सुराग
शबाना कहने को कनाट प्लेस में स्थित सिल्वर मून नामक रेस्टोरेंट में कैब्रे डांसर थी लेकिन असलियत में वो एक हाई प्राईस्ड कालगर्ल थी । कितनी हाई प्राइस्ड थी, इसका अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता था कि वो दिल्ली जैसे महंगे शहर में आठ एकड़ में बने उस फार्म हाउस में रहती थी ।
वो छतरपुर गांव से आगे भाटी माइन्स के रास्ते में मेन रोड से काफी हटकर बना शुक्ला फार्म्स के नाम से जाना जाने वाला एक फार्म हाउस था जिसके लोहे के बन्द फाटक के सामने मैं उस घड़ी मौजूद था ।
रात के बारह बजने को थे और चारों तरफ सन्नाटा था । शबाना कितनी हौसलामंद थी इसका अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता था कि दिल्ली शहर के एक सिरे पर उस सुनसान इलाके में, जहां कि दिन में भी कोई इक्का-दुक्का बंदा ही नजर आता था वो -वो बंदी- अकेली रहती थी । दिन में अमूमन उसके साथ कोमलहोती थी लेकिन रात को वो भी वहां से रुख्सत कर दी जाती थी ।
तनहाई में खलल जो आता था उसकी मौजूदगी से !
कोमल एक गोवानी लड़की थी जो कि कहने को शबाना की मेड थी लेकिन असल में वो उसकी सहयोगी, केयरटेकर, बावर्चिन, वगैरह सब कुछ थी । वो कोई पच्चीस साल की सांवली रंगत वाली लड़की थी जिसकी रंगत वाली कमी उसके बनाने वाले ने उसे खूबसूरती और भरपूर जवानी देकर निकाल दी मालूम होती थी ।
उसकी मालकिन शबाना उम्र में उससे एकाध साल बड़ी परीचेहरा, शोलाबदन, युवती थी जिसको खुदा ने ताजमहल के से अन्दाज से बनाया मालूम होता था ।
ताजमहल कहीं किसी एक की मिल्कियत हो सकता है !
शबाना और कोमलको साथ देखकर हमेशा मुझे रसगुल्ले और गुलाब जामुन का ख्याल आता था ।
मैंने बंद फाटक के एक पहलू में बना एक लैटर बॉक्स सरीखा बक्सा खोला और भीतर लगा एक बटन दबाया ।
“कौन ?” - कुछ क्षण बाद बटन के ऊपर लगे माइक्रोफोन में से शबाना की आवाज आयी ।
“राज।” - मैं बोला ।
“कौन राज?”
“राज । दि ओनली वन ।”
“वैलकम ।”
मैंने बक्से का ढक्कन बंद कर दिया और वापस अपनी फियेट में आ बैठा ।
मेरे सामने लोहे का फाटक अपने आप खुला । मैंने कार आगे बढाई । कार फाटक पार कर गई तो वो वो पीछे अपने आप बंद हो गया । दोनों तरफ लगे पेड़ों के बीच से गुजरते एक लम्बे ड्राइव-वे में कार चलाता हुआ मैं फार्म के बीचोंबीच बने एक छोटे से बंगले के सामने पहुंचा । मैंने कार को पार्किंग में खड़ी एक मारुती 1000 के पीछे रोका और बाहर निकला ।
शबाना मुझे ड्राइंगरूम के दरवाजे पर मिली ।
उस घड़ी वो एक झीनी सी नाइटी पहने थी जिसमें से उसका पुष्ट गोरा बदन साफ झलक रहा था ।
“वैलकम ।” - वो बोली ।
मैं उससे बगलगीर होकर मिला । मेरे तजुर्बेकार हाथ ने एक ही क्षण में उसके जिस्म की कई गोलाईयां टटोल डालीं ।
“अकेली हो ?” - मैं बोला ।
“अब नहीं हूं ।” - वो चेहरे पर एक चित्ताकर्षक मुस्कराहट लाती हुई बोली ।
“नींद तो क्या आती होगी अकेले !”
“नहीं आती । अच्छा हुआ तुम आ गए ।”
“मैं किसी और मकसद से आया हूं ।”
“वो मकसद भी पूरा हो जायेगा ।”
“मैं उस मकसद से नहीं आया ।”
वो तनिक हकबकाई, क्षण भर को उसकी आंखें बर्फ की मानिन्द सर्द हुईं लेकिन फिर तत्काल ही वो अपने मोतियों जैसे दांत चमकाती मुस्कराने लगी । वो मुझे बांह पकड़कर भीतर ले चली और फिर मुझे एक सोफे पर धकेलती हुये बोली - “बैठो ।”
“थैंक्यू !” - मैं बोला ।
“कुछ पियोगे ?” - वो बोली ।
“जो पिलाओगी पी लूंगा ।” - मैं बोला ।
“अच्छा !” - वो इठलाकर बोली - “अभी तो तुम कह रहे थे कि तुम उस मकसद से नहीं आये हो ।”
“म..मेरा मतलब था जो तुम पियोगी, वो मैं भी पी लूंगा ।”
“मैं अभी आयी ।”
बड़ी मदमाती चाल चलती वो वहां से रुख्सत हो गयी ।
कोई और वक्त होता तो मैं उसे वहीं दबोच लेता लेकिन वो घड़ी बिजनेस को प्लेजर से मिक्स करने की नहीं थी । बड़े नर्वस भाव से मैंने जेब से डनहिल का पैकेट निकाला और एक सिगरेट सुलगा लिया ।
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कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
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Re: Adultery सुराग Thriller
