मैंने चादर हटाकर मैट्रेस में से गोली बरामद की और उसे अपने कोट की भीतरी जेब में रख लिया ।
अब मुझे उस खूनी वारदात की इत्तला पुलिस को देनी थी ।
अनायास ही मेरे कदम पलंग की परली तरफ साइड टेबल पर पड़े टेलीफोन की ओर बढ़ गये । फोन के करीब पहुंच कर मैंने उसकी तरफ हाथ बढ़ाया ही था कि एकाएक मैं ठिठक गया ।
कहीं मैं अनायास ही किसी जाल में तो नहीं फंसा जा रहा था ?
कौशिक और पचौरी दोनों को मालूम था कि पिछली रात मैं शबाना से मिलने उसके फार्म हाउस पर जाने वाला था और ऐसा मैं आधी रात से पहले नहीं करने वाला था क्योंकि शबाना उस रोज आधी रात से पहले सिल्वर मून में अपनी परफारमेंस खत्म करके वहां पहुंच नहीं पाने वाली थी । उन दोनों को ये भी खबर थी कि मेरे शबाना से कैसे ताल्लुकात थे इसलिये इतनी रात गये मैं वहां से शहर नहीं लौटने वाला था, उनका ये सोचेगा भी स्वाभाविक था । ऊपर से कौशिक ने मुझे आफर दी थी कि शबाना तो अभी उससे दो लाख रुपये ही मांग रही थी, अगर मैं उसका शबाना से पीछा छुड़वा देता तो वो मुझे उससे दुगुनी रकम देने को तैयार था । उन तमाम हालात में अब अगर मैं वहां लाश के करीब पाया जाता तो एक बच्चा भी यही नतीजा निकालता कि कत्ल मैंने ही किया था ।
जबकि कत्ल कौशिक और पचौरी में से किसी एक की या दोनों की जॉइंट करतूत हो सकती थी । उन हालात में वो पिछली रात मेरे हुई मुलाकात से और हमारे में हुई हर बात से मुकर सकते थे या उसे यूं पेश कर सकते थे जैसे मैंने चार लाख रुपये के इनाम के लालच में सच में ही शबाना का कत्ल कर दिया था ।
मैं टेलीफोन से यूं परे हटा जैसे दो आगे बढ़ के मुझे काट खा सकता हो ।
फिर मैंने अपना रुमाल निकाल लिया और हर उस जगह को पोंछना शुरू कर दिया जहां कि मेरे उंगलियों के निशान बने हो सकते थे । बैडरूम, उससे अटैच्ड बाथ और ड्राइंगरूम की हर वो जगह मैंने पोंछी जहां जाने अनजाने मेरा हाथ पड़ा हो सकता था ।
फिर मैंने उस डायरी की, या डायरी का मतलब हल करने वाले कागजात की, तलाश शुरू की जिसका पता नहीं कोई अस्तित्व था भी या नहीं ।
मैट्रेस वार्डरोब वगैरह टटोल चुकने के बाद मेरी तवज्जो बैडरूम के एक कोने में लगी एक राइटिंग टेबल की तरफ गयी ।
मैंने पाया कि दराजों का ताला मजबूती से बंद था लेकिन वो वाला शबाना के ही एक हेयर पिन से खोल लेना मेरे लिये कोई मुश्किल काम साबित न हुआ ।
एक दराज में से चमड़े की लाल जिल्द वाली एक डायरी बरामद हुई ! मैंने उस डायरी के चन्द पन्ने पलटे तो मैंने महसूस किया कि मेरी तलाश कामयाब रही थी ।
अन्य दो दराजों में से कुछ चिट्ठियां और कुछ कागजात बरामद हुए जिसका कि मुआयना करने का मेरे पास वक्त नहीं था । मैंने वहीं से एक बड़ा सा भूरा लिफाफा उठाया और डायरी और तमाम चिट्ठियां और कागजात उस लिफाफे में भर लिये ।
और कहीं से मुझे कुछ न मिला ।
फिर लिफाफा सम्भाले मैं खामोशी से वहां से बाहर निकला और जाकर अपनी कार में सवार हो गया ।
तब तक सूरज निकल आया था और वातावरण में धूप फैलने लगी थी ।
कार को मैंने ड्राइव वे पर दौड़ा दिया ।
जैसा कि अपेक्षित था बाहरला फाटक खुला था ।
फाटक पार करके मैं बाहर सड़क पर आ गया । फाटक पीछे खुला रहना ठीक नहीं था लेकिन उस बाबत मैं कुछ कर भी तो नहीं सकता था । उसको बंद करने के लिये जो बिजली का स्विच चलाना पड़ता था वो तो भीतर शबाना के बैडरूम में था ।
