Thriller मिशन

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josef
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23 मार्च 2013
फ्लाईट 301
अरब सागर का वायुमंडल
फ्लाईट को अपने निर्धारित पथ से मुड़े हुए एक घंटा हो गया था। प्लेन के पैसेंजर्स परेशान होने लगे थे। कई लोग अपनी सीटों से खड़े हो गए थे और कुछ अब कॉकपिट के पास पहुँच गए थे। उन्हें अब ये ज्ञात हो गया था कि कॉकपिट के अन्दर कोई नहीं जा पा रहा। फ्लाईट अटेंडेंट्स उन्हें समझाने-बुझाने में अब असफल हो रहे थे। जब वे खुद ही इन परिस्थितयों से आशक्त थे तो दूसरों को कब तक समझाते। फिर भी वे प्रयास कर रहे थे।
“सर, कभी-कभी होता है ऐसा। एयर करेंट, चक्रवात जैसी चीज़ों से प्लेन को अपनी दिशा बदलनी पड़ती है। आप लोग प्लीज़ अपनी सीट पर बैठ जाएँ। कुछ ही देर में प्लेन अपनी सही दिशा में उड़ेगा– आप देखिएगा।” हिना बोले जा रही थी।
“मैडम! वो सब तो ठीक है।” वह बिजनसमैन बोला जिसने प्लेन के मुड़ने पर सब से पहले आशंका जताई थी। “पर पायलट्स कोई अनाउंसमेंट क्यों नहीं कर रहे ? आप लोगों से बात क्यों नहीं कर रहे ? इतनी सी बात तो फ्लाईट में तुरंत बता दी जाती है।”
“कभी-कभी कम्युनिकेशन फेल्योर हो जाता है।”
“अरे, तो आप कॉकपिट के अन्दर जाकर क्यों नहीं पूछते ?”
“दरवाजा नहीं खुल रहा-कुछ प्रॉब्लम है।” दूसरी एयरहोस्टेस ने नर्वस भाव से कहा।
“ये तो हद हो गई।” वह एक सहयात्री की तरफ देखते हुए बोला, “सारी प्रॉब्लम्स एक साथ हो रही हैं। अरे ऐसा कहीं होता है ?”
एक दूसरा गंजा आदमी अपनी पतली आवाज़ में बोलने लगा– “मैडम! हमें जानना है चल क्या रहा है। कहीं ये प्लेन हाइजैक तो नहीं किया जा रहा ?”
बस उसके मुंह से ‘हाइजैक’ शब्द निकला नहीं कि लोगों में दहशत की लहर दौड़ गई।
“हाइजैक! ओह माई गॉड!” बिजनस क्लास में एक अधेड़ विदेशी महिला, जो अभी तक इत्मीनान से बैठी मैगज़ीन पढ़ रही थी, उसके मुंह से चीत्कार निकली।
पल भर में ‘हाइजैक’ शब्द जंगल की आग की तरह प्लेन के बिजनस क्लास से इकॉनमी क्लास की अंतिम पंक्ति तक पहुँच गया। यात्री जो अभी तक सिर्फ हैरान-परेशान थे, अब सहम गए थे।
“आप कुछ भी कह रहे हैं।” हिना बोली, “प्लीज़! इस तरह बाकी पैसिंजर्स को डराइये नहीं। आई रिक्वेस्ट यू!”
