Thriller बारूद का ढेर

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Masoom
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Re: Thriller बारूद का ढेर

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'पूनम हॉस्पिटल में नहीं ?' लाम्बा ने आश्चर्य से दलपत की ओर घूरकर देखते हुऐ कहा।
'नहीं बाप उधर चिड़िया का बच्चा भी नहीं है। ' दलपत लापरवाही से सिगरट फूलता हुआ बोला।
'आई सी... | लम्बा-विचारों में डूबता हुआ बड़बड़ाया।
क्या आई सी...मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है।'
माणिकी देशमुख का ये कदम सुरक्षात्मकी है , मेरी समझ में आ रहा है।'
'मतलब?'
'मतलब यह कि विनायकी के अपहरण कि खबर के फौरन बाद वह सावधान हो गया और उसने सबसे पहले पूनम को हॉस्पिटल से हटाया। उसे डर था कि कहीं मैं विना यकी के बाद पूनम का भी अपहरण न कर लूं।'
'हां...ये बात तो है।'
'कोई बात नहीं, मजा आ एगा।'
'मजा तो आएगा बाप लेकिन सोचने वाली बात तो यह है कि चार दिन हो गए और अभी तक आपने कुछ किया नहीं। विनायकी को अगवा करके उसे चुपचाप खिलाए-पिलाए चले जा रहे है। '
लम्बा धीरे से हंसा।
'इस हंसी का राज क्या है आखिर ?' तू समझदार है काने ।' नहीं हूं।'
' सयाना है फिर भी समझ नहीं रहा है। अरे...अगवा करने के बाद फौरन पार्टी से बात कुरने से तड़प पैदा नहीं होती।'
'तड़प?'
हां.... तड़प जरूरी है काने। बहुत जरूरी है। मैं ने अब तक माणिकी देशमुख से किसी भी माध्यम से संपर्की नहीं बनाया जबकि देशमुख मुझसे बात करने के लिए परेशान होगा। वह जल्द से जल्द विनायकी की खबर हासिल कर लेना चाहता होगा।
चाहता होगा न?'
'हा।'
' उसने मुझे मार डालने में कोई कसर नहीं उठा रखी , इसलिए कम से कम मैं उसे तड़पाने का हकी तो रखता ही हु ।'
दलपत रहस्यपूर्ण ढग से मुस्कराया।
उसके चेहरे के बदले हुए भावों से स्पष्ट हो रहा था, अब वह लम्बा की बात को भली-भांति समझ रहा था।
चार दिन हो गए देशमुख को तड़पते हुए बाप। अब आप तड़प की खातिर नहीं पूनम भाभी की
खातिर खडूस से बात तो कर ही लें।'
' ऐसा ?'
'हां।'
'तू कहना है तो कर लेता हूं।'
दलपत पुन: मुस्कुराया।
'गाड़ी कहां है?'
'आ गे वाली उसी गली में।'
'ठीकी है। मैं जाता हूं। तू इधर विनयकी का ध्यान रखना। उसके खाने का वक्त हो रहा है। '
'दे दूंगा खाना।'
'होशियार रहना , कहीं वह तेरे को चोट दे
जाए।'
'दलपत नाम हे मेरा बाप। '
'तेरा नाम बब्बर शेर क्यों न हो , उससे कुछ नहीं होता। जेंब चोट होती है तो हो ही जाती है।'
'वो मुझे चोट नहीं दे पाएगा।'
'ओवर कॉन् फी डेंस में ही आदमी चोट खाता है।'
' आप निश्चिन्त रहें। मैं पूरी तरह सविधान रहूंगा।'
'फिर ठीकी है। चलता हूं। ' इतना कहकर लम्बा बिल्डिंग की सिदियों की ओर बढ़ गया! '
नीचे पहुंचते-पहुंचते उस ने अपने लिए सिगरेट सुलगा ली! वह बिल्डिंग के पिछले भाग से
बाहर निकला । रा त के अंधेरे में बिल्डिंग की अधूरी बनी बाउंड्री वॉल पार करना कोई मुश्किल काम नहीं था।
अंधेरे में चल ता हुआ वह उस छोटी गली में पहुंचा जहां उसकी किराए पर हासिल की गई कार खड़ी थी।
गली वीरान पड़ी थी।
उसने कार को गली से बाहर निकाला और फिर कार फर्राटे भरती मुख्य सड़की पर दौड़ने लगी।
शीघ्र ही उसकी कार टेलीफोन बूथ के निकट जा रुकी।
उसने नम्बर डायल किए।
'मुझे माणिकी देशमुख से बात करनी है। ' दूसरी ओर से जैसे ही किसी ने रिसीवर उठाया , वह एक दम से तीखे स्वर में बोला।
'कौन हो तुम?' दूसरी ओर से उभरने वाली कोठारी की आवाज उसने तुरन्त ही पहचान ली।
'वक्त बरदाद मत करो। मेरे पास वक्त बहुत कम है।'
'लाम्बा ?
'शुक्र है...पहचाना तो।' 'मैं कोठारी हूं। मुझे बताओ।'
' मैं ने तुमसे नहीं माणिकी देशमुख से बात करनी है।'
' विनायकी कहां है ?'
'कोठारी! ' एकाएक ही लम्बा के स्वर में चट्टान जैसी सख्ती आ गई।
'ओ० के०। मैं देशमुख साहब को बुलाता हूं ... होल्ड करो।'
उसने कोई जवाब नहीं दिया।
दूसरी ओर लाइन पर खामोशी छा गई।
लम्बा ... लम्बा मेरा बेटा ...मेरा विनायकी कहां है लम्बा ?' एकाएक ही दूसरी ओर से एक हां फता हुआ बौखलाहट भूरा स्वर उभरा ।'
लाम्बा उसे पहचान गया।
वह स्वर माणिकी देशमुख का था। उसके स्वर से बेटे के वियोग की तड़प स्पष्ट झलकी रही थी।
'तेरा बेटा अभी जिन्दा है देशमुख। ' सिगरेट फूंकता लम्बा जहरीले स्वर में गुर्राया।
'मेरा बेटा वापस कर दे वापस कर दे उसे! '
'मुझे मरवाने का तेरा नया प्लान क्या है?'