मैं बंगले में वापिस जाकर फाटक की चाबी को मैनुअल पोजीशन पर सैट कर सकता था लेकिन अब लौटना मुझे मुनासिब न लगा । उस चाबी का मुझे बंगले में ही ख्याल आ जाता तो मैं चाबी को मैनुअल पर सैट करके ये सहज इंतजाम कर सकता था कि वहां से रुख्सत होते वक्त मैं फाटक बन्द करके जाता ।
खामोशी से कार चलाता मैं मेन रोड पर पहुचा । मैं खुश था कि तब तक के सारे रास्ते मुझे कोई वाहन या पैदल चलता व्यक्ति नहीं मिला था । मेन रोड पर ट्रैफिक था लेकिन अब कोई यह नहीं कह सकता था कि मेरी कार शुक्ला फार्म्स से वहां पहुंची थी ।
निर्विघ्न मैं ग्रेटर कैलाश में स्थित अपने फ्लैट पर पहुंच गया ।
वहां मैने भूरे लिफाफे को एक वाटरप्रूफ थैले में बन्द किया और उसे अपनी ओल्ड फेथफुल जगह में छुपा दिया ।
वो जगह थी टायलेट में पानी की टंकी के ढक्कन का भीतरी भाग जिस पर कि मैंने लिफाफा टेप की सहायता से बड़ी मजबूती से चिपका दिया ।
मेरी बहुत इच्छा थी कि उस डायरी को और उन कागजात को मैं पहले पढ़ता लेकिन उस घड़ी मुझे उन्हें फौरन छुपा देना ही श्रेयस्कर लगा था । वो बहुत सारा रीडिंग मैटीरियल था और उन्हें मुकम्मल पढना कई घंटो का प्रोजेक्ट था जबकि मौजूदा हालात में मुझे टाइम पर अपने ऑफिस में पहुंच जाना बहुत जरूरी लग रहा था । यूं सब कुछ सहज स्वाभाविक और मेरी रोजमर्रा की रुटीन के मुताबिक हुआ मालूम होता ।
मैं शेव स्नान वगैरह से निवृत्त हुआ और मैंने नया सूट पहना । फिर मैंने अपने लिये आमलेट और काफी का ब्रेकफास्ट तैयार किया और उसे उदरस्थ करके वहां से बाहर निकला ।
मेरा आफिस करीब ही नेहरू प्लेस में था जहां के लिये मैं अपनी कार पर रवाना हुआ ।
रास्ते में मेरी तवज्जो फिर शबाना के कत्ल की तरफ गयी ।
Adultery Thriller सुराग
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Re: Adultery Thriller सुराग
कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
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Re: Adultery Thriller सुराग
एक बात तो निश्चित थी । अगर हत्यारा कौशिक और पचौरी के अलावा कोई था तो उसने यही समझा था कि शबाना अपने फार्म हाउस पर अकेली थी । अगर हत्यारे को जरा भी अन्देशा होता कि वहां उसके साथ कोई और - आपका खादिम - मौजूद था तो या तो उसने कत्ल का प्रोग्राम मुल्तवी कर दिया होता और या फिर शबाना के साथ-साथ उसके मेहमान को भी खत्म कर दिया होता ।
चलाई गयी दो गोलियों में से एक का निशाने पर न लगना ये साबित करता था कि या तो हत्यारा बहुत घबराया हुआ था और या फिर गोली चलाने के मामले में वो निपट अनाड़ी था ।
एक और ख्याल मुझे बार-बार साल रहा था ।
फार्म हाउस पर बरती अपनी तमाम सावधानियों के बावजूद मैं कौशिक और पचौरी के रहमोकरम पर था । अनायास ही मेरी लगाम उन दोनों के हाथों में आ गयी थी जिसे कि वो जब चाहते खींच सकते थे । अब उस जंजाल से मेरी जान भूरे लिफाफे के कागजात ही निकाल सकते थे बशर्ते कि उनमें कौशिक और पचौरी के खिलाफ बहुत ही ज्यादा खतरनाक बातें दर्ज होतीं । फिर मैं ईंट का जवाब पत्थर से देने की स्थिति में आ सकता था ।
कैसे आ सकता था ? - तत्काल मेरी अक्ल ने जिरह की ।
उन कागजात को हथियार के तौर पर इस्तेमाल करना तो ये कबूल करना होता कि कागजात मेरे पास थे ।
नहीं, नहीं । उन कागजात की मेरे पास से बरामदी तो मेरे खिलाफ जा सकती थी । तब तो ये सिद्ध हो सकता था कि उन कागजात को हथियाने के लिये ही मैंने शबाना का खून कर दिया था क्योंकि अपने जीते जी तो वो वो कागजात किसी को सौंपने वाली नहीं थी ।
तौबा ! किस जंजाल में फंस गया था मैं !