“सर, आप भी कमाल करते हैं। प्लेन हाइजैक हो रहा होता तो कोई हाईजैकर्स दिखाई तो देते।” स्टीवर्ड ने कहा।
“हमें क्या पता ये प्लान किसका है। पायलट्स का भी हो सकता है।”
“अरे भाईसाब! मुझे तो लगता है ये पूरा स्टाफ मिला हुआ है।” गंजा फिर से अपनी पतली आवाज़ में बोला।
तभी एक वरिष्ठ आदमी उठा और सभी को शांत रहने का इशारा करते हुए बोला, “प्लीज़! आप लोग शांत हो जाइये। ऐसा कभी नहीं होता। आपने कभी देखा है कि एयरप्लेन का स्टाफ प्लेन हाइजैक करे।”
“पर सर जी, कुछ पता भी तो लगे। ऐसे कैसे कोई कुछ बता ही नहीं पा रहा। प्लेन न जाने कहाँ उड़ा जा रहा है।” बिजनसमैन बोला।
इधर सरीना भी अन्य यात्रियों की तरह खौफजदा थी। मोहसिन और फलक सामने लगी स्क्रीन में कार्टून विडिओ देखते हुए हंस रहे थे।
“चुप रहो।” सरीना झुंझलाते हुए बोली।
“जीजी! क्यों डर रही हो।” मोहसिन बोला, “कुछ नहीं हुआ है। प्लेन हवा में उड़ने के लिये ही तो बना है- कभी तो लेफ्ट राईट होगा।”
“पर इतना शोर-शराबा क्यों हो रहा है। कोई कह रहा है कि प्लेन हाइजैक हो गया है।”
वह हंसा- “पर कोई हाईजैकर तो दिख नहीं रहा।”
“या अल्लाह! खैर रखना...” वह आँखें बंद कर के बड़बड़ाने लगी।
“आप नाहक ही परेशान हो रही हैं। मैं देख कर आता हूँ।” वह उठने की कोशिश करते हुए बोला।
“चुपचाप बैठे रहिए।” सरीना ने उसे डांटा।
कॉकपिट के बाहर माहौल बिगड़ता जा रहा था। कई पैसेंजर्स उठ खड़े हुए थे। इकॉनमी सेक्शन से भी कुछ लोग उस तरफ आ गये थे। प्लेन का स्टाफ अब उनको संयमित रख पाने में असफल हो रहा था।
स्टीवर्ड जिसका नाम रोहित था, उसके पसीने छूटने लगे थे कि तभी वह चौंका।
कॉकपिट के दरवाजे के पास लगे स्पीकर से आवाज़ आई। रोहित उसकी तरफ आकर्षित हुआ।
“स्टाफ! स्टाफ! कैप्टन विक्रम दिस साइड!”
“कैप्टन! रोहित दिस साइड! प्लीज़ बोलिए। क्या हो गया था ? हम कब से दरवाजा खलने की कोशिश कर रहे हैं।”
“मैं और अजय भी वो कोशिश कर रहे हैं पर कुछ भी फंक्शन काम नहीं कर रहा। दरअसल...दरसअल... ऐसा लग रहा है पूरा प्लेन किसी और के कंट्रोल में है।”
“ये...ये आप क्या बोल रहे हैं कैप्टन ? ऐसा कैसे हो सकता है ? क्या आप एयर कंट्रोलर से भी संपर्क नहीं कर पा रहे ?”
“कुछ भी काम नहीं कर रहा। तुम प्लीज़...” और अचानक विक्रम की आवाज़ आनी बंद हो गई। स्पीकर पर सन्नाटा छा गया।
“कैप्टन ? कैप्टन ?” रोहित स्पीकर पर हाथ मारते हुए चीखा।
विक्रम की आवाज़ सारे स्टाफ के साथ कुछ पैसेंजर्स को भी सुनाई दी थी।
“ये सब साजिश है।” गंजा व्यक्ति बोला, “ऐसा कैसे हो सकता है ?”
“सर, प्लीज़ ये डेफिनेटली कोई टेक्नीकल प्रॉब्लम है।” हिना बोला, “आई एम श्योर कुछ ही देर में सब कंट्रोल में होगा।”
“अरे मैडम...”
तभी बिजनस क्लास का एक पैसेंजर्स बोला, “आई नो व्हाट इट इज़!”
सब उसकी तरफ मुड़े।
वह अपनी सीट पर आराम से बैठा हुआ था। उसने पोलो शर्ट पहनी हुई थी जो उसके कसरती बदन पर खूब फब रही थी। उसके गेंहुए चेहरे पर फ्रेंच कट दाढ़ी थी और उसकी आँखों पर काले फ्रेम का चश्मा था। वह बोला-
“ये इलेक्ट्रॉनिक हाइजैकिंग हो सकती है। किसी ने प्लेन के सॉफ्टवेयर को हैक कर लिया है.”
