Thriller मिशन

Post Reply
josef
Platinum Member
Posts: 5361
Joined: 22 Dec 2017 15:27

Re: Thriller मिशन

Post by josef »

25 मार्च 2015
फ्लाईट 301
अरब सागर का वायुमंडल
फलक प्लेन की खिड़की के बगल वाली सीट पर मौजूद थी। वह उत्साह से बाहर के नज़ारे देख रही थी। मोहसीन उसके बाजू में था जो उसे कहीं दूर आसमान में बादल दिखा रहा था।
“वो देख फल्लू- पहाड़!”
“वो पहाड़ थोड़ी न है मामू। क्लाउड है।”
“अरे नहीं वो बर्फ का पहाड़ है। माउंट एवरेस्ट।”
“मम्मी देखो मामू झूठ बोल रहे हैं।”
सरीना मैगज़ीन पढ़ रही थी। उसने मोहसिन पर नज़र डाली और सर हिलाते हुए मुस्करा दी।
“टीचर ने बताया है...माउंट एवरेस्ट इज इन नेपाल। मामू आपकी टीचर ने आपको इतना भी नहीं सिखाया ?”
“अच्छा! बहुत बोलने लगी है।” कहकर मोहसिन उसके गुदगुदी करने लगा। फलक बुरी तरह से हंसने लगी।
“मोहसिन!” सरीना डांटते हुए बोली, “ज्यादा मस्ती नहीं। सीधे बैठो दोनों।”
तभी प्लेन बाएँ तरफ धीरे-धीरे झुकने लगा। एयरहोस्टेस जो फिलहाल पैसेंजर्स को चाय-कॉफ़ी सर्व कर रहीं थीं– लड़खड़ा गईं।
मोहसिन हंसकर बोला, “जीजी! जब प्लेन ही सीधा नहीं चल रहा तो हम कैसे सीधे बैठें।”
फलक भी दांत दिखाते हुए हंसने लगी।
प्लेन में सीट बैल्ट्स पहनने के निर्देश ज़ारी हो गए थे।
प्लेन में अधिकतर लोग सामान्य ढंग से बैठे थे पर कुछ ज़रूर थे जो व्यग्र होने लगे थे। एक संभ्रांत बिजनसमैन-सा प्रतीत होता व्यक्ति खड़े होकर एयरहोस्टेस से पूछने लगा, “ये प्लेन मुड़ क्यों रहा है ? कोई इमरजेंसी है क्या ?”
“सर प्लीज़! आप अपनी सीट पर बैठ जाएँ और सीट बैल्ट लगा लें। कभी-कभार खराब मौसम के कारण रूट चेंज करना पड़ जाता है।”
वह व्यक्ति बैठ तो गया पर फिर भी रोष भरे स्वर में बोलता गया। “मुझे मत सिखाओ मैं हजारों बार प्लेन में ट्रेवल कर चुका हूँ। जिस तरह ये प्लेन मुड़ा है- लग रहा है इसने पूरा नब्बे का कोण मारा है। आप पता करिए और इस दिशा बदलाव की क्या वजह है उसकी प्लेन में घोषणा करवाइए।”
“ज़रूर सर! प्लीज़ बी पेशेंट। पायलट जल्दी घोषणा करेंगे।”
एयरहोस्टेस जिसका नाम हिना था तेजी से आगे बढ़ते हुए बिजनस क्लास पहुंची फिर उसे पार करते हुए कॉकपिट के दरवाजे पर पहुंची। वह खड़े एक स्टीवर्ड और एयरहोस्टेस से वह मुखातिब हुई। वे दोनों परेशान से नज़र आ रहे थे।
“क्या हुआ प्लेन ने दिशा क्यों बदली ?” हिना ने पूछा।
“हम भी यहीं पता करने की कोशिश कर रहे हैं।” दूसरी एयरहोस्टेस बोली।
“तो ? क्या कह रहे हैं कैप्टन ?”
