Thriller बारूद का ढेर

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Re: Thriller बारूद का ढेर

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(^%$^-1rs((7)
कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्‍वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
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Re: Thriller बारूद का ढेर

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' इसका मतलब खबर तुम्हारे घर से ही लीकी हुई थी। यानी मेरा दुश्मन तुम्हारे घर के अन्दर ही है।'
' मेरे घर में ?'
'हां।'

'लेकिन..!'
'छोड़ो...मैं मालूम कर लूंगा।'
'कैसे ?'
'कैसे मालूम की रूगा वह अलग कहानी है। फिलहाल यहां से निकल चलो।'
' मैं तुम्हारे साथ चलूंगी।' ' और तुम्हारी गाड़ी ?' ' उसे ड्राइवर से मंगवा लूंगी।'
'नहीं पूनम , तुम अपनी गाड़ी से ही वापस लौटोगी।'
'मुझे डर लगेगा।'
'डरने की कोई बात नहीं है। तुम्हारे पीछे मैं रहूंगा।'
'नहीं।'
' बिल्कुल मत घबराओ। मैं तुम्हारे साथ साए की तरह रहूंगा। कोई भी खतरा मुझसे मिले बिना किसी भी कीमत पर तुम तक पहुंच नहीं सकेगा।'
पूनम के चेहरे पर भय के चिन्ह फैल गए।
वह अकेली कार ड्राइव करने से डर रही थी,

लेकिन लाम्बा ने उसे किसी तरह पटा लिया।
नजीततन आगे-आगे उसकी कार और उसके पीछे लाम्बा की कार चल पड़ी।
00
'सुनो कोठारी..! ' कोठारी के नेत्रों में झांकता रंजीत लाम्बा घायल सर्प की भांति फु
कारता हुओ बोला- 'मुझे मारने की दूसरी कोशिश की गई है। दूसरी कोशिश! और इस दूसरी कोशिश में भी मैं बच गया।
_' क्या कह रहे हो तुम ? तुम्हें मारने की फिर से कोशिश की गई ' कोठारी ने आश्चर्य से उसकी
ओर देखते हुए कहा।
'हां।'
'कौन था ?'

'बनो मत कोठारी। मैं अच्छी तरह जानता हूं कि यह षड़ यंत्र इसी विला के अन्दर से पनपा है। मुझे मारने की साजिश में तुम इसलिए शामिल हो, क्योंकि यहां का पत्ता भी तुम्हारी इजाजत के बिना नहीं हिलता।'
'गलत...एकदम गलत। तुम मुझ पर आरोप लगा रहे हो।
'आरोप गलत नहीं है। मैं साबित कर सकता हूं कि सब -कुछ तुम्हारा किया-धरा है। '
'की रो साबित।'
'जहां मैं अभी थोड़ी देर पहले पहुंचा था , वहां पहुंचने के लिए मुझे यहां से किसी ने फोन पर बताया था। उसका फो न यहां इस विला में तुम्हारे
अलावा एक्टेशन लाइन पर कोई अन्य सुन नहीं सकता और तुमने मेरे पीछे अपने आदमी भेज दिए। '
'झूठ है। सब झूठ है। न मैंने कोई फोन सुना और ना ही मैंने कोई आदमी भेजा।
'फिर सब-कुछ यूं ही हो गया।'
'तु म पागल हो गए हो। जब मुझे तुम्हारे खिलाफ कुछ करना ही नहीं तो फिर यह सब में क्यों करूगा?"
'अगर तुम नहीं , तो फिर कौन है जो मेरे खिलाफ ऐसा कर रहा है ?'

