Adultery Thriller सुराग

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Masoom
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Re: Adultery Thriller सुराग

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अम्बरीश कौशिक होटल विक्रम की चौथी मंजिल पर स्थित एक सुइट में स्थापित था ।

मैं वहां पहुंचा तो मैंने उसे बैडरूम में अधलेटा सा पड़ा पाया । पलंग पर ही एक ट्रे पड़ी थी जिस पर एक वैट-69 की बोतल, एक सोडा सायफान और एक आइस बकेट रखी थी । उसके एक हाथ में विस्की का गिलास था और दूसरे में एक ताजा सुलगाया सिगरेट था । उसका चेहरा तममताया हुआ था और आंखें लाल थी । पता नहीं कब से वो विस्की पी रहा था ।

पलंग के करीब फर्श पर उस रोज का ईवनिंग न्यूज पड़ा था ।

“आ, राज ।” - मुझे देख कर वो नशे में थरथराती आवाज में बोला - “आ । बैठ ।”

मेरे स्वागत में उसने उठ कर सीधा होने का उपक्रम किया लेकिन कामयाब न हो सका । उसका मोटा, ठिगना जिस्म वापिस तकिये पर ढेर हो गया ।
मैं उसके सामने एक कुर्सी पर बैठ गया ।

“ड्रिंक बना ले अपने लिये और मेरे साथ चियर्स बोल । गिलास उधर साइड टेबल पर से उठा लो ।”

आदेशानुसार मैंने अपने लिये ड्रिंक तैयार किया और उसके साथ चियर्स बोला ।

“खबर” - फिर मैंने फर्श पर पड़े अखबार की ओर इशारा किया - “अखबार में ही पढ़ी या वैसे ही लग गयी थी ?”

“अखबार में ही पढी ।” - वो बोला - “पढते ही तबीयत खुश हो गयी ।”

“सैलीब्रेट कर रहे हो ?”

“बिल्कुल । क्यों न करूं ? इतने बड़े जंजाल से पीछा जो छूट गया । नहीं ?”

“हां ।”

ईवनिंग न्यूज को बाजार में आये अभी एक डेढ घन्टे से ज्यादा नहीं हुआ हो सकता था । तत्काल ही वो बोतल खोल के बैठ गया होता तो भी वो इतने थोड़े वक्फे में इतना ज्यादा टुन्न नहीं हो सकता था जितना कि वो दिखाई दे रहा था । वो तो कई घंटों से पी रहा मालूम होता था । अब अगर वो शबाना की मौत की सैलीब्रेशन में पी रहा था तो कई घन्टे पहले, अखबार पढ़े बिना, उसे वो खबर कैसे लग सकती थी ?

“राज !” - वो प्रशंसात्मक स्वर में बोला - “तूने तो कमाल ही कर दिया ।”

“मैंने कमाल कर दिया ! कौन सा कमाल कर दिया मैंने ?”

“अरे, मैंने तो तुझे शबाना से सिर्फ मेरा पीछा छुड़वा देने के लिये कहा था, तूने तो उससे सबका ही पीछा छुड़वा दिया । भई वाह, बहुत दिलेर पट्ठा निकला तू तो । तेरे से जो चार लाख रुपये का वादा मैंने किया था, वो रकम अब हम सबको शेयर करनी चाहिये । मैं सबसे एक-एक लाख रुपया मांगूंगा । एक लाख मैं खुद दूंगा । लेकिन तू फिक्र न कर राज, तुझे पूरे चार लाख रुपये ही मिलेंगे । तुझे वही रकम मिलेगी जिसका कि मैंने तेरे से वादा किया था ।”

“तुम समझ रहे हो कि शबाना का कत्ल मैंने किया है और मैं यहां चार लाख रुपये लेने आया हूं ?”

“छोड़ यार, मैं कुछ नहीं समझ रहा । मैं तो उस बात का जिक्र तक करना या सुनना नहीं चाहता । बहरहाल बला टली । राज, तेरी रकम खरी ! कल शाम तक मैं खुद वो रकम जहां तू कहेगा, तुझे पहुंचा दूंगा । राजी ?”
मैंने सहमति में सिर हिलाया ।

“बढिया आदमी निकला तू । दिलेर भी । जीता रह ।”

“तो तुमने” - मैं अपलक उसे देखता हुआ बोला - “शबाना के कत्ल की बाबत अखबार पढ़ के जाना ?”

“हां ।”

“अखबार में ये भी पढ़ा होगा कि उसका कत्ल सुबह सवेरे पांच बजे के करीब हुआ था ?”