“अन्दर से कोई जवाब मिले तो न।” कहते हुए स्टीवर्ड ने कॉकपिट के बाहर लगे टचपेड पर पासकोड डाला पर दरवाजा फिर भी नहीं खुला।
हिना ने दरवाजा धकेलने की कोशिश की। “लगता है कोई टेक्नीकल फाल्ट है दरवाजे में।”
“आई हॉप सो...” दूसरी एयरहोस्टेस सहमे हुए स्वर में बोली। उसका चेहरा डर से सफ़ेद पड़ गया था।
हिना दरवाजे पर नॉक करने लगी, पर अन्दर से कोई प्रतिक्रिया हासिल नहीं हुई।
“कहीं दोनों ही पायलट्स को तो कुछ नहीं हो गया।” स्टीवर्ड बोला।
“कम ऑन!” दूसरी एयरहोस्टेस बोली, “दोनों पायलेट्स को एक साथ...कोई चांस नहीं।”
“क्यों नहीं! ऐसा पहले हो चुका है। तुम्हें वो सिप्रस से ग्रीस वाली फ्लाईट के बारे में नहीं पता ?”
उसने न में सर हिलाया।
“तभी! उस फ्लाईट में केबिन प्रेशर सिस्टम गलती से मैन्युअल पर रह गया था और प्लेन हवा में उठने के बाद अन्दर प्रेशर गिरता चला गया और प्लेन में दोनों पायलेट्स की मौत हो गई।”
“ओह गॉड! फिर क्या हुआ ?”
“फिर क्या। सबकुछ होने के बाद भी किसी को शायद नहीं सूझा कि प्रॉब्लम कहाँ है। अंत में एक अटेंडेंट ने कॉकपिट में आकर प्लेन सँभालने की कोशिश की पर...”
“पर... ?” एयरहोस्टेस के चेहरे पर हाहाकारी भाव थे।
“प्लेन पहाड़ों में क्रेश हो गया। सब मारे गए।”
“प्लीज़!” हिना बोली, “डराओ नहीं! आई एम श्योर दरवाजे में कुछ प्रॉब्लम है। इसे फिर से ट्राई करो...”
“अरे, कितनी बार...” स्टीवर्ड ने नंबर पंच किया। पर नतीज़ा सिफर निकला। उसने दरवाजे को खटखटाकर गहरी सांस ली।
“ज़रूर कैप्टन विक्रम या अजय में से किसी एक को कुछ हुआ है।” हिना चिंतित स्वर में बोली।
“तो वो अकेले क्या कर लेंगे ? दरवाजा तो खोलना चाहिए।” स्टीवर्ड बोला।
“प्लेन का दिशा बदलना फिर भी जस्टिफाई नहीं होता।” दूसरी एयरहोस्टेस बोली।
हिना चिंतित मुद्रा में कॉकपिट के दरवाजे को देखती रह गई।
☐☐☐
josef
Platinum Member
Posts: 5361
Joined: 22 Dec 2017 15:27

Re: Thriller मिशन

Post by josef »

वर्तमान समय
नई दिल्ली
शाम ढल रही थी।
राज बस में पीछे से तीसरी सीट पर खिड़की के पास बैठा था। अपनी ठोड़ी हथेली पर टिकाये वह बाहर देखते हुए ख्यालों की भंवर में फंसा हुआ था।
बस तेजी से शहर से बाहर निकलने के लिये अग्रसर थी।
नौकरी फ़िज़ूल ...
देशभक्ति फ़िज़ूल ...
यारी-दोस्ती फ़िज़ूल ...
किस पर शक करें और किस पर यकीन ?
क्या ये दिन देखने के लिये सीक्रेट सर्विस ज्वाइन की थी ? ये जिल्लत तो नहीं सही जायेगी कि कोई क्रिमिनल की तरह पूछताछ करे, इंटरनेशनल कोर्ट में पेशी के लिये भेज दे।
राज ने फोन की तरफ हाथ बढ़ाया। उसे वह पहले ही एयरप्लेन मोड पर डाल चुका था। उसने वह स्केच निकाला।
आरती!
आहूजा की गर्लफ्रेंड!
आखिरी सहारा!
आखिरी आस!
