रात का स्याह अंधेरा अब शनैः-शनैः क्षीण होता जा रहा था। पूरब की दिशा में आसमान धीरे-धीरे हल्का नीला रंग ले रहा था। ठंड अभी भी काफी थी।
राज और आरती मैक्लोइड गंज से अब कुछ ही दूर थे।
आरती व्यग्रता के साथ आगे बढ़ रही थी जबकि राज ठंड में ठिठुरते हुए उसके पीछे था।
“धीरे चलो यार, यहाँ ठंड से हालत खराब है।”
“एक बार शहर पहुँच जायें। फिर तुम्हें गर्मागर्म चाय पिलाऊंगी। पर फिलहाल जितना तेज चल सकते हो चलते चलो। उन लोगों का कोई भरोसा नहीं।”
“ऐसा क्यों लग रहा है–तुम उसे जानती हो।”
“तुम प्लीज़ अपना जासूसी दिमाग ज़रा कम चलाओ।”
“कुछ तो बात करते चलो। कम से कम ठंड से तो ध्यान हटेगा। सच बताओ –कौन था वो पिद्दी पहलवान ?”
आरती हंस दी।
“हम दोनों की जान लेने को तैयार था वो। दुबारा मिलेगा तब बताऊंगा उसे। जेल की हवा न खिलाई...”
तभी एक शोला चमका।
दोनों फुर्ती के साथ झुक गए।
“फायरिंग! वो भी साइलेंसर के साथ!” राज पीछे मुड़कर देखते हुए बोला।
“लगता है वो लोग आ गए।” आरती भयभीत होते हुए बोली।
“पर कैसे ? अभी तक तो कोई पीछे आता नहीं दिख रहा था।” राज ने अपना पिस्टल निकाल लिया। दोनों एक पेड़ की ओट में हो गये। राज झांकते हुए निशाना लेने की कोशिश करने लगा। अंधेरे में कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था।
“हमें आगे बढ़ते रहना चाहिये।” आरती ने कहा, “वरना फंस जायेंगे।”
राज ने उसका सुझाव स्वीकारा। दोनों मुख्य रास्ते के किनारे पेड़ों के बीच होते हुए आगे बढ़ने लगे।
तभी राज चिहुंक उठा।
“तुम ठीक तो हो ?” आरती ने पूछा।
“हां चलो... चलो...” राज लड़खड़ाते हुए बोला और अचानक ही उसका सिर चकराने लगा और वह गिर पड़ा।
“अमन... अमन...” आरती ने उसे टटोला तो उसे उसकी पीठ पर चिपचिपापन महसूस हुआ। उसने अपना हाथ चाँद की रोशनी में देखा–वह खून से सना हुआ था।
☐☐☐
Thriller मिशन
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Re: Thriller मिशन
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वर्तमान समय
नई दिल्ली
ज़ाहिद और सुरेश पुरानी दिल्ली के दरयागंज पुलिस स्टेशन पहुँचे। वहाँ मौजूद एसएचओ जगजीत पंत को अपना परिचय देने के बाद सुरेश बोला-
“एसएचओ साहब! हमें कुछ साल पहले दर्ज एक मर्डर के बारे में जानना है।”
“ज़रूर जनाब! केस के बारे में कुछ बताइए। मैं फ़ाइल निकलवाता हूँ।”
“शमशेर सिंह नामक एक आदमी को उसके घर में जिन्दा जलाकर मार दिया गया था। केस आज से करीब पांच साल पहले का होगा।”
“तब तो मैं इस जगह पोस्टेड भी नहीं था, पर फ़ाइल तो मिल ही जायेगी।”
एसएचओ पंत ने एक कर्मचारी को बुलाकर निर्देश दिया। फ़ाइल ढूंढने में करीब आधा घंटा लग गया।
फ़ाइल के आते ही वे उसका अध्ययन करने लगे। पता चला कि शमशेर सिंह को रात के वक़्त उसके घर के अन्दर किसी ने जला दिया था। अपराधी आज तक पकड़ा नहीं गया। पर इस बात की पुष्टि हुई थी कि वहाँ दो आदमी आये थे और उन्होंने पेट्रोल का प्रयोग कर उसे जलाया था।
पढ़ते हुए सुरेश सोच में पड़ गया। “पेट्रोल से जलाया...आखिर क्यों ?”
“सुनकर तो दुश्मनी का केस लग रहा है। इतनी बेदर्दी से तो कोई दुश्मनी निकालने के लिये ही मार सकता है।” पंत ने सुझाव दिया।
“आहूजा के पिता को भी जलाकर मारा गया था।” सुरेश ज़ाहिद की तरफ देखते हुए बोला।
“शमशेर सिंह!” ज़ाहिद ने फोन निकला और गूगल में सर्च करने लगा। कुछ देर बाद वो बोला, “तुमने एकदम सही पकड़ा। उसके ऊपर कई साल पहले एक आईएएस अफसर को जलाकर मारने का केस चला था, जिसमे हाईकोर्ट से उसे क्लीन चिट मिल गई थी।”
“यानि आहूजा ने अपने पिता की मौत का बदला लिया।”
“ऐसा ही लग रहा है।” ज़ाहिद बोला।
“मैं उसका घर देखना चाहता हूँ।” सुरेश बोला।
“लेकिन, अभी पांच साल बाद वहाँ क्या मिलेगा ?” पंत ने कहा।
“कभी-कभी सबूत के अलावा भी कुछ ऐसी बातें पता चल जाती हैं जिनसे कुछ रहस्य सुलझाये जा सकते हैं।”
“चलो फिर चला जाये।” कहकर ज़ाहिद उठा। “इस फ़ाइल की एक कॉपी निकलवा दीजिये।”
कुछ देर में वे दोनों पंत और एक कांस्टेबल के साथ कबूतर मार्केट पहुँचे, जहाँ शमशेर सिंह का घर हुआ करता था।
मार्केट में जगह-जगह मुर्गे, बकरे, खरगोश, और न जाने कौन-कौन से किस्म के जानवर और पक्षी बिक रहे थे।
शमशेर सिंह का घर दुकानों के ऊपर एक दो कमरे की जगह थी जहाँ अभी एक कसाई अपने परिवार के साथ रह रहा था। पुलिस को देखकर कसाई और उसका परिवार डर गया पर फिर पंत ने उन्हें समझाया कि वे किस वजह से वहाँ आये थे। सुनकर वह भी स्तब्ध रह गया क्योंकि उसे भी पांच साल पहले हुए उस हादसे के बारे में कोई जानकारी नहीं थी।
वे लोग कमरे में जा खड़े हुए जो कि वहीं बेडरूम था जहाँ शमशेर सिंह की मौत हुई थी।
सुरेश और ज़ाहिद चारों तरफ ध्यान से देखने लगे। कमरे से निकलकर वह छोटी-सी बालकनी में पहुँचे। बालकनी बगल वाले घर से जुड़ी हुई थी दोनों के बीच बस एक छोटी-सी रेलिंग थी।
“रिपोर्ट के हिसाब से शमशेर सिंह बालकनी का दरवाजा खोलकर सो रहा था और क़ातिल बालकनी के ज़रिये पहुँचे थे।”
“बगल वाला घर किसका है ?”
“सालों से खाली पड़ा है। मालिक ने अभी तक जगह बेची नहीं और न ही रिनोवेट करने के बारे में विचार किया।”
“यानि अन्दर आना कोई बड़ी बात नहीं थी।” ज़ाहिद बोला।
“शमशेर करता क्या था ?” सुरेश ने पूछा।
पंत फ़ाइल देखकर बोला, “वह इसी मार्केट में पालतू पक्षी बेचता था।”
“क़त्ल की प्लानिंग के लिये क़ातिल ने ज़रूर उसके घर और दुकान विज़िट की होगी। वो अकेला काम करता था या उसके साथ कोई और था ?”
