UPDATE-73
रोज़ रोए जा रही थी उसके हाथों में नहीं था वरना जान से मर देती काला लंड को…काला लंड बस मुस्कुराकर मेरी ओर देखे जा रहा था….मैं अब उठने वाला नहीं था…अचानक काला लंड पे थूकती रोज़ को देख उसका पड़ा चढ़ गया लेकिन वो उसके करीब आता खलनायक ने उसे गुस्से भारी निगाहों से देखा…काला लंड ने गुस्से में तमतमते हुए खलनायक को ही एक गुस्सा झाड़ दिया खलनायक गिर पड़ा..रोज़ संभाल गयी..काला लंड रोज़ के नज़दीक आया और उसके होंठ पे अपने नाखुंब चुभने लगा रोज़ दर्द से बिलख उठी
इतने में खलनायक ने टीयूब लाइट सीधे काला लंड के पीठ पे दे मारी…लेकिन ओसोे कोई असर ना हुआ और ऊसने खलनायक की गर्दन दबोच ली….”आ…हह सस्सस्स के.आमीने मेरा..खाखी”……खलनायक को अब सख्त गुस्सा चढ़ गया और ऊसने अपने पास रखी चाबी ओसॉके हाथों में दे घुसाई
कालल अंड दर्द से गिर पड़ा…खलनायक ने जैसे गुण पकरी ही थी..काला लंड ने उसके गर्दन को दबोचा और उसके सर सहित शीशे के आएनए में दे फैका..खलनायक का पूरा गर्दन शीशे से टकराके आर पार हो गया और खलनायक काँपते हुए गिर पड़ा….काला लंड ने कुर्सी सहित रोज़ को गिरा दिया और ऊस्की राससियो को नोंच नॉचके फ़ेक दिया रोज़ चिल्लाने लगी पर काला लंड बेरेहम था..ऊसने उसके गर्दन को पकड़ा और उसके होन्ो को अपने दाँतों से कांट लिया..रोज़ चिल्लाई ऊस्की आवाज़ सुन्न मेरे आंखें खुल चुकी थी
रोज़ के साथ वो बहुत ही बुरी तरीके से बलात्कारके करने की कोशिशें कर रहा था..ऊसने उसका अभी जीन्स नीचे खिसका ही दिया था..तभी मैं उठ खड़ा हुआ…कालल अंड को जब ये बात महसूस हुई तो वो उठके मेरी ओर देखता है और मुस्कुराकर मुझसे भीढने के लिए आगे आता है…मैं अपना मशेटी निकाल चुका था तब्टलाक़
काला लंड मुझसे टकराता है हालाँकि इस बार मैं हार मानने वाला नहीं था…और उससे भीढ़ जाता हूँ…मैं उसके हाथ पे ही मशेटी चला देता हूँ…और ऊस्की दो उंगलियां कांतके गिर जाती है…मैं ऊस्की गर्दन दबोच लेता हूँ उसे मारना आसान तो नहीं था…लेकिन मुझे भी उससे लार्न की पूरी कोशिश आज कारण इति सबकुछ दाव पे लगा था….मैंने उसके कमज़ोरी उसके सर को पाया जिसे वो बच्चा रहा था और ऊसपे करते का वार शुरू किया…काला लंड अब पष्ट परने लगा लेकिन वो मुझपर हावी होना बंद नहीं कर पा रहा था
कभी इस ओर कभी ऊस ओर की चीओंज़ों पे मुझे पटक देता और मैं भी पूरी कोशिश में ऊसपे वार करके उसे उठाकर किसी तरह पटक देता…हाथाआपाई के दौरान ही मैंने अपने मशेटी से उसके सर के मास्क को चियर दिया और ऊसपे चढ़ गया जैसे ही उसके मास्क को दो भाग में चियर डाला वो एक दम दहधते हुए एक ओर गिरके छटपटाने लगा रेस्लर लोगों की एक कमज़ोरी होती है की वो अपने चेहरे को हमेशा छिपाते है ताकि ऊँका साल चेहरा दुनिया के सामने ना आ सके…गुण चलना बेवकूफी ही थी
मैंने उसके सर को पकड़ लिया और जिस तरह ऊसने रोज़ दिव्या और बाकी मौसम औरत को मारा था ठीक उसी तरह उसके सर को क़ास्सके पकड़ लिया वो लगभग छुड़ाने की तो कोशिश करने लगा पर बच ना पाया..और मैंने ऊस्की गर्दन को माड़ोध के तोड़ दया…वो ज़ोर से दहधा और वही मर के लाश बन गया रोज़ रोते हुए मेरे गले लग गयी…खलनायक तब्टलाक़ अपने आधे अधूरे फटे मास्क से मेरी ओर देख रहा था रोज़ मेरे पीछे हो गयी…उसके हाथ में बंदूक थी…वो लरखरा रहा था
“अब बचने का फायदा नहीं चुपचाप हार मान जा”…….मैंने गुस्से से बोला….खलनायक ने देखा की रोज़ नेरा मेरा हाथ पकड़ा है लेकिन ऊसने गुण नहीं चलाईइ उसके आंखों में मैं आँसू देख सकता था
“साल..आ जिंदगी एमेम..एन्न हे..आमएस्सा डर..ड्ड साहा आहह पर साअला एक प्याररर आदमी क्यों…तो..द्ध एटा है….क्यों..टते भी..आहुट्त किस.मात्ट वाला हे तुउउउ”…..खलनायक के आवाज़ में भारीपन था शायद उसके आँसू उसके दर्द को चेहरे ढके होने से भी नहीं छुपा पा रहे थे…ओसॉके एक आँख के निकलते अनसु को देख सकता था “जिंदगी में बहुत क्राइम किया अपून्ं ने लेकिन साला कभी सुख नहीं मिला पर साले तुम दोनों को मैं!”…….अभी वो गुण पॉइंट हुंपे कर पाता पुलिस की साइरन आवाज़ उठ गयी
“भागने की कोशिश मत करना खलनायक हमने इस पोर्ट कोचरो ओर से घेरर लिया है खलनायक अपने आदमियों के साथ खुद को हमारे हवालेक आर दो”…..खलनायक बहुक्ला उठा तब्टलाक़ मेरे गोली ओसॉके पाओ पे लग चुकी थी वो वही गिर पड़ा
काला साया : जी तो करता है यही मर दम तुझे पर साले तुझे ज़िंदा रहके दर्द सहना होगा जो दर्द तूने सबको दिया सिर्फ़ अपनी खुशी और बदले के लिए
मैं जानना तो चाहता वो कौन है? पर मुखहोटा उठाने का वक्त नहीं था..मैंने रोज़ को लिया और क्सिी तरह दूसरी ओर से निकालने लगा..खलनायक को भागना ही था…उसके आदमी जो बच गये थे वॉ पुलिस पे ही ताबड़टोध गोलीय बरसाने लगे..लेकिन एका एक पुलिस के मुत्बायर और गोलीबारियो में मारें जा रहे थे…खलनायक के पास शायद अब कोई बेक उप नहीं बच्चा त हां हूँ बस लरखरते हुए अपने टाँग से निकलते खून पे रूमाल चड़ा चुका था उसका अड्डा अब पूरी तरीके से तहेस नहेस होने जा रहा था…इधर मैं इन हाला तो में जैसे तैसे रोज़ के संग बाहर आया पीछे के रास्ते पे पुलिस थी…शायद कमिशनर ने ही इन लोगों को भेजा होगा…मैंने और रोज़ ने फौरन छलाँग लगा दी पिछवाड़े के फाटक से हम दोनों आज़बेस्टेर पे गिरते हुए सीधे नीचे आ गिरे…मुझे बेहद चोट आई रोज़ संभाल गयी ऊसने मुझे जैसे तैसे उठाया..पुलिस की टुकड़ी ऊस साइड भी आंर वाली थी…
मैं और हूँ गटर के अंदर घुस गये….और शटर लगा ली जिससे पुलिस को वहां किसी के आने का आवास नहीं हुआ….हम धीरे धीरे गटर के नीचे आए…हूँ गटर सीधे पोर्ट से सटे समंदर में खुलता था…बचना तो था ही पर रोज़ कटरा रही थी इतनी बड़ी जोखिम ऊसने कभी नहीं लिट ही..मैंने उसका हाथ पकड़ा और हम दोनों समंदर की धारा में कूद परे…गटर का पानी सीधे समंदर के फासले में आ गया लेकिन बीच में गटर और समंदर के बीच एक छेद था…गुण बेकार थी…रोज़ का साँस लेना मुश्किल पढ़ने लगा…मैं एक लात मारा गटर लोहे से सख्त था..मैंने हेंड ग्रीनेड बॉम्ब सीधे दरवाजा के छेद पे लगाया और उसका शेल खींच दिया हम दोनों जब तक वापिस गटर के रास्ते आते दरवाजा उड़ गया और इसके साथ ही इतनी ज़ोर का धक्का लगा पानी में ही कम गटर के द्वार से समंदर आ गये…मैंने रोज़ को पकड़ा और हम दोनों तैरते हुए ऊपर आने पुलिस के टाइम तैरने की अच्छी खासी ट्रेनिंग लिट ही…हम दोनों तैरते हुए ऊपर आए पानी का इतना बहाव था की पूछो मत….दूर पोर्ट के ऊपर पुलिस की टुकड़िया ऊपर नीचे आती जाती दिख रही थी…गाड़ियों की लाइट्स और समंदर पे भी रोशनी मारी जा रही थी जाना मना गॅंग्स्टर आज उनके हाथ लगने वाला था…तभी मैंने अपनी बाइनाक्युलर से देखा की खलनायक कबका समंदर की धारा में कूद चुका है…और हूँ सीधे बंद पड़ी खिड़की को तोधके समंदर में जा कूड़ा…मैं उसके करीब जाना चाहता था..पर रोज़ ने मुझे रो कड़िया पानी का बहाव रात को तेज हो जाता है हम दोनों बार बार डूबने के कगार पे पहुंचने लगे
रोज़ : उसे जाने दो वॉ इस बहती धारा में ही बहके डुबके मर जाएगा पुलिस उसी की तलाश कर रही है हमें देखती है कुछ भी कर सकती प्लीज़ बात को समझो
काला साया : मैं उसे नहीं चोदूंगा ऊस कमीने मेरी दिव्या को!
