Faridi aur Leonard ibne safi

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Masoom
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Re: Faridi aur Leonard ibne safi

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थोड़ी देर के बाद दोनों शहर के एक घटिया-से शराबखाने में पहुँचे। यह शराबख़ाना भी था और होटल भी। बाहर से आये हुए कम हैसियत वाले मुसाफ़िरों के लिए यहाँ सस्ते कमरे भी मिल जाते थे।

फ़रीदी और हमीद को देखते ही होटल का मैनेजर लपक कर उनके क़रीब आ गया।

‘‘कहिए हुज़ूर, ख़ैरियत तो है?’’ उसने मुस्कुरा कर कहा।

‘‘मेरे कमरे की कुंजी....!’’ फ़रीदी ने कहा। ‘‘और हाँ, फ़ज़लू को भेज देना।

मैनेजर ने फ़रीदी को एक कुंजी ला कर दे दी। फ़रीदी और हमीद सीढ़ियाँ चढ़ कर एक बन्द कमरे के सामने आ कर रुक गये। फ़रीदी ने ताला खोला और दोनों अन्दर दाख़िल हो गये।

फ़रीदी ने माचिस जला कर ताक़ पर रखी हुई मोमबत्ती जलायी।

‘‘यह आपका कमरा है?’’ हमीद ने हैरत से पूछा।

‘‘हाँ, ऐसे बहुतेरे कमरे मैंने शहर के अलग-अलग हिस्सों में ले रखे हैं।’’ फ़रीदी ने कहा।

‘‘और मुझे इनके बारे में नहीं मालूम।’’ हमीद ने पलकें झपकाते हुए कहा।

‘‘हाँ.... यूँ ही मौक़ा पड़ने पर तुम्हें भी धीरे-धीरे इनके बारे में मालूम हो जायेगा।’’ फ़रीदी ने कहा। ‘‘जानते हो होटल का मैनेजर कौन है?’’

‘‘नहीं....!’’

‘‘एक बदमाश.... और दस नम्बर का आदमी। मगर है बड़े काम का।’’ फ़रीदी ने कहा।

सीढ़ी पर आहट सुनायी दी और कुछ ही देर बाद एक बूढ़ा आदमी कमरे में आया और सलाम करके एक तरफ़ खड़ा हो गया।

‘‘फ़ज़लू, तुम न्यू स्टार प्रेस में ही काम करते हो न?’’ फ़रीदी ने कहा।

‘‘जी हुज़ूर....!’’

‘‘अच्छा देखो, तुम्हें कुछ दिन तक इसी कमरे में रहना होगा.... और तुम्हारे भेस में ये तुम्हारा काम करेंगे।’’

‘‘अरे हुज़ूर, कोई ख़ास काम हो तो मुझे ही बताइए।’’ बूढ़ा बोला।

‘‘नहीं, तुम न कर सकोगे।’’

‘‘जैसी हुज़ूर की म़र्जी।’’ बूढ़े ने कहा। ‘‘एक घण्टे बाद मुझे काम पर जाना होगा। आजकल नाइट ड्यूटी में हूँ।’’
कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्‍वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
Masoom
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Re: Faridi aur Leonard ibne safi

Post by Masoom »

(^%$^-1rs((7)
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Rohit Kapoor
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Re: Faridi aur Leonard ibne safi

Post by Rohit Kapoor »

Nice update ... Keep it up dear. Waiting for the next update bro...
😠 😡 😡 😡 😡 😡
Masoom
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Re: Faridi aur Leonard ibne safi

Post by Masoom »

‘‘अच्छा हमीद, तुम तैयार हो जाओ.... मैं अभी तुम्हें फ़ज़लू बनाये देता हूँ।’’ फ़रीदी ने कहा और कमरे में रखे हुए एक बड़े सन्दूक़ को खोल कर उसमें भेस बदलने का सामान निकालने लगा।

थोड़ी देर के बाद उस कमरे में एक ही शक़्ल के दो बूढ़े खड़े हुए थे। उनमें एक बूढ़ा बाहर चला गया और दूसरा वहीं खड़ा रहा।

‘‘हाँ तो फ़ज़लू जब तक तुम्हें मेरी तरफ़ से कोई ख़बर न मिले, तुम यहीं, इसी कमरे में रहना। मैंने इन्तज़ाम कर दिया है। तुम्हारी ज़रूरत की सारी चीज़ें यहीं पहुँचती रहेंगी।’’

अब फ़रीदी ने भी भेस बदलना शुरू किया। लगभग आधे घण्टे के बाद उसकी जगह पर एक अधेड़ उम्र का मिलिट्री अफ़सर खड़ा सिगार पी रहा था।

फ़ज़लू उसे हैरत से देख रहा था।

‘‘फ़ज़लू, मुझे ख़बर मिली है कि तुमने फिर कोकीन का कारोबार शुरू कर दिया है।’’ फ़रीदी ने कहा।

‘‘अब सरकार से क्या पर्दा।’’ फ़ज़लू ने सिर खुजाते हुए कहा। ‘‘प्रेस की नौकरी में इतना नहीं मिलता जिससे पेट पल सके। महीने में हज़ार रुपये तो सिर्फ़ बाल-बच्चों के लिए गाँव भेज देना पड़ता है।’’

