Romance अभिशाप (लांछन )

Post Reply
Masoom
Pro Member
Posts: 3034
Joined: 01 Apr 2017 17:18

Re: Romance अभिशाप (लांछन )

Post by Masoom »

अस्वस्थ होने के कारण राजाराम आज बैंक न गया था और चारपाई पर बैठा आज का समाचार-पत्र देख रहा था। कौशल्या देवी पड़ोस में गई थी। कुछ समय पश्चात् वह थकी-हारी-सी घर लौटी और राजाराम से बोली- ‘आप बिलकुल ठीक कहते थे। पूरे मुहल्ले में उसी बात की चर्चा हो रही है।’
‘कौन-सी बात की?’ अखबार रखकर आंखों से ऐनक हटाते हुए राजाराम ने पूछा।
‘यही कि हम बड़े बेटे के स्थान पर छोटे बेटे का विवाह कर रहे हैं।’
‘तुमने उन लोगों से यह नहीं कहा कि हमारा बड़ा बेटा मर चुका है?’
‘भगवान के लिए ऐसी अशुभ बातें मत बोला कीजिए। औलाद अच्छी हो अथवा बुरी-होती तो औलाद ही है।’
‘नहीं होती कौशल्या!’ राजाराम ने घृणा से कहा- ‘मैं कुपुत्र को पुत्र कभी नहीं मान सकता। जिस तरह सड़े अंग को काटना ही उचित होता है-उसी तरह कुपुत्र को भी त्याग देना चाहिए। मरा हुआ समझ लेना चाहिए उसे। जो चिराग अपने ही घर में आग लगाता हो-मैं उसे बैरी मानता हूं। इसलिए मेरा यह कहना ठीक है कि हमारा बड़ा बेटा मर चुका है। नाम ही मत लो उसका। भूले से भी याद मत करो उसे। सोच लो कि तुमने केवल एक ही पुत्र को जन्म दिया था।’
कौशल्या मौन खड़ी रही।
एक पल रुककर राजाराम ने फिर कहा- ‘अरे फिर तुमने तो अनेक धार्मिक पुस्तकें पढ़ी हैं। गीता पढ़ी है-रामायण पढ़ी है। इन सब पुस्तकों में तुम्हें एक संदेश अवश्य मिला होगा कि संसार में कोई किसी का नहीं। और यदि किसी को हम अपना कहते हैं-तो इस कथन के पीछे हमारा कोई स्वार्थ छुपा होता है। यदि अपना कोई है-तो वह है मनुष्य का कर्म। कर्म मरणोपरांत भी मनुष्य के साथ चलता है। अतः मनुष्य को चाहिए कि वह संसार में उसी प्रकार रहे जिस प्रकार जल में कमल रहता है। संसार में बसो-किन्तु फंसो मत। परिवार के लिए अपने उत्तरदायित्व पूरे करो, किन्तु उसके लिए ऐसा कुछ मत करो-जिसे पाप की संज्ञा दी जाए, क्योंकि उस पाप का फल अकेले तुम्हें ही भोगना है-अन्य किसी को नहीं। बात समझ में आई?’
कौशल्या बोली- ‘मेरी समझ तो वही है, जो आपकी है। मैंने आपसे कभी नहीं कहा कि आप राज को क्षमा कर दें अथवा उससे समझौता कर लें।’
‘कहना भी मत कौशल्या! कभी कहना भी मत। और यह भी ध्यान रखना कि जिस दिन तुमने मेरी आज्ञा के बिना उसे घर में घुसने दिया-मैं उसी दिन यह घर त्याग दूंगा।’
‘नहीं, ऐसा न होगा स्वामी।’
‘ठीक है। अब बैठो और यह बताओ कि बहू के लिए क्या-क्या खरीदना है।’
कौशल्या बैठकर बोली- ‘इसमें मैं क्या कह सकती हूं।’
‘कमाल है। बहू तुम्हारी आएगी और तुम कह रही हो...।’
‘वह आपकी भी तो कुछ होगी।’
‘हां-हां-बेटी होगी। किन्तु उसके साथ अधिकांश समय तो तुम्हें ही रहना है। मेरा क्या है-मैं तो सुबह निकलकर शाम को लौटूंगा। बहू सेवा करेगी तो तुम्हारी।’
‘आजकल कोई किसी की सेवा नहीं करता जी!’
‘कौशल्या! यह भूल है तुम्हारी। कमी सेवा करने वालों की नहीं-सेवा कराने वालों की है। यदि तुम अपनी बहू को बेटी के समान समझोगी और हर प्रकार से उसके मान-सम्मान एवं सुख-दुःख का ध्यान रखोगी तो वह भी तुम्हें मां समझेगी और एक बेटी की तरह तुम्हारी सेवा करेगी। किन्तु होता क्या है-हम लोग ही पराई बेटी को अपनी बेटी नहीं समझते। उसे हमेशा नौकरानी समझते हैं और ढेर सारा दहेज न लाने के ताने-उलाहने देते हैं। बात-बात पर चोट पहुंचाते हैं उसके आत्म सम्मान को। अब ऐसी स्थिति में कौन बहू होगी जो अपनी सास को मां समझकर उसकी सेवा करेगी? और यदि विवशतावश सेवा करनी भी पड़ी तो क्या उसके हृदय में अपनी ससुराल वालों के लिए सच्चा आदर होगा? खैर छोड़ो-मैं तो यह चाहता हूं कि बहू के लिए दो साड़ियां और एक अंगूठी तो अवश्य होनी चाहिए। कुल मिलाकर चार हजार में बात बन जाएगी।’
‘और अनिल के कपड़े?’
‘उसका प्रबंध मैं कर दूंगा।’
‘आरती का सूट और भारती की साड़ी?’
‘वह भी हो जाएगा। साथ ही एक साड़ी तुम्हारे लिए भी।’
‘मुझे भला साड़ी क्या करनी है? मैं क्या बारात में जाऊंगी?’
राजाराम ने कहा- ‘भाग्यवान! घर में चार मेहमान आएंगे। ऐसे में ढंग की एक साड़ी तो तुम्हारे पास होनी ही चाहिए।’
कौशल्या बोली- ‘उसकी आप बिलकुल चिंता न करें। मैं भारती की साड़ी से काम चला लूंगी। आप मेरी साड़ी के बजाय अपने कपड़े बनवा लें।’