रोज़ : प्ल्स मेरे खातिर…(और कुछ कह नहीं पाया हम पोर्ट से बहुत दूर आ गये तभी खुदा के फ़ज़ल से एक मचवारा जो बहुत से गुजर रहा था हमें दिख गया)
मचवारा : दादा अपनी छोले आसुन छोले आसुन (भैया आप इधर आइये इधर आइये)
ऊसने हम दोनों को देख लिया था…हम दोनों फहत से उसके बहुत पे चढ़ गये…”पानी बहुत गहरा है आप लोग डूब जाएगा आप लोग लाइट जाओ वरना पुलिस देख लेगी हम देख रहा है ऊन्को”…….मचवारे ने हम दोनों को बहुत पे ही लाइट जाने को बोला हम दोनों वैसे ही पष्ट होकर खास रहे थे हम लाइट गये
काला साया : भाई जैसे भी करके ज़मीन पे पहुंचा दे
मचवारा : ठीक है साहेब आप जैसे महान आदमी को भला कौन नहीं साथ देगा
Fantasy काला साया – रात का सूपर हीरो
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Re: Fantasy काला साया – रात का सूपर हीरो
UPDATE-74
मैं इतना चर्चित था ये बात का अंदाज़ा मुझे भी नहीं पता…बस मैं देख सकता था की अंधेरी समंदर की लहरो में ना जाने कहा खलनायक गायब हो गया क्या हूँ डूब गया? उसका कोई बॅकप भी नहीं था…लेकिन मैं ये जनता था इसके साथ ही शायद खलनायक और मेरी दुश्मनी की दास्तान यही उसके मौत से खत्म हो गयी थी
मैं बस चुपचाप रहा मैंने रोज़ की तरफ देखा और उसके होठों से होंठ लगा लिए मानो जैसे उसे पाके कितना खुश था? रोज़ के आंखों में आँसू थे मचवारा बस चोरी निगाहों से हम दोनों का प्रेम प्रसंग देख रहा था…हम दोनों वैसे ही जाली पे बहुत के ऊपर लेटे रहे जब तक ठोस ज़मीन और पुलिस की नजारे से दूर ना हो गये…
सुबह की चकाचौंड रोशनी जब खिड़की से परदों के इधर उधर से निकलते हुए बिस्तर पे पड़ी..तो एक बार आंखों को मलते हुए अपने नंगे सीने से लिपटी हुई अपना सर मेरे छाती पे रखे हुए…जिसके बाल इधर उधर बिखरे हुए थे जिसके आंखों से लेकर आधे चेहरे तक एक काला मुखहोटा था…और उसका एक हाथ मेरे सीने को पाखारे हुए पीछे तक..और एक हाथ मेरे चेहरे के मुखहोते को सहलाते हुए
आज 2 दिन जैसे मानो कितने साल गुजर गये हो?….कैसे? खलनायक से लर्रकर मैंने उसके आदमियों को मर डाला…काला लंड की लाश पुलिस को बाकी गुंडों के साथ मिल चुकी थी…लेकिन खलनायक का कुछ पता ना चल पाया…वो जो समंदर में डूबा उसके बाद ना तो मुझे और ना ही कभी पुलिस को नज़र आया…लेकिन कहीं ना कहीं इस देश को उससे शायद निजात मिल गया था…अगर वो मर चुका होगा या तो ऊस्की लाश डूबते हुए कहीं ना कहीं तो पहुंच जाएगी…लेकिन सबसे सुकून भरा दिन मुझे ये सुबह और अपने दिव्या के बदले पे जीत की हो रही थी
मैंने महसूस किया की रोज़ थोड़ी हिली है…मैंने उसके पीठ को सहलाते हुए उसके चेहरे को अपनी तरफ किया…वो मासूमियत निगाहों से मेरी ओर देखते हुए मेरे सीने पे सर रखकर मेरे होठों पे उंगली फहरने लगी…हम दोनों ही चादर के अंदर कब से नंगे एक दूसरे से लिपटे थे ये बात का हमें पता नहीं था…मैंने रोज़ को अपने ताक़त से अपने ऊपर उठा लिया..और उसके कमर से होते हुए ऊस्की गान्ड की फहाँको में हाथ फहरने लगा….रोज़ मेरे सीने पे अपना सर रखकर छोटे बच्चों की तरह सोने लगी
रोज़ : देवष
काला साया : हाँ रोज़!
रोज़ : सबकुछ फीरसे शांत हो गया ई होप की अब तुम सबकुछ भुला चुके हो
काला साया : नहीं भुला पाया हूँ कुछ चीज़ें (एकदम से हड़बड़ाकर रोज़ ने मेरी ओर चेहरे को मोड़ा उसके आंखों में सवालात थे अब क्या रही गया था?)
काला साया : हां हां हां अरे हाउ कॅन ई फर्गेट यू? (मेरी बात को सुन रोज़ मुस्कुराकर मुझसे और क़ास्सके लिपट गयी उसके भारी छातिया मेरे सीने पे जैसे पीस रही थी उसके कड़क निपल्स जैसे गुदगुदी पैदा कर रहे थे)
रोज़ : तो फाइनली तुम अब क्या चाहते हो?
काला साया : एक अच्छी जिंदगी एक नया मोड़
रोज़ : जैसे?
