औरत फ़रोश का हत्यारा ibne safi

Post Reply
Masoom
Pro Member
Posts: 3007
Joined: 01 Apr 2017 17:18

Re: औरत फ़रोश का हत्यारा ibne safi

Post by Masoom »

कोठी के बाग़ में एक बड़ी-सी मेज़ बिछी हुई थी जिस पर दावत का सामान लगा हुआ था। सर सीताराम, सुरेन्द्र और कुछ लोग कुर्सियों पर बैठे गप्पें मार रहे थे। कर्नल प्रकाश अभी नहीं आया था। डॉक्टर महमूद के पहूँचने पर सब लोग खड़े हो गये। उसके साथ एक अधेड़ उम्र के अजनबी को देख कर लेडी सीताराम ने बुरा-सा मुँह बनाया। सर सीताराम का मूड भी कुछ ख़राब हो गया।

‘‘सर सीताराम, आपसे मिलिए।’’ डॉक्टर महमूद ने मुस्कुरा कर कहा। ‘‘आप हैं मेरे दोस्त ख़ान बहादुर मुजाहिद मि़र्जा, अवध के बहुत बड़े ताल्लुक़ेदार... आपका सिलसिला वाजिद अली शाह मरहूम से मिलता है।’’

‘‘ओह, बहुत ख़ुशी हुई आपसे मिल कर।’’ सर सीताराम ने उठ कर गर्मजोशी से हाथ मिलाते हुए कहा।

‘‘मुझे आपसे मिलने का बहुत अरमान था...’’ हमीद ने कहा। ‘‘हालाँकि मुझे इस वक़्त न आना चाहिए था, लेकिन मैं आज रात की गाड़ी से लखनऊ वापस जा रहा हूँ। महमूद साहब यहाँ आ रहे थे। मैंने सोचा, लगे हाथ आपसे भी मिल लूँ।’’

‘‘अरे, ख़ान बहादुर साहब...’’ सर सीताराम ने कहा। ‘‘मेरी ख़ुशक़िस्मती है कि मैं आपसे मुलाक़ात कर सका, मुझे ख़ानदानी आदमियों से मिल कर बेहद ख़ुशी होती है।’’

‘‘मुहब्बत है आपकी।’’ हमीद ने मुस्कुरा कर कहा। ‘‘दरअसल मुझे जो चीज़ यहाँ तक खींच कर लायी है, वो आपके कुत्ते हैं। मुझे भी कुत्तों का शौक़ है।’’
‘‘तब तो आपसे मिल कर और भी ख़ुशी हुई।’’ सर सीताराम ने बच्चों की तरह हँसते हुए कहा। लेडी सीताराम ने नफ़रत से होंट सिकोड़ लिये। सर सीताराम और हमीद में कुत्तों के सिलसिले में एक लम्बी बहस छिड़ गयी। दोनों अपने आपको ज़्यादा क़ाबिल दिखाना चाहते थे। बाद में यह तय हुआ कि चाय पीने के बाद सर सीताराम के कुत्ताघर की सैर की जायेगी।

थोड़ी देर के बाद कर्नल प्रकाश भी आ गया। वह इस वक़्त पहले से ज़्यादा शानदार नज़र आ रहा था। उसे देख कर सब लोग खड़े हो गये। सर सीताराम ने आगे बढ़ कर उनका स्वागत किया।

‘‘आइए, आइए, कर्नल साहब... हम सब बेचैनी से आपका इन्तज़ार कर रहे थे।’’

‘‘शुक्रिया, शुक्रिया।’’ कर्नल प्रकाश मुस्कुराता हुआ बोला।

‘‘इनसे मिलिए।’’ सर सीताराम ने परिचय कराना शुरू किया। ‘‘रेखा, मेरी बीवी।’

‘‘बड़ी ख़ुशी हुई आपसे मिल कर।’’ कर्नल प्रकाश ने हाथ मिलाते समय झुक कर कहा।

लेडी सीताराम के माथे पर पसीने की हल्की-हल्की बूँदें फूट आयी थीं। वह हाथ मिला कर ज़बर्दस्ती मुस्कुराने की कोशिश करती हुई ख़ामोशी से बैठ गयी। उसके बाद एक-एक करके सबसे परिचय कराया गया। हमीद महसूस कर रहा था कि कर्नल प्रकाश की नज़र बार-बार उस पर पड़ रही थी। वह कुछ घबरा-सा गया। लेकिन फ़ौरन ही ख़ुद पर क़ाबू करके मुस्कुरा-मुस्कुरा कर बातें करने लगा। लेडी सीताराम अब तक ख़ामोश थी। शायद सर सीताराम ने भी उसे महसूस कर लिया था। इसलिए एक मौक़े पर कह उठे।
‘‘कर्नल साहब, रेखा को ज़्यादा बातें करने की आदत नहीं और अजनबियों से वह कुछ शर्माती भी है।’’

‘‘ख़ूब, यह तो अच्छी आदत है।’’ कर्नल प्रकाश ने मुस्कुरा कर कहा। ‘‘कम-से-कम हर शरीफ़ औरत में यह सिफ़त तो होनी ही चाहिए। क्या खय़ाल है, नवाब साहब।’’

‘‘ठीक फ़रमाया आपने...’’ हमीद ने कहा।

चाय का दौर ख़त्म हो जाने के बाद सर सीताराम सबको ले कर कुत्ताघर की तरफ़ चले गये।

कर्नल प्रकाश और हमीद ने कुत्तों की जम कर तारीफ़ की। एक कुत्ते की नस्ल के बारे में दोनों में बहस हो गयी। दोनों किसी तरह चुप होने का नाम ही न लेते थे। हमीद को अपनी मालूमात पर पूरा भरोसा था, क्योंकि वह फ़रीदी जैसे माहिर उस्ताद का चेला था। बहस को लम्बा खिंचता देख कर आख़िरकार सर सीताराम को बीच-बचाव कराना पड़ा।

सब कुत्तों को देख लेने के बाद, वे फिर बाग़ में पड़ी हुई कुर्सियों पर आ कर बैठ गये।

‘‘अच्छा, सर सीताराम... मैं अब जाना चाहूँगा।’’ कर्नल प्रकाश ने कहा।

‘‘ऐसी भी क्या जल्दी?’’