मुझे उम्मीद ही नहीं, यकीन है कि अपने खादिम को आप भूले नही होंगे लेकिन फिर भी ऐसा हो गया हो तो मैं अपना परिचय फिर से दिये देता हूं । बन्दे को राज कहते हैं । बन्दा प्राइवेट डिटेक्टिव के उस दुर्लभ धन्धे से ताल्लुक रखता है जो हिन्दुस्तान में अभी ढंग से जाना पहचाना नहीं जाता लेकिन ऊपर वाले की मेहरबानी है कि दिल्ली शहर में खास इस धंधे की वजह से ही आपके खादिम की अच्छी खासी पूछ है । प्राइवेट डिटेक्टिव के धंधे में मेरा दर्जा दरअसल अंधों में काना राजा वाला है । अगर मैं काबिल नहीं तो मुझ से ज्यादा काबिल भी कोई नहीं ।
ड्रिंक्स की एक ट्राली धकेलती शबाना वापिस लौटी ।
मैंने देखा कि उसने नाइटी की जगह शलवार कमीज पहन ली थी जिसमें उसका जिस्म और भी कसा हुआ लगता था ।
वो ड्रिंक्स बनाने लगी ।
मैंने आंख भरकर उसे देखा ।
मेरी पसन्द की हर चीज थोक के भाव मौजूद थी कमबख्त में : लम्बा कद । छरहरा बदन । तनी हुई सुडौल छातियां । भारी नितम्ब । लम्बे, सुडौल, गोरे चिट्टे हाथ पांव । गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होंठ, हिरणी जैसी आंखें । सुराही जैसी गरदन, रेशम से मुलायम खुले, काले बाल । हर चीज फिट । हर बात काबिलेतारीफ कहीं कोई नुक्स था तो वो उसकी नीयत में था । नीयत के मामले में वो ऐसी मकड़ी की तरह थी जो अपने शिकार को अपने जाल में फांस कर घुट-घुट कर मरने के लिये छोड़ देती थी । ऐसा जादू था उसका कि उसका शिकार अपनी ऐसी मौत को अपना परमसौभाग्य समझता था ।
उसके जाल में फंसा ऐसा ही एक भुंगा आजकल आपका खादिम भी था ।
मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि औरतों को फंसाने के मामले में इंगलैंड, अमरीका तक मशहूर आपका यह गोल्डमैडलिस्ट खादिम भी कभी किसी औरत के फंसाये फंस सकता था । लेकिन इस बार तो ऐसा हो ही गया था । जरूर शबाना नाम की हीरे जैसे कठोर दिल वली वो औरत कोई जादूगरनी थी ।
और ब्लैकमेलर ।
“पोशाक क्यों बदल ली ?”
उसने गर्दन घुमाकर अर्धनिमीलित नेत्रों से मेरी तरफ देखा और फिर बड़े कुटिल भाव से बोली - “तुम्हारी भलाई के लिये ।”
“म-मेरी भलाई के लिये ?”
“और नहीं तो क्या ! अब तुम उस मकसद से तो आये नहीं हो । मैं उसी पोशाक में रहती तो तुम्हें याद रह पाता अपना यहां आने का असल मकसद ?”
“ओह !”
उसने मुझे जाम पेश किया ।
हम दोनों ने जाम टकराये ।
“यहां” - मैं स्काच विस्की चुसकता हुआ बोला - “अकेले तुम्हें डर नहीं लगता ?”
“मैं अकेली कहां हूं यहां ?” - वो बोली ।
“जब अकेली होती हो तो तब डर नहीं लगता ?”
“मैं कभी अकेली होती ही नहीं यहां ।”
“मेरे आने से पहले तो अकेली थी ?”
“वो इसलिये क्योंकि तुम आने वाले थे । यहां कोई और भी मौजूद होता, ये तुम्हें पसन्द आता ?”
“नहीं ।”
“सो देयर यू आर ।”
“कभी उससे डर नहीं लगता जो तुम्हारे साथ होता है ?”
“जैसे इस वक्त तुम मेरे साथ हो ?”
“मान लो कि हां ।”
“तुम्हें मेरे से डर नहीं लगता ?”
“ओह ! तो तुम्हारा मतलब है कि यहां की तनहाई में तुम्हारे साथी को तुमसे डरना चाहिये न कि तुम्हें उससे ?”
“बिल्कुल ।”
“इतनी दिलेरी अच्छी नहीं होती, बहन जी ।”
“बहन जी !” - वो हंसी ।
मैंने हड़बड़ा कर विस्की का एक और घूंट हलक से उतारा और सिगरेट का कश लगाया ।
“अब बोलो क्या बात है ?” - वो बोली - “क्यों ऐसे शख्स जैसी सूरत बनाये हुए हो जिसकी बीवी सुहागरात को यार के साथ भाग गयी हो ?”
“शबाना ।” - मैं बड़ी संजीदगी से बोला - “कौशिक आज मेरे पास आया था ।”
“कौशिक !” - वो सहज भाव से बोली - “कैसा है वो ?”
“तुम्हें नहीं मालूम ?”
“नहीं मालूम । मुझे तो वो बहुत अरसे से नहीं मिला ।”
“अच्छा !”
“हां । कैसा है वो ?”
“बहुत हलकान । बहुत परेशान । बहुत नाखुश ।”
“मेरे से तो नहीं होना चाहिये । मैंने तो कभी कोई कसर उठा नहीं रखी उसे खुश करने में । अलबत्ता पिछली बार मिला था तो काफी उखड़ा-उखड़ा मिला था । लेकिन तुम अपनी कहो । तुम यहां कोई कौशिक का मिजाज डिसकस करने थोड़े ही आये हो ?”
“इसी वजह से आया हूं ।”
“कौशिक का मिजाज डिसकस करने ?” - वो हैरानी से बोली ।
“और और भी बहुत कुछ डिसकस करने ।”
“मसलन किस बाबत ?”
“मसलन ब्लैकमेल की बाबत ।”
“मेरा ब्लैकमेल से क्या लेना-देना ?”
