Incest लंड के कारनामे - फॅमिली सागा

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Bbilatar
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Re: Incest लंड के कारनामे - फॅमिली सागा

Post by Bbilatar »

Awesome Update brother......
keep writing....
keep posting.....
josef
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Re: Incest लंड के कारनामे - फॅमिली सागा

Post by josef »

पापा की लाडली ऋतू ने भी जल्दी से अपने पापा की हेल्प करते हुए उनके सारे कपडे नोच मारे...और जल्दी ही वो भी अपना लंड ताने सभी के सामने नंगे खड़े थे...
अन्नू ने जैसे ही दादाजी का लंड देखा, वो लपककर उनके पास आई और उसे मुंह में डालकर चूसने लगी... इस वक़्त कमरे में सबसे छोटी शायद अन्नू ही थी उम्र में...उसके बाद ऋतू और उससे बड़ी सोनी... इसलिए दादाजी ने नन्ही सी अन्नू को अपने लंड को चूसते देखा तो उनकी सिसकारी सी निकल गयी...." अह्ह्हह्ह्ह्हह्ह ऊऊऊओ बेटा.....शाबाश.....अह्ह्ह्हह्ह हां ऐसे ही....अह्ह्हह्ह......"
ऋतू भी पापा के सामने बैठ कर उनके लिंग की पूजा करने लगी अपने मुंह में लेकर...
सोनी ने घूम कर मेरे लंड को पकड़ा और उसे अपने मुंह के अन्दर धकेल दिया..
मम्मी अभी भी सोनी की चूत में वो मोटा डिल्डो डालने में लगी हुई थी...
अन्नू से अब सबर नहीं हो रहा था...वो उठी और उचक कर दादाजी की गोद में चढ़ गयी और अपनी टाँगे उनकी कमर में लपेट दी..
दादाजी ने उसके दोनों कुल्हे पकडे और अपना खड़ा हुआ लंड उसकी चूत के ऊपर अडजस्ट किया...और अन्नू को अपनी तरफ खींच लिया...
दादाजी का लंड अन्नू की चूत को चीरता हुआ अन्दर तक घुस गया...और इस बार अन्नू के मुंह से दर्द भरी नहीं बल्कि आनंदमयी चीख निकली... "आआअह्ह्ह म्मम्मम्मम्म ऊऊओह्ह ......दद्दू.....अह्ह्हह्ह ....मजा आ गया....अह्ह्हह्ह......" और उसने दादाजी के बड़े और लटके हुए होंठों को अपने मुंह में फंसाया और उन्हें चुसना शुरू कर दिया...और साथ ही साथ अपनी छातियों को उनपर रगड़ने भी लगी....
दादाजी ने उसे चूसते हुए नीचे से दनादन धक्के मारने शुरू कर दिए...
ऋतू भी पापा के लंड को चूसते -२ नीचे लेट गयी...और खड़े हुए पापा के ठीक नीचे लेटकर अपने दोनों पैर ऊपर की तरफ बढ़ा दिए, उसकी पीठ जमीन से लगी हुई थी...और अब ऊपर से पापा को ऋतू की चूत का पूरा नक्शा साफ़ दिखाई दे रहा था...उन्होंने ऋतू की टांगो को अपनी कंधे पर रखा और उसकी चूत की फांकी को ऊपर से ही फेलाकर अपने लंड को बड़ी मुश्किल से नीचे करके उसकी चूत में धकेल दिया...
बड़ा ही मुश्किल आसन था वो...पर ऋतू को तो आप जानते ही है, हर आसन में अपनी चूत मरवाने के लिए वो बेताब रहती है, कल ही उसने ये आसन एक मूवी में देखा था और आज वो उसे अपने पापा के साथ करने में लगी हुई थी..
"आःह्ह पापा.....अह्ह्हह्ह येस्स.....अह्ह्ह्ह .....म्मम्मम्म ...."
पापा तो जैसे उसकी चूत की कुर्सी बनाकर उसके ऊपर ही बैठ गए थे..उनका पूरा लंड अपनी बेटी की चूत के अन्दर तक घुस चूका था... उन्होंने उसे बाहर खींचा और फिर से अन्दर डाला...और यही करते हुए उन्होंने तेजी से ऋतू की चूत मारनी शुरू कर दी...