पता नहीं कहाँ मिलेगी ।
स्केच से किसी को ढूंढना मुश्किल है पर असम्भव नहीं। खासकर कि अगर वह कोई भगौड़ा मुजरिम न हो। असल में तो वह अब खुद एक भगौड़ा बन चुका था। संभावित है कि क्रिमिनल डेटाबेस को एक्सेस करने के जो ज़रिये उसे अभी तक हासिल थे अब उनका प्रयोग करने में उसे मुश्किलें आनी थीं। फिर भी कहीं न कहीं से जुगाड़ करना बड़ी बात न होगी। पर वो तब ही कारगर साबित होगा जब कि आरती कोई मुजरिम हो। अगर वो एक आम लड़की हुई जिसकी सम्भावना ज्यादा लग रही है तो क्रिमिनल डेटाबेस में उसकी कोई इन्फोर्मेशन उपलब्ध न होगी। इंटरनेट पर तो उसे वह कल से ही सर्च कर रहा था। पर जैसा कि उम्मीद थी नतीजा सिफर ही था। फिलहाल शिमला जाना उसे सही फैसला लगा। लड़की हिमाचल की थी तो उसके वहीं मौजूद होने के आसार ज्यादा थे और न भी हो तो उससे सम्बंधित कुछ बातें तो पता चलेंगी। जैसा कि मनोज ने कहा था कि आहूजा उससे मिलने हिमाचल जाया करता था, इसका मतलब लड़की खुद उससे मिलने कहीं बाहर नहीं निकली थी। फिर जब दो-तीन साल तक आहूजा सोहनगढ़ माइंस में रह रहा था, तो वैसे ही उनका आपस में मिलना-जुलना कभी नहीं हो पाया होगा। पर आहूजा कभी तो उसे कॉन्टेक्ट करता होगा। माइंस में इंटरनेट तो था। आहूजा की इंटरनेट एक्टिविटी से काफी कुछ पता चल सकता है। पर इन सब कामों के लिये रिसोर्सेज़ चाहिये थे।
राज ने फोन जेब में डाला और फिर कुर्सी रिलेक्स करके आँखें मूँद लीं।
☐☐☐
josef
Platinum Member
Posts: 5361
Joined: 22 Dec 2017 15:27

Re: Thriller मिशन

Post by josef »

ज़ाहिद और सुरेश इस वक्त अपने होटल में बैठे चीफ के साथ कॉन्फ्रेंस कॉल पर थे।
“मुझे डर था यही होने वाला है।” अभय की आवाज आई।
ज़ाहिद बोला, “सर हम सब जानते हैं कि जो राज ने सोहनगढ़ माइंस में किया वह एकदम जायज था। उसकी जगह कोई और होता, चाहे पुलिस या आर्मी, या हम में से ही कोई और होता तो भी यही करता। अगर आपके देश पर कोई न्यूक्लियर मिसाइल गिराने जा रहा होगा तो उसे रोकने के लिये मारना पड़े तो ये कोई जुर्म नहीं है।”
“हम जानते हैं! हम जानते हैं!” अभय कुछ उत्तेजित स्वर में बोला, “ राज ने जो किया, उससे हमें भी रत्ती भर आपत्ति नहीं है, पर हमारे सामने एक सिस्टम है। हमें साबित करना होगा कि वह इंटरपोल का एजेंट आतंकवादी धारणाएं रखता था। अगर उसकी जगह राज ने उस वक्त खलीली पर फायर किया होता तो आज कोई सवाल पूछने वाला नहीं होता। पर वो एक ब्रिटिश सिटिज़न था, एक इंटरपोल एजेंट था। रमन आहूजा गुप्त रूप से आतंकवादी था यह किसको पता है ? पता भी है तो सबूत किसके पास है ?”
“सर, सबूत मिल जायेंगे, इन्वेस्टिगेशन चल ही रही है, थोड़ा और जोर-शोर से रमन आहूजा के बैकग्राउंड पर काम करेंगे तो पता चल जायेगा।”
“हम भी यही चाहते हैं। तुम्हें क्या लगता है हमारी इच्छा है कि हम अपने एजेंट को इंटरनेशनल कोर्ट को सौंप दें ? प्रोटोकॉल के तहत जिसके खिलाफ इन्वेस्टिगेशन चल रही है उसको अरेस्ट या सस्पेंड करना पड़ता है या हम कोई और तरीका अपना लेते - उसे हाउस अरेस्ट वगैरह जैसा कोई और इंतजाम कर लेते। पर उसे देखो... कितना अनप्रोफेशनल बिहेवियर है! किसी मुजरिम की तरह भाग गया!”
