Adultery Thriller सुराग

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Masoom
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Re: Adultery Thriller सुराग

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मैं झुंझलाने लगा ।
ऐसी लिस्ट तो शैतान की आंत से भी लम्बी हो सकती थी ।
मैं तो उससे हफ्ते दस दिन में एक बार मिलता था । बीच के दिनों में क्या पता वो कितने जनों को एन्टरटेन करती थी !
मैंने अपने सिर को झटक कर उन ख्यालात को जेहन से बाहर निकाला और टेलीफोन का रिसीवर उठाकर एक्सटेंशन का बटन दबाया ।
“यस, सर ।” - मुझे डॉली की आवाज आयी ।
“एक मिनट यहां आ” - मैं बोला - “तुझे एक बात सुनानी है ।”
“फोन पर ही सुना दीजिये ।”
“क्यों ? मेहन्दी लगी है तेरे पांव में ?”
“नहीं ।”
“तो फिर इधर आ के मर ।”
“अच्छा ।”
मैंने फोन रख दिया ।
उसने मेरे कक्ष में कदम रखा ।
“इधर आ ।” - मैंने आदेश दिया ।
बिना हुज्जत किये वो मेज का घेरा काट के मेरे करीब आ गयी जिसकी कि मुझे सख्त हैरानी हुई ।
मैंने अपलक उसकी तरफ देखा ।
“आप” - वो यूं बोली जैसे मुझे याद दिला रही हो - “कोई खास बात सुनाने वाले थे !”
“हां । हां । वो क्या है कि दो तीन दिन पहले मैं एक पार्टी में गया था जहां मुझे एक फ्रांसीसी बाला मिली थी । उसने वहां मुझे एक ऐसी तरकीब सिखाई थी जिसके इस्तेमाल से किसी को हाथ लगाये बिना, उसको छुये भी बिना, उसे किस किया जा सकता था ।”
“क्या !”
“मैं सच कह रहा हूं । बड़ी कारआमद तरकीब है वो ।”
“आपने सीख ली ?”
“हां । मैं अभी यही तेरे सामने उसकी निहायत कामयाब डिमांस्ट्रेशन भी पेश कर सकता हूं । तू हामी भर, मैं अभी तेरी उंगली भी छुये बिना तुझे किस कर लूंगा ।”
“ऐसा कहीं मुमकिन है ?”
“बिल्कुल मुमकिन है ।”
“आप मेरी उंगली भी नहीं छुयेंगे, मेरे करीब भी नहीं फटकेंगे, लेकिन मुझे किस कर लेंगे ?”
“बिल्कुल । लगी सौ सौ की शर्त ।”
“लगी ।” - वो जोश से बोली ।
मैं उठकर खड़ा हो गया और बोला - “देख, मैं तेरे से दो फुट दूर हूं । ठीक ?”
“ठीक ।”
“मेरे दोनों हाथ मेरी पीठ पीछे हैं । ठीक ?”
“ठीक ।”
“अब आंखें बन्द कर ।”
“वो किस लिये ?”
“जरूरी है । क्योंकि ये दीद का नहीं, अहसास का जादू है ।”
“ठीक है ।” - उसने आंखें बन्द कर लीं ।
तत्काल मैं उसके करीब पहुंचा और मैंने उसे अपनी बांहों में भर कर उसके होंठों पर, गालों पर तड़ातड़ तीन चार चुम्बन जड़ दिये ।
उसने तत्काल आंखें खोलीं, धकेल कर मुझे परे किया और गुस्से में बोली - “ये...ये क्या...”
“च..च..च । - मैं खेदपूर्ण स्वर में बोला - “तरकीब भूल गयी मुझे । शर्त हार गया मैं । ये ले सौ रुपये ।”
नोट लेने की जगह वो बाहर को चल दी ।
“कहां जा रही है ?” - मै सशंक भाव से बोला ।
“मुहं धोने ।” - वो बोली ।
“क्यों ? मुंह को क्या हुआ है ?”
“अभी थूक नहीं लगा दी आपने ?”
“तौबा ! तौबा !”
वो वहां से बाहर निकल गयी ।
मैं वापिस कुर्सी पर ढेर हो गया ।
तभी फोन की घन्टी बजी ।
कुछ क्षण मैं डॉली द्वारा फोन उठाये जाने की प्रतीक्षा करता रहा, फिर मैंने फोन खुद ही उठा लिया । वो तो शायद सच में ही मुंह धोने चली गयी थी ।
“हल्लो ।” - मैं माउथपीस में बोला ।
“यादव बोल रहा हूं ।” - आवाज आयी ।
“नमस्ते ।” - मैं बोला ।
“नमस्ते । कल मिले मदान से ?”
“हां, मिला ।”
“क्या कहता है ?”
“वही जो तुम चाहते हो । पहले तो तुम्हारी दुश्वारी सुन कर वो बहुत भड़का अपनी आदत के मुताबिक । कहने लगा अच्छी हुई साले के साथ । लेकिन बाद में मान गया । यादव, वो कभी ये बात जुबान पर नहीं लायेगा कि उसने तुम्हें रिश...”
“बस, बस ।”
“कहने का मतलब ये है कि मदान की तरफ से तुम बिल्कुल निश्चिन्त हो जाओ ।”
“ये तो बड़ी अच्छी खबर दी तुमने सवेरे-सवेरे । राज, मैं दिल से तुम्हारा शुक्रगुजार हूं ।”
“बोल कहां से रहे हो ?”
“हैडक्वार्टर से । अपने ऑफिस से ।”
“क्या कर रहे हो ?”
“मक्खियां मार रहा हूं ।”
“एक काम मेरा ही कर दो ।”
“क्या ?”