काला साया : जैसे तुमसे शादी (मैंने उसके चेहरे को हाथों में भर लिया)
रोज़ को मानो जैसे ऊस्की मन की मुराद पूरी मिल गयी थी…ऊसने मेरे होठों को क़ास्सके चूम लिया और ज़ोर से बोल पड़ी “रेअल्लययी”…..मैंने मुस्कुराकर उसके एग्ज़ाइट्मेंट भरे चेहरे पे हाथ रखकर क़ास्सके उससे कहा “बिलकुल मेरी जान”…….रोज़ मुझसे फिर गले लिपट गयीचदर कब हम दोनों थोड़ा अलग हो गया पता नहीं
दिल को बस एक सुकून था मानो जैसे आज सारी मुरादें पूरी हो गयी हो…रोज़ को इतना क़ास्सके अपने से लिपटाया की उसे छोढ़ने का दिल ना हुआ…कहते है जब खुदा मेहेरबन होता है तो चारों तरफ खुशिया बरसता है…आज उनकी मेहरबानी मुझपर थी….जिस पेज निक्की बेला के सपने देखा था उससे भी कई गुना खूबसूरत गोरी में मेरे आगोश में थी…जो खुद मुझसे शादी करने के प्रस्ताव रखी हुई कब से बैठी थी?….जब आदमी के सामने बर्गर हो तो वो रोती क्यों खाए? इतने अच्छे रिश्ते को अगर ठुकराया तो मुझसे बड़ा गान्डू फिर कौन बस ऊस दिन बस मैं उससे लिपटा ही रहा ना ही कोई कम का भोज ना ही कोई और लरआई सिर्फ़ हम और तुम
शादी के बारे में सोचते हुए मैं बाइक दौड़ा रहा था….बाज़ार के चारों ओर के लोगों की तरफ एक निगाह दौड़ाई…मानो जैसे इस शहर में कितना चहेल पहले हो…ना ही कोई लाफद ना ही कोई झगड़ा…एक पॅड्रे से बात कर ली…ऊन्होने मुझे बताया की रोज़ के साथ रोमन कॅतोलिक विवाह के रिवाज़क ए साथ कोर्ट मरीज़ भी कर लू….मैं बहुत खुश हुआ खैर पुलिसवालो का पता नहीं था की ऊँका एक्स-कॉप शादी करने वाला है….ऊस दिन वो आए थे मुझे बधाई दी लड्डू भी बाँटे खलनायक की मौत पे ऊँका जश्न्ञ देखकर मुझे भी खुशी हुई
कलकत्ता के चर्च में शादी का पूरा प्रोग्राम मैंने बना लिया…गुप्त रूप से शादी करके मैं रोज़ के साथ कोर्ट मरीज़ भी कर लूँगा…वापिस इतर पहुंचते पहुंचते शाम हो गयी….रोज़ को फोन पे ही खबर सुनाई वो काफी खुश थी…इधर कमिशनर के बार्िएन में पता चला की ऊँपे गवर्नमेंट और इंटरनॅशनल अफीशियल्स के दबाव मिल रहे है ऊन्होने कैसे खलनायक का एनकाउंटर करा दिया? उसे रंगे हाथों पकड़ना था सीक्रेट एजेंट्स का वो मोस्ट वांटेड क्रिमिनल था वगैरह वगैरह…कॉँमससिओनेर मिया की नींद तो ऐसे हराम हुई मानो ऊन्हें किसी ने शाप ही दे दिया हो
अपर्णा काकी को बताया तो वो भी बेहद खुश हुई की चलो मैंने कोई रिश्ता पसंद तो किया…लेकिन ऊन्होने ज्यादा आपत्ति नहीं जताई…क्योंकि मामला मेरा था बस मुझे सुझाव देने लगी…आज मैं बेहद खुश था…और खुशी के मारें एक राउंड अपर्णा काकी की चुत का भी ले लिया….बिस्तर पे ही लैटाके उनके पल्लू को हटाया और फिर उनके पेंट को चूमा और फिर उनके पेटीकोट को एकदम ुआप्र करके चड्डी को एक तरफ हटते हुए सीधे दे दाना दान धक्के पेल दिए काकी की चुत में…काकी मां तो पष्ट होकर बस धक्को का मजा लेती रही…इन औरतों को जितनी बेरहेमी से चोदा लेकिन ये लोग आहह ऊ ई तक की आवाज़ नहीं निकालती बस इन्हें तो लंड ले ले कीआदात हो जाती है और बस आहें भरती रहती है चाहे इनका भोसड़ा क्यों ना भर दे?
शीतल भी मांझी हुई खिलाड़ी थी….मां को जिस दिन ठंडा किया बेटी दूसरे ही दिन हाज़िर…क्या कारिएन चलो कभी कभी देसी खाना भी कहा लेना चाहिए…..अब तो हमारी शादी शुदा बहाना भाई से खूब जी भरके चुदवाती थी…ऊस्की मोटी मोटी गान्ड इतनी मोटी हो गयी थी की साला बाउन्स करती थी…उसे नंगा करके मैं खूब उसके पिछवाड़े को बाउन्स करवाता था…और फिर दान दाना दान लंड उसके गान्ड में डालकर चोदता था…और फिर वो अपने थूक से भरे मुँह में लंड लेकर जो चुस्ती अफ क्या कहने? जन्नत हो तो यही….मैंने शीतल से वादा किया मैंने उससे शादी की नहीं तो क्या उसे बच्चा तो जरूर दूँगा….शीतल भी अब जी भरके बिना कॉंडम के चुदवाने लगी मेरे पास 6-7 दिन ही था उसके बाद तो उसे वापिस अब जाना था
आख़िरकार शीतल को कुछ ही दीनों में उल्टिया शुरू हो गयी…और ऊसने रामलाल को मुबारकबाद दी जबक इशीतला जानती थी बच्चा तो मेरा है ऊस्की चुत को कब से चोद छोड़कर अपना पानी डाल रहा हूँ ये वो भी जानती है…रामलाल तो अपने होने वाले बच्चे के लिए पागल हो गया और ऊसने जल्दी से शीतल को अपने साथ लेकर चला गया
आख़िरकार खुशी जिंदगी ऐसे ही चलने लगी….एक दिन फोन बजा त्रृिंगगग त्रिंगगग…फोन को उठाते ही एक जानी पहचानी आवाज़ कानों में पड़ी
मैं इतना चर्चित था ये बात का अंदाज़ा मुझे भी नहीं पता…बस मैं देख सकता था की अंधेरी समंदर की लहरो में ना जाने कहा खलनायक गायब हो गया क्या हूँ डूब गया? उसका कोई बॅकप भी नहीं था…लेकिन मैं ये जनता था इसके साथ ही शायद खलनायक और मेरी दुश्मनी की दास्तान यही उसके मौत से खत्म हो गयी थी
मैं बस चुपचाप रहा मैंने रोज़ की तरफ देखा और उसके होठों से होंठ लगा लिए मानो जैसे उसे पाके कितना खुश था? रोज़ के आंखों में आँसू थे मचवारा बस चोरी निगाहों से हम दोनों का प्रेम प्रसंग देख रहा था…हम दोनों वैसे ही जाली पे बहुत के ऊपर लेटे रहे जब तक ठोस ज़मीन और पुलिस की नजारे से दूर ना हो गये…
सुबह की चकाचौंड रोशनी जब खिड़की से परदों के इधर उधर से निकलते हुए बिस्तर पे पड़ी..तो एक बार आंखों को मलते हुए अपने नंगे सीने से लिपटी हुई अपना सर मेरे छाती पे रखे हुए…जिसके बाल इधर उधर बिखरे हुए थे जिसके आंखों से लेकर आधे चेहरे तक एक काला मुखहोटा था…और उसका एक हाथ मेरे सीने को पाखारे हुए पीछे तक..और एक हाथ मेरे चेहरे के मुखहोते को सहलाते हुए
आज 2 दिन जैसे मानो कितने साल गुजर गये हो?….कैसे? खलनायक से लर्रकर मैंने उसके आदमियों को मर डाला…काला लंड की लाश पुलिस को बाकी गुंडों के साथ मिल चुकी थी…लेकिन खलनायक का कुछ पता ना चल पाया…वो जो समंदर में डूबा उसके बाद ना तो मुझे और ना ही कभी पुलिस को नज़र आया…लेकिन कहीं ना कहीं इस देश को उससे शायद निजात मिल गया था…अगर वो मर चुका होगा या तो ऊस्की लाश डूबते हुए कहीं ना कहीं तो पहुंच जाएगी…लेकिन सबसे सुकून भरा दिन मुझे ये सुबह और अपने दिव्या के बदले पे जीत की हो रही थी
मैंने महसूस किया की रोज़ थोड़ी हिली है…मैंने उसके पीठ को सहलाते हुए उसके चेहरे को अपनी तरफ किया…वो मासूमियत निगाहों से मेरी ओर देखते हुए मेरे सीने पे सर रखकर मेरे होठों पे उंगली फहरने लगी…हम दोनों ही चादर के अंदर कब से नंगे एक दूसरे से लिपटे थे ये बात का हमें पता नहीं था…मैंने रोज़ को अपने ताक़त से अपने ऊपर उठा लिया..और उसके कमर से होते हुए ऊस्की गान्ड की फहाँको में हाथ फहरने लगा….रोज़ मेरे सीने पे अपना सर रखकर छोटे बच्चों की तरह सोने लगी
रोज़ : देवष
काला साया : हाँ रोज़!