“इस तरह के काम में कोई न कोई साथ तो होगा ही।” ज़ाहिद बोला।
पंत बोला, “इसमे ललित नाम के किसी बन्दे का बयान है। वह उसके बिजनस में साथी था। उसका एड्रेस दिया है। यहीं पास का है।”
“बढ़िया!” सुरेश बोला, “ उससे मिलने चलते हैं।”
वहाँ से वे लोग ललित के एड्रेस पर पहुँचे। वहाँ पता चला वह किसी और जगह शिफ्ट हो चुका था। उसके नये पते पर पहुँचकर पता चला कि वह फ़िलहाल मार्केट में ही काम पर निकला था।
उसकी दुकान पर पहुँचकर उन्हें ललित मिला। वहाँ कई पिंजरे थे जिसमे तरह-तरह के खरगोश कैद थे।
ललित चालीस के लपेटे में पहुँचा एक नाटा-सा आदमी था। उसकी दाढ़ी बढ़ी थी। उसने एक बनियान और पेंट पहन रखी थी।
“तो तुम खरगोश बेचते हो।” पंत पिंजरों को देखते हुए बोला।
“जी! कई सालों से बेच रहा हूँ। कोई गलती हो गई मालिक ?” पुलिस को देखकर वह घबरा गया था।
“घबराओ नहीं!” सुरेश बोला, “तुम पहले शमशेर के साथ काम करते थे ?”
शमशेर का नाम सुनकर उसके चेहरे पर कई रंग बदले। “सालों पुरानी याद दिला दी साहब आपने। जी हाँ! हम दोनों साथ में काम करते थे, इसी मार्केट में। पर शमशेर...”
“इन्हें देखो...” सुरेश ने अपने फोन पर कई फोटो दिखाई। वे निक और आहूजा की असली और रज़ा मालिक के भेष में थीं।
वह सर खुजाने लगा।
“ध्यान से देखो, आराम से देखो। ये पांच साल पहले तुम्हारी दुकान पर ज़रूर आये होंगे। शायद अकेले या साथ में, किसी और रूप में, हो सकता है अच्छे कपड़े न पहने हों।” सुरेश ने उसे फोन पकड़ा दिया।
वह फोटो बदल-बदल कर बार-बार देखने लगा।
“शमशेर की हत्या से शायद कुछ ही दिन पहले आये होंगे।” ज़ाहिद बोला।
उसने आहूजा की रज़ा मलिक के भेष वाली फोटो दिखाते हुए कहा- “मुझे लग रहा है ये आदमी आया था दो दिन पहले। इसने एक खरगोश खरीदा था और सवाल बहुत पूछ रहा था इसलिये मुझे अभी तक याद है। कुछ नहीं तो इसने आधा घंटा बिताया था मेरे और शमशेर के साथ दुकान पर।”
“बहुत बढ़िया!” कहते हुए सुरेश की नज़रें ज़ाहिद से मिलीं।
वे दोनों समझ सकते थे कि आहूजा के खिलाफ ये पहला पुख्ता सबूत था।
उन्होंने एसएचओ को उसे थाने ले जाकर उसका लिखित बयान लेने को कहा और फिर वहाँ से निपटने के बाद उन्होंने अभय को फोन किया।
“बोलो सुरेश!”
“सर हमें आहूजा के खिलाफ एक मर्डर का सबूत मिला है।”
पूरी बात सुनने के बाद अभय बोला, “लीड तो अच्छा है, पर अभी भी वो क़ातिल साबित नहीं हुआ है।”
“अग्री! पर सर...”
“साथ ही इंटरपोल को उसके आतंकवादी होने के सबूत चाहिये, क़ातिल होने से कुछ ख़ास फर्क नहीं पड़ने वाला। बट गुड जॉब एनीवे...उसके आईएसआई में शामिल होने के पुख्ता सबूत मिलना भी कुछ काम आ सकता है।”
“हमारा एक मोल उसकी जानकारी निकाल रहा है।”
“पर सबूत क्या देगा ? कुछ फोटो, रिकार्डिंग, ये सब अब उसके मरने के बाद निकालना मुश्किल है। पर अगर ऐसा कुछ मिल सके तो ये हमारे लिये कामयाबी होगी।”
“सर इस तरह तो सोहनगढ़ माइंस में उसकी प्रेज़ेंस खुद ही बड़ा सबूत है। आखिर इंटरपोल की जानकारी के बगैर वह किस कैपेसिटी में वहाँ मौजूद था ? आखिर वह वहाँ आतंकवादियों के साथी के तौर पर मौजूद था।”
“ये दलील तो पहले भी दी जा चुकी है पर बात फिर वहीं आकर रुक जाती है न कि उसे मारने के लिये हमारे पास क्या वजह थी और उस वजह का सबूत क्या था ? इसलिये अगर उसके आईएसआई में भर्ती होने का सबूत भी मिल सके तो अच्छा रहेगा।”
“जी सर! कोशिश कर रहे हैं।”
“और क्या चल रहा है ? धर्मशाला कब जाने वाले हो ?”
“यहाँ कुछ काम बने फिर वहाँ जाने ...”
“मेरे ख्याल से अभी जहाँ का लीड मिल रहा है उधर आगे बढ़ना चाहिये। इस मर्डर पर पुलिस को काम सँभालने दो और आईएसआई में अपने मोल को काम करने दो, सबूत जुटाने दो, तुम लोग धर्मशाला में आगे बढ़ो।”
“ओके सर! कोमजुम लोल्लेन का क्या रहा ?”
“उस तरफ चार लोगों की एक टीम काम कर रही है। कुछ ब्रेकथ्रू मिलते ही तुम दोनों को इत्तला करते हैं।”
“ओके सर!”
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नई दिल्ली
ज़ाहिद और सुरेश पुरानी दिल्ली के दरयागंज पुलिस स्टेशन पहुँचे। वहाँ मौजूद एसएचओ जगजीत पंत को अपना परिचय देने के बाद सुरेश बोला-
“एसएचओ साहब! हमें कुछ साल पहले दर्ज एक मर्डर के बारे में जानना है।”
“ज़रूर जनाब! केस के बारे में कुछ बताइए। मैं फ़ाइल निकलवाता हूँ।”
“शमशेर सिंह नामक एक आदमी को उसके घर में जिन्दा जलाकर मार दिया गया था। केस आज से करीब पांच साल पहले का होगा।”
“तब तो मैं इस जगह पोस्टेड भी नहीं था, पर फ़ाइल तो मिल ही जायेगी।”
एसएचओ पंत ने एक कर्मचारी को बुलाकर निर्देश दिया। फ़ाइल ढूंढने में करीब आधा घंटा लग गया।
फ़ाइल के आते ही वे उसका अध्ययन करने लगे। पता चला कि शमशेर सिंह को रात के वक़्त उसके घर के अन्दर किसी ने जला दिया था। अपराधी आज तक पकड़ा नहीं गया। पर इस बात की पुष्टि हुई थी कि वहाँ दो आदमी आये थे और उन्होंने पेट्रोल का प्रयोग कर उसे जलाया था।
पढ़ते हुए सुरेश सोच में पड़ गया। “पेट्रोल से जलाया...आखिर क्यों ?”
“सुनकर तो दुश्मनी का केस लग रहा है। इतनी बेदर्दी से तो कोई दुश्मनी निकालने के लिये ही मार सकता है।” पंत ने सुझाव दिया।
“आहूजा के पिता को भी जलाकर मारा गया था।” सुरेश ज़ाहिद की तरफ देखते हुए बोला।
“शमशेर सिंह!” ज़ाहिद ने फोन निकला और गूगल में सर्च करने लगा। कुछ देर बाद वो बोला, “तुमने एकदम सही पकड़ा। उसके ऊपर कई साल पहले एक आईएएस अफसर को जलाकर मारने का केस चला था, जिसमे हाईकोर्ट से उसे क्लीन चिट मिल गई थी।”
“यानि आहूजा ने अपने पिता की मौत का बदला लिया।”
“ऐसा ही लग रहा है।” ज़ाहिद बोला।
“मैं उसका घर देखना चाहता हूँ।” सुरेश बोला।
“लेकिन, अभी पांच साल बाद वहाँ क्या मिलेगा ?” पंत ने कहा।
“कभी-कभी सबूत के अलावा भी कुछ ऐसी बातें पता चल जाती हैं जिनसे कुछ रहस्य सुलझाये जा सकते हैं।”
“चलो फिर चला जाये।” कहकर ज़ाहिद उठा। “इस फ़ाइल की एक कॉपी निकलवा दीजिये।”
कुछ देर में वे दोनों पंत और एक कांस्टेबल के साथ कबूतर मार्केट पहुँचे, जहाँ शमशेर सिंह का घर हुआ करता था।
मार्केट में जगह-जगह मुर्गे, बकरे, खरगोश, और न जाने कौन-कौन से किस्म के जानवर और पक्षी बिक रहे थे।
शमशेर सिंह का घर दुकानों के ऊपर एक दो कमरे की जगह थी जहाँ अभी एक कसाई अपने परिवार के साथ रह रहा था। पुलिस को देखकर कसाई और उसका परिवार डर गया पर फिर पंत ने उन्हें समझाया कि वे किस वजह से वहाँ आये थे। सुनकर वह भी स्तब्ध रह गया क्योंकि उसे भी पांच साल पहले हुए उस हादसे के बारे में कोई जानकारी नहीं थी।
वे लोग कमरे में जा खड़े हुए जो कि वहीं बेडरूम था जहाँ शमशेर सिंह की मौत हुई थी।
सुरेश और ज़ाहिद चारों तरफ ध्यान से देखने लगे। कमरे से निकलकर वह छोटी-सी बालकनी में पहुँचे। बालकनी बगल वाले घर से जुड़ी हुई थी दोनों के बीच बस एक छोटी-सी रेलिंग थी।
“रिपोर्ट के हिसाब से शमशेर सिंह बालकनी का दरवाजा खोलकर सो रहा था और क़ातिल बालकनी के ज़रिये पहुँचे थे।”
“बगल वाला घर किसका है ?”