‘‘मुझे बिज़नेस के सिलसिले में एक साहब से मिलना है।’’

‘‘अब तो बराबर मुलाक़ात होती रहेगी न?’’ सर सीताराम ने भी उठते हुए कहा।

‘‘जब तक यहाँ रुका हूँ, तब तक तो मुलाक़ात होगी ही... और अभी तक यहाँ अच्छी सोसाइटी मिली ही नहीं।’’

सर सीताराम ने दाँत निकाल दिये।

कर्नल प्रकाश के चले जाने के बाद काफ़ी लोग एक-एक करके उठ गये।

‘‘जब भी इस शहर में आइएगा, इस ग़रीबख़ाने को न भूलिएगा।’’ सर सीताराम ने हमीद से कहा।

‘ज़रूर, ज़रूर... आपकी बातचीत ने मेरे दिल पर गहरा असर डाला है। कभी लखनऊ तशरीफ़ लाइए।’’

‘‘क्या बताऊँ, न जाने क्यों अब घर छोड़ते वक़्त कुछ उलझन-सी महसूस होती है।’’

हमीद यूँ ही हँसने लगा और उसकी निगाह लेडी सीताराम की तरफ़ उठ गयी जो उसे बहुत ग़ौर से देख रही थी।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्‍वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
Masoom
Pro Member
Posts: 3007
Joined: 01 Apr 2017 17:18

Re: औरत फ़रोश का हत्यारा ibne safi

Post by Masoom »

बुरे फँसे

हमीद को अपनी बेवकूफ़ी पर बहुत अफ़सोस हुआ कि उसने यह क्यों कह दिया कि वह आज ही रात की गाड़ी से लखनऊ वापस जा रहा है। अब इस तरह फ़िलहाल वह वहाँ न जा सकेगा। उसे फ़रीदी की हिदायत याद आ गयी कि कोठी के अन्दर जाने की कोशिश न करना। मालूम नहीं, उसने यह क्यों कहा था। हमीद सोचने लगा, कहा होगा, अपना-अपना काम करने का तरीक़ा है, जब फ़रीदी को इस केस से कोई दिलचस्पी ही नहीं, तो ख़ामख़ा क्यों उसकी हिदायतों के चक्कर में पड़ कर अपना काम ख़राब करे। अब वह फिर कर्नल प्रकाश के पीछे लग गया था। दो-चार दिन इसी क़िस्म के चक्करों में गुज़र गये, लेकिन कोई काम की बात न मालूम हो सकी। इन तीन-चार दिनों में लेडी सीताराम और कर्नल प्रकाश बाक़ायदा तौर पर खुल्लम-खुल्ला एक-दूसरे से मिलने लगे थे। लेडी सीताराम अब ‘गुलिस्ताँ होटल’ में सुरेन्द्र के सामने भी कर्नल प्रकाश के साथ नाच सकती थी। हमीद महसूस कर रहा था कि सुरेन्द्र को कर्नल प्रकाश और लेडी सीताराम की बेतकल्लुफ़ी बिलकुल पसन्द नहीं। हमीद को हैरत तो इस बात पर थी कि कर्नल प्रकाश लेडी सीताराम और सुरेन्द्र के ताल्लुक़ात के बारे में जानते हुए भी क्यों उस पर बुरी तरह रीझा हुआ है। बार-बार उसके दिल में ख़्वाहिश पैदा होती कि काश, फ़रीदी यहाँ मौजूद होता। उसे इस बीच उसे फ़रीदी से थोड़ी-सी चिढ़ ज़रूर हो गयी थी, लेकिन वह अच्छी तरह समझता था कि अगर वह यहाँ मौजूद होता तो कभी का सारा केस हल हो गया होता। उसको अब अफ़सोस हो रहा था कि उसने फ़रीदी को सारे हालात लिख कर क्यों नहीं भेज दिये। हो सकता था कि वह ऐसे अजीबो-ग़रीब केस को हल करने के शौक़ में बीमारी ही की हालत में चला आता।

इन दिनों उसे शहनाज़ की याद बुरी तरह सता रही थी। उसे उसकी बेगुनाही का पूरा-पूरा यक़ीन था। वैसे कभी-कभी वह उसकी बढ़ी हुई आज़ादी और लेडी सीताराम की आदतों का खय़ाल करते हुए उससे दुखी ज़रूर हो जाता था, लेकिन यह चीज़ बिलकुल वक़्ती होती थी। वह फिर यह सोचने पर मजबूर हो जाता था कि दुनिया की सारी औरतें या सारे मर्द एक जैसे नहीं होते, इश्क़ और मुहब्बत के मामले में वह एक बेपरवाह आदमी था। उसका अक़ीदा था कि दुनिया में क़ैस और फ़रहाद क़िस्म की मुहब्बत का वजूद ही नहीं था। उसने अब से पहले भी कई इश्क़ किये थे, लेकिन वे सिर्फ़ फ़िल्मी गानों और बेतुकी हाय-वाय ही तक सीमित रहे थे और वैसे वह फ़रीदी को चिढ़ाने के लिए भी अकसर एक-आध इश्क़ कर बैठता था। ऐसी कहानियों के महबूब ज़्यादातर फ़़र्जी हुआ करते थे। शहनाज़ से भी उसकी महज़ दोस्ती थी, लेकिन इस बीच में उसे उससे हमदर्दी ज़रूर हो गयी थी और यह हमदर्दी धीरे-धीरे दूसरी शक्ल लेती जा रही थी। लेकिन ऐसा भी नहीं हुआ था कि उसने अपनी कोई रात तारे गिन-गिन कर गुज़ारी हो, या सिर्फ़ आहें भरता रहा हो। दोनों वक़्त पेट भर कर खाना खाता था, ‘गुलिस्ताँ होटल’ में जा कर एक आधा राउण्ड नाचता भी था, लेकिन साथ ही यह ज़रूर था कि शहनाज़ को हासिल करने के लिए अपनी जान की भी बाज़ी ज़रूर लगा सकता था। उसके लिए अपना ख़ून बहाने के लिए भी तैयार था।

आज शाम को जब वह दफ़्तर से वापस आया तो उसे फ़रीदी का ख़त मिला। जिसमें उसने सबसे पहले शहनाज़ के बारे में पूछा था, फिर येलो डिंगू की कहानी थी और आख़िर में अपनी बीमारी का हाल लिखा था। वह अभी तक बीमार था। कमज़ोरी बहुत ज़्यादा थी, इसलिए सफ़र करने की हिम्मत नहीं कर सकता था। आख़िर में उसने फिर लिखा था कि उसे केस की पूरी जानकारी दी जाये। फ़रीदी का ख़त पढ़ कर हमीद के दिल में हमदर्दी का जज़्बा जाग उठा। वह मुहब्बत जाग उठी जो उसे फ़रीदी से थी। उसे फ़रीदी से उतनी ही मुहब्बत थी जितनी कि अपने बड़े भाई से हो सकती है। अगर फ़रीदी ने उसे यह न लिख दिया होता कि तुम परेशान हो कर यहाँ आने की कोशिश न करना, बल्कि शहनाज़ के सिलसिले में छानबीन में लगे रहना, तो वह एक-आध हफ़्ते की छुट्टी ले कर बम्बई ज़रूर जाता और जिस तरह भी बन पड़ता, फ़रीदी को वहाँ से लाने की कोशिश करता।