“सर, प्लीज़!” जेनी नामक दूसरी एयरहोस्टेस बोली, “इस तरह अफवाहें न फैलाएं। ऐसा पॉसिबल नहीं।”
“बिलकुल पॉसिबल है। मैं एक सॉफ्टवेयर कम्पनी का मलिक हूँ। आई नो स्टफ!”
“आई थिंक ही इज़ राइट।” विदेशी महिला बोली, “आई हर्ड अबाउट इट!”
सबसे ज्यादा बोलने वाला बिजनसमैन जिसका नाम अरुण खुराना था, वह सभी बिजनस क्लास वालों पर बारी-बारी से नज़र डालने लगा। फिर वह आगे बढ़कर उस लड़के के पास पहुँचा जो खिड़की वाली सीट पर बैठा निरंतर अपने लैपटॉप पर लगा हुआ था। उसने सिर पर अपनी जैकेट का हुड डाला हुआ था।
“हे यू!” वह उसकी सीट के पास आकर बोला, “क्या कर रहे हो ?”
लड़के के हाथ की-बोर्ड पर रुक गये। उसने चौंककर उसकी तरफ देखा। लड़के की दाढ़ी मूंछ बढ़ी हुईं थीं। उसकी आँखों में थकान साफ़ दिखाई दे रही थी।
“आखिर तुम कर क्या रहे हो ?” अरुण ने फिर से पूछा।
“काम करा रहा हूँ। डू यू माइंड ?” उसने हाथ फैलाते हुए पूछा।
“प्लेन में इतना अफरा-तफरी मची हुई है। प्लेन शायद हाइजैक हो गया है...एंड यू... ?”
“तो क्या मैं भी खड़ा होकर चीखने-चिल्लाने लगूं ?”
“नॉट नेसेसरी, पर कोई ऐसे माहौल में काम कैसे कर सकता है ?”
तब तक वहाँ वह सॉफ्टवेयर कंपनी का मालिक भी पहुँचा। उसका नाम अब्दुल था।
“इफ यू डोंट माइंड मेट...क्या मैं तुम्हारा लैपटॉप देख सकता हूँ ?” उसने अपना चश्मा एडजस्ट करते हुए पूछा।
“ऑफ कोर्स आई माइंड! ये मेरी कंपनी का लैपटॉप है और मैं एक काँफिडेंशियल कोड पर काम कर रहा हूँ। मैं इसे नहीं दिखा सकता।”
अरुण बोला, “आई रिक्वेस्ट। ये कोई नॉर्मल हालात नहीं है।”
“पर मैं ही क्यों दिखाऊं लैपटॉप ? सबके लैपटॉप बारी-बारी चैक कीजिए।”
“ज़रूर देखेंगे...पर पहले...”
“आपको लग रहा है मैं यहाँ से बैठकर प्लेन हाइजैक कर रहा हूँ ? यू आर आउट ऑफ योर माइंड! यहाँ बिना किसी नेटवर्क के मैं कैसे प्लेन के सिस्टम में घुस सकता हूँ ?”