“सालों से खाली पड़ा है। मालिक ने अभी तक जगह बेची नहीं और न ही रिनोवेट करने के बारे में विचार किया।”
“यानि अन्दर आना कोई बड़ी बात नहीं थी।” ज़ाहिद बोला।
“शमशेर करता क्या था ?” सुरेश ने पूछा।
पंत फ़ाइल देखकर बोला, “वह इसी मार्केट में पालतू पक्षी बेचता था।”
“क़त्ल की प्लानिंग के लिये क़ातिल ने ज़रूर उसके घर और दुकान विज़िट की होगी। वो अकेला काम करता था या उसके साथ कोई और था ?”
“इस तरह के काम में कोई न कोई साथ तो होगा ही।” ज़ाहिद बोला।
पंत बोला, “इसमे ललित नाम के किसी बन्दे का बयान है। वह उसके बिजनस में साथी था। उसका एड्रेस दिया है। यहीं पास का है।”
“बढ़िया!” सुरेश बोला, “ उससे मिलने चलते हैं।”
वहाँ से वे लोग ललित के एड्रेस पर पहुँचे। वहाँ पता चला वह किसी और जगह शिफ्ट हो चुका था। उसके नये पते पर पहुँचकर पता चला कि वह फ़िलहाल मार्केट में ही काम पर निकला था।
उसकी दुकान पर पहुँचकर उन्हें ललित मिला। वहाँ कई पिंजरे थे जिसमे तरह-तरह के खरगोश कैद थे।
ललित चालीस के लपेटे में पहुँचा एक नाटा-सा आदमी था। उसकी दाढ़ी बढ़ी थी। उसने एक बनियान और पेंट पहन रखी थी।
“तो तुम खरगोश बेचते हो।” पंत पिंजरों को देखते हुए बोला।
“जी! कई सालों से बेच रहा हूँ। कोई गलती हो गई मालिक ?” पुलिस को देखकर वह घबरा गया था।
“घबराओ नहीं!” सुरेश बोला, “तुम पहले शमशेर के साथ काम करते थे ?”
शमशेर का नाम सुनकर उसके चेहरे पर कई रंग बदले। “सालों पुरानी याद दिला दी साहब आपने। जी हाँ! हम दोनों साथ में काम करते थे, इसी मार्केट में। पर शमशेर...”
“इन्हें देखो...” सुरेश ने अपने फोन पर कई फोटो दिखाई। वे निक और आहूजा की असली और रज़ा मालिक के भेष में थीं।
वह सर खुजाने लगा।
“ध्यान से देखो, आराम से देखो। ये पांच साल पहले तुम्हारी दुकान पर ज़रूर आये होंगे। शायद अकेले या साथ में, किसी और रूप में, हो सकता है अच्छे कपड़े न पहने हों।” सुरेश ने उसे फोन पकड़ा दिया।
वह फोटो बदल-बदल कर बार-बार देखने लगा।
“शमशेर की हत्या से शायद कुछ ही दिन पहले आये होंगे।” ज़ाहिद बोला।
उसने आहूजा की रज़ा मलिक के भेष वाली फोटो दिखाते हुए कहा- “मुझे लग रहा है ये आदमी आया था दो दिन पहले। इसने एक खरगोश खरीदा था और सवाल बहुत पूछ रहा था इसलिये मुझे अभी तक याद है। कुछ नहीं तो इसने आधा घंटा बिताया था मेरे और शमशेर के साथ दुकान पर।”
“बहुत बढ़िया!” कहते हुए सुरेश की नज़रें ज़ाहिद से मिलीं।
वे दोनों समझ सकते थे कि आहूजा के खिलाफ ये पहला पुख्ता सबूत था।
उन्होंने एसएचओ को उसे थाने ले जाकर उसका लिखित बयान लेने को कहा और फिर वहाँ से निपटने के बाद उन्होंने अभय को फोन किया।
“बोलो सुरेश!”
“सर हमें आहूजा के खिलाफ एक मर्डर का सबूत मिला है।”
पूरी बात सुनने के बाद अभय बोला, “लीड तो अच्छा है, पर अभी भी वो क़ातिल साबित नहीं हुआ है।”
“अग्री! पर सर...”
“साथ ही इंटरपोल को उसके आतंकवादी होने के सबूत चाहिये, क़ातिल होने से कुछ ख़ास फर्क नहीं पड़ने वाला। बट गुड जॉब एनीवे...उसके आईएसआई में शामिल होने के पुख्ता सबूत मिलना भी कुछ काम आ सकता है।”
“हमारा एक मोल उसकी जानकारी निकाल रहा है।”
“पर सबूत क्या देगा ? कुछ फोटो, रिकार्डिंग, ये सब अब उसके मरने के बाद निकालना मुश्किल है। पर अगर ऐसा कुछ मिल सके तो ये हमारे लिये कामयाबी होगी।”
“सर इस तरह तो सोहनगढ़ माइंस में उसकी प्रेज़ेंस खुद ही बड़ा सबूत है। आखिर इंटरपोल की जानकारी के बगैर वह किस कैपेसिटी में वहाँ मौजूद था ? आखिर वह वहाँ आतंकवादियों के साथी के तौर पर मौजूद था।”
“ये दलील तो पहले भी दी जा चुकी है पर बात फिर वहीं आकर रुक जाती है न कि उसे मारने के लिये हमारे पास क्या वजह थी और उस वजह का सबूत क्या था ? इसलिये अगर उसके आईएसआई में भर्ती होने का सबूत भी मिल सके तो अच्छा रहेगा।”
“जी सर! कोशिश कर रहे हैं।”
“और क्या चल रहा है ? धर्मशाला कब जाने वाले हो ?”
“यहाँ कुछ काम बने फिर वहाँ जाने ...”
“मेरे ख्याल से अभी जहाँ का लीड मिल रहा है उधर आगे बढ़ना चाहिये। इस मर्डर पर पुलिस को काम सँभालने दो और आईएसआई में अपने मोल को काम करने दो, सबूत जुटाने दो, तुम लोग धर्मशाला में आगे बढ़ो।”
“ओके सर! कोमजुम लोल्लेन का क्या रहा ?”
“उस तरफ चार लोगों की एक टीम काम कर रही है। कुछ ब्रेकथ्रू मिलते ही तुम दोनों को इत्तला करते हैं।”
“ओके सर!”