“पुलिस का ऐसा अन्दाजा छपा है अखबार में । उसकी तसदीक तो पोस्टमार्टम से अभी होगी । लेकिन तेरे को ऐसी किसी तसदीक की क्या जरूरत है ? तुझे तो पक्का पता है कि कत्ल कब हुआ था । ऐसी बातों की कातिल से बेहतर जानकारी किसे हो सकती है !”
“मैं कातिल नहीं ।”
“सोच समझ के बोल, राज । मैं तो झट मान लूंगा कि तू कातिल नहीं । मेरी रकम जो बचेगी । लेकिन तेरा नुकसान हो जाएगा । गुनाह बेलज्जत वाली बात हो जायेगी तेरे साथ !”
“सुबह पांच बजे के आसपास तुम कहां थे ?”
“यहीं था ।”
“क्या कर रहे थे ?”
“वही जो अब कर रहा हूं ।”
“रात से ही पी रहे हो ?”
“हां । तेरा इन्तजार जो था । तेरे जरिये गुड न्यूज का इन्तजार जो था ।”
“तुम झूठ बोल रहे हो ।”
“क्या !”
“रात से अब तक लगातार पी रहे होते तो कब के होश खो बैठे होते ।”
“बीच में” - वो लापरवाही से बोला - “एकाध बार ऊंघ गया होऊंगा ।”
“मेरी राय में कत्ल तुमने किया है और ये विस्की पीने का ड्रामा तुम अपनी करतूत को कवर करने के लिये कर रहे हो ।”
“मेरे से जो मर्जी कह ले, राज, लेकिने ये वाहियात, बेबुनियाद बात तूने किसी और से कही तो तेरी खैर नहीं !”
“धमकी दे रहे हो ?”
“हां ।”
“एक कत्ल का तजुर्बा हो चुकने के बाद दिलेरी आ गयी मालूम होती है ! दूसरा कत्ल करने का हौसला आ गया मालूम होता है !”
“जो मर्जी कह ले । दोस्तों में सब चलता है । लेकिन पीठ पीछे नहीं । पीठ पीछे नहीं राज ।”
“शबाना की डायरी, कागजात वगैरह सब मौकायेवारदात से गायब हैं ?”
उसने सहमति में सिर हिलाया । उसकी आंखें मुन्दी जा रही थीं । वो बड़ी कठिनाई से उन्हें खुला रख पा रहा था ।
“उन्हें तू रखे तो नहीं बैठा अपने पास !” - एकाएक वो सशंक भाव से बोला - “फूंक फांक तो दिया न उन्हें या उनका भी कोई सौदा करने की फिराक में है ? ऐसा है तो साफ बोल ।”
“साफ मैं बोलूंगा । बहुत कुछ साफ बोलूंगा लेकिन इस वक्त बोलने का कोई फायदा मुझे नहीं दिखाई दे रहा ।” - मैं उठ खड़ा हुआ - “मैं फिर आऊंगा ।”
“कब ?”
“जब तुम्हारे होशोहवास ठिकाने होंगे ।”
“वो तो अभी भी ठिकाने हैं ।”
“वहम है तुम्हारा ।”
“ठीक है, फिर ही आना । सच पूछे तो मुझे भी अभी कहीं जाना है ।”
“इसी हालत में ?”
“क्यों, भई ? क्या हुआ है मेरी हालत को ?”
“कुछ नहीं हुआ । मैं चलता हूं ।”
“ठीक है ।”
***
मैं लाजपत नगर पहुंचा ।
मुझे पहले से मालूम था कि वहां की इरोज सिनेमा के करीब की एक इमारत के टॉप फ्लोर पर एक डेढ़ कमरे के फ्लैट में कोमल अकेली रहती थी । वहां इमारत की सीढियां इस प्रकार की थीं कि उसके बाहर से ही सीधे टॉप फ्लोर पर पहुंचा जा सकता था ।
मैंने काल बैल बजायी तो दरवाजा यूं कोई आधा फुट खुला कि दरवाजे और चौखट के बीच एक लोहे की जंजीर तन गयी । जंजीर के आरपार हम दोनों की निगाहें मिलीं ।
मैंने देखा कि उस घड़ी भी वो वही पोशाक पहने थी जिस में मैंने उसे सुबह फार्म हाउस में देखा था । उस घड़ी उसके हाथ में एक खुला हुआ बाल पॉइंट पैन था जो ये जाहिर करता था कि वो कुछ लिखती हुई उठी थी ।
“हल्लो !” - मैं मुस्कराता हुआ बोला ।
वो बड़े अनमने भाव से क्षण भर को मुस्कराई और फिर संजीदा हो गयी ।
“क्या मांगता ?” - वो बोली ।
“तुम्हारे से बात करना मांगता ।” - मैं मीठे स्वर में बोला ।
“क्या बात करना मांगता ?”
“मैडम के कत्ल की बाबत बात करना मांगता ।”
“हम नहीं मांगता । हम को जो मालूम सब पुलिस को बोल के रखा ।”
“मेरे से भी बोलने में क्या हर्ज है ?”
“हम डिटेक्टिव लोगों से बात नहीं करता ।”
“रूबी, मैं पुलिस का डिटेक्टिव नहीं हूं प्राइवेट डिटेक्टिव हूं ।”
“वाट डिफ्रेंस !”
“बहुत डिफ्रेंस । पुलिस तुम्हारे खिलाफ जबकि मैं तुम्हारी तरफ हूं ।”
“वाट डू यू मीन ?”
“मैं तुम्हें ये चेतावनी देने आया हूं कि पुलिस ने अभी तुम्हारा पीछा कोई छोड़ नहीं दिया हुआ । पुलिस वालों का ये तरीका होता है कि वो पहले जान बूझ कर ढील होते हैं और फिर एकाएक खींचते हैं ।”