“तुम्हारा ही लेना-देना है । बल्कि लेना ही लेना है ।”
वह खामोश रही ।
ड्रिंक्स की एक ट्राली धकेलती शबाना वापिस लौटी ।
मैंने देखा कि उसने नाइटी की जगह शलवार कमीज पहन ली थी जिसमें उसका जिस्म और भी कसा हुआ लगता था ।
वो ड्रिंक्स बनाने लगी ।
मैंने आंख भरकर उसे देखा ।
मेरी पसन्द की हर चीज थोक के भाव मौजूद थी कमबख्त में : लम्बा कद । छरहरा बदन । तनी हुई सुडौल छातियां । भारी नितम्ब । लम्बे, सुडौल, गोरे चिट्टे हाथ पांव । गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होंठ, हिरणी जैसी आंखें । सुराही जैसी गरदन, रेशम से मुलायम खुले, काले बाल । हर चीज फिट । हर बात काबिलेतारीफ कहीं कोई नुक्स था तो वो उसकी नीयत में था । नीयत के मामले में वो ऐसी मकड़ी की तरह थी जो अपने शिकार को अपने जाल में फांस कर घुट-घुट कर मरने के लिये छोड़ देती थी । ऐसा जादू था उसका कि उसका शिकार अपनी ऐसी मौत को अपना परमसौभाग्य समझता था ।
उसके जाल में फंसा ऐसा ही एक भुंगा आजकल आपका खादिम भी था ।
मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि औरतों को फंसाने के मामले में इंगलैंड, अमरीका तक मशहूर आपका यह गोल्डमैडलिस्ट खादिम भी कभी किसी औरत के फंसाये फंस सकता था । लेकिन इस बार तो ऐसा हो ही गया था । जरूर शबाना नाम की हीरे जैसे कठोर दिल वली वो औरत कोई जादूगरनी थी ।
और ब्लैकमेलर ।
“पोशाक क्यों बदल ली ?”
उसने गर्दन घुमाकर अर्धनिमीलित नेत्रों से मेरी तरफ देखा और फिर बड़े कुटिल भाव से बोली - “तुम्हारी भलाई के लिये ।”
“म-मेरी भलाई के लिये ?”
“और नहीं तो क्या ! अब तुम उस मकसद से तो आये नहीं हो । मैं उसी पोशाक में रहती तो तुम्हें याद रह पाता अपना यहां आने का असल मकसद ?”
“ओह !”
उसने मुझे जाम पेश किया ।
हम दोनों ने जाम टकराये ।
“यहां” - मैं स्काच विस्की चुसकता हुआ बोला - “अकेले तुम्हें डर नहीं लगता ?”
“मैं अकेली कहां हूं यहां ?” - वो बोली ।
“जब अकेली होती हो तो तब डर नहीं लगता ?”
“मैं कभी अकेली होती ही नहीं यहां ।”
“मेरे आने से पहले तो अकेली थी ?”
“वो इसलिये क्योंकि तुम आने वाले थे । यहां कोई और भी मौजूद होता, ये तुम्हें पसन्द आता ?”
“नहीं ।”
“सो देयर यू आर ।”
“कभी उससे डर नहीं लगता जो तुम्हारे साथ होता है ?”
“जैसे इस वक्त तुम मेरे साथ हो ?”
“मान लो कि हां ।”
“तुम्हें मेरे से डर नहीं लगता ?”
“ओह ! तो तुम्हारा मतलब है कि यहां की तनहाई में तुम्हारे साथी को तुमसे डरना चाहिये न कि तुम्हें उससे ?”
“बिल्कुल ।”
“इतनी दिलेरी अच्छी नहीं होती, बहन जी ।”
“बहन जी !” - वो हंसी ।
मैंने हड़बड़ा कर विस्की का एक और घूंट हलक से उतारा और सिगरेट का कश लगाया ।
“अब बोलो क्या बात है ?” - वो बोली - “क्यों ऐसे शख्स जैसी सूरत बनाये हुए हो जिसकी बीवी सुहागरात को यार के साथ भाग गयी हो ?”
“शबाना ।” - मैं बड़ी संजीदगी से बोला - “कौशिक आज मेरे पास आया था ।”
“कौशिक !” - वो सहज भाव से बोली - “कैसा है वो ?”
“तुम्हें नहीं मालूम ?”
“नहीं मालूम । मुझे तो वो बहुत अरसे से नहीं मिला ।”
“अच्छा !”
“हां । कैसा है वो ?”
“बहुत हलकान । बहुत परेशान । बहुत नाखुश ।”
“मेरे से तो नहीं होना चाहिये । मैंने तो कभी कोई कसर उठा नहीं रखी उसे खुश करने में । अलबत्ता पिछली बार मिला था तो काफी उखड़ा-उखड़ा मिला था । लेकिन तुम अपनी कहो । तुम यहां कोई कौशिक का मिजाज डिसकस करने थोड़े ही आये हो ?”
“इसी वजह से आया हूं ।”
“कौशिक का मिजाज डिसकस करने ?” - वो हैरानी से बोली ।
“और और भी बहुत कुछ डिसकस करने ।”
“मसलन किस बाबत ?”
“मसलन ब्लैकमेल की बाबत ।”
“मेरा ब्लैकमेल से क्या लेना-देना ?”
“तुम्हारा ही लेना-देना है । बल्कि लेना ही लेना है ।”
वह खामोश रही ।
कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
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Re: Adultery सुराग Thriller
“ब्लैकमेल की कहानी कहने वाला कौशिक इकलौता शख्स नहीं है । वही कहानी पचौरी की भी जुबान पर है । दो जनों से तो मेरी सीधे बात हुई है । और पता नहीं कितने होंगे जिन्होंने अभी तक जुबान नहीं खोली या जिन्हें मैं जानता नहीं । लेकिन तुम तो सब जानती हो !”
