Thriller वारिस (थ्रिलर)

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Re: Thriller वारिस (थ्रिलर)

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“हल्लो, पटवर्धन !” - देवसरे माउथपीस में बोला - “मैं कोकोनट ग्रोव से बालाजी देवसरे । कैसे हो, भाई ? बढिया... भई, घर पर डिस्टर्ब करने के लिये माफी चाहता हूं लेकिन कोई ऐसी इमरजेंसी आन पड़ी है कि मेरा अपने बैंकर से फौरन सम्पर्क करना निहायत जरूरी हो गया था । वो क्या है कि मैं कोकोनट ग्रोव को बैंक के पास गिरवी रख कर ज्यादा से ज्यादा रकम का कर्जा उठाना चाहता हूं ।.... भई कीमती प्रापर्टी है, चला हुआ ठीया है, आज मजबूरी वाली सेल भी करूं तो डेढ करोड़ से कम तो क्या मिलेगा ! ऐसी प्रापर्टी पर कीमत से आधी रकम का - यूं समझो कि पिचहत्तर लाख का कर्जा तो मिल ही जाना चाहिये ।.... अरे, ब्याज कितना भी लगे, कोई वान्दा नहीं ।... क्या ? चौदह फीसदी ?.... ठीक है । मुझे मंजूर है । मैं चाहता हूं कि कल ही तमाम कागजी कार्यवाही मुकम्मल हो जाये और फिर इसी हफ्ते में मुझे तुम्हारा चैक मिल जाये ठीक है, शुक्रिया । गुडनाइट ।”

उसने रिसीवर वापिस मुकेश को थमा दिया औक एक विजेता के से भाव से पाटिल की तरफ देखा ।

“अब कुछ समझे, बरखुरदार ?” - वो बोला ।

“समझा तो सही कुछ कुछ ।” - पाटिल मरे स्वर में बोला ।

“बस कुछ कुछ ? सब कुछ नहीं ? ठीक है, सब कुछ मैं समझता हूं । तफसील से समझता हूं । पिचहत्तर लाख की कर्जे की रकम पर चौदह फीसदी सालाना ब्याज साढे दस लाख रुपये होता है जिसकी अदायगी इस रिजॉर्ट की सलाना आमदनी में से होगी । वो अदायगी हो चुकने के बाद अव्वल तो पीछे कुछ बचेगा ही नहीं, बचेगा तो वो चिड़िया का चुग्गा ही होगा जिसका एक चौथाई मैं बाखुशी तुम्हारे हवाले कर दूंगा । ओके ?”

पाटिल के मुंह से बोल न फूटा ।

“अब” - देवसरे एकाएक कहरभरे स्वर में बोला - “दफा हो जाओ यहां से और दोबारा कभी मुझे अपनी मनहूस सूरत मत दिखाना ।”

पाटिल अपमान से जल उठा, उसका चेहरा सुर्ख होने लगा, वो यूं दहकती निगाहों से देवसरे को देखने लगा जैसे एकाएक उस पर झपट पड़ने का इरादा रखता हो ।

करनानी ने उसके मूड को भांपा तो वो तत्काल उठ खड़ा हुआ और देवसरे और पाटिल के बीच में आ गया ।

“पुटड़े” - वो धीमे किन्तु दृढ स्वर में बोला - “बड़ों का अदब करते हैं और उनके हुक्म की तामील करते हैं ।”

“क... क्या ?” - पाटिल के मुंह से निकला ।

“क्या क्या ? वही जो मिस्टर देवसरे ने कहा, और क्या ?”

“क्या कहा ?”

“अब क्या खाका खींच के समझायें ? अरे, ठण्डे ठण्डे तशरीफ ले के जा, साईं । बल्कि आ चल मैं तेरे को बाहर तक छोड़ के आता हूं ।”

करनानी ने उसकी बांह थामी तो पाटिल ने बड़े गुस्से से बांह पर से उसका हाथ झटक दिया ।

“सर” - वो देवसरे से सम्बोधित हुआ - “आई हैव ए गुड न्यूज एण्ड ए बैड न्यूज फार यू । गुड न्यूज ये है कि मुझे ये जगह और यहां का खुशगवार मौसम बहुत पसन्द आया है । और बैड न्यूज ये है कि मैंने यहां के कॉटेज नम्बर सात का एडवांस किराया भरा हुआ है जो कि मैंने रिजर्वेशन की रिक्वेस्ट के साथ बाजरिया कूरियर भेजा था इसलिये फिलहाल मुझे यहां से तशरीफ ले जाने के लिये मजबूर करने की कोशिश किसी ने की तो ऐसी फौजदारी होगी कि सब याद करेंगे, खासतौर से आप जनाब” - वो करनानी से बोला - “जो कि नाहक ससुर और दामाद के बीच में आ रहे हैं ।”