“हम को क्या खींचना मांगता पुलिस वाला लोग ? हम सब कुछ साफ-साफ बोला ।”
“लेकिन पुलिस वाला लोग तुम को सब कुछ साफ-साफ नहीं बोला । जैसे वो ये नहीं बोला कि वो तुम्हारी मैडम के कत्ल का शक तुम पर कर रहे हैं ।”
“सांता मारिया !” - वो दहशतभरे स्वर में बोली ।
“वो जरूर-जरूर तुम्हारे पास फिर आयेंगे या तुम्हें तलब करेंगे ।”
“सांता मारिया !”
“नाओ मे आई कम इन ?”
उसने सहमति में सिर हिलाया और दरवाजे की जंजीर हटा दी । मैं भीतर दाखिल हुआ तो उसने मेरे पीछे दरवाजा बन्द कर दिया ।
“प्लीज सिट डाउन ।” - वो बोली ।
मैं एक सोफे पर बैठ गया । वो कुछ क्षण अनिश्चित सी मेरे सामने खड़ी रही और फिर मेरे सामने एक सोफाचेयर पर बैठ गयी ।
मैंने चारों तरफ निगाह दौड़ाई ।
वो फ्लैट छोटा जरूर था लेकिन बड़े करीने से सजा हुआ था । शहरी रहन-सहन की जरूरतों वाली कलर टेलीविजन वी सी आर, रेफ्रीजरेटर - यहां तक कि टेलीफोन भी तमाम चीजें वहां दिखाई दे रही थी । मैं जानता था कि वो सब शबाना की वजह से ही सम्भव था । अपनी जिन्दगी में निश्चय ही शबाना अपनी उस गोवानी मेड पर बहुत मेहरबान थी ।
एक कोने में मुझे एक राइटिंग दिखाई दी । उस पर उस घड़ी एक खुला लैटर पैड पड़ा था । शायद वो कोई चिट्ठी पत्री करती उठ कर दरवाजा खोलने गयी थी ।
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“आप इधर” - वो अनमने भाव से बोली - “हम को खाली वार्न करने के वास्ते आया ?”
“और वजह से भी आया ।” - मैं सावधानी से शब्द चयन करता हुआ बोला - “वो क्या है कि जैसे वो पुलिस वाले तुम्हारे बारे में सोचते हैं कि तुमने जितना उन्हें बताया था, तुम उससे ज्यादा जानती हो ऐन ऐसा ही वो मेरे बारे में भी सोचते हैं । वो समझते हैं कि कुछ मैं छुपा रहा हूं, कुछ तुम छुपा रही हो । लिहाजा मैंने सोचा कि अगर हम दोनों पुलिस से फिर वास्ता पड़ने से पहले आपस में मिल के बात कर लें तो हम दोनों पुलिस से फिर वास्ता पड़ने से पहले आपस में मिल के बात कर लें तो हम दोनों ही किसी एक बयान पर टिक सकते हैं । जब दो जने अलग-अलग एक ही बात कहेंगे तो उन्हें हमारी स्टोरी सच्ची मालूम पड़ेगी और फिर वो हमारा पीछा छोड़ देंगे । अन्डरस्टैण्ड ?”
उसका सिर तो सहमति में हिला लेकिन उसके चेहरे पर ऐसे भाव न आये जैसे कि वो मेरी बात समझ रही हो ।
“फिर कातिल तुमसे भी तो खौफजदा होगा !”
“वाट ?”
“मर्डरर । अफ्रेड आफ यू ।”
“वाई ?”
“शबाना तुम्हें अपनी मेड नहीं, सहेली समझती थी । बल्कि बहन समझती थी । तुम उसकी हर बात में राजदां समझी जाती थीं । इस लिहाज से हत्यारा, मर्डरर, ये समझ सकता है कि शबाना के जो कागजात गायब हैं, उन में क्या था, इसकी खबर तुम्हें भी होगी ।”
“सो ?”
“रूबी, हत्यारे को तुम्हारा भी मुंह बन्द करने की जरूरत महसूस हो सकती है ।”
“सांता मारिया !”
“लेकिन तुम्हें कुछ नहीं होगा । फोरवार्न्ड इज फोरआर्म्ड । नो ?”
“यस ।”
“तुमने पुलिस को बोला था कि तुम मैडम की राइटिंग टेबल के दराज को कभी नहीं खोलती थी लेकिन पुलिस को तुम्हारी इस बात पर एतबार नहीं है । उनका ख्याल है कि जो कागजात चोरी गये हैं, उन में क्या था ये तुम्हें बखूबी मालूम था । रूबी, ऐन यही ख्याल कातिल का भी हो सकता है ।”
उसके शरीर ने जोर से झुरझुरी ली ।
“अब अगर पुलिस का ख्याल सच है कि तुम्हें इस बात की वाकफियत थी कि मैडम के कागजात में क्या था तो फिर तो तुम्हें ये अन्दाजा हो सकता है कि हत्यारा कौन था । या कम से कम ये तो मालूम हो ही सकता है कि हत्यारा किन लोगो में से कोई एक हो सकता था ।”
“बट, सर,” - वो तीव्र प्रतिवादपूर्ण स्वर में बोली - “हम वो पेपर्स कभी नहीं पढा । नैवर ।”