ये उम्मीद करता मैं नेहरू प्लेस में एक बहुखण्डीय इमारत की चौथी मंजिल पर स्थित यूनीवर्सल इनवैस्टिगेशंस के नाम से जाने जाने वाले अपने ऑफिस में पहुंचा कि उन कागजात का गम्भीर अध्ययन ही मुझे उस जंजाल से निकलने का कोई रास्ता सुझा सकता था ।
आफिस खुला था और ताजे खिले गुलाब जैसी तरोताजा मेरी सैक्रेट्री डॉली आफिस के बाहरले कक्ष में रिसैप्शन डैस्क पर मौजूद थी ।
मेरे पर निगाह पड़ते ही उसके चेहरे पर सख्त हैरानी के भाव आये ।
टाइम पर कभी दफ्तर आता जो नहीं था मैं । टाइम पर क्या, मैं तो कई-कई बार कदम ही नहीं रखता था वहां ।
डॉली एक खूबसूरत, भलीमानस, नेकनीयत लड़की थी जिसके चेहरे पर ताजगी और कुलीनता की ऐसी चमक हमेशा दिखाई देती थी जैसी आजकल की लड़कियों में देखने को नहीं मिलती । मैं अपने दायें हाथ बिना अपनी कल्पना कर सकता था लेकिन डॉली बिना नहीं । इतनी खूबियां थीं उसमें ।
लेकिन एक खराबी भी थी ।
शरीफ लड़की थी ।
नहीं जानती थी कि शराफत और वरजिनिटी दोनों ही शहरी लड़कियों में आउट आफ फैशन हो चुकी थीं ।
“क्या बात है ?” - प्रत्यक्षत: मैं बोला - “तू तो यूं हैरान हो रही है जैसे एकाएक मेरे सिर पर सींग निकल आये हों ?”
“सींग निकल आये होते” - वो अपना निचला होंठ दबाकर बड़े कुटिल भाव से हंसती हुई बोली - “तो इतना हैरान न होती ।”
“अच्छा !”
“हां । याद करने की कोशिश कर रही हूं कि आज से पहले कब आप अपने आफिस में टाइम से पधारे थे ?”
“याद आया ?”
“अभी तो नहीं । लम्बी तहकीकात का मसला है । हफ्ता दस दिन तो लग ही जायेंगे ।”
“कतरनी बहुत चलती है तेरी । ब्रेकफास्ट में ब्लेड खाती है क्या ?”
“आप अन्तर्यामी हैं ।”
“यानी कि सच में ही ब्लेड खाती है ।”
“अब ये तो बताइये आये कैसे ?”
“अरे, आफिस मेरा है । अपने आफिस में आने की मुझे वजह बतानी होगी ?”
“सुबह सवेरे कैसे आये ?”
“ये देखने आया कि तू अपने ब्वाय फ्रेंड को साथ ही तो नहीं ले के आती ।”
“बस सिर्फ आज ही ऐसा न कर सकी ।”
“एक नम्बर की कमबख्त औरत है तू । किसी बात से शर्मिन्दा होना नहीं सीखी । अब खबरदार जो ये कहा कि तू औरत नहीं है, कमबख्त नहीं है ।”
वो निचला होंठ दबाकर हंसी ।
“अब बोलिए” - फिर वो बोली - “मैं आपकी क्या खिदमत करूं ?”