“खबरदार जो मुझे ससुर कहा ।” - देवसरे तमक कर बोला - “मैं तुम्हारा ससुर नहीं हूं । पहले भी बोला ।”

“कितनी भी बार बोलिये । जुबानी जमाखर्च से कहीं हकीकत बदलती हैं ।”

“गैट आउट, डैम यू ।”

“यहां से जाता हूं । हिम्मत हो तो रिजॉर्ट से भेज कर दिखाइये ।”

वो घूमा और लम्बे डग भरता वहां से रुख्सत हो गया ।

पीछे कई क्षण सन्नाटा छाया रहा ।

“चलता हूं ।” - फिर करनानी बोला - “क्लब में मुलाकात होगी ।”

देवसरे ने अनमने भाव से सहमति में सिर हिलाया ।

“माथुर” - करनानी बोला - “कहना न होगा कि देवसरे के क्लब में आने से तुम्हारी वहां हाजिरी तो अपने आप ही लाजमी हो जायेगी ।”

“जाहिर है ।” - मुकेश उखड़े स्वर में बोला ।

“अभी उखड़ के दिखा रहा है, पुटड़ा, वहां रिंकी मिल गयी तो बाग बाग हो जायेगा ।”

बात सच थी, फिर भी मुकेश को कहना पड़ा - “सर, आई एम ए हैपीली मैरिड पर्सन ।”

“झूलेलाल ! जैसे हैपी के और हैपी हो जाने पर कोई पाबन्दी आयद होती है ।”

मुकेश खामोश रहा ।
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बालाजी देवसरे टी.वी. पर सात बजे की खबरें देख रहा था जबकि ऑफिस का एक कर्मचारी वहां पहुंचा ।

देवसरे की वो नियमित रुटीन थी, भले ही दुनिया इधर से उधर हो जाये वो शाम सात बजे और ग्यारह बजे की खबरें देखने के लिये अपने कॉटेज में जरूर मौजूद होता था । अपना शाम का हर प्रोगाम - भले ही वो डिनर का हो या ब्लैक पर्ल क्लब जाने का हो - वो इस बात को खास ध्यान में रख कर बनाता था कि खबरें देखने के उसके उस दो बार के प्रोग्राम में कोई विघ्न न आये ।

सात बजे वो ‘आजतक’ पर हिन्दी की खबरें देखता था और ग्यारह बजे ‘स्टार-न्यूज’ पर अंग्रेजी की ।

“आपकी” - कर्मचारी मुकेश से बोला - “ऑफिस के टेलीफोन पर ट्रंककॉल है ।”

“कहां से ?” - मुकेश ने पूछा ।

“मुम्बई से ।”

तत्काल उसके जेहन पर दो अक्स उबरे; एक उसके बॉस का और दूसरा उसकी बीवी का ।

“कौन है ?” - उसने पूछा ।

“पता नहीं साहब । नाम नहीं बताया ।”

“बोलने वाला कोई आदमी था या औरत ?”

“औरत ।”

फिर तो जरूर मोहिनी की कॉल थी ।

“कॉल सुनकर आता हूं ।” - वो देवसरे से बोला ।

देवसरे ने बिना टी.वी. स्क्रीन पर से निगाह हटाये सहमति में सिर हिला दिया ।

मुकेश ने ऑफिस में जाकर कॉल रिसीव की ।

“मिस्टर माथुर ?” - पूछा गया ।

“स्पीकिंग ।”

“लाइन पर रहिये, बड़े आनन्द साहब बात करेंगे ।”

मुकेश ने बुरा सा मुंह बनाया । जो आवाज वो सुन रहा था, वो उसकी बीवी की नहीं उसके बॉस की सैक्रेट्री श्यामली की थी ।

“होल्डिंग ।” - वो बोला ।

कुछ क्षण खामोशी रही ।

“माथुर !” - फिर एकाएक उसके कान में नकुल बिहारी आनन्द का रोबीला, कर्कश स्वर पड़ा ।

“यस, सर ।” - मुकेश तत्परता से बोला - “गुड ईवनिंग, सर ।”

“क्या कर रहे हो ?”

“आपकी कॉल सुन रहा हूं, सर ।”

“अरे, वो तो मुझे भी मालूम है । ऐसी अन्डरस्टुड बात कहने का क्या मतलब ? वो भी ट्रंककॉल पर ! ट्रंककॉल कास्ट्स मनी । मालूम है या भूल गये ?”