‘‘ख़ैर, लेकिन.... इस बात का ख़याल रखना कि मामला मेरे हाथ तक न पहुँचने पाये, वरना मैं मजबूर हो जाऊँगा।’’ फ़रीदी ने कहा।

‘‘अरे नहीं सरकार.... ज़्यादा नहीं, बस धेले-दमड़ी का रोज़गार हो जाता है।’’ फ़ज़लू ने सिर हिला कर कहा।

‘‘ख़ैर, तुम लोगों का धेला-दमड़ी मैं अच्छी तरह समझता हूँ।’’ फ़रीदी ने सिर हिला कर कहा।

फ़ज़लू दाँत निकाल कर हँसने लगा।

‘‘अच्छा, अब मैं चला.... देखो, जो कुछ समझा दिया है, उसके ख़िलाफ़ न होने पाये।’’

‘‘मजाल है सरकार.... इसके ख़िलाफ़ हो जाये। आपके लिए जान भी जाये तो हाज़िर है।’’ फ़ज़लू ने कहा।

फ़रीदी मिलिट्री अफ़सर के भेस में हाथ में एक सूटकेस लटकाये, बाहर आया और टैक्सी करके रेलवे स्टेशन की तरफ़ रवाना हो गया।
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Re: Faridi aur Leonard ibne safi

Post by Masoom »

चिड़चिड़ा नवाब

दो घण्टे का सफ़र तय करके फ़रीदी दाराब नगर स्टेशन पर उतरा। रात के लगभग दस बज चुके थे। स्टेशन पर उसे एक फटीचर-सी टैक्सी दिखायी दी। वह उसमें बैठा और नवाब रशीदुज़्ज़माँ के महल की तरफ़ रवाना हो गया।

नवाब साहब बहुत बड़े जागीरदार थे और नम्बरी कंजूस। उनकी बेशुमार दौलत की कहानियाँ दूर-दूर तक मशहूर थीं। बहुत-से लोगों का तो यहाँ तक ख़याल था कि नवाब साहब ने इतनी दौलत जौ की रोटी खा-खा कर जमा की है। उनके और वारिस तो शाहाना ज़िन्दगी गुज़ारते थे, मगर वे ख़ुद बहुत ही सादा ज़िन्दगी बसर करने के आदी थे। आज वे अभी तक नहीं सोये थे, और दोपहर ही से वह किसी ख़ास चीज़ में उलझे हुए थे। बात-बात पर लोगों से उलझ जाते थे। उस वक़्त वे बेचैनी के साथ दीवानख़ाने में टहल रहे थे।

अचानक एक नौकर प्लेट में किसी का विज़िटिंग कार्ड लाया और मेज़ पर रख कर ख़ामोशी से खड़ा हो गया।
‘‘हूँ....!’’ नवाब साहब ने कार्ड उठाते हुए कहा। ‘‘कर्नल ई.एम. ख़ान, लाहौल विला कूवत.... यह भी कोई मिलने का वक़्त है। जाओ, भेज दो।’’

कुछ देर बाद फ़रीदी कर्नल ख़ान के भेस में दीवानख़ाने में आया।

नवाब साहब ने ज़बर्दस्ती चेहरे पर मुस्कुराहट पैदा करने की कोशिश की।

‘‘फ़रमाइए, कैसे आना हुआ?’’ नवाब साहब ने पूछा।

‘‘मैं एक बहुत ही ख़ास काम के सिलसिले में हाज़िर हुआ हूँ।’’

‘‘फ़रमाइए।’’ नवाब साहब ने चौंक कर कहा।

‘‘मैं बहुत दूर से आया हूँ.... ज़रा दम ले लूँ तो कुछ कहूँ।’’ फ़रीदी ने आराम-कुर्सी पर तक़रीबन लेटते हुए कहा।

नवाब साहब की भवें तन गयीं, लेकिन उन्होंने फिर फ़ौरन ही अपने चेहरे पर नर्मी के आसार पैदा कर लिये। उन्होंने घण्टी बजायी। एक नौकर आया।

‘‘कुछ पीजिएगा?’’ नवाब साहब ने फ़रीदी से पूछा।

‘‘सिर्फ़ पानी....!’’ फ़रीदी ने जवाब दिया और नौकर चला गया।

पानी पीने के बाद फ़रीदी ने सिगार जलाया।

‘‘हाँ, अब फ़रमाइए।’’ नवाब साहब बेताबी से बोले।

‘‘इन्हें पहचानते हैं आप....!’’ फ़रीदी ने जेब से एक तस्वीर निकाल कर नवाब साहब की तरफ़ बढ़ाते हुए कहा।

नवाब साहब ने जैसे ही तस्वीर हाथ में ली, उनका चेहरा ग़ुस्से से लाल हो गया। वे फ़रीदी को घूरने लगे।