“काजी दुबला” - वो व्यंययपूर्ण स्वर में बोली - “शहर के अन्देशे ।”
“ये काजी शहर के अन्देशे दुबला होने वाला नहीं है, स्वीटहार्ट । इसे अपने अंदेशे दुबला होना पड़ रहा है । मुझे कौशिक और पचौरी की जुबानी मालूम हुआ है कि तुम उनको धमकाने के लिये मेरा नाम यूं इस्तेमाल कर रही हो जैसे तुम्हारे ब्लैकमेलिंग के धंधे में मैं तुम्हारा पार्टनर हूं । तुम उन पर ऐसा जताती हो जैसे उन्होंने तुम्हारी ब्लैकमेलिंग की मांग मंजूर न की तो राज - मैं, तुम्हारा पट्ठा - उन्हें एक्सपोज कर देगा ।”
“तुम” - वो फिर इठलाई - “नहीं हो मेरे पट्ठे ?”
“ये मजाक का मुद्दा नहीं है शबाना । अभी मेरे इतने बुरे दिन नहीं आये कि मुझे किसी औरत का पट्ठा बनना पड़े ।” '
“बात किसी औरत की नहीं” - उसने जोर की अंगड़ाई ली - “इस औरत की हो रही है ।”
“शबाना प्लीज !”
“गिलास खाली करो ।”
“मैंने विस्की का आखिरी घूंट पीकर गिलास उसे थमा दिया । उसने अपना भी गिलास खाली किया और नये जाम बनाने लगी ।
जाहिर था कि उस घड़ी शबाना का शराब पर - और अपने शबाब पर - बेतहाशा जोर इसलिये था क्योंकि वो ब्लैकमेल के मुद्दे को और उस सन्दर्भ में कौशिक और पचौरी के जिक्र को टालना चाहती थी । एकबारगी तो मैंने सोचा कि क्यों न मैं उसी की रौ में बहना शुरू कर दूं । यूं मैं उसकी मदहोशी का फायदा उठा सकता था और यूं मुझे वहां उसके निजी कागजात वगैरह को टटोलने का मौका मिल सकता था । पचौरी ने एक डायरी का जिक्र किया था जिसमें कि वो अपने क्लायंटों का कच्चा चिट्ठा नोट करके रखती थी । अगर वही उसके ब्लैकमेलिंग का हथियार था तो उस रात वो डायरी मेरे हाथ लग सकती थी ।
लेकिन फौरन ही वो ख्याल मैंने अपने जेहन से झटक दिया ।
डायरी का क्या था, उसके चोरी चले जाने की खबर लगने के बाद वैसी डायरी वो फिर लिख सकती थी और उस बार उसके वैसी कोशिश करने पर उसकी याददाश्त पहले से ज्यादा गुल खिला सकती थी और पहले से ज्यादा घातक बातें सोच या गढ़ सकती थी ।
मैंने नया सिगरेट सुलगा लिया ।
“क्या नीरस बातें ले बैठे ?” - वो मुझे गिलास वापिस थमाती हुई बोली - “ये आधी रात की तनहाई में शबाना से करने की बातें हैं ? तुम तो यूं पेश आ रहे हो जैसे शबाना शबाना ना हो रेत का बोरा हो ।”
उसने फिर अंगड़ाई ली ।
“शबाना !” - मैं जबरन उसे न देखने की कोशिश करता हुआ बोला - “मुझे ये कबूल नहीं, मुझे ये पसन्द नहीं कि तुम्हारे नापाक इरादों में मैं भी शरीक समझा जाऊं ।”
“तुम कहां हो शरीक ?”
“नहीं हूं लेकिन मेरी भरपूर कोशिशों के बावजूद उन दोनों में से किसी को भी मेरी बात पर यकीन नहीं आया है ।”
“लेकिन तुम्हें उनकी बात पर यकीन है ?”
“किस बात पर ?”
“इस बात पर कि मैं उन्हें ब्लैकमेल कर रही हूं ?”
“हां । यकीन है मुझे ।”
“यानी कि तुम्हारी निगाह में वो दोनों मेरे से ज्यादा काबिले-एतबार शख्स हैं ?”
“नहीं । लेकिन कम से कम इस मामले में मुझे उनकी बातों पर फिर भी यकीन है । वो कोई मेरे जिगरी दोस्त नहीं, सच पूछो तो तुम्हारी वजह से उन्हें तो मेरे से हैलो कहना गवारा नहीं । अपना रकीब मानते हैं वो मुझे । ऐसा कोई शख्स जब कोई बात कहने के लिये खास चलके मेरे पास आता है तो उसकी बात पर यकीन करना ही पड़ता है ।”
“कौन खास चलकर आया था ?”
“दोनों । पचौरी आज शाम नेहरू प्लेस मेरे आफिस पहुंच गया था और आफिस से जब मैं ग्रेटर कैलाश अपने घर पहुंचा था तो कौशिक मुझे अपने फ्लैट के दरवाजे पर धरना दिये बैठा मिला था ।”
“ओह !”
“शबाना, तुम बहुत खतरनाक खेल खेल रही हो ।”
उतने एक दर्शनी जमहाई ली ।
“ठीक है, अगर तुम्हें खतरनाक खेल खेलना आता है तो खुशी से खेलो लेकिन तुम लोगों को ये कहती फिरो कि उस खेल में मैं तुम्हारा पार्टनर हूं ये नहीं चलने का । अपने कुकर्मो में तुम मेरा नाम लपेटो, ये मैं नहीं होने दूंगा ।”
“कैसे रोकोगे मुझे ?” - वो तीखे स्वर में बोली ।
“कई तरीके हैं । कई तो बहुत आसान हैं । हींग लगे न फिटकरी रंग चोखा वाली किस्म के ।”
“मसलन ?”
“मसलन मैं तुम्हारी रिपोर्ट इन्कम टैक्स विभाग में कर सकता हूं । एक बार इन्क्म टैक्स वालों की पूछताछ शुरू हो गयी तो अपने इस वैभवशाली रहन-सहन की सफाई देना तुम्हारे लिये बहुत मुश्किल हो जायेगा ।”
“ऐसा तुम करोगे ?”