इस बार सुरेश बोला, “सर, उसके ऊपर क्या बीत रही है यह भी समझने वाली बात है। इस वक्त उसका इमोशनल स्टेटस बहुत सेंसेटिव चल रहा है। उस मिशन में वह रिंकी के बहुत करीब आ गया था– उसे अपना सोलमेट मानने लगा था। उसकी मौत के बाद उसका क्या हाल था– वह मैंने और ज़ाहिद ने ही देखा था।”
“मुझे पता है सुरेश। जितना अच्छे से तुम दोनों राज को समझते हो, उतना न सही पर काफी कुछ मैं भी अपने एजेंटों के बारे में समझ रखता हूँ। देश के खिलाफ बहुत बड़ी साजिश चल रही है और बहुतों की जानें गई हैं। इस वक्त हम जैसे लोगों को ही मजबूत रहना होता है। मिशन के बाद राज किस हाल में था वह हम समझते हैं इसीलिए उसे छुट्टी दे रखी थी ताकि वह अपने पर्सनल प्रॉब्लम से उभर सके। उसे साइकाइट्रिक हेल्प भी दिलवाने की कोशिश की थी। खैर, वह तो उसकी जिद के कारण कामयाब न हो सकी।”
“मुझे लगता है वह इस वक्त सही सोचने की दशा में नहीं है। कुछ टाइम अकेला रहेगा फिर वापस आ जायेगा।” ज़ाहिद बोला।
“हम यह सब अंदाजा नहीं लगा सकते। राज भले ही इमोशनली कभी-कभार बहक जाता है पर वह हेड स्ट्रांग है। अगर उसने भागने का फैसला किया है तो कुछ सोचा होगा। शायद अपने ऊपर लगे इलज़ाम हटाने के लिये निकला होगा। पर ये उसकी बेवकूफी है क्योंकि वह अकेला है - यह काम नहीं कर सकता। जो मदद हम लोग कर सकते हैं वह उसे कहां मिलेगी ? और हम तो इन्वेस्टिगेशन किसी भी सूरत में करने वाले हैं।”
“तो फिर क्यों न फटाफट आहूजा के बारे में कुछ सबूत निकाले जायें ताकि राज को सीबीआई, इंटरनेशनल कोर्ट या कहीं भी भेजने की जरूरत ही न पड़े।” सुरेश ने कहा।
“अब रातों-रात तो सब कुछ नहीं हो सकता। तुम लोग भी प्लेन हाईजैकिंग के केस में लगे हो जो ज्यादा महत्वपूर्ण है।”
ज़ाहिद बोला, “कोई बात नहीं सर, दोनों काम साथ में भी हो सकते हैं, और जैसा आपने बताया आहूजा की पोस्टिंग सीबीआई ऑफिस में ही थी तो इन्वेस्टिगेशन तो वहीं से शुरू होनी चाहिये।”
“यानि तुम सीबीआई में ही इन्वेस्टिगेट करोगे ?”
“सर, अभी हमें उसके खिलाफ सबूत निकालने के लिये उसके पास्ट को इन्वेस्टिगेट करना है तो शुरुआत वहीं से करनी होगी। सीबीआई में उसका ऑफिस, और वो जहाँ रुका था आदि...”
“ठीक है! मैं राज निकेतन से बात करूँगा। इधर सीबीआई सरकार को एक्शन के रूप में ये दिखाना चाह रही है कि राज को पूछताछ के लिये अरेस्ट किया गया है और साथ में इन्वेस्टिगेशन चल रही है। अब उसके गायब होने से हमारे ऊपर सवाल उठेंगे और अगर हम यह बताएंगे कि राज इस तरह भाग गया तो फिर उसके ऊपर और सख्त कदम उठाये जा सकते हैं और उन हालातों में हम लोग भी उसकी मदद नहीं कर पायेंगे।”
“सर! मेरा तो यही सजेशन है कि सीबीआई से कुछ दिन की मोहलत ली जाये, यह कहकर कि राज अभी जिन असाइनमेंट्स पर काम कर रहा है उनको पूरा करने में कुछ टाइम लगेगा, हैंडोवर देने में टाइम लगेगा, इसलिये कुछ समय बाई इन कर लिया जाये।”
“यह सब बातें कौन समझेगा ? मिनिस्ट्री तक जब ये बात पहुंचेगी तो वह सीधे बोल देंगे – उसके सारे काम किसी और को तुरंत दो और उसे भेजो।”
“पर सर ... हमें तो यही पहलू रखकर कोशिश करनी होगी।”
कुछ क्षण की शांति के बाद अभय बोला- “शायद इसके अलावा और कोई चारा नहीं है। पर फिर हमारा एक काम और बढ़ जाता है। राज को ढूंढकर वापस लाना क्योंकि वह क्या करने निकला है और कितने समय में वापस आयेगा- हमें नहीं पता। अब उसे ढूंढने के टास्क पर किसको लगाया जाये ?”