“ये बात मौजूदा हालात में अहम नहीं है कि तुमने उन कागजात को पढ़ा या नहीं पढ़ा था । अहम बात ये है कि तुम्हें उन कागजात को पढने की सुविधा हासिल थी । मैडम तुम पर निर्भर करती थीं । मुझे जाती तौर पर मालूम है कि अक्सर वो तुम्हें पीछे फार्म हाउस पर छोड़ कर शहर चली जाती थी । मैडम अपनी चाबियां कहां रखती थीं, इसकी जानकारी तुम्हें सहज ही रही हो सकती थी । मैडम की गैरहाजिरी में तुम बड़ी आसानी से राइटिंग टेबल के दराज चाबी लगा कर खोल सकती थीं और भीतर मौजूद कागजात को खंगाल सकती थीं ।”
“सर !” - वो तमतमाए स्वर में बोली - “हम ऐसा इनसल्टिंग बात सुनना नहीं मांगता ।”
“कोमल। कोमल। मैं तुम पर कोई इलजाम नहीं लगा रहा । मैं सिर्फ ये बता रहा हूं कि पुलिस क्या सोचती होगी ! हत्यारा क्या सोचता होगा !”
“हम मरना नहीं मांगता ।”
“कौन मरना मांगता है । बूढा बीमार शख्स मरना नहीं मांगता । तुम तो माशाअल्ला जवान हो, हसीन हो ।”
“हम क्या करे ?”
“तुम्हारे सामने दो रास्ते हैं । या तो तुम पुलिस पर एतबार कर सकती हो, या फिर मेरे पर । मैं मैडम का पक्का फ्रेंड था । मालूम ?”
“मालूम ।”
“मालूम, तो तुम्हें पुलिस से ज्यादा मेरे पर एतबार होना चाहिए । नो ?”
“यस ।”
“गुड । अब अगर तुमने उन कागजात को पढ़ा है तो मुझे बताओ कि क्या पढ़ा है ! नहीं पढ़ा है तो अपने दिमाग पर जोर दो और याद करने की कोशिश करो कि शबाना ने कभी किसी शख्स का कोई खास जिक्र किया हो, किसी के बारे में कोई खास, गैरमामूली बात कही हो, किसी का नाम बार-बार लिया हो !”
वो सोचने लगी ।
“मैं तुमसे वादा करता हूं कि जो कुछ भी तुम मुझे बताओगी, वो मेरे से बाहर नहीं जाएगा जब कि पुलिस से ऐसा कोई आश्वासन तुम्हें हासिल नहीं हो सकता । पुलिस को हासिल जानकारी का प्रैस को लीक हो जाना आम बात है । उस सूरत में तुम्हारी जान को खतरा और भी ज्यादा होगा ।”
“हम आपको सब बोलेंगा तो आगे क्या होयेंगा ?”
“आगे मैं तफ्तीश करूंगा । जिन लोगों के नाम तुम लोगी, मैं उनकी पड़ताल करूंगा और ये जानने की कोशिश करूंगा कि शबाना के कत्ल के वक्त के आसपास वो कहां थे, किस के साथ थे । यूं कातिल का पता लग जाना महज वक्त की बात होगा ।”
“उतना वक्त में मर्डरर इधर आयेंगा और हम को शूट कर के जायेंगा । हम ऊपर मैडम के पास । आप को जो बोला वो वेस्ट ।”
“वेस्ट क्यों ? उससे कातिल का पता लगेगा ।”
“उससे हमारा लाइफ कैसे बचेगा ? हम ही गॉड के पास पहुंच गया तो हम को क्या लेना मांगता होता कि मैडम का मर्डर कौन किया !”
“बात तो तुम्हारी ठीक है ।” - मुझे कबूल करना पड़ा - “इस का एक ही हल है कि तुम कुछ दिनों के लिये चुपचाप कहीं चली जाओ ?”
“किधर ?”
“कहीं भी । कहीं किसी रिश्तेदार के पास । है कोई रिश्तेदार तुम्हारा ?”
“इधर नहीं है । आगरा में एक सिस्टर है । बाकी अक्खा फैमिली गोवा में है ।”
“तुम चुपचाप अपनी बहन के पास आगरा चली जाओ । वहां से तुम तभी लौटना जब तुम्हें मेरे से ये खबर हासिल हो जाये कि हत्यारा पहचाना गया था और पकड़ा गया था । और यकीन जानो कि अगर तुम मेरी मदद करोगी तो हत्यारा बहुत जल्द पकड़ा जायेगा ।”
“हूं ।”
बाल पैन को अपनी उंगलियों में नचाती वो खामोश बैठी रही । मैं व्यग्र भाव से उसको देखता रहा और उसके बोलने की प्रतीक्षा करता रहा ।
“लिसन ।” - आखिरकार वो बोली - “हम पुलिस को बोला कि शबाना मैडम का मेल फ्रेंड को हम नहीं जानता । हमारा माइंड बोलता कि हम को अपना एक ही स्टेटमेंट पर पक्का रहना मांगता । फिर भी हम कुछ बोलना मांगता तो पुलिस को बोलना मांगता ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि हम को मैडम का रीयल बिजनेस मालूम । मैडम एंटरटेंड जेंटलमैन फॉर मनी । पुलिस को भी ये बात अभी तक मालूम हो चुका होयेंगा । तब पासिबल है कि पुलिस हम को भी सेम बिजनेस में समझे ।”
“जिससे कि तुम्हें एतराज है !”
“बिजनेस से ऐतराज नहीं पण उस बिजनेस में समझे जाने से एतराज है । एक्सपोजर से एतराज है ।”
“कमाल है !”
“मिस्टर राज, हम पुलिस को एली बना कर रखेगा तो वो हमको बादर नहीं करेंगा । हम आपको कुछ बोलेगा तो पुलिस और एंग्री हो जायेगा कि हम कुछ बोला तो पुलिस को नहीं बोला, प्राइवेट डिटेक्टिव को बोला, मिस्टर राज को बोला ।”