रोज़ : सबकुछ फीरसे शांत हो गया ई होप की अब तुम सबकुछ भुला चुके हो
काला साया : नहीं भुला पाया हूँ कुछ चीज़ें (एकदम से हड़बड़ाकर रोज़ ने मेरी ओर चेहरे को मोड़ा उसके आंखों में सवालात थे अब क्या रही गया था?)
काला साया : हां हां हां अरे हाउ कॅन ई फर्गेट यू? (मेरी बात को सुन रोज़ मुस्कुराकर मुझसे और क़ास्सके लिपट गयी उसके भारी छातिया मेरे सीने पे जैसे पीस रही थी उसके कड़क निपल्स जैसे गुदगुदी पैदा कर रहे थे)
रोज़ : तो फाइनली तुम अब क्या चाहते हो?
काला साया : एक अच्छी जिंदगी एक नया मोड़
रोज़ : जैसे?
काला साया : जैसे तुमसे शादी (मैंने उसके चेहरे को हाथों में भर लिया)
रोज़ को मानो जैसे ऊस्की मन की मुराद पूरी मिल गयी थी…ऊसने मेरे होठों को क़ास्सके चूम लिया और ज़ोर से बोल पड़ी “रेअल्लययी”…..मैंने मुस्कुराकर उसके एग्ज़ाइट्मेंट भरे चेहरे पे हाथ रखकर क़ास्सके उससे कहा “बिलकुल मेरी जान”…….रोज़ मुझसे फिर गले लिपट गयीचदर कब हम दोनों थोड़ा अलग हो गया पता नहीं
दिल को बस एक सुकून था मानो जैसे आज सारी मुरादें पूरी हो गयी हो…रोज़ को इतना क़ास्सके अपने से लिपटाया की उसे छोढ़ने का दिल ना हुआ…कहते है जब खुदा मेहेरबन होता है तो चारों तरफ खुशिया बरसता है…आज उनकी मेहरबानी मुझपर थी….जिस पेज निक्की बेला के सपने देखा था उससे भी कई गुना खूबसूरत गोरी में मेरे आगोश में थी…जो खुद मुझसे शादी करने के प्रस्ताव रखी हुई कब से बैठी थी?….जब आदमी के सामने बर्गर हो तो वो रोती क्यों खाए? इतने अच्छे रिश्ते को अगर ठुकराया तो मुझसे बड़ा गान्डू फिर कौन बस ऊस दिन बस मैं उससे लिपटा ही रहा ना ही कोई कम का भोज ना ही कोई और लरआई सिर्फ़ हम और तुम
शादी के बारे में सोचते हुए मैं बाइक दौड़ा रहा था….बाज़ार के चारों ओर के लोगों की तरफ एक निगाह दौड़ाई…मानो जैसे इस शहर में कितना चहेल पहले हो…ना ही कोई लाफद ना ही कोई झगड़ा…एक पॅड्रे से बात कर ली…ऊन्होने मुझे बताया की रोज़ के साथ रोमन कॅतोलिक विवाह के रिवाज़क ए साथ कोर्ट मरीज़ भी कर लू….मैं बहुत खुश हुआ खैर पुलिसवालो का पता नहीं था की ऊँका एक्स-कॉप शादी करने वाला है….ऊस दिन वो आए थे मुझे बधाई दी लड्डू भी बाँटे खलनायक की मौत पे ऊँका जश्न्ञ देखकर मुझे भी खुशी हुई
कलकत्ता के चर्च में शादी का पूरा प्रोग्राम मैंने बना लिया…गुप्त रूप से शादी करके मैं रोज़ के साथ कोर्ट मरीज़ भी कर लूँगा…वापिस इतर पहुंचते पहुंचते शाम हो गयी….रोज़ को फोन पे ही खबर सुनाई वो काफी खुश थी…इधर कमिशनर के बार्िएन में पता चला की ऊँपे गवर्नमेंट और इंटरनॅशनल अफीशियल्स के दबाव मिल रहे है ऊन्होने कैसे खलनायक का एनकाउंटर करा दिया? उसे रंगे हाथों पकड़ना था सीक्रेट एजेंट्स का वो मोस्ट वांटेड क्रिमिनल था वगैरह वगैरह…कॉँमससिओनेर मिया की नींद तो ऐसे हराम हुई मानो ऊन्हें किसी ने शाप ही दे दिया हो
अपर्णा काकी को बताया तो वो भी बेहद खुश हुई की चलो मैंने कोई रिश्ता पसंद तो किया…लेकिन ऊन्होने ज्यादा आपत्ति नहीं जताई…क्योंकि मामला मेरा था बस मुझे सुझाव देने लगी…आज मैं बेहद खुश था…और खुशी के मारें एक राउंड अपर्णा काकी की चुत का भी ले लिया….बिस्तर पे ही लैटाके उनके पल्लू को हटाया और फिर उनके पेंट को चूमा और फिर उनके पेटीकोट को एकदम ुआप्र करके चड्डी को एक तरफ हटते हुए सीधे दे दाना दान धक्के पेल दिए काकी की चुत में…काकी मां तो पष्ट होकर बस धक्को का मजा लेती रही…इन औरतों को जितनी बेरहेमी से चोदा लेकिन ये लोग आहह ऊ ई तक की आवाज़ नहीं निकालती बस इन्हें तो लंड ले ले कीआदात हो जाती है और बस आहें भरती रहती है चाहे इनका भोसड़ा क्यों ना भर दे?
शीतल भी मांझी हुई खिलाड़ी थी….मां को जिस दिन ठंडा किया बेटी दूसरे ही दिन हाज़िर…क्या कारिएन चलो कभी कभी देसी खाना भी कहा लेना चाहिए…..अब तो हमारी शादी शुदा बहाना भाई से खूब जी भरके चुदवाती थी…ऊस्की मोटी मोटी गान्ड इतनी मोटी हो गयी थी की साला बाउन्स करती थी…उसे नंगा करके मैं खूब उसके पिछवाड़े को बाउन्स करवाता था…और फिर दान दाना दान लंड उसके गान्ड में डालकर चोदता था…और फिर वो अपने थूक से भरे मुँह में लंड लेकर जो चुस्ती अफ क्या कहने? जन्नत हो तो यही….मैंने शीतल से वादा किया मैंने उससे शादी की नहीं तो क्या उसे बच्चा तो जरूर दूँगा….शीतल भी अब जी भरके बिना कॉंडम के चुदवाने लगी मेरे पास 6-7 दिन ही था उसके बाद तो उसे वापिस अब जाना था
आख़िरकार शीतल को कुछ ही दीनों में उल्टिया शुरू हो गयी…और ऊसने रामलाल को मुबारकबाद दी जबक इशीतला जानती थी बच्चा तो मेरा है ऊस्की चुत को कब से चोद छोड़कर अपना पानी डाल रहा हूँ ये वो भी जानती है…रामलाल तो अपने होने वाले बच्चे के लिए पागल हो गया और ऊसने जल्दी से शीतल को अपने साथ लेकर चला गया
आख़िरकार खुशी जिंदगी ऐसे ही चलने लगी….एक दिन फोन बजा त्रृिंगगग त्रिंगगग…फोन को उठाते ही एक जानी पहचानी आवाज़ कानों में पड़ी
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Re: Fantasy काला साया – रात का सूपर हीरो
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Re: Fantasy काला साया – रात का सूपर हीरो
UPDATE-75. (FINAL UPDATE)
मामुन : अययई बडी व्हातसस्स अप्प? कैसा हे तुऊउ?