‘कौशल्या! तुम तो बस कौशल्या ही रहीं।’ कहकर राजाराम हंस पड़ा। कौशल्या उठकर बोली- ‘मैं आपके लिए खाना लाती हूं। हां-एक बात और कहनी थी आपसे।’
‘कह दो।’
‘भारती तो अब अपनी ससुराल जाने से रही।’
‘तलाक तो अभी हुआ नहीं है।’
‘हो जाएगा। वैसे भी अब तलाक में कसर ही क्या है। जब दिल ही अलग-अलग हो गए तो संबंध कैसा। अब तो सिर्फ अदालत का फैसला बाकी है।’
‘चलो-वो भी देखा जाएगा।’
‘मैं कुछ और कह रही थी।’
‘वह क्या?’
‘मैं चाहती हूं कि अखिल के बाद कोई अच्छा-सा लड़का देखकर भारती के हाथ पीले कर दें।’
‘किन्तु इसके लिए भारती की सहमति तो आवश्यक है।’
‘वह इंकार न करेगी।’
‘ठीक है-देख लेंगे।’
इसके पश्चात् कौशल्या चली गई और राजाराम फिर से अखबार की सुर्खियां देखने लगे।
* * ** * ** * ** * ** * ** * ** * ** * ** * ** * *
मौसम सुहावना था। आकाश में बादल थे और ठंडी हवाएं चल रही थीं। संभवतः दूर कहीं वर्षा हुई थी। डॉली एवं राज शहर के कोलाहल से दूर सागर सरोवर में नौकर विहार कर रहे थे। डॉली उसकी गोद में सर रखे लेटी थी और राज धीरे-धीरे चप्पू चला रहा था। चप्पू चलाते समय एकाएक उसे शरारत सूझी और उसने नीचे झुककर डॉली को चूम लिया।
डॉली अलसाई-सी बोली- ‘सोने दो न बाबा!’
‘क्या-तुम सो रही हो?’
‘हां-आज वर्षों बाद अच्छी नींद आई है।’
‘इसलिए-क्योंकि लहरों पर सोने का मजा ही कुछ और होता है-है न? तो फिर-क्यों न हम एक काम करे?’
‘वह क्या?’
‘क्यों न हम चार-पांच एकड़ भूमि खरीदकर वहां एक तालाब बनवाएं और उसके बीचों-बीच एक महल बनवा दें। हमारा ख्याल है-उस महल में आपको और भी अच्छी नींद आएगी।’
‘विचार तो बुरा नहीं-लेकिन...।’
‘लेकिन क्या?’
डॉली ने उठकर अपने बालों पर हाथ फिराया और राज से बोली- ‘उस महल का राजा कौन होगा?’
‘राजा तो कोई-न-कोई मिल ही जाएगा। किन्तु उससे पहले यह बताइए कि रानी कौन होगी?’
‘वह भी मिल ही जाएगी।’
‘न मिली तो...?’
‘तो फिर यह समझिए कि आपकी तकदीर ही ठीक नहीं।’
‘नहीं साहब! अपनी तकदीर में तो कोई कमी नहीं।’
‘तकदीर अच्छी होती-तो क्या हम दोनों यों दुनिया से छुपकर मिलते?’
‘दुनिया से छुपकर मिलने में जो आनंद है-वह सबके सामने मिलने में नहीं।’
डॉली नीचे झुककर लहरों से खेलने लगी। बोली- ‘इसका अर्थ तो यह है कि आप हमेशा छुपकर ही मिलना चाहते हैं।’
‘जी नहीं। हम तो यह चाहते हैं कि इस दुनिया में हमारी भी एक छोटी-सी दुनिया हो, जिसमें हम हों और हमारी धर्मपत्नी हो।’
‘आप विवाह क्यों नहीं कर लेते?’
‘वह तो हो चुका है।’
‘कब?’
‘आज से दो वर्ष पहले।’
‘किन्तु दुलहन?’
‘वह हमारे हृदय में रहती है।’
‘बहुत सुंदर होगी?’
‘हां-बहुत ही सुंदर।’ राज ने नाव की दिशा बदली और निःश्वास लेकर बोला- ‘इतनी कि देखते ही चांद शरमा जाए और तारे आकाश से धरती पर देखना छोड़ दें।’
‘अच्छा-फिर तो संसार में अंधकार छा जाएगा।’
‘जी नहीं, हमारी दुलहन भी चांद जैसी है। ज्यों ही वह घूंघट हटाएगी-यह संसार उजालों से भर जाएगा।’
डॉली ने इस बार कुछ न कहा और पूर्ववत हाथ से लहरों को छेड़ती रही। राज उसे यों मौन देखकर बोला- ‘आप क्या सोचने लगीं?’
‘आपकी दुलहन के विषय में।’
‘वह क्या?’
‘न जाने वह आपके हृदय से निकलकर खुले संसार में कब आएगी?’
‘न आए तो अच्छा है।’
‘क्यों?’
‘जमाना अच्छा नहीं। किसी की नजर लग गई तो...?’
‘उसे अपनी बांहों में छुपाकर रखेंगे तो ऐसा न होगा।’ डॉली ने कहा। यह सुनकर राज ने चप्पू रखा और डॉली को खींचकर अपनी बांहों में भर लिया। डॉली उसके हृदय से लग गई। राज ने उसे चूमकर कहा- ‘डॉली!’
‘कहो न।’
‘डॉली! यह दूरी-यह युगों-युगों जैसी दूरी अब मुझसे सहन नहीं होती। किसी दिन तकदीर बदल दो न इस अभागे की।’
‘कैसे बदलूं? चारों ओर समाज की दीवारें जो हैं।’
‘तोड़ डालो न उन दीवारों को।’
‘यह असंभव है राजू!’
‘असंभव कुछ भी नहीं होता डॉली! इंसान चाहे तो समाज से तो क्या पूरी दुनिया से भी लड़ सकता है।’
‘कोशिश करूंगी।’ डॉली ने कहा।
‘सच कह रही हो न?’ राज ने पूछा।
‘हां-बिलकुल सच।’
तभी नाव रुक गई और राज ने शीघ्रता से चप्पू उठा लिया।
* * ** * ** * ** * ** * ** * ** * ** * ** * ** * *
कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्‍वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
Masoom
Pro Member
Posts: 3034
Joined: 01 Apr 2017 17:18