'अगर मुझे उसके बारे में मालूम होता तो मैं बिना देर किए तुम्हें उसका नाम बता देता।'
'जो भी है , अब आर-पार की लडाई होगी। या तो मेरा दुश्मन ही बाकी रहेगा या फिर मैं।
' इस बात को अपने दिमाग से बिल्कुल निकाल दो कि मैं तुम्हारा दुश्मन हूं या मैं कोई चाल चल रहा हूं। मैं तो तुम्हें देशमुख साहब तक खुद ही लेकर आया हूं ताकि देशमुख साहब की टीम में एक मजबूत आदमी रहे।'
रंजीत लाम्बा को लगा कि कोठारी सच कह रहा था।
वह सोचने लगा , अगर कोठारी सच्चा था तो फिर कौन था जो उसकी जान लेने की कोशिश कर रहा था।
विचारों में उलझा हुआ वह वापस लौट
आया।
उसका दिमाग काम नहीं कर रहा था।
उसने व्हि स्की की बोतल निकली और फिर आउट हाउस के उस भाग को बंद करके जिसमें वह रहता था,
पीने बैठ गया।
उसके पैग तब तक बनते रहे जब तक कि बोतल खाली नहीं हो गई।
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गहरे नसे में उसे पूनम की याद सताने लगी।
उसने तीन बार फोन पर पूनम से संपर्की बनाना चाहा, लेकिन एक बार भी पूनम नहीं मिली। तीनों बार उसके बूढ़े नौकर ने ही फोन रिसीव किया।
अन्त में झुंझलाकर वह बाहर निकला।
कार उसने तूफानी रफ्तार से दौड़ानी आरंभ कर दी।
नशे की अधिकता मैं उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था, क्या करे क्या न करे?
खुली हवा लगने से नशा और बढ़ गया।
पूरे एक घंटे तक वह ड्राइविंग करता रहा।
फिर उसने एक होटल में डिनर लिया। डिनर के दरमियान उसने होटल के मैनेजर को दो-तीन बार बुलवाया । नशे में वह बार-बार वेटर की शिकायत कर रहा था।
मैनेजर समझदार आदमी था।
आए दिन इस तरह के केसिज से निपटाना उसके अभ्यास में आ चुका था। इसलिए उसने लाम्बा
की नशे में डूबी तमाम परेशानियों को भी दूर कर दिया।
घूमता-फिरता लाम्बारात बहुत देर तक आउट हाउस में वापस लौटा।

उसके लड़खड़ाते हुए कदम बता रहे थे कि वह गहरे नशे में आ चुका है।
आउट हाउस की सीढ़ियों पर उसके पांव दो बार फिसले। एक बार तो वह संभल गया, लेकिन दूसरी बार अपना संतुलन कायम न रख सका।
उसे विला के एक नौकर ने उठने में मदद दी तो उस नौकर को लाम्बा ने भद्दी गालियां देकर भगा दिया।
अपने कमरे तक वह उड़ता हुआ-सा पहुंचा और बैड पर ढेर हो गया।
तमाम दरवाजे खुले पड़े थे।
हमेशा सा वधान रहने वाला बेहद खतरनाकी हत्या रा रंजीत लाम्बा उस समय पूरी तरह असुरक्षित अवस्था में बेसुध पड़ा था।
पूरा आउट हाउस खाली था।
थोड़ी देर बाद वहां उसके खर्राटे गूंजने लगे।
रात धीरे-धीरे गहरी होती जा रही थी।
लम्बा दुनिया से बेखबर पड़ा गहरी नीं द सो रहा था। उसे नहीं मालूम था कि कहां क्या हो रहा
था।
अचानक!

टेलीफोन की घंटी बज उठी।
घंटी बजती रही और लाम्बा मुर्दो से होड़ लगाए सोता रहा। अन्त में टेलीफोन उससे हारकर खामोश हो गया!
उसके कान पर जनतका नरेंगी।
थोड़ी देर बाद टेलीफोन की घंटी ने पु न: चीखना आरंभ कर दिया। घंटी बजते-बजते जब थकी गई तो फिर खामोश हो गई।
उसके खामोश होते ही वहां मौत जैसा सन्नाटा छा गया।
तीसरी बार पुन: टेलीफोन ने शोर मचाया और पहले की अपेक्षा इसबार ज्यादा जल्दी खामोश हो गया।