देवश : अर्र…ई भी मेरे यार मेरी जानन्न तू सुना बस कैसा चल रहा है सब?
मामुन : चुप साले जबसे आया हो वएक बार भी फ़ॉएं नहीं किया तूने? ऐसा थोड़ी ना चलता है
देवश : भी मांफ कर दे कहूँ तो सॉरी पर प्लीज़ मेरी नादानी को मांफ़्क आर दे
मामुन : मांफ तो हम तब ही करेंगे जब आप यहां आएँगे म्ृर
देवश : भाई वो दरअसल!
मामुन : देख देख तूने नौकरी चोद दी है मुझे पता लग गया इतना पराया कर दिया मुझे तूने कोई प्राब्लम तो नहीं है ना पैसों की
देवश : भाई ज़मीदार के पोते है पैसों की कभी कमी हुई है भला
मामुन : ये हुई ना बात चल अच्छा हुआ अब तुझसे मुझसे डर नहीं लगेगा हाहाहा अच्छा भाई तुझे फोन करने का था की इस हफ्ते तू आजा मिलने देख ना मत करियो बहुत आस से फोन किया है यहां मैं काफी बोर हो रहा हूँ तू आएगा तो दिल बह लेगी
देवश : भाई लेकिन (कैसे कहता की अब मैं रोज़ से शादी को बेक़रार था लेकिन ना जाने क्या आया मैंने मुस्कुराकर हाँ कह दिया)
मामुन : ये हुई ना बात चल तू आजा पूरा खाने का इंतजाम करूँगा मैं वैसे सुनकर दुख हुआ की दिव्या!
देवश : भैया जाने दो प्लीज़
मामुन : ई आम सॉरी चल तू बस ये समझ की तेरा अपना अब भी ज़िंदा है कोई तू बस आजा मैं तेरा इंतजार कर रहा हूँ
देवश : ठीक है भाई
मामुन : ना रुकेगा कोई नहीं लेकिन भाई से मिल तो ले
देवश : अच्छा ठीक है बाबा आता हूँ
मामुन : यआःाहह चल फोन रख ओके बयी
मामुन ने फोन कट कर दिया….खैर ये भी ठीक ही था की एक बार मामुन से मिल लू ताकि गीले शिकवे सब दूर हो जाए…कैसे उसे काहु की मैं रोज़ से शादी करने वाला हूँ अब जैसे तैसे रोज़ से शादी करके मैं यहां से अब जाना ही चाहता था…जब इतना होप लेकर बुला र्हाः आई तो तहेरना कैसा?
देवश धीरे धीरे कवर्ड के पास गया और ऊसने मुस्कुराकर वो कवर्ड खोला जिसके अंदर एक गुण रखी थी….देवश ने उसे हाथ में लेकर बस मुस्कराए हुए अज़ीब निगाहों से देखा…”कभी कभी बदला अधूरा रही जाता है”…….देवश की मुस्कान एक पल के लिए कठोर सी हो गयी और ऊस्की निगाह फिर वही काला साया के रूप के भट्टी बदले की आग में जल उठी
रात के करीब 12 बज चुके थे….कुत्तों की हावव हावव आवाज़ को सुनकर एकबार बेचैनी से कमिशनर साहेब उठ बैठे….ऊन्होने एक नज़र अपनी बीवी की ओर की…जो घोड़े बेचके सो रही है…”अफ कितना बुरा सपना था काला साया ने तो मुझे मर ही डाला था”…..कमिशनर अपने भयंकर सपने को व्यतीत करते हुए बबदबड़ाया…ऊसने उठके झड़ से गिलास में डालकर एक गिलास पानी लिया और फिर धीमी साँस छोढ़ते हुए उठा…
“इतने बारे घर में इतनी सेक्यूरिटी है सबसे पहली बात घुसेगा कैसे हां हां हां हां”…….कमिशनर अपनी बुद्धि की तारीफ करते हुए तहाका लगाकर हंसा…”आज लगता है नींद नहीं आएगी अफ एक गिलास पी ही लेता हूँ”…..कॉँमससिओनेर धीरे धीरे अपने रूम से बाहर निकलकर सीडियो से नीचे उतरा…पास ही बने शराब की अलमारी से एक बोतल निकलकर वही पास के कुर्सी पे बैठकर टेबल पे रखकर गिलास में डालने लगा…”हां अच्छा हुआ वॉ मादरचोद खलनायक भी उम्म्म”….अपने गले में घोंटते हुए एक ही बार में जम खाली कर दी…दूसरा पेग बनाते हुए कमिशनर ने अभी आधी शराब पी ही थी की सामने खड़े ऊस शॅक्स को देखकर उसके हाथ से गिलास चुत के फर्श पे ही बिखर गया
कमिशनर : क्क्क..क्कहालननायक्ककक त..तूमम्म?
खलनायक : हाँ मैंन जिसके गान्ड के पीछे तू बहुत दीनो से पड़ा हुआ था बारे ही परवाचन सुनता है ना न्यूज मेंन अब बोल
कमिशनर : आररी रूपाल्ल्ल जीवँनन् आररी आई वातचममंणन्न् अरे कहाँ म्मररर गये सब के सब्बब? (कमिशनर डर के मारें चिल्ला उठा लेकिन कोई नहीं आया)
खलनायक : मुझे क्या इतना चूतिया समझा है की मैं ऐसे ही तेरे घर में घुस जाऊंगा उठ के देख उठ के देखह देखह (कॉँमससिओनेर भुआकलते हुए भागा बाहर की ओर बाहर का दरवाजा बंद था और बाहर के सारें सेक्यूरिटी मानो जैसे बेहोशी मुद्रा में परे थे) वैसे भी तेरी बीवी पे मुँह पे भी सेम स्प्रे छिड़का है अगर उसके ऊपर 10 आदमी भी चढ़ जाए ना हाहाहा तो उसे सुबह तक कुछ पता नहीं चलेगा
कमिशनर : से..हत्त अप्प द..एखू में..मैंन त..उंहें चोदूंगा नहीं यू आर..ए में..एससिंग डब्ल्यू.इतह आ पुलिस कोँमिससिओंनेर
खलनायक : हां हां हां हां जिसकी पेंट गीली है और जो अपने सामने कोई भी खतरनाक गुंडे को देखकर हल्का जाता है कॉँमससिओनेर उसे कहते है हां हां हां हां साले बेटीचोड़ तू भी बहुत बड़ा चोद लगता हे लेकिन तूने जो किया ना ऊस्की भरपाई तो तुझे दूँगा ही
खलनायक धीरे धीरे कोँमिससिओएंर के आगे आने लगा कमिशनर के पास कोई हत्यार नहीं था वो बस भौक्ला रहा था…भौक्लते भौक्लते उसके आँख इतने बारेह उए की वो ज़ोर से चिल्लाया और उसका जिस्म अकड़ने लगा….अपने सामने एक राक्षस जैसे मुखहोते को करीब आते देख जिसके हाथों में चाकू उसका दिल का दौरा बढ़ने लगा वो अपने कलेजे को पकड़ा वही गिरके छटपटाने लगा….खलनायक बस चुपचाप वैसे ही खड़ा रहा…कुछ देर बाद कमिशनर का बदन तहेर गया…खलनायक जनता था ऊस्की साँसें तांचुकी है
खलनायक : हां हां हां हां चलो आज पहली बार कोई मेरे खौफ से मारा है अगर ज़िंदा बचता तो बेदर्दी मौत मरता
अगले दिन कलकत्ता की एक पौष इलाके पे बने फ्लैट के अंदर देवश अड्रेस पूछते हुए आया….दरवाजा अपने आप खुल गया सामने मामुन सिगरेट पी रहा था उसका धुंआ छोढ़ते ही उसे कमरे में देवश आते दिखा “आए मेरे यार तू आ ही गया वाहह”……मामुन ने देवश से गले मिलकर उसके कंधे पे हाथ रखकर उसका स्वागत किया
देवश : क्या भाई तू तो बेहद अमीर हो गया ये सब क्या है? लगता है जैसे दावत रख है तूने मेरे लिए
मामुन : भाई आए और दावत ना रखू चल बैठ आज पहली बार आया है तू मेरे ग़रीबखाने चल एक एक पेग हो जाए