Re: Romance अभिशाप (लांछन )

Post by Masoom »

‘अब मैं जाऊं?’
‘ऊंहु! अभी नहीं।’
‘देखो-काली घटाएं घिर रही हैं।’
‘तो क्या हुआ?’ अखिल ने पूछा और गोद में लेटी सुषमा के होंठों पर उंगली फिराने लगा।
दोनों एक पार्क में झाड़ियों के पीछे बैठे थे।
सुषमा की आंखें बंद थीं। वह बोली- ‘वर्षा रानी आ जाएगी।’
‘ईश्वर करे कि वर्षा हो और ऐसी जमकर बरसे कि हम घर ही न जा सकें। पूरी रात यहीं रहें-इसी पार्क में।’
‘पगले कहीं के।’ सुषमा ने मुस्कुराकर कहा और उठ गई।
अखिल ने उठकर निःश्वास ली और सुषमा का हाथ थामकर बोला- ‘वास्तव में जा रही हो?’
‘जाना आवश्यक है। पापा के लिए दवाई खरीदनी हैं। मम्मी की तबीयत भी सुबह से ठीक नहीं है। मुझे तो चिंता है कि मेरे पश्चात् उनका क्या होगा।’
‘चिंता न करो। हम उनका पूरा-पूरा ख्याल रखेंगे। अब कब मिलोगी?’
‘शादी वाले दिन।’
‘बाप रे!’ यह एक सप्ताह का समय कैसे कटेगा।’
‘कुछ इंतजार में-कुछ यादों के सहारे। आओ चलें।’
फिर वे पार्क से बाहर आए और विपरीत दिशाओं में बढ़ गए। फुटपाथ पर अपने घर की ओर बढ़ते समय भी अखिल सुषमा के विषय में ही सोचता रहा। एकाएक पीछे से आने वाली एक गाड़ी के ब्रेक ठीक उसके निकट चरमराए और अखिल चौंककर पीछे की ओर देखने लगा। किन्तु जो कुछ देखा-उसे देखते ही उसके चेहरे पर कडुवाहट-सी फैल गई।
यह राज था-जो गाड़ी से उतरकर उसी की ओर बढ़ रहा था। अखिल के कदम रुक गए। राज समीप आकर उसे कुछ क्षणों तक तो ध्यान से देखता रहा और फिर बोला- ‘कैसा है रे!’
‘अच्छा हूं।’ अखिल ने धीरे से उत्तर दिया। नजरें झुकी रहीं।
‘और-मम्मी-पापा?’
‘वे भी अच्छे हैं।’
‘आरती-भारती दीदी?’
‘सब ठीक हैं।’
इसके उपरांत कुछ क्षणों तक मौन रहा।
इस मौन को तोड़ते हुए राज फिर बोला- ‘सुना है-तेरी शादी हो रही है?’
‘हां।’
‘कब?’
‘ठीक एक सप्ताह बाद-15 को।’
‘लड़की कैसी है?’
‘अच्छी है।’
‘नाम...।’
‘सुषमा वर्मा।’
‘एक बात मानेगा?’
‘वह क्या?’
‘मैं चाहता हूं-यह विवाह न हो।’
‘कारण?’
‘सुषमा अच्छी लड़की नहीं।’
‘सुषमा-अथवा आप स्वयं?’
‘क्या मतलब?’
अखिल ने इस बार नजरें ऊपर उठाईं और घृणा से बोला- ‘आप बता सकते हैं-आपके अंदर कौन-सी अच्छी बात है। ऐसा कौन-सा बुरा काम है-जो आप नहीं करते? ऐसा कौन-सा पाप है, जिसका साया प्रत्येक समय आपके साथ नहीं रहता? ऐसी कौन-सी बुराई है जो आपने निकटता से नहीं देखी।’
‘अखिल!’
‘आपने गैर कानूनी ढंग से दौलत इकट्ठी की। आपने अपने देश और समाज के साथ विश्वासघात किया। आप सुबह से शाम तक कई बार शराब पीते हैं और बाजारू लड़कियों के साथ घूमते हैं।’
‘चुप रहो अखिल!’ राज गुस्से से चीख पड़ा।
‘बात चुप रहने की नहीं भाई साहब!’ अखिल के स्वर में वही घृणा, वही तड़प और वही कडुवाहट थी। वह बोला- ‘बात है अच्छाई-बुराई की। सुषमा के विषय में कुछ कहने से पहले आपको अपने गिरेबान में भी देखना चाहिए था। इंसान को चाहिए कि वह दूसरों के दोष देखने से पूर्व, अपने दोषों को दूर कर दे। और कुछ कहना है आपको?’
क्रोध और अपमान के कारण राज का समूचा जिस्म थर-थर कांप रहा था। किसी प्रकार अपने क्रोध को दबाते हुए वह बोला- ‘तू-तू भाई होकर भी मेरी इतनी-सी प्रार्थना नहीं मान सकता?’
‘भाई!’ व्यंग्य एवं जहर से भरी मुस्कुराहट के साथ अखिल बोला- ‘हुं-यह किसने कह दिया कि मैं आपका भाई हूं। आपका-मेरा रिश्ता ही क्या है? मैंने श्रीमान राजाराम जी के घर में जन्म लिया है और आप दौलत की दुनिया में पैदा हुए हैं।’
‘अखिल! अपनों से इतनी घृणा ठीक नहीं होती।’
‘अपनों से घृणा कोई करता भी नहीं है मिस्टर राज वर्मा! घृणा की जाती है दुश्मनों से।’
‘तो यूं कह न कि मैं तुम लोगों का दुश्मन हूं।’
‘जो व्यक्ति श्रीमान राजाराम जी के वंश में पैदा हुआ हो और जिसने उन्हीं के वंश पर कलंक लगाया हो-कीचड़ उछाली हो खानदान की इज्जत पर-ऐसा व्यक्ति हमारा दोस्त नहीं हो सकता मिस्टर राज वर्मा! अतः आप अपने दिमाग से यह बात निकाल दें कि आप हमारे अपने हैं-अथवा आपका हमसे कोई रिश्ता है। अच्छा होगा कि आप हमें भूल जाएं-क्योंकि हम आपको बहुत पहले भूल चुके हैं। हम भूल चुके हैं कि मिस्टर राज वर्मा हमारे अपने थे। हम यह भी भूल चुके हैं कि उन्होंने श्रीमती कौशल्या देवी की कोख से जन्म लिया था। आपने रिश्तों की चिता जलाई और हमने उसे जलांजली देकर अपने आपको समझा लिया मिस्टर राज वर्मा! पीड़ा हुई-किन्तु हम सब उसे विधाता का वरदान मानकर पी गए। हृदय का एक टुकड़ा कहीं दूर गिरा-और हमने उसे यह सोचकर न उठाया कि वह हमारा अपना न था। और-अब तो हम यही चाहते हैं कि वह टुकड़ा कभी हमारे समीप न आए-कभी हमसे न कहे कि वह हमारा अपना है।’ अखिल ने घृणा एवं क्रोध से कहा और तेजी से आगे बढ़ गया।
राज की आंखों में आंसू छलक आए।
वह कुछ क्षणों तक तो अखिल को डबडबाई आंखों से देखता रहा और फिर शीघ्रता से उसका मार्ग रोककर दयनीय स्वर में बोला- ‘अखिल! यह सब कहकर तूने बहुत बड़ा इनाम दिया मुझे। बहुत बड़ा इनाम दिया मेरे प्यार-दुलार का। किन्तु तेरा यह कहना झूठ है कि तू मुझे भूल चुका है। यह सत्य नहीं है कि तेरे-मेरे बीच कोई रिश्ता नहीं रहा। मेरे भाई! जो रिश्ते मां की कोख में बनते हैं और पिता की बांहों में किलकारियां मारते हैं, उन्हें तोड़ना इतना सरल नहीं होता। तू दूर रहकर भी मेरे पास रहेगा। तू पराया बनकर भी मेरा अपना रहेगा। और जानता है ऐसा क्यों होगा? क्योंकि हमें जन्म देने वाली मां एक ही है, क्योंकि हमने एक ही कोख में पांव फैलाए हैं।’
अखिल ने उपेक्षा से कहा- ‘मुझे आपकी इन बातों में कोई दिलचस्पी नहीं मिस्टर राज वर्मा!’
‘मत ले दिलचस्पी, किन्तु बस मेरी एक प्रार्थना मान ले। इस शादी को रोक दे। मत कर यह शादी-तोड़ दे इस रिश्ते को। तोड़ दे अखिल भइया! देख-देख मैं तेरे आगे हाथ जोड़ता हूं। यह शादी न रुकी तो बहुत बड़ा अन्याय हो जाएगा। यह-यह पाप होगा अखिल!’ कहते-कहते राज ने अपने हाथ जोड़ दिए। उसकी आंखों से झर-झर आंसू बह रहे थे।