'कोई नहीं कोई भी नहीं।'
कोई तो जरूर होगा , क्योंकि तू दो फ न वाला सांप है। खतरनाकी भी और मक्कार भी।'
'मेरा विश्वास कर , अब मैं तेरे खिलाफ नहीं। मुझे तो पछतावा हो रहा है तुझ पर गोली चलाने
का ।'
भेड़िया भेड़ की खाल ओढ़ ले तो भेड़ थौड़े ही बन जाता है , वह रहता तो भेड़िया ही है। '
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'नहीं...मैं तुझ पर कभी किसी तरह का बार नहीं करूंगा।'
'पूनम कहां है ?'
दूसरी ओर खमोशी छागाई।' ' तूने जवाब नहीं दिया ?'
'पूनम जहां भी है, सकुशल है। दूसरी ओर से माणिकी देशमुख का अपेक्षाकृत कठोर स्वर उभरा।'
'मैं उससे बात करना चाहता हूं।'
' अगर मैं इंकार करू तो?'
'तो बहुत कुछ गलत हो सकत है।'
'जैसे?'
'विनायकी के जिस्म से थोड़ा-सा खून निकल सकी ता है । उसके जिस्म का कोई हिस्सा
काटकर अलग किया जा सकता है।'
'नही! ' देशमुख का तड़प भरा स्वर उभरा। 'तो , फिर मैं पूनम से बात करना चाहता हूं।
'उसे जगाना पड़ेगा। वह बड़ी मुश्किल से सो सकी है। दोबारा जागी तो न मालूम फिर कैसे संभल ।'
'क्या' उसकी तबियत ज्यादा खराब है ? '
' बाकी ठीकी है। लेकिन एक घाव गहरा है। वह तकलीफ देने लगता है।'
'हूं... I ' हुंका र भरता लाम्बा सोच में डूब
गया।
___ 'जगा दूं?' कुछ देर बाद माणिकी देशमुख का स्वर उभरा।
'नहीं।
' मेरी बेटा ?'
'तेरा बेटा तुझे मिल सकता है।'
' तेरी जो भी मांग हो , जितनी बड़ी रकम तुझे चाहिए-तू मुझसे मांग सकता है। '
'रकम । ' लम्बा जोर से हंसा।
'हां...कोई भोई रकम।'
'रकम मुझे नहीं चाहिए।'
' फिर ?'
'पूनम चाहिए। पूनम मुझे दे-दे। विनायकी मुझसे वापस ले ले।'
'यह...यह कैसे हो सकता है। '
'जैसे भी हो । यही एक शर्त है।'
'कोई भी रकम मांग ले!' ___ 'कोई रकम नहीं चाहिए। सिर्फ पूनम चाहिए। जवाब फौरन दे देशमुख...मैं बार- बार फोन करके वक्त बरबाद नहीं करना चाहता।'
'एक मौका दे। मैं फैसला करने के लिए थोड़ा-सा!' वक्त चाहता हूं।'
'ठीकी है , फैसला कर ले मगर जल्दी।'
'हां।'
'लम्बा ने रिसीवर हुकी में लटकाया और फिर वह टेलीफोन बूथ से बाहर निकल गया।'
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रास्ते भर लम्बा सावधानी के साथ कार ड्राइव करता हुआ आया था। उसने बैकी व्यू मिरर से बहुत कम नजर हटाई थी। ' वह... नहीं चाहता था कि को ई उसका पीछा करता उसके उस ठिकाने तक पहुंच जाए जहां उसने अपनी पकड़ छिपा रखी है।
वह विनायकी को ट्रम्प कार्ड की तरह प्रयोग करना चाहता था।
रास्ते मे उसे कहीं भी पीछा किए जाने का शकी भी नहीं हुआ।
उसने अपने ठिकाने के निकट वाली अंधेरी गली में अंत में अपनी गाड़ी मोड़कर पार्की कर दी। कार के शीशे चढाकर उसे लौकी करने के बाद वह जयोंही गली के बाहरले हिस्से की तरफ मुड़ा , उसे लगा कि उस तरफ कोई था। '
वह चौंका।'
लेकिन शीघ्र ही उसने , अपने-आपको सहज कर लिया।
वह इस प्रकार गली से बाहर निकला जैसे काई बात हुई ही न हो।
बाहर आने पर वहां के सन्नाटे को देख उसे संदेह हुआ। कहीं वह व्यर्थ ही तो नहीं चौंका था।
कहीं कुछ भी नजर नहीं आ रहा था।