नाश्ता करने के बाद हमीद ने फ़रीदी को ख़त लिखना शुरू किया। पूरे हालात लिखे, येलो डिंगू का हवाला देते हुए लिखा कि महज़ उसकी वजह से उसे इतनी बातें मालूम हुर्इं और वह बहुत जल्द उसे कर्नल प्रकाश से क़ानूनी तौर पर छीन लेगा। ख़त ख़त्म कर चुकने के बाद वह सो गया।

आज रात को ‘गुलिस्ताँ होटल’ में ख़ास प्रोग्राम था। टिकट का दाम इतना बढ़ा दिया गया था कि सिर्फ़ हाई सोसाइटी ही के लोग उसमें हिस्सा ले सकते थे। कर्नल प्रकाश के बारे में जानकारी लेने के बाद से हमीद रोज़ाना ‘गुलिस्ताँ होटल’ जाता था, इसलिए उसे रात को सोने का मौक़ा कम मिलता था। यही वजह थी कि आजकल दिन में सोना उसके लिए ज़रूरी हो गया था।

तक़रीबन आठ बजे वह सो कर उठा। बेवक़्त सोने से तबीयत कुछ भारी हो गयी थी। लेकिन का़ॅफी के एक प्याले ने उसके जिस्म में हरकत पैदा कर दी थी। खाना खाने के बाद उसने जल्दी-जल्दी कपड़े बदले और ‘गुलिस्ताँ होटल’ की तरफ़ रवाना हो गया।

‘गुलिस्ताँ होटल’ के नाच घर को आज बिलकुल अनोखे अन्दाज़ में सजाया गया था। चारों तरफ़ क़हक़हे गूँज रहे थे। हमीद की निगाहें कर्नल प्रकाश और लेडी सीताराम को ढूँढ रही थीं, लेकिन वे दोनों अभी तक नहीं आये थे। हमीद ऊपर गैलरी में गया। बालकनी भी ख़ाली थी। फिर टहलता हुआ कर्नल प्रकाश के कमरे की तरफ़ गया। वह भी बन्द था। थक-हार कर वह हॉल में लौट आया। एक जगह एक मेज़ ख़ाली नज़र आयी। क़रीब जाने पर मालूम हुआ कि कर्नल प्रकाश के लिए पहले ही से ‘‘बुक’’ कर दी गयी थी। एक मेज़ के पास दो ऐंग्लो इण्डियन लड़कियाँ बैठी हुई थीं। बाक़ी दो कुर्सियाँ ख़ाली थीं। वह उनके क़रीब गया।

‘‘अगर कोई हर्ज न हो तो मैं यहाँ बैठ जाऊँ।’’ हमीद ने कहा।

‘ज़रूर, ज़रूर...’’ दोनों एक साथ बोलीं।

हमीद उनका शुक्रिया अदा करके बैठ गया। वह यूँ भी काफ़ी हसीन था और इस वक़्त उम्दा क़िस्म के काले सूट में वह कोई बड़ा आदमी मालूम हो रहा था। शायद वे दोनों भी उसे ऐंग्लो इण्डियन समझ रही थीं। हमीद ने बैठते ही उन पर रोब डालने के लिए कुछ खाने-पीने की चीज़ों का ऑर्डर दिया।

‘‘आप हम लोगों के लिए तकलीफ़ न कीजिए।’’ लड़कियों में से एक बोली।

‘‘वाह, यह कैसे हो सकता है।’’ हमीद ने मुस्कुरा कर कहा।

‘‘माफ़ कीजिएगा, हम लोग ऐसे लोगों की दावत क़बूल नहीं करते, जिन्हें हम जानते न हों।’’

‘‘तो इसमें हर्ज ही क्या है... अब आप मुझे जान जायेंगी। मुझे आर्थर कहते हैं, आपके शहर में नया आया हूँ।’’

दोनों लड़कियाँ एक-दूसरे को देख कर हँसने लगीं।

‘‘यह जूलिया है और मैं लिज़ी... हम दोनों स्टूडेण्ट हैं।’’

‘‘कितने प्यारे हैं आप दोनों के नाम... जूलिया...लिज़ी... ऐसा मालूम होता है जैसे किसी ने कानों में शहद टपका दिया हो।’’

‘‘तो आप शायर भी हैं।’’ जूलिया ने मुस्कुरा कर कहा।

‘‘काश, मैं शायर होता। जूलिया...लिज़ी...लिज़ी...जूलिया...’’

इतने में बैरा ऑर्डर ले कर आ गया। तीनों खाने-पीने में लग गये। थोड़ी देर के बाद नाच के लिए संगीत शुरू हो गया।

‘‘मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि मैं नाच के लिए किससे प्रपोज़ करूँ।’’ हमीद ने कहा।

‘‘हम दोनों बारी-बारी से नाचेंगी।’’ जूलिया ने कहा।

और लिज़ी उठ कर खड़ी हो गयी। हमीद ने उसकी तरफ़ हाथ बढ़ाया और दोनों धीरे-धीरे हिलते हुए नाचने वालों की भीड़ में आ गये।

‘‘तुमने बहुत ज़्यादा पी रखी है।’’ लिज़ी मुस्कुरा कर बोली।

‘‘मैंने... नहीं, एक क़तरा भी नहीं।’’

‘‘कौन-सी पीते हो...?’’

‘‘स्कॉच...’’ हमीद ने जल्दी से कहा। ‘‘लेकिन मैंने इतवार के दिन पीने से क़सम खा रखी है।’’

‘‘क्यों...?’’

‘‘मैं थोड़ा-सा मज़हबी आदमी भी हूँ।’’

‘‘यह बहुत बुरी बात है।’’

‘‘अच्छी हो या बुरी... उसूल, बहरहाल उसूल है।’’ हमीद ने कहा। ‘‘तुम कौन-सी पीती हो।’’

‘‘शेरी...’’