“जरा चुपचाप पता करो कि शबाना और कोमलके कत्ल के सिलसिले में तुम्हारा ए सी पी क्या कर रहा है, तुम्हारा मुहकमा क्या कर रहा है, तुम्हारे फिंगरप्रिंट्स, बैलेस्टिक्स एक्सपर्ट वगैरह क्या कर रहे हैं ? दोनों लाशों के पोस्टमार्टम की क्या रिपोर्ट है, वगैरह ?”
“ठीक है । दोपहर को फोन करना ।”
“अच्छा ।”
मैंने फोन रखा ही था कि घन्टी फिर बज उठी ।
मैंने फोन उठाया । लाइन पर अस्थाना था ।
“क्या हो रहा है ?” - वो बोला ।
“कुछ नहीं ।” - मैंने जवाब दिया ।
“जरा यहां आ सकते हो ?”
“अभी ?”
“और क्या अगले हफ्ते !”
“आता हूं ।”
मैंने रिसीवर वापिस क्रेडल पर रखा और उठ खड़ा हुआ ।
अस्थाना का आफिस नेहरू प्लेस में ही था जहां कि मैं मजे से टहलता हुआ पांच मिनट में पहुंच सकता था ।
मैंने अपने कक्ष से बाहर कदम रखा ।
डॉली रिसैप्शन डैस्क पर मौजूद थी । उसकी मेरे से निगाह मिली तो उसके चेहरे पर अप्रसन्नता के भाव आये ।
“नाराज हो गयी ?” - मैं मीठे स्वर में बोला ।
“धोखा दिया आपने मुझे ।” - वो भुनभुनाई - “छुप के वार किया ।”
“सॉरी ।”
“मैं इस्तीफा दे रही हूं ।”
“अरे, भगवान के लिये ऐसा न करना । इतनी बड़ी सजा नहीं भुगती जाएगी मेरे से । कोई और सजा दे ले ।”
वो खामोश रही ।
“तू तो...तू तो कलर टी वी के एंटीना से भी ज्यादा सैन्सिटिव निकली ।”
“मैं एन्टीना हूं !” - वो आंखें निकाल कर बोली - “सीधा, लम्बा, पतला बांस हूं !”
“नहीं तू तो....तू तो... अब मैं बताऊंगा कि तू क्या है तो तू फिर नाराज हो जायेगी । खैर जाने दे । अब तू मेरा कहना मान । जो हुआ उसे भूल जा ।”
“क्या हुआ ?”
“यानी कि भूल भी गयी ? शाबाश !”
“आप कहीं जा रहे हैं ?”
“हां ।”
“कब लौटेंगे ?”
“पता नहीं । क्यों पूछ रही है ?”
“मुझे दो घन्टे की छुट्टी चाहिये ।”
“क्यों ?”
“मुझे हाथ पांव हाड़ मांस मज्जा सुसज्जा क्लीनिक जाना है ।”
“क्या !”
“ब्यूटी पार्लर । ब्यूटी पार्लर जाना है मुझे ।”
“क्या ! तेरी ब्यूटी को भी पार्लर की जरूरत है ?”
“बातें न बनाइये ।”
“ठीक है, जा । जहां जी चाहे जा ।”
“उसके लिये जरूरी है कि आप मेरी गैरहाजिरी में दफ्तर में बैठें ।”
“क्यों ?”
“कोई क्लायंट आ सकता है । आपको तो काम धन्धे की फिक्र है नहीं, मुझे तो है ।”
“तुझे क्यों है ?”
“आप चार पैसे कमायेंगे तो मेरी तनख्वाह भर पाएंगे न !”
“लानत ! हर वक्त तनख्वाह का रोना रोती रहती है । आज तक कभी ऐसा हुआ है कि किसी पहली को मैंने तुझे तनख्वाह न दी हो ?”
“हुआ ती नहीं लेकिन अन्देशा तो रहता ही है न ?”
“साल दो साल की तनख्वाह एडवांस ले ले ।”
“असल बात बीच में ही रह गयी ।”
“मैं करीब ही जा रहा हूं । लौट के आता हूं । फिर चली जाना ।”
“धन्यवाद ।”
मैं ऑफिस से बाहर निकला और अस्थाना के ऑफिस की ओर रवाना हुआ ।
अस्थाना बिल्डिंग कान्ट्रैक्टर था और महाबेइमान था । एक बार किसी ने मुझे उस की कंस्ट्रक्शन कम्पनी के कार्यकलापों की पड़ताल करने के लिये रिटेन किया था तो वो मेरे पर बहुत आग बबूला हुआ था और उसने मुझे अपने गुण्डों से पिएटवा देने की यहां तक कि जान से मरवा देने की भी धमकी दी थी । लेकिन तब जल्दी ही अस्थाना ने वो मामला खुद ही रफादफा कर लिया था और यूं मेरा भी अपने आप उससे पीछा छूट गया था ।
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आज भी मेरे उससे कोई बहुत मधुर सम्बन्ध नहीं थे, अलबत्ता किसी न किसी बहाने गाहे बगाहे मुलाकात होती रहती थी ।
वो स्विस घड़ियों की स्मगलिंग का धन्धा भी करता था, ये बात मैंने शबाना की जुबानी ही सुनी थी ।
उसका उस वक्त का बुलावा, मुझे यकीन था कि, इसी वजह से या कि वो भी शबाना की फैन क्लब का चार्टर्ड मैम्बर था ।
उसकी रिसैप्शनिस्ट और सैक्रेट्री के व्यवधान पार करके मैं उसके एयरकंडीशंड आफिस में पहुंचा जहां कि वो एक विशाल टेबल के पीछे अपनी एग्जीक्युटिव चेयर पर यूं बैठा हुआ था जैसे लेटा हुआ हो ।
ऐसा ही आरामतलब आदमी था वो जो टिक के खड़े होने की सुविंधा हो तो चलता नहीं था, बैठने की सुविधा हो तो खड़ा नहीं होता था और लेटने की सुविधा हो तो बैठता नहीं था । बिजनेसमैन इतना पक्का था कि फुल टकला था लेकिन बाल उगाने वाला तेल वो खरीदता था जिसके साथ कंघी फ्री आती हो । शबाना की फैन क्लब का वही इकलौता मैम्बर था जिसने मिस्ट्रेस के साथ-साथ मेड पर भी हाथ साफ करने की कोशिश की थी अलबत्ता कामयाब नहीं हुआ था ।
मुझे आया देखकर वो जबरन मुस्कराया । हाथ मिलाने के लिये उसको कुर्सी पर सीधा हो के बैठना पड़ता इसलिये उसने हाथ हिला कर ही काम चला लिया ।
उस घड़ी वो एक सफेद रंग का डबल ब्रैस्ट वाला सूट पहने हुए था और बिल्कुल फिल्मी विलेन लग रहा था ।
“बैठ राज ।” - वो गम्भीरता से बोला ।
मैं उसके सामने एक कुर्सी पर ढेर हो गया ।
“बोल, क्या खिदमत करूं मैं तेरी ?”