रात का दूसरा प्रहर आरंभ हो चुका था।
रंजीत लाम्बा बेखबर सो रहा था , ऐसे में आउट हाउस में एक स्याहपोश साए ने कदम रखा।
स्याहपोश बिल्ली जैसी चाल के साथ बिना आहट किए आगे बढ़ रहा था। अपने चारों ओर से सावधान था वह। बार-बार उक्की नजर अपने पीछे
और दाएं-बाएं घूमजाती थी।
__आ उट हाउस के सभी दरवाजे जैसे उसके स्वागत में खुले पड़े थे।
___ अन्त में उसने लाम्बा के कमरे में प्रवेश किया।
लाम्बा के कमरे में कदम रखते ही वह अतिरिक्त सावधान हो गया। उसने बहुत धीरे-से अपने लबादे में हाथ डालकर रामपुरी चाकू निकाल लिया।
चाकू पहले से ही खुला हुआ था।
दाहिने हाथ में चाकू संभालकर वह लाम्बा के बैड के निकट जा पहुंचा।
उस समय उसने अपनी सांस भी रोकी हुई थी ताकि किसी प्रकार की आहट न हो। वह झुका। उसने करीब से लाम्बा को देखा। तत्पश्चात् उसका चाकू वाला हाथ ऊपर उठने लगा।
अभी वह रंजीत लाम्बा पर चाकू का प्रहार कर ने ही वाला था कि अचानकी ही लाम्बा की टांग चली। विद्युत गति से टांग स्याहपोश के पेट से टकराई
और वह उछलकर दूर जा गिरा।'
लाम्बा फुर्ती से उठा।
स्याहपोश भी कम फुर्तीला नहीं था। वह चटकने वाले सांप की भांति उछला।
लाम्बा ने बचाव करना चाहा मगर बचते-बचाते भी चाकू उसके कंधे में घाव कर ही
गया।
खून तेजी से बह निकला। पीड़ा के कारण उसके दांत भिंच गए।
उसे पीछे हट जाना पड़ा।
पीछे हटने के बाद उसने स्याहपोश पर नजर डाली। तब पता चुला कि आक्रमणकारी ए की आंख वाला व्यक्ति है।
उसे लगा कि वह इस स्याहपोश को पहले कहीं देख चुका है, लेकिन उस समय उसे याद नहीं
आ रहा था।
उसके पास याद की रने के लिए समय भी नहीं था। उसने फुर्ती से पीठ वाले होलस्टर से रिवाल्वर खींच निकाला।
फायर होने से पूर्व स्याहपोश खिड़की से

बाहर छलांग लगा चुका था।
उसकी फुर्ती देखने योग्य थी।
लाम्बा को उस एक आंख वाले से इस प्रकार की फुर्ती की आशा नहीं थी। वह गोली को छकाता हुआ बाहर निकल गया।
लाम्बात जी से खिडकी की दिशा में लपका।
उस ने खिडकी से बाहर झांकते ही दूसरा फायर किया, मगर स्याहपोश कहीं अधिकी फुर्ती से अंधेरे का लाभ उठाकर बिल्डिंग के बाई ओर को निकल गया।
जब तक बायीं ओर को लाम्बा पलटकर देखता तब तक स्याहपोश गायब हो चुका था ।
लाम्बा ने बाहर को दौड लगाई।
विला के गार्ड फायरों के धमाके सुनकर भागे-भागे उस तरफ को पहुंचे।
'क्या हुआ ?' लाम्बा को रिवाल्वर लिए घायल अवस्था में देखकर एक गार्ड ने उससे पूछा।
__'कोई उस तरफ गया है, जल्दी देखो। ' लाम्बा ने
पीड़ित स्वर में उसे आदेशित किया।

वह गार्ड गन संभालता हुआ तुरन्त सांकेतिकी दिशा में दौड़ गया।
शेष गार्डों को उसने अलग-अलग स्याहपोश को तलाश में भेज दिया।
इसी बीच!
कोठारी और जोजफ दौड़े-दौड़े उसके पास आपहुंचे। उसे घायल देख कोठारी ने तुरन्त डाक्टर को फोन कर दिया।'
जोजफ उसे सहारा देकर अन्दर ले आया।
चाकू का घाव हालांकि ग हरा नहीं था मगर खू न बहुत तेजी से बह रहा था।
लाम्बा के कपड़े गीले हो गए थे।
शीघ्र ही डाक्टर आ गया।
मरहम-पट्टी के बाद उसे नींद आ गई। डाक्टर ने शायद नींद वाली दवा दे दी थी। वह सो गया। उसके सोने के बाद कोठारी ने आउट हाउस में तीन गाड़ी का विशेष रूप से पहरा लगा। उसे डर था कि कहीं लाम्बा के दुश्मन पुन : उस पर अटैकी न कर दें।
रात सुकून से गुजर गई। दूसरे दिन नाश्ते पर कोठारी उसके पास
आया।
। अब कैसे हो?' उसने लाम्बा से पूछां।
'ठीकी हूं।'
'दर्द...?'
.
.
.
'मा मूली-सा है।'
'कमजोरी ?'
'कमजोरी लग रही है लेकिन कोई खास नहीं। डाक्टर ताकत का इंजेक्श न दे गया है। '
'कौन था ?'
'कौन?'
'वही जिसने तुम्हारे जैसे आदमी को घायल कर दिया। जो अकेला दास पर भारी होता हो, उसे घायल करके निकल जाना बड़ी बात है।'
' वह वक्ती तौर पर ही मेरी पकड़ से बचा हुआ है। जल्दी ही मैं उस तक पहुंच जाऊंगा।'
'या नी तुम उसे जानते हो?'
'नहीं।'
'तो फिर?'
' उम्मीद है उस तक पहुंच जाऊंगा।'
'कैसे?'