यह सुनकर अखिल घृणा से बोला- ‘पाप, पुण्य और अन्याय। मिस्टर राज वर्मा! मैं यह भली प्रकार जानता हूं कि यह शब्द आपकी जुबान पर क्यों आए हैं। वास्तव में मेरा आपसे पहले विवाह होना अन्याय तो है ही-एक प्रकार से पाप भी है। और यह सब इसलिए-क्योंकि मैं आपसे छोटा हूं, क्योंकि पारिवारिक नियमों के अनुसार शादी का सेहरा पहले बड़े भाई के सिर पर बंधता है और यहां इसके विपरीत हो रहा है-अन्याय की बात तो है ही। अन्याय की नहीं-दुःख की भी। खैर-अब इजाजत दीजिए। बहुत देर हो गई-नमस्ते!’ इसके उपरांत अखिल तेज-तेज पग उठाते हुए वहां से चला गया।
राज की आंखों से आंसुओं की बूंदें ढुलकती रहीं।
* * ** * ** * ** * ** * ** * ** * ** * ** * ** * *
डॉली ने गुन-गुनाते हुए कमरे में पांव रखे और चौंक गई। मुस्कुराते हुए होंठ एक-दूसरे से यों जकड़ गए-मानो खुलना ही न जानते हों। आनंद कुर्सी पर बैठा हुआ सिगरेट फूंक रहा था।
डॉली फिर आहिस्ता-आहिस्ता आगे बढ़ी और बैग रखकर अपने बाल संवारने लगी।
आनंद ने उसे देखकर व्यंग्य से कहा- ‘लौट आईं आप?’
‘तुम कब आए।’ उत्तर देने के बजाय डॉली ने प्रश्न किया।
‘आया तो अभी हूं, किन्तु कॉलेज न गया था।’
‘फिर कहां रहे?’
‘सागर...सरोवर में नौका विहार करता रहा।’
डॉली के सामने विस्फोट-सा गूंज गया। चौंककर उसने आनंद को देखा। आनंद उठकर बोला- ‘सचमुच बहुत अच्छा था मौसम। आकाश में घटाएं, ठंडी हवाएं और किनारे से टकराती सरोवर की लहरों का धीमा-धीमा संगीत। मैं तो सब कुछ भूल गया इस दृश्य को देखकर। लौटने का मन ही न था। सच-कितना सुख मिलता है प्रकृति की गोद में लेटकर! हवाओं से बातेें करते हुए-लहरों से खेलते हुए यों लगता है मानो प्रकृति स्वयं नृत्य कर रही हो।’
डॉली का हृदय कांप गया।
समझते देर न लगी कि आनंद ने उसका पीछा किया होगा। फिर भी स्वयं को संभालकर वह शुष्क स्वर में बोली- ‘तुम-तुम कहना क्या चाहते हो?’
‘मुबारकबाद देना चाहता हूं तुम्हें।’ डॉली के समीप आकर आनंद बोला- ‘इस बात के लिए कि तुम्हें अपना खोया हुआ प्यार मिल गया। वह प्यार, जिसे तुमने किसी वक्त ठोकर मार दी थी-आज फिर तुम्हारे हृदय से लग गया। किन्तु यह सब एकाएक कैसे हो गया?’
‘किसकी बात कर रहे हो?’
‘राज की।’ एक वही तो है जिसे तुम अपना पहला प्यार कह सकती हो।’
‘मेरा कोई प्यार नहीं।’
‘तो फिर यह सब क्या है?’
‘क्या है?’
‘तुम्हारे उसके साथ मांडका के खंडहरों में घूमना, रोशनी बाग में मिलना और उसके साथ सागर सरोवर में नौका विहार करना। और मिलन भी ऐसा जिसमें जन्म-जमांतर की प्यास मिटी हो। ऐसा मिलन-जिसमें दो जिस्म एक जान हो गए हों। बता सकती हो-यह सब क्या था?’
डॉली ने कुछ न कहा और ब्रुश रखकर बिस्तर पर बैठ गई। कुछ क्षणोपरांत अपनी ओर एक पत्रिका सरकाकर वह बोली- ‘मेरे पास तुम्हारे किसी भी प्रश्न का उत्तर नहीं।’
‘उत्तर तो तुम्हें देना पड़ेगा डॉली!’ आनंद का स्वर एकाएक कठोर हो गया। उसने सिगरेट ऐश ट्रे में डाल दी और डॉली के पास आकर उसे घूरते हुए बोला- ‘इसलिए देना पड़ेगा-क्योंकि तुम मेरी पत्नी हो, तुमने विवाह किया है मुझसे।’
‘तुम चाहो तो इस संबंध को तोड़ सकते हो।’
‘क्या!’ आनंद के चेहरे पर यह सुनते ही सन्नाटा फैल गया। डॉली की ओर से ऐसे उत्तर की आशा उसे न थी। क्षण भर मौन रहने के उपरांत वह घृणा से बोला- ‘मैं-मैं इस संबंध को तोड़ दूं?’
‘हां!’ डॉली दृढ़ता से बोली- ‘यदि हम दोनों को एक-दूसरे पर विश्वास नहीं तो फिर यह ही ठीक रहेगा।’
‘और उस प्यार का क्या होगा?’
‘कौन-सा प्यार?’
‘वही जो तुमने मुझसे किया था।’
‘वह एक भूल थी मेरी। यदि मुझे पता होता कि तुम इतने गंदे इंसान हो तो मैं कदापि तुम्हें अपनी ओर बढ़ने का अवसर न देती।’
‘गंदा कौन है-तुम अथवा मैं।’
‘तुम!’ पत्रिका के पृष्ठ पलटते हुए डॉली दृढ़ता से बोली- ‘क्योंकि तुमने जिसे प्रेम किया-उसी को शक की नजरों से देखा।’
‘किन्तु तुमने तो जिसे प्यार किया-उसी के साथ विश्वासघात किया।’
‘मैंने किसी के साथ विश्वासघात नहीं किया।’
‘प्रेम किसी से और विवाह किसी से-क्या यह विश्वासघात नहीं। अपने पति को धोखा देकर गैरों के साथ घूमना-क्या यह विश्वासघात नहीं?’
‘नहीं! मैं इसे विश्वासघात नहीं मानती। राज मेरा मित्र है और मित्र के साथ घूमना कोई पाप नहीं होता।’
‘मित्र के साथ वासना का खेल खेलना तो पाप होता है।’
‘यू शटअप आनंद!’ डॉली एकाएक गुस्से से चीख पड़ी और हाथ में थामी पत्रिका को पटककर बोली- ‘जुबान को लगाम दो अपनी। शर्म आनी चाहिए तुम्हें ऐसे गंदे घिनौने शब्दों का प्रयोग करते हुए।’
आनंद ने घृणा से दांत पीसकर कहा- ‘शर्म तो मुझे वास्तव में आ रही है डॉली! शर्म मुझे मांडका में भी आई थी और सागर सरोवर के निकट भी, किन्तु मैं फिर भी इतना बेशर्म निकला कि चुपचाप वहां से चला आया। मेरे स्थान पर कोई और होता तो न जाने वह क्या कर बैठता।’
तभी बातों का सिलसिला रुक गया।
आलोक नाथ कमरे में आ गए थे।
उन्हें देखकर आनंद कमरे से बाहर चला गया। डॉली फिर से पत्रिका के पृष्ठ उलटने लगी। आलोक नाथ ने उसे गुस्से में देखा तो बोले- ‘क्या हुआ? आनंद से झगड़ा हो गया?’
‘नहीं-ऐसा कुछ नहीं हुआ पापा, डॉली ने बात को छुपाया। वह सब बताकर वह अपने पिता को दुखी करना नहीं चाहती थी।
‘कुछ तो हुआ है। आनंद भी गुस्से में था।’
डॉली को कहना पड़ा- ‘आनंद साहब को मेरा राज से मिलना-जुलना पसंद नहीं।’
‘क्यों?’
‘वही जानें! मैं राज के साथ घूमने चली गई-तो उसका पारा चढ़ गया।’
‘आनंद तो ऐसा न था।’
‘मैंने ही उसे समझने में भूल की।’
‘कोई बात नहीं-मैं उससे बात करूंगा।’ आलोक नाथ ने कहा-फिर कुछ सोचकर बोले- ‘गाड़ी चलाई थी?’
‘हां।’
‘मैं वरयानी के पास जा रहा हूं।’
‘गाड़ी ले जाइए।’
‘सोच तो यही रहा था।’
‘चाबी तो आपके पास होगी?’
‘हां।’
‘खाने के समय तक तो लौट आओगे?’ डॉली ने पूछा।
‘कोशिश करूंगा।’ आलोक नाथ ने वॉल क्लॉक में समय देखते हुए कहा और बाहर चले गए।
डॉली उठी और खिड़की के सामने आकर बाहर का दृश्य देखने लगी। काली-काली घटाएं अब पूरे आकाश पर फैलती जा रही थीं।
* * ** * ** * ** * ** * ** * ** * ** * ** * ** * *
कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्‍वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
Masoom
Pro Member
Posts: 3034
Joined: 01 Apr 2017 17:18