उसने गर्दन झटकी और कदम आगे बढ़ा
दिए।
निकट ही वही निर्माणाधीन बिल्डिंग थी जिसमें उस पहुंचना था। उस्ने दूर से बिल्डिंग की ओर
देखा।
बिल्डिंग में जनहीन सन्नाटा व्याप्त था।
उसे लगा , उसका शकी निराधार था।
उसने बिल्डिंग के पिछले भाग से बाउंड्री बॉल पर की। फिर पलट कर बाहर देखा ।
कहीं कुछ नहीं था।
अस्रास्रुत होते हुए उसने बिल्डिंग में दा खिल होते हुए सीढ़ियां तय करनी शुरू कर दी। सीढ़ियां पार करके वह दूसरे माले पर पहुंचा।
दूसरे माले के पिछले भाग में उसने विनायकी देशमुख को बंद कर रखा था। उस हिसाब से दलपत काने को वहीं कहीं आसपास ही होना था।
'काने !' उसने धीमे स्वर में पुकारा ।

प्रत्युत्तर में खामोशी छायी रही।
उसने एक बार फिर अरावाज दी।
पुन: खामोशी।
वह पहले चौंका , किन्तु जिस कमरे में वह विनायकी देशमुख को कैद करके गया था , उसके दरवाजे बंद देख उसकी घबराहट खत्म हो गई।
सम झ गया कि दलपत जरूरत की कोई चीज लेने आसपास ही गया होगा।
उसने वह कोना देखा ही खाना रखा गया था।
खाना अपनी जगह नहीं था।
इसका मतलब उसके आदेशानुसार दलपत ने विनायकी को खाना दे दिया था।
वह विनायकी को देखने उसके कमरे की ओर चल पड़ा।
कमरे के दरवाजे का कुंडा लगा हुआ था।
उसने कुंडा खींचकर दरवाजा खोला।
अंदर अंधेरा जरूर था । लेकिन अंदेराइतना क्या नहीं था कि वह फश पर पड़े दलपत और विनायकी में फर्की न कर सके।
कमरा छोटा था।

