Adultery Thriller सुराग

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Masoom
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Re: Adultery Thriller सुराग

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अब मुझे परवाह नहीं थी कि कोई मेरा पीछा कर रहा था या नहीं । अब तो, जबकि डॉली को ड्राप करने के बाद मेरा आखिरी पड़ाव मेरा अपना घर ही था, मेरे पीछे लगे लोग अपना टाइम ही बरबाद करते ।
रास्ते में मैंने एक सिग्रेट सुलगा लिया और मंथर गति से गाड़ी चलाता हुआ पचौरी की बाबत सोचने लगा ।
चाण्डाल चौकड़ी में से वो ही एक इकलौता शख्स था जो शबाना के कत्ल के बाद से मुझे अभी तक नहीं मिला था ।
“क्या सोच रहे हैं ?” – डॉली बोली ।
“सोच नहीं रहा” - मैं अनमने भाव से बोला - “जो ताबूत मेरे पास है और जो अस्थाना को फिट नहीं आ रहा उसके लिये कोई और मुर्दा ट्राई कर रहा था ।”
“कौन ?”
“प्रभात पचौरी । वो भी अस्थाना की ही तरह शबाना की फैन क्लब का चार्टर्ड मेम्बर था । चारों में से यही एक शख्स है जो शादीशुदा नहीं है । इसका मानसी माथुर नाम की एक बहुत बड़े बाप की बेटी से अफेयर है और पचौरी उससे शादी करने के लिये मरा जा रहा है । मानसी के घर वालों की नाक सोसायटी में इतनी ऊंची है कि उनको खबर लग गयी कि उनके भावी दामाद का अफेयर एक कालगर्ल से था वो पचौरी से यूं बिदकेंगे जैसे एकाएक वो एड्स का शिकार हो गया हो । पचौरी ऐसा होने देना अफोर्ड नहीं कर सकता । उसने खुद मुझे बताया था कि शबाना ने उसे साफ धमकी दी थी कि अगर पचौरी ने उसकी मांग कबूल न की तो वो खुद मानसी के घर जाकर उसे और उसके मां बाप को पचौरी से अपने ताल्लुकात की मुकम्मल दास्तान, बमय सबूत, सुना कर आयेगी ।”“ये तो कत्ल का तगड़ा उद्देश्य है ।”
“हां ।” - मैं कार को डॉली के घर वाले ब्लाक में मोड़ता हुआ बोला – “शबाना से पीछा छूटे बिना पचौरी की मानसी से शादी नहीं हो सकती थी । और शबाना थी कि...”
एकाएक डॉली के मुंह से घुटी हुई सिसकारी निकली । उसने कस कर मेरी बांह पकड़ ली ।
“क्या हुआ ?” - मैं हड़बड़ा कर बोला ।
“गाड़ी रोकिये । फौरन । यहीं ।”
मैंने जोर से कार को ब्रेक लगायी ।
“हुआ क्या ?” – मैंने फिर पूछा ।
“मेरे घर की बत्तियां जल रही हैं ।” – वो आतंकित भाव से बोली – “मेरे माता पिता लौट आये मालूम होते हैं ।”
“लेकिन वो तो परसों लौटने वाले थे !”
“पता नहीं कैसे जल्दी लौट आये ।” – वो रुंआसे स्वर में बोली – “अब मेरा क्या होगा ?”
“क्यों ? तुझे क्या हुआ है ?”
“पूछते हैं क्या हुआ है ? आधी रात होने को है । इतनी रात गये वो मुझे घर लौटता देखेंगे तो वो क्या सोचेंगे मेरे बारे में ? यही न कि उनकी गैरहाजिरी में मैं ...”
“तू घबरा नहीं ।” – मैंने उसे पुचकारा – “मैं तेरे साथ चलता हूं । मैं तेरे माता पिता को समझा दूंगा ।”
“आपके साथ होने से तो वो और भी गलत सोचेंगे ...”
“नहीं सोचेंगे । अब तू इतना गिरा पड़ा न समझ मुझे । अब हौसला रख और चल मेरे साथ ।”
वो कार से निकली और मन-मन के कदम रखती मेरे साथ आगे बढ़ी ।
उसका फ्लैट पहली मंजिल पर था । सीढ़ियों के रास्ते हम ऊपर पहुंचे तो वहां और ही नजारा मिला ।
दो कमरों के उस फ्लैट का उस घड़ी ये हाल था जैसे भयानक आंधी तूफान ने अपना मुकम्मल जोर वहीं आजमाया हो । हर तरफ अस्त-व्यस्तता का बोलबाला था जो ये जाहिर करता था कि वहां की बड़ी जल्दी में, बड़ी बेरहमी से तलाशी ली गयी थी ।
“लगता है ।” – मैं धीरे से बोला – “तलाशी का ये आलम हमारे आने से कुछ क्षण पहले तक भी जारी था । कोई बड़ी बात नहीं कि मेरी कार के ब्लाक में दाखिल होने पर ही तलाशी लेने वाला – या वाले – यहां से भागा हो । इसी वजह से वो तमाम दरवाजे खुले और बत्तियां जलती छोड़ गया ।”
“लेकिन ।” – डॉली बोली – “इतनी रात गये, बत्तियां जला कर यूं सरेआम तलाशी ...”
“उसे मालूम होगा कि तू कहां थी और तेरे माता पिता कहां थे । उसे मालूम होगा कि एकाएक ऊपर से वहां कोई नहीं आ जाने वाला था ।”
“हम आये तो हैं ।”
“उसे तेरे और भी लेट घर लौटने की उम्मीद होगी ।”
“लेकिन मेरे घर की तलाशी क्यों ?”
“क्योंकि तू मेरी सैक्रेट्री है । मेरे फ्लैट और आफिस के अलावा किसी को ये जगह भी सूझी होगी जहां कि मैं कुछ छुपा सकता था ।”
“कुछ क्या ?”
“इस वक्त तो मुझे शबाना के कागजात ही सूझ रहे हैं ।”
“वो तो आपके पास से पहले ही चोरी जा चुके हैं ।”
“हां । लेकिन यहां घुसे चोर को इस बात की खबर नहीं होंगी न ।”
“अगर ये बात थी तो ऐसी तलाशी पहले आप के घर की और आफिस की होनी चाहिये थी ?”