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Re: Thriller मिशन
रात्रि का समय था। हिंद महासागर में गज़ब का तूफ़ान आया हुआ था। रह-रहकर बिजली कड़क रही थी। निरंतर बारिश हो रही थी। लहरें कई-कई फिट ऊँची उठ रही थी।
ऐसे मौसम में वाकई वह स्टीमर काबिले तारीफ था जो कि किसी तरह उन लहरों में भी पलटने और डूबने से बचाये हुए था। शायद ये उसके चालक की कुशाग्रता थी। लहरों के उठने से पहले ही उन्हें भांपकर वह स्टीमर को नेविगेट कर रहा था।
अचानक स्टीमर की लाईट में उसे समुद्र में कुछ चमका। वह एक स्लेटी रंग की धातु से बनी कोई चीज़ थी।
उसने स्टीमर को उसकी ओर किया।
पास आने पर उसे उस चीज़ का बेहतर दीदार मिला।
वह उसे पहचान गया। वह प्लेन का फ्युसिलाज था।
वह केबिन के अंदर गया और जब कुछ देर बाद बाहर आया तो उसके शरीर पर स्कूबा डाइविंग की पोशाक थी। उसने बाहर ही एक कोने में रखी वह जैकेट पहन ली जिस पर गैस सिलेंडर लगे हुए थे। फिर उसने मास्क धारण किया और नाक की जगह मुंह से सांस खींचने लगा।
उसके बाद वह स्टीमर पर लगी सीढ़ियों से समुद्र में उतर गया।
अथाह काले पानी के अंदर वह उतरता चला गया। उसके मास्क के ऊपर लगी लाईट उसे पानी के अंदर देखने में सहायक अवश्य थी पर फिर भी रात के इस अँधेरे में कुछ भी देख पाना काफी कठिन था।
कुछ और फिट नीचे उतरने के बाद उसे मछलियाँ नज़र आईं जो इस आगंतुक को देखकर कुछ भयभीत थीं।
कुछ देर प्रयास करते रहने के बाद भी उसे कुछ खास नज़र नहीं आया तो वह सतह की तरफ अग्रसर हुआ।
ऊपर आने के बाद उसने देखा वह बोट से कुछ दूर आ गया था।
उसने समुद्र की सतह पर दूर-दूर तक देखने का प्रयास किया। फिर एक तरफ उसे कुछ चमका। कुछ तैर रहा था। वह उस तरफ बढ़ गया।
कुछ देर तैरने के बाद वह वहाँ पहुँचा।
उस वस्तु के नज़दीक पहुँचने के बाद वह हैरान रह गया। वह पानी में तैरती एक लाश थी। उसने ध्यान दिया उसके बाल लंबे थे–वह एक बच्ची थी, उसने लाइफ जैकेट पहनी हुई थी इसलिये वह डूबी नहीं थी।
उसने उसका चेहरा अपनी तरफ पलटाया।
उसका चेहरा देखते ही वह सकते में आ गया।
“फ़लक! नहीं! नहीं! मेरी बच्ची! क्या...क्या हो गया तुझे....” वह उसके गाल थपथपाने लगा.
“कुछ नहीं होने दूंगा तुझे मेरी जान!” वह उसे खींचते हुए बोट की तरफ तैरने लगा।
कुछ देर बाद वह उसे लेकर बोट पर पहुँच गया।
बुरी तरह हाँफते हुए उसने उसका शरीर बोट पर लेटा दिया। उसका पूरा शरीर एकदम सफ़ेद पड़ा था– मानो पूरा खून जम चुका हो।
पर वो उसे ज़िंदा करने पर आमादा था। वह उसकी छाती पर हाथों से स्पंदन करने लगा। लड़की के शरीर में काफी पानी भरा था जो उसके मुंह से निकलने लगा।
“उठ जा...मेरी जान! फ़लक! मेरी बच्ची! देख–तेरे डैडी ने तुझे ढूंढ लिया। उठ जा, बच्ची!”
तभी पीछे से उसके कंधे को किसी ने थपथपाया।
“वो मर चुकी है। हौसला रखो मेरे भाई!”
“ऐसे कैसे मर सकती है वो ? अभी तो उसने ज़िंदगी ढंग से जी भी नहीं। कुछ नहीं होगा उसे। देखना ये अभी उठ बैठेगी।” वह उसी तरह निरंतर उसकी छाती पर स्पंदन करते हुए बोला।
“क्या कह रहे हो ? क्या हुआ है तुम्हें ?” वह उसे झकझोरते हुए बोला।
ऐसे मौसम में वाकई वह स्टीमर काबिले तारीफ था जो कि किसी तरह उन लहरों में भी पलटने और डूबने से बचाये हुए था। शायद ये उसके चालक की कुशाग्रता थी। लहरों के उठने से पहले ही उन्हें भांपकर वह स्टीमर को नेविगेट कर रहा था।
अचानक स्टीमर की लाईट में उसे समुद्र में कुछ चमका। वह एक स्लेटी रंग की धातु से बनी कोई चीज़ थी।
उसने स्टीमर को उसकी ओर किया।
पास आने पर उसे उस चीज़ का बेहतर दीदार मिला।
वह उसे पहचान गया। वह प्लेन का फ्युसिलाज था।
वह केबिन के अंदर गया और जब कुछ देर बाद बाहर आया तो उसके शरीर पर स्कूबा डाइविंग की पोशाक थी। उसने बाहर ही एक कोने में रखी वह जैकेट पहन ली जिस पर गैस सिलेंडर लगे हुए थे। फिर उसने मास्क धारण किया और नाक की जगह मुंह से सांस खींचने लगा।
उसके बाद वह स्टीमर पर लगी सीढ़ियों से समुद्र में उतर गया।
अथाह काले पानी के अंदर वह उतरता चला गया। उसके मास्क के ऊपर लगी लाईट उसे पानी के अंदर देखने में सहायक अवश्य थी पर फिर भी रात के इस अँधेरे में कुछ भी देख पाना काफी कठिन था।
कुछ और फिट नीचे उतरने के बाद उसे मछलियाँ नज़र आईं जो इस आगंतुक को देखकर कुछ भयभीत थीं।
कुछ देर प्रयास करते रहने के बाद भी उसे कुछ खास नज़र नहीं आया तो वह सतह की तरफ अग्रसर हुआ।
ऊपर आने के बाद उसने देखा वह बोट से कुछ दूर आ गया था।
उसने समुद्र की सतह पर दूर-दूर तक देखने का प्रयास किया। फिर एक तरफ उसे कुछ चमका। कुछ तैर रहा था। वह उस तरफ बढ़ गया।
कुछ देर तैरने के बाद वह वहाँ पहुँचा।
उस वस्तु के नज़दीक पहुँचने के बाद वह हैरान रह गया। वह पानी में तैरती एक लाश थी। उसने ध्यान दिया उसके बाल लंबे थे–वह एक बच्ची थी, उसने लाइफ जैकेट पहनी हुई थी इसलिये वह डूबी नहीं थी।
उसने उसका चेहरा अपनी तरफ पलटाया।
उसका चेहरा देखते ही वह सकते में आ गया।
“फ़लक! नहीं! नहीं! मेरी बच्ची! क्या...क्या हो गया तुझे....” वह उसके गाल थपथपाने लगा.
“कुछ नहीं होने दूंगा तुझे मेरी जान!” वह उसे खींचते हुए बोट की तरफ तैरने लगा।
कुछ देर बाद वह उसे लेकर बोट पर पहुँच गया।
बुरी तरह हाँफते हुए उसने उसका शरीर बोट पर लेटा दिया। उसका पूरा शरीर एकदम सफ़ेद पड़ा था– मानो पूरा खून जम चुका हो।
पर वो उसे ज़िंदा करने पर आमादा था। वह उसकी छाती पर हाथों से स्पंदन करने लगा। लड़की के शरीर में काफी पानी भरा था जो उसके मुंह से निकलने लगा।
“उठ जा...मेरी जान! फ़लक! मेरी बच्ची! देख–तेरे डैडी ने तुझे ढूंढ लिया। उठ जा, बच्ची!”
तभी पीछे से उसके कंधे को किसी ने थपथपाया।
“वो मर चुकी है। हौसला रखो मेरे भाई!”