“मजबूरन ।”
“लेकिन करोगे ?”
“मैं नहीं चाहता कि ऐसी नौबत आये...”
“काजी दुबला” - वो व्यंययपूर्ण स्वर में बोली - “शहर के अन्देशे ।”
“ये काजी शहर के अन्देशे दुबला होने वाला नहीं है, स्वीटहार्ट । इसे अपने अंदेशे दुबला होना पड़ रहा है । मुझे कौशिक और पचौरी की जुबानी मालूम हुआ है कि तुम उनको धमकाने के लिये मेरा नाम यूं इस्तेमाल कर रही हो जैसे तुम्हारे ब्लैकमेलिंग के धंधे में मैं तुम्हारा पार्टनर हूं । तुम उन पर ऐसा जताती हो जैसे उन्होंने तुम्हारी ब्लैकमेलिंग की मांग मंजूर न की तो राज - मैं, तुम्हारा पट्ठा - उन्हें एक्सपोज कर देगा ।”
“तुम” - वो फिर इठलाई - “नहीं हो मेरे पट्ठे ?”
“ये मजाक का मुद्दा नहीं है शबाना । अभी मेरे इतने बुरे दिन नहीं आये कि मुझे किसी औरत का पट्ठा बनना पड़े ।” '
“बात किसी औरत की नहीं” - उसने जोर की अंगड़ाई ली - “इस औरत की हो रही है ।”
“शबाना प्लीज !”
“गिलास खाली करो ।”
“मैंने विस्की का आखिरी घूंट पीकर गिलास उसे थमा दिया । उसने अपना भी गिलास खाली किया और नये जाम बनाने लगी ।
जाहिर था कि उस घड़ी शबाना का शराब पर - और अपने शबाब पर - बेतहाशा जोर इसलिये था क्योंकि वो ब्लैकमेल के मुद्दे को और उस सन्दर्भ में कौशिक और पचौरी के जिक्र को टालना चाहती थी । एकबारगी तो मैंने सोचा कि क्यों न मैं उसी की रौ में बहना शुरू कर दूं । यूं मैं उसकी मदहोशी का फायदा उठा सकता था और यूं मुझे वहां उसके निजी कागजात वगैरह को टटोलने का मौका मिल सकता था । पचौरी ने एक डायरी का जिक्र किया था जिसमें कि वो अपने क्लायंटों का कच्चा चिट्ठा नोट करके रखती थी । अगर वही उसके ब्लैकमेलिंग का हथियार था तो उस रात वो डायरी मेरे हाथ लग सकती थी ।
लेकिन फौरन ही वो ख्याल मैंने अपने जेहन से झटक दिया ।
डायरी का क्या था, उसके चोरी चले जाने की खबर लगने के बाद वैसी डायरी वो फिर लिख सकती थी और उस बार उसके वैसी कोशिश करने पर उसकी याददाश्त पहले से ज्यादा गुल खिला सकती थी और पहले से ज्यादा घातक बातें सोच या गढ़ सकती थी ।
मैंने नया सिगरेट सुलगा लिया ।
“क्या नीरस बातें ले बैठे ?” - वो मुझे गिलास वापिस थमाती हुई बोली - “ये आधी रात की तनहाई में शबाना से करने की बातें हैं ? तुम तो यूं पेश आ रहे हो जैसे शबाना शबाना ना हो रेत का बोरा हो ।”
उसने फिर अंगड़ाई ली ।
“शबाना !” - मैं जबरन उसे न देखने की कोशिश करता हुआ बोला - “मुझे ये कबूल नहीं, मुझे ये पसन्द नहीं कि तुम्हारे नापाक इरादों में मैं भी शरीक समझा जाऊं ।”
“तुम कहां हो शरीक ?”
“नहीं हूं लेकिन मेरी भरपूर कोशिशों के बावजूद उन दोनों में से किसी को भी मेरी बात पर यकीन नहीं आया है ।”
“लेकिन तुम्हें उनकी बात पर यकीन है ?”
“किस बात पर ?”
“इस बात पर कि मैं उन्हें ब्लैकमेल कर रही हूं ?”
“हां । यकीन है मुझे ।”
“यानी कि तुम्हारी निगाह में वो दोनों मेरे से ज्यादा काबिले-एतबार शख्स हैं ?”
“नहीं । लेकिन कम से कम इस मामले में मुझे उनकी बातों पर फिर भी यकीन है । वो कोई मेरे जिगरी दोस्त नहीं, सच पूछो तो तुम्हारी वजह से उन्हें तो मेरे से हैलो कहना गवारा नहीं । अपना रकीब मानते हैं वो मुझे । ऐसा कोई शख्स जब कोई बात कहने के लिये खास चलके मेरे पास आता है तो उसकी बात पर यकीन करना ही पड़ता है ।”
“कौन खास चलकर आया था ?”
“दोनों । पचौरी आज शाम नेहरू प्लेस मेरे आफिस पहुंच गया था और आफिस से जब मैं ग्रेटर कैलाश अपने घर पहुंचा था तो कौशिक मुझे अपने फ्लैट के दरवाजे पर धरना दिये बैठा मिला था ।”
“ओह !”
“शबाना, तुम बहुत खतरनाक खेल खेल रही हो ।”
उतने एक दर्शनी जमहाई ली ।
“ठीक है, अगर तुम्हें खतरनाक खेल खेलना आता है तो खुशी से खेलो लेकिन तुम लोगों को ये कहती फिरो कि उस खेल में मैं तुम्हारा पार्टनर हूं ये नहीं चलने का । अपने कुकर्मो में तुम मेरा नाम लपेटो, ये मैं नहीं होने दूंगा ।”
“कैसे रोकोगे मुझे ?” - वो तीखे स्वर में बोली ।
“कई तरीके हैं । कई तो बहुत आसान हैं । हींग लगे न फिटकरी रंग चोखा वाली किस्म के ।”
“मसलन ?”