“पॉसिबल है! अगर पहले से पूरी प्लानिंग के साथ आया जाये।” अब्दुल ने कहा।
“यू डोंट नो एनिथिंग! मैं अपना लैपटॉप नहीं दिखाऊंगा।”
अरुण और अब्दुल उसे घूरने लगे। फिर अचानक अब्दुल उस पर झपट पड़ा। दोनों के बीच लैपटॉप को लेकर छीना-झपटी होने लगी।
दो और पैसिंजर्स अब्दुल को लैपटॉप छीनने में सहायता करने लगे।
फिर वह अब्दुल के हाथों में था।
“व्हाट द...” उसने गाली दी, फिर निश्चिंत स्वर में बोला, “देख लो। इत्मीनान से देखो। अगर कुछ मिले तो मुझे बताना।”
अब्दुल ने लैपटॉप को जांचना शुरू कर दिया।
☐☐☐
josef
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वर्तमान समय
हिमाचल प्रदेश
होटल से चेक आउट करके राज बस स्टॉप पहुँचा वहाँ पर उसे मंडी के लिये बस मिल गई बस द्वारा वह चार घंटे के अंदर मंडी पहुँच गया।
मंडी पहुँचकर उसे ठंड से कुछ राहत महसूस हुई क्योंकि मंडी शिमला की तरह ज्यादा ऊंचाई पर नहीं था। जहां शिमला में इस वक्त कड़ाके की ठंड पड़ रही थी मंडी में मौसम खुशनुमा था। सिर्फ स्वेटर में भी राज का काम चल रहा था। जैकेट की फ़िलहाल जरूरत नहीं पड़ रही थी।
बस स्टॉप पर उतरने के बाद पहले तो राज ने बाथरूम में घुस कर अपना हुलिया बदला। काफी दिनों से उसने शेव नहीं की थी तो उसने अपनी दाढ़ी और मूंछें बढ़ी ही रहने दी। उसके अलावा कुछ और मेकअप करके उसने अपनी शक्ल में काफी बदलाव कर लिया।
फिर एक बजट होटल में चेकइन करने के बाद वह शहर में निकला।
मंडी शहर में काफी चहल-पहल थी। जहां शिमला ज्यादातर टूरिस्ट की आवाजाही से भरा पड़ा था उसके विपरीत मंडी कारोबारी गतिविधियों से ओत-प्रोत था। कारोबार की दृष्टि से यह शहर हिमाचल प्रदेश का मुख्य स्थल था।
आरती की इन्वेस्टिगेशन करने के बारे में राज के दिमाग में एक प्लान था। जैसा कि जय पालीवाल से उसे पता चला था उसका केस देवली स्थित पुलिस थाने में दर्ज था।
वे देवली पुलिस थाने पहुँचा। उसने ड्यूटी ऑफिसर से मिलने की मांग की। वह एक महिला पुलिस थाना था और वहाँ यूँ राज को देख कर कुछ महिला पुलिस कांस्टेबल हैरान थी।
“क्या काम है ?” एक ने राज से पूछा।
“मैं सीक्रेट सर्विस से हूँ।” राज अपना आई कार्ड तेजी से दिखाते हुए बोला। उसे मालूम था सीक्रेट सर्विस नाम सुनते ही पुलिस वालों को अलर्ट हो जाना था। कोई भी उसका आईडी कार्ड ध्यान से देखने की जरूरत नहीं समझता और न ही वह ऐसा मौका देने वाला था क्योंकि उसने आईकार्ड पर लगे फोटो के विपरीत काफी मेकअप किया हुआ था और अपना असली नाम बताना तो वैसे भी सीक्रेट सर्विस वाले के लिये जरूरी नहीं था।
वह थाना इंचार्ज इंस्पेक्टर सुनीता पुजारी से मिला।
“आइए सर... कहिये कैसे आना हुआ ?” वह कुछ नर्वस भाव से बोली। राज को महसूस हुआ कि उसका किसी सीक्रेट सर्विस वाले से पहली बार पाला पड़ रहा था।
“मैं आरती नाम की एक लड़की की मौत की इन्वेस्टिगेशन के सिलसिले में आया हूँ।”
सुनीता सोच में पड़ गई। फिर याद करते हुए बोली, “वो जिसने नदी में कूदकर खुदखुशी कर ली थी ?”
“हाँ, वहीं।”
“अच्छा सर! पर वह तो सीधा साधा खुदकुशी का केस था उसके लिये आप यहाँ आ गए!”
“कुछ बेहद गंभीर मुद्दा जुड़ा हुआ है उस लड़की से, डायरेक्टली नहीं पर किसी और के थ्रू, इसलिये मेरे लिये यह पता करना बहुत जरूरी है कि उस लड़की ने खुदकुशी क्यों की। साथ ही उस लड़की के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी निकालनी है। यह राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला है।”
सुनीता के चेहरे पर नर्वस भाव कुछ और बढ़ गये। इस छोटे से थाने में बैठकर आज से पहले उसने शायद ही कभी इतने गंभीर मुद्दे के बारे में सुना था।
“मैं आशा करता हूँ कि आप मेरी पूरी मदद करेंगी।”
“जी सर! बिल्कुल करेंगे, जो भी हो सकेगा करेंगे। मैं आपको उसकी फाइल दिखाती हूँ।” कहकर उसने कॉन्स्टेबल से आरती की फाइल मंगवाई।
“मैं कुछ समय यह फाइल पढ़ना चाहता हूँ।” राज ने कहा।
“जी जरूर! अरे सर के लिये चाय ले आओ।”
“थैंक यू! इस केस की इन्वेस्टिगेशन आपने ही की थी ?”