‘‘आप ठहरिए.... मैं अभी आ कर इसका जवाब देता हूँ।’’ नवाब साहब ने कहा और दीवानख़ाने से चले गये।
फ़रीदी सिगार का कश लेता हुआ दीवानख़ाने की दीवारों पर लगी हुई तस्वीरों का जायज़ा लेने लगा।

थोड़ी देर बाद नवाब साहब वापस आये, उनके हाथ में एक पिस्तौल था। फ़रीदी चौंक पड़ा।

‘‘हाँ, मैं इसे पहचानता हूँ।’’ नवाब साहब गरज कर बोले। ‘‘और तुम जैसे बदमाशों को भी अच्छी तरह जानता हूँ। तुम्हारी मौत तुम्हें यहाँ लायी है।’’

फ़रीदी हँसने लगा।

‘‘तुम हँस रहे हो.... लेकिन याद रखो, इसके लिए तुम्हारे घर वालों को रोना पड़ेगा।’’ नवाब साहब ने उसी अन्दाज़ में कहा।

‘‘मालूम नहीं आप क्या समझ रहे हैं।’’ फ़रीदी ने आराम से कहा।

‘‘मैं सब कुछ समझ रहा हूँ।’’ नवाब साहब ने कहा। ‘‘तुम इस तरह मुझसे रुपया नहीं ऐंठ सकते।’’

‘‘ओह समझा....!’’ फ़रीदी ने संजीदगी से कहा। ‘‘तो मामला यहाँ तक पहुँच चुका है। बहुत अच्छा हुआ कि मैं बिलकुल ठीक वक़्त पर पहुँच गया।’’

‘‘अच्छा, अब कोई दूसरी चाल चलने वाले हो।’’ नवाब साहब चीख़ कर बोले। ‘‘देखो, यहाँ बड़े-बड़े बदमाशों की लाशें दफ़्न हैं।’’

‘‘चलिए, यह दूसरी बात मालूम हुई।’’ फ़रीदी हँस कर बोला।

‘‘अब की तुम हँसे और मैंने गोली चलायी।’’ नवाब साहब ने झल्ला कर कहा।

‘‘और फिर कल इस इमारत का चप्पा-चप्पा पुलिस से भरा होगा।’’ फ़रीदी ने मुस्कुरा कर कहा।

‘‘यह गीदड़ भभकी किसी और को देना, मुझे रशीदुज़्ज़माँ कहते हैं।’’

‘‘और मैं आपसे सच कहता हूँ कि मुझे कर्नल ख़ान नहीं कहते।’’ फ़रीदी ने इत्मीनान से कहा।

‘‘वह तो मैं पहले ही से जानता हूँ।’’ नवाब साहब ने ऐंठते हुए कहा।

‘‘लेकिन आप कुछ नहीं जानते।’’ फ़रीदी ने अपनी जेब से दूसरा कार्ड निकाल कर नवाब साहब को देते हुए कहा।

‘‘यह क्या....?’’

‘‘मेरा दूसरा विज़िटिंग कार्ड....!’’

‘‘बस-बस, रखे रहो।’’ नवाब साहब ने कहा। ‘‘तुम उस वक़्त तक मेरी क़ैद में रहोगे जब तक मेरी लड़की मुझे वापस न मिल जाये।’’

‘‘तो क्या आपको इत्तला मिल गयी।’’ फ़रीदी ने कहा।

‘‘बको मत....!’’ नवाब साहब चीख़े।

फ़रीदी सोच में पड़ गया था इस सिरफिरे को किस तरह सीधे रास्ते पर लाये। नवाब साहब का ग़ुस्सा देख कर उसे उलझन हो रही थी कि कहीं सचमुच गोली न चला दें। अचानक वह लेटे-लेटे उछला और दूसरे पल में नवाब साहब का रिवॉल्वर उसके हाथ में था और ख़ुद नवाब साहब ज़मीन पर।

‘‘अगर ज़रा भी आवाज़ निकाली तो आप अपनी जान से हाथ धो बैठेंगे।’’ फ़रीदी ने दबी आवाज़ में कहा। ‘‘मैं ख़ुफ़िया पुलिस का इन्स्पेक्टर फ़रीदी हूँ।’’

‘‘यह झूठ है.... सरासर झूठ।’’ नवाब साहब ने कहा।

‘‘देखिए, मैं आपसे फिर कहता हूँ कि धीरे बोलिए।’’ फ़रीदी ने कहा।

नवाब साहब ख़ामोश हो गये। ज़मीन पर पड़े वे अभी तक फ़रीदी के हाथ में दबे हुए रिवॉल्वर की तरफ़ देख रहे थे।

‘‘उठ कर बैठ जाइए।’’ फ़रीदी ने सोफ़े की तरफ़ इशारा करते हुए कहा।

नवाब साहब ख़ामोशी से उठ कर बैठ गये।

‘‘मालूम होता है कि अब बदमाशों ने आपको धमकी दी है।’’ फ़रीदी ने कहा। ‘‘ग़ज़ाला बेचारी पहले मेरे ही पास मदद के लिए गयी थी। बदमाशों को मालूम हो गया और उन्होंने उसे ग़ायब कर दिया।’’
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