“घर की क्या पता हुई हो । ग्रेटर कैलाश पहुंचने पर हो सकता है कि मुझे ऐसा ही नजारा अपने भी घर पर देखने को मिले और क्या पता चोर इस घड़ी आफिस ही खंगाल रहा हो ।”
“अब क्या होगा ?”
“अब सब से पहले तो पुलिस को ही फोन करना होगा ।”
उसने सहमति में सिर हिलाया ।
मैंने पुलिस को फोन किया ।
“यहां की खबर ।” - डॉली बोली - “आपके उस ए सी पी तक भी पहुंचेगी जो कत्ल के दोनों केसों की तफ्तीश कर रहा है ?”
“पहुंच सकती है ।” – मैं बोला – “मेरी यहां मौजूदगी की वजह से पहुंच सकती है ।”
“तब वो आप पर ये शक नहीं करेगा कि आप उससे काफी कुछ छुपाते रहे हैं ? यहां की तलाशी का सीधा मतलब यही नहीं लगायेगा कि यहां आप ही का कोई माल मैंने छुपाकर रखा हुआ था । क्योंकि आपके ख्याल से किसी को इस मामले में मेरे घर का ख्याल नहीं आ सकता था ?”
“वो ये ही सोचेगा । अगर यहां से कुछ चोरी नहीं गया है तो बिल्कुल यही सोचेगा । तू जरा झटपट अपना कीमती सामान चैक तो कर ।”
उसने किया ।
“सब कुछ चाक चौबन्द है ।” – वो बोली ।
“फिर तो हो गया काम ।” – मैं बोला – “अब तो वो मेरे पर ये भी इल्जाम लगा सकता है कि मैं झूठ बोल रहा था कि मेरी रिवाल्वर मेरे फ्लैट से एक डेढ महीना पहले चोरी गयी हो सकती थी । अब तो वो ये दावा करेगा कि जरूर हाल ही में मेरे फ्लैट का भी किसी ने ये ही हाल किया था और तभी रिवाल्वर चुरायी थी जो कि सच भी है । यानी कि कोमलकी लाश के पहलू में अपनी रिवाल्वर पड़ी देखने से पहले ही मुझे मालूम था कि वो चोरी जा चुकी थी ।”
“यानी कि जो हत्यारा है, वही चोर है । यहां वाला भी और आपके फ्लैट में घुसने वाला भी ?”
“हालात का इशारा तो इसी तरफ है ।”
“और तलाश उसे शबाना के कागजात की थी ?”
“और किस चीज की होगी ? और तो किसी कीमती चीज का दख्ल है ही नहीं इस केस में ।”
“उसने ये कैसे सोच लिया कि कागजात आपके अधिकार में थे ?”
“इसका एक जवाब अब मुझे सूझ रहा है । मुझे लगता है कि शबाना के कत्ल के फौरन बाद ही हत्यारा - जैसा कि मैं पहले समझ रहा था - फार्म हाउस से कूच नहीं कर गया था । बाथरूम में मेरी मौजूदगी का अहसास होने पर वो बंगले से जरूर खिसक गया था । लेकिन आसपास ही छुप गया था । जरूर उसने मुझे वहां से कूच करते देखा होगा और यूं मुझे पहचाना भी होगा । मेरे वहां से चले जाने के बाद वो दोबारा बंगले में दाखिले हुआ होगा और उसने शबाना के कागजात की तलाश शुरू की होगी । ये बात यूं भी साबित
होती है कि मैंने शबाना की मेज के दराजों का ताला शबाना के एक हेयर पिन की मदद से खोला या जबकि पुलिस ने ताले के छेद के इर्द गिर्द ऐसी खरोंचे बनी हुई पायी थी जैसे उसे किसी तीखे औजार से जबरन खोला गया हो । जाहिर है कि ताला खोलने के लिये वो तीखा औजार मेरे वहां से चले जाने के बाद हत्यारे ने इस्तेमाल किया था और यूं कागजात के मामले में मेज के तीनों दराजों में झाडू फिरा पाया था । तभी वो समझ गया था कि कागजात मैं ले गया था जो कि पहला मौका हाथ आते ही उसने मेरे फ्लैट में घुस कर बरामद कर लिये थे । उन कागजात के हाथ आये बिना उसका काम मुकम्मल जो नहीं होता था ।”
“उसका मुकम्मल काम शबाना का कत्ल और कागजात हथिया कर उन्हें नष्ट करना था ?”
“बिल्कुल ।”
“दोनों काम कर तो लिये उसने ! फिर भी अभी टिक कर क्यों नहीं बैठता वो ?”
“यही बात तो समझ में नहीं आ रही ।”
तभी पुलिस वहां पहुंची ।
“क्या हुआ ?” - एक सब-इन्स्पेक्टर ने सवाल किया ।
मैंने बताया ।
“फ्लैट आपका है ?”
“नहीं ।” - मैं बोला - “इनका है ।”
“और आप ?”
मैंने उसे अपना परिचय दिया और अपना एक विजिटिंग कार्ड भी पेश किया ।
मेरा प्ररिचय प्राप्त करते ही उसके नेत्र फैले ।
“मैं एक मिनट में आया ।” - वो बोला और फिर लम्बे डग भरता वहां से बाहर निकल गया ।
मैं समझ गया कि वो तलवार को फोन करने गया था ।
पांच मिनट में वो वापिस लौटा ।
“चोरी क्या गया है ?” - उसने सवाल किया ।
“कुछ नहीं ।” - जवाब डॉली ने दिया ।
“आपने चैक किया है ?”
“सरसरी तौर पर चैक किया है ।”
“आपको किस पर शक है ? किसी की निशानदेही करना चाहती हैं आप इस मामले में ?”
“नहीं ।”
वो यूं ही हम से उल्टे सीधे सवाल तब तक पूछता रहा जब तक कि ए सी पी तलवार वहां न पहुंच गया ।
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Masoom
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उसने हालात का मुआयना किया, सब-इंस्पेक्टर को एक ओर ले जाकर उससे चन्द सवाल किये और फिर मेरे करीब पहुंचा ।
“ये कोई मामूली चोरी की वारदात नहीं, मिस्टर प्राइवेट डिटेक्टिव ।” - वो बोला - “न ही ये किसी मामूली चोर का कारनामा है । यहां जो कुछ हुआ है, उसका सीधा सम्बन्ध शबाना और कोमलके कत्ल से है, तुम्हारी रिवाल्वर से है और खुद तुमसे है । यहां की तलाशी कत्ल की उन दो वारदातों की ही एक्सटेंशन है और ये सिलसिला किसी न किसी रूप में अभी आगे चलेगा और यकीन जानो, तुम्हें अच्छी तरह से लपेटेगा ।”
“उस लपेटे से बचने के लिये” – मैं बोला – “मैं क्या कर सकता हूं ?”