'वो तब ही बताऊंगा जब उस तक पहुंच जाऊंगा।'
' इसका मतलब है तुम्हें अपने दुश्मन का आइडिया मिल चुका है ? '
' अभी नहीं।'
' फिर ? '
' मैंने उसे कल ही दबोच लिया होता। शराब पीकर नाटकी करते हुए मैंने यह जाहिर कर दिया था कि मैं पूरी तरह असावधान हूं। तब उसने यही समझा कि मैं घोड़े बेचकर सो रहा हू जबकि हकीकतन मैं पूरे होश में था।'
' फिर चोट कैसे खा गए ? '
'वह हरामजादा कुछ ज्यादा ही फुर्तीला साबित हुआ।'
'आई सी।'
'मैंने ऐसा नहीं समझा था उसे। लेकिन कोई बात नहीं...| ' दांत पीसते लाम्बा ने होंठों ही होंठों में गाली देते हुए कहा- एक ही झटके में सारी फुर्ती
खत्म कर दूंगा।'
' उसके बारे में तुम मुझसे छिपा रहे हो लाम्बा ?'
'नहीं...छिपा नहीं रहो। अभी उसके बारे में मैंने खुद भी जानकारी हासिल करनी है। अभी मैं
स्वयं भी अज्ञान के अंधेरे में घिरा हुआ हूं।'

'ठीकी है। मुझसे तुम्हें जो भी मदद चाहिए हो , बता देना।'
'ओ० के०।'
'चलता हूं।
इतना कहकर कोठारी वहां से निकल गया।
00
किसी छापामार कमाण्डो की जैसी तैयारी करने के बाद रंजीत लाम्बा अपनी विशेष कार में बाहर निकला। सामान्य गति से कार ने विला का ड्राइव-वे पार किया और सड़की पर पहुंचने के बाद उसकी रफ्तार में अपेक्षाकृत तेजी आ गई।
सुलगी हुई सिगरेट उसके होंठों के बीच दबी थी। उसके दोनों हाथ सहज ही कार के स्टेयरिंग व्ही ल को दाएं-बाएं घुमा रहे थे।
कार कभी इस सड़की पर तो कभी उस सड़की पर दौड़ती हुई अन्त में एक ढाबे प्रकार के होटल पर जा खड़ी हुई।
कार का इंजन बंद हो गया।
अन्दर बैठे-बैठे ही उसने वहां का जायजा
लिया।
काउंटर पर एक मोटा-सा व्यक्ति दरियाई घोड़े की भांति पसरा दिखाई दिया।
मोटा उसकी कार की ओर गौर से देख रहा था। उसे कार वाले ग्राहकी से मोटा माल हाथ आता नजर आ रहा था।
थोड़ी देर बाद लाम्बा ने सिगरेट का टुकड़ा खिड़की से बाहर उछाल दिया। फिर दरवाजा खोलकर खुद भी कार से बाहर निकल आया।
उसने काली पैंट, काली शर्ट और काला ही ओवरकोट पहना हुआ था जो कि घुटनों से नीचे तक लम्बा था। उसके कॉलर खड़े थे, सिर पर फैल्ट हैट
थी।
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रात होते हुए भी उसने फेन्ट म स्टाइल का काला चश्मा लगाया हुआ था। बह अच्छी तरह समझ रहा था कि तहमद वाला उसे गौर से देख रहा है, लेकिन उसने उसकी ओर ध्यान देने की कोई कोशिश नहीं की।
वह लापरवाही वाले अंदाज में चलता हुआ काउंटर की ओर बढ़ने लगा।
'जब बार होता हूं तू ?' काउंटर से टेकी लगाकर सड़की की ओर देखता हुआ वह सहज स्वर में तहमद वाले से बोला।
'हो...होता हूं। ' तहमद वाला गुर्राया।