“एक पप्पी दे ।”
“मेरा सवाल चाय पानी की बाबत था । कुछ ठण्डा या गर्म..”
“एक गर्मागर्म पप्पी दे ।”
चलाई गयी दो गोलियों में से एक का निशाने पर न लगना ये साबित करता था कि या तो हत्यारा बहुत घबराया हुआ था और या फिर गोली चलाने के मामले में वो निपट अनाड़ी था ।
एक और ख्याल मुझे बार-बार साल रहा था ।
फार्म हाउस पर बरती अपनी तमाम सावधानियों के बावजूद मैं कौशिक और पचौरी के रहमोकरम पर था । अनायास ही मेरी लगाम उन दोनों के हाथों में आ गयी थी जिसे कि वो जब चाहते खींच सकते थे । अब उस जंजाल से मेरी जान भूरे लिफाफे के कागजात ही निकाल सकते थे बशर्ते कि उनमें कौशिक और पचौरी के खिलाफ बहुत ही ज्यादा खतरनाक बातें दर्ज होतीं । फिर मैं ईंट का जवाब पत्थर से देने की स्थिति में आ सकता था ।
कैसे आ सकता था ? - तत्काल मेरी अक्ल ने जिरह की ।
उन कागजात को हथियार के तौर पर इस्तेमाल करना तो ये कबूल करना होता कि कागजात मेरे पास थे ।
नहीं, नहीं । उन कागजात की मेरे पास से बरामदी तो मेरे खिलाफ जा सकती थी । तब तो ये सिद्ध हो सकता था कि उन कागजात को हथियाने के लिये ही मैंने शबाना का खून कर दिया था क्योंकि अपने जीते जी तो वो वो कागजात किसी को सौंपने वाली नहीं थी ।
तौबा ! किस जंजाल में फंस गया था मैं !
ये उम्मीद करता मैं नेहरू प्लेस में एक बहुखण्डीय इमारत की चौथी मंजिल पर स्थित यूनीवर्सल इनवैस्टिगेशंस के नाम से जाने जाने वाले अपने ऑफिस में पहुंचा कि उन कागजात का गम्भीर अध्ययन ही मुझे उस जंजाल से निकलने का कोई रास्ता सुझा सकता था ।
आफिस खुला था और ताजे खिले गुलाब जैसी तरोताजा मेरी सैक्रेट्री डॉली आफिस के बाहरले कक्ष में रिसैप्शन डैस्क पर मौजूद थी ।
मेरे पर निगाह पड़ते ही उसके चेहरे पर सख्त हैरानी के भाव आये ।
टाइम पर कभी दफ्तर आता जो नहीं था मैं । टाइम पर क्या, मैं तो कई-कई बार कदम ही नहीं रखता था वहां ।
डॉली एक खूबसूरत, भलीमानस, नेकनीयत लड़की थी जिसके चेहरे पर ताजगी और कुलीनता की ऐसी चमक हमेशा दिखाई देती थी जैसी आजकल की लड़कियों में देखने को नहीं मिलती । मैं अपने दायें हाथ बिना अपनी कल्पना कर सकता था लेकिन डॉली बिना नहीं । इतनी खूबियां थीं उसमें ।
लेकिन एक खराबी भी थी ।
शरीफ लड़की थी ।
नहीं जानती थी कि शराफत और वरजिनिटी दोनों ही शहरी लड़कियों में आउट आफ फैशन हो चुकी थीं ।
“क्या बात है ?” - प्रत्यक्षत: मैं बोला - “तू तो यूं हैरान हो रही है जैसे एकाएक मेरे सिर पर सींग निकल आये हों ?”
“सींग निकल आये होते” - वो अपना निचला होंठ दबाकर बड़े कुटिल भाव से हंसती हुई बोली - “तो इतना हैरान न होती ।”
“अच्छा !”
“हां । याद करने की कोशिश कर रही हूं कि आज से पहले कब आप अपने आफिस में टाइम से पधारे थे ?”
“याद आया ?”