“मसलन मैं तुम्हारी रिपोर्ट इन्कम टैक्स विभाग में कर सकता हूं । एक बार इन्क्म टैक्स वालों की पूछताछ शुरू हो गयी तो अपने इस वैभवशाली रहन-सहन की सफाई देना तुम्हारे लिये बहुत मुश्किल हो जायेगा ।”
“ऐसा तुम करोगे ?”
“मजबूरन ।”
“लेकिन करोगे ?”
“मैं नहीं चाहता कि ऐसी नौबत आये...”
कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
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Re: Adultery सुराग Thriller
“साफ जवाब देना नहीं सीखे मालूम होते ।”
मैं खामोश रहा ।
कुछ क्षण वो भी खामोश रही और फिर बोली - “फार्म मेरा नहीं है ।”
“मुझे कहना आसान है । मुझे तो ये भी कहना आसान होगा कि बाहर खड़ी नयी मारुति -1000 तुम्हारी नहीं है, यहां का कीमती फर्नीचर, शानोशौकत का स्काच विस्की जैसा बाकी साजोसामान । कुछ तुम्हारा नहीं है लेकिन इन्कम टैक्स वालों को ये कहना आसान न होगा ।”
“राज ।” - वो तिरस्कारपूर्ण स्वर में बोली - “तुम ऐसा इसलिये कह रहे हो क्योंकि तुम अपनी और मेरी औकात एक करके आंक रहे हो ।”
“तुम आसमान से उतरी हो ?”
“हां । अभी पिछली ही बार जब मैं तुम से तुम्हारे फ्लैट पर मिली थी तो तुम मुझे परी बता रहे थे । परियां तो आसमान से ही उतरती हैं ।”
“मजाक मत करो ।”
“तो संजीदा बात सुनो । तुमने सैंया भये कोतवाल वाली मसल सुनी है ?”
“क्या मतलब ?”
“मुझे कम न समझो, राज । सरकार के घर में मेरी बहुत भीतर तक पैठ है ।”
“ओह ! तो ये बात है ?”
“हां, ये बात है । अव्वल तो ऐसी कोई बेहूदा इन्क्वायरी मेरी हो ही नहीं सकती, होगी तो शुरू होने से पहले खत्म हो जायेगी । ऐसा भी नहीं होगा तो मेरे खिलाफ अभी ऐसा एक भी कदम नहीं उठा होगा कि मुझे खबर लग जायेगी । तब कुछ नहीं मिलने वाला मेरे खिलाफ मेरी इन्क्वायरी करने वालों को ।”
“प्रास्टीच्युशन के बारे में क्या ख्याल है ?”
“क्या !”
“प्रास्टीच्यूशन । वेश्यावृत्ति । भारतीय दण्ड विधान में ये गम्भीर अपराध है । दिल्ली पुलिस को खुशी होगी तुम्हारे कारोबार की जानकारी पाकर ।”
“पुलिस मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती । कोई मेरे करीब भी नहीं फटकेगा । फटकेगा तो मैं उसे तिगनी का नाच नचा के दिखाउंगी ।”
“ये तेवर हैं ?”
“हां ये तेवर हैं ।”
“क्योंकि सरकार के घर में तुम्हारी बहुत भीतर तक पैठ है ?”
“हां ।”
“कोई मन्त्री पट गया क्या ?”
वो खामोश रही ।
“कौन है वो बदनसीब ?”
“खुशनसीब ।”- वो तमक कर बोली ।
“वही सही लेकिन है कौन वो ?”
“तुम्हें बताना जरूरी है ? तुम्हारे सामने उसका नाम लेना जरूरी है ?”
“नहीं जरूरी । ऐन इसी तरह किसी के सामने मेरा नाम लेना भी जरूरी नहीं तुम्हारे लिये ।”
“अब इतनी भी फूंक न लो ।”
“मैं नहीं ले रहा फूंक । तुम ले रही हो । क्योंकि तुमने मेरे नाम को एक प्राइवेट डिटेक्टिव के नाम को - राज के नाम को - फूंक लेने लायक बना दिया है । ये नाम कारआमद साबित हो रहा है, इसका यही काफी सबूत है कि लोग तुम्हारी ब्लैकमेलिंग की धमकी से उतने खौफजदा नहीं, जितने तुम्हारे साथ जुड़े इस नाम से खौफजदा हैं । वो समझते हैं कि मेरे जरिये तुमने उनकी बाबत और भी बहुत कुछ खोद निकाला है या आइन्दा दिनों में ऐसा कुछ कर गुजरने का इरादा रखती हो । तुम मेरा नाम यूं इस्तेमाल नहीं कर सकती ।”
“क्यों नहीं कर सकती ? तुम मुझे इस्तेमाल कर सकते हो, मैं तुम्हारा नाम इस्तेमाल नहीं कर सकती ?”
मेरे मुंह से बोल न फूटा ।
मैं खामोश रहा ।
कुछ क्षण वो भी खामोश रही और फिर बोली - “फार्म मेरा नहीं है ।”
“मुझे कहना आसान है । मुझे तो ये भी कहना आसान होगा कि बाहर खड़ी नयी मारुति -1000 तुम्हारी नहीं है, यहां का कीमती फर्नीचर, शानोशौकत का स्काच विस्की जैसा बाकी साजोसामान । कुछ तुम्हारा नहीं है लेकिन इन्कम टैक्स वालों को ये कहना आसान न होगा ।”
“राज ।” - वो तिरस्कारपूर्ण स्वर में बोली - “तुम ऐसा इसलिये कह रहे हो क्योंकि तुम अपनी और मेरी औकात एक करके आंक रहे हो ।”
“तुम आसमान से उतरी हो ?”