सोनी की चूत में तो मम्मी ने डिल्डो डाला हुआ था...इसलिए मैंने उसकी गांड को ऊपर किया और अपना लंड उसकी गांड के छेद पर लगाकर तेज धक्का मारकर उसे अन्दर कर दिया..
एक तो उसकी चूत में इतना मोटा डिल्डो था...और ऊपर से मैंने उसकी गांड में भी एक मोटा लंड डाल कर उसकी हालत और भी पतली कर दी... वो चिल्लाने लगी...पहले दर्द से और फिर मजे से...
"आआआआह्ह्ह्ह ओह्ह्ह्हह्ह्ह्ह म्मम्मम्म ऊऊऊऊओ ....ह्ह्हह्ह्ह्ह ......ह्ह्हह्ह्हा .....ह्ह्ह .....मम्म...."
मैंने जितनी तेजी से उसकी गांड मारनी शुरु की, मम्मी ने उतनी ही तेजी से उसकी चूत में डिल्डो डालना शुरू कर दिया...
पूरा कमरे में सिस्कारियां और चीखे गूँज रही थी...
मम्मी ने भी एक और डिल्डो निकाला जिसके सिरे पर दो लंड बने हुए थे...उन्होंने एक अपनी चूत से सटाया तो दूसरा सिरा अपने आप उनकी गांड में चला गया...और वो उसे दुसरे हाथ से तेजी से हिलाने लगी...
दादाजी और पापा अब झड़ने के करीब थे...मेरा भी बस निकलने ही वाला था...
मम्मी ने चीख कर कहा..."कोई भी अन्दर मत निकालना...हम सभी के ऊपर डालो अपना रस...आज....अह्ह्हह्ह ....."
सबने उनकी बात मान ली..
दादाजी ने अन्नू को नीचे बेड पर पटक दिया...पापा ने भी अपना लंड वापिस खींच कर अपनी लाडली को बेड तक ले जाकर छोड़ दिया.. मम्मी और सोनी तो पहले से ही वहां पर थी.
और फिर पापा, मैं और दादाजी...उन चारों के पास जाकर हर तरफ से घेर कर खड़े हो गए और अपना लंड हिलाने लगे.. वो सारी रंडियों की तरह अपनी चूत को मसलते हुए ऊपर की तरफ देखने लगी और दुसरे हाथ से अपने स्तनों को मसलते हुए तेजी से सिस्कारियां मारने लगी...और फिर लगभग एक साथ ही हम तीनो के लंड से निकली रस की धाराएँ उनपर बारिश की तरह से पड़ने लगी...
पुरे बेड पर गीलापन छाने लगा...मेरे सामने खड़े दादाजी के लंड से निकली पिचकारियाँ तो मेरे पेट तक आ रही थी...
नीचे बैठी वो भूखी बिल्लियाँ हर बूँद को हवा में ही झपटकर पीने में लगी हुई थी...
सारे कमरे में रस की मिठास घुल चुकी थी..
आज पहली बार तीन पीढ़ियों ने एक साथ अपने हथियार एक दुसरे के सामने निकाले थे और जम कर चुदाई की थी..पर ये तो बस शुरुवात थी..क्योंकि उसके बाद तो जैसे ही मेरे या फिर पापा या फिर दादाजी जिसके लंड में भी जरा सा तनाव आता, सारी चूतें उस पर ही झपट पड़ती..और उस लंड को खाली करके ही छोडती..
josef
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Re: Incest लंड के कारनामे - फॅमिली सागा

Post by josef »

अगले दो दिनों तक यही खेल चलता रहा..पापा भी ऑफिस नहीं जा पा रहे थे..चुदाई के खेल में उन्हें अब अपने बाप, बेटे, बेटी और पत्नी के साथ खेलने में काफी मजा आ रहा था.
आखिर वो दिन भी आ गया जब दादाजी को वापिस जाना था.. दादाजी ने मेरे साथ-२ ऋतू को भी बीस दिनों के लिए गाँव में जाने को राजी कर लिया था.. और हमारे प्लान के अनुसार पहले हम अजय चाचा और आरती चाची से मिलने उनके घर जायेंगे और वहीँ से उनके गाँव जो की लगभग 1 घंटे की दुरी पर है वहां से..