‘‘अच्छा, तो मैं तुम्हें शेरी ज़रूर पिलाऊँगा।’’

‘‘तुम बहुत ख़ूबसूरत हो।’’

‘‘एक बार एक बुढ़िया ने भी मुझसे यही कहा था।’’

लिज़ी खिलखिला कर हँस पड़ी।

‘‘तुम बहुत दिलचस्प आदमी मालूम होते हो।’’

‘‘तुम जैसी ख़ूबसूरत लड़कियों की नज़दीकी मुझे सब कुछ बना देती है।’’

‘‘बातें ख़ूब बना लेते हो।’’

‘‘मैं रोज़ाना एक दर्जन बातें बनाता हूँ और फिर उन्हें पैक करके बिकने के लिए बाज़ार में भेज देता हूँ।’’

‘‘तुम ज़रूर पिये हुए हो।’’

‘‘तुम्हारी सितारों से ज़्यादा चमकदार आँखों की क़सम मैं नशे में नहीं हूँ।’’

‘‘ख़ैर होगा... तुम बहुत अच्छा नाच लेते हो।’’

अचानक हमीद की नज़रें उस मेज़ की तरफ़ उठ गयीं जो कर्नल प्रकाश के लिए बुक थी। शायद कर्नल प्रकाश, लेडी सीताराम और सुरेन्द्र अभी-अभी आ कर बैठे थे। लेडी सीताराम इस वक़्त बहुत ज़्यादा ख़ूबसूरत लग रही थी। थोड़ी देर सुस्ताने के बाद कर्नल प्रकाश और लेडी सीताराम नाचने के लिए तैयार हो गये। हमीद और लिज़ी कई बार नाचते हुए कर्नल प्रकाश और लेडी सीताराम के क़रीब से गुज़रे। लेडी सीताराम शराब के नशे में मस्त थी।
नाच के साथ-साथ संगीत धीरे-धीरे त़ेज होता जा रहा था कि अचानक पूरे हॉल में अँधेरा छा गया। शायद फ़्य़ूज उड़ गया था। अँधेरे में अजीब तरह का शोर मच गया। अचानक एक औरत की चीख़ सुनाई दी।
कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्‍वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
Masoom
Pro Member
Posts: 3007
Joined: 01 Apr 2017 17:18

Re: औरत फ़रोश का हत्यारा ibne safi

Post by Masoom »

‘‘अरे... अरे... छोड़ो... अरे छोड़... मेरा हार... मेरा हार...’’ वह बुरी तरह चीख़ रही थी। उसी के साथ ही और भी कई त़ेज आवाज़ें सुनाई देने लगीं। कुछ पलों के बाद फिर रोशनी हो गयी। एक जवान औरत जो कपड़ों से काफ़ी दौलतमन्द मालूम हो रही थी अभी तक ‘‘मेरा हार! मेरा हार!’’ चीख़े जा रही थी। कुछ लोग उसके पास इकट्ठे हो गये थे।

‘‘किसी ने मेरा हीरों का हार उतार लिया...’’ वह चीख़ कर बोली।

इतने में मैनेजर भी आ गया। उसने हॉल के सब दरवाज़े ताले लगा कर बन्द करवा दिये।

‘‘भाइयो और बहनो,’’ वह एक मेज़ पर खड़ा हो कर बोला। ‘‘मुझे बहुत अफ़सोस है, किसी बदमाश ने लेडी इक़बाल का हार चुरा लिया है। मजबूरन मुझे उस वक़्त तक के लिए सब दरवाज़े बन्द करा देने पड़े हैं, जब तक कि पुलिस आ कर मुनासिब कार्रवाई न शुरू कर दे। उम्मीद है कि आप लोग मुझे इस गुस्ताख़ी के लिये माफ़ कर देंगे।’’

‘‘बिलकुल ठीक है... बिलकुल ठीक है।’’ बहुत-सी आवाज़ें सुनाई दीं।

कुछ देर बाद पुलिस आ गयी। एक सिरे से सबकी तलाशी शुरू हो गयी। तलाशी लेने वालों में इन्स्पेक्टर जगदीश भी था। जब वह हमीद के क़रीब आया तो हमीद ने भी अपने हाथ उठा दिये।

‘‘अरे आप...’’ जगदीश ठिठक कर बोला। ‘‘क्यों मज़ाक़ करते हैं।’’

वह आगे बढ़ने लगा।

‘‘ठहरो... मेरी तलाशी भी लेते जाओ।’’ हमीद ने धीरे से कहा।
जगदीश भी ठिठक गया।

‘‘जल्दी करो... हिचकिचाओ नहीं... समझने की कोशिश करो और मेरे लिए तुम बिलकुल अजनबी बने रहो।’’ जगदीश ने हमीद की भी तलाशी ली और आगे बढ़ गया। हमीद ख़ुद भी अपनी त़ेज नज़रों से बराबर काम ले रहा था। लेकिन उसे अच्छी तरह यक़ीन हो गया था कि चोर इस वक़्त हॉल में मौजूद नहीं। क्योंकि औरत के चीख़ने के दो-तीन मिनट बाद तक हॉल में अँधेरा रहा था। इतनी देर में चोर बहुत आसानी से बाहर जा सकता था। इस वक़्त की तलाशी सिर्फ़ रस्मी कार्रवाई समझ रहा था।

तलाशी का सिलसिला लगभग तीन घण्टे तक जारी रहा, लेकिन कोई नतीजा न निकला। आख़िर थक-हार कर पुलिस वालों ने दरवाज़े खुलवा दिये। थोड़ी देर बाद हॉल में बिलकुल सन्नाटा था। सिर्फ़ वही लोग बाक़ी रह गये थे जो ‘गुलिस्ताँ होटल’ में ठहरे हुए थे। लेडी सीताराम और सुरेन्द्र भी अभी मौजूद थे। उन्हीं के क़रीब की एक मेज़ पर हमीद भी कॉफ़ी पी रहा था। पुलिस वाले कुछ देर ठहर कर वापस चले गये। लेडी इक़बाल अभी तक मैनेजर से उलझी हुई थी। मैनेजर बुरी तरह परेशान था, क्योंकि उसके होटल में यह दूसरा हादसा था और अब कोई चीज़ होटल को बदनामी से नहीं बचा सकती थी।

‘‘अब चलना चाहिए।’’ लेडी सीताराम बोली।

‘‘ऐसी भी क्या जल्दी।’’ कर्नल प्रकाश ने कहा। ‘‘कुछ देर चल कर मेरे कमरे में बैठिए, फिर चली जाइएगा... क्यों सुरेन्द्र साहब।’’