“हां । अभी पिछली ही बार जब मैं तुम से तुम्हारे फ्लैट पर मिली थी तो तुम मुझे परी बता रहे थे । परियां तो आसमान से ही उतरती हैं ।”
“मजाक मत करो ।”
“तो संजीदा बात सुनो । तुमने सैंया भये कोतवाल वाली मसल सुनी है ?”
“क्या मतलब ?”
“मुझे कम न समझो, राज । सरकार के घर में मेरी बहुत भीतर तक पैठ है ।”
“ओह ! तो ये बात है ?”
“हां, ये बात है । अव्वल तो ऐसी कोई बेहूदा इन्क्वायरी मेरी हो ही नहीं सकती, होगी तो शुरू होने से पहले खत्म हो जायेगी । ऐसा भी नहीं होगा तो मेरे खिलाफ अभी ऐसा एक भी कदम नहीं उठा होगा कि मुझे खबर लग जायेगी । तब कुछ नहीं मिलने वाला मेरे खिलाफ मेरी इन्क्वायरी करने वालों को ।”
“प्रास्टीच्युशन के बारे में क्या ख्याल है ?”
“क्या !”
“प्रास्टीच्यूशन । वेश्यावृत्ति । भारतीय दण्ड विधान में ये गम्भीर अपराध है । दिल्ली पुलिस को खुशी होगी तुम्हारे कारोबार की जानकारी पाकर ।”
“पुलिस मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती । कोई मेरे करीब भी नहीं फटकेगा । फटकेगा तो मैं उसे तिगनी का नाच नचा के दिखाउंगी ।”
“ये तेवर हैं ?”
“हां ये तेवर हैं ।”
“क्योंकि सरकार के घर में तुम्हारी बहुत भीतर तक पैठ है ?”
“हां ।”
“कोई मन्त्री पट गया क्या ?”
वो खामोश रही ।
“कौन है वो बदनसीब ?”
“खुशनसीब ।”- वो तमक कर बोली ।
“वही सही लेकिन है कौन वो ?”
“तुम्हें बताना जरूरी है ? तुम्हारे सामने उसका नाम लेना जरूरी है ?”
“नहीं जरूरी । ऐन इसी तरह किसी के सामने मेरा नाम लेना भी जरूरी नहीं तुम्हारे लिये ।”
“अब इतनी भी फूंक न लो ।”
“मैं नहीं ले रहा फूंक । तुम ले रही हो । क्योंकि तुमने मेरे नाम को एक प्राइवेट डिटेक्टिव के नाम को - राज के नाम को - फूंक लेने लायक बना दिया है । ये नाम कारआमद साबित हो रहा है, इसका यही काफी सबूत है कि लोग तुम्हारी ब्लैकमेलिंग की धमकी से उतने खौफजदा नहीं, जितने तुम्हारे साथ जुड़े इस नाम से खौफजदा हैं । वो समझते हैं कि मेरे जरिये तुमने उनकी बाबत और भी बहुत कुछ खोद निकाला है या आइन्दा दिनों में ऐसा कुछ कर गुजरने का इरादा रखती हो । तुम मेरा नाम यूं इस्तेमाल नहीं कर सकती ।”
“क्यों नहीं कर सकती ? तुम मुझे इस्तेमाल कर सकते हो, मैं तुम्हारा नाम इस्तेमाल नहीं कर सकती ?”
मेरे मुंह से बोल न फूटा ।
कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
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Re: Adultery सुराग Thriller
“अब चुप क्यों हो गये ?” - वो चैलेन्जभरे स्वर में बोली - “जवाब क्यों नहीं देते हो ?”
जवाब सोचने के लिये वक्त हासिल करने के लिये मुझे विस्की का घूंट पीना पड़ा सिगरेट का कश लगता पड़ा ।
“देखो ।” - मैं सावधानी से शब्द चयन करता हुआ बोला - “मेरी बात को पूरा संजीदा होकर सुनो और उस पर जरा ठन्डे दिमाग से गौर करो । जिस धंधे में तुम हो उसके सदके भी तुम कोई कम ऐश की जिन्दगी नहीं गुजार रही हो । तुम क्यों एक और भी बड़े क्राइम की राह पर चलना चाहती हो ? क्यों ब्लैकमेलिंग जैसे खतरनाक खेल का खिलाड़ी बनना चाहती हो ? शबाना, ये धंधा लम्बा चलने वाला नहीं होता ।”
“जिस धंधे में मैं हूं वो भी लम्बा चलने वाला नहीं होता ।”
“उसमें जान पर आ बनती है ।”
“इसमें भी जान पर आ बनती है ।”
“तुम समझती क्यों नहीं ?”
“मैं सब समझती हूं । तुम नहीं समझते हो । मैं आज तक मर्दों का खिलौना बनती आयी हूं । अब मैं मर्दों को अपना खिलौना बनाना चाहती हूं ।”
“ओह ! यानी कि तुम्हें दौलत की नहीं ताकत की चाह है !”
“दौलत की भी चाह है ।”
“दौलत से ज्यादा ताकत की चाह है । ताकत का नशा हावी है तुम पुर । दौलत और रसूख वाले लोगों के सिर अपने सामने झुके देखना चाहती हो, उन्हें ये जता कर सुख पाना चाहती हो कि अपनी ताकत के इस्तेमाल से तुम उन्हें बर्बाद कर सकती हो, ये साबित करके दिखाना चाहती हो कि भले ही उनके मुकाबले में तुम्हारी हस्ती मामूली है लेकिन तुम्हारी मामूली हस्ती के आगे उनकी अजीमोश्शान हस्ती भी कुछ नहीं ।”
“समझदार आदमी हो ।”
“तुम खता खाओगी ।”
“खता मैं खा चुकी । पहले । अब नहीं खाऊंगी ।”
“अब भी खाओगी ।”
“मेरा बुरा चाहने वाले के मुंह में खाक ।”
“शबाना, हुस्न और जवानी का साथ हमेशा का नहीं होता ।”
“मुझे मालूम है लेकिन मैंने उसका भी इन्तजाम सोचा हुआ है ।”
“क्या ?”