मुझे आरती चाची से मिलने के साथ-२ नेहा से भी मिलने की उत्सुक्ताता थी..हम ट्रेन से गए और अगले दिन हम इंदोर पहुँच गए..
स्टेशन पर चाचू हमें लेने के लिए आये थे..उनसे मिलकर सभी बहुत खुश हुए और उन्होंने तो ऋतू को अपने सीने से लगाकर लगभग मसल ही डाला..अगर उनके पिताजी वहां न होते तो शायद वो ऋतू की चूत मार लेते स्टेशन पर ही.. पर उन्हें क्या मालुम था की अब दादाजी के साथ हम सबकी क्या टयूनिंग हो गयी है...दादाजी का रोब उन पर बना रहे ये हमारी पहले से ही प्लानिंग थी..और जब मौका आएगा तभी उन्हें जाहिर करेंगे की अब दादाजी भी हमारी टीम में आ चुके हैं..
हमारा उनके घर पर एक-दो दिन रुकने का प्लान था..
रास्ते में चाचाजी सभी के बारे में पूछते रहे और अपने, नेहा और आरती चाची के बारे में भी बताते रहे..जल्दी ही उनका घर आ गया.
हम यहाँ लगभग चार साल के बाद आ रहे थे. उनका घर पूरा बदल चूका था, चाचू ने अपने फर्स्ट फ्लोर पर भी दो कमरे डाल दिए थे, जिन्हें गेस्ट रूम के लिए रखा हुआ था..
घर पहुँचने पर चाची ने दरवाजा खोला और अपने ससुर के पाँव छुए ..मेरा ध्यान दादाजी के ऊपर ही था..उनकी नजरें अपनी छोटी बहु के पुरे शरीर को नापने में लगी हुई थी..
जैसा की पहले से ही उन्होंने बताया था की उनके चूचों के वो शुरू से ही दीवाने है..इसलिए वो चाची की छाती को घूर-२ कर देख रहे थे..
चाची ने हम दोनों भाई बहन को भी एक साथ गले से लगाकर हमारा स्वागत किया..मैं जब उनके गले लगा तो मैंने हाथ पीछे ले जाकर उनकी गांड में ऊँगली डाल दी..जिसे पीछे खड़े हुए चाचू ने साफ़ देखा और मुस्कुरा दिए..
चाची तो मेरी ऊँगली गांड में पाकर ऐसी उछली जैसे मैंने लंड पेल दिया हो वहां...
ऋतू : "चाची, नेहा कहाँ है.."
चाची : "बेटा वो स्कूल गयी है...तुम बैठो, बस आने ही वाली होगी .."
हम बात कर ही रहे थे की बेल बजी और चाची ने दरवाजा खोला ..बाहर नेहा थी..
उसने हम सभी को देखा और भागकर मुझसे और ऋतू से गले मिली और फिर दादाजी के पास गयी तो दादाजी ने भी उसके सर पर हाथ रखने के बाद उसे अपनी छाती से लगा लिया... नेहा भी दादाजी से काफी डरती थी।
पर जब दादाजी ने उसे अपने कठोर से शरीर से रगड़ना शुरू किया तो उसे अजीब सा महसूस हुआ और उसने मेरी तरफ नजरे घुमाई और आँखों ही आँखों में मुझसे पूछा "ये आज बुड्ढे को क्या हो गया है...?
उसके बाद हम सभी अन्दर गए और फ्रेश होने के बाद चाय पी और फिर खाना खाया..
चाची : "बेटा नेहा, जाओ ऊपर जाकर तुम ऋतू को उसका कमरा दिखाओ..और पिताजी का सामान भी ऊपर ही दुसरे कमरे में रख देना.."
दादाजी अभी खाना खा रहे थे, इसलिए मैंने और ऋतू ने मिलकर सारा सामान उठा लिया और ऊपर की और चल दिए.. ऊपर जाकर मैंने जैसे ही अपना सामान नीचे रखा, नेहा उछल कर मेरी पीठ पर चढ़ गयी...और मेरे मुंह के पीछे से ही चूमने लगी..