अभय ने कहा और उसके बाद सन्नाटा छा गया। वाकई इस परिस्थिति में इस सवाल का जवाब देना आसान नहीं था।
फिर अचानक अभय खुशमिजाज स्वर में बोला, “तुम दोनों से बेहतर उसे कोई और कन्विंस नहीं कर सकता।”
“सर यह काम मैं कर सकता हूँ।” सुरेश बोला।
“तुम उसे कन्विंस जरूर कर सकते हो पर मैं नहीं चाहता उसे ढूंढने और पकड़ कर लाने के चक्कर में तुम दोनों के बीच की दोस्ती खराब हो जाये। साथ ही अब प्लेन हाईजैकिंग के साथ तुम दोनों आहूजा के खिलाफ इन्वेस्टिगेशन करोगे, इसलिये ये मुमकिन नहीं होगा।”
कुछ पल और शांति रही फिर अभय बोला, “मैं सोच रहा हूँ किसी को उस पर लगाने के लिये और जब ज़रूरत पड़े उसे तुम रीमोटली एसिस्ट करना।”
“अच्छा आईडिया है सर।” सुरेश ने कहा।
“ठीक है! फिर मैं कोशिश करता हूँ सीबीआई से कुछ समय लेने के लिये और साथ ही आहूजा के बारे में पूछताछ के लिये समय देने के लिये। बाय फ़ॉर नाओ!”
“बाय सर!” ज़ाहिद और सुरेश ने संयुक्त स्वर में कहा।
☐☐☐
josef
Platinum Member
Posts: 5361
Joined: 22 Dec 2017 15:27

Re: Thriller मिशन

Post by josef »

वर्तमान समय
हिमाचल प्रदेश
रात तक राज शिमला पहुँच चुका था।
अंतिम पड़ाव पर बस के रुकने के बाद सैलानी नीचे उतरने लगे।
राज भी अपनी सीट से उठा और चल दिया। सामान के नाम पर उसके पास सिर्फ एक हैंडबैग ही था। वह बस से बाहर आया। मौसम ठंडा था। अगस्त के महीने में बहुत ज्यादा तो नहीं पर फिर भी हिल स्टेशन होने के कारण ठंड तो थी ही।
बस स्टॉप से बाहर निकलना भी नहीं हुआ था कि होटल एजेंट्स ने जैसे उस पर हमला कर दिया।
एक एजेंट से होटल के कमरे के दाम पर मोलभाव करते हुए राज को ख्याल आया अभी डेबिट कार्ड या क्रेडिट कार्ड प्रयोग करने पर भी उसे ट्रेस किया जा सकता है। उसने अपने बटुए में चेक किया–उसके पास करीब पांच हज़ार रुपए कैश था।
उसे लगा उसने गलती की, उसे दिल्ली से ही अच्छा खासा कैश निकाल कर चलना चाहिये था।
उसने फिर इस बारे में ज्यादा सोचने की फ़िलहाल जरूरत नहीं समझी और एक एजेंट के साथ हो लिया जो उसे सस्ता रूम दिलाने का वादा कर रहा था। उसे एक सस्ते कमरे की ही तलाश थी। कोई सैर-सपाटे पर तो वह निकला नहीं था। ऐसे मौके पर अपनी कार की बहुत याद आ रही थी। देश भर में दूर-दूर तक काम के सिलिसिले में अक्सर वो अपनी कार ले जाना पसंद करता था, फिर चाहे सुरेश की कंपनी हो या अकेले। हालांकि उसे पता था प्रस्तुत हालातों में कार साथ होना उसके लिये मुसीबत बन सकता था।
वह सफर से थका हुआ था। होटल में चेकइन करके उसका थोड़ा बहुत हल्का खाना खाकर सोने का इरादा था।
एजेंट के पीछे चलते-चलते वह सड़क पर आ गया। एजेंट ने उसे अपनी बाइक के पीछे बैठा लिया और चल दिया। शिमला में अधिकतर नौजवान दंपत्ति या फिर फैमिली वाले दिखाई दे रहे थे। कई नवविवाहित जोड़े भी उनमें शुमार थे। अगस्त के महीने में भी अच्छी खासी चहल-पहल थी। आखिर शिमला उत्तर भारत के सबसे लोकप्रिय हिल स्टेशनों में से एक जो था।
राज एजेंट के बताये होटल में पहुँचा। वहाँ अपनी एक नकली आई डी से उसने चेकइन किया और खाने का ऑर्डर देकर सीधे कमरे में पहुँच गया। बाथरूम जाकर फ्रेश होने के बाद वह आराम से बैड पर लेट गया।
उसका दिमाग रेस के घोड़े की तरह दौड़ने लगा था।
आखिर शुरुआत कहाँ से हो ?