‘‘मुझे कोई एतराज़ नहीं।’’ सुरेन्द्र ने कहा।

तीनों उठ कर ज़ीनों की तरफ़ बढ़े।

उनका पीछा करने की ख़्वाहिश को हमीद किसी तरह न दबा सका। वह तब ख़ास तौर पर कर्नल प्रकाश का पीछा करने का आदी हो गया था जब लेडी सीताराम भी उसके साथ होती थी और उस वक़्त तो सुरेन्द्र भी था। कर्नल प्रकाश का दुश्मन। इस वक़्त उनका पीछा करने की सबसे बड़ी वजह यह थी कर्नल प्रकाश ने इन दोनों को इतनी रात गये रोका क्यों है। हमीद भी उठा और सीढ़ियाँ चढ़ कर ऊपर आया। कर्नल प्रकाश के कमरों के सामने एक छोटा-सा लॉन था, जिसे ऊँची-ऊँची दीवारों ने चारों तरफ़ से घेर रखा था। इस तरह यह हिस्सा होटल के दूसरे हिस्सों से बिलकुल अलग हो गया था। कमरे का दरवाज़ा बन्द था। हमीद दरवाज़े से लग कर खड़ा हो गया। उसे इत्मीनान था कि उस वक़्त उधर कोई नहीं आ सकता। उसने अपनी आँख दरवाज़े की चाभी के सूराख़ से लगा दी। लेडी सीताराम और सुरेन्द्र सोफ़ों पर बैठे हुए थे और कर्नल प्रकाश टहल रहा था।

‘‘मैं इस वक़्त आप लोगों को अपना एक करतब दिखाना चाहता हूँ।’’ वह टहलते-टहलते रुक कर बोला।
सुरेन्द्र और लेडी सीताराम उसे हैरत से देखने लगे।

‘‘यह देखिए... यह रहा... लेडी इक़बाल का हार...’’

‘‘अरे...’’ कह कर लेडी सीताराम और सुरेन्द्र खड़े हो गये।

कर्नल प्रकाश ने एक ज़ोरदार क़हक़हा लगाया।

‘‘मैं आपको इतना गिरा हुआ नहीं समझता था।’’ सुरेन्द्र ने त़ेज आवाज़ में कहा।

‘‘ओह मेरे शेर...’’ कर्नल प्रकाश कँटीली हँसी के साथ बोला। ‘‘तुम किसी से कम हो।’’

‘‘क्या मतलब...’’ सुरेन्द्र जल्दी से बोला। उसके चेहरे पर परेशानी साफ़ दिखने लगी थी।

‘‘मतलब साफ़ है, ज़रा इसे देखिए।’’ कर्नल प्रकाश ने एक कागज़़ निकाल कर सुरेन्द्र की तरफ़ बढ़ाते हुए कहा।

सुरेन्द्र कागज़़ ले कर पढ़ने लगा। उसके माथे से पसीने की बूँदें टपकने लगीं, उसने कागज़़ फाड़ देने का इरादा किया, लेकिन दूसरे ही पल में कर्नल प्रकाश के हाथ में पिस्तौल थी।

‘‘ख़बरदार... इधर लाओ, वरना भेजा उड़ा दूँगा।’’ उसने धीरे से कहा। ‘‘तुम ग़लत समझे। मैं तुमसे समझौता करना चाहता हूँ।’’

सुरेन्द्र ने कागज़़ लौटा दिया, लेकिन वह बुरी तरह काँप रहा था। लेडी सीताराम के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ रही थीं। ऐसा मालूम हो रहा था जैसे वह गूँगी हो गयी हो। कभी वह सुरेन्द्र की तरफ़ देखती और कभी कर्नल प्रकाश की तरफ़।

‘‘मैं इस कागज़़ की पूरी कहानी अच्छी तरह जानता हूँ।’’ कर्नल प्रकाश ने कहा।

‘‘न जाने आप क्या कह रहे हैं।’’ सुरेन्द्र मुश्किल से बोला।

‘‘ख़ैर, तुम अभी बच्चे हो... मुझे धोखा नहीं दे सकते। हाँ, अब आओ काम की बात की तरफ़। मैं तुमसे समझौता करना चाहता हूँ।’’

‘‘किस बात का समझौता।’’

‘‘हाँ, अब आये हो सीधी राह पर।’’ कर्नल प्रकाश मेज़ पर बैठते हुए बोला।
कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्‍वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
Masoom
Pro Member
Posts: 3007
Joined: 01 Apr 2017 17:18

Re: औरत फ़रोश का हत्यारा ibne safi

Post by Masoom »

‘‘जानते हो मैं अफ़्रीका से यहाँ किसलिए आया हूँ? ये तीनों हार मेरे ही हैं और ये दुनिया में अपना जवाब नहीं रखते। इस हार की असली कीमत लेडी इक़बाल को भी पता नहीं। हाँ, तो ये हार मेरी तिजोरी से चुराये गये थे। मैं काफ़ी दिनों तक उनकी तलाश में घूमता रहा। आख़िर मुझे पता चला कि तीनों हार इस मुल्क में बेच दिये गये हैं। मैं यहाँ आया और काफ़ी दिनों तक इधर-उधर की ख़ाक छानता रहा। आख़िरकार मुझे मालूम हो ही गया कि तीनों हार इसी शहर में बेचे गये हैं। एक तो मैंने हासिल कर ही लिया। बाक़ी रहे दो हार... उनके बारे में कुछ पता नहीं चल सका कि किसके क़ब्ज़े में हैं। बहरहाल, मैं जिस मामले में तुमसे समझौता करना चाहता हूँ, वह यह है कि तुम दोनों मुझे यहाँ के बड़े आदमियों से मिलाओ। मैं अपने हार हासिल करके वापस चला जाऊँगा और एक बहादुर की तरह वादा करता हूँ कि तुम लोगों का राज़ मेरे सीने में दफ़्न रहेगा।’’

लेडी सीताराम और सुरेन्द्र बेबसी से एक-दूसरे को ताक रहे थे।

‘‘मेरा दोस्ती का हाथ हमेशा तुम लोगों की तरफ़ बढ़ा रहेगा।’’ कर्नल प्रकाश फिर बोला। ‘‘तुम जब भी यहाँ अपने लिए ख़तरा महसूस करो, तुम लोग मेरे साथ अफ़्रीका आ सकते हो, मैं हमेशा तुम्हें अपना ही समझूँगा। तुम लोग अभी मुझे जानते नहीं। मैं तुम्हें एक रात में करोड़पति बना सकता हूँ... बोलो, क्या कहते हो।’’