“कोमलरूबी...”
“सर, आई वुड रादर टेक ए चांस विद पोलीस ।”
“तुम तो मेरा दिल तोड़ रही हो !”
वो चुप रही ।
“इतना तो मानती हो न कि तुम्हारे पास कुछ बताने लायक है जरूर ?”
“आई एक्सेप्ट नथिंग ।” - वो दृढ स्वर में बोली ।
“लेकिन...”
“सर प्लीज लीव । हम आगरा लैटर डालना मांगता है । हम अपनी सिस्टर को लैटर फिनिश करना मांगता है ।”
वो एकाएक उठकर खड़ी हो गयी ।
बड़े अनिच्छापूर्ण भाव से मैं भी उठा ।
“शाम को क्या कर रही हो ?” - फिर मैं आशापूर्ण स्वर में बोला ।
“काहे वास्ते पूछता आप ?” - वो बोली ।
“अगर डिनर मेरे साथ हो जाये तो...”
“सॉरी । अभी हम को मैडम का डैथ का मातम होता । जोकि आप को भी होना मांगता । कैसा फ्रेंड था आप मैडम का ?”
“तुम तो मुझे बेइज्जत कर रही हो ।”
वो खामोश रही ।
“ठीक है ।” - मैंने जेब से अपना एक विजिटिंग कार्ड निकाल कर उसकी तरफ बढ़ाया, उसने कार्ड को थामने की कोशिश न की तो मैंने उसे उसके सामने सैन्टर टेबल पर डाल दिया - “इस पर मेरा नाम, पता और टेलीफोन नम्बर दर्ज हैं । इरादा बदल जाए तो फोन करना ।”
उसने सहमति में सिर हिलाया ।
***
मैं विक्रम होटल वापिस पहुंचा ।
हाउस टेलीफोन से मैंने कौशिक के सुइट में फोन किया ।
कोई जवाब न मिला ।
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मैंने फोन रख दिया और रिसैप्शन पर पहुंचा । वहां रिसैप्शन क्लर्क उस घड़ी होटल के किसी तभी वहां पहुंचे मेहमान को बुक करने में व्यस्त था ।
मैंने पीछे की बोर्ड पर निगाह डाली तो पाया कि कौशिक के सुइट की चाबी वहां मौजूद नहीं थी ।
इसका क्या मतलब था ?
उसने कहा तो था कि उसने कहीं जाना था लेकिन अगर वो गया था तो क्या चाबी रिसैप्शन पर जमा कराने की जगह अपने साथ ले गया था ?
या वो होटल में ही कहीं मौजूद था ?
वो बात मुझे जंची । मैंने होटल की उन तमाम जगहों पर झांकना शुरू किया जहां कि कौशिक हो सकता था ।
वो मुझे कॉफी शाप में मिला । उस घड़ी दरवाजे की तरफ उसकी पीठ थी और वो एक मीनू पढ़कर उस में से वेटर को आर्डर दे रहा था ।
यानी कि वो तभी वहां पहुंचा था ।
मैं तत्काल वहां से हटा और लिफ्ट पर सवार हो कर चौथी मंजिल पर पहुंचा ।
उस फ्लोर पर उस घड़ी कोई नहीं था ।
कौशिक की अपने कमरे से गैरहाजिरी का फायदा उठाने की पूरी तैयारी करके मैं वहां आया था । मेरा अपना एक दोस्त मलकानी पहाड़गंज में होटल चलाता था । उससे मुझे एक ऐसी मास्टर की हासिल हुई थी जिसके बारे में उसका दावा था कि वो होटलों के कमरों के नब्बे पर्सेन्ट ताले खोल सकती थी ।
भगवान से ये प्रार्थना करता कि उस होटल के ताले बाकी दस पर्सेन्ट किस्म के न हों, मैं कौशिक के सुइट के बंद दरवाजे के सामने पहुंचा । मैंने एक बार गलियारे में दायें-बायें निगाह दौड़ाई और फिर चाबी के छेद में मास्टर की डाली ।
ताला पहली ही कोशिश में खुल गया ।
मैं चुपचाप भीतर दाखिल हुआ अपने पीछे मैंने दरवाजा बंद कर लिया और फुर्ती से वहां की भरपूर तलाशी लेने के काम में जुट गया ।
मुझे निराशा ही हाथ लगी ।
मेरे फ्लैट से चोरी गये कागजात वाला भूरा लिफाफा वहां कहीं नहीं था ।
लेकिन इसका मतलब ये नहीं था कि कौशिक निर्दोष था । हाथ में आते ही उसने वो कागजात नष्ट कर दिये हो सकते थे ।
या उसने वो कागजात छुपाने के तिये अपने होटल सुइट के अलावा कोई और ठिकाना चुना था ।
अगर कौशिक हत्यारा था तो समझ में आने वाली बात ये ही थी कि हाथ आते ही वो कागजात को नष्ट कर देता । लेकिन शायद ऐसा उसने तत्काल न किया हो । शायद वो ये जानने को उत्सुक हो उठा हो कि उसकी तरह और कौन-कौन लोग शबाना से फंसे हुए थे, कैसे फंसे हुंए थे ।
बहरहाल मेरे हाथ वहां से कुछ नहीं लगा था ।
विक्रम होटल सें आई टी ओ तक का लम्बा रास्ता तय करके मैं वापिस पुलिस हैडक्वार्टर पहुंचा ।