अभी तो ये भी नहीं पता कि फिलहाल आहूजा की गर्लफ्रेंड यानि आरती शिमला तो क्या हिमाचल में भी थी कि नहीं।
फिर उसे ख्याल आया कि इस बात पर तो वह पहले भी विचार कर चुका था ।
कहीं से तो शुरुआत करनी है। पर अब शुरुआत किस तरह से हो ? लड़की का स्केच ही एक जरिया था और उसको इस्तेमाल करने के लिये किसी न किसी की मदद तो ज़रूर लगेगी।
खाना आ गया। उसने जल्दी से उसे निपटाया। फिर कमरे से जुड़ी बालकनी में आकर रात के अंधेरे में देवदार के पेड़ों का दीदार करते हुए उसने एक सिगरेट सुलगा ली।
यह काम तो कोई पुलिस वाला भी कर सकता है और अपनी पुलिस में काफी जान पहचान भी है। पर ध्यान रखना होगा कि किसी ऐसे पुलिस वाले को कॉन्टेक्ट न करूँ जिसके द्वारा सीक्रेट सर्विस तक खबर पहुँच जाये।
कुछ देर सोचने के बाद उसे एक नाम ध्यान में आ गया। राजस्थान में एक फोरेंसिक एक्सपर्ट था - जय पालिवाल, जिसके साथ एक पुराने केस में उसकी ट्यूनिंग अच्छी जमी थी। पालिवाल काम में तो अच्छा था ही, काम निकलवाने में भी माहिर था। उसने राज की ‘आउट ऑफ द वे’ जाकर काफी मदद की थी।
वहीं इस काम के लिये सही रहेगा। ठीक! पर अगर लड़की क्रिमिनल बैकग्राउंड की न हुई फिर क्या किया जाये ?
वह सोच में डूब गया। उसने खत्म होती सिगरेट को अंदर आकर ऐश ट्रे में बुझाया और फिर लेट गया।
कुछ ही पल में नींद ने उसे अपने आगोश में ले लिया।
☐☐☐
वह सुबह जल्दी ही उठ गया और टहलता हुआ होटल के बाहर निकल आया और एक चाय की दुकान पर बैठकर अखबार पढ़ते हुए चाय पीने लगा। इस वक्त वह हिमाचल की राजधानी में था और उसे एक ऐसी लड़की की तलाश थी जिसका उसके पास सिर्फ स्केच मौजूद था। उसका नाम ज़रूर मालूम था पर उसके अलावा कोई और जानकारी नहीं थी। राज ने आरती नाम से हिमाचल में फेसबुक और इंटरनेट पर लड़कियां पहले ही तलाश की थीं पर यह भूस में से सुई ढूंढने जैसा काम था। उसने कई लड़कियों के प्रोफाइल देखे, कईयों पर कोई फोटो ही नहीं था या फिर किसी सेलिब्रिटी का फोटो लगा हुआ था। उसे हँसी आ गई थी। इस तरह तो असली आरती का प्रोफाइल सामने होते हुए भी वह उसे नहीं पहचान पायेगा और दूसरी सम्भावना यह भी हो सकती है कि उसने अपना प्रोफाइल डिलीट कर दिया हो।
क्या जय पालीवाल से स्केच ढूंढवाना काम आएगा ? कोशिश करने में कोई हर्ज तो नहीं और उसमें रिस्क भी कम था क्योंकि जय पालीवाल तक मेरे भागने की खबर पहुँचना मुमकिन नहीं था। क्योंकि मैं सीक्रेट सर्विस में हूँ इसलिये मेरे बारे में यह खबर मीडिया में आसानी से नहीं आने वाली ।
यह सोचते हुए उसने वहाँ एक लैंड लाइन फोन से जय का नंबर लगाया और स्केच की लड़की के बारे में पता करने का आग्रह किया। फिर उसे अपने एक ताज़ा बनाये ईमेल द्वारा स्केच भेज दिया।