“बहुत कुछ कर सकते हो तुम । मसलन तुम सच बोल सकते हो, तुम पुलिस से जो कुछ अब तक छुपाते चले आ रहे हो, उसे अब बयान कर सकते हो ।”
“मैं कुछ नहीं छुपा रहा ।”
“चलो, न सही । तुम्हारी पुलिस से सहयोग करने की नीयत हो तो मैं एक राय दूं ?”
“दीजिये । पुलिस से सहयोग की मेरी पूरी-पूरी नीयत है ।”
“तुम कहते हो कि पिछले तेरह महीनों से तुम शबाना को जानते थे । मेरी राय ये है कि शबाना से अपने ताल्लुकात को एक बार पूरे का पूरा अपने जेहन में उतारो, और पिछले कुछ महीनों में आयी उसके व्यवहार में कोई तब्दीली, उसके रवैये में आयी कोई खूबी या खामी को याद करने की कोशिश करो । उसने किसी से कोई खतरा महसूस किया हो ! किसी से अपनी किसी अदावत का जिक्र किया हो ! या किसी में कोई खास ही दिलचस्पी दिखाई हो !” – वो एक क्षण ठिठका उसने घूरकर मुझे देखा और फिर बोला – “परसों सुबह मैंने तुमसे एक सवाल किया था कि तुम्हें शबाना के अपने जैसे कितने मेल फ्रेंड्स की वाकफियत थी । तुमने किसी की भी वाकफियत होने से इन्कार किया था । उस सवाल का जवाब मैं अभी भी चाहता हूं । मौजूदा हालात को मद्देनजर रखते हुए तुम्हारी भी दिलचस्पी होनी चाहिये उस सवाल का कोई मुनासिब जवाब मुझे सुझाने में ।”
“है तो सही ।”
“गुड । तो अब कोई नाम याद आया ?”
“नहीं ।”
“पुलिस से ऐसा रवैया अख्तियार करने का नतीजा जानते हो ?”
“जो नतीजा होगा, मैं भुगत लूंगा ।”
“ये भी भुगत लेंगी ?” – वो डॉली की ओर इशारा करता हुआ बोला ।
मेरे मुंह से बोल न फूटा ।
“जब चोर यहां घुसा था, तब ये घर पर नहीं थी । होतीं तो जानते हो क्या होता ? तो इसी बिखरे सामान में कहीं इनकी लाश भी पड़ी होती ।”
डॉली के मुंह से एक घुटी हुई सिसकारी निकली ।
“आप हमें डराने की कोशिश न करें ।” – मैं दिलेरी से बोला – “मुझे जो कुछ मालूम था, वो मैंने बता दिया । आगे कुछ याद आयेगा तो वो भी बता दूंगा ।”
“याद करोगे तो बताओगे न ! तुम्हारी याद करने की नियत होगी तो याद करोगे न !”
“आपकी भी कुछ करने की नीयत होगी तो करेंगे न !”
“क्या मतलब ?”
“तीन दिन में दो कत्ल हो गये । दोनों अभी तक अनसुलझे हैं । जब कि उनकी तफ्तीश आप सरीखा युवा, होनहार उच्चाधिकारी कर रहा है ।”
वो तिलमिलाया । कुछ क्षण वो खा जाने वाली निगाहों से मुझे घूरता रहा, फिर धीरे-धीरे उसने अपने पर काबू पा लिया ।
“पुलिस के पास कोई जादू का डण्डा नहीं होता ।” - वो बड़े सब्र से बोला - “जिसे घुमाया और मन चाहा नतीजा हासिल कर लिया ।”
मैं खामोश रहा । उस घड़ी उसे और भड़काना ठीक जो नहीं था ।
“आप कहती हैं ।” – फिर वो डॉली से सम्बोधित हुआ – “कि यहां से कुछ चोरी नहीं गया है ।”
“कोई कीमती चीज चोरी नहीं गयी है ।” – डॉली बोली ।
“कोई ऐसी चीज चोरी गयी हो सकती है जिसे आप मामूली मानती हों लेकिन चोर के लिये जो बेशकीमती हो !”
“ऐसी क्या चीज हो सकती है ?”
“उस चीज के बारे में क्या ख्याल है जो मिस्टर राज ने आपके घर में छुपा के रखने के लिये सौपी थी ?”
“ऐसी कोई चीज नहीं है । इन्होंने मुझे कुछ नहीं सौंपा !”
“तो फिर यहां की ऐसी तलाशी क्यों हुई ?”
“ये तो चोर ही बेहतर बता सकता है कि उसे यहां किस चीज की तलाश थी ।”
“इतना तो आप भी बता सकती हैं कि उसकी तलाश कामयाब हुई है या नहीं ।”
“अब क्या फर्क पड़ता है !”
“फर्क पड़ता है । उसकी तलाश कामयाब नहीं हुई तो वो यहां फिर आ सकता है ।”
डॉली ने व्याकुल भाव से मेरी तरफ देखा ।
“वो अपना वक्त ही जाया करेगा ।” - मैं बोला - “मैंने डॉली को यहां छुपा कर रखने के लिये कुछ नहीं सौंपा ।”
उसने मेरी बात की तरफ ध्यान न दिया । वो फिर डॉली से मुखातिब हुआ – “आप यहां अकेली रहती हैं ?”
“नहीं ।” - डॉली बोली - “मेरे माता पिता साथ रहते हैं । लेकिन वो हरिद्वार गये हुए हैं । दो दिन में लौटेंगे ।”
“मेरी राय में आप उन्हें फौरन वापिस बुला लीजिये ।”
“ठीक है ।”
तलवार मेरी तरफ घूमा, वो कुछ क्षण अपलक मुझे देखता रहा और फिर बोला – “चोट कैसे लगी ?”