“खिदमत करने तो मैं आया हूं ।”
“ठीक है, तू ही कर ।”
मैं हड़बड़ाया ।
“शबाना की डायरी कहां है ?” - वो सख्ती से बोला ।
‘कैसी डायरी ?” - मैं अपलक उसे देखता हुआ बोला ।
“तू जानता है कैसी डायरी !”
“तुम्हें कैसे मालूम है कि वो कोई डायरी रखती थी ?”
“पचौरी ने बताया ।”
“ओह ! लगता है तुम सब लोग आपस में पहले ही नोट्स एक्सचेंज कर चुके हो ।”
“हां । और इसीलिये मुझे मालूम है कि शबाना के ब्लैकमेल रैकेट में तू उसका पार्टनर था ।”
“बिल्कुल झूठ ।” - मैं आवेशपूर्ण स्वर में बोला ।
“बिल्कुल सच ।” - वो शान्ति से बोला ।
“अगर ऐसी कोई डायरी शबाना के पास थी तो उसके बाकी, कागजात के साथ उसे वही शख्स ले गया होगा जिसने कि उसका कत्ल किया था ।”
“जो कि तू है ।”
“अस्थाना, ये तुम नहीं, तुम्हारा पेंदा बोल रहा है । मुंह बोलता तो अक्ल की बात निकलती ।”
“शट अप ।”
“क्या शट अप ! अरे, अगर मैं शबाना का पार्टनर होता तो क्या मैं सोने का अण्डा देने वाली मुर्गी को हलाल करता ! मैं तो अपनी जान से ज्यादा उसकी जान की हिफाजत करता ।”
“कोई जरूरी नहीं । तू महाहरामी आदमी है । पार्टनरशिप से तेरा मन उकता गया होगा । तू मालिक बनने का ख्वाहिशमन्द हो उठा होगा । ब्लैकमेल का सिलसिला स्थापित तो शबाना ने कर ही लिया हुआ था । अब उसे आगे चलाये रखने के लिये तुझे शबाना की मदद की जरूरत नहीं थी । जरूरत थी तो उस हथियार की - उस डायरी की, उन कागजात की - जिन्हें शबाना कैश कर रही थी ।”
“ये सब बकवास है । कातिल उन्हीं लोगों में से कोई है जिन्हें वो ब्लैकमेल कर रही थी । उन लोगों में से एक तुम भी हो ।”
“तू भी हो सकता है ।”
“फिर लगे बहकने । एक सांस में मुझे उसका पार्टनर बताते हो और दूसरी सांस में ही मुझे उसका शिकार बताने लग जाते हो । दोनों बातें कैसे हो सकती हैं ?”
“हो सकती हैं । जब वास्ता महाबदमाश राज से हो तो हो सकती हैं । कैसे हो सकती हैं, नहीं मालूम लेकिन हो सकती हैं ।”
“अस्थाना, मैं पंजाबी हूं और पंजाबियों के शब्दकोश में दुनिया की हर जुबान से ज्यादा गालियां हैं । तुम ने ये गाली गलौज की भाषा फौरन बन्द न की तो फिर मैं शुरू हो जाऊंगा और तुम्हारी ऐसी मां की बहन की करके दिखाऊंगा कि तुम्हारा सारा दफ्तर यहां इकट्ठा हो जायेगा ।”
“साले !” - वो कहरभरे स्वर में बोला - “तेरी ये मजाल !”
“हां, हरामजादे ।” - उसके स्वर से मैच करते स्वर में मैं बोला - “मेरी ये मजाल !”
वो तिलमिलाया, तड़पा, उसने यूं कई बार पहलू बदला जैसे कुर्सी एकाएक तपने लगी हो, यहां तक कि सीधा होके भी बैठा जो कि उसके लिये भगीरथ प्रयत्न का काम था लेकिन मेरे लिये दोबारा गाली उसके मुंह से न निकली ।
“अस्थाना ।” - मैं धीमे किन्तु पूर्ववत् सख्त स्वर में बोला - “पुलिस की तवज्जो अभी ब्लैकमेलिंग वाले एंगल की तरफ नहीं गयी है । अभी पुलिस को तुम्हारी या तुम्हारे जैसे तुम्हारे जोड़ीदारों की खबर नहीं हुई है । अगर तुम्हें इतनी ही गारन्टी है कि शबाना का कत्ल मैंने किया है और उसके चोरी गये कागजात मेरे पास हैं तो तुम क्यों नहीं पुलिस को इस बात की इत्तला देते ? ऐसा तुम अपना नाम बीच में लाये बिना भी कर सकते हो । तुम पुलिस को एक गुमनाम टेलीफोन काल करके भी इस असलियत से वाकिफ करा सकते हो कि मैं और शबाना मिलकर ब्लैकमेल रैकेट चला रहे थे और मैंने ही शबाना का कत्ल किया था ।”
“बेवकूफ बनाता है ! पुलिस ने तुझे पकड़ लिया तो वो तेरे से ब्लैकमेल के शिकारों के नाम नहीं उगलवा लेंगे ! मुझे अपनी आ बैल मुझे मार वाली हालत करने की सलाह दे रहा है ! मैं इतना बेवकूफ नहीं हूं । हम चारों में से कोई भी इतना बेफकूफ नहीं है ।”
“बढिया । तुम्हें बधाई मैं दे देता हूं । अपने जोड़ीदारों तक मेरी बधाई तुम पहुंचा देना । अब बोलो, असल में क्यों बुलाया था मुझे यहां ?”