Re: Romance अभिशाप (लांछन )

Post by Masoom »

फिल्म तैयार हो चुकी थी। उसका प्रिंट देखकर राज ने अनमने ढंग से कहा- ‘ठीक है।’
पाशा उसे ध्यान से देख रहा था। फिर जब राज ने अपने लिए शराब का गिलास तैयार किया तो पाशा उससे बोला- ‘सर! क्या आपकी तबीयत ठीक नहीं।’
‘क्यों?’
‘माफ करें सर! आज आपके चेहरे पर वो रौनक नहीं। मैं आपको दोपहर से ही परेशान देख रहा हूं।’
‘हां! हम वास्तव में परेशान हैं पाशा!’ राज ने शराब का घूंट भरा और पाशा से कहा- ‘जानते हो क्यों?’
‘नो सर! यदि मैं जानता तो आपसे ऐसा प्रश्न ही क्यों करता?’
‘हमारी परेशानी का कारण है सुषमा।’
‘मैं समझ गया सर! सुषमा नौकरी छोड़कर चली गई-इसलिए, किन्तु मैं तो इसे परेशानी जैसी बात नहीं समझता। हमारी फिल्म कंपनी में ऐसी कई लड़कियां काम कर रही हैं, जो सुषमा से भी अधिक सुंदर हैं। आप कहें तो मैं कामिनी, मधु, प्रिया-किसी को भी आपके पास भेज दूं।’
‘नहीं मिस्टर पाशा! नहीं।’
‘सर!’ पाशा बोला- ‘आज एक नई लड़की और आई थी। नाम है जानू बनर्जी, बंगाली है। किन्तु हुस्न! मैं सच कहता हूं सर! उस जैसी लड़की आपने पहले कभी न देखी होगी। विशेषकर उसकी आंखें और होंठ तो इतने सुंदर हैं कि पूछिए मत। सर! वह हमारी फिल्म में काम करने को तैयार है। मैं अगली फिल्म उसी को लेकर बनाना चाहता हूं। आप कहें तो उसे फोन कर दूं?’
राज ने इस बार झुंझलाकर कहा- ‘मिस्टर पाशा! आप गलत सोच रहे हैं। सुषमा हमारी परेशानी की वजह है, किन्तु इसलिए नहीं कि वह नौकरी छोड़कर चली गई है, बल्कि इसलिए कि वह हमारे छोटे भाई से शादी कर रही है।’
‘व्हाट!’ पाशा चौंककर बोला- ‘यह कैसे हो सकता है सर! एक बाजारू लड़की आपके घर की बहू कैसे बन सकती है।’ आप तो जानते ही हैं सर! कि जो लड़की किसी एक के बिस्तर पर सो सकती है, वह किसी के भी बिस्तर पर सो सकती है। मैं ऐसी लड़कियों को वेश्याएं मानता हूं और एक वेश्या को कोई अधिकार नहीं कि वह किसी के घराने की बहू बने। आपको उन लोगों से बता देना चाहिए कि...।’
‘हमारा उन लोगों से कोई संबंध नहीं।’
‘संबंध नहीं! फिर तो आपको यह सब भूल ही जाना चाहिए सर! वे लोग कुछ भी करें।’ पाशा ने कहा। फिर उसे एकाएक अपनी भूल का अहसास हुआ और वह बोला- ‘सॉरी सर! असली बात तो यह है कि जिस लड़की के साथ आप कई रातें गुजार चुके हैं, वही आपके छोटे भाई की पत्नी बन रही है। मेरा ख्याल है-आप इसे पाप मान रहे हैं। वैसे तो आज की दुनिया में सब कुछ चलता है सर! किन्तु हिन्दू परिवारों में ऐसा कभी नहीं होता। लेकिन-लेकिन आप सुषमा को तो समझा सकते हैं।’
‘सुषमा अपनी जिद्द पर अड़ी है।’ राज ने कहा और गिलास खाली करके सिगरेट सुलगाने लगा।
‘ब्लैकमेल कर रही है आपको।’ पाशा बोला- ‘मैं इस किस्म की लड़कियों को अच्छी तरह जानता हूं। कोई इनसे एक बार मिल तो ले-उसके बाद ये उसका जोंक की तरह खून पीती हैं। बंबई में मेरे साथ ऐसा ही हुआ था। एक लड़की थी-अच्छी थी। मैं उसके चक्कर में फंस गया। मैंने उसके साथ सिर्फ तीन रातें गुजारीं और चौथे दिन एक लिफाफा मेरे पास भेज दिया। उसमें मेरी तस्वीरें थीं और साथ में था एक पत्र। किन्तु मेरा क्या बिगड़ता-अकेला था। न बीवी न बच्चे। मैंने भी कह दिया कि करो बदनामी-बात खत्म हो गई। मगर यदि बीवी होती तो फांसी का फंदा गले में पड़ जाता। मारे जाते पाशा मियां।’ कहकर पाशा धीरे से हंस पड़ा।
राज ने बातों का विषय बदलकर पूछा- ‘पंकज आया था?’
‘यस सर!’
‘स्क्रिप्ट कब मिलेगी?’
‘कल आ जाएगी।’
‘परसों से शूटिंग का काम शुरू कर दो।’
‘ठीक है सर! किन्तु वह लड़की...।’
‘कौन-सी लड़की?’ राज ने पूछा।
‘जानू बनर्जी।’ पाशा ने बताया।
‘तुम उसे फिल्म में लेना चाहते हो?’
‘सर! लड़की अच्छी है।’
‘विशेषकर आपके लिए। खैर-फिल्म के डायरेक्टर आप हैं-जैसा उचित समझें वैसा करें।’
‘थैंक्यू सर!’
इसके पश्चात् पाशा चला गया और राज अपने लिए फिर से शराब का गिलास भरने लगा। उसी समय फोन की घंटी बजी। राज ने रिसीवर उठाया-दूसरी ओर से डॉली की आवाज सुनाई दी, राजू! मैं डॉली बोल रही हूं।’
‘कैसी हो?’
‘अच्छी नहीं हूं राजू।!’
‘क्यों-क्या हुआ?’ राज ने चौंककर पूछा।
‘आनंद से झगड़ा हो गया।’
‘मेरी समझ में नहीं आता-तुम उससे निभाओगी कैसे?’
‘निभेगी तो नहीं राजू!’
‘झगड़ा किस बात पर हुआ?’
‘आनंद हमारा पीछा करता हुआ सागर सरोवर तक पहुंच गया था और उससे पहले मांडका भी गया था।’
‘व्हाट!’ राज चौंककर बोला- ‘यह दार्शनिक है अथवा जासूस।’
‘पूरा जासूस है।’
‘इसका मतलब है कि वह अपनी आंखों से सब कुछ देख चुका है?’
‘हां।’
‘फिर तो बात बहुत आगे बढ़ गई होगी?’
‘अभी तो उतनी नहीं बढ़ी, किन्तु बढ़ जाएगी।’
‘क्या करोगी?’
‘मैंने फैसला कर लिया है-मैं उससे संबंध तोड़ लूंगी, फोन पर डॉली की आवाज सुनाई पड़ी- ‘बस एक ही शंका है मन में।’
‘वह क्या?’
‘मैंने आनंद से संबंध तोड़ लिए और तुमने मुझे स्वीकार न किया तो...?’
‘कैसी बातें करती हो डॉली! मैं तो तुम्हारी राह में पलकें बिछाए बैठा हूं। हर पल प्रतीक्षा कर रहा हूं। तुम आकर तो देखो-तुम्हारे आने से तो मुझे संसार भर की खुशियां मिल जाएंगी। आ जाओ न डॉली!’
‘मैं आऊंगी राजू! मैं जरूर आऊंगी।’
‘आज ही आ जाओ न। बहुत उदास हूं। बहुत अकेला महसूस कर रहा हूं अपने आपको। तुम आ जाओगी तो बहुत चैन मिलेगा।’
‘नहीं राजू! अभी स्थाई रूप से आना संभव नहीं। थोड़ा समय लगेगा। पापा से भी कहना पड़ेगा।’
‘तुम आज थोड़ी देर के लिए भी नहीं आ सकतीं?’
‘नहीं बाबा! आज नहीं। आनंद घर पर ही हैं। कल वह कॉलेज जाएगा तब देखूंगी।’
‘किस समय?’
‘दस और चार के बीच। वहीं तुम्हारे स्टूडियो में। ओ-के-।’
‘ओ-के-।’ राज ने कहा ओर एक निःश्वास लेकर रिसीवर रख दिया। उसके चेहरे पर अब पहले जैसी उलझनें न थीं।
* * ** * ** * ** * ** * ** * ** * ** * ** * ** * *
कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्‍वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
Masoom
Pro Member
Posts: 3034
Joined: 01 Apr 2017 17:18