और!
कमरे के फर्श पर दलपत औंधा पड़ा था।
उसकी पीठ में कितनी ही गोलियों ठुकी मलूम हो रही थीं। वह खून में फैला पड़ा था। कमरे में उसके अतिरिक्त और कोई नहीं था।
'काने लाम्बात जी से उसके निकट पहुंचा। उसका निरीक्षण करता हुआ वह बोला- ' विनायकी कहां गया और यह तुझे...? '
जवाब उसे स्वयं ही मिल गया।
दलपत मर चुका था।
एक पल के लिए उसने सोचा।
फिर वह फुर्ती के साथ उठकर बाहर निकला। कॉरडो र में आते ही अंधेरे में एक शोला चमका।
फायर की आवाज हुई।
उसके साथ ही उसे लगा कि उसके पेट में आग का गोला उतरता चला गया हो।
उसने नमकी के मोड़ पर एक काले साए को देख लिया था।
वह फर्ती से नीचे गिरा।'
उसका एक हाथ पेट के घाव पर जा पहुंचा।
गर्म चिपचिण तरल उसे अपने उस हाथ के माध्यम से बहता स्पष्ट अनुभव हो रहा था।
उसने दूसरे हाथ से माउजर निकाला और फिर फायरों के धमाके से समूची बिल्डिंग थर्स उठी।
काला साया उछलकर पीछे जा गिरा।
निश्चित रूप ऐ उसे गोली लग गई थी
लाम्बा को ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसके पेट में आग ही आग भर दी गई हो।
दांत भींचे हुए वहमाउजर साम ने की ओर ताने आगे कीओर बढ़ चला।
बहता हुआ खून उसकी जांघों तक क्त पहुंचा
था।
वह पीड़ा के चूंट पीता आगे बढ़ता रहा।
सीढ़ियों से नीचे उतरते हुए उसे मुख्य द्वार की ओर हलचल सुनाई दे गई।
उस ने जेब से ग्रेनेड निकाला। खून में स ने हाथ से उसने ग्रेनेड पकड़ा कर उसकी पिन दांतों से खींची और फिर ग्रेनेड फुर्ती से नीचे उछाल दिया। ,
भयंकर विस्फोट हुआ।
विस्फोट के साथ ही मलबा और दुवां उछला। बारूद की तीखी गंध फैलती चली गई।'
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Re: Thriller बारूद का ढेर

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वह वि स्फोट के बाद बेखौफ सीढ़ियां उतरता चला गया।
उसे अपने पेट में उतर जाने वाली गोली से पैदा होने वाले खतरे का एहसास हो गया थी।
जब वह बाहर आया तो खून से लथपथ था।
उसे अपने दिमाग में आधियां-सी चलती महसूस हो रही थीं। आंखों के आगे रह-रहकर अंधेरे
की काली पर्ते भी गिरने लगी थीं।
बिल्डिंग के बोहर आते ही उसने दो आदमियों को वहां से भागते देखा।
उसका माउजर घूमा।
पहला आदमी निशाने पर आते ही उसने ट्रेगर दबा दिया।
गोली उसका भेजा उड़ाती हुई निकल गई। बह अचानकी कटी पतंग की तरह हवा में तैर गया।
पलकी झपकते मा उजर के एक के पीछे एक छूटे कई बुलेट तेजी से दूसरे आदमी की पीठ से ध सते चले गए। दौड़ते-दौड़ते उसने झटका खाया
और फिर वहीं ढ़े र होता चला गया
वह समझ चुका था कि वंहा फैले आदसी विनायकी देशमुख के कारण ही थे।
जो भी हुआ था , विनायकी के लिए ही हुआ था।.
क्योकि वही गायब था।
दलपत उसकी जगह लाश के रूप में पड़ा था।
दिमागी घोड़े दौड़ा ता लाम्बा बाहर भोगा
बाहर खड़ी कार को उसने चैकी किया ।
कार खाली थी।
शायद वहां मौजूद आदमी उसी कार में आए थे। वह फुर्ती से कार मैं बैठ गया। चाबी मौजूद थी। उसने कार स्टार्ट करके आगे बढ़ा दी। कुछ दूर तक कार अंधेरे में चली।
रात के अंधेरे में नहीं, उस की आंखों के आगे आजाने वाले अंधेरे में।
खून लगातार बहता जा रहा था।
उसकी आंखों का अंधेरा जब छंटा तब कार सड़की कि नारे की रेलिंग-तोड़ती हुई आगे बढ़ी थी।
उड़ाने फुर्ती से कार को मोड़कर बीच सड़की पर पहुंचाया।
कार तेज रफ्तार से दौड़ने लगी।
वह जल्दी से जल्दी माणिकी देशमुख की कोठी पर पहुंचा जान चाहता था।
00
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माणिकी देशमुख की कोठी का फाटकी कार की तूफानी टक्कर से टूटकर खुल गया।
लम्बा उसे ड्राइव करता कोठी के ड्राइव-वे पर 'बढ़ाता चला गया।
चारों तरफ से सर् च लाइटों का प्रकाश फैलकर कोठी के सामने वाले भाग में फैल गया। आगे बढ़ती लाम्बा की कार पर गोलियां बरसाई जाने लगीं।
पोर्टिको के करीब पूर हुंचते-पहुंचते कार रुकी गई।
गोलियां कार पर इस तरह बरस रही थीं जैसे मुस लाध र वर्षा की बौछारें।
लाम्बा कार के अन्दर स्टेयरिंग के नीचे घुस
गया।
अचानक!
अचानकी ही गोलियों की बौछारें एक झट के के साथ बन्द हो गई।
_' नहीं! नहीं! मत मारो उसे! ' पूनम का चीत्कार उभरा।
दौड़ती हुई पगचा ला म्बा ने कार की तरफ बढ़ती सुनीं।
पूनम की आवाज वह किसी भी स्थिति में पहचान सकता था। हालांकि उसकी आंखों के आगे बार-बार अंधेरा छा र हा था। फिर भी उसे पूनम कोई उपस्थिति का आभास हो रहा था।