___ 'नीचे सुर में वरना यहां पुलिस ही पुलिस नजर आने लगेगी और तेरा शराब का दो नम्बर का धंधा एक मिनट में ठप्प हो जाएगा।'
'पुलिस..| ' कथित ज ब बार सहम गया।
'हां...पुलिस।'
'तुम कौन हो ?' उसने संदिग्ध स्वर में पूछा।
'तेरा बाप।'
'ऐ. ..जुबान संभाले के बोल। '
लाम्बा फुर्ती से उछलकर काउंटर के पीछे जा पहुंचा और काउंटर की ओट में पिस्तौल निकालकर उसे ज ब् बार की ओर तान दिया।
'खबरदा र हरामजादे... अगर बकवास करेगा तो भेजा बाहर निकाल दूंगा! ' लाम्बा ने भद्दी-सी गाली दी।
पिस्तौल देखते ही ज ब्बार डर गया।
वह समझ रहा था कि सामने वाला कोरी धमकी नहीं दे रहा , जो कह रहा है उसे कर गुजरने में शायद उसे किसी प्रकार की देर न लगे।
तमाम तरह के मुजरिमों में उसकी आज तक की जिन्दगी गुजरी थी, लेकिन लाम्बा जैसा खतरनाकी आदमी वह पहली बार ही देख रहा था।

' की ... की ... क्या चाहिए ?' उसने कम्पित स्वर में पूछा।
"एक आंख वाला तेरा चेला।'
'एक आंख वाला. ..। ' वह असमंजस में फंसा दिखाई दिया।
' बनने की कोशिश मत कर...। ' लाम्बा ने पुन: खतरनाकी अंदाज में उसे गाली देते हुए कहा-'अगर मुझसे उड़ने की कोशिश की तो इस नन्ही-सी गन की सारी की सारी गोलियां तेरी तोंद में उतार दूंगा।'
जब्बार को अपनी सांस रुकती हुई-सी प्रतीत
हुई।
'दलपत से कोई काम है क्या ?' उसने सहमे हुए स्वर में पूछा।
' दलपत नाम है उस...का ?' लाम्बा ने गाली देते हुए कहा।
'हां।'
'कहा है वह कुत्ता ?' 'वह...। ' ज ब् बार हिचकिचाया।
' बता हरामखोर वरना अभी ट्रेगर दबाकर तेरा तरबूज फाड़ दूंगा! ' लाम्बा ने उसके फुटबाल जैसे आकार में फूले पेट से पिस्तौल की नाल सटाते हुए खतरनाकी स्वर में धमकी दी।
' वह. .वहमिल जाएगा। ' ज ब बार मुश्किल से थूकी गटकता हुआ बोला ।
'मिल जाएगा नहीं...मुझे उसका पता फौरन चाहिए।'
'देखो बाबू बात को समझने की कोशिश कैसे। अभी अगर मैं तुम्हें उसका कोई पता बता दूं
और वह तुम्हें वहां न मिले तो तुम मुझे झूठा ठहराकर मेरी गर्दन पकड़ोगे।'