“सीढ़ियों से फिसल गया था ।” – मैं अपनी कनपटी का गूमड़ और आंख के नीचे की खरोंच सहलाता हुआ बोला ।
“ध्यान से सीढ़ियां उतरा करो, भई ।”
मैंने सहमति में सिर हिलाया ।
उसके बाद तलवार वहां से विदा हो गया ।
और थोड़ी देर बाद अपना फिंगरप्रिंटस वगैरह उठाने का ड्रामा मुकम्मल करके बाकी पुलिसिये भी विदा हो गये ।
तब मैंने और डॉली ने फ्लैट का बिखरा सामान उठाकर ठिकाने लगाने का काम शुरू किया जिससे कि हम आधे घन्टे में फारिग हुए ।
“तलवार की एक बात तो मुझे भी जचं रही है ।” – फिर मैं चिन्तित भाव से बोला – “तुझे यहां अकेला नहीं होना चाहिये ।”
“मैं कल सुबह सवेरे ही पापा मम्मी को एक्सप्रैस टेलीग्राम दे दूंगी ।” – वो बोली – “वो दोपहर तक वापिस पहुंच भी जायेंगे ।”
“लेकिन आज की रात...”
“अब कुछ नहीं होता । जैसे बिजली एक ही बार दो जगह नहीं गिरती” – वो हंसती हुई बोली – “वैसे ही चोर भी एक ही घर में दो बार नहीं आता ।”
“आम चोर नहीं आता होगा । लेकिन यहां आया चोर आम चोर नहीं था । यहां आये चोर की तलाश कामयाब नहीं हुई थी । जैसा कि तलवार ने कहा था कि चोर यहां फिर...”
“अब नहीं आता वो फिर । हर जगह की तलाशी तो वो ले कर गया है । अब आयेगा तो और कौन सी नयी जगह टटोलेगा ?”
“मैं आश्वस्त नहीं ।”
“हो ही जाइये आश्वस्त ।” – वो तत्काल संजीदा हुई । – “क्योकि अगर आपका ये ख्याल है कि मैं आपको यहां रूकने के लिये कहूंगी तो ये ख्याल जेहन से निकाल दीजिये ।”
“अरी, कमबख्त ! मैं तो तेरी भलाई के लिये ऐसा सोच रहा था ।”
“आप मेरी फिक्र न करें ।”
“ठीक है फिर । जाता हूं मैं । और भगवान करे चोर वापिस जरूर लौटे और इस बार तेरे घर के सामान की जगह यहां तेरे हाथ पांव हड्ड गोड्डे हाड़ मास मज्जा छितरा कर जाये ।”
वो हंसी ।
“हंसती है !”
“हां, हंसती हूं । आप बातें ही ऐसी करते हैं ।”
“मैं जाता हूं । सुबह तक जिन्दा बच जाये तो दफ्तर आ जाना । गुड नाइट ।”
“गुड नाइट ।”
***
रात के सन्नाटे में मैं ग्रेटर कैलाश पहुंचा ।
निक्सी गोमेज मुझे अपने फ्लैट के दरवाजे के सामने सीढ़ियों पर बैठी मिली ।
“आप !” - मैं सख्त हैरानी से बोला – “यहां !”
“मैंने कहा था” – वो उठती हुई बोली – “कि आपकी तरफ से मेरा रवैया अगर तब्दील हुआ तो मैं आपसे कान्टैक्ट करूंगी ।”
“लेकिन इस वक्त !”
“अगर आप मेरे आने से खुश नहीं हैं तो मैं वापिस चली जाती हूं ।”
“नहीं नहीं । ऐसी बात नहीं । मैं तो आपकी असुविधा के लिहाज से सोच रहा था । कब से हैं आप यहां ?”
“एक घन्टे से ऊपर तो हो ही गया होगा ।”
“कमाल है ! आप पहले टेलीफोन कर लेती ।”
“मैंने किया था । लेकिन घन्टी ही बजती रही थी, जवाब नहीं मिला था । मैंने सोचा फोन खराब होगा । सो मैं यहां चली आयी । सोचा था इतनी रात गये तो आप घर ही होंगे । लेकिन आप तो नाइट आउटिंग के शौकीन निकले ।”
“मैं तफरीहन घर से बाहर नहीं था ।” – मैं ताला खोलता हुआ बोला – “मेरा कारोबार ही ऐसा है कि कई बार तो मैं सारी-सारी रात घर नहीं लौट पाता ।”
“फिर तो मैं खुशकिस्मत हूं कि कम से कम आज रात ऐसा नहीं हुआ ।”
“तशरीफ लाइये ।”
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वो मेरे पीछे–पीछे फ्लैट में दाखिल हुई । मैंने ड्राइंगरूम की बत्तियां आन की ।
“मैन ?” – एकाएक वो बोला – “युअर फेस !”
“हैड ऐन एक्सीडेंट ।” – मैं लापरवाही से बोला ।
“यू शुड बी मोर केयरफुल ।”
“आई विल । आई विल । बिराजिये ।”
वो एक सोफे पर बैठ गयी ।
“आप कुछ पियेंगी ?” – मैं बोला ।
वो एक क्षण खामोश रही और फिर संकोचपूर्ण स्वर में बोली – “आई विल कनसिडर ए लिटल ब्रान्डी विद वाटर इफ यू हैव इट ।”
“श्योर । आई हैव कोनियाक ।”
“वन्डरफुल ।”
“वन ब्रांडी कमिंग अप राइट अवे , मैडम ।”
“थैंक्यू ! वो क्या है कि बाहर मैं ठण्ड में बैठी रही न इसलिये...”“आई अन्डरस्टैण्ड ।”
मैं किचन में गया और ब्रान्डी एण्ड वाटर के दो जाम बना कर उनके साथ वापिस लौटा ।
“थैंक्यू ।”– वो गिलास थामती हुई बोली ।
“तो ।” – मैं बोला – “मेरी तरफ से आपका रवैया तब्दील हुआ है ?”
“हां ।”
“ऐसा कैसे हुआ ?”