हालांकि उम्मीद कम थी पर कोशिश करने में क्या जाता था। लड़की क्रिमिनल न सही अगर गुमशुदा भी हुई तो भी पता चल सकता था।
चाय पीने के बाद राज होटल में वापस जाने की बजाय शहर में घूमने लगा। ठंड में उसे सुस्ती महसूस हो रही थी जिसे भगाने के लिये और अपने दिमाग को निरंतर दौड़ाते रहने के लिये उसे घूमते रहना बेहतर लग रहा था।
ठंड अच्छी-खासी थी। उसने जैकेट की ज़िप ऊपर तक बंद कर ली और हाथ जेबों में डालकर तेजी से चलने लगा। सड़कों पर लोग बाग बेहद कम दिख रहे थे। यकीनन सैलानी अभी भी अपने-अपने होटलों में बिस्तरों की आगोश में थे।
राज के मन में अनेकों विचार तेज नदी के प्रवाह की तरह बहते चले जा रहे थे। वह आहूजा को याद कर रहा था। उसके मन में यह सवाल कौंध रहा था कि क्या वाकई उसने आहूजा को जान से मार कर सही कदम उठाया था ?
मैं उसके पैर या हाथ पर भी फ़ायर कर सकता था। उसे जान से मारने की जगह इतना घायल कर सकता था कि उसके कदम रुक जाते। वह कोई बुरा इंसान नहीं था, वह अपनी जान पर खेलकर दो साल से माइंस में रह रहा था और खलीली और उसके प्लान के खिलाफ ही काम कर रहा था हालांकि खलीली से बड़ा मास्टरमाइंड तो वह खुद था, जो वक्त रहते पासा पलटने की फिराक में था । पर एक बात समझ में नहीं आ रही कि अगर आहूजा भी इस बात से सहमत था कि भारत के अंदर न्यूक्लियर हमले हों तो फिर उसने खलीली को रोका ही क्यों ? क्या शुरू से ही उसका यहीं प्लान था या फिर उसी वक्त उसे यह ख्याल आया ? नहीं! सब कुछ पहले से प्लांड था क्योंकि यह बात चौधरी भी जानता था और वह उस प्लान का भागीदार था। आहूजा की कहानी सुनकर लगा था उसने लाइफ में काफी कुछ झेला था । उसका बचपन आसान नहीं था और उस नाज़ुक उम्र में हुए कुछ हादसे मन को इस तरह प्रभावित करते हैं कि इंसान की सोच समझ कुछ अलग ही हो जाती हैं । कुछ ऐसा ही आहूजा के साथ हुआ था । उसके पिता की मौत का उसके मनोभाव पर बेहद गहरा प्रभाव हुआ था और ऐसा किसी के भी साथ हो सकता है। वह उसे रोक सकता था उसको बाद में समझाया जा सकता था।
सच में अगर देखा जाये तो उसे मारने के बाद से मेरे साथ कुछ भी अच्छा नहीं हुआ है । उसके तुरंत बाद ही मैंने रिंकी को खो दिया और अब तो साला करियर दांव पर लगा हुआ है। शायद मुझे मेरे कर्मों का फल मिल रहा है । शायद जो कुछ बुरा मेरे साथ हो रहा है- मैं उसका हकदार हूँ।
सोचते-सोचते राज दौड़ने लगा। उसका मन उद्वेलित था। वह अपने मन में कौंधते उन विचारों को अपने शरीर के वेग से जैसे पछाड़ देना चाहता था।
कुछ देर लगातार दौड़ने के बाद उसकी सांस फूलने लगी और वह रुककर तेज-तेज सांस लेने लगा।