नेहा : "ओह्ह..भाई...मैंने तुम्हे काफी मिस किया....अह्ह्ह...पुच...पुच...पुच..."
उसने तो मेरी गर्दन पर किस्सेस की झड़ी सी लगा दी..
मैंने अपनी ताकत का प्रदर्शन करते हुए उसे पीठ से घुमा कर हवा में ही उठाये हुए आगे की तरफ कर लिया ...और नेहा ने अपनी टाँगे मेरी कमर से किसी बेल की भाँती लपेट दी और मेरे होंठों को बुरी तरह से चूसने लगी...
ऋतू ये सब बड़े चाव से देख रही थी और अपनी चूत और निप्पल को एक साथ मसल कर हमारे अनोखे मिलन का मजा ले रही थी. मैंने अपने हाथ नेहा की कोमल सी गांड के नीचे रख दिए...वो पहले से ज्यादा भर चुकी थी ..
मैं : "क्या बात है नेहा, तुम्हारी गांड पर तो चर्बी कुछ ज्यादा ही चढ़ गयी है...पहले तो ऐसी नहीं थी.."
नेहा : " ये सब तो पापा का कमाल है, वो रोज रात को जब तक मेरी गांड न मार ले उन्हें नींद ही नहीं आती...जानते हो, हम लोग जब से दिल्ली से वापिस आये हैं, मैं मम्मी और पापा के कमरे में ही सोती हूँ...और वो भी बिलकुल नंगी..."
मैं : "वाव...रोज सोती हो उनके साथ..."
नेहा : "नहीं रोज तो नहीं...जब कभी मेरा बोय्फ्रेंड मेरे साथ ऊपर इसी कमरे में सोता है तो उस दिन नहीं...."
ऋतू : "यानी तुम्हारा बॉय फ्रेंड भी यहाँ आता है...और चाची अब कुछ नहीं कहती तुम्हे..."
नेहा : "वो कहती तो हैं...पर यही की 'बेटा, अपने फ्रेंड से मजे लेने के बाद उसे मेरे कमरे में भी भेज देना'..हा हा.."
उसकी बात सुनकर सभी हंसने लगे..
josef
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Re: Incest लंड के कारनामे - फॅमिली सागा

Post by josef »

उसने हँसते हुए अपनी सारी बातें बताना शुरू कर दी...उनकी जिन्दगी में आये इस खुलेपन के लिए उसने मुझे और ऋतू को थेंक्स कहा..
बाते करते-२ ही उसने अपने कपडे उतरना शुरू कर दिए और जल्दी ही उसका वही नंगा बदन फिर से मेरी और ऋतू की आँखों के सामने आ गया.. जैसा की मैंने उसकी गांड पर हाथ लगाकर महसूस किया था, वही हाल उसके मुम्मो का भी था, वो भी पहले से ज्यादा भर चुके थे या फिर ये कह लो की अब उनकी सुन्दरता में चार चाँद लग चुके थे, उसके निप्पल तो पहले से ही सेंसेटिव थे, सो जैसे ही मैंने उन्हें अपनी उँगलियों में लेकर मसलना शुरू किया तो उसकी सिस्कारियां पुरे कमरे में गूंजने लगी..
"अह्ह्हह्ह ओगग्ग्ग्ग.....ओह्ह्हह्ह्ह्ह म्मम्म......मसलो......काटो.....चबा जाओ...इन्हें.....अह्ह्हह्ह ऊऊओ माय गोड....उम्म्मम्म..........स्सस्सस्सस ........ अह्ह्हह्ह ...
मैंने कमरे के बीचो बीच नंगी खड़ी हुई नेहा के पुरे शरीर पर अपने दांतों से टेटू बनाने शुरू कर दिए....
ऋतू भी अब नंगी हो चुकी थी और वो नेहा के पीछे से जाकर उसकी कमर से लिपट गयी, और इस तरह से हम भाई बहन ने उस बेचारी नेहा को अपने बीच में सेंडविच की तरह से पीस डाला और अपने -२ बदन को उसके साथ रगड़ना शुरू कर दिया...