“पुलिस से नाउम्मीदी की वजह से हुआ । वो मेरी बहन के कातिल की तलाश के सिलसिले में अभी एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा पाये हैं । अब तो मुझे आप से ज्यादा उम्मीदें लग रही हैं । मुझे मालूम हुआ है कि आप तो दिल्ली के बड़े मशहूर प्राइवेट डिटेक्टिव हैं । मुझे यकीन है कि आप पुलिस से पहले, बहुत पहले, मेरी बहन के कातिल को तलाश कर लेंगे ।”
“ये मेरे लिये फख्र की बात है कि आप ऐसा सोचती हैं । पहले तो आपका मेरे से पेश आने का अन्दाज ऐसा था जैसे आप मुझे ही अपनी बहन का कातिल समझती हो ।”
“आई एम सॉरी । सर, आई वाज हैल्पलैस । वो पुलिस वाले ऐसे ही आईडियाज मेरे माइंड में इम्पलांट करते थे । आई एम सॉरी ।”
“यू नीड नाट बी । आई अन्डरस्टैंड ।”
“वैसे हैं तो नहीं न आप मेरी बहन के कातिल ?”
“मैडम । अगर होता तो ये बात मैं अपनी जुबान से कबूल करता ! खुद आप का दिल इस बाबत गवाही दे रहा होता तो आपका हौसला होता इतनी रात गये मेरे सामने यूं बैठे होने का ?”
“यू आर राइट । आई एम सॉरी आल ओवर अगेन ।”
“यू नीड नाट बी । आई सैड आलरेडी ।” - मैंने थोड़ी सी ब्रान्डी चुसकी और फिर बोला - “जब मैं आपसे होटल में मिला था तो आप मेरे खिलाफ थीं क्योंकि पुलिस ने आपको ऐसी पट्टी पढ़ाई हुई थी कि आपने मेरे से सहयोग नहीं करना था । तब आप मेरे किसी भी सवाल का जवाब दे के राजी नहीं थी । अब जबकि पुलिस से आप का भरम टूट गया है तो मैं आपसे चन्द सवाल फिर करना चाहता हूं । आज जवाब देंगी ?”
“जरुर ।”
“आनेस्टली ?”
“यस ।”
“आप अब प्रकाश होटल में नहीं हैं ?”
“नहीं ।”
“क्यों ?”
“उधर का बिल पुलिस देने को बोला था । उनका मतलब मेरे से हल हो गया तो उन्होंने वो कर्टसी विदड्रा कर ली ।”
“अब आप कहां हैं ?”
“अपनी बहन के फ्लैट में ।”
“वहां कब तक रहने का इरादा है ?”
“तब तक जब तक कि कोमलका कातिल पकड़ा नहीं जाता ।”
“कोमलके अन्तिम संस्कार के बाद से आपकी पुलिस से भेंट हुई ?”
“नहीं ।”
“कोमलसे आखिरी बार आप कब मिली थीं ?”
“कोई एक महीना पहले । जबकि वो मेरे पास आगरा आयी थी ।”
“तब उसका मिजाज कैसा था ? ऐसा लगता था जैसे वो किसी बात से परेशान हो या किसी व्यक्तिविशेष से आतंकित हो ?”
“नहीं । ऐसा तो बिल्कुल नहीं लगता था । वो तो मेरे पास वैसे ही आयी थी जैसे हमेशा आती थी ।”
“खूब हंसती खेलती ?”
“मिस्टर राज, खिलन्दड़ापन कोमलके मिजाज में नहीं था । वो आदतन बहुत रिजर्व रहने वाली थी । आप उसको जानते थे तो ये बात आपको मालूम होनी चाहिये थी ।”
“मालूम है । लेकिन आप तो उसकी बहन है । आप के साथ तो...”
“उसका व्यवहार सब के साथ एक समान था । रिजर्व्ड । कोल्ड ।”
“बहरहाल उसके व्यवहार में कोई तब्दीली नहीं थी ? जैसा व्यवहार उसका हमेशा होता था, वैसा ही पिछले महीने तक था जब वो आगरे जाकर आप से मिली थी ?”
“हां ।”
“लेकिन अगर कोई बात होती – गैरमामूली, दिमाग पर बोझ बनने वाली, फिक्र में डालने वाली – तो वो आपको बताती ?”
“हां । जरुर । आखिर मैं उसकी बड़ी बहन थी ।”
“इस लिहाज से तो उसके मिजाज में कोई फर्क उसके बिना बताये भी आपकी जानकारी में आ सकता था ?”
“हां । आ सकता था ।”
“ऐसा कुछ नोट करने पर आप उससे उसकी वजह पूछती तो क्या वो आपको बताती ?”
“हां ।”
“लेकिन हकीकतन न आपने जुदा कुछ नोट किया, न कोमलने बताया ?”
“हां ।”
“कभी अपनी एम्पलायर शबाना की कोई बात करती थी वो आप से ? उसकी शख्सियत के बारे में, उसकी आदतों के बारे में, पसन्द-नापसन्द के बारे में, उसके जेरेसाया अपनी एम्पलायमेंट के बारे में ?”
“नहीं, खास कुछ नहीं । सिवाय इसके कि शबाना उससे बड़ी अच्छी तरह पेश आती थी और वो अपनी उस एम्प्लायमेंट से खुश थी ।”
“शबाना का कामकाज - मेरा मतलब है, आय का साधन - क्या बताती थी वो ?”
“यही कि वो सिल्वर मून में कैब्रे डान्सर थी ।”
“आपने कभी सवाल नहीं किया था कि एक कैब्रे डांसर आप की बहन जैसी एक्सपैन्सिव मेड कैसे अफोर्ड कर सकती थी ?”
“जब मुझे शबाना की शानोशौकत की खबर लगी थी तो किया था । तब कोमलने बड़े संकोच से मुझे बताया था कि... कि...”
“वो काल गर्ल थी ?”
“विद कलायन्टेल लिमिटिड टु सलेक्ट फियु ।”
“आल दि सेम शी वाज ए काल गर्ल । आपकी बहन ने आपको साफ ऐसा कहा था ?”
“हां !”
“उस लिहाज से आपको कोमलकी एम्पलायमेंट से एतराज नहीं था ? वो खूबसूरत थी, नौजवान थी, महत्वाकांक्षी थी, शबाना की शानो-शौकत का रोब खाती थी । वो शबाना के नक्शेकदम पर चलने की कोशिश कर सकती थी ।”
“मिस्टर राज, इट नैवर अकर्ड तू मी । ऐसा कुछ कभी नहीं सूझा था मुझे ।”
“सूझा नहीं था या आप अपनी दिवंगत बहन का इमेज बनाये रखने के लिए अब ऐसी कोई बात जुबान पर नहीं लाना चाहती ?”