“मालूम है, सर ।”

“हमारा क्लायन्ट कैसा है ?”

“मिस्टर देवसरे एकदम ठीक हैं, सर, और अब इतने नार्मल हैं कि मेरे से बेजार दिखाई देने लगे हैं ।”

“बेजार दिखाई देने लगे हैं ! क्या मतलब ?”

“अब वो यहां अपने साथ मेरी मौजूदगी नहीं चाहते ।”

“ऐसा कैसे हो सकता है !”

“सर, ऐसा ही है ।”

“मेरा मतलब है, हमारी तरफ से ऐसा कैसे हो सकता है !”

“जी ! क्या फरमाया ?”

“ये एक नाजुक मामला है । इसमें ये फैसला हमने करना है कि उनके लिये क्या मुनासिब है, और क्या नहीं मुनासिब है । समझे ?”

“जी हां ।”

“मेरे समझाने से समझे तो क्या समझे ? ये बात तुम्हें खुद समझनी चाहिये थी ।”

“अब पीछा छोड़, कमबख्त ।” - मुकेश दान्त पीसता होंठों में बुदबुदाया ।

लेकिन बुढऊ के कान बहुत पतले थे ।

“माथुर ! ये अभी मैंने क्या सुना ?”

“क्या सुना, सर ?”

“तुम मुझे कोस रहे थे ।”

“आई कैन नाट डेयर, सर ।”

“लेकिन मैंने साफ सुना कि.... “

“सर, क्रॉस टाक हो रही होगी ।”

“क्रॉस टॉक !”

“ट्रंक लाइन पर अक्सर होने लगती है ।”

“मैं और जगह भी तो ट्रंककॉल पर बात करता हूं । तब तो नहीं होती क्रॉस टाक । ये सो काल्ड क्रास टाक मेरी तुम्हारे से बात के दरम्यान ही क्यों होती है ?”

“तफ्तीश का मुद्दा है, सर । मेरे खयाल से हमें इस बाबत बुश को चिट्ठी लिखनी चाहिये ।”
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“हमें क्यों किसी को चिट्ठी लिखनी चाहिये । आनन्द आनन्द एण्ड एसोसियेट्स का इतना ऊंचा नाम है....”

“कि सारे आनन्द माउन्ट एवरेस्ट पर टंगे हुए हैं ।”

“क्या !”

“सर, मैंने किसी ऐरे गैरे को नहीं, अमरीका के राष्ट्रपति जार्ज बुश को चिट्ठी लिखने की बाबत कहा था ।”

“उसे किसलिये ?”

“क्योंकि साउथ एशिया के सारे उलझे हुए मामले आजकल वो ही सुलझाता है । क्रॉस टाक भी एक उलझा हुआ मामला है जिसे...”

“माथुर, तुम मजाक कर रहे हो ।”

“मेरी मजाल नहीं हो सकती, सर । सर, ये नामुराद क्रॉस टाक ही मेरे लिये विलेन बनी हुई है और आपकी निगाहों में मेरा इमेज बिगाड़ रही है । ये मेरे जैसी आवाज में रह रह कर बीच में बोलने वाला शख्स मेरी पकड़ में आ जाये तो मैं उसकी गर्दन मरोड़ दूं ।”

“यू विल डू नो सच थिंग । तुम्हारे पर आई.पी.सी. तीन सौ दो लग जायेगी । मैं ये बर्दाश्त नहीं कर सकता कि आनन्द आनन्द एण्ड एसोसियेट्स के किसी एसोसियेट का नाम कत्ल के मामले में घसीटा जाये...”

“सर, वुई आर टाकिंग आन ट्रंककॉल...”

“सो वुई आर । सो वुई आर ।”

“....एण्ड ट्रंककॉल कास्ट्स मनी ।”

“ऐज इफ आई डोंट नो ।”

“एण्ड क्रॉस टाक रिडन ट्रंककॉल कास्ट्स मोर मनी, सर ।”

“यस । यस । अब बोलो, क्या हुआ ?”

“अभी तो कुछ नहीं हुआ, सर । अभी तो चार महीने बाकी हैं ।”

“चार महीने बाकी हैं ! किस बात में चार महीने बाकी हैं ?”

“बच्चा होने में, सर ।”

“किसको ? किसको बच्चा होने में ?”

“मोहनी को ।”

“मोहनी ?”