“बोल तो चुका । और कैसे बोलूं ? राज मुझे डायरी चाहिये । मुझे शबाना के चोरी गये तमाम कागजात चाहियें ।”
“मेरे पास नहीं हैं ।”
“तो किसके पास हैं ?”
“कातिल के पास । जो कि तुम भी हो सकते हो ।”
“फिर बहकने लगा । अरे, अगर वो कागजात मेरे पास होते तो मैं उन्हें तेरे से मांग रहा होता ?”
“ये तुम्हारी कारोबारी अक्ल से उपजी तुम्हारी खास पैतरेबाजी हो सकती है । यूं तुम ये स्थापित करने की कोशिश कर रहे हो सकते हो कि कातिल तुम नहीं, कागजात के चोर तुम नहीं ।”
“बकवास ।”
“अपने जोड़ीदारों में से किसी से पूछकर देख लो । कातिल उनमें से भी कोई हो सकता है ।”
“कोई जरुरत नहीं । राज, मेरा दावा है कि वो कागजात तेरे पास हैं । तूने कत्ल भले ही न किया हो लेकिन वो कागजात तूने ही चुराए हैं । परसों रात तू फार्म हाउस पर शबाना के साथ था । सिर्फ तेरे पास ढेर सारा वक्त था उस कागजात को वहां से तलाश करके उन पर काबिज होने का ।”
“अस्थाना !” - मैं अपलक उसे देखता हुआ बोला - “तुम्हें कैसे मालूम है कि परसों रात मैं फार्म हाउस पर था ?”
“है मालूम किसी तरीके से । तू कह ये बात झूठ है ।”
“पचौरी ने बताया ? या कौशिक ने ?”
“काले चोर ने बताया ।”
“या सिर्फ अंदाजा ही लगा रहे हो ? तुक्का ही मार रहे हो ?”
“मैं कुछ भी कर रहा हूं । तू कह कि ये बात झूठ है ।”
“कागजात मेरे पास नहीं हैं ।”
“नहीं हैं तो तुझे मालूम है कि वो कहां हैं, किसके पास हैं । राज, शबाना का कत्ल तूने भला ही न किया हो लेकिन परसों रात उसके साथ फार्म हाउस पर तू शर्तिया था । कत्ल या तो तेरे सामने हुआ था और या तेरी आसपास ही कहीं मौजूदगी के दौरान हुआ था । कागजात अगर कातिल ने चुराए हैं तो तुझे कातिल की खबर है, खुद तूने चुराए हैं तो बात ही क्या है ! मेरा दावा ये है कि हर हाल में कागजात तेरी पहुंच में हैं ।”
“तुम्हारा दावा बेबुनियाद है ।”
“तेरे कहने से हो गया वो बेबुनियाद ।”
“और किसके कहने से होगा ? कागजात की खोज खबर के बारे में तुम्हारी तमाम रिसर्च मेरे पर ही केन्द्रित है तो मेरी हां न से ही तो इसका फैसला होगा !”
“तेरे इन्कार से भी मेरा विश्वास नहीं हिलने वाला ।”
“फिर पूछने का क्या फायदा ?”
“तेरी ही भलाई के लिये पूछा । देख, तू उन कागजात की फिरौती की कोई फीस चाहता है तो साफ बोल ।”
“फीस चाहने से मुझे कोई परहेज नहीं....”
“बढिया ! अब नाम ले उस रकम का जो तेरी औकात है ।”
“लेकिन अफसोस की बात ये है कि कागजात मेरे पास नहीं हैं ।”
“क्यों नहीं हैं ? चोरों को मोर पड़ गये ?”
“कागजात कभी थे ही नहीं मेरे पास । होते तो इस चोर को मोर न पड़ पाते ।”
“तू झूठ बोल रहा है । तू अपन भाव बढ़ाने के लिये झूठ बोल रहा है ।”
मैंने लापरवाही से कन्धे झटकाये ।
“तू मुझे सख्ती का तरीका अख्तियार करने के लिये मजबूर कर रहा है ।”
“क्या सख्ती का तरीका अख्तियार करोगे तुम ? उठकर अपनी तोंद से मुझे धक्का दोगे या बकरे की तरह अपनी टकली खोपड़ी से मेरे पर वार करोगे ?”