“सूझा नहीं था ।”
“खैर । कोमलने आप से कभी किसी डायरी का, किन्ही चिट्ठियों का, किन्ही कागजात का कोई जिक्र किया था ?”
“नहीं ।”
“मतलब ये हुआ कि वो शबाना की बाबत आप से कुछ ज्यादा बात नहीं करती थी ?”
“हां ।”
“न ही आप ज्यादा सवाल करती थीं ?”
“सवाल तो कभी कभार करना पड़ ही जाता था – आखिर मैं उसकी बड़ी बहन थी – लेकिन कभी कुरेदती नहीं थी मैं उसे । इसकी एक वजह ये भी थी कि वो एक बालिग, खुदमुख्तार लड़की थी, मेरे ज्यादा कुरेदने पर वो मेरे किसी सवाल का जवाब देने से दो टूक इन्कार कर सकती थी ।”
“इसका तो ये मतलब हुआ कि आपकी सगी बहन होने के बावजूद वो आप से उतना नहीं खुली हुई थी जितना कि सगी बहनें आपस में खुली होती हैं ?”
“करैक्ट । मैंने कहा न कि वो बड़ी रिजर्व्ड नेचर की लड़की थी ।”
“अब जबकि पुलिस ने उसके फ्लैट की चाबी आपको सौंप दी है तो आपने वहां मौजूद साजोसामान का कोई जायजा तो लिया होगा ?”
“हां ।”
“क्या पाया आपने वहां ?”
“खास कुछ नहीं । पोशाकों और घरेलू समान के अलावा सिर्फ कुछ पुरानी चिट्ठियां, पुराने बिलों की कापियां, बैंक की चेक बुक, पास बुक वगैरह....”
“बैंक में काफी रकम थी ?”
“न । सात आठ हजार रुपए थे बस ।”
“हैरानी की बात नहीं ये ?”
“वो क्या है, मिस्टर राज, दरअसल अपनी मालकिन की देखादेखी उसने खुद अपना रहन-सहन भी बहुत खर्चीला बना लिया हुआ था । ड्रेसेज पर, ज्वेलरी पर, आउटिंग्स पर वो बहुत ज्यादा खर्चा कर देती थी । फिर गोवा में हमारे पेरेंट्स को भी वह गाहे-बगाहे पैसा भेजती रहती थी । इसलिए वो ज्यादा कुछ बचा नहीं पाती थी ।”
“कोई बॉय फ्रेंड ?”
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Re: Adultery Thriller सुराग

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Re: Adultery Thriller सुराग

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“स्टेडी कोई नहीं । तफरीहन कभी-कभार वो किसी पसंद के लड़के के साथ डेट पर चली जाती थी । लेकिन स्टेडी कोई नहीं था । वो खुद कहती थी कि उसे किसी से मुहब्बत नहीं हुई थी ।”
“यानि कि सिवाय आपके उसका खास करीबी कोई नहीं था ?”
“यही समझ लीजिये ।”
“कोई ऐसी बात जो आपने पुलिस को बताई हो लेकिन मुझे न बतायी हो ?”
“ऐसी कोई बात नहीं । कम से कम अब ऐसी कोई बात नहीं ।”
“आपके ख्याल से कोमलका कत्ल क्यों हुआ ? कोई वजह सूझती है आपको ?”
“नहीं । आप बताइये ।”
“मेरे ख्याल से तो ऐसा इसीलिए हुआ क्योंकि आपकी बहन शबाना की कुछ ज्यादा ही राजदां बन गयी थी । वो या तो शबाना के निजी कागजात चुपचाप पढ़ती रहती थी या कातिल समझता था कि वो ऐसा करती थी । लिहाजा जिस वजह से शबाना का कत्ल हुआ, ऐन उसी वजह से कोमलका कत्ल हुआ ।
“मुंह बंद करने के लिए ?”
“हां । अब हमें ये मालूम हो जाये कि उन दोनों के मुंह खोलने का फौरी खतरा किस को था तो कातिल की शिनाख्त हो सकती है । इसी वजह से मैं आपसे पूछ रहा था कि क्या आपकी बहन ने कभी आपको ऐसा इशारा किया था कि वो शबाना की कोई जाती पोल-पट्टी जानती थी ! या शबाना का करीबी कौन सा शख्स था जिसे अपना कोई पर्दाफाश हो जाने की दहशत थी ।”
उसने तत्काल जवाब न दिया । मैंने उसे न कुरेदा । उसकी सूरत से दिखाई दे रहा था कि अपने दिमाग पर बहुत गहरा जोर देकर वो कुछ याद करने की कोशिश कर रही थी ।
“मिस्टर राज । “ – आखिरकार वो बोली – “इस शख्स का नाम तो उसने मेरे सामने कभी नहीं लिया था लेकिन एक बात आपकी सच है वो शबाना के कागज तो पढ़ती थी ।”
“ऐसा कैसे कह सकती हैं आप ?”
“एक बार जब मैंने उससे सवाल किया था कि शबाना उसे इतनी मोटी तनख्वाह क्यों देती थे और तनख्वाह के अलावा भी उसे इतनी अतिरिक्त सुख-सुविधाएं फ्री क्यों मुहैया कराती थी तो उसने बड़े अभिमान के साथ कहां था कि अच्छा ही था कि करती थी वर्ना ऐसे काम कराये भी जा सकते थे ।”
“ऐसा उसने कहा था ?”
“हां ।”
“आपने पूछा नहीं था कि कराये कैसे जा सकते थे ऐसे काम ?”