“मेरी बीवी । आपकी बहू ! उसकी प्रेग्नेंसी के अभी पांच ही महीने मुकम्मल हुए हैं न, सर ! और बच्चा तो, आप जानते ही होंगे, कि नौ महीने में होता है ।”

“वाट द हैल !”

“सर, क्रास टाक....”

“माथुर, आई एम नाट हैपी विद यू ! आई एम नाट हैपी विद यूअर वर्क । एण्ड अबोव आल, आई एम नाट हैपी विद युअर एटीच्यूड । मुझे नहीं लगता कि कोई क्रॉस टाक हो रही है । मुझे लगता है कि तुम खुद ही अनापशनाप बोल रहे हो और क्रॉस टाक को दोष दे रहे हो ।”

“सर, वो क्या है कि....”

“डोंट इन्ट्रप्ट एण्ड पे अटेंशन टु वाट आई एम सेईंग ।”

“यस, सर ।”

“इस वक्त तुम कोई संजीदा बात करने की हालत में नहीं जान पड़ते हो... बाई दि वे, तुम नशे में तो नहीं हो ?”

“ओह नैवर, सर । मैं सरेशाम नहीं पीता ।”

“लेकिन पीते हो ?”

“कभी कभार । मेजबान इसरार करे तो ।”

“आज मेजबान ने सरेशाम इसरार किया जान पड़ता है ।”

“नो, सर । वो क्या है कि....”

“माथुर, कल सुबह ग्यारह बजे तुम अपने एण्ड से मुझे ट्रंककॉल लगाना और मुकम्मल रिपोर्ट पेश करना । दैट्स ऐन आर्डर ।”

“यस, सर ।”

“तुम शायद समझते हो कि तुम्हे पिकनिक मनाने के लिये वहां भेजा गया है । तुम समझते हो कि...”

“थ्री मिनट्स आर अप, सर ।” - एकाएक बाच में आपरेटर की आवाज आयी ।

“वॉट ? आलरेडी !

“थ्री मिनट्स आर अप, सर । यू वाट टु एक्सटेंड दि कॉल ?”

“नो । नो । माथुर, फालो इन्स्ट्रक्शन्स । कॉल मी एट अलैवन इन दि मार्निंग विद फुल रिपोर्ट ।”

“यस, सर ।”

लाइन कट गयी ।
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ब्लैक पर्ल क्लब गणपतिपुले को रत्नागिरि से जोड़ने वाली सड़क पर कोकोनट ग्रोव से कोई आधा मील के फासले पर स्थापित थी । उस इलाके में वैसी क्लब होना एक बड़ी घटना थी इसलिये सैलानियों की और आसपास के इलाकों के रंगीन मिजाज, तफरीहपसन्द लोगों की शाम को वहां अच्छी खासी भीड़ रहती थी । क्लब एक एकमंजिला इमारत में थी जिसके सामने का पार्किंग एरिया और मेन रोड से वहां तक पहुंचता ड्राइव-वे दिन डूबने के बाद खूब रोशन रहता था ।

क्लब में मेहमानों के मनोरंजन के लिये एक चार पीस का बैंड ग्रुप भी था और मीनू सावन्त नाम की एक पॉप सिंगर भी थी जिसके बारे में लोगबाग ये फैसला नहीं कर पाते थे कि वो गाती बढिया थी, या खूबसूरत ज्यादा थी ।

क्लब को असली कमाई पिछवाड़े के एक बड़े कमरे में स्थापित मिनी कैसीनो से थी जिसका प्रमुख आकर्षण रौलेट का गेम था । उस प्रकार के विलायती जुए का इन्तजाम वहां कानूनी था या गैरकानूनी, ये न कभी किसी ने दरयाफ्त किया था और न क्लब के मालिक अनन्त महाडिक ने इस बाबत कभी कुछ कहने की कोशिश की थी । बहरहाल वहां बार, जुआ, सांग, डांस सब बेरोकटोक चलता था ।

बालाजी देवसरे अपनी उस इलाके में आमद के पहले दिन से ही उस क्लब, का और उसके मिनी कैसीनो का रेगुलर पैट्रन था ।

देवसरे अमूमन ‘आजतक’ पर सात बजे की खबरें सुन चुकने के बाद क्लब का रुख करता था लेकिन विनोद पाटिल से हुई झैं झैं ने उसका ऐसा मूड बिगाड़ा था कि उस रोज उसे वहां पहुंचते पहुंचते नौ बज गये थे । अब वो क्लब के मेन हॉल के कोने के एक बूथ में अपनी ‘आया’ मुकेश माथुर और क्लब की हसीनतरीन पॉप सिंगर मीनू सावन्त के साथ मौजूद था जहां ड्रिंक हाथ में आने के बाद ही उसका मूड सुधरना शुरू हुआ था ।