मुझे वहां इन्स्पेक्टर यादव से मिलने की कोई उम्मीद नहीं थी लेकिन वहां उसका रावत या कृपाल सिंह जैसा कोई मातहत पुलिसिया भी मिल जाता तो मुझे मालूम हो सकता था कि यादव के साथ आखिर क्या हादसा गुजरा था ।
मुझे यादव ही मिला ।
वो अपने कमरे में मौजूद था और अपनी मेज के दराजों में से कुछ सामान निकाल कर एक ब्रीफकेस में भर रहा था ।
उसने सिर उठा कर मेरी तरफ देखा तो मुझे उसके चेहरे पर मुर्दनी साफ दिखाई दी ।
“कैसे आये ?” - वो बोला ।
“तुम्हीं से मिलने आया था ।” - मैं बोला - “तुम्हारी बाबत कुछ सुना था । यकीन नहीं हुआ था इसलिए तुमसे तसदीक करने चला आया । सुबह से कान्टैक्ट की कोशिश कर रहा हूं मैं ! सुबह मैसेज भी छोड़ा था ।”
“किस के पास ?”
“कोई सब-इन्स्पेक्टर मकबूल सिंह था ।”
“उसने तो मुझे कुछ नहीं बताया ।”
“मिला था वो तुम्हें ?”
“हां । कई बार । मेरी सीट संभालने के सपने जो देख रहा है ।”
“यानी कि जो मैंने सुना है वो सच है ।”
“क्या सुना है तुमने ?”
“तुम सस्पैंड होने वाले हो ।”
“ये मकबूल सिंह ने कहा ?”
“हां ।”
“उसकी मां की..”
“माजरा क्या है ?”
“थोड़ी देर खामोश बैठो ।”
खामोश बैठने के लिये मैंने एक सिगरेट सुलगा लिया ।
फारिग होने में यादव ने दस मिनट लगाये ।
“गाड़ी लाये हो ?” - उसने पूछा ।
“हां ।”
“किधर जाओगे ?
“जिधर तुम कहोगे ?”
“वैसे किधर जाओगे ?”
“घर ।”
“ठीक है । मुझे मूलचन्द के चौराहे पर उतार देना ।”
“लेकिन वो खबर...”
“बातें रास्ते में होंगी ।”
मैंने सहमति में सिर हिलाया और उस के साथ हो लिया ।
इमारत से निकल कर हम कार पर सवार हो गये । कार को मैंने ग्रेटर कैलाश जाने वाले रास्ते पर डाल दिया ।
“अब बोलो क्या हुआ ?” - मैं बोला ।
“मेरी कम्पलेंट है ।”
“किस बात की ?”
“रिश्वत खाने की । तुम्हारे दोस्त और क्लायंट लेखराज मदान से उसकी बीवी मधु को छोड़ने की एवज में एक लाख रुपये की रिश्वत्त खाने की ।”
“क्या !”
वो खामोश रहा ।
“शिकायत किसने की ? मदान ने ?”
“नहीं । मेरे ही एक मातहत सिपाही ने । मैटकाफ रोड पर मकतूल शशिकान्त की कोठी पर जब मैं पहुंचा था तो दो सिपाही मेरे साथ थे । जिन्होंने तुम्हारी राय पर मर्डर वैपन की तलाश में कोठी का कम्पाउंड खंगाला था । उनमें से एक चितकबरे चेहरे वाला बडी-बड़ी मूछों वाला सिपाही था । याद आया ?”
“हां ।”
“सेवक राम नाम था उसका । उस कमीने ने मेरी शिकायत की है कि उसने मुझे लेखराज मदान से लाख रुपये रिश्वत मांगते अपने कानों से सुना था ।”
“लेकिन वो तो पुरानी बात है ।”
“इतनी पुरानी नहीं है । अभी दो महीने ही तो हुए हैं मदान के भाई शशिकान्त के कत्ल की वारदात को हुए ।”
“दो महीने भी कोई कम वक्फा नहीं होता । क्यों खामोश रहा वो इतना अरसा ?”
“कहता है बड़े अफसर की बात थी, फुल इंस्पेक्टर की बात थी इसलिए खौफ खाता रहा था ।”
“असल बात क्या है ?”
“असल बात ये है कि वो हरामजादा उस रकम में मेरा हिस्सेदार बनना चाहता था । मैंने फटकार दिया तो वो मेरे खिलाफ हो गया । उसने मेरे ए सी पी से शिकायत कर दी । तलवार वैसे ही मेरे से, मेरी कामयाबी से कुढ़ता रहता है । मेरे को नीचा दिखाने की नीयत से उसने सेवक राम को गले लगा के उसकी बात सुनी और फिर मेरे गले पड़ गया ।”
“एक सुनी सुनाई बात की बिना पर ! तुम्हारे सिपाही ने तुम्हें मदान से लाख रुपया मांगते सुना हो सकता है लेकिन लेते देखा तो नहीं हो सकता !”
“वो ठीक है । तभी तो अभी सस्पैंड कर दिया जाने की धमकी ही मिली है, सस्पैंड किया नहीं गया हूं मैं । लेकिन विभागीय इन्क्वायरी तो होगी । मदान से भी पूछताछ होगी ।”
“तुम उसकी फिक्र न करो । वो तुम्हारे खिलाफ कोई बयान नहीं देगा, इसकी गारंटी मैं करता हूं ।”
“फिर मेरा कुछ नहीं बिगड़ने वाला ।”
“ये अजीब बात नहीं कि तलवार ने तुम्हारा - एक इन्स्पेक्टर की बात का - यकीन करने की जगह सेवक राम का - एक सिपाही की बात का - यकीन किया ।”