“पूछा था लेकिन उसने जवाब को टाल दिया था ।”
“ये तो साफ ब्लैकमेल की तरफ इशारा हुआ । यानि कि शबाना स्वेच्छा से उसकी खास खिदमत न करती रहती तो वो ऐसा जबरन करवा लेती ।”
“तब तो मैंने इस बाबत नहीं सोचा था लेकिन मौजूदा हालात से तो ये ही लगता है कि ऐसा ही कुछ इरादा था ।”
“हैरानी है ।”
वो खामोश रही ।
“ब्लैकमेल एक गंभीर अपराध है ।”
“जरूरी नहीं”- वो जल्दी से बोली – “कि उसका ऐसा इरादा रहा हो ।”
“ऐसा आप इसलिए कह रही हैं क्योंकि अपनी दिवंगत बहन की हिमायत करना, उसके चरित्र पर कोई लांछन आने से रोकना आप अपना इखलाकी फर्ज मानती हैं ।”
वो फिर खामोश हो गयी ।
“कोमलका ब्लैकमेल का इरादा भले ही न रहा हो लेकिन शबाना के खिलाफ इस्तेमाल करने के लिए जो हथियार अनायास ही उसके हाथ लग गया था, उसकी ताकत वो बखूबी पहचानती थी ।” – मैं एक क्षण को ठिठका और फिर बोला – “इस वक्त शबाना और कोमलइस दुनिया में नहीं हैं – भगवान दोनों को जन्नतनशीन करे – लेकिन अगर कोमलमर गयी होती और शबाना जिंदा होती तो सारी कहानी कुछ और ही होती ।”
निक्सी ने बेचैनी से पहलू बदला ।
“अब जरा उस चिट्ठी पर आइये” – मैं बोला – “जो अपनी मौत से पहले कोमलने आपको लिखी थी और जो आपको आगरे में मिली थी । मैडम, क्या उसमें वाकई खास कोई बात नहीं थी ? वाकई ऐसा कोई इशारा नहीं था कि कोमलको अपने सिर पर जान का खतरा मंडराता दिखाई दे रहा था ? वाकई किसी ऐसे शख्स का नहीं था जो कि उस खतरे की वजह हो सकता था ?”
“नहीं, ऐसा कुछ नहीं था उसमें । सिवाय इसके कि उसमें उसकी एम्प्लायर के कत्ल का जिक्र था, उसमें कोई खास बात नहीं थी ।”
“पक्की बात ?”
“हां ।”
“फिर भी पुलिस ने आपको उस चिट्ठी का जिक्र किसी से करने से माना किया ? चिट्ठी भी कब्जा ली ?”
“किया तो ऐसा ही उन्होने ।”
“चिट्ठी अभी भी पुलिस के पास है ?”
“हां ।”
“आप मांगिए वापिस ।”
“मांगने से दे देंगे वो ?”
“अगर चिट्ठी वाकई मामूली है तो दे ही देनी चाहिए । फिर भी न दें तो फोटोकोपी मांगिएगा । बल्कि ये कहिएगा कि वो फोटो कापी रखें और चिट्ठी आपको दें । कहिएगा कि वो आपकी दिवंगत बहन की आपको लिखी आखिरी चिट्ठी है इसलिए आपको उस चिट्ठी से सेंटीमेंटल अटेचमेंट है ।”
“ठीक है । मैं कल कोशिश करूंगी ।”
“चिट्ठी या फोटोकापी दोनों में से कोई भी चीज आपको हासिल हो जाये तो मुझे फौरन खबर कीजिएगा । न जाने क्यों मेरा दिल गवाही देता है कि उस चिट्ठी में कोई न कोई ऐसी बात जरूर छुपी हुई है जो कि कातिल कि तरफ उंगली ...”
तभी एकाएक फोन की घंटी बजने लगी ।
मैं तत्काल खामोश हो गया, मैंने हड्बड़ाकर वाल क्लाक पर निगाह डाली और फिर बैडरूम में जाकर फोन रिसीव किया ।
“राज !” – आवाज आई ।
“हां” – मैं सशंक स्वर में बोला – कौन ?”
“जो कहा जाये उसे गौर से सुन क्योंकि कोई बात दोहराई नहीं जाएगी । अभी अपनी कार पर सवार होकर खेलगांव के पिछवाड़े में जो जंगल है, उसके रास्ते पर पहुंच जहां चौबुर्जे के करीब तुझे एक नीली कौंटेसा दिखाई देगी । बाकी बातें फिर होंगी । अगर अपनी सैक्रेट्री को जिंदा देखना चाहता है तो डायरी लेकर जहां कहा है वहां फौरन पहुंच ।”
संबंध-विच्छेद हो गया ।
मेरे छक्के छूट गए ।
ऐन वही हुआ था जिसके बारे में ए सी पी तलवार ने भी इशारा दिया था और जिसका मुझे भी अंदेशा था ।
मैंने रिसीवर क्रेडल पर फटका और लगभग दौड़ता हुआ ड्राइंगरूम में पहुंचा ।
“मैडम” - मैं बदहवास भाव से बोला - “मुझे अफसोस है कि आपको फौरन यहां से रुखसत होना पड़ेगा । एक इमरजेंसी आ गयी है जिस वजह से मुझे फौरन कहीं पहुंचना है । सो मैडम, प्लीज ...”