Re: Romance अभिशाप (लांछन )

Post by Masoom »

अखिल जब घर लौटा तो उस समय राजाराम बरामदे में बैठा आज का समाचार-पत्र देख रहा था। अखिल को देखकर वह बड़बड़ाया- ‘विचित्र-सी बात है। 20 करोड़ की डकैती का रहस्य आज तक नहीं खुला। पुलिस लुटेरों का पता लगाने में पूरी तरह असफल रही।’
अखिल ने रुककर पूछा- ‘आप किसकी बात कर रहे हैं पापा?’
‘आज से एक वर्ष पहले गुजरात के नागरिक बैंक में 20 करोड़ की डकैती पड़ी थी, किन्तु पुलिस न तो लूट का रुपया ही बरामद कर सकी और न ही लुटेरों को पकड़ सकी।’
‘हो सकता है-लुटेरे बहुत चालाक हों और अपने पीछे कोई सूत्र न छोड़ गए हों।’
‘ईश्वर ही जाने।’ कहकर राजाराम ने बात समाप्त की और फिर अखबार एक ओर रखकर वह अखिल से बोले- ‘कार्ड छप गए?’
‘कल मिलेंगे।’
‘वहां तो नहीं गया था?’
‘कहां?’
‘उसी रईस के पास।’
‘पापा! मेरे हृदय में राज के लिए आपसे भी अधिक घृणा है। अतः उनसे मिलने का तो प्रश्न ही नहीं उठता था।’
‘किन्तु एक बात मेरी समझ में नहीं आई।’ राजाराम ने घृणा से कहा- ‘वह यह क्यों चाहता है कि ये शादी रुक जाए?’
‘सीधी-सी बात है पापा!’ अखिल बोला- ‘राज को यह बात कांटे की तरह चुभ रही है कि उससे पहले अखिल की शादी हो रही है। वे साहब इसे अपना अपमान समझ रहे हैं।’
‘अपमान तो उसका होगा ही, हम नहीं करेंगे-तो कुदरत करेगी। लोग अच्छा-बुरा कुछ भी करते समय यह भूल जाते हैं कि ऊपर वाले की नजरें बहुत तेज होती हैं। वह सब कुछ देखता है और सबके कर्मों का हिसाब रखता है। तू यह देखना कि ये ही दौलत उसे लेकर डूबेगी। कहीं का न रहेगा वह। इंसान अपने आपको भले ही जीवन भर धोखा देता रहे किन्तु विधाता को धोखा नहीं दे सकता।’
‘आप ठीक कहते हैं पापा!’ अखिल ने कहा। फिर एकाएक उसे कुछ याद आया और वह बैठकर बोला- ‘पापा! आज विनोद भाई साहब मिले थे।’
‘तू गया था वहां?’
‘नहीं, बाजार में कुछ खरीद रहे थे।’
‘क्या कह रहा था?’
‘कह रहे थे-यदि तुम्हारे पापा मेरी बात मान लेते तो आज यह बात बढ़ते-बढ़ते यहां तक न पहुंचती। मुझे लगता है वे आज भी समझौता करने को तैयार हैं।’
‘समझौता?’
‘हां पापा! और उस समझौते में उनकी वही शर्त होगी-स्कूटर।’
यह सुनते ही राजाराम के चेहरे पर संसार भर की कडुवाहट फैल गई। घृणा से दांत पीसकर वह बोला- ‘नहीं होगा यह समझौता-किसी भी कीमत पर नहीं। क्या सोचते हैं वे लोग-क्या समझते हैं वे अपने आपको। उनकी दृष्टि में स्कूटर ही सब कुछ हो गया और हमारी भारती कुछ भी नहीं। एक स्कूटर के लिए उन्होंने मेरी भारती को ठोकर मार दी। मार-पीटकर घर से निकाल दिया मेरी बच्ची को। मैं पूछता हूं-ऐसा कौन-सा गुण है जो हमारी भारती में नहीं है? वह सुंदर है, सुशील है, पढ़ी लिखी है। मगर उन्हें तो भारती की नहीं स्कूटर की जरूरत थी।’
अखिल ने कुछ न कहा।
एक पल रुककर राजाराम उससे बोले- ‘सुनो! इस बार विनोद मिले तो करारा जवाब देना उसे। उससे कहना कि भारती उस घर से एक बार निकाल दी गई है और दोबारा नहीं जाएगी। नहीं जाएगी भारती।’
‘आप चिंता न करें पापा! दीदी तो स्वयं वहां जाने को तैयार नहीं है। चलिए-आप अंदर चलकर लेट जाइए।’
‘मैं ठीक हूं।’ राजाराम ने कहा और फिर से अखबार उठा लिया।
‘मम्मी कहां है?’ एक पल बाद अखिल ने पूछा।
‘पड़ोस में गई है। आरती से कह दे-एक प्याला चाय बना देगी।’ अखिल यह सुनकर कमरे में चला गया।
* * ** * ** * ** * ** * ** * ** * ** * ** * ** * *
‘आप-आपका नाम?’
‘समझदार लोग पेड़ गिनने से नहीं-आम खाने से मतलब रखते हैं पूरन जी! मैं आपसे कुछ कहने आया हूं।’
‘बैठिए।’ पूरन ने हकलाते हुए कहा और एक कुर्सी राज की ओर सरका दी।
राज बैठ गया। कीमती वस्त्रों में वह किसी राजकुमार से कम न लगता था। कुछ क्षणों तक पूरन को घूरते रहने के पश्चात् वह उससे बोला- ‘सुषमा आप ही की बेटी है?’
‘ज-जी हां! किन्तु वह अपनी मां के साथ बाजार गई है। क्या आपको सुषमा से कोई काम था?’
‘फिलहाल तो हम आपसे मिलने आए हैं।’
‘सेवा बताइए।’ पूरन ने कहा। वह राज के व्यक्तित्व से इतना प्रभावित था कि उससे नजरें मिलाने का साहस न कर पा रहा था।
राज ने सिगरेट सुलगाकर धुआं उड़ाया और फिर बोला- ‘सुना है-आपकी बेटी का विवाह हो रहा है?’
‘जी हां! सिर्फ चार दिन रह गए हैं।’
‘यह चार दिन कभी नहीं आएंगे मिस्टर पूरनचंद!’
पूरन चौंककर बोला- ‘क्या मतलब?’
‘आप इस शादी को रोकेंगे।’
‘रोकेंगे-किन्तु क्यों?’
‘मिस्टर पूरनचंद! हम आपके पास इसीलिए आए हैं।’
‘किन्तु-किन्तु यह कैसे हो सकता है? ठीक चार दिन बाद मेरी बेटी की शादी है और आप कह रहे हैं कि मैं शादी रोक दूं। आखिर क्यों चाहते हैं आप ऐसा? क्या संबंध है आपका मेरी बेटी से?’