'अगर तुम मुझे कोई गलत पता बताओगे तो जिन्दा नहीं बचोगे।'
' इसीलिए मुझे पहले उसका पता लगा लेने
दो।'
'कैसे पता लगाएगा?'
'किसी को भेजना पड़ेगा।'
' नहीं चलेगा।'
' तो फिर?'
'तुझे मेरे साथ चलना होगा।'
'लेकिन ढाबा ?'
'ढा बा अपने-आप चलता रहेगा। मैं पिस्तौल जेब में ले जा रहा हूं लेकिन जेब के अंदर से भी यह तेरा काम तमाम करने के लिए चल सकती है। चल उठ! ' लाम्बा हिंसकी स्वर में फुफकारा।
__ ' अरे चा कू ...इधर आके बैठ... मैं बाबू के काम से जा रहा हूं।' ज ब बार ने ढाबे में काम करते एक छोकरे को आवाज देते हुए आदेश दिया।
गल्ले में जो माल था, उसे निकालकर अंटी में खुरसा और कुर्ता उठाकर जल्दी से पहनता हुआ वह तेज कदमों से लाम्बा के साथ चलने का प्रयास करने लगा।
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लाम्बा उस पर बराबर नजर रखे हुए था।
उसका इरादा साफ था कि ज ब बार द्वारा किसी भी प्रकार का गलत इशारा किया जाए और
अगले ही पल वह ट्रेगर दबा दे।
लेकिन जब बार ने इस प्रकार का कोई इ शारा नहीं किया। चुपचाप लाम्बा की कार के निकट जा खड़ा हुआ।
उसने सवालिया नजर से लाम्बा की ओर देखा।
' आगे बैठ ! ' उसके आशय को समझते हुए लाम्बा ने आगे वाली सीट पर बैठने का आदेश दे
दिया।
वह आगे बाली सीट पर बैठ ... गया।
उसके बराबर में बैठकर लाम्बा ने पुन: कार ड्राइव- करनी आरंभ कर दी।
'किधर...?' सड़की पर सीधे ड्रा इव करते हुए उसने ज ब बार से पूछा।
'अभी सीधे ही चलते रहो बाबू। ' ज ब्बार ने सहमे हुए स्वर में कहा- ' वक्त आने पर मैं बता दूंगा किधर चलना है।'
लाम्बा ने उसे घूरकर देखा , बोला कुछ नहीं।
कार सड़की पर दौड़ती रही।

आगे चलने पर ज ब बार उसे समय - समय पर मार्ग निर्देशन देता रहा।
घनी-सी गंदी बस्ती में पहुंचकर उसने कार रुकना दी।
'यहां रहता है दलपत ?' लाम्बा उसकी ओर देखता हुआ गुर्राया।
'यहां से पता चल जाएगा...मैं पता लगाकर आऊंज ब्बार ने शंकित स्वर में पूछा।
'नहीं। मैं तेरे साथ चलूंगा।'
'चलो।'
'पेशगी वार्निग सुन ले। तेरी तरफ से छो टी-सी भी हरकत हुई तो तुझे बख्शृंगा नहीं। अपनी परवाह नहीं मुझे, लेकिन कुछ भी होने से पहले तुझे उड़ाकर तेरा बैंड जरूर बजा दूंगा। '
धमकी सुनने के बाद जब्बार वहां से चल पड़ा।
लाम्बा उसके साथ हो लिया।
उस घनी बस्ती में जब बार एक चाल प्रकार की जगह पर पहुंचा। चाल के दूसरे मा ले की एक खोली तक पहुंचने में उसे कितने ही परिवारों के बीच से होकर गुजरना पड़ा था।
वहां के अधिकतर रहने वाले अपने-आपमें व्यस्त थे।
कुछेकी नजरें ही जब्बार की ओर उठी थी।
उसके पीछे चलते रंजीत लाम्बा को अधिकतर लोगों ने देखा था ।
खो ली के दरवाजे पर झूलते ताले को देख जब्बार परेशान हो उठा।
' ऐई झगडू. . .! ' उसने बराबर वाली खोली के दरवाजे पर बैठे बूढ़े को पुकारते हुए पूछा- ' दलपत को देखा क्या...?'
'नहीं देखा। ' बूढ़ा बेरुखे स्वर में बोला।
'क्या हुआ ?' लाम्बा ने जब्बार को घूरते हुए पूछा।
'इधर नहीं है।'
'देख जब्बार , मैं तुझे पहले ही वार्निग दे चुका हूं।'
'बाबू तुम्हें दलपत चाहिए ना ?'
'हां।'
'मिल जाएगा...आजाओ।'
लाम्बा उसके पीछे चल पड़ा। वह वापस कार में आ बैठा। उसके संकेत पर लाम्बा ने कार वहां से
आगे बढ़ा दी।
___ 'बाबू...। ' थोड़ी देर की खामोशी के बाद ज ब्बार बोला- आप दलपत को क्यों तलाश कर रहे हैं
'काम है। '
'क्या काम है?'
'तुझे क्या करना है ?' लाम्बा के माथे पर बल पड़ गए।
'यूं ही जानना चाहता था।'
'उस से मिलवा दे बाद में अपने आपे तुझे सब-कु छ मालूम हो जाएगा।'
_ 'बाबू, वह लड़का बुरा नहीं है। अगर कोई ऊंच-नीच हो गई हो तो मैं उसकी तरफ से माफी मांगता हूं। माफी दे दो उसे, आईदा वह उस गलती को नहीं दोहराएगा।'