“अभी तो नहीं । लम्बी तहकीकात का मसला है । हफ्ता दस दिन तो लग ही जायेंगे ।”
“कतरनी बहुत चलती है तेरी । ब्रेकफास्ट में ब्लेड खाती है क्या ?”
“आप अन्तर्यामी हैं ।”
“यानी कि सच में ही ब्लेड खाती है ।”
“अब ये तो बताइये आये कैसे ?”
“अरे, आफिस मेरा है । अपने आफिस में आने की मुझे वजह बतानी होगी ?”
“सुबह सवेरे कैसे आये ?”
“ये देखने आया कि तू अपने ब्वाय फ्रेंड को साथ ही तो नहीं ले के आती ।”
“बस सिर्फ आज ही ऐसा न कर सकी ।”
“एक नम्बर की कमबख्त औरत है तू । किसी बात से शर्मिन्दा होना नहीं सीखी । अब खबरदार जो ये कहा कि तू औरत नहीं है, कमबख्त नहीं है ।”
वो निचला होंठ दबाकर हंसी ।
“अब बोलिए” - फिर वो बोली - “मैं आपकी क्या खिदमत करूं ?”
“एक पप्पी दे ।”
“मेरा सवाल चाय पानी की बाबत था । कुछ ठण्डा या गर्म..”
“एक गर्मागर्म पप्पी दे ।”
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Re: Adultery Thriller सुराग
“बर्दाश्त कर सकेंगे ?”
“क्या ?”
“गर्मागर्म पप्पी । दाढ में जो सोने की फिलिंग है, वो पिघल के मुंह में आ जायेगी ।”
“तौबा ! क्या समझती है अपने आप को ?”
“वही जो मैं हूं । आपकी सैक्रेट्री ।”
“लेकिन सैक्रेट्री की ड्यूटीज नहीं समझतीं ! इतना अरसा यहां नौकरी कर चुकने के बाद भी सैक्रेट्री की ड्यूटीज नहीं समझती । नहीं जानती कि सेक्रेट्री की एक ड्यूटी ये भी होती है कि वो अपने साहब की गोद में बैठे और उसे पप्पी दे ।”
“फिर पहुंच गये एक आने वाली जगह पर ।”
मैं हंसा ।
वो भी हंसी ।
“एक बात बता ।” - “फिर मैं बोला - “कभी शादी के बारे में सोचा ?”
“बहुत बार सोचा ।” - वो बोली ।
“तो करती क्यों नहीं ?”
“जल्दी क्या है ?”
“जल्दी क्या है ! अरे एक तो हिन्दुस्तान में औरतें पहले ही कम हैं । हजार के पीछे सिर्फ नौ सौ उन्तीस । यानी कि इकहत्तर मर्दों का भविष्य इस मामले में अधर में । ऊपर से तू किसी मर्द मानस का हक दबाये बैठी है । ये शराफत है तेरी ?”
“इतने गूढ़ ज्ञान वाली बातें समझने के लिये मेरे पास दिमाग नहीं है ।”
“दिमाग होता तो जीनियस होती । मेरे जैसी ।”
“मैं इंसान ही ठीक हूं ।”
“अच्छा ! यानी कि मैं इंसान नहीं हूं ?”
“अभी आपने खुद ही तो कहा कि आप जीनियस हैं ।”
“जीनियस इंसान नहीं होता ?”
“ये एक मुश्किल सवाल है । मैं जरा सोच के जवाब दूंगी ।”
“ठीक है । सोच ले । अपने सारे बॉय फ्रेंड्स से भी मशवरा कर ले । मुझे जवाब की कोई जल्दी नहीं है । शाम तक भी जवाब दे देगी तो चलेगा ।”
“शाम तक सारे बॉय फ्रेंड्स से तो मशवरा मैं नहीं कर सकूंगी ।”
“लानत !”
भुनभुनाता हुआ मैं अपने कक्ष में पहुंचा और अपनी एग्जीक्यूटिव चेयर पर ढेर हो गया । मैंने एक सिगरेट सुलगा लिया और शबाना के कत्ल की बाबत सोचने लगा ।
“क्या ?”
“गर्मागर्म पप्पी । दाढ में जो सोने की फिलिंग है, वो पिघल के मुंह में आ जायेगी ।”
“तौबा ! क्या समझती है अपने आप को ?”