“अभी हंस ले । खिल्ली भी उड़ा ले मेरी लेकिन बहुत जल्दी तू जार जार रो रहा होगा और रहम की भीख मांग रहा होगा, ये मेरा वादा है तेरे से । अब जाके जान बना । कोई दण्ड वण्ड पेल । बादाम वादाम खा । और खुदा से दुआ मांग कि जब जान जाती लगे तो सच में ही न चली जाये ।”
“तुम्हारा” - मैं उठता हुआ बोला - “धमकी देने का स्टाइल मुझे पसन्द आया ।”
“मेरा स्टाइल अभी तूने देखा कहां है ! वो तो तू अभी देखेगा ।”
“मैं उस वक्त का इन्तजार करूंगा ।”
“तेरे इन्तजार की घड़ियां तेरी उम्मीद से जल्दी खत्म होंगी, राज ।”
***
कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्‍वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
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मैं गोल माकेट पहुंचा ।
आर्म एण्ड अम्युनीशन डीलर अमोलक राम ने वो गोली एक लिफाफे में रख कर मुझे वापिस लौटा दी और बताया कि वो पैंतालीस कैलीबर की कोल्ट ब्रांड की रिवाल्वर से चली गोली थी ।
मैंने अमोलक राम का धन्यवाद किया और वहां सें रुख्सत हुआ ।
मेरी कार कनाट प्लेस पहुंची तो उसे नेहरू प्लेस की दिशा में दौड़ाने के स्थान पर मैंने आई टी ओ जाने के लिये उसे बाराखम्बा रोड पर मोड़ दिया ।
दोपहर होने को थी और पुलिस हैडक्वार्टर वहां से करीब था इसलिये मैंने यादव से वहां जाकर मिलने का फैसला किया ।
यादव हैडक्वार्टर में सादे कपड़ों में अपने कमरे में मौजूद था लेकिन उसने मेरे से वहां बात न की । वो मुझे अपने साथ नीचे सड़क पर ले आया ।
“अभी कुछ रुटीन बातों की ही खबर लग सकी है ।” - वो बोला - “वो ऐसी बातें हैं जो प्रैसरूम से वैसे ही कोई भी मालूम कर सकता है ।”
“मसलन क्या ?” - मैं बोला ।
“मसलन दोनों लाशों का पोस्टमार्टम हो गया है और उनके जिस्म से लगी गोलियां निकाल कर पुलिस को सौंप दी गयी हैं । दोनों गोलियां दो जुदा हथियारों से चलाई गयी थी । उन में से एक तो तुम्हारी खुद की ही रिवाल्वर थी । अलबत्ता अब इस बात की भी तसदीक बैलेस्टिक एक्सपर्ट के जरिये हो गयी है कि कोमलको लगी गोली मौकायेवारदात से बरामद हुई तुम्हारी ही रिवाल्वर से चली थी जो कि अड़तीस कैलीबर की थी । जो गोली शबाना की छाती से निकाली गयी है, उसकी बाबत अभी मुझे इतना ही मालूम हुआ कि वो तुम्हारी वाली रिवाल्वर से नहीं चली थी । बैलेस्टिक एक्सपर्ट अब तक ये स्थापित कर चुका होगा कि वो गोली कितने कैलीबर की थी और किस किस्म की रिवाल्वर से चली थी लेकिन ये बात अभी मैं नहीं निकलवा पाया हूं अलबत्ता कोशिश पूरी कर रहा हूं ।”
“गुड ।”
“फार्म हाउस पर शबाना के निजी सामान की पड़ताल के दौरान वहां से शबाना के हैदराबाद रहते घर वालों का पता बरामद हुआ है । पुलिस ने एक्सप्रैस टेलीग्राम के जरिये उस पते पर शबाना के कत्ल की खबर भिजवायी है ताकि कोई वहां से दिल्ली आ कर लाश का क्लेम कर सके और उसके अंतिम संस्कार का इन्तजाम कर सके ।”
“आई सी ।”
“कोमलकी एक बड़ी बहन आगरे से यहां पहुंची है ।” - यादव आगे बढ़ा - “निक्सी गोमेज नाम है उसका । कोमलका फ्लैट क्योंकि पुलिस ने अभी फरदर इन्वेस्टिगेशन के लिये सील किया हुआ है इसलिये वो दरियागंज के प्रकाश होटल में पुलिस के खर्चे पर ठहरी हुई है । अभी ए सी पी तलवार भी उसके होटल में उसके पास ही मौजूद है इसलिये अगर उधर का रुख करने की मंशा हो तो पहले इस बात की तसदीक कर लेना कि वो वहां से रुख्सत हो गया हुआ था और पीछे निक्सी की निगरानी के लिये कोई पुलिस वाला नहीं छोड़ गया था ।”
“ठीक ।”
“मुझे तुम्हारी कल की गिरफ्तारी की तो अखबार से ही खबर लगी थी लेकिन रिहाई कैसे हुई थी, ये यहां आके पता लगा था । तलवार यूं तुम्हारी रिहाई से बहुत खफा है और जी जान से तुम्हारे खिलाफ कोई ऐसा सबूत जुटाने की कोशिश कर रहा है जिसकी बिना पर वो तुम्हें फिर गिरफ्तार कर सके । इस बार सबूत - असली या फर्जी - ऐसा हो सकता है कि तुम्हारे हिमायती भी तुम्हें नहीं छुड़ा सकेंगे ।”
“फर्जी भी !”
“कोई बड़ी बात नहीं ।”
“एक ए सी पी रैंक का अफसर ऐसा करेगा ?”
“हो सकता है न करे लेकिन मेरी नेक राय तुम्हें ये ही है कि सावधान रहना ।”
“किसी फर्जी सबूत या फर्जी केस के खिलाफ मैं क्या सावधान रह सकता हूं ?”
“ये भी ठीक है ।”
“वैसे तलवार है ऐसी नीयत का आदमी ?”
“भई, आखिरकार है तो वो पुलिसिया ही ।”
“तुम ये सब इसलिये तो नहीं कह रहे हो क्योंकि वो तुम्हारे खिलाफ है ।”
यादव ने आहत भाव से मेरी तरफ देखा ।
“सॉरी !” - मैं तत्काल बोला - “और ?”
“शबाना के कत्ल के सन्दर्भ में तलवार को शबाना का ऐश्वर्यशाली रहन सहन खटका है, ये बात तो अखबार में भी छपी है । अपने प्रैस को दिए बयान में उसने ये सम्भावना व्यक्त की थी कि शबाना को वो कमाई वेश्यावृति से थी लेकिन मेरा खुद का ख्याल ये है कि वेश्यावृति से सिर्फ एक साल में उस शानोशौकत के लायक पैसा नहीं कमाया जा सकता जिससे कि शबाना जिन्दगी बसर करती बतायी जाती थी ।”
“तुम्हारा क्या ख्याल है ?”