राज उठा और गुर्राते हुए बोला- ‘हम आपके इन प्रश्नों का उत्तर देने नहीं देंगे मिस्टर पूरनचंद! किन्तु हम इतना अवश्य बताएंगे कि हमारा आपकी बेटी से कोई संबंध नहीं। हमारा संबंध सिर्फ इस बात से है कि आपकी बेटी की शादी राजाराम के बेटे अखिल से न हो। उस घर के अतिरिक्त आप कहीं भी अपनी बेटी की शादी कर सकते हैं, हमें कोई ऐतराज न होगा।’
‘मगर यह असंभव है।’
‘असंभव को संभव बनाया जा सकता है।’
‘इसके पीछे दो कारण हैं। पहला तो यह कि शादी की सभी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं और आरंभ की एक-दो रस्में भी पूरी हो गई हैं। दूसरा कारण यह है कि अखिल और सुषमा एक-दूसरे को चाहते हैं। मैं किसी भी दबाव में आकर अपनी बेटी का हृदय नहीं तोड़ सकता। आप नहीं जानते, उसने बेटी होकर भी मेरे लिए क्या-क्या किया है। पिछले छह महीने से बीमार था मैं। बीमारी के कारण रोजी-रोटी भी चली गई। डॉक्टरों ने ऑपरेशन का खर्च तीस हजार बताया। मेरे पास तो एक पैसा भी न था। इधर-उधर हाथ फैलाए तो किसी ने हजार रुपए भी न दिए। बीमारी बढ़ती गई-घर में चूल्हा जलना बंद हो गया। मेरी बेटी सुबह पानी के घूंट भरकर घर से निकलती-दिन भर नौकरी के लिए भटकती और शाम को फिर पानी पीकर सो जाती। ऐसा कई बार हुआ। अंततः ईश्वर ने उसकी सुनी और उसे किसी कंपनी में नौकरी मिल गई। कंपनी का मालिक इतना दयावान निकला कि उसने मेरे ऑपरेशन के लिए रुपए भी दे दिए। इस प्रकार मेरा ऑपरेशन भी हो गया और घर में चूल्हा भी जलने लगा। मेरी बेटी ने दिन-रात मेहनत की, किन्तु उसने वो कर दिखाया जो शायद एक बेटा भी न कर पाता। धन्य है मेरी बेटी-धन्य है।’ इतना कहकर पूरन एक पल के लिए रुका।
फिर निर्णायक स्वर में बोला- ‘नहीं साहब! आप कुछ भी कहें, संसार कुछ भी कहे-किन्तु मैं अपनी बेटी के अरमानों का गला नहीं दबा सकता! आशा है-आप मुझे क्षमा करेंगे।’
‘मगर।’ दांत पीसकर राज बोला- ‘आप ऐसा करेंगे पूरनचंद जी! आपको ऐसा करना पड़ेगा।’
पूरन राज को यों चौंककर देखने लगा-मानो धमकी को समझने की कोशिश कर रहा हो।’
राज फिर बोला- ‘और ऐसा कहकर हम आपको कोई धमकी नहीं दे रहे हैं पूरनचंद जी! हम आपके विरुद्ध कोई अनुचित कदम नहीं उठाएंगे। हम तो सौदा करेंगे आपसे।’
‘स-सौदा?’ पूरन के होंठ खुले।
प्रत्युत्तर में राज ने अपनी पतलून की जेब में हाथ डाला और सौ-सौ के नोटों की दो गड्डियां निकालकर पूरन के सामने रख दीं।
पूरन उन गड्डियों को आंखें फाड़कर देखने लगा।
राज बोला- ‘यह 20 हजार रुपए रखिए और अपना निर्णय बदल दीजिए। इसी समय कह दीजिए अखिल से की यह शादी नहीं होगी। और हां-जब आप अपनी बेटी का रिश्ता किसी दूसरे घर में करेंगे तो हम आपको शादी के लिए इतनी ही रकम और देंगे।’
पूरन का सर घूम गया।
राज उसे ध्यान से देखने लगा।
उसी समय कोई कमरे में दाखिल हुआ और उसने नोटों की दोनों गड्डियां उठाकर पूरी शक्ति से बरामदे में फेंक दीं।
राज एवं पूरन दोनों ही चौंक पड़े।
चौंककर देखा-यह सुषमा थी। सुषमा का मुख तमतमाया हुआ था और आंखों से जैसे घृणा की चिंगारियां छूट रही थीं। राज को उसने घृणा से देखा और क्रोध से दांत पीसते हुए बोली- ‘मिस्टर राज वर्मा! एक सीमा होती है नीचता की भी, किन्तु आपने यहां आकर यह सिद्ध कर दिया कि नीचता सीमा से भी आगे बढ़ सकती है। कितनी विचित्र-सी बात है कि जब आपका मुझ पर कोई जादू न चला तो आप पापा को खरीदने चले आए।’
क्रोध एवं अपमान के कारण राज का पूरा जिस्म कांपने लगा और आंखों से क्रोध के शोले बरसने लगे। दांत पीसकर वह गुर्राया- ‘मिस सुषमा रानी! अनुभव तुम्हें भी है और हमें भी। दौलत पास हो तो कुछ भी खरीदना मुश्किल नहीं होता।’
‘मिस्टर राज वर्मा!’ कड़ुवाहट से एक-एक शब्द को चबाते हुए सुषमा ने कहा- ‘दौलत सिर्फ किसी की मजबूरी खरीद सकती है, किन्तु उसकी आत्मा और हृदय नहीं। आप जिस निर्णय को बदलवाने के लिए यहां आए हैं, उसका संबंध मजबूरी से नहीं, बल्कि हृदय और आत्मा से है। आप अपनी समस्त दौलत लुटाकर भी वह निर्णय नहीं बदल सकते मिस्टर वर्मा! अतः उठाइए अपनी दौलत और चले जाइए यहां से। जाने से पहले एक बात का ध्यान जरूर रखिए। अगर आपने मुझे ब्लैकमेल करने की कोशिश की-अथवा आप दोबारा यहां आए तो आपके लिए मुझसे बुरा कोई न होगा।’
राज के जबड़े भिंच गए, किन्तु उसने कुछ न कहा और नोटों की गड्डियां उठाकर तेजी से बाहर चला गया।
सुषमा उसे घूरती रही और पूरन सन्नाटे जैसी स्थिति में खड़ा था।
* * ** * ** * ** * ** * ** * ** * ** * ** * ** * *
कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्‍वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
Masoom
Pro Member
Posts: 3034
Joined: 01 Apr 2017 17:18