ऋतू की चूत से निकलते पानी ने नेहा की गांड पर चिकनाहट की चादर सी बिछा दी...मेरे हाथ जब घूम फिर कर उसकी गांड पर वापिस गए तो वहां का चिकनापन देखकर मेरे दिल में उसकी गांड मारने का ख़याल आया....
मैंने उसे घोड़ी बनाया और उसकी गांड को सहलाकर अपने लंड को वहां रगड़ने लगा.... उसे मालुम तो चल ही गया था की आज उसका आशु भाई उसकी गांड मारेगा, ये सोचते ही उसकी चूत से रस की धार बह निकली...
नेहा : "अह्ह्हह्ह.....ऋतू.....जल्दी से नीचे आओ.....मेरी चूत को चुसो....अह्ह्ह...."
ऋतू उसके नीचे आकर अपनी पीठ के बल लेट गयी और अपना मुंह उसने ऊपर की तरफ करके नीचे गिरते हुए नेहा की चूत के झरने के नीचे लगा दिया...
फिर उसने हाथ ऊपर करके नेहा की कमर को पकड़ा और अपना मुंह ऊपर उठाकर उसकी चूत तक ले गयी अपनी जीभ की नोक बनाकर सीधा उसकी चूत में दाखिल हो गयी...
"अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह.......स्सस्सस्स.......ऊऊओ.....म्मम्म......"
ऋतू ने तेजी से अपनी कजिन की चूत का रस पीना शुरू कर दिया... मैंने भी मौका देखकर चोका मार दिया और अपना लंड उसकी गांड के छेद पर रखकर एक तेज धक्का मारा और मेरा लंड रास्ते की सभी बाधा तोड़ता हुआ बोऊंड्री के पार चला गया...
"आआआआआअह्ह्ह ....... म्मम्म .....मार डाला.........भाई......बता तो देते.....की डाल रहा हूँ.....अह्ह्हह्ह..........."
कुछ देर तक तो वो सुन्न सी होकर मेरे लंड को महसूस करती रही और फिर चूत में ऋतू की जीभ और गांड में मेरे लंड की सनसनाहट को महसूस करते हुए उसने भी अपनी फुलझड़ियाँ छोडनी शुरू कर दी....
"अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह.......म्मम्मम्म..... ऊऊओ...... भयीईईई.......... अह्ह्ह्हह्ह्ह्हह्ह........ ऋतू......जोर से..... कुतिया.. काट मत... कमीनी.....अह्ह्ह्ह......उम्म्म्मम्म....हाँ......ऐसे ही.....आउच......धीरे बाबा......ऊऊह्ह्ह या...ओ या......ऊऊ येस्स........म्मम्मम.....आई एम् कमिंग......अह्ह्ह्हू..........ऊऊ....."
और फिर बड़ी ही अजीब आवाजें निकालते हुए उसने झड़ना शुरू कर दिया....
मेरा लंड तो उसकी गांड की सुरंग में किसी पिस्टन की तरह आ जा रहा था....नीचे से ऋतू भी उसकी चूत पर किसी जोंक की तरह से चिपकी हुई थी....और वहां से निकलता अमृत पीने में लगी हुई थी....
तभी बाहर से दादाजी के ऊपर आने की आहट आई....
दादाजी : "अरे भाई....कौनसे कमरे में हो तुम लोग....मेरा कौनसा है...दांये वाला ...या बाँए वाला...." वो बोलते हुए हमारे ही कमरे की तरफ चले आ रहे थे... उनकी आवाज सुनने के बावजूद मैंने और ऋतू ने नेहा को नहीं छोड़ा....पर दादाजी की आवाज सुनते ही उसकी तो सिट्टी पिट्टी ही गुम हो गयी.... वो जल्दी से अपनी चूत को ऋतू के मुंह के चुंगल से और अपनी गांड को मेरे लंड के पंजे से छुड़ाकर अपने कपडे उठाकर बाथरूम में घुस गयी...उसने ऋतू को भी चलने को कहा ताकि दादाजी उसे और मुझे एक साथ नंगा न देख पाए...पर ना तो मैंने और ना ही ऋतू ने किसी तरह की जल्दबाजी दिखाई....और जैसे ही नेहा बाथरूम में घुसी, दादाजी कमरे में दाखिल हो गए...
अब अन्दर का नजारा बदल चूका था...