“ऐसे कैसे मर सकती है वो ? अभी तो उसने ज़िंदगी ढंग से जी भी नहीं। कुछ नहीं होगा उसे। देखना ये अभी उठ बैठेगी।” वह उसी तरह निरंतर उसकी छाती पर स्पंदन करते हुए बोला।
“क्या कह रहे हो ? क्या हुआ है तुम्हें ?” वह उसे झकझोरते हुए बोला।
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Re: Thriller मिशन
वर्तमान समय
हिमाचल प्रदेश
अचानक ही ज़ाहिद ने चौंककर आँखें खोलीं।
वह प्लेन की सीट पर था। सुरेश उसकी तरफ चिंतित मुद्रा में देख रहा था। उसका हाथ उसके कंधे पर था।
ज़ाहिद ने दो पल उसकी तरफ अचरज से देखा फिर अपने चेहरे पर हाथ फेरा।
“तुम ठीक हो ?” सुरेश ने पूछा।
ज़ाहिद ने हामी भरी।
सुरेश समझ सकता था आजकल ज़ाहिद के मन में क्या चल रहा है। किस तरह के स्वप्न उसे व्याकुल कर रहे हैं।
दोनों इस वक्त प्लेन में थे और वे कुछ ही देर में धर्मशाला पहुँचने वाले थे।
मैक्लॉडगंज में धर्मगुरु सुज़ुकी का आश्रम था।
ज़ाहिद ने दिल्ली से ही आश्रम में फोन करके वहाँ आने की इच्छा व्यक्त कर दी थी। उसे वहाँ से सकारात्मक उत्तर मिला।
उनके साथ विशाल भदौरिया नामक इंटरप्रेटर भी था जो कि सीनो भाषा में दक्ष था।
धर्मशाला के एयरपोर्ट पर लैंड करने के बाद टैक्सी करके वे लोग सीधे आश्रम पहुँचे। आश्रम के अंदर उन्हें कुछ देर इंतजार करने को कहा गया। आश्रम में चारों तरफ भगवे कपड़े पहने शिष्य और पुजारी दिखाई दे रहे थे। पूरा आश्रम लकड़ी से बना हुआ लग रहा था। वहाँ एक मनमोहक सुगंध व्यापक थी और माहौल में मन शांत करने का प्रभाव था।
आखिरकर सुज़ुकी के कमरे का दरवाजा खुला और वे लोग अंदर आ गए। उनके सामने ज़मीन पर बिछी चटाई पर बैठा एक सत्तर साल का सीनो मूल का वृद्ध बैठा था। उसके चेहरे पर बेहद मनमोहक भाव थे। होठों पर विद्यमान बरबस मुस्कान से वह एक प्रसन्नचित्त इंसान प्रतीत हो रहा था।
उसके सामने लकड़ी की एक चौखट थी जिस पर कोई बड़ी-सी किताब खुली थी। उसने उन तीनों को अपने सामने बिछे कालीन पर बैठने का इशारा किया और उनके साथ आए शिष्यों को वापस जाने का निर्देश दिया।
“हमें मिलने का समय देने के लिये आपका शुक्रिया।” सुरेश बोला तो विशाल ने अपनी जॉब शुरू कर दी। उसने सीनो में उसका अनुवाद कर के गुरु सुज़ुकी को बताया। सुज़ुकी ने भी प्रत्युत्तर में उनसे मिलने की खुशी उजागर की।
“हम इंडियन एयरलाइंस के एक लापता विमान की खोजबीन में लगे हैं। हमारी जानकारी के मुताबिक आप और आप के चार शिष्य ने भी इस फ्लाइट में बुकिंग कराई हुई थी पर अंत समय में आपने वह फ्लाइट बोर्ड नहीं की। हम उस बारे में जानना चाहते हैं।”
सुज़ुकी ने पूछा, “आप लोग कब की बात कर रहे हैं ? कहां से कहां की फ्लाइट थी ?”
“करीब छह साल पहले अलीगढ़ से क़तर की फ्लाइट।”
“ओह! याद आया। हम उस वक्त अलीगढ़ में थे और वहाँ से मुंबई जाने वाले थे।” सुज़ुकी ने बताया।
“हां! ये फ्लाइट अलीगढ़ से मुंबई और फिर मुंबई से क़तर जाने वाली थी। आप की बुकिंग मुंबई तक का था। सही कहा आपने।” सुरेश बोला।
“मुझे याद है। अंतिम समय में हमारा प्लान चेंज हो गया था।”
“आप लोग मुंबई किस सिलसिले में जा रहे थे ?”
“एक सभा थी। सीनो और भारत के संबंधों पर। उसमे हमें आमंत्रित किया गया था।”
“फिर आप लोग क्यों नहीं गए ?”
“कुछ कारणों से हमें आश्रम वापस आना पड़ा। हमारे मुख्य पुजारी की तबीयत काफी बिगड़ गई थी।”
“कौन हैं वो ? क्या हम जान सकते हैं ? क्या वह अभी भी आश्रम में हैं ?”
“नहीं! उस वाकये के करीब एक महीने बाद ही उनकी मृत्यु हो गई थी।”
“ये तो बहुत बुरा हुआ। कोई बीमारी थी उन्हें ?”
“एक तरह से यह समझ लीजिए कि धरती पर उनका समय पूरा हो गया था और परम परमेश्वर ने उन्हें बुला लिया।” सुज़ुकी ने संजीदगी के साथ जवाब दिया।
“क्या उम्र थी उनकी ?”
“85 साल!”
“ओके!” सुरेश चुप हुआ तो ज़ाहिद ने पूछा-
“आप भारत में कब से हैं ?”
“करीब दस साल हो गये।”
“सीनो में आप क्या करते थे ?”
“वहाँ भी हम धर्मगुरु थे और हमारा आश्रम था। हम अपने धर्म का प्रचार करते थे। लेकिन सीनो सरकार को हमारे विचार पसंद नहीं आते थे। हमारी उनके साथ तल्खी इस स्तर तक पहुँच गई थी कि वे हमें मृत्युदंड देना चाहते थे इसलिये हमें भारत में शरण लेनी पड़ी। भारत एक महान देश है। हर तरह के धर्म का सम्मान करता है लेकिन हमारे देश सीनो में ऐसा नहीं है।”
“क्या आपको बाद में पता चला था कि उस प्लेन का हाईजैक हो गया या फिर लापता हो गया और आज तक उस विमान के बारे में कुछ पता नहीं चला ?” सुरेश ने पूछा।
“हां! हमें यह समाचार मिला था। उसके बाद हमने आश्रम में विशेष पूजा आयोजित की थी–विमान के वापस मिलने और पैसेंजर्स की सकुशल वापसी के लिये।”
“काश कि आप की पूजा भगवान ने सुनी होती।” सुरेश ने गहरी सांस छोड़ते हुए कहा।
“परमेश्वर की मर्जी के आगे तो किसी की नहीं चलती। आप लोग नेक काम कर रहे हैं। शायद कुछ बड़ी वजह होगी कि आपको यह काम मिला और अब उस विमान के खोने का रहस्य खुलेगा तो जरूर उससे मानवता का भला होगा।”
“हमारी कोशिश तो यही है।” ज़ाहिद बोला, “वैसे आपके आश्रम में और कौन पुजारी हैं ? हम कुछ और लोगों से बात करना चाहते हैं। आपके साथ जो चार शिष्य उस विमान में बैठने वाले थे उनसे भी बात करना चाहते हैं। आशा करते हैं वह चारों अभी भी आश्रम में ही होंगे।”
“हां वह चारों यहीं पर हैं। आपको उन चारों से या आश्रम में किसी से भी बात करने के लिये पूरी छूट है। आप बिल्कुल न हिचकें। चाहे तो आश्रम में ही कुछ दिन बिता सकते हैं। आपको यहाँ रहकर अच्छा लगेगा। हो सकता है परम परमेश्वर आपका मार्गदर्शन करें। मुझे आपके साथ बैठकर पूजा करने में भी खुशी होगी।”
“आपके विचार काफी महान है।” ज़ाहिद बोला, “पहले हम उन चार से मिल लेते हैं।”
सुज़ुकी ने हामी भरी और फिर एक घंटी बजाई कुछ ही देर में एक शिष्य अंदर आ गया। सुज़ुकी ने उसे अपनी भाषा में निर्देश दिया फिर कहा, “ये आपको उन चारों से मिलवाने ले जाएगा। उसके अलावा भी अगर आप किसी से बात करना चाहें तो यह आपकी मदद करेगा। कोई भी परेशानी हो तो आप मुझे आकर बता सकते हैं।”
“आपका बहुत-बहुत शुक्रिया!” ज़ाहिद ने कहा फिर वे तीनों उठ खड़े हुए और कृतज्ञता के साथ सुज़ुकी का सिर झुकाकर अभिवादन कर के उस शिष्य के साथ उस कमरे से बाहर निकल आए।
कुछ ही देर में आश्रम के आंगन में वे उन चार शिष्यों के साथ बैठे थे। आश्रम के बाकी लोग उन्हें ध्यान से देख रहे थे। पर उस लंबे शिष्य के इशारे पर वे लोग वहाँ से चले गये।
उन लोगों ने उन चारों शिष्यों से कुछ सवाल पूछे पर उन्हें ऐसी कोई नई बात पता न चली जो सुज़ुकी ने पहले ही न बता दी हो।
फिर ज़ाहिद और सुरेश ने किसी पुजारी से मिलने की इच्छा जाहिर की। उन्हें एक पुजारी से मिलवाया गया । उसका नाम योहामा था। वह एक कम कद का वृद्ध था। उसकी लंबी सी नुकीली सफ़ेद दाढ़ी थी और पतली-पतली मूंछें थीं।
“क्या आप मुख्य पुजारी को जानते थे जिनकी मृत्यु कुछ समय पहले हुई ?” सुरेश ने पूछा ।
“हां! बिल्कुल जानता था उनका नाम लिआंग था। वे एक महान इंसान थे। मैंने उनसे काफी कुछ सीखा था।”
“तो आपको याद होगा जिस दिन गुरु सुज़ुकी और उनके चार शिष्य फ्लाइट से मुंबई जाने वाले थे, क्या उस दिन अचानक ही लिआंग को कुछ हुआ था ?”