“मेरा दावा तो एक्सटॉर्शन पर है । मेरे ख्याल से तो वो अपने क्लायंट्स से अपनी जिस्मी सेवाओं की फीस ही नहीं हासिल कर रही थी, उन्हें ब्लैकमेल भी कर रही थी । तलवार की जगह अगर मैं होता तो सब से पहले मैं उन्हीं लोगों की लिस्ट बनाता जो शबाना के बहुत करीबी थे, पिछले एक साल से निरन्तर उसके सम्पर्क में थे और इतने पैसे वाले थे कि शबाना जैसी औरत द्वारा ब्लैकमेल किये जाने पर भी उन का दौलत का घड़ा लबरेज ही रहने वाला था ।”
“क्या पता तलवार भी काम कर रहा हो इसी लाइन पर !”
“आगे करे, सो करे, अभी तो नहीं कर रहा ।”
“तुम्हें कैसे मालूम ?”
“भई, मैं भी यहां कोई मुंशी, चपरासी या हवलदार नहीं, तीन फूलों वाला इन्स्पेक्टर होता हूं । ए सी पी इन्स्पेक्टर से एक सीढी ही तो ऊपर होता है । मेरे भी भेदिये हैं उसके कैम्प में ।”
“ओह !”
“और बोलो ।”
“एक बात बताओ । पुलिस के पास फायर आर्म्स की रजिस्ट्रेशन का रिकार्ड होता है । क्या तुम उस रिकार्ड में से ये जानकारी निकलवा सकते हो कि दिल्ली शहर में पैंतालीस कैलीबर कोल्ट रिवाल्वर रखने का लाइसेंस किन किन सज्जनों के पास है ?”
उसने घूरकर मुझे देखा ।
मैंने अपलक उससे निगाह मिलायी ।
“क्या मतलब, है भई ?” - वो बोला ।
“कुछ नहीं ।” - मैं बड़ी मासूमियत से बोला - “यूं ही जरा ये जानकारी चाहिये थी । सोचा, शायद तुम्हारे से हासिल हो जाये ।”
“असल बात नहीं बतायेगा ?”
“यही है असल बात कि...”
“राज, कत्ल के केस में पुलिस से कोई जानकारी छुपाकर रखना भी अपराध होता है ।”
“मैं क्या छुपा रहा हूं ?”
“वो तुझे मालूम हो । तू कुछ नहीं छुपा रहा तो बड़ी खुशी की बात है । छुपा रहा है, तो मैं नहीं जानना चाहता कि क्या छुपा रहा है । लेकिन जो जानकारी तू चाहता है, उसके जेरेसाया मैं ये चेतावनी फिर दोहराना चाहता हूं कि आइन्दा दिनों में तलवार से सावधान रहने में ही तेरी भलाई है ।”
“जानकारी हासिल तो हो जायेगी ?”
“कोशिश करूंगा । अगर ये कंप्यूटर वाला काम हुआ तो जल्दी हो जायेगा । रजिस्टर वाला मामला हुआ तो टाइम लगेगा ।”
“ठीक है ।”
“और बोल ।”
“बस । शुकिया ।”
“शाम को फोन करना ।”
“जरूर ।”
***
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Re: Adultery Thriller सुराग

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Re: Adultery Thriller सुराग

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मैं नेहरू प्लेस अपने आफिस वापिस लौटा ।
तब ठीक एक बजा था ।
“अब जा अपने वो मज्जा सुसज्जा क्लीनिक ।” - मैं डॉली से बोला - “मैं बैठा हूं आफिस में ।”
“दो बजे जाऊंगी ।” - वो बड़े इत्मीनान से बोली ।
“क्यों ? अब क्यों नहीं जाती ?”
“ये मेरा लंच आवर है ।”
“ओहो । यानी कि अपने एम्पलायर का टाइम खराब करेगी, अपना टाइम खराब नहीं करेगी ?”
वो हंसी ।
“डॉली, जितनी कमबख्त मैं तुझे समझता था, तू तो उससे भी ज्यादा कमबख्त है ।”
वो फिर हंसी और बोली - “वो क्या है कि मेरी एक सहेली यहां आने वाली है । दो बजे । मैं उसके साथ जाऊंगी ।”
“सहेली या सहेला ?”
“सहेली ।”
“वो भी तेरे ही जैसे ही खूबसूरत है ।”
“है । लेकिन उसका हसबैंड जूडो में ब्लैक बैल्ट है ।”
“हसबैंड !”
“हां ।”
“फिर वो लड़की थोड़े ही हुई ! फिर तो वो भरजाई जी हुई, आंटी जी हुई । माता जी हुई ।”
“वो इतनी बड़ी नहीं ।”
“शादीशुदा लड़की किसी भी उम्र की हो भरजाई जी आंटी जी, माता जी ही होती है ।”
“जैसे भरजाईजियों, आंटीजियों और माताजियों से आपको परहेज है । जैसे आपकी बहनजियों में ऐसी कोई नहीं ?”
“डॉली !” - मैं आहत भाव से बोला - “दिस इज हिट बिलो दि बैल्ट ।”
वो सिर झुकाकर हंसी ।
मैं भुनभुनाता हुआ अपने केबिन में आ बैठा ।
ऐसी ही थी वो मेरी महाकम्बखत सैक्रैट्री ! हमेशा मुझे लाजवाब कर देती थी ।
डॉली पांच बजे लौटी ।
“क्या कराया ब्यूटी पार्लर में ?” - मैं बोला - “जैसी गयी थी, वैसी ही लौटी है ।”
“वैक्सिंग करायी है” -वो शान से बोली - “थ्रेडिंग कराई है, बाल सैट कराये हैं ।”
“नाहक पैसे बरबाद किये । कोई फर्क नहीं पड़ा ।”
“आप के कहने से क्या होता है !”