देवश : नहीं नहीं मैं पीता नहीं
मामुन : अच्छा ठीक है पर मैं तो इस जश्न्ञ में पिऊंगा (मामुन ने एक पेग बनाया और पीने लगा)
देवश चुपचाप मुस्कुराकर मामुन की ओर देखकर चारों ओर देखने लगा “वैसे काफी पैसेवला हो गया है तू?”….देवश ने तंग पे तंग रखते हुए कहा….मामुन बस पागलों की तरह हंस रहा था “भैईई सब खुदा की मर्जी है जिस आदमी के जिंदगी में पैसा ना हो वो कर भी क्या सकता था? और आज लौंडिया है पैसा है शौरहट है दौलत है”…….मामुन के आंखों में जैसे दुख के आँसू थे
देवश : हो भी क्यों ना? जो लोगों के दिल में दहशत फैलाए उसे तो सब खुदा ही मानेंगे ना मिस्टर खलनायक (चौका देने वाली थी ये बात मामुन कुछ देर तक गंभीर होकर देवश की शकल देखने लगा फिर मुस्कराया)
देवश : असल में तेरी चोरी पकड़ी गई है साले मुझे यकीन नहीं होता मेरा भाई खलनायक और मैं ही एक सूपरहीरो वाहह क्या फॅमिली है गंदा तो हमारा खून था ही जो कभी क्सिी के आँसुयो की कदर ना कर सका क्या बिगाड़ा था मैंने तेरा? जो तूने मुझसे इतना बड़ा बदला
मामुन : बदला बादडला में फूटत (मामुन ने एक ही झटके में टेबल पे साज़े सभी खाने को टेबल सहित उल्टा के फ़ेक दिया) अरे मैंने किसका क्या बिगाड़ा था? जो मुझे ये दिन देखना पारा एक दिन था जब रोती के लिए डर डर भीख माँगता था…तेरी वो दादी जिससे मेरे परिवार वालो ने अपना हक़ माँगा ऊसने मुझे मेरी मां सहित जॅलील करके भागाया मेरा बाप जो खुद एक नसेडी था ऊसने मुझे क्या दिया….भाई तुझे सब दिया और मुझे कुछ नहीं कुछ भी नहीं
देवश बस सुनता गया….”बचपन में ही मां को कैन्सर हो गया अपनी दादी से पैसे माँगे तो चाचा और चाची ने दादी सहित मुझे भगा दिया….फिर बापू का बढ़ता कर्ज़्ज़्ज़ कौन जी सकता है यार कौन? मां का दो साल में ही देहांत हो गया…बाप ने अपनी आदत नहीं छोढ़ी डर मैं भीख माँगता रहा दरवाजे दरवाजे पैसे की भीख माँगी…लेकिन दिल था की एक बहुत बड़ा आदमी बनूंगा और मैं बना भी खलनायक बना भी”…….मामुन की आंखें इस तरह अध्याना करने लगी जैसे ऊस्की सारी घटना उसके आंखों केसांने हो
“एक आदमी मिला एक दिन बोला मेरे बार में काम करेगा…मैं छोटा था मैंने हाँ कह दिया….असल में वो एक दूर्गस स्मगलिंग का धंधा करता था…धीरे धीरे मैं उसका अज़ीज़ बन गया उसके सारे पैटरे सीख लिए….और वो मेरे हाथ से सप्लाइ करवाने लगा ड्रग्स बंगाल से ब्ड तक ब्ड से मुंबई तक…हमारा कारोबार अच्छा चला…मैंने उसे साफ कहा की मैं पैसों के लिए कुछ भी कर सकता हूँ..चाहे किसी का खून भी एक जूननून था दिल में एक बड़ा जुनून एक दिन पुलिस ने पकड़ लिया 8 महीन के लिए जेल में डाल दिया…वापिस निकाला फिर कॉंटॅक्ट किया उसी आदमी से तब्टलाक़ मैं खुद बिज़्नेस संभालने लगा…और धीरे धीरे ब्ड में रहना शुरू कर दिया…यहां से मेरे काले धंधों का अच्छा कारोबार चलने लगा पैसा होने लगा…लौंडिया शौरहट सब होने लगा लेकिन जान का खतरा तो था ही…धीरे धीरे इसकी आदत पढ़ गयी और मैंने खुद के चेहरे को एक नाक़ा ब्सी ढक लिया जिस दुनिया में मुझे शैतान का नाम दिया गया था बुरा कहा जाता था वही नाम मैंने रखा…खलनायक्क इस तरह खलनायक बनकेना जाने कितनों की सुपारी ली कितने खून बहाए कितना दूर्गस बैचा कितनों की ज़िंदगया उज़ादी कितनों का घर उजड़ा लेकिन पैसा पैसाआ हर ओर से पैसा यही तो चाहिए एक मज़बूर को”……..मामुन की दास्तान सुनते सुनते मैं चुपचाप उसके हाथों में रखी ऊस खलनायक के मुखहोते को घूर्र रहा था
देवश : हम लेकिन तू बच्चा कैसे पिछली रात को? तू तो
मामुन : हां हां हां हां (तहाका लगाकर मामुन हंसा) अगर मेरा भाई एक शातिर खिलाड़ी हो सकता है काला साया तो मैं एक शातिर मुज़रिम क्यों नहीं? बेक उप प्लान बारे से बारे डॉन के पास रहता है…जल्दी से पिछली रास्ते से पानी में जब कूड़ा तो वहां मेरा बिसात पहले से ही बिछा हुआ था मुझे डूबना अच्छा आता है क्योंकि बहुत बार ड्रग्स जो पानी में गिरे है पुलिस की निगाहों से बचाने के लिए समंदर के अंदर तक छुपाया है…वैसे ही एक बहुत मैंने 20 में अंदर छुपाई थी…मौके पे फरार होने के लिए और उसी पल मैं कलकत्ता में प्रवेश कर गया
देवश : वाहह रे वाह फॅब्युलस डॉन बनना कोई तुझसे सीखे पर ये तेरी मज़बूरी नहीं थी तेरा शीतन बनने की दास्तान थी
मामुन : भाई जो भी बोल आज इस लाइन में बहुत पैसा है
देवश : रंडी के लाइन में भी पैसा है तो क्या अपनी गान्ड में लंड डालवौ और चुका बन जाओ वैसे भी तू हियिरा बन जा सरकार की तरफ से मुफ्त में!
मामुन : टेरी मां की चुत (देवश हस्सा मामुन के लाल लाल जलते आंखों को देख बस वो भी गंभीर हुआ)
देवश : आबे तू विक्टिम लगता है यार कोई डॉन नहीं मानता हूँ मज़बूरी इंसान को तबाह कर देती है पर तू खुद एक तबाह इंसान है कहीं भी तू जाए तुझे सरकार गोली मर देगी क्या मिलेगा ये सब करके? मुझे तो सुकून है तू मुझसे जलता है ना ये ले कागज़ पे लिखवाड़े तेरे नाम सबकुछ कर देता हूँ
मामुन : अरे भीख नहीं च्चाईए मुझे मना हम एक ही कश्ती के दो राही है पर तुझे सब मिला पर मुझे नहीं लेकिन अब तू बचेगा भी नहीं तूने वैसे ही आधे से ज्यादा मेरा प्लान बर्बाद कर दिया मेरी रोज़ को मुझसे छीन लिया
देवश : हां हां हां चाहे दौलत छीन के ले लेकिन याद रख प्यार पाया जाता है छीना नहीं
मामुन : शट अप्प यू रास्कल (मामुन ने गोली मेरे छाती पे रख दी मैं चुपचाप खड़ा रहा अचानक एक्ज़ोर्दार पीपे का प्रहार मेरे सर पे हुआ मैं बस वैसे ही त्तिहक के गिर पड़ा….जो पीछे खड़ा था उसे देखते ही मैं चौंक उठा ये कोई और नहीं मामुन का भाई कबीर था)
मामुन : अययई बडी व्हातसस्स अप्प? कैसा हे तुऊउ?