'तू चुप कर हरामजादे और तुझसे जो कुछ कहा गया है सिर्फ वही कर!'
लम्बा ने आखें तरेरी।
जब्बार डरकर खामोश हो गया। फिर वहमूकी रहकर सिर्फ उंगली के संकेत मात्र से लाम्बा
को मार्ग बताता रहा।
कार दौड़ती रही।
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जब कार आबादी छोड़कर बाहर के मार्ग से निकली , तब लाम्बा कुछ चौंका। लेकिन जब जब बार ने उससे कार एक कच्चे ऊबड़-खाबड़ मार्ग पर मुड़ वाई तब उससे चुपरहा नहीं गया।
'क्या वह एक आंख वाला बदमाश इस जंगल में रहता है ?' उसने शंकित स्वर में जब बार से
पूछा।
'बा बू आप चलते रहें। मैं आपको गलत जगह नहीं ले जा रहा। ' ज ब बार ने भारी स्वर में कहा।
'तू समझता है यह सही जगह है ?' 'जैसी भी जगह है , दलपत जहां पाया जाता है मैं आपको वहीं लिए बल रहा हूं।'
'अगर वह वहां नहीं मिला तो?
'वह उस जगह के अलावा और कहीं नहीं हो सकता।'
'हूं... | ' लम्बी हुंकार भरते हुए लाम्बा ने उसे घूरकर देखा।
फिर कार ऊंचे-नीचे सर्पाकार मार्ग पर धीमी गति से चलती रही।
अन्त में वहमार्ग भी समाप्त हो गया।
कार से निकलकर जब्बार पैदल चलने लगा। आगे घनी झाड़िया थी। कोई रास्ता नहीं था। लाम्बा उसका अनुसरण करता उसके पीछे चलता रहा।
फिर- घने वृक्षों के घेरे में छिपी एक ऐसी जगह आयी जहां कुछ लोग का म कर रहे थे। दो बड़े अलाव जल रहे थे। बड़े-बड़े ड्रम रखे हुए थे।
और कच्ची शराब की दुर्गन्ध से पूरा वातावरण भरा हुआ था।
एक नजर में लाम्बा ने शराब की कच्ची भट्टी को पहचान लिया।
' तो यहां बनाता है तू कच्ची शराब ?' उसने जेब से पिस्तौल निकालते हुए कहा।
'कच्ची शराब को छोड़ो बाबू ... दलपत को देखो।'
'कहां है?'
'यही कहीं होगा ..ऐ छलिया! दलपत कहां है ?' वह एक आदमी को संबोधित करता हुआ ऊंचे स्वर में बोला।
'अभी तो इधर ही थे। ' कथित छलिया बोला।
'ढूंढ के ला उसे। शहर का बाबू आया है। '
'अभी बुलाता हूं।'
इतना कहकर छलिया बड़े पत्थर की ओट में
चला गया।
लाम्बा पूरी तरह सावधान था।
एक आंख वाले दलपत की तलाश में उसकी नजरें चारों ओर घूम रही थीं, लेकिन दलपत कहीं भी नजर नहीं आ रहा था।
जब बार उसकी ओर देखे बिना निरंतर आगे की ओर बढ़ता चला जा रहा था।
लाम्बा की नजरें कभी ज ब बार की ओर घूमती तो कमी दलपत की तलाश में।
तभी!
अचानकी ही बड़े पत्थर की ओट से दलपत हाथ में गन लिए प्रकट हुआ।
'मेरी तलाश में यहां तक आ गए...चलो अच्छा हुआ। तुम्हारी सुपारी ली थी , वह काम अब पूरा हो जाएगा। मैं जिसके नाम की सुपारी लेता हूं उसे मरना तो पड़ता ही है। ' वह अपनी एक आंख से लाम्बा को घूरता हुआ बोला।।
पिस्तौल लाम्बा के हाथ में थी लेकिन हालात बदल चुके थे।
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