कार का दरवाजा खुला।
'रंजीत...रंजीत पूनम की व्याकुल कर देने वाली पुकार।
लम्बा ने अपना कांपता हुआ हाथ उसकी ओर बढ़ाया।
उसने लाम्बा के खून सने हाथ को सहारा दिया।'
वह घिसटकर कर से बाहर निकला।
'सब...सब ठीकी हो जाएगा रंजीत। मेरे रहते तुम्हें कुछ नहीं होगा।'
'जो होना था...हो चुका ... पूनम ... हो ...
चुका।'
'नहीं।'
'अब तो विदाई का...आह...वक्त आ.. आपहुंचा है।'
माणिकी देशमुख अपने प्यादों समेत वहां मौजूद था।
विनायकी भी वहीं था।
'पूनम को हटा ले विनायक। ' माणिकी ने अपने बेटे को आदेश दिया।

'नहीं! मुझे रंजीत से कोई अलग नहीं कर सकता।' पूनम बिफर कर चिल्लाई।
विनायकी ने बलपूर्वकी उसे लाम्बा से अलग कर दिया।
लम्बा ने देखा।
वह चारों तरफ से घिरा हुआ था।
तभी माणिकी देशमुख ने जोजफ को इशारा किया।
जोजफ ने रिवाल्वर लाम्बा की ओर तानकर दो फायर किए।
लाम्बा की चीखें वहां गूंज कर लुप्त हो गई।
पूनम ने उस दृश्य को देखा। पागल-सी हो उठी वह।
उसकी फटी-फटी आँखें कभी खून में डूबे लम्बा को देखतीं तो कभी अपने वहशी बाप को।
उसका बायां हाथ वि ना यकी की गिरफ्त में था। दायां खाली था।
एक झटके के साथ उसने विनायकी के होलस्टर से रिवाल्वर खींच निकाला।
जब तुकी विनायकी उसे काबूर में करता तब
तक वह अपनी कनपटी से रिवाल्वर सटाकर ट्रेगर दबा चुकी थी।
' पूनम !' माणिकी देशमुख कातर भाव से आर्तनाद करता पूनम की ओर लपका ।
उसी क्षण लम्बा ने करवट बदली।
उसके माउजर ने जोजफ को निशाने पर लेकर गोलियां उगलनी शुरू कर दी।

__ चारों तरफ से लम्बा पर गोलियां बरसाई जा रही थीं। लेकिन वह गोलियों के झटके सहन करता तब तक माउजर चलाता रहा जब तक कि जोजफ पछाड़ खाकर गिर न गया।
उसके बाद उनकी गर्दन एक ओर ढुलक गई।

समाप्त
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