देवश : अर्र…ई भी मेरे यार मेरी जानन्न तू सुना बस कैसा चल रहा है सब?
मामुन : चुप साले जबसे आया हो वएक बार भी फ़ॉएं नहीं किया तूने? ऐसा थोड़ी ना चलता है
देवश : भी मांफ कर दे कहूँ तो सॉरी पर प्लीज़ मेरी नादानी को मांफ़्क आर दे
मामुन : मांफ तो हम तब ही करेंगे जब आप यहां आएँगे म्ृर
देवश : भाई वो दरअसल!
मामुन : देख देख तूने नौकरी चोद दी है मुझे पता लग गया इतना पराया कर दिया मुझे तूने कोई प्राब्लम तो नहीं है ना पैसों की
देवश : भाई ज़मीदार के पोते है पैसों की कभी कमी हुई है भला
मामुन : ये हुई ना बात चल अच्छा हुआ अब तुझसे मुझसे डर नहीं लगेगा हाहाहा अच्छा भाई तुझे फोन करने का था की इस हफ्ते तू आजा मिलने देख ना मत करियो बहुत आस से फोन किया है यहां मैं काफी बोर हो रहा हूँ तू आएगा तो दिल बह लेगी
देवश : भाई लेकिन (कैसे कहता की अब मैं रोज़ से शादी को बेक़रार था लेकिन ना जाने क्या आया मैंने मुस्कुराकर हाँ कह दिया)
मामुन : ये हुई ना बात चल तू आजा पूरा खाने का इंतजाम करूँगा मैं वैसे सुनकर दुख हुआ की दिव्या!
देवश : भैया जाने दो प्लीज़
मामुन : ई आम सॉरी चल तू बस ये समझ की तेरा अपना अब भी ज़िंदा है कोई तू बस आजा मैं तेरा इंतजार कर रहा हूँ
देवश : ठीक है भाई
मामुन : ना रुकेगा कोई नहीं लेकिन भाई से मिल तो ले
देवश : अच्छा ठीक है बाबा आता हूँ
मामुन : यआःाहह चल फोन रख ओके बयी
मामुन ने फोन कट कर दिया….खैर ये भी ठीक ही था की एक बार मामुन से मिल लू ताकि गीले शिकवे सब दूर हो जाए…कैसे उसे काहु की मैं रोज़ से शादी करने वाला हूँ अब जैसे तैसे रोज़ से शादी करके मैं यहां से अब जाना ही चाहता था…जब इतना होप लेकर बुला र्हाः आई तो तहेरना कैसा?
देवश धीरे धीरे कवर्ड के पास गया और ऊसने मुस्कुराकर वो कवर्ड खोला जिसके अंदर एक गुण रखी थी….देवश ने उसे हाथ में लेकर बस मुस्कराए हुए अज़ीब निगाहों से देखा…”कभी कभी बदला अधूरा रही जाता है”…….देवश की मुस्कान एक पल के लिए कठोर सी हो गयी और ऊस्की निगाह फिर वही काला साया के रूप के भट्टी बदले की आग में जल उठी
रात के करीब 12 बज चुके थे….कुत्तों की हावव हावव आवाज़ को सुनकर एकबार बेचैनी से कमिशनर साहेब उठ बैठे….ऊन्होने एक नज़र अपनी बीवी की ओर की…जो घोड़े बेचके सो रही है…”अफ कितना बुरा सपना था काला साया ने तो मुझे मर ही डाला था”…..कमिशनर अपने भयंकर सपने को व्यतीत करते हुए बबदबड़ाया…ऊसने उठके झड़ से गिलास में डालकर एक गिलास पानी लिया और फिर धीमी साँस छोढ़ते हुए उठा…
“इतने बारे घर में इतनी सेक्यूरिटी है सबसे पहली बात घुसेगा कैसे हां हां हां हां”…….कमिशनर अपनी बुद्धि की तारीफ करते हुए तहाका लगाकर हंसा…”आज लगता है नींद नहीं आएगी अफ एक गिलास पी ही लेता हूँ”…..कॉँमससिओनेर धीरे धीरे अपने रूम से बाहर निकलकर सीडियो से नीचे उतरा…पास ही बने शराब की अलमारी से एक बोतल निकलकर वही पास के कुर्सी पे बैठकर टेबल पे रखकर गिलास में डालने लगा…”हां अच्छा हुआ वॉ मादरचोद खलनायक भी उम्म्म”….अपने गले में घोंटते हुए एक ही बार में जम खाली कर दी…दूसरा पेग बनाते हुए कमिशनर ने अभी आधी शराब पी ही थी की सामने खड़े ऊस शॅक्स को देखकर उसके हाथ से गिलास चुत के फर्श पे ही बिखर गया
कमिशनर : क्क्क..क्कहालननायक्ककक त..तूमम्म?
खलनायक : हाँ मैंन जिसके गान्ड के पीछे तू बहुत दीनो से पड़ा हुआ था बारे ही परवाचन सुनता है ना न्यूज मेंन अब बोल
कमिशनर : आररी रूपाल्ल्ल जीवँनन् आररी आई वातचममंणन्न् अरे कहाँ म्मररर गये सब के सब्बब? (कमिशनर डर के मारें चिल्ला उठा लेकिन कोई नहीं आया)
खलनायक : मुझे क्या इतना चूतिया समझा है की मैं ऐसे ही तेरे घर में घुस जाऊंगा उठ के देख उठ के देखह देखह (कॉँमससिओनेर भुआकलते हुए भागा बाहर की ओर बाहर का दरवाजा बंद था और बाहर के सारें सेक्यूरिटी मानो जैसे बेहोशी मुद्रा में परे थे) वैसे भी तेरी बीवी पे मुँह पे भी सेम स्प्रे छिड़का है अगर उसके ऊपर 10 आदमी भी चढ़ जाए ना हाहाहा तो उसे सुबह तक कुछ पता नहीं चलेगा
कमिशनर : से..हत्त अप्प द..एखू में..मैंन त..उंहें चोदूंगा नहीं यू आर..ए में..एससिंग डब्ल्यू.इतह आ पुलिस कोँमिससिओंनेर
खलनायक : हां हां हां हां जिसकी पेंट गीली है और जो अपने सामने कोई भी खतरनाक गुंडे को देखकर हल्का जाता है कॉँमससिओनेर उसे कहते है हां हां हां हां साले बेटीचोड़ तू भी बहुत बड़ा चोद लगता हे लेकिन तूने जो किया ना ऊस्की भरपाई तो तुझे दूँगा ही
खलनायक धीरे धीरे कोँमिससिओएंर के आगे आने लगा कमिशनर के पास कोई हत्यार नहीं था वो बस भौक्ला रहा था…भौक्लते भौक्लते उसके आँख इतने बारेह उए की वो ज़ोर से चिल्लाया और उसका जिस्म अकड़ने लगा….अपने सामने एक राक्षस जैसे मुखहोते को करीब आते देख जिसके हाथों में चाकू उसका दिल का दौरा बढ़ने लगा वो अपने कलेजे को पकड़ा वही गिरके छटपटाने लगा….खलनायक बस चुपचाप वैसे ही खड़ा रहा…कुछ देर बाद कमिशनर का बदन तहेर गया…खलनायक जनता था ऊस्की साँसें तांचुकी है
खलनायक : हां हां हां हां चलो आज पहली बार कोई मेरे खौफ से मारा है अगर ज़िंदा बचता तो बेदर्दी मौत मरता
अगले दिन कलकत्ता की एक पौष इलाके पे बने फ्लैट के अंदर देवश अड्रेस पूछते हुए आया….दरवाजा अपने आप खुल गया सामने मामुन सिगरेट पी रहा था उसका धुंआ छोढ़ते ही उसे कमरे में देवश आते दिखा “आए मेरे यार तू आ ही गया वाहह”……मामुन ने देवश से गले मिलकर उसके कंधे पे हाथ रखकर उसका स्वागत किया
देवश : क्या भाई तू तो बेहद अमीर हो गया ये सब क्या है? लगता है जैसे दावत रख है तूने मेरे लिए
मामुन : भाई आए और दावत ना रखू चल बैठ आज पहली बार आया है तू मेरे ग़रीबखाने चल एक एक पेग हो जाए