Re: Romance अभिशाप (लांछन )

Post by Masoom »

रात का समय था। आनंद एवं डॉली एक ही बिस्तर पर अपरिचितों की भांति लेटे थे। नींद दोनों की आंखों में न थी। शायद दोनों ही एक-दूसरे से कुछ कहना चाहते थे-किन्तु कहने का साहस किसी में न था।
अंत में आनंद के होंठ खुले। डॉली की ओर करवट बदलकर उसने पूछा- ‘नींद आ गई?’
‘क्यों?’ उसी मुद्रा में डॉली ने पूछा। स्वर रूखा था।
‘कुछ कहना था तुमसे।’
‘कल से जो कुछ कह रहे हो वह पर्याप्त नहीं?’
‘भूल तुम्हारी थी। तुम्हें उसे मानना चाहिए था। कहते हैं-विद्वान वह है जो अपनी भूलों को सुधार ले।’
‘मैंने कोई भूल नहीं की।’
‘अर्थात्-तुमने जो कुछ भी किया-ठीक किया?’
‘हां।’
आनंद को डॉली के इस उत्तर से आघात लगा। एक पल मौन रहकर वह बोला- ‘डॉली! एक बात का ध्यान रखो। रिश्तों का महल बनने में बहुत वक्त लगता है-मगर टूटने में एक पल की भी देर नहीं लगती।’
‘रिश्तों का वह महल-जिसमें शक और अविश्वास की दीवारें खड़ी हों, मुझे बिलकुल पसंद नहीं। उसमें रहने से तो ये इच्छा होगा कि मैं उसे अपनी ठोकर से गिरा दूं।’
डॉली का यह उत्तर भी पीड़ादायक था।
आनंद बोला- ‘मैंने तुम्हें शक और अविश्वास की दृष्टि से कभी नहीं देखा। मैंने वही देखा है-जो देखने के लिए मिला है और तुमने दिखाया है। क्या तुमने मांडका के खंडहर एवं सागर सरोवर के निकट राज से शारीरिक संबंध स्थापित नहीं किए?’
‘नहीं।’
आनंद उसके और भी निकट गया और शांत लहजे में बोला- ‘डॉली! जो सच है, उस पर झूठ का आवरण डालने की कोशिश न करो। यह सब मैं अपनी आंखों से देख चुका हूं।’
डॉली ने कुछ न कहा।
आनंद फिर बोला- ‘तुम भली प्रकार जानती हो कि मैंने तुमसे तुम्हारे अतीत के विषय में कभी कुछ नहीं पूछा। कभी यह जानने का प्रयास न किया कि तुमने बीते हुए जीवन में क्या किया है। मेरा तुम्हारे उस जीवन पर कोई अधिकार भी न था। उस पर सिर्फ तुम्हारा अधिकार था, अतः तुम उसे अपनी इच्छानुसार जी सकती थीं। किंतु विवाह के पश्चात् तो तुम्हारा वर्तमान मेरा है। मेरा तुम्हारे वर्तमान पर पूरा अधिकार है-क्योंकि तुम मेरी पत्नी हो।’
डॉली के होंठ खुले। कड़ुवाहट से बोली- ‘पत्नी होने का अर्थ यह नहीं कि मैंने तुम्हारी दासता स्वीकार कर ली है। मैं तुम्हारी दासी बन गई हूं।’
‘मैंने तुम्हें अपनी दासी समझा भी नहीं डॉली! वैसे भी प्रेम का रिश्ता बराबर का रिश्ता होता है और उसमें कोई किसी का दास नहीं होता। मैंने तो केवल यह चाहा कि तुम प्रेम के उस मार्ग पर पूरी ईमानदारी से चलो। और यह तभी हो सकता है जब तुम्हारे मन में मेरे अतिरिक्त किसी दूसरे के लिए कोई स्थान न हो।’
‘मैं बहस के मूड में नहीं।’
‘डॉली! यह बहस नहीं। इस बात का संबंध हमारे दाम्पत्य जीवन से है। हमें इस जीवन को बिखरने से बचाना चाहिए।’
‘बिखर भी जाए तो मुझे चिंता नहीं।’
आनंद ने बेचैनी से होंठ काट लिए। डॉली का यह वाक्य उसे अंदर तक बेंध गया था। वह कुछ क्षणों तक तो मौन रहा और फिर निःश्वास लेकर बोला- ‘तो यूं कहो न कि तुम इस संबंध को तोड़ने का निश्चय कर चुकी हो?’
‘तुम मुझे विवश कर रहे हो कि मैं संबंध तोड़ दूं।’
‘वह क्यों कर?’
‘वह इसलिए-क्योंकि राज तुम्हें पसंद नहीं और मेरी विवशता यह है कि मैं उससे मिले बिना नहीं रह सकती।’
‘ओह!’ आनंद के होंठों से निकला।
डॉली बोली- ‘यदि तुम इस संबंध को तोड़ना नहीं चाहते तो तुम्हें अपने अंदर इतनी सहन शक्ति पैदा करनी होगी। तुम्हें अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखना होगा और सब कुछ सहना होगा।’
इस बार जैसे कोई हथौड़ा आनंद की कनपटी से टकराया। वह एक झटके से उठा और अपने क्रोध को पीते हुए डॉली से बोला- ‘अर्थात् तुम मेरी आंखों के सामने राज के साथ रंगरेलियां मनाओगी और मैं मौन दर्शक की भांति सब कुछ देखूंगा? तुम मेरे पौरुष को हर रोज चुनौती दोगी और मैं केवल यह सोचकर खामोश रहूंगा कि मुझे इस बंधन को निभाना है। नहीं डॉली! मैं इतना नीच और बेगैरत नहीं। मुझे तुम्हारे हाथों से यह जहर पीना स्वीकार नहीं।’ इतना कहकर वह उठा और चादर उठाकर फर्श पर बिछे कालीन पर लेट गया।
फिर देर तक मौन छाया रहा।
डॉली ने आनंद की ओर से मुंह फेर लिया।
जबकि आनंद कुछ देर तक तो चुपचाप कालीन पर लेटा रहा, किन्तु जब बेचैनी सीमा पार करने लगी तो वह द्वार खोलकर बाहर चला गया।
डॉली ने उसे रोकने की आवश्यकता न समझी।
* * ** * ** * ** * ** * ** * ** * ** * ** * ** * *
कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्‍वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
Post Reply