“वही जो मैं हूं । आपकी सैक्रेट्री ।”
“लेकिन सैक्रेट्री की ड्यूटीज नहीं समझतीं ! इतना अरसा यहां नौकरी कर चुकने के बाद भी सैक्रेट्री की ड्यूटीज नहीं समझती । नहीं जानती कि सेक्रेट्री की एक ड्यूटी ये भी होती है कि वो अपने साहब की गोद में बैठे और उसे पप्पी दे ।”
“फिर पहुंच गये एक आने वाली जगह पर ।”
मैं हंसा ।
वो भी हंसी ।
“एक बात बता ।” - “फिर मैं बोला - “कभी शादी के बारे में सोचा ?”
“बहुत बार सोचा ।” - वो बोली ।
“तो करती क्यों नहीं ?”
“जल्दी क्या है ?”
“जल्दी क्या है ! अरे एक तो हिन्दुस्तान में औरतें पहले ही कम हैं । हजार के पीछे सिर्फ नौ सौ उन्तीस । यानी कि इकहत्तर मर्दों का भविष्य इस मामले में अधर में । ऊपर से तू किसी मर्द मानस का हक दबाये बैठी है । ये शराफत है तेरी ?”
“इतने गूढ़ ज्ञान वाली बातें समझने के लिये मेरे पास दिमाग नहीं है ।”
“दिमाग होता तो जीनियस होती । मेरे जैसी ।”
“मैं इंसान ही ठीक हूं ।”
“अच्छा ! यानी कि मैं इंसान नहीं हूं ?”
“अभी आपने खुद ही तो कहा कि आप जीनियस हैं ।”
“जीनियस इंसान नहीं होता ?”
“ये एक मुश्किल सवाल है । मैं जरा सोच के जवाब दूंगी ।”
“ठीक है । सोच ले । अपने सारे बॉय फ्रेंड्स से भी मशवरा कर ले । मुझे जवाब की कोई जल्दी नहीं है । शाम तक भी जवाब दे देगी तो चलेगा ।”
“शाम तक सारे बॉय फ्रेंड्स से तो मशवरा मैं नहीं कर सकूंगी ।”
“लानत !”
भुनभुनाता हुआ मैं अपने कक्ष में पहुंचा और अपनी एग्जीक्यूटिव चेयर पर ढेर हो गया । मैंने एक सिगरेट सुलगा लिया और शबाना के कत्ल की बाबत सोचने लगा ।
कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
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Re: Adultery Thriller सुराग
मेरा दोस्त इन्स्पेक्टर देवेन्द्र कुमार यादव फ्लाइंग स्कवाड के उस स्पेशल दस्ते से सम्बद्ध था जो केवल कत्ल के केसों की तफ्तीश के लिये जाता था । लिहाजा उसकी खबर लेने से भी मुझे पता लग सकता था कि शबाना के कत्ल की खबर अभी पुलिस तक पहुंची थी या नहीं ।
मैंने फोन अपनी तरफ घसीट लिया और उस पर इन्स्पेक्टर यादव के आफिस का नम्बर डायल किया । सम्पर्क स्थापित हुआ तो मैं बोला - “इन्स्पेक्टर यादव प्लीज ।”
“वो नहीं हैं ।” - एक अपरिचित आवाज ने उत्तर दिया ।
“कहां गये हैं ?”
“पता नहीं ।”
“मेरा मतलब है अगर किसी केस की तफ्तीश पर गये हैं तो....”
“वो किसी केस की तफ्तीश पर न गये हैं और न फिलहाल जायेंगे ।”
“क्या मतलब ?”
“वो सस्पैंड होने वाले हैं ।”
“क्या !”
“आप कौन ?”
“मैं उनका फ्रेंड हूं । राज नाम है और..”
“वो दिखे तो खबर कर दी जायेगी ।”
“आप कौन बोल रहे हैं ?”
“सब-इन्स्पेक्टर मकबूल सिंह ।”
“मकबूल सिंह जी, अगर आप मेरी बात ए एस आई कृपाल सिंह से करा सकें.....”
“वो ए सी पी तलवार साहब के साथ फील्ड में गया है ।”
“ए एस आई रावत हो ?”
“वो भी तलवार साहब के साथ है ।”
“सिपाही अनन्त राम ?”