“और किस के कहने से होता है ?”
“उन के जो ब्यूटी पार्लर से यहां तक के रास्ते में मरे पड़े हैं ।”
“सब मर गये ? कोई नहीं बचा ?”
“एक दो की सांस अभी चल रहा थी लेकिन हालत नाजुक थी ।”
“चल-चल । अब ज्यादा अपने मुंह मियां मिट्ठू न बन ।”
वो निचला होंठ दबा कर हंसी ।
उसे यूं ही हंसता छोड़कर मैं ऑफिस से रुख्सत हुआ ।
मैं दरियागंज पहुंचा । एक पी सी ओ से मैंने प्रकाश होटल का नम्बर डायल किया । लाइन लगी तो मैं कर्कश स्वर से बोला - “पुलिस हैडक्वार्टर से बोल रहे हैं । आगरे से आयी निक्सी गोमेज से बात कराइये ।”
“यस सर ।” - कोई तत्पर स्वर में बोला ।
तत्काल लाइन लगी ।
“यस ।” - मुझे आवाज आई - “निक्सी हेयर ।”
“पुलिस हैडक्वार्टर से बोल रहे हैं ।” - मैं पूर्ववत कर्कश स्वर में बोला - “आपके पास हमारे ए सी पी तलवार साहब आये हुए हैं । जरा बात कराइये ।”
“वो तो चले गये ।”
“कब गये ?”
“अभी कोई पन्द्रह मिनट पहले ।”
“लौट के आयेंगे ?”
“ऐसा बोले तो नहीं वो !”
“आप अभी वहीं हैं ? कहीं जा तो नहीं रही ?”
“नहीं ।”
“ठीक है । हम फिर फोन करेंगे ।”
मैने सम्बन्ध विच्छेद कर दिया और प्रकाश होटल पहुंचा ।
“आगरे से आयी निक्सी गोमेज कौन से कमरे में हैं ?” -मैंने रिसैप्शन पर पूछा ।
“दो सौ पांच में ।” - रिसैप्शनिस्ट युवती बोली ।
“मैं उन से मिलना चाहता हूं ।”
“आप का शुभ नाम ?” - वो रिसीवर उठाती हुई बोली ।
“राज ।”
उसने एक नम्बर डायल किया, फोन पर मेरा नाम लिया, यस मैडम कहा और रिसीवर वापिस रखती हुई बोली - “तशरीफ रखिये, वो यहीं आ रही हैं ।”
मैं रिसैप्शन पर रिसैप्शन डैस्क से बहुत परे एक पाम के गमले की ओट में एक सोफे पर जा बैठा । उस घड़ी वहां मेरे अलावा और कोई नहीं था ।
दो मिनट बाद ब्लाउज और स्कर्ट पहले पक युवती रिसैप्शन पर पहुंची ।
रिसैप्शनिस्ट ने मेरी तरफ इशारा कर दिया ।
वो लम्बे डग भरती मेरे करीब पहुंची और बोली - “हल्लो ! आई एम निक्सी गोमेज ।”
मैंने उठकर उसका अभिवादन किया और बोला - “मुझे राज कहते हैं ।”
तत्काल उसके चेहरे के भाव बदले । उसने तीखी निगाह से मेरी तरफ देखा ।
“मेरे नाम से वाकिफ मालूम होती हैं आप !” - मैं बोला - “जब कि अभी आप ने दिल्ली में कदम ही रखा है !”
“वाट डु यू वांट ?”
“आप से चन्द बातें करना चाहता हूं ।”
“किस बाबत ?”
“आप की बहन कोमलके कत्ल की बाबत ।”
“आप कोमलको जानते थे ?”
“खूब अच्छी तरह से । उसकी एम्पलायर मेरी फास्ट फ्रेंड थी ।”
“क्या बात करना चाहते हैं आप कोमलकी बाबत ?”
“आप बिराजें तो बताऊं ।”
“मैं बहुत थकी हुई हूं । सफर से भी और पुलिस की क्रास क्वेश्चनिंग से भी । इसलिये...”
“मैं आपका बहुत कम वक्त लूंगा । आई प्रामिस ।”
वो मेरे सामने बैठ गयी तो मैं भी वापिस उस सोफे पर बैठ गया जिस पर से मैं उठा था ।”
मैंने सरसरी निगाह उस युवती पर डाली जो कि उम्र में कोमलसे पांच-छ: साल बड़ी लग रही थी और जो खूबसूरती के मामले में कोमलके सामने कहीं नहीं ठहरती थी । दूसरा फर्क उसमें ये था कि वो कोमलकी तरह गोवानी लहजे में इंगलिश मिली हिन्दोस्तानी नहीं बोलती थी । वो तो बिल्कुल साफ और संतुलित हिन्दोस्तानी बोलती थी ।
“पुलिस ने आप को बहुत हलकान किया मालूम होता है ।” - उसका मस्का मारने की नौबत से मैं बड़े सहानुभूतिपूर्ण स्वर में बोला ।
“मतलब की बात पर आइये, मिस्टर राज ।” -वो शुष्क स्वर में बोली ।
“ठीक है । मतलब की बात पर ही आता हूं । मैडम, कल शाम मैं कोमलके फ्लैट पर उससे मिला था । मैं वहां उस घड़ी पहुंचा जब, बकौल रूबी, वो आप को चिट्ठी लिख रही थी । मेरे वहां पहुंच जाने से उसके उस काम में विघ्न आ गया था । उसको उस चिट्ठी को मुकम्मल करके पोस्ट करने की जल्दी थी, ऐसा उसने खुद कहा था । मेरा सवाल ये है मैडम कि क्या ऐसी कोई चिट्ठी आप को मिली थी ?”