“मैंने बोला न कि मेरा ए सी पी मेरे से कुढ़ता है और मुझे नीचा दिखाना चाहता है ।”
“क्यों ?”
“मैं अपने स्पेशल स्क्वाड के काम को, अपनी नौकरी को इतनी कामयाबी से अंजाम जो दे रहा हूं । तुम खुद गवाह हो कि मेरा विशेष दस्ता बनाये जाने के बाद से जितने भी कत्ल के केस मुझे सौंपे गये हैं, मैंने सबके सब हल करके दिखाये हैं । यही वजह है कि जिस महकमे में एस आई से इन्स्पेक्टर बनने मे बीस-बीस साल लग जाते है उसमें मैं पांच से भी कम सालों में इन्स्पेक्टर बना था । और भी कितने ही मैडल, कितने ही प्रशस्तिपत्र मुझे मिल चुके हैं । अमरजीत ओबराय के कत्ल के केस में जब मैंने ओबराय मोटर्स से चरस और अफीम का मोटा जखीरा पकड़ा था तो खुद कमिश्नर साहब ने मुझे अपने आफिस में बुलाकर शाबाशी दी थी । कल्याण खरबन्दा और उसकी सैक्रेट्री श्री लेखा के कत्ल के केस में भी...”
“नौकरी को” - मैं धीरे से उसकी बात काटता हुआ बोला - “कामयाबी से अंजाम देने से रिश्वत लेने का लाइसेंस तो नहीं मिल जाता ।”
उसको जैसे एकाएक ब्रेक लगी । उसने आहत भाव से मेरी तरफ देखा । मैंने केवल एक क्षण को गर्दन घुमाकर उसकी निगाह से निगाह मिलायी और फिर सामने देखने लगा ।
कई क्षण खामोशी रही ।
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“मेरी छ: बेटियां हैं ।” - फिर यादव धीरे से बोला - “और अभी छ: की छ: कुआंरी हैं ।”
“प्राब्लम तो है भई तुम्हारी ।” - मैं सहानुभूतिरहित स्वर में बोला ।
“एक गलती मेरे से ये भी हुई” - वो बोला - “कि जब कभी भी जो कोई रकम भी हाथ आयी, वो मैं खुद ही हज्म कर गया । मैंने ए सी पी को भी हिस्सेदार बनाया होता तो मेरे से पूछताछ की नौबत ही न आती, उसी ने सेवक राम को डांट के भगा दिया होता ।”
“आइन्दा ये सबक याद रखना ।”
“ये भी कोई कहने की बात है !”
“अब पोजीशन क्या है ?”
“अब पोजीशन ये है कि मुझे डैस्क वर्क दिया जा रहा है जिसे करने को मैं तैयार नहीं । अगर मैं सस्पैंड हो गया तो फिर तो सिलसिला लम्बा चलेगा, डैस्क वर्क से निजात न मिली तो मैं लम्बी छुट्टी पर चला जाऊंगा लेकिन डैस्क वर्क नहीं करूंगा । मैं क्या कोई क्लर्क हूं ! मुंशी हूं !”
“तुम्हारे खिलाफ चार्ज साबित हो गया तो ?”
“तो बहुत बुरा होगा ।” - वो चिन्तित भाव से बोला - “तो नौकरी तो जायेगी ही जायेगी और भी बुरा हो सकता है ।”
और भी बुरा हो सकने के ख्याल से उसके शरीर ने झुरझुरी ली ।
“तुम सेवक राम को अपनी शिकायत वापिस लेने के लिये तैयार नहीं कर सकते ?”
“मैंने ऐसी कोई कोशिश भी की तो ये मेरे खिलाफ अपने आप में सबूत मान लिया जायेगा । अहमतरीन सबूत ।”
“ओह !”
“मैं फिर कहता हूं कि अगर मदान ने मेरे खिलाफ गवाही न दी तो मेरा कुछ नहीं बिगड़ेगा । फिर बात इतने में ही झूलती रह जायेगी कि सेवक राम कहता रहेगा कि मैंने रिश्वत ली, मै कहता रहूंगा कि मैंने नहीं ली ।”
“हिज वर्ड अगेंस्ट युअर वर्ड ?”
“ऐग्जेक्टली ।” - फिर वो व्यग्र भाव से बोला - “राज, मदान से बात कर न ।”
“अभी करता हूं । साथ चलो तुम भी ।”
“मैं नहीं जा सकता । मेरा उसके पास जाना भी वही रंग लायेगा जो सेवक राम के पास जाना रंग लायेगा ।”
“ठीक है । मैं कल ही मदान से मिलूंगा ।”
“आज ही क्यों नहीं मिलता ? अभी क्यों नहीं मिलता ?”
“अभी तुम जो साथ हो ।”
“अरे मुझे गोली मार । मुझे यहां फेंक सड़क पर । तू ये काम पहले कर और कल मुझे कोई गुड न्यूज दे ।”
“ठीक है ।”
कार उस वक्त सुन्दरनगर से गुजर रही यी । मैंने उसे एक किनारे करके रोका ।
“शुक्रिया ।” - वो कार का अपनी ओर का दरवाजा खोलता हुआ बोला ।
“एक बात और बताते जाओ ।” - मैं जल्दी से बोला ।
“पूछो ।”
“तुम्हें शुक्ला फार्म्स पर हुए शबाना के कत्ल की खबर है ?”
“खबर है । मेरा ए सी पी खुद तो भागा फिर रहा है उसकी तफ्तीश के लिये ।”
“कुछ कर गुजरेगा ?”