देवसरे वहां मीनू सावन्त के संसर्ग से बहुत खुश होता था और संसर्ग उसे लगभग हमेशा हासिल रहता था । वो मीनू सावन्त के साथ नहीं होता था तो मिनी कैसीनो में होता था जिस तक पहुंचने का हॉल के पिछवाड़े के गलियारे से क्योंकि एक ही रास्ता था इसलिये मुकेश को ये अन्देशा नहीं था कि वो वहां से चुपचाप कहीं खिसक जायेगा । उस क्लब में मुकेश का अपने कलायन्ट की निगाहबीनी का काम मीनू सावन्त पर और मिनी कैसीनो को जाते गलियारे के दहाने पर निगाह रखने भर से ही मुकम्मल हो जाता था जो कि उसके लिये बहुत सुविधा की बात थी क्योंकि यूं महज वाचडॉग बने रहने की जगह खुद उसे भी वहां अपनी मनपसन्द तफरीह का मौका मिल जाता था ।

मीनू सावन्त बहुत खुशमिजाज लड़की थी और बावजूद इसके कि उसका क्लब के मालिक अनन्त महाडिक से टांका फिट था उसे क्लब के किसी मेहमान से मिलने जुलने या चुहलबाजी से कोई गुरेज नहीं होता था । इसी वजह से मुकेश को अक्सर उसके साथ चियर्स बोलने का या डांस करने का मौका मिल जाता था । ऐसे मौकों पर कई बार वो साफ कहती थी कि ‘रिंकी बुरा मान जायेगी’ तो मुकेश को उसे ये समझाने में बड़ी दिक्कत होती थी कि उसका रिंकी शर्मा से वैसा अफेयर नहीं था । जैसा कि मीनू सावन्त का अनन्त महाडिक से था । अलबत्ता ये बात वो उससे भी छुपा कर रखता था कि वो पहले से शादीशुदा था ।

रिंकी उस वक्त मेहर करनानी की सोहबत में थी । वो दोनों हॉल में एक मेज पर बैठे डिनर लेते उसे अपने केबिन में से निर्विघ्न दिखाई दे रहे थे । उस घड़ी केबिन में देवसरे यूं घुट घुट कर मीनू सावन्त से बातें कर रहा था जैसे मुकेश का वहां कोई अस्तित्त्व ही न हो ।

फिर एकाएक देवसरे उसकी ओर घूमा ।

“यहां बैठे क्या कर रहे हो ?” - वो बोला - “जा के मौज मारो ।”

“वही तो कर रहा हूं ।” - मुकेश उसे अपना विस्की को गिलास दिखाता हुआ बोला ।

“अरे पोपटलाल, बैंड डांस म्यूजिक बजा रहा है । जा के डांस करो ।”

“किसके साथ ?”

“ये मैं बताऊं ?

मुकेश की निगाह अनायास ही रिंकी शर्मा की ओर उठ गयी ।

देवसरे ने उसकी निगाह का अनुसरण किया और फिर धीरे से बोला - “मुझे नहीं लगता कि वो सिन्धी भाई की सोहबत को कोई खास एनजाय कर रही है ।”

“ऐसा ?”

“हां । जा के डांस के लिये हाथ बढाओ । वो हाथ थाम ले तो समझ लेना कि मेरी बात सही है ।”

सहमति में सिर हिलाता मुकेश उठा और रिंकी और मेहर करनानी की टेबल पर पहुंचा । उसने करनानी का अभिवादन किया और फिर बड़े स्टाइल में रिंकी से बोला-- “मैडम, मे आई हैव दिस डांस प्लीज ।”

“ये कॉफी पी रही है ।” - करनानी बोला ।

“पी चुकी हूं ।” - रिंकी जल्दी से बोली और उसने एक ही घूंट में अपना कप खाली कर दिया ।

“ये इस वक्त मेरी कम्पनी में है ।” - करनानी बोला - “तू क्यों कम्पनीकतरा बनना चाहता है, भई ?”

“वडी साईं” - मुकेश नाटकीय स्वर में बोला - “मेहर कर न नी !”

करनानी की हंसी छूट गयी ।

“ठीक है । ठीक है ।” - वो बोला - “लेकिन वापिस इधर ही जमा करा के जाना उसे ।”

“यस, बॉस ।”

दोनों डांस फ्लोर पर पहुंचे और बांहें डाल कर बैंड की धुन पर डांस करते जोड़ों में शामिल हो गये ।
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(^%$^-1rs((7)
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