Adultery Thriller सुराग

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Masoom
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Re: Adultery Thriller सुराग

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“उसके घर की तलाशी हो गयी ?”

“वो तो इतनी बड़ी वारदात के बाद होनी ही थी । शबाना के बाकी बचे कागजात और मर्डर वैपन, वो कोल्ट रिवाल्वर वहां से बरामद कर ली गयी है और बतौर मर्डर वैपन उसकी शिनाख्त हो गयी है ।”
“बढ़िया ।”
“हैडक्वार्टर में पोस्टिंग से पहले तलवार ने कोई दस महीने इन्दिरा गान्धी एयरपोर्ट पर ड्यूटी की थी । तब वहां की ड्यूटी के दौरान वो पैंतालीस कैलीबर की कोल्ट रिवाल्वर उसने एक विदेशी के पास पकड़ी थी लेकिन जब उसने देखा था कि उस पर सीरियल नम्बर नहीं था तो उसे एक दुर्लभ हथियार जानकर उसे मालखाने में जमा कराने की जगह अपने पास रख लिया था और विदेशी को छोड़ दिया था जो कि इसी बात से खुश हो गया था कि उसके खिलाफ गैरकानूनी हथियार रखने का केस नहीं बनाया गया था । वही रिवाल्वर अब तलवार ने शबाना के कत्ल में इस्तेमाल की थी ।”
“और वो पिस्तौल जिससे उसने कौशिक का कत्ल किया था ?”
“वो भी उसने यूं ही कहीं से काबू कर ली होगी । वो भी और वो भी जिससे उसने तुम्हारे फ्लैट में रखे पुतले पर गोलियां चलायी थीं । पुलिस के इतने आला अफसर के लिये ऐसे काम क्या मुश्किल थे ?”
“शबाना के कत्ल के लिये वो फार्म में कैसे घुसा था ?”
“फार्म के पिछवाड़े की एक दीवार फांद कर । वो कहता है कि इस काम के लिये पिछवाड़े की दीवार में एक जगह उसने पहले से ताड़ी हुई थी ।”
“यानी कि शबाना का कत्ल करने का उसका इरादा पहले से था ?”
“होगा ही । ऐसा प्रोग्राम एकाएक बना होता तो शबाना को सोते में शूट किये जाने की नौबत थोड़े ही आयी होती ?”
“ओह ! यानी कि वहां शबाना के साथ मेरी मौजूदगी की उसे वाकई खबर नहीं थी ?”
“नहीं थी । वो कहता है कि अगर उसे इस बात की खबर होती तो वो उसके कत्ल को किसी और मुनासिब वक्त के लिये मुल्तवी कर देता । उसके लिये खास उसी रोज शबाना का कत्ल करना जरूरी नहीं था ।”
“शूटिंग का प्रशिक्षण पाये तलवार का निशाना कैसे चूक गया ? शबाना पर चलाई उसकी पहली गोली मैट्रेस में क्यों कर जा लगी ?”
“इत्तफाक से । वो कहता है कि तभी एकाएक शबाना ने सोते में करवट बदल ली थी ।”
“ओह ! और ?”
“और एक बात ये सामने आयी है कि वो फार्म शबाना की मिल्कियत नहीं था । वो फार्म किसी दीनबन्धु शुक्ला का है जो अब फार्म का पोजेशन हासिल करने के लिये खुद ही पुलिस के पास पहुंच गया था ।”
“उसने फार्म शबाना को क्यों दिया ?”
“ये भी कोई पूछने की बात है ?”
“यानी कि वो दीनबन्धु, दीन का बन्धु शुक्ला भी शबाना का ग्राहक था ?”
“हां । मामूली दबाव से ये बात उसने अपनी जुबानी कबूल कर ली थी ।”
“शबाना की जो दौलत बैंक के लाकर से बरामद हुई थी, उस का क्या हुआ ?”
“अभी तो मालखाने में ही जमा है । कोई क्लेमेंट सामने आयेगा, अपने आपको शबाना का नजदीकी साबित करके दिखायेगा तो सक्सेशन की लम्बी कार्यवाही के बाद शायद वो दौलत उसे मिल जाये लेकिन ऐसा होना मुश्किल ही है ।”
“क्यों ?”
“अरे, जब उसकी लाश क्लेम करने कोई नहीं आया तो अब वो पाप की कमाई क्लेम करने कौन आयेगा ?”
“ओह !”
“बाज लोग सीमित साधनों वाले होते हुए भी बहुत खानदानी, बहुत गैरतमंद, बहुत शर्मसाज होते हैं । हैदराबाद में रहते शबाना के घर वाले ऐसे ही लोग होंगे । जब उन्हें अपनी कालगर्ल बेटी से रिश्ता कबूल नहीं हुआ तो अब उसकी दौलत पर क्या लार टपकायेंगे ? उनकी ऐसी मंशा होती तो वो शबाना की लाश क्लेम करके, उसका विधिवत संस्कार करने के लिये फौरन दिल्ली पहुंचे होते ।”
“कह तो तुम ठीक रहे हो ।”
“राज, तेरे और तेरे जोड़ीदारों के लिये भी एक गुड न्यूज है ।”
“क्या ?”
“पुलिस ने शबाना के कारोबार को कतई कोई हवा न देने का फैसला किया है ।”