“उस दौरान उनकी तबीयत काफी खराब चल रही थी। हम सभी जानते थे वे किसी भी पल परम परमेश्वर की ओर कूच कर जाएंगे। गुरु सुज़ुकी को शायद अंदेशा था कि कुछ अनिष्ट होने वाला है इसलिये वह वापस आ गए।”
“यानि वापस आने से पहले भी लिआंग की तबीयत खराब थी ?”
“हां उनकी तबीयत काफी समय से खराब चल रही थी।”
“क्या कोई डॉक्टर उन्हें देख रहा था ?”
“हमारे वैध ही देख रहे थे। अंग्रेजी दवाएं और इलाज हमारे यहाँ कोई लेता नहीं।”
“तो क्या उस दिन अचानक कुछ हुआ था ? दिल का दौरा या बेहोशी या कुछ और... ?”
“वे लगातार बिस्तर पर ही थे। बहुत ही कमजोर हो गए थे। उठ भी नहीं पा रहे थे।”
“आप शायद समझ नहीं रहे।” सुरेश हाथों का प्रयोग करते हुए अपनी बात समझाने का प्रयास कर रहा था क्योंकि उसे लग रहा था हिंदी से सीनो भाषा में सही मैसेज शायद पहुँच नहीं पा रहा था। “मैं यह जानना चाहता हूँ कि उस दिन अचानक ही उनकी तबीयत को क्या हुआ कि सुज़ुकी अपना सारा प्लान कैंसिल करके दौड़े-दौड़े वापस आ गये ?”
विशाल ने सवाल को उपयुक्त तरह से सीनो में प्रस्तुत करने की पुरजोर कोशिश की।
योहामा ने न में सिर हिलाया। विशाल बोला, “यह कह रहे हैं इनको नहीं पता।”
“वह तो मुझे भी दिख रहा है।” सुरेश खीजते हुए बोला, “पर इसका मतलब क्या हम ये समझें कि उनकी सेहत पर अचानक से कोई प्रभाव नहीं पड़ा था। उनकी तबीयत पहले भी खराब थी और बाद में भी खराब थी। यहाँ कोई ऐसा डॉक्टर भी था नहीं जो ठीक से बता सके कि उनकी डाइग्नोसिस या सिम्पटम्स क्या थे।”
“मुझे सीनो की प्राचीन चिकित्सा पद्धति के बारे में थोड़ी बहुत जानकारी है। यकीन मानिये वह इतनी पिछड़ी भी नहीं जितनी प्रतीत हो रही है।” विशाल बोला।
“इनके वैध को बुला लेते हैं।” ज़ाहिद ने सुझाव दिया– “कनफर्म हो जाएगा।”
फिर एक शिष्य को वैध को बुलाने के लिये भेज दिया गया। कुछ देर में वैध वहाँ पहुँच गया। अब योहामा और वैध दोनों सामने थे।
सुरेश ने पूछा, “आप गुरु लिआंग को देख रहे थे। ऐसा उनको क्या हुआ था कि गुरु सुज़ुकी को अपनी ट्रिप कैंसिल करके वापस आना पड़ा ?”
“उनकी तबीयत बेहद खराब हो रही थी। स्वस्थ्य निरंतर गिर रहा था...”
“पर यह तो गुरु सुज़ुकी को जाने से पहले भी पता होगा न।” सुरेश कुछ तेज आवाज में बोला।
सुरेश की तेज आवाज़ ने आश्रम के बाकी लोगों को अपनी तरफ आकर्षित किया। एक शिष्य गुस्से से उसे देखने लगा। विशाल ने सुरेश को शांत रहने का इशारा किया।
सुरेश होठों पर जबरन मुस्कान लाते हुए बोला, “मैं बस यह जानना चाहता हूँ कि किन परिस्थितियों ने गुरु सुज़ुकी को आनन-फानन वापस आने के लिये बाधित कर दिया। जहां तक मेरी समझ में आ रहा है गुरु लिआंग को अचानक ही कुछ नहीं हुआ था। काफी समय से उनकी तबीयत खराब थी और निरंतर खराब हो रही थी मैं ठीक समझ रहा हूँ न ?”
वैद्य ने स्वीकृति में सिर हिलाया और कहा–
“आप शायद समझ नहीं पा रहे हैं। हम लोग कभी-कभी अनिष्ट को भांप लेते हैं। आप इसे टेलीपैथी समझ सकते हैं। गुरु सुज़ुकी को जरूर अहसास हुआ होगा कि कुछ गड़बड़ होने वाली है इसलिये अपनी ट्रिप कैंसिल कर के वे वापस आ गए। ऐसा अक्सर होता है कि हमारे किसी प्रियजन के साथ कुछ बुरा घट जाता है और आपको बिना किसी के बताये ही इसका आभास हो जाता है।”
“मैं मानता हूँ ऐसा होता है।” सुरेश बोला, “पर उस वक्त से पहले भी वे बीमार ही थे और उस घटना के एक महीने बाद गुरु लिआंग की मौत हुई। यानि इमरजेंसी जैसा कुछ नहीं था।”
“वे मरणासन्न थे।” वैध बोला, “तबीयत ऊपर-नीचे होती ही रहती है। ऐसे में कब क्या होगा कुछ नहीं कह सकते। इसी धर्म संकट की वजह से गुरु सुज़ुकी वापस आ गए थे।”
“मैं अब समझ गया।” सुरेश बोला, “आप सभी का शुक्रिया।”
उसके बाद वे लोग सुज़ुकी के कमरे में वापस पहुँचे।
ज़ाहिद बोला, “हम लोग अभी कुछ दिन धर्मशाला में ही हैं। अगर जरूरत पड़ी तो आपसे दोबारा मिलने आएंगे। आशा करते हैं आपको हमारी इस मुलाकात से ज्यादा कष्ट नहीं हुआ होगा।”
“मेरे दोस्त...” सुज़ुकी खड़े होकर बोला, “आप जैसे महान लोगों के यहाँ आने से हमें कभी कष्ट नहीं हो सकता। आप लोग नेक और देशभक्त हैं– यह आपके हाव-भाव से ही मुझे पता चल रहा है। आप जब चाहे यहाँ आ सकते हैं। मैं तो अभी भी बोलता हूँ आप आश्रम में ही कुछ दिन बिताइए–आपको अच्छा लगेगा।”
“आपके इस आमंत्रण के लिये शुक्रिया। पर कुछ वजह है जिसके कारण हमें धर्मशाला में ही रहना पड़ेगा। धन्यवाद!” ज़ाहिद ने कृतज्ञ भाव से कहा।
“बहुत-बहुत धन्यवाद!” सुरेश बोला।
उनका अभिवादन करके वे वहाँ से निकले।
☐☐☐
हिमाचल प्रदेश
अचानक ही ज़ाहिद ने चौंककर आँखें खोलीं।
वह प्लेन की सीट पर था। सुरेश उसकी तरफ चिंतित मुद्रा में देख रहा था। उसका हाथ उसके कंधे पर था।
ज़ाहिद ने दो पल उसकी तरफ अचरज से देखा फिर अपने चेहरे पर हाथ फेरा।
“तुम ठीक हो ?” सुरेश ने पूछा।
ज़ाहिद ने हामी भरी।
सुरेश समझ सकता था आजकल ज़ाहिद के मन में क्या चल रहा है। किस तरह के स्वप्न उसे व्याकुल कर रहे हैं।
दोनों इस वक्त प्लेन में थे और वे कुछ ही देर में धर्मशाला पहुँचने वाले थे।
मैक्लॉडगंज में धर्मगुरु सुज़ुकी का आश्रम था।
ज़ाहिद ने दिल्ली से ही आश्रम में फोन करके वहाँ आने की इच्छा व्यक्त कर दी थी। उसे वहाँ से सकारात्मक उत्तर मिला।
उनके साथ विशाल भदौरिया नामक इंटरप्रेटर भी था जो कि सीनो भाषा में दक्ष था।
धर्मशाला के एयरपोर्ट पर लैंड करने के बाद टैक्सी करके वे लोग सीधे आश्रम पहुँचे। आश्रम के अंदर उन्हें कुछ देर इंतजार करने को कहा गया। आश्रम में चारों तरफ भगवे कपड़े पहने शिष्य और पुजारी दिखाई दे रहे थे। पूरा आश्रम लकड़ी से बना हुआ लग रहा था। वहाँ एक मनमोहक सुगंध व्यापक थी और माहौल में मन शांत करने का प्रभाव था।