‘‘मंज़ूर है...’’ सुरेन्द्र ने कहा।

‘‘शाबाश... मुझे तुमसे यही उम्मीद थी... बिना एक-दूसरे के काम आये... ज़िन्दा रहना बेकार है।’’

कर्नल प्रकाश ख़ामोश हो गया। ऐसा मालूम हुआ जैसे वह किसी चीज़ पर ग़ौर कर रहा हो। अचानक वह दरवाज़े की तरफ़ झपटा... और दरवाज़ा खोल दिया। हमीद सँभलने भी न पाया था कि कर्नल प्रकाश का हाथ उसकी गर्दन पर पड़ा।

‘‘ख़बरदार, शोर न करना... वरना यहीं ढेर कर दूँगा।’’ कर्नल प्रकाश ने हमीद को कमरे के अन्दर धकेल कर दरवाज़ा अन्दर से बन्द कर दिया।
लेडी सीताराम और सुरेन्द्र घबरा कर खड़े हो गये।

‘‘यह कौन है...?’’ दोनों बोल पड़े।

हमीद बेबसी से फ़र्श पर पड़ा कर्नल प्रकाश के हाथ में दबे हुए पिस्तौल को देख रहा था।

‘‘कौन है बे तू...?’’ कर्नल प्रकाश गरज कर बोला।

‘‘तमीज़ से बात करो।’’ हमीद उठ कर बैठते हुए बोला।

‘‘अच्छा जी... सीधी तरह बताओ नहीं तो...’’

‘‘अगर मैं न बताऊँ तो...’’

‘‘मेरा एक कारतूस ख़राब होगा...’’ कर्नल प्रकाश बोला। उसके आवाज़ में दरिन्दगी महसूस हो रही थी।

हमीद लरज़ उठा।

‘‘जानते हो, कर्नल प्रकाश का राज़ मालूम करने वाले की सज़ा मौत है।’’ कर्नल ने कहा। ‘‘ख़ैरियत चाहते हो तो सीधी तरह बता दो कि तुम कौन हो।’’
‘‘तुम ज़रा गोली चला कर तो देखो।’’ हमीद कड़क कर बोला। ‘‘कर्नल प्रकाश, तुमने शायद अभी तक किसी बराबर वाले से टक्कर नहीं ली।’’

‘‘वाह री मेरी मेंढकी।’’ कर्नल प्रकाश ने कहा। ‘‘मेरे पास ज़्यादा वक़्त नहीं, वरना मैं अभी तुमसे उगलवा लेता... ख़ैर, फिर सही...’’

कर्नल प्रकाश ने मेज़ पर रखा हुआ रोल उठा कर हमीद के सिर पर दे मारा... हमीद लड़खड़ा कर गिर पड़ा। उसने दो-तीन रोल और रसीद किये। हमीद बेहोश हो चुका था।

‘‘देखा तुमने...’’ कर्नल दोनों की तरफ़ मुड़ कर बोला। ‘‘इस तरह लोग मेरे पीछे लगे हुए हैं, मालूम नहीं यह कौन है। शुक्र है कि मैंने बातों में तुम्हारे राज़ पर कोई रोशनी नहीं डाली। मगर इसे शक ज़रूर हो गया होगा। यह मालूम करना ज़रूरी है कि यह कौन है, वरना मैं इसको इसी वक़्त ठिकाने लगा देता। मगर अब सवाल यह पैदा होता है कि इसे रखा कहाँ जाये।’’

‘‘इसका इन्तज़ाम मैं करूँगी।’’ लेडी सीताराम जल्दी से बोली। ‘‘लेकिन इसे यहाँ से किस तरह ले जाया जायेगा।’’

‘‘बहुत ही आसानी से... यह मैं कर लूँगा।’’ कर्नल प्रकाश ने कहा और हमीद पर झुक गया। हमीद का सिर फट गया था। ज़ख़्म से खून बह रहा था।

कर्नल प्रकाश ने ज़ख़्म साफ़ करके पट्टी बाँध दी।

‘‘सुरेन्द्र, आओ... इसे पकड़ कर नीचे ले चलें। कार तो तुम लाये ही होगे।’’ कर्नल ने कहा।

‘‘तो क्या इसी तरह नीचे ले जाइएगा।’’ लेडी सीताराम हैरत से बोली।

‘‘हाँ... इसी तरह... तुम घबराओ नहीं... तुम अभी मुझे नहीं जानतीं।’’

हमीद को एक तरफ़ से सुरेन्द्र ने पकड़ा और दूसरी तरफ़ से कर्नल प्रकाश ने और उसे सहारा देते हुए ले चले।

नीचे उतर कर वे हॉल से गुज़र रहे थे कि मैनेजर लपकता हुआ उनकी तरफ़ आया।

‘‘क्यों... कर्नल साहब क्या बात है?’’

‘‘अरे साहब, क्या बताऊँ... आज कल के लौंडों के जिस्म में ताक़त नहीं और पीने पर आयेंगे तो बोतलें साफ़... साहबज़ादे ने वह उछल-कूद मचायी कि सिर ही फोड़ बैठे। अब इन्हें इनके घर फेंकने जा रहा हूँ। मना कर रहा था कि ज़्यादा न पियो... मगर कौन सुनता है।’’

मैनेजर मुस्कुरा कर सिर हिलाता हुआ वापस चला गया।

‘‘क्यों सुरेन्द्र, कैसी रही।’’ कर्नल प्रकाश कार में बैठ कर बोला।

‘‘मानता हूँ उस्ताद...’’

‘‘मैं आपको इतना दिलेर नहीं समझती थी।’’ लेडी सीताराम बाली।

‘‘अभी तुम लोगों ने देखा ही क्या है... मुझे कर्नल प्रकाश कहते हैं।’’

कार अँधेरी सड़कों पर अपनी रोशनी बिखेरती हुई त़ेजी से सर सीताराम की कोठी की तरफ़ जा रही थी।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्‍वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
Masoom
Pro Member
Posts: 3007
Joined: 01 Apr 2017 17:18

Re: औरत फ़रोश का हत्यारा ibne safi

Post by Masoom »