“वो तो इसलिये किया गया होगा क्योंकि पुलिस को ये गवारा नहीं होगा कि कौशिक, पचौरी, अस्थाना, बैक्टर, सक्सेना, भटनागर, शुक्ला, नरेन्द्र कुमार वगैरह की तरह उनका एक उच्चाधिकारी भी एक कालगर्ल का ग्राहक था ।”
“अपना नाम नहीं जोड़ा ?”
“वगैरह कहा तो मैंने ? वैसे मैं उसका ग्राहक नहीं था ।”
“खुद को कैसी भी तसल्ली दे ले, राज, लेकिन शबाना की निगाह में तेरा बाकी लोगों से कोई जुदा दर्जा नहीं था ।”
“चलो ऐसे ही सही । और बोलो ।”
“और रावत तो वाकई राजा बन गया है । कमिश्नर समेत पुलिस के टॉप ब्रास ने उसकी बहादुरी की तारीफ की है और उसकी पीठ ठोकी है । कमिश्नर ने तो उसकी आउट आफ टर्न प्रोमोशन की घोषणा भी कर दी है ।”
“अहसानमन्द होना चाहिये उसे तुम्हारा ?”
“ऐसा नहीं होता, राज । एक पुलिस वाला दूसरे पुलिस वाले का अहसानमन्द नहीं होता । वो कहते नहीं हैं कि कुत्ते का कुत्ता बैरी “
“ओह !”
साहबान, यूं शबाना के कत्ल से शुरू हुआ वो केस समाप्त हुआ जिसमें आपके खादिम की फजीहत हद से ज्यादा हुई । मैं तलवार के हाथों कत्ल होने से बचा, उसके फंसाये शबाना और कोमलदोनों के कत्ल के इल्जाम में फंसने से बचा, रघुवीर के हाथों मरने से बचा जबकि डॉली भी जरूर ही मेरे साथ ही शहीद होती । दो बार मेरा मोटर एक्सीडेंट हुआ - एक बार रघुवीर की कोन्टेसा चलाते वक्त और दूसरी बार खुद अपनी बिना ब्रेक की फियेट चलाते वक्त - और तीन बार मैं घायल हुआ - एक बार शबाना के फार्म पर बाथरूम में फिसल कर, दूसरी बार रघुवीर की एम्बबैसडर से टकरा कर और तीसरी बार अपने घर के दरवाजे पर अन्धेरे में हुए वार से - तीनों बार मैंने होश खोये ।
नुकसान के खाते में जो दूसरी आइटम दर्ज हुई थी, वो मेरी फियेट कार थी, जिसकी एक्सीडेंट में बिल्कुल ही दुक्की पिट गयी थी । अख खड़े पैर एक नयी कार का इन्तजाम करना भी मेरे लिये जरूरी हो गया था जो कि एक खर्चीला काम था जब कि उस केस में आपके खादिम ने कुल जमा वो दस हजार रुपये कमाये थे जो कि रजनीश ने दिये ये और जो कि उसकी मेहरबानी थी कि बावजूद अपनी धमकी के उसने मेरे से वापिस नहीं वसूल लिये थे । वो दस हजार रुपये भी मैं ये नहीं कह सकता था कि मैंने पूरे-पूरे कमाये थे क्योंकि उसमें से दो हजार रुपये मैंने हरीश पाण्डेय को भी दिये थे ।
इस बार राज की फेमस लक को वाकई कलमुंहे की नजर लग गयी थी ।
मेरे क्रेडिट के खाते में एक जिक्र के काबिल बात ये थी कि मेरी रिवाल्वर अगले ही रोज मुझे वापिस मिल गयी थी ।
सारे सिलसिले में भारी-फायदे में अगर कोई रहा था तो वो था ए एस आई भूपसिंह रावत जिसे कि आनन-फानन सब-इंस्पेक्टर बना दिया गया था ।
फायदे में इन्स्पेक्टर यादव भी कम नहीं रहा था जो कि सस्पेंड तो हुआ ही नहीं था । तलवार की मौत के बाद न केवल उसके खिलाफ विभागीय इंक्वायरी ड्रॉप कर दी गयी थी, उसे अपनी स्पेशल स्क्वायड की नौकरी पर भी बहाल कर दिया गया था ।
यानी कि एक रिश्वतखोर पुलिसिया और रिश्वत बटोरने के लिये फिर मैदान में था ।
बाद में राकेश अस्थाना ने पूरी संजीदगी से इस बात की तसदीक की कि बृहस्पतिवार रात को उसने रघुवीर को मेरे पीछे नहीं लगाया था । यानी कि डॉली का अगवा करके फिरौती में शबाना की डायरी वसूलना उसका खुद का आइडिया था ।
उस रात की वारदात के वाद वो और उसके दोनों जोड़ीदार इब्राहीम और कलीराम ऐसे दिल्ली शहर से गायब हुए कि किसी को ढूंढे न मिले ।
बाद में रजनीश और राकेश अस्थाना ने गिले-शिकवे दूर करने के लिये मेरे से बहुत चिपकने की कोशिश की लेकिन बात न बनी । तब उन दोनों ने अपनी जुबानी ये कबूल किया कि शबाना जैसी औरत उन्हें जिन्दगी में दोबारा नहीं मिल सकती थी । यानी कि उसकी जिन्दगी में वो जिस औरत की मौत की कामना करते थे, अब वो उसे आहें भर-भर के याद करते थे ।
ऐसी ही थी शबाना । शबाना । सच में ही शबाना ।
जिसके लालच ने उसकी जान ली ।
काश उसने ब्लैकमेल का खतरनाक खेल न खेला होता ।शबाना



समाप्त
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