नेहा की जगह अब ऋतू ने ले ली थी और घोड़ी बनकर अब मेरा लंड उसकी गांड में था....
दादाजी (अन्दर आते हुए) : "अरे वाह...तुम दोनों तो आते ही शुरू हो गए....शाबाश..."
ऋतू ने पीछे गर्दन करके दादाजी को देखा जो अपनी धोती में से लंड को ढूंढकर मसलने में लगे हुए थे...
दादाजी : "पर...वो नेहा भी तो आई थी न तुम्हारे साथ ऊपर...वो कहाँ है..?"
मैंने ऋतू की गांड के छेद में अपने लंड से धक्के मारते हुए कहा : "वो...वो ...तो कब की चली गयी नीचे....अह्ह्ह....और फिर ...फिर मैंने ...और इसने सोचा...की अह्ह्ह....थोड़ी...थोड़ी थकान उतार ली जाए....थोड़ी ताजगी आ जायेगी...अह्ह्ह्ह....ठीक है न ...दादाजी...."
दादाजी : "हाँ बेटा....थक तो मैं भी गया हूँ...मुझे भी तो थोड़ी सुफुर्ती दे दे ऋतू बेटा....."
उन्होंने दरवाजा बंद कर दिया ताकि कोई नीचे से न आ जाए...और वो ऋतू के सामने जाकर खड़े हो गए....और उन्होंने अपनी धोती को एक तरफ उतार फेंका...नीचे से उनका वही धारीवाला कच्छा निकला , उसे भी उन्होंने उतार दिया...और फिर ऊपर से कुरता भी.... ऋतू ने किसी पालतू कुतिया की तरह से अपने मालिक का लंड जीभ से चाटना शुरू कर दिया...और जल्दी ही दादाजी का कुतुबमीनार ऋतू की आँखों के सामने खड़ा होने लगा....
मैंने दादाजी के पीछे की तरफ बाथरूम के दरवाजे की तरफ देखा, जिसे नेहा थोडा सा खोलकर बाहर की तरफ देख रही थी... उसने जब देखा की दादाजी नंगे होकर खड़े हैं और ऋतू उनका लंड चूसने में लगी हुई है तो उसे समझते देर नहीं लगी की हमने दादाजी को भी टीम में शामिल कर लिया है....वो चिल्लाती हुई नंगी ही बाहर की और चली आई...
नेहा : "वाह.....भाई......तो दादाजी भी अब आ ही गए अपनी पार्टी में...."
दादाजी ने जब नेहा को एकदम से अपने सामने नंगे खड़े देखा तो वो बोखला से गए....उन्होंने जल्दी से अपनी धोती उठाई और अपने लंड के आगे करके उसे छुपा लिया.... पर फिर उन्हें याद आया की वो तो सब हमारे बारे में जानते ही हैं और वैसे भी अब दादाजी को भी नेहा ने ऋतू से लंड चुसवाते हुए देख लिया है...सो कुछ भी और छुपाना बेकार है...और उन्होंने अपनी धोती फिर से नीचे गिरा दी...
नेहा ने जब सामने आकर दादाजी के लंड को देखा तो उसकी आँखे फटी की फटी रह गयी....
नेहा : "दादाजी....ये ...ये क्या है....ओ माय गोड ......इतना लम्बा लंड........दादाजी आप तो छुपे रुस्तम निकले....."
नेहा दादाजी के लम्बे लंड की तारीफ करती जा रही थी और दादाजी थे की अपनी पोती ने नंगे जिस्म को आँखों से चूमने में लगे हुए थे....नेहा के मोटे ताजे निप्पल और उभरी हुई गांड देखकर दादाजी के बैठते हुए लंड ने फिर से उठना शुरू कर दिया.....
नेहा : "वाव....दादाजी...इतना लम्बा और मोटा तो मैंने...मैंने आज तक नहीं देखा....मुझे तो कुछ होने लगा है....अभी से...." वो किसी सम्मोहन में बंधी हुई सी दादाजी के पास गयी और अपनी पतली-२ उंगलियों से दादाजी के काले नाग को बाँधने की कोशिश करने लगी... मैंने ऋतू की गांड में लंड की स्पीड पहले जैसी बनायीं रखी...
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