आखिरकर सुज़ुकी के कमरे का दरवाजा खुला और वे लोग अंदर आ गए। उनके सामने ज़मीन पर बिछी चटाई पर बैठा एक सत्तर साल का सीनो मूल का वृद्ध बैठा था। उसके चेहरे पर बेहद मनमोहक भाव थे। होठों पर विद्यमान बरबस मुस्कान से वह एक प्रसन्नचित्त इंसान प्रतीत हो रहा था।
उसके सामने लकड़ी की एक चौखट थी जिस पर कोई बड़ी-सी किताब खुली थी। उसने उन तीनों को अपने सामने बिछे कालीन पर बैठने का इशारा किया और उनके साथ आए शिष्यों को वापस जाने का निर्देश दिया।
“हमें मिलने का समय देने के लिये आपका शुक्रिया।” सुरेश बोला तो विशाल ने अपनी जॉब शुरू कर दी। उसने सीनो में उसका अनुवाद कर के गुरु सुज़ुकी को बताया। सुज़ुकी ने भी प्रत्युत्तर में उनसे मिलने की खुशी उजागर की।
“हम इंडियन एयरलाइंस के एक लापता विमान की खोजबीन में लगे हैं। हमारी जानकारी के मुताबिक आप और आप के चार शिष्य ने भी इस फ्लाइट में बुकिंग कराई हुई थी पर अंत समय में आपने वह फ्लाइट बोर्ड नहीं की। हम उस बारे में जानना चाहते हैं।”
सुज़ुकी ने पूछा, “आप लोग कब की बात कर रहे हैं ? कहां से कहां की फ्लाइट थी ?”
“करीब छह साल पहले अलीगढ़ से क़तर की फ्लाइट।”
“ओह! याद आया। हम उस वक्त अलीगढ़ में थे और वहाँ से मुंबई जाने वाले थे।” सुज़ुकी ने बताया।
“हां! ये फ्लाइट अलीगढ़ से मुंबई और फिर मुंबई से क़तर जाने वाली थी। आप की बुकिंग मुंबई तक का था। सही कहा आपने।” सुरेश बोला।
“मुझे याद है। अंतिम समय में हमारा प्लान चेंज हो गया था।”
“आप लोग मुंबई किस सिलसिले में जा रहे थे ?”
“एक सभा थी। सीनो और भारत के संबंधों पर। उसमे हमें आमंत्रित किया गया था।”
“फिर आप लोग क्यों नहीं गए ?”
“कुछ कारणों से हमें आश्रम वापस आना पड़ा। हमारे मुख्य पुजारी की तबीयत काफी बिगड़ गई थी।”
“कौन हैं वो ? क्या हम जान सकते हैं ? क्या वह अभी भी आश्रम में हैं ?”
“नहीं! उस वाकये के करीब एक महीने बाद ही उनकी मृत्यु हो गई थी।”
“ये तो बहुत बुरा हुआ। कोई बीमारी थी उन्हें ?”
“एक तरह से यह समझ लीजिए कि धरती पर उनका समय पूरा हो गया था और परम परमेश्वर ने उन्हें बुला लिया।” सुज़ुकी ने संजीदगी के साथ जवाब दिया।
“क्या उम्र थी उनकी ?”
“85 साल!”
“ओके!” सुरेश चुप हुआ तो ज़ाहिद ने पूछा-
“आप भारत में कब से हैं ?”
“करीब दस साल हो गये।”
“सीनो में आप क्या करते थे ?”
“वहाँ भी हम धर्मगुरु थे और हमारा आश्रम था। हम अपने धर्म का प्रचार करते थे। लेकिन सीनो सरकार को हमारे विचार पसंद नहीं आते थे। हमारी उनके साथ तल्खी इस स्तर तक पहुँच गई थी कि वे हमें मृत्युदंड देना चाहते थे इसलिये हमें भारत में शरण लेनी पड़ी। भारत एक महान देश है। हर तरह के धर्म का सम्मान करता है लेकिन हमारे देश सीनो में ऐसा नहीं है।”
“क्या आपको बाद में पता चला था कि उस प्लेन का हाईजैक हो गया या फिर लापता हो गया और आज तक उस विमान के बारे में कुछ पता नहीं चला ?” सुरेश ने पूछा।
“हां! हमें यह समाचार मिला था। उसके बाद हमने आश्रम में विशेष पूजा आयोजित की थी–विमान के वापस मिलने और पैसेंजर्स की सकुशल वापसी के लिये।”
“काश कि आप की पूजा भगवान ने सुनी होती।” सुरेश ने गहरी सांस छोड़ते हुए कहा।
“परमेश्वर की मर्जी के आगे तो किसी की नहीं चलती। आप लोग नेक काम कर रहे हैं। शायद कुछ बड़ी वजह होगी कि आपको यह काम मिला और अब उस विमान के खोने का रहस्य खुलेगा तो जरूर उससे मानवता का भला होगा।”
“हमारी कोशिश तो यही है।” ज़ाहिद बोला, “वैसे आपके आश्रम में और कौन पुजारी हैं ? हम कुछ और लोगों से बात करना चाहते हैं। आपके साथ जो चार शिष्य उस विमान में बैठने वाले थे उनसे भी बात करना चाहते हैं। आशा करते हैं वह चारों अभी भी आश्रम में ही होंगे।”
“हां वह चारों यहीं पर हैं। आपको उन चारों से या आश्रम में किसी से भी बात करने के लिये पूरी छूट है। आप बिल्कुल न हिचकें। चाहे तो आश्रम में ही कुछ दिन बिता सकते हैं। आपको यहाँ रहकर अच्छा लगेगा। हो सकता है परम परमेश्वर आपका मार्गदर्शन करें। मुझे आपके साथ बैठकर पूजा करने में भी खुशी होगी।”
“आपके विचार काफी महान है।” ज़ाहिद बोला, “पहले हम उन चार से मिल लेते हैं।”
सुज़ुकी ने हामी भरी और फिर एक घंटी बजाई कुछ ही देर में एक शिष्य अंदर आ गया। सुज़ुकी ने उसे अपनी भाषा में निर्देश दिया फिर कहा, “ये आपको उन चारों से मिलवाने ले जाएगा। उसके अलावा भी अगर आप किसी से बात करना चाहें तो यह आपकी मदद करेगा। कोई भी परेशानी हो तो आप मुझे आकर बता सकते हैं।”
“आपका बहुत-बहुत शुक्रिया!” ज़ाहिद ने कहा फिर वे तीनों उठ खड़े हुए और कृतज्ञता के साथ सुज़ुकी का सिर झुकाकर अभिवादन कर के उस शिष्य के साथ उस कमरे से बाहर निकल आए।
कुछ ही देर में आश्रम के आंगन में वे उन चार शिष्यों के साथ बैठे थे। आश्रम के बाकी लोग उन्हें ध्यान से देख रहे थे। पर उस लंबे शिष्य के इशारे पर वे लोग वहाँ से चले गये।
उन लोगों ने उन चारों शिष्यों से कुछ सवाल पूछे पर उन्हें ऐसी कोई नई बात पता न चली जो सुज़ुकी ने पहले ही न बता दी हो।
फिर ज़ाहिद और सुरेश ने किसी पुजारी से मिलने की इच्छा जाहिर की। उन्हें एक पुजारी से मिलवाया गया । उसका नाम योहामा था। वह एक कम कद का वृद्ध था। उसकी लंबी सी नुकीली सफ़ेद दाढ़ी थी और पतली-पतली मूंछें थीं।
“क्या आप मुख्य पुजारी को जानते थे जिनकी मृत्यु कुछ समय पहले हुई ?” सुरेश ने पूछा ।
“हां! बिल्कुल जानता था उनका नाम लिआंग था। वे एक महान इंसान थे। मैंने उनसे काफी कुछ सीखा था।”
“तो आपको याद होगा जिस दिन गुरु सुज़ुकी और उनके चार शिष्य फ्लाइट से मुंबई जाने वाले थे, क्या उस दिन अचानक ही लिआंग को कुछ हुआ था ?”