“मैं और शबाना पैदा करूंगी । मैं यहां अपनी देखरेख में इतने हीरे जमा करूंगी कि उनकी चकाचौंध किसी से नहीं झेली जायेगी ।”
“शबाना !” - मैने हैरानी से उसकी तरफ देखा - “कहीं तुम वही तो नहीं कह रही ही जो मैं समझ रहा हूं ।”
“मुझे क्या पता तुम क्या समझ रहे हो ।”
“तुम...तुम...चकला चलाने की फिराक में हो ? खुद बड़ी बाई बन कर ?”
“चकला एक बेहूदा लफ्ज है और बाई उससे भी बेहूदा ।”
“तुम प्रास्टीच्युशन का ओर्गेनाइज्ड रैकेट चनाना चाहती हो ? खुद मदाम बन के ?”
“तुम कल्पना नहीं कर सकते कि सिल्वर मून में मेरे साथ काम करती कितनी लड़कियां अपने आपको धन्य समझेंगी जबकि मैं उन्हें अपनी छत्रछाया में ले लूंगी । औरों की क्या कहूं, अपनी कोमलही उस घड़ी का यूं इन्तजार कर रही है जैसे असल में उसकी जिन्दगी तो तभी से शुरू होने वाली हो ।”
मैंने हौलनाक निगाहों से उसकी तरफ देखा ।
“छूट गये छक्के !” - वो व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोली - “राज, दि ओनली वन के भी ?”
“शबाना, मैं यहां तुम से तुम्हारे मुस्तकबिल के मंसूबे डिसकस करने नहीं आया । मैं यहां कौशिक और पचौरी की...”
जवाब सोचने के लिये वक्त हासिल करने के लिये मुझे विस्की का घूंट पीना पड़ा सिगरेट का कश लगता पड़ा ।
“देखो ।” - मैं सावधानी से शब्द चयन करता हुआ बोला - “मेरी बात को पूरा संजीदा होकर सुनो और उस पर जरा ठन्डे दिमाग से गौर करो । जिस धंधे में तुम हो उसके सदके भी तुम कोई कम ऐश की जिन्दगी नहीं गुजार रही हो । तुम क्यों एक और भी बड़े क्राइम की राह पर चलना चाहती हो ? क्यों ब्लैकमेलिंग जैसे खतरनाक खेल का खिलाड़ी बनना चाहती हो ? शबाना, ये धंधा लम्बा चलने वाला नहीं होता ।”
“जिस धंधे में मैं हूं वो भी लम्बा चलने वाला नहीं होता ।”
“उसमें जान पर आ बनती है ।”
“इसमें भी जान पर आ बनती है ।”
“तुम समझती क्यों नहीं ?”
“मैं सब समझती हूं । तुम नहीं समझते हो । मैं आज तक मर्दों का खिलौना बनती आयी हूं । अब मैं मर्दों को अपना खिलौना बनाना चाहती हूं ।”
“ओह ! यानी कि तुम्हें दौलत की नहीं ताकत की चाह है !”
“दौलत की भी चाह है ।”
“दौलत से ज्यादा ताकत की चाह है । ताकत का नशा हावी है तुम पुर । दौलत और रसूख वाले लोगों के सिर अपने सामने झुके देखना चाहती हो, उन्हें ये जता कर सुख पाना चाहती हो कि अपनी ताकत के इस्तेमाल से तुम उन्हें बर्बाद कर सकती हो, ये साबित करके दिखाना चाहती हो कि भले ही उनके मुकाबले में तुम्हारी हस्ती मामूली है लेकिन तुम्हारी मामूली हस्ती के आगे उनकी अजीमोश्शान हस्ती भी कुछ नहीं ।”
“समझदार आदमी हो ।”
“तुम खता खाओगी ।”
“खता मैं खा चुकी । पहले । अब नहीं खाऊंगी ।”
“अब भी खाओगी ।”
“मेरा बुरा चाहने वाले के मुंह में खाक ।”
“शबाना, हुस्न और जवानी का साथ हमेशा का नहीं होता ।”
“मुझे मालूम है लेकिन मैंने उसका भी इन्तजाम सोचा हुआ है ।”
“क्या ?”
“मैं और शबाना पैदा करूंगी । मैं यहां अपनी देखरेख में इतने हीरे जमा करूंगी कि उनकी चकाचौंध किसी से नहीं झेली जायेगी ।”
“शबाना !” - मैने हैरानी से उसकी तरफ देखा - “कहीं तुम वही तो नहीं कह रही ही जो मैं समझ रहा हूं ।”
“मुझे क्या पता तुम क्या समझ रहे हो ।”
“तुम...तुम...चकला चलाने की फिराक में हो ? खुद बड़ी बाई बन कर ?”
“चकला एक बेहूदा लफ्ज है और बाई उससे भी बेहूदा ।”
“तुम प्रास्टीच्युशन का ओर्गेनाइज्ड रैकेट चनाना चाहती हो ? खुद मदाम बन के ?”
“तुम कल्पना नहीं कर सकते कि सिल्वर मून में मेरे साथ काम करती कितनी लड़कियां अपने आपको धन्य समझेंगी जबकि मैं उन्हें अपनी छत्रछाया में ले लूंगी । औरों की क्या कहूं, अपनी कोमलही उस घड़ी का यूं इन्तजार कर रही है जैसे असल में उसकी जिन्दगी तो तभी से शुरू होने वाली हो ।”
मैंने हौलनाक निगाहों से उसकी तरफ देखा ।
“छूट गये छक्के !” - वो व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोली - “राज, दि ओनली वन के भी ?”
“शबाना, मैं यहां तुम से तुम्हारे मुस्तकबिल के मंसूबे डिसकस करने नहीं आया । मैं यहां कौशिक और पचौरी की...”
कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)