उसने अपना गिलास खाली किया और सहमति में सिर हिलाती हुई उठ खड़ी हुई । तब इससे पहले कि वो औपचारिकतावश कुछ बोलती, मैंने उसको बांह से पकड़ा और जबरदस्ती फ्लैट से बाहर छोड़ के आया ।
“सॉरी । सॉरी ।” - मैं हांफता हुआ बोला – “बातरतीब माफी फिर मांगूंगा । कल । कल ।”
मैंने उसके पीछे दरवाजा बंद कर लिया ।
अस्थाना का दूसरा वार इतनी जल्दी होगा, इसकी मुझे उम्मीद नहीं थी – इस तरीके से होगा, इसकी तो कतई उम्मीद नहीं थी ।
मैंने अपनी राइटिंग टेबल में से एक पुरानी डायरी बरामद की जिसमें कि मैं अपने संतुष्ट क्लायंट्स की केस हिस्ट्री लिखा करता था । मैंने उस डायरी को एक मजबूत लिफाफे में बंद किया और लिफाफे का मुंह सेलोटेप चिपका कर अच्छी तरह से बंद कर दिया ।
फ्लैट को ताला लगाकर उस लिफाफे के साथ मैं नीचे पहुंचा, अपनी कार में सवार हुआ और मैंने कार को निर्देशित स्थान की ओर दौड़ाया ।
रास्ते में मैं इस बाबत बहुत चौकन्ना था कि कोई मेरा पीछा कर रहा था या नहीं, लेकिन सुनसान रास्तों पर मुझे अपने पीछे कोई न दिखाई दिया । अस्थाना का कोई दादा तो मेरे पीछे था ही नहीं, तलवार के पुलिसिये भी वाकई छुट्टी कर गए हुए था ।
मैं खेलगांव के पिछवाड़े के जंगल के दहाने पर पहुंचा । मैं कुछ क्षण कोई आहट लेने की कोशिश करता रहा लेकिन मुझे कोई आहट न मिली । मैंने कार को फिर गियर में डाला और उसे धीरे से आगे बढ़ाया । थोड़ा आगे आने पर मैंने सीधे चौबुर्जे के रास्ते पर जाने के स्थान पर कार को दायें मोड़ दिया । आगे घने पेड़ों की छांव में मैंने उसे रोका और पीछे डिकी में पड़े टायर ट्यूब में से अस्थाना वाली रिवाल्वर बरामद की । मैंने रिवाल्वर वाला हाथ अपने कोट की जेब में डाल लिया और गाड़ी वहीं छोड़ कर दबे पांव वापिस लौटा ।
राहदारी पर चलने के स्थान पर पेड़ों के झुरमुट से होता हुआ मैं आगे चौबुर्जे की दिशा में बढ़ा । रास्ते में रिवाल्वर निकाल कर मैंने अपने हाथ में ले ली ।
थोड़ी देर बाद चांद की रोशनी में मुझे आगे चौबुर्जा दिखाई देने लगा ।
फिर उसके करीब खड़ी कोंटेसा भी मुझे दिखाई दी । उसके सब शीशे उठे हुए थे और बत्तियां बुझी हुई थीं । शीशे काले थे इसलिए इस बात का कतई आभास नहीं मिल रहा था कि भीतर कोई था या नहीं ।
चौबुर्जा एक खुले मैदान में था इसलिए कार तक पहुंचने के लिए पेड़ों की ओट छोड़ना जरूरी था जो कि खतरनाक काम साबित हो सकता था । मुझे फोन करने वाला मेरे वहां तक कार पर पहुंचने की अपेक्षा कर रहा था, वो मुझे पैदल कार की ओर बढ़ता पाता तो मुझे पहचाने बिना भी आशंकित हो उठता । फिर या तो वो मेरे पर आक्रमण कर देता या कार वहां से भागकर के ले जाता ।
मैं चुपचाप कार के करीब पहुंचने की कोई तरकीब सोचने लगा ।
तभी मैंने अपनी गर्दन पर ठंडे लोहे का स्पर्श महसूस किया और फिर कोई मेरे कान में बोला – “हिलना नहीं ।”
मेरे सारे शरीर में झुरझुरी दौड़ गयी । वो मेरे से भी होशियार निकला था जो यूं प्रेत की तरह मेरे सिर पर पहुंच गया था ।”
“कंधे पर से रिवाल्वर मुझे पकड़ा ।” – आदेश मिला ।
तब वो आवाज मैंने साफ पहचानी ।
वो पिछली रात वाले खलीफा रघुवीर कि आवाज थी ।
मेरे वाली रिवाल्वर उसके हाथ में पहुंच गयी तो मैं उसकी तरफ घूमा ।
वो रघुवीर ही था ।
“फोन पर तो” – मैं बोला – “मैंने तेरी आवाज न पहचानी, रघुवीर खलीफा ।”
“होशियारी दिखाने से बाज नहीं आया न ?” – वो दांत पीसता हुआ बोला ।
“काम तो न आई होशियारी ।”
“डायरी कहां है ?”
“अकेला दिखाई दे रहा है । कटलरी कहां है ?”
“डायरी – कहां – है ?”
“मेरे पास है ।”
“निकाल ।”
“ऐसे कैसे निकालूं ? पहले बता मेरी सैक्रेट्री कहां है ?”
“तू डायरी दिखा मेरे को । मैं तुझे तेरी सैक्रेट्री दिखाता हूं ।”
मैंने जेब से डायरी वाला लिफाफा निकाल कर उसे दिखाया ।
“कार की तरफ चल ।”
मैंने आदेश का पालन किया ।
हम दोनों कार के करीब पहुंचे तो उसने कार का पिछला दरवाजा खोल कर मुझे भीतर झांकने का अवसर दिया ।
भीतर पिछली सीट पर मुझे डॉली की परछाई सी दिखाई दी । उसके हाथ उसकी पीठ पीछे बंधे हुए थे और मुंह पर रुमाल बंधा हुआ था । उसने आतंकित भाव से मेरी तरफ देखा ।
तभी रघुवीर ने पांव की ठोकर से दरवाजा बंद कर दिया ।
“हो गयी तसल्ली !” – वो बोला ।
“तेरा बाप कहां है ?” – मैं बोला ।
“बकवास बंद ।”
“अस्थाना का खास ही आदमी मालूम होता है तू जो ...”
“कार में बैठ । स्टियरिंग के पीछे ।”
“क्यों ?”
“यूं ही जुबानदराजी करता रहेगा तो मैं अभी तेरी आंखों के सामने तेरी छोकरी को शूट कर दूंगा ।”
मैं तत्काल कार का दरवाजा खोलकर ड्राइविंग सीट पर बैठ गया ।
कार का सामने से घेरा काट कर वो पारली तरफ पहुंचा और मेरे पहलू में पैसेंजर सीट पर आ बैठा ।
तब कार की चाबी उसने मुझे दी ।
“चल ।”
“किधर ?” – मैं इग्नीशन में चाबी लगता हुआ बोला ।
“अभी तो जंगल से बाहर निकल । आगे बताता हूं ।”
मैंने सहमति में सिर हिलाया ।
“और” - वो अपनी रिवाल्वर की नाल मेरी पसलियों में चुभोता हुआ बोला - “कोई होशियारी दिखाने की कोशिश न करना । तेरी एक होशियारी मैंने माफ कर दी है, दूसरी नहीं करूंगा ।”
“खलीफा । तेरे जोड़ीदार तेरे साथ क्यों नहीं हैं ?”
“बकवास न कर । गाड़ी चला ।”
मैंने गाड़ी को होले से गियर में डाल कर आगे बढ़ाया ।
तभी एकाएक मेरे जेहन में जैसे बिजली सी कौंधी ।
तत्काल मेरी समझ में आने लगा कि रघुवीर अकेला क्यों था ।
कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्‍वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
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