“उस दौरान उनकी तबीयत काफी खराब चल रही थी। हम सभी जानते थे वे किसी भी पल परम परमेश्वर की ओर कूच कर जाएंगे। गुरु सुज़ुकी को शायद अंदेशा था कि कुछ अनिष्ट होने वाला है इसलिये वह वापस आ गए।”
“यानि वापस आने से पहले भी लिआंग की तबीयत खराब थी ?”
“हां उनकी तबीयत काफी समय से खराब चल रही थी।”
“क्या कोई डॉक्टर उन्हें देख रहा था ?”
“हमारे वैध ही देख रहे थे। अंग्रेजी दवाएं और इलाज हमारे यहाँ कोई लेता नहीं।”
“तो क्या उस दिन अचानक कुछ हुआ था ? दिल का दौरा या बेहोशी या कुछ और... ?”
“वे लगातार बिस्तर पर ही थे। बहुत ही कमजोर हो गए थे। उठ भी नहीं पा रहे थे।”
“आप शायद समझ नहीं रहे।” सुरेश हाथों का प्रयोग करते हुए अपनी बात समझाने का प्रयास कर रहा था क्योंकि उसे लग रहा था हिंदी से सीनो भाषा में सही मैसेज शायद पहुँच नहीं पा रहा था। “मैं यह जानना चाहता हूँ कि उस दिन अचानक ही उनकी तबीयत को क्या हुआ कि सुज़ुकी अपना सारा प्लान कैंसिल करके दौड़े-दौड़े वापस आ गये ?”
विशाल ने सवाल को उपयुक्त तरह से सीनो में प्रस्तुत करने की पुरजोर कोशिश की।
योहामा ने न में सिर हिलाया। विशाल बोला, “यह कह रहे हैं इनको नहीं पता।”
“वह तो मुझे भी दिख रहा है।” सुरेश खीजते हुए बोला, “पर इसका मतलब क्या हम ये समझें कि उनकी सेहत पर अचानक से कोई प्रभाव नहीं पड़ा था। उनकी तबीयत पहले भी खराब थी और बाद में भी खराब थी। यहाँ कोई ऐसा डॉक्टर भी था नहीं जो ठीक से बता सके कि उनकी डाइग्नोसिस या सिम्पटम्स क्या थे।”
“मुझे सीनो की प्राचीन चिकित्सा पद्धति के बारे में थोड़ी बहुत जानकारी है। यकीन मानिये वह इतनी पिछड़ी भी नहीं जितनी प्रतीत हो रही है।” विशाल बोला।
“इनके वैध को बुला लेते हैं।” ज़ाहिद ने सुझाव दिया– “कनफर्म हो जाएगा।”
फिर एक शिष्य को वैध को बुलाने के लिये भेज दिया गया। कुछ देर में वैध वहाँ पहुँच गया। अब योहामा और वैध दोनों सामने थे।
सुरेश ने पूछा, “आप गुरु लिआंग को देख रहे थे। ऐसा उनको क्या हुआ था कि गुरु सुज़ुकी को अपनी ट्रिप कैंसिल करके वापस आना पड़ा ?”
“उनकी तबीयत बेहद खराब हो रही थी। स्वस्थ्य निरंतर गिर रहा था...”
“पर यह तो गुरु सुज़ुकी को जाने से पहले भी पता होगा न।” सुरेश कुछ तेज आवाज में बोला।
सुरेश की तेज आवाज़ ने आश्रम के बाकी लोगों को अपनी तरफ आकर्षित किया। एक शिष्य गुस्से से उसे देखने लगा। विशाल ने सुरेश को शांत रहने का इशारा किया।
सुरेश होठों पर जबरन मुस्कान लाते हुए बोला, “मैं बस यह जानना चाहता हूँ कि किन परिस्थितियों ने गुरु सुज़ुकी को आनन-फानन वापस आने के लिये बाधित कर दिया। जहां तक मेरी समझ में आ रहा है गुरु लिआंग को अचानक ही कुछ नहीं हुआ था। काफी समय से उनकी तबीयत खराब थी और निरंतर खराब हो रही थी मैं ठीक समझ रहा हूँ न ?”
वैद्य ने स्वीकृति में सिर हिलाया और कहा–
“आप शायद समझ नहीं पा रहे हैं। हम लोग कभी-कभी अनिष्ट को भांप लेते हैं। आप इसे टेलीपैथी समझ सकते हैं। गुरु सुज़ुकी को जरूर अहसास हुआ होगा कि कुछ गड़बड़ होने वाली है इसलिये अपनी ट्रिप कैंसिल कर के वे वापस आ गए। ऐसा अक्सर होता है कि हमारे किसी प्रियजन के साथ कुछ बुरा घट जाता है और आपको बिना किसी के बताये ही इसका आभास हो जाता है।”
“मैं मानता हूँ ऐसा होता है।” सुरेश बोला, “पर उस वक्त से पहले भी वे बीमार ही थे और उस घटना के एक महीने बाद गुरु लिआंग की मौत हुई। यानि इमरजेंसी जैसा कुछ नहीं था।”
“वे मरणासन्न थे।” वैध बोला, “तबीयत ऊपर-नीचे होती ही रहती है। ऐसे में कब क्या होगा कुछ नहीं कह सकते। इसी धर्म संकट की वजह से गुरु सुज़ुकी वापस आ गए थे।”
“मैं अब समझ गया।” सुरेश बोला, “आप सभी का शुक्रिया।”
उसके बाद वे लोग सुज़ुकी के कमरे में वापस पहुँचे।
ज़ाहिद बोला, “हम लोग अभी कुछ दिन धर्मशाला में ही हैं। अगर जरूरत पड़ी तो आपसे दोबारा मिलने आएंगे। आशा करते हैं आपको हमारी इस मुलाकात से ज्यादा कष्ट नहीं हुआ होगा।”
“मेरे दोस्त...” सुज़ुकी खड़े होकर बोला, “आप जैसे महान लोगों के यहाँ आने से हमें कभी कष्ट नहीं हो सकता। आप लोग नेक और देशभक्त हैं– यह आपके हाव-भाव से ही मुझे पता चल रहा है। आप जब चाहे यहाँ आ सकते हैं। मैं तो अभी भी बोलता हूँ आप आश्रम में ही कुछ दिन बिताइए–आपको अच्छा लगेगा।”
“आपके इस आमंत्रण के लिये शुक्रिया। पर कुछ वजह है जिसके कारण हमें धर्मशाला में ही रहना पड़ेगा। धन्यवाद!” ज़ाहिद ने कृतज्ञ भाव से कहा।
“बहुत-बहुत धन्यवाद!” सुरेश बोला।
उनका अभिवादन करके वे वहाँ से निकले।
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