“क्या पता ? फील्ड वर्क का कोई तजुर्बा तो है नहीं उसे । न ही ए सी पी रैंक का कोई पुलिस अफसर ऐसे इंडिपेंडेंट तफ्तीश करता है । वो तो मुझे नीचा दिखाने की नीयत से जोश में मेरी जगह खुद मौकायेवारदात पर पहुंच गया था । कोई बड़ी बात नहीं कि अब अपने रुतबे के लिहाज से अपनी हेठी महसूस कर रहा हो और पछता रहा हो । ये भी कोई बडी बात नहीं कि वो तफ्तीश को अधर में छोड़कर ही केस को किसी मातहत के - जैसे मकबूल सिंह के ही - मत्थे मढ़ दे ।”
“कल आफिस जाओगे ?”
“जब तक सस्पैंड नहीं हो जाता या मेरी छुट्टी कबूल नहीं हो जाती तब तक तो जाना ही पड़ेगा ।”
“बैठागे कहां ?”
“अपनी सीट पर और कहां ।”
“आज तो वहां मकबूल सिंह बैठा था ।”
“मालूम है ! मैंने जाके उसकी मां की बहन की करके उसे कान पकड़ के उठाया था ।”
“ठीक है । कल मैं तुम्हें फोन करूंगा ।”
वो एडवांस मे मेरा शुक्रगुजार होता कार में से उतर गया ।
मैंने कार को वापिस मैटकाफ रोड की ओर दौड़ा दिया ।
अपने भाई शशिकांत के कत्ल के बाद से लेखराज मदान ने अपना बारहखम्बा रोड के होटल वाला पैन्थाउस अपार्टमैंट छोड़ दिया हुआ था और अब वो मैटकाफ रोड पर शशिकान्त वाली कोठी में रहता था ।
***
मदान से मुकम्मल बातचीत करके, उसे यादव के हक में पूरी तरह से सांठ कर जब मैं वापिस ग्रेटर कैलाश अपने फ्लैट पर पहुंचा तब तक नौ बज चुके थे ।
मैं वहां घुसा ही था कि फोन की घन्टी बजने लगी ।
मैंने फोन उठाया ।
कोमलके गोवानी लहजे की वजह से मैंने उसकी आवाज फौरन पहचानी ।
“मिस्टर राज !” - वो व्यग्र भाव से बोली - “हम कोमलबोलता । आप पहचाना ?”
“हां, पहचाना ।” - मैं संशय और उत्सुकता मिश्रित भाव से बोला - “कैसे फोन किया ?”
“मिस्टर राज, हम मच डेलीब्रेशन के बाद ये नतीजा पर पहुंचा है कि हम को पुलिस पर नहीं आप पर ऐतबार करना मांगता है ।”
“दैट्स वैरी गुड न्यूज । मुझे मालूम था कि तुम्हारा ख्याल बदलेगा ।”
“बदला । तभी हम आपको फोन लगाया । अब हम आपको सब बताना मांगता है । ऐवरीथिंग । आप अभी का अभी इधर आना सकता है ?”
“इधर किधर ?”
“हमारा फ्लैट पर ।”
“तुम अपने फ्लैट से बोल रही हो ?”
“हां ।”
“मैं आता हूं । फौरन आता हूं ।”
“गॉड ब्लैस यू सर ।”
लाइन कट गयी ।
दस मिनट में मैं लाजपत नगर में कोमलके फ्लैट पर था ।
पिछली बार जो दरवाजा मुझे बंद मिला था, जो खुलने पर भी चेन लाक वाले जंजीर के सहारे खुला था, अब वो मुझे बिल्कुल खुला मिला ।
किसी अज्ञात आशंका से आशंकित मैंने चौखट से भीतर कदम रखा ।
भीतर रोशनी थी जिसमें मुझे जो नजारा दिखाई दिया, उसने सिद्ध कर दिया कि मेरी आशंका निर्मूल नहीं थी ।
फर्श पर कोमलकी लाश पड़ी थी ।
वो उस घड़ी भी अपनी पहले वाली ही पोशाक में थी लेकिन अब उसकी काली स्कीवी खून से तर दिखाई दे रही थी । खून अभी भी बह रहा था जो इस बात का सबूत था कि उसे गोली लगे ज्यादा देर नहीं हुई थी ।
वैसे भी दस मिनट पहले तो वो फोन पर मेरे से बात कर रही थी इसलिये उसके साथ वो हादसा पिछले दस मिनट के भीतर ही गुजरा होना लाजमी था ।
मैंने झुक कर उसकी नब्ज टटोली ।
नब्ज गायब थी लेकिन, जैसा कि अपेक्षित था, जिस्म अभी गर्म था ।
फिर मुझे लाश से थोड़ी दूर पड़ी रिवाल्वर दिखाई दी ।
अड़तीस कैलीबर की स्मिथ एण्ड वैसन रिवाल्वर ।
मेरी रिवाल्वर !
मैंने झपट कर उसे उठा लिया और उसका सीरियल नम्बर पढा ।
निश्चय ही मेरी रिवाल्वर ।
फिर तत्काल मुझे अहसास होने लगा कि जोश में मेरे से भारी भूल हो गयी थी ।
साफ जाहिर था कि कत्ल उसी रिवाल्वर से हुआ था । वो रिवाल्वर मर्डर वैपन थी । मुझे उसको यूं नहीं उठाना चाहिये था । न उठाता तो शायद उस पर से कातिल की उंगलियों के निशान बरामद होते लेकिन अब तो उस पर खुद मेरी उंगलियों के निशान बन गये थे ।
अब मैं क्या करूं ? रिवाल्वर पर से उंगलियों के निशान मिटाऊं और चुपचाप वहां से खिसक जाऊं ?
मुझे वही काम मुफीद लगा ।
लेकिन ऐसा कुछ कर पाने का मौका मुझे नसीब न हुआ ।
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