“मिली थी ।”
“इतनी जल्दी कैसे मिल गयी ? कल शाम को लिखी चिट्ठी...”
“कोमलने मुझे कूरियर से भेजी थी । आज सुबह पांच बजे वो मुझे मिल भी गयी थी ।”
“क्या लिखा था उसमें ?”
“आप को बताना जरूरी है ?”
“जरूरी तो नहीं हैं लेकिन अगर उसमें कोई खास, कोई गोपनीय बात न हो तो...”
“कोई खास, कोई गोपनीय बात नहीं थी उसमें । वो एक आम चिट्ठी थी जैसी कि छोटी बहनें बड़ी बहनों को आम लिखती हैं ।”
“उसमें ऐसा कुछ नहीं था जिससे ये इशारा मिलता हो कि वो किसी बात से खौफजदा थी या उसे अपने पर कोई विपत्ति आने का अन्देशा था ?”
“नहीं, ऐसा कुछ नहीं था ।”
“आप कोमलकी बड़ी बहन थीं । वो आपको अपने यहां के रहन-सहन की बाबत खबर करती रहा करती थी ?”
“हां ।”
“कभी यहां उसके साथ कोई ऊंच नीच हो जाती थी तो वो आप को खबर करती थी ?”
“करती थी ।”
“फिर भी उसने अपनी कल की चिट्ठी में ये नहीं लिखा कि उसके सिर पर जान का खतरा मंडरा रहा था ?”
“उसे ऐसा कोई खतरा अपने सिर मंडराता नहीं लगा होगा ।”
“उसका अपनी एम्पलायर शबाना से बड़ा लगाव था । दोनों में मालिक नौकर जैसा नहीं बहनों जैसा रिश्ता स्थापित था । जो आम चिट्ठी उसने आप को लिखी थी, उसे आप आम तो न मानती अगर उसमें शबाना के कत्ल का जिक्र होता ! कत्ल कोई रोज-रोज होने वाला वाकया तो नहीं होता !”
“उसमें शबाना के कत्ल का जिक्र था ।” - वो यूं बोली जैसे भारी दबाव में वो बात कबूल कर रही हो ।
“फिर भी आपने चिट्ठी को आम बताया ?”
“मेरा मतलब ये था कि उसमें कोमलने खुद अपनी बाबत कोई खास बात नहीं लिखी थी ।”
“हैरानी है ।”
“क्यों ? क्यों हैरानी है ?”
“मैडम, मेरा दावा है कि आपकी बहन ऐसा कुछ जानती थी जिस की वजह से शबाना के कातिल के लिये उसका कत्ल कर देना भी जरूरी हो गया था । पहले वो इस बाबत मेरे से - एक प्राइवेट डिटेक्टिव से - बात नहीं करना चाहती थी लेकिन बाद में उस का ख्याल बदल गया था और उसने खास मेरे प्लैट पर फोन कर के मुझे अपने यहां आने के लिये कहा था लेकिन अफसोस की बात है कि मेरे वहां पहुंचने से पहले ही उसका कत्ल हो चुका था । मेरा ख्याल ये है कि उसे कातिल के बारे में कुछ मालूम था या कोई ऐसा जरिया मालूम था जिससे कि कातिल के बारे में कुछ जाना जा सकता था । जैसी व्यग्रता वो कल आपको चिट्ठी लिखने में दिखा रही थी, वो एक मामूली, घरेलू, दुनियादारी वाली चिट्ठी लिखने में नहीं दिखाई जाती, मैडम ।”
“आप क्या कहना चाहते हैं ?”
“यही कि उस चिट्ठी में कातिल की तरफ कोई इशारा रहा हो सकता है । लेकिन अपनी बेध्यानी में आप की तवज्जो उसकी तरफ नहीं गयी होगी । अगर आप वो चिट्ठी मुझे दिखायें तो...”
“वो एक पर्सनल लैटर है ।”
“जब पर्सन ही न रहा तो लैटर में पर्सनल क्या रह गया !”
“वो...वो लैटर मेरे पास नहीं है ।”
“तो किसके पास है ?”
“पुलिस के पास ।”
“ओह ! लेकिन याद तो होगा ही आपको कि उसमें क्या लिखा था । अब अगर आप अपनी याददाश्त पर जोर डालें और उस चिट्ठी की इबारत को अक्षरश: दोहरा सकें तो..”
“आई विल डू नो सच थिंग ।”
“क्यों ?”
“मैं अपनी बहन के कत्ल की बाबत आप से कोई बात नहीं करना चाहती ।”
“लेकिन क्यों ?”
“पुलिस ने मेरे को ऐसा बोला है ।”
“कैसा बोला है ? क्या बोला है ?”
“यही कि इस बाबत मैं आप से कोई बात न करूं ।”
“खास मेरे से ? प्राईवेट डिटेक्टिव राज से ?”
“हां ।”
“इसीलिये आप मेरे नाम से वाकिफ हैं क्योंकि पुलिस ने आप को मेरे बारे में वार्न किया है ?”
“हां ।”
“क्यों ?”
“वजह मुझे नहीं मालूम । लेकिन अपनी बहन के कत्ल की तफ्तीश करते पुलिस के उच्चाधिकारी की राय पर चलना मेरा फर्ज है ।”
“मुझे अफसोस है कि पुलिस ने मेरा ऐसा गलत इम्प्रेशन आप पर बिठाया, लेकिन मैं आप की प्राब्लम समझता हूं । यू हैव टु कोआपरेट विद लोकल पुलिस ।”
“ऐग्जैक्टली ।”
“लेकिन फिर भी मेरे बारे में अगर आपका इम्प्रैशन बदल जाये तो मेरे से सम्पर्क कीजियेगा । ये मेरा एक विजिटिंग कार्ड रख लीजिये । काम आयेगा ।”
उसने कार्ड थामने का उपक्रम न किया ।
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