“बिल्कुल सर। यह लड़की कॉलेज के बाद काफी समय से दिल्ली में नौकरी कर रही थी अभी कुछ ही दिन पहले घर वापस आई थी परिवार वालों का कहना था कि काफी दुखी थी, नौकरी छोड़ कर आ गई थी, पर उसका कारण उसने किसी को नहीं बताया बस यही कहा कि अब नौकरी अच्छी नहीं लग रही थी। घर वालों ने भी कहा कि ठीक है लड़की का मन नौकरी से भर गया तो अब उसकी शादी करा दी जाये। हालांकि उन्होंने लड़की पर कोई प्रेशर नहीं डाला था पर फिर इस ने खुदकुशी कर ली।”
“यानि खुदकुशी की वजह तो पता ही नहीं चली ?”
“जी! नहीं पता चली! परिवार वालों को तो इससे ज्यादा कुछ पता नहीं था। पोस्टमार्टम की रिपोर्ट्स से भी लड़की के साथ कुछ गलत हुआ हो या फिर वह प्रेग्नेंट रही हो ऐसी कोई भी जानकारी पता नहीं चली।”
“पर अगर लड़की दिल्ली में ही नौकरी कर रही थी। वहीं पर रह रही थी तो यह सब जानकारी तो वहीं पर पता चल सकती थी।”
“जी कह तो आप सही रहे हैं...”
“पर इस दिशा में आपने कोई कोशिश नहीं की ?”
वह निरुत्तर हो गई।
“चलिए कोई बात नहीं। वह मैं पता करवा लूंगा। इस रिपोर्ट में क्या लिखा है ? यह कहां नौकरी करती थी ?”
वह रिपोर्ट में झाँकने लगी।
“कोई बात नहीं मैं देख लूंगा। इस रिपोर्ट की एक फोटो कॉपी निकलवा दीजिए और इसके पैरेंट्स का एड्रेस मुझे दे दीजिए।”
“जी ज़रूर!”
पुलिस थाने से राज आरती के परिवार वालों से मिलने पहुँचा।
वह एक मध्यम दर्जे का घर था। आरती के माता-पिता काफी बूढ़े हो चले थे। कुछ झिझक के साथ उन्होंने राज का स्वागत किया।
“आपके परिवार में और कौन-कौन है ?” कुर्सी पर बैठते हुए राज ने पूछा।
“हम दो हैं और हमारा बड़ा बेटा है - वह चेन्नई में काम करता है।”
“अच्छा आरती से कितना बड़ा है ?”
“चार साल बड़ा है। अपनी फैमिली के साथ वहीं सेटल है। अभी तीन दिन पहले ही वापस गया। आरती ने जो कुछ किया उससे हम सभी अभी तक शॉक्ड हैं। हमें विश्वास नहीं हो रहा कि वह इस तरह हमें छोड़ कर चली गई। बहुत होनहार लड़की थी हमारी। कम बोलती थी पर ऐसा तो हमें कभी नहीं लगा कि उसे कोई बहुत बड़ी दिक्कत है।”
“परिवार में वह आप में से किसके ज्यादा करीब थी ?”
“लाड़ली तो वह हम सब की थी। पर वह बहुत शर्मीली थी। बचपन से ही अपने मन की बातें खुद तक ही सीमित रखती थी।” इस बार आरती की मां ने कहा।
“दिल्ली में काम क्या करती थी ?”
“उसने कंप्यूटर का कोर्स किया था उसके बाद से दिल्ली में ही पाँच साल से नौकरी कर रही थी।”
“घर आती जाती थी न ? आप लोग भी उससे मिलने जाते थे ?”