“इन्स्पेक्टर यादव का सारा स्टाफ तलवार साहब के साथ गया है ।”
“यादव का कामकाज अब कौन देखता है ?”
“फिलहाल खुद ए सी पी साहब । यादव साहब सस्पैंड हो गये तो” - उसके स्वर में गर्व का पुट आ गया –
“शायद मैं देखूं ।”
“ओके । थैंक्यू ।”
मैंने धीरे से रिसीवर क्रेडल पर रख दिया ।
ए सी पी शैलेश तलवार से मैं वाकिफ था । वो आई पी एस आफिसर था और दिल्ली पुलिस में ए सी पी की पोस्ट पर सीधा भरती हुआ था । वो कोई तीसेक साल का सुन्दर युवक था जो वर्दी में न हो तो पुलिसिया कतई नहीं लगता था । महकमे में वो इन्स्पेक्टर यादव का इमीजियेट बॉस था ।
तलवार से मेरी मुलाकात कोई दो महीने पहले एक पार्टी में हुई थी जोकि मेरे स्टाक ब्रोकर दोस्त नरेन्द्र कुमार ने अपनी राजपुर रोड वाली कोठी पर दी थी । उस पार्टी में शबाना भी आमन्त्रित थी । नरेन्द्र कुमार ने पहले मेरा परिचय शबाना से कराया था और ये जानकर बहुत हैरान हुआ था कि मैं शबाना से पहले से वाकिफ था । तब नरेन्द्र कुमार ने ही मुझे शैलेश तलवार से मिलवाया था और बताया था कि वो दिल्ली पुलिस में ए सी पी था - अलबत्ता तब मुझे ये नहीं मालूम था कि वो महकमे में यादव का इमीजियेट बॉस था ।
मैंने सिगरेट को ऐश ट्रे में झोंका और टेलीफोन डायरेक्ट्री निकाली । उसमें मैंने दिल्ली पुलिस की प्रविष्टियों में ए सी पी शैलेश तलवार का नम्बर तलाश किया । मैंने उस नम्बर पर फोन किया तो जवाब किसी स्त्री स्वर में मिला ।
“हम टाइम्स आफ इण्डिया के आफिस से बोल रहे हैं” - मैं बोला - “हमारे एडीटर साहब ए सी पी तलवार साहब से बात करना चाहते हैं ।”
“साहब इस वक्त फील्ड में हैं ।”
“कब लौटेंगे ?”
“पता नहीं ।”
“बात बहुत जरूरी है । ये बता सकती हैं कि वो फील्ड में कहां हैं ?”
“छतरपुर ।”
“छतरपुर में कहां ?”
“वहां शुक्ला फार्म्स करके एक फार्म हाउस है । वहां एक कत्ल हो गया है ।”
“हे भगवान ! किस का ?”
“शबाना नाम की एक कैब्रे डांसर का । साहब उसी के कत्ल की तफतीश के लिये गए हैं ।”
“कितना अरसा हुआ कत्ल की खबर लगे ?”
“दो घण्टे ।”
मैंने हौले से सम्बन्ध विच्छेद कर दिया और वाल क्लॉक पर निगाह डाली ।
सवा नौ बजे थे ।
यानी कि सवा सात बजे के करीब पुलिस को शबाना के कत्ल की खबर लग भी चुकी थी ।
सात बजे तक तो खुद मैं ही वहां था !
यानी कि जिस किसी ने भी लाश बरामद की थी, उससे आमना सामना हो जाने से मैं बाल-बाल ही बचा था ।
मैंने फोन अपनी तरफ घसीट लिया और उस पर इन्स्पेक्टर यादव के आफिस का नम्बर डायल किया । सम्पर्क स्थापित हुआ तो मैं बोला - “इन्स्पेक्टर यादव प्लीज ।”
“वो नहीं हैं ।” - एक अपरिचित आवाज ने उत्तर दिया ।
“कहां गये हैं ?”
“पता नहीं ।”
“मेरा मतलब है अगर किसी केस की तफ्तीश पर गये हैं तो....”
“वो किसी केस की तफ्तीश पर न गये हैं और न फिलहाल जायेंगे ।”
“क्या मतलब ?”