नहीं! मैंने जो किया सही किया। उस वक्त मैं देश का आम नागरिक नहीं एक सैनिक था, जिसे हर हालत में देश की रक्षा करनी थी। भले ही किसी की भी बलि चढ़ जाती। सैनिक दुश्मन पर गोली चलाने से पहले यह नहीं सोचता कि उसके दुश्मन का भी परिवार है, उसकी भी एक जिंदगी है। यह उसकी ड्यूटी होती है कि अपने देश के दुश्मन को खत्म करे। दुश्मन को मारना पाप नहीं होता।
राज शायद खुद को समझाने की कोशिश कर रहा था। पर उसे अपने मन को दिलासा देना मुश्किल हो रहा था।
अपने उद्वेलित मन और तेज सांसों को नियंत्रित करते हुए वह सड़क किनारे एक बेंच पर बैठ गया। कुछ देर वहाँ सुस्ताने के बाद वह उठा और वापस होटल की तरफ बढ़ गया।
होटल पहुँच कर कुछ देर टीवी देखने के उपरांत दोपहर उसने जय पालीवाल को फोन किया।
उसने तुरंत फोन का जवाब दिया।
“ राज भाई!”
“कुछ पता चला ?”
“हां! पता तो चला। एक बात बताओ वह आपकी जानने वाली तो नहीं थी ?”
“क्यों क्या हुआ ?”
“जो खबर मिली है वह अच्छी नहीं है पर मुझे लगता है आप प्रोफेशनली ही इसे ढूंढ रहे होंगे।”
“तुम्हारा सोचना सही है। जानने वाली होती तो मैं उसके बारे में पूरी तरह से जीरो नहीं होता। अब बताओ क्या पता चला ?”
“यह बात भी ठीक है। दरअसल यह लड़की पहले गुमशुदा थी और फिर इसकी लाश पाई गई थी।”
“ओह!” राज के मुंह से अफसोस भरा स्वर निकला। “हुआ क्या था ?”
“लड़की ने नदी में कूदकर सुसाइड कर ली थी।”
“कब की बात है ?”
“अभी पिछले महीने की।”
राज निःशब्द हो गया।
यकीनन यह आहूजा की गर्लफ्रेंड ही थी, जिसने उसकी मौत की खबर मिलने के बाद खुदकुशी कर ली।
“किस शहर की रहने वाली थी और कहां हुआ ये हादसा ?”
“मंडी की रहने वाली थी और मंडी में ही यह हादसा हुआ था।”
आगे बढ़ने का जो एक सहारा था वह भी गया। अब क्या किया जाये ? जाकर देखना होगा। डूबते को तिनके का सहारा ही काफी है। शायद मंडी जाकर कुछ पता चल सके।
“क्या हुआ भाई ? कुछ और आदेश ?”
“मुझे उसका एड्रेस वगैरह बताओ।”
जय ने बताया जिसे राज ने अपने फोन में लिख लिया। फिर दुआ-सलाम के साथ कॉल समाप्त की।
फोन रखकर वह कुछ पल होटल के काउंटर पर ही ठगा-सा खड़ा रह गया।
मेरी वजह से सिर्फ आहूजा ही नहीं बल्कि एक बेगुनाह की मौत भी हो गई। अगर आहूजा आज ज़िंदा होता, भले ही जेल में होता, तो वो भी ज़िंदा होती। क्योंकि जेल जाने के बाद भी उसके वापस आने की आस होती, कुछ नहीं तो उसे मुज़रिम जानकर छोड़ देती, भुला देती, फिर भी जिंदा होती।
“सर आप ठीक हैं ?”
काउंटर बॉय की आवाज़ ने उसका ध्यान आकर्षित किया।
“हाँ!”
“कुछ सेवा की जाए ?”
“हाँ! बिल बना दो। चैक आउट करना है।”
उसने राज के इस अप्रत्याशित निर्णय से चौंककर उसे देखा पर राज का ध्यान कहीं और था। वह किसी गहरी उधेड़बुन में खोया हुआ था।
☐☐☐
Post Reply