देवश : नहीं नहीं मैं पीता नहीं
मामुन : अच्छा ठीक है पर मैं तो इस जश्न्ञ में पिऊंगा (मामुन ने एक पेग बनाया और पीने लगा)
देवश चुपचाप मुस्कुराकर मामुन की ओर देखकर चारों ओर देखने लगा “वैसे काफी पैसेवला हो गया है तू?”….देवश ने तंग पे तंग रखते हुए कहा….मामुन बस पागलों की तरह हंस रहा था “भैईई सब खुदा की मर्जी है जिस आदमी के जिंदगी में पैसा ना हो वो कर भी क्या सकता था? और आज लौंडिया है पैसा है शौरहट है दौलत है”…….मामुन के आंखों में जैसे दुख के आँसू थे
देवश : हो भी क्यों ना? जो लोगों के दिल में दहशत फैलाए उसे तो सब खुदा ही मानेंगे ना मिस्टर खलनायक (चौका देने वाली थी ये बात मामुन कुछ देर तक गंभीर होकर देवश की शकल देखने लगा फिर मुस्कराया)
देवश : असल में तेरी चोरी पकड़ी गई है साले मुझे यकीन नहीं होता मेरा भाई खलनायक और मैं ही एक सूपरहीरो वाहह क्या फॅमिली है गंदा तो हमारा खून था ही जो कभी क्सिी के आँसुयो की कदर ना कर सका क्या बिगाड़ा था मैंने तेरा? जो तूने मुझसे इतना बड़ा बदला
मामुन : बदला बादडला में फूटत (मामुन ने एक ही झटके में टेबल पे साज़े सभी खाने को टेबल सहित उल्टा के फ़ेक दिया) अरे मैंने किसका क्या बिगाड़ा था? जो मुझे ये दिन देखना पारा एक दिन था जब रोती के लिए डर डर भीख माँगता था…तेरी वो दादी जिससे मेरे परिवार वालो ने अपना हक़ माँगा ऊसने मुझे मेरी मां सहित जॅलील करके भागाया मेरा बाप जो खुद एक नसेडी था ऊसने मुझे क्या दिया….भाई तुझे सब दिया और मुझे कुछ नहीं कुछ भी नहीं
देवश बस सुनता गया….”बचपन में ही मां को कैन्सर हो गया अपनी दादी से पैसे माँगे तो चाचा और चाची ने दादी सहित मुझे भगा दिया….फिर बापू का बढ़ता कर्ज़्ज़्ज़ कौन जी सकता है यार कौन? मां का दो साल में ही देहांत हो गया…बाप ने अपनी आदत नहीं छोढ़ी डर मैं भीख माँगता रहा दरवाजे दरवाजे पैसे की भीख माँगी…लेकिन दिल था की एक बहुत बड़ा आदमी बनूंगा और मैं बना भी खलनायक बना भी”…….मामुन की आंखें इस तरह अध्याना करने लगी जैसे ऊस्की सारी घटना उसके आंखों केसांने हो
“एक आदमी मिला एक दिन बोला मेरे बार में काम करेगा…मैं छोटा था मैंने हाँ कह दिया….असल में वो एक दूर्गस स्मगलिंग का धंधा करता था…धीरे धीरे मैं उसका अज़ीज़ बन गया उसके सारे पैटरे सीख लिए….और वो मेरे हाथ से सप्लाइ करवाने लगा ड्रग्स बंगाल से ब्ड तक ब्ड से मुंबई तक…हमारा कारोबार अच्छा चला…मैंने उसे साफ कहा की मैं पैसों के लिए कुछ भी कर सकता हूँ..चाहे किसी का खून भी एक जूननून था दिल में एक बड़ा जुनून एक दिन पुलिस ने पकड़ लिया 8 महीन के लिए जेल में डाल दिया…वापिस निकाला फिर कॉंटॅक्ट किया उसी आदमी से तब्टलाक़ मैं खुद बिज़्नेस संभालने लगा…और धीरे धीरे ब्ड में रहना शुरू कर दिया…यहां से मेरे काले धंधों का अच्छा कारोबार चलने लगा पैसा होने लगा…लौंडिया शौरहट सब होने लगा लेकिन जान का खतरा तो था ही…धीरे धीरे इसकी आदत पढ़ गयी और मैंने खुद के चेहरे को एक नाक़ा ब्सी ढक लिया जिस दुनिया में मुझे शैतान का नाम दिया गया था बुरा कहा जाता था वही नाम मैंने रखा…खलनायक्क इस तरह खलनायक बनकेना जाने कितनों की सुपारी ली कितने खून बहाए कितना दूर्गस बैचा कितनों की ज़िंदगया उज़ादी कितनों का घर उजड़ा लेकिन पैसा पैसाआ हर ओर से पैसा यही तो चाहिए एक मज़बूर को”……..मामुन की दास्तान सुनते सुनते मैं चुपचाप उसके हाथों में रखी ऊस खलनायक के मुखहोते को घूर्र रहा था
देवश : हम लेकिन तू बच्चा कैसे पिछली रात को? तू तो
मामुन : हां हां हां हां (तहाका लगाकर मामुन हंसा) अगर मेरा भाई एक शातिर खिलाड़ी हो सकता है काला साया तो मैं एक शातिर मुज़रिम क्यों नहीं? बेक उप प्लान बारे से बारे डॉन के पास रहता है…जल्दी से पिछली रास्ते से पानी में जब कूड़ा तो वहां मेरा बिसात पहले से ही बिछा हुआ था मुझे डूबना अच्छा आता है क्योंकि बहुत बार ड्रग्स जो पानी में गिरे है पुलिस की निगाहों से बचाने के लिए समंदर के अंदर तक छुपाया है…वैसे ही एक बहुत मैंने 20 में अंदर छुपाई थी…मौके पे फरार होने के लिए और उसी पल मैं कलकत्ता में प्रवेश कर गया
देवश : वाहह रे वाह फॅब्युलस डॉन बनना कोई तुझसे सीखे पर ये तेरी मज़बूरी नहीं थी तेरा शीतन बनने की दास्तान थी
मामुन : भाई जो भी बोल आज इस लाइन में बहुत पैसा है
देवश : रंडी के लाइन में भी पैसा है तो क्या अपनी गान्ड में लंड डालवौ और चुका बन जाओ वैसे भी तू हियिरा बन जा सरकार की तरफ से मुफ्त में!
मामुन : टेरी मां की चुत (देवश हस्सा मामुन के लाल लाल जलते आंखों को देख बस वो भी गंभीर हुआ)
देवश : आबे तू विक्टिम लगता है यार कोई डॉन नहीं मानता हूँ मज़बूरी इंसान को तबाह कर देती है पर तू खुद एक तबाह इंसान है कहीं भी तू जाए तुझे सरकार गोली मर देगी क्या मिलेगा ये सब करके? मुझे तो सुकून है तू मुझसे जलता है ना ये ले कागज़ पे लिखवाड़े तेरे नाम सबकुछ कर देता हूँ
मामुन : अरे भीख नहीं च्चाईए मुझे मना हम एक ही कश्ती के दो राही है पर तुझे सब मिला पर मुझे नहीं लेकिन अब तू बचेगा भी नहीं तूने वैसे ही आधे से ज्यादा मेरा प्लान बर्बाद कर दिया मेरी रोज़ को मुझसे छीन लिया
देवश : हां हां हां चाहे दौलत छीन के ले लेकिन याद रख प्यार पाया जाता है छीना नहीं
मामुन : शट अप्प यू रास्कल (मामुन ने गोली मेरे छाती पे रख दी मैं चुपचाप खड़ा रहा अचानक एक्ज़ोर्दार पीपे का प्रहार मेरे सर पे हुआ मैं बस वैसे ही त्तिहक के गिर पड़ा….जो पीछे खड़ा था उसे देखते ही मैं चौंक उठा ये कोई और नहीं मामुन का भाई कबीर था)
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