“वो सस्पैंड होने वाले हैं ।”
“क्या !”
“आप कौन ?”
“मैं उनका फ्रेंड हूं । राज नाम है और..”
“वो दिखे तो खबर कर दी जायेगी ।”
“आप कौन बोल रहे हैं ?”
“सब-इन्स्पेक्टर मकबूल सिंह ।”
“मकबूल सिंह जी, अगर आप मेरी बात ए एस आई कृपाल सिंह से करा सकें.....”
“वो ए सी पी तलवार साहब के साथ फील्ड में गया है ।”
“ए एस आई रावत हो ?”
“वो भी तलवार साहब के साथ है ।”
“सिपाही अनन्त राम ?”
“इन्स्पेक्टर यादव का सारा स्टाफ तलवार साहब के साथ गया है ।”
“यादव का कामकाज अब कौन देखता है ?”
“फिलहाल खुद ए सी पी साहब । यादव साहब सस्पैंड हो गये तो” - उसके स्वर में गर्व का पुट आ गया –
“शायद मैं देखूं ।”
“ओके । थैंक्यू ।”
मैंने धीरे से रिसीवर क्रेडल पर रख दिया ।
ए सी पी शैलेश तलवार से मैं वाकिफ था । वो आई पी एस आफिसर था और दिल्ली पुलिस में ए सी पी की पोस्ट पर सीधा भरती हुआ था । वो कोई तीसेक साल का सुन्दर युवक था जो वर्दी में न हो तो पुलिसिया कतई नहीं लगता था । महकमे में वो इन्स्पेक्टर यादव का इमीजियेट बॉस था ।
तलवार से मेरी मुलाकात कोई दो महीने पहले एक पार्टी में हुई थी जोकि मेरे स्टाक ब्रोकर दोस्त नरेन्द्र कुमार ने अपनी राजपुर रोड वाली कोठी पर दी थी । उस पार्टी में शबाना भी आमन्त्रित थी । नरेन्द्र कुमार ने पहले मेरा परिचय शबाना से कराया था और ये जानकर बहुत हैरान हुआ था कि मैं शबाना से पहले से वाकिफ था । तब नरेन्द्र कुमार ने ही मुझे शैलेश तलवार से मिलवाया था और बताया था कि वो दिल्ली पुलिस में ए सी पी था - अलबत्ता तब मुझे ये नहीं मालूम था कि वो महकमे में यादव का इमीजियेट बॉस था ।
मैंने सिगरेट को ऐश ट्रे में झोंका और टेलीफोन डायरेक्ट्री निकाली । उसमें मैंने दिल्ली पुलिस की प्रविष्टियों में ए सी पी शैलेश तलवार का नम्बर तलाश किया । मैंने उस नम्बर पर फोन किया तो जवाब किसी स्त्री स्वर में मिला ।
“हम टाइम्स आफ इण्डिया के आफिस से बोल रहे हैं” - मैं बोला - “हमारे एडीटर साहब ए सी पी तलवार साहब से बात करना चाहते हैं ।”
“साहब इस वक्त फील्ड में हैं ।”
“कब लौटेंगे ?”
“पता नहीं ।”
“बात बहुत जरूरी है । ये बता सकती हैं कि वो फील्ड में कहां हैं ?”
“छतरपुर ।”
“छतरपुर में कहां ?”
“वहां शुक्ला फार्म्स करके एक फार्म हाउस है । वहां एक कत्ल हो गया है ।”
“हे भगवान ! किस का ?”
“शबाना नाम की एक कैब्रे डांसर का । साहब उसी के कत्ल की तफतीश के लिये गए हैं ।”
“कितना अरसा हुआ कत्ल की खबर लगे ?”
“दो घण्टे ।”
मैंने हौले से सम्बन्ध विच्छेद कर दिया और वाल क्लॉक पर निगाह डाली ।
सवा नौ बजे थे ।
यानी कि सवा सात बजे के करीब पुलिस को शबाना के कत्ल की खबर लग भी चुकी थी ।
सात बजे तक तो खुद मैं ही वहां था !
यानी कि जिस किसी ने भी लाश बरामद की थी, उससे आमना सामना हो जाने से मैं बाल-बाल ही बचा था ।
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Re: Adultery Thriller सुराग
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