प्रेम कहानी

हमीद को होश आया तो उसे अपने चारों तरफ़ अँधेरा-ही-अँधेरा फैला हुआ मालूम हुआ। उसका सिर बुरी तरह दुख रहा था। ख़ून ज़्यादा बह जाने की वजह से कमज़ोरी बढ़ गयी थी। उसने लेटे- ही-लेटे इधर-उधर हाथ-पैर चलाये। वह एक चटाई पर पड़ा था, थोड़ी देर तक वह आँखें फाड़-फाड़ कर अँधेरे में घूरता रहा, फिर उसने आँखें बन्द कर लीं। धीरे-धीरे सारी कहानी उसके ज़ेहन में नाचने लगी। मालूम नहीं वह इस वक़्त कहाँ पड़ा हुआ है। इसका तो उसे यक़ीन हो गया था कि वह कहीं पर क़ैद है। उसने कर्नल प्रकाश का राज़ मालूम कर लिया था। लिहाज़ा वह उसे आज़ाद क्यों छोड़ने लगा। आख़िर लेडी सीताराम का राज़ क्या था जिसकी तरफ़ कर्नल प्रकाश ने इशारा किया था? कहीं यह राम सिंह के क़त्ल की तरफ़ तो इशारा नहीं था। यह कर्नल प्रकाश बहुत ही चालाक आदमी मालूम होता है।

हमीद को ऐसा महसूस हो रहा था जैसे कोई उसके सिर पर हथौड़े चला रहा हो। उस पर धीरे-धीरे बेहोशी छाने लगी थी। न जाने कितना वक़्त गुज़र गया, वह सोता रहा।

अचानक उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे किसी की नर्म साँस उसके चेहरे को छू रही हो। कोई उस पर झुका हुआ था। उसने आँखें खोलने की कोशिश की, लेकिन ऐसा मालूम हुआ जैसे उनमें मिर्चें भर दी गयी हों। लाख कोशिश के बावजूद वह आँखें न खोल सका। अब किसी की नर्म-नर्म उँगलियाँ उसके बालों पर धीरे-धीरे रेंग रही थीं।

‘‘हमीद साहब।’’ किसी ने धीरे से पुकारा।

वह चौंक पड़ा। आवाज़ जानी-पहचानी मालूम हुई। उसने फिर पुकारा। अब की बार हमीद ने आँखें खोल दीं और साथ ही वह हड़बड़ा कर उठ बैठा।
‘‘अरे तुम... शहनाज़...’’ वह ख़ुशी और ताज्जुब के मिले जुले लहजे में चीख़ा।

शहनाज़ ने सिर हिला दिया। उसका सु़र्ख और गोरा रंग हल्दी की तरह पीला हो गया था। आँखों के चारों तरफ़ गड्ढे पड़ गये थे। होंटों पर काली-काली तह जम गयी थी। आँखों में आँसू छलक रहे थे।

‘‘यह आपके सिर में क्या हुआ...? आपके कोट पर ख़ून के धब्बे कैसे हैं?’’ शहनाज़ एक ही साँस में कह गयी।

‘‘यह एक लम्बी कहानी है...’’ हमीद ने कहा। ‘‘मुझ में इतनी ताक़त नहीं कि अभी बता सकूँ। मैं तुम्हारे बारे में जानने के लिए बेताब हूँ। तुम यहाँ किस तरह पहूँचीं।’’

‘‘यह मैं बाद में बताऊँगी। आपकी हालत मुझसे नहीं देखी जाती। मैं क्या करूँ।’’

‘‘सच...’’ हमीद ने एक मुस्कुराहट के साथ कहा और फिर चटाई पर लेट गया। शहनाज़ ने अपना दुपट्टा तह करके उसके सिर के नीचे रख दिया। उसकी आँखों में रुके हुए क़तरे गालों पर ढलक आये।

‘‘तुम रो रही हो? पगली कहीं की।’’ हमीद धीरे से बोला। ‘‘मैं तुम्हें पाने के लिए जद्दोजेहद कर रहा था... पा लिया... अब मैं बहुत ही सुकून के साथ मर सकता हूँ।’’

शहनाज़ हिचकियाँ ले कर रोने लगी।


‘‘तुम मुझे अपना दोस्त समझती हो?’’ हमीद ने पूछा।

शहनाज़ ने ‘‘हाँ’’ में सिर हिला दिया।

‘‘तो मैं अपनी दोस्ती की क़सम दे कर कहता हूँ कि रोना बन्द करो... मैं अपने दिल को इस वक़्त बहुत ज़्यादा कमज़ोर महसूस कर रहा हूँ।’’

शहनाज़ ने आँसू पोंछ डाले और अपनी हिचकियों को दबाने की कोशिश करने लगी।

‘‘तुम बहुत अच्छी लड़की हो। मैं शुरू ही से तुम्हें बेगुनाह समझता रहा हूँ... जब तुम्हारी गिरफ़्तारी का वॉरण्ट निकला था तो मैं इन्स्पेक्टर से लड़ गया था।’’

‘‘गिरफ़्तारी का वारॅण्ट...’’ शहनाज़ चौंक कर बोली। ‘‘वह किसलिए?’’

‘‘तुम्हारे ग़ायब हो जाने के बाद तुम्हारे घर से एक ख़त बरामद हुआ जिसमें किसी गिरोह की तरफ़ से ग़ायब हो जाने की हिदायत दी गयी थी।’’

‘‘मैं ख़ुदा की क़सम खा कर कहती हूँ कि मुझे इस तरह के किसी ख़त का पता नहीं और न मैं किसी गिरोह को जानती हूँ।’’

‘‘अब क़सम खाने की ज़रूरत नहीं।’’ हमीद ने कहा। ‘‘तुम्हारी बेगुनाही सूरज की तरह रोशन है। अच्छा, यह बता सकती हो कि तुम किसकी क़ैद में हो।’’

‘‘यह मुझे आज तक न मालूम हो सका। लेकिन मुझे क़ैद करने वाले मुझ पर मेहरबान ज़रूर हैं... उन्होंने मुझे भूखों नहीं मारा।’’

‘‘अच्छा! तो क्या कोई खाना ले कर आता है?’’

