस कमरे में हमें डराकर यहां हमारी शिकायत करना। चलो इन्हें सच बताओ!"

लक्ष्मी आंटी ने चिढ़ाते हुए कहा, "हां, मैंने आप दोनों को परेशान किया तो क्या? आप दोनों मेरा पीछा करते हुए बाहर आए हो!"

टिकट बेचने वाले आदमी ने सब को डांटते हुए कहा कि हमें यहां कोई बचकाने खेल नहीं करने चाहिए और संभलकर रहना चाहिए। हमने हां कहा तो एक बार और डांट कर वह वापस अपनी जगह पर चला गया।

लक्ष्मी आंटी, "मैंने कहा था कि मैं इंसान को पहचानती हूं। अगर हम मस्ती करते पकड़े नहीं जाते तो ये हमारे पीछे पीछे आता रहता। चलो अब हमें कोई तंग नहीं करेगा।"

कभी कभी लक्ष्मी आंटी से डर लगता है।
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josef
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Re: Adultery बुरी फसी नौकरानी लक्ष्मी

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विक्की

लक्ष्मी आंटी ने हम दोनों के हाथों में अपने हाथ रख कर घूमना चालू रखा और जल्द ही हम वहां के महादेव मंदिर पहुंचे। हम सब ने वहां नमस्कार किया और आगे घूमने लगे। लोहगढ़ का किला जंग के हिसाब से बना था तो कई पानी की तालाब भी बने थे।

जैसे सूरज की गर्मी बढ़ने लगी तालाब के किनारे पर हम सब बैठ गए। लक्ष्मी आंटी ने तालाब के पानी से अपनी लंबी टांगों को धोते हुए कहा,
"पता नहीं, आप दोनों इतने कपड़े पहन कर इतनी गरमी कैसे सेह पाते हो? मेरा तो पूरा बदन जल रहा है।"

मैंने और सन्नी ने लक्ष्मी आंटी के पानी में जाते ही बात कर ली थी। मैंने लक्ष्मी आंटी को तालाब की सीढियों पर मेरे पैरों के बीच में बैठने का इशारा किया। लक्ष्मी आंटी मेरे पैरों के बीच मेरी छांव में बैठी और मैंने उसके सर को पकड़ कर उसे चूमने लगा। सन्नी ने लक्ष्मी आंटी के पैरों के बीच जा कर उस की पैंट उतार दी।

लक्ष्मी आंटी ने हमें रोकने की कोशिश की पर मुंह बन्द होने के कारण कुछ बोल नहीं पाई। सन्नी ने पैंट को लक्ष्मी आंटी के घुटनों तक उतार कर उसके पैर उठाए। अब लक्ष्मी आंटी की गीली चूत और कसी हुई गांड़ सन्नी की जीभ का हमला झेलने के लिए सामने थी। मैं और सन्नी पिछले साल में लक्ष्मी आंटी की सारी कमजोरियां सीख चुके थे और अब सन्नी ने लक्ष्मी आंटी की हर रग रग को चूम चाट कर छेडा। लक्ष्मी आंटी यूं खुले में होते प्रणय से डर गई थी पर साथी ही उत्तेजित भी थी। सन्नी ने लक्ष्मी आंटी को चूम चाट कर उत्तेजना के शिखर पर पहुंचने पर अपनी जीभ को उसकी गरम योनि में भर दिया। लक्ष्मी आंटी ने मेरे सर को खींच कर मुझे चूमते हुए सन्नी को अपना पानी पिलाया।

जब पूरा पानी पी कर सन्नी उठा तो लक्ष्मी आंटी ने थक कर मेरे सीने पर अपने आप को छोड़ दिया। पर लक्ष्मी आंटी को इतनी सी सजा मिले यह कहां का न्याय होता? सन्नी ने लक्ष्मी आंटी को पकड़ कर मेरी जगह ले ली और उसकी जगह पर मैं बैठ गया। लक्ष्मी आंटी ने बस हलके स्वर में "कोई आ जाएगा।" की शिकायत की और मुझे अपने पैर खोल कर जगह दे दी। मैंने लक्ष्मी आंटी के यौन मणि को चूमते हुए उसकी चूत में अपनी दो उंगलियां डाल दी। लक्ष्मी आंटी चिहक के अपनी कमर उठाते हुए मेरा साथ देने लगी। मैंने पूरी तेजी से अपनी उंगलियों को आगे पीछे करते हुए लक्ष्मी आंटी को उत्तेजना में बनाए रखा पर झडने नहीं दिया। उत्तेजना वश लक्ष्मी आंटी का बदन अकड़ने लगा और वह कराहते हुए बोल पड़ी,
"बाबू ऐसे ना तड़पाओ! छुड़ा दो मुझे! झड़ा दो मुझे!…"

लक्ष्मी आंटी की हालत मुझसे देखी नहीं गई। खास कर इतनी उत्तेजना मैं झेल नहीं पाया और मैंने अपनी उंगलियों को लक्ष्मी आंटी की चूत में से निकाल कर उसकी गांड़ में भरते हुए अपनी जीभ को उसकी चूत में डाल कर हिलाने लगा।

लक्ष्मी आंटी की सहनशीलता का बांध टूटा और वह झड गई। लक्ष्मी आंटी के रस से मेरी जीभ ही नहीं बल्कि मेरा पूरा चेहरा भीग गया और मैंने उसके रस को तब तक पिया जब तक उसका बदन अकड़ना बन्द नहीं हुआ।

सुसताई लक्ष्मी आंटी को सन्नी ने चिढ़ाते हुए कहा, "क्यों लक्ष्मी आंटी? इतने में थक गई? अभी एक खास जगह देखनी बाकी है।"

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