‘‘नहीं... इस सामने वाली दीवार की जड़ में एक दरार-सी पैदा हो जाती है और इसी से खाना अन्दर की तरफ़ धकेल दिया जाता है और जब मैं बर्तन इस दरार से बाहर निकाल देती हूँ तो दरार अपने आप बन्द हो जाती है।’’

अब हमीद ने लेटे-ही-लेटे उस जगह का जायज़ा लेना शुरू किया। यह एक बड़ा कमरा था। एक तरफ़ बड़ी-सी मेज़ और कुछ कुर्सियाँ पड़ी हुई थीं। कमरा बता रहा था कि वह तहख़ाना है, छत में दो-तीन जगह मोटे-मोटे और धुँधले शीशे लगे हुए थे, जिनके ज़रिये थोड़ी-बहुत रोशनी अन्दर आती थी। शीशे इतने धुँधले थे कि उनके पार की कोई चीज़ दिखाई नहीं देती थी। इस पूरे कमरे में बाहर जाने के लिए कोई दरवाज़ा नहीं था। सिर्फ़ एक दरवाज़ा नज़र आ रहा था, वह भी इस कमरे के एक कोने में बनी हुई कोठरी का था।

‘‘क्या यह दरवाज़ा बाहर जाने का है।’’ हमीद ने पूछा।

‘‘नहीं ग़ुसलख़ाना है।’’

‘‘तो इसका मतलब कि यह कमरा नहीं, हमारा मक़बरा है।’’ हमीद ने कहा। ‘‘ज़रा हाथ-पाँव में कुछ ताक़त आये तो बाहर निकलने की कोशिश की जाये।’’

इतने में सामने वाली दीवार की जड़ में खटके के साथ एक फ़ुट चौड़ी दरार पैदा हो गयी, जिससे एक ट्रे, जिसमें नाश्ता था, कमरे के अन्दर खिसका दी गयी। शहनाज़ ने बढ़ कर ट्रे उठा ली। हमीद दरार को ग़ौर से देख रहा था। वह सोच रहा था कि इस दरार की हिफ़ाज़त की जाती होगी। हमीद खय़ालों में उलझ गया। इतनी देर में शहनाज़ ने दो प्यालियाँ चाय की तैयार कीं। हमीद को बिलकुल भूख नहीं थी, लेकिन शहनाज़ के कहने पर कुछ-न-कुछ खाना ही पड़ा। शहनाज़ ने बर्तन उसी दरार से वापस कर दिये।

‘‘कल तक मैं बहुत परेशान थी, लेकिन आज न जाने क्यों ऐसा मालूम हो रहा है कि मैं अपने घर ही में बैठी हूँ।’’ शहनाज़ ने कहा।

‘‘ख़ुदा ने चाहा तो बहुत जल्द अपने घर में होगी। मैंने अपनी ज़िन्दगी में एक ही काम अक़्लमन्दी का किया है।’’

‘‘वह क्या...?’’
‘‘यही कि इस हादसे से पहले मैं फ़रीदी साहब को यहाँ के पूरे हालात लिख दिये थे।’’

‘‘तो क्या फ़रीदी साहब मौजूद नहीं थे?’’

‘‘नहीं...वे बाहर गये हुए हैं।’’ हमीद ने कहा और उसके बाद उसने शुरू से ले कर आख़िर तक शहनाज़ को सारी बातें बता दीं।

‘‘तो फिर इसका यह मतलब हुआ कि मैं लेडी सीताराम की क़ैद में हूँ?’’ शहनाज़ ने हैरत से कहा।

‘‘बिलकुल...’’

‘‘लेकिन आख़िर क्यों...? मैंने उनका क्या बिगाड़ा है?’’

‘‘वह दरअसल अपना जुर्म किसी दूसरे के सिर थोपना चाहती थी। इत्तफ़ाक़ से तुम फँस गयीं।’’

‘‘तो क्या लेडी सीताराम ही राम सिंह की क़ातिल हैं?’’

‘‘हालात तो यही कहते हैं।’’

‘‘अब मुझे यहाँ से बच निकलने की कोई उम्मीद नहीं।’’

‘‘ऐसा मत सोचो... फ़रीदी साहब ज़रूर आयेंगे और अगर वे न भी आये तो मेरी मौजूदगी में तुम्हें परेशान होने की बिलकुल कोई ज़रूरत नहीं।’’

‘‘आप बहुत अच्छे आदमी हैं...’’ शहनाज़ ने कहा।

‘‘बस, इतनी-सी बात... नहीं, मैं बहुत बुरा आदमी हूँ।’’

‘‘होगे! लेकिन मेरे लिए नहीं।’’

‘‘तो क्या वाक़ई तुम मुझ पर भरोसा करती हो?’’

‘‘आख़िर क्यों न करूँ?’’

‘‘एक बात पूछूँ... तुमने लेडी सीताराम के यहाँ का ट्यूशन क्यों छोड़ दिया था?’’

‘‘मुझे नापसन्द था।’’

‘‘आख़िर नापसन्द करने की वजह?’’

‘‘वहाँ कई आवारा क़िस्म के लोग आने लगे थे। अकसर वे मुझे भी अपनी तरफ़ बुलाने की कोशिश करते थे। यह चीज़ मुझे पसन्द नहीं थी।’’
हमीद कुछ और पूछने का इरादा कर ही रहा था कि शहनाज़ ने उसे रोक दिया।

‘‘आप ज़्यादा बातें न कीजिए... सिर से बहुत ज़्यादा ख़ून निकल गया है... कहीं फिर चक्कर न आ जाये।’’

‘‘इतने दिनों के बाद तुम मिली हो... दिल चाहता है बस बातें किये जाओ।’’

‘‘नहीं, बस आँख बन्द कीजिए... मैं सिर सहलाती हूँ।’’

हमीद ने आँखें बन्द कर लीं और शहनाज़ धीरे-धीरे उसका सिर सहलाने लगी। हमीद को अपने दिल में एक अजीब-सी ख़लिश महसूस होने लगी। वह प्यार जो हर मर्द को औरत से मिलता है, हमीद को आज तक न मिला था। हमीद को शहनाज़ के इस रवैये से एक लगाव महसूस हुआ जिसे ममता के बाद का दर्जा दिया जा सकता है। उसकी बन्द आँखों से आँसू फूट निकले।

‘‘अरे... अरे, आँसू क्यों?’’

‘‘कुछ नहीं...’’ हमीद ने घुटी हुई आवाज़ में कहा।

‘‘आपको मेरी क़सम, बताइए क्या बात है?’’

‘‘मुझसे तुम्हारी यह हालत नहीं देखी जाती।’’ हमीद ने कहा।

‘‘फ़िलहाल आप अपनी हालत देखिए... मेरी बाद में देखिएगा।’’

‘‘यह आफ़त तुमने ख़ुद अपने सिर मोल ली है।’’ हमीद ने कहा।

‘‘वह कैसे...?’’

‘‘न तुम इतनी सोशल होतीं और न यह दिन देखना नसीब होता।’’

‘‘अपनी इस बेवकूफ़ी पर तो बहुत दिनों से रो रही हूँ।’’ शहनाज़ ने कहा। ‘‘अगर कभी आसमान देखना नसीब हुआ तो इन्शा अल्लाह सही मानी में एक शरीफ़ औरत की तरह ज़िन्दगी गुज़ारने की कोशिश करूँगी।’’
कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्‍वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
Post Reply