“हम तो बस शुरू में गए थे। बाद में तो वही आती थी। अब इस उम्र में हम दोनों से कहीं ज्यादा आना जाना होता भी नहीं।”
राज ने सहमति में सिर हिलाया।
“उसकी कंपनी का नाम बताइए उससे संबंधित कोई डॉक्यूमेंट आपके पास हो तो दिखाइए।”
“अपने सारे डॉक्यूमेंट तो वह साथ में ही रखती थी। यहाँ उसका कमरा है। पुलिस ने वह चेक किया था। कुछ खास तो नहीं मिला आप चाहें तो देख सकते हैं।”
राज ने आरती का कमरा देखा।
“हमने उसके सामान के साथ ज्यादा छेड़खानी नहीं की है। वैसे भी उसका यहाँ पर कोई खास सामान नहीं है।”
“और वह सामान जो दिल्ली में है ?”
“हाँ! वो उसकी दोस्त जब घर आयेगी तो साथ लेकर आएगी। वह मंडी की ही रहने वाली है।”
“उसका नाम और नंबर आपके पास हो तो मुझे दे दीजिए।”
“पल्लवी नाम है उसका। यह लो नंबर लिख लो।” कह कर उन्होंने अपने मोबाइल में नंबर ढूंढा और फिर राज को बताया।
कुछ देर और बात करने के बाद राज ने उनसे विदा ली और फिर वहाँ से सीधे अपने होटल आ गया।
होटल आते-आते आठ बज गया था।
रात हो गई थी और अब वहाँ भी ठंड बढ़ गई थी। उसने खाने का ऑर्डर दिया और खाना कमरे पर ही भेजने का निर्देश दे दिया। कमरे में पहुँचते ही उसने आरती की फाइल का अध्ययन करना शुरू किया।
पुलिस के मुताबिक ये एक सीधा साधा केस था। उस दिन आरती सुबह-सुबह ही गायब हो गई थी। बिना बताए घर से कहीं निकलना उसकी आदत नहीं थी। फिर चार घंटे बीतने के बाद घर वालों ने पड़ोसियों से पूछा और फिर किसी ने पुलिस को बताने की सलाह दी। पुलिस ने जब पूछताछ शुरू की तो पता चला वह सुबह अकेले ही ब्यास नदी के किनारे गई थी। नदी के पास किसी ने इस बात की पुष्टि की कि वह लड़की नदी के पास चलती हुई दिखाई दी थी।
पुलिस को शक हुआ कि शायद वह नदी में गिर गई है इसलिये नदी में खोजबीन चालू की गई और फिर दो दिन बाद उसकी लाश नदी प्रवाह में काफी दूर एक जगह पत्थरों में अटकी हुई पाई गई।
पोस्टमार्टम की रिपोर्ट के मुताबिक उसके शरीर पर किसी ऐसी चोट का निशान नहीं था जिससे क़त्ल का शक बनता। कुछ चोटें थी जो कि शर्तिया नदी के पत्थरों से लगी थीं। उसके अलावा सब कुछ ठीक था। फेफड़ों में पानी भरने की वजह से मौत हुई थी- यही पोस्टमार्टम का निष्कर्ष था।
बालकनी में आकर राज ने सिगरेट सुलगा ली और फिर सोच में डूब गया।
इतनी दूर जिसको ढूंढते हुए आया, जिससे उसे आहूजा की जानकारी मिलने की उम्मीद थी, वह ही अब इस दुनिया मे नहीं थी।
अब आगे कैसे बढ़ा जाये ?
फिलहाल उसके पास एक जरिया था वह थी उसकी दोस्त पल्लवी जिसका नंबर उसे हासिल था। अगर वह उसकी करीबी दोस्त थी तो जाहिर है उसकी पर्सनल लाइफ की जानकारी भी रखती होगी। यह सोच कर राज नीचे लैंडलाइन फोन इस्तेमाल करने के लिये पहुँचा।
पहली बार रिंग जाती रही किसी ने फोन नहीं उठाया। अनजान नंबर के साथ आजकल ऐसा ही होता है। दूसरी बार जब उसने फोन मिलाया तब दूसरी तरफ से एक लड़की की आवाज आई।
“हेलो!”
“आप पल्लवी बोल रही हैं ?”
“हां जी! आप कौन ?”
“मैं एक सीक्रेट सर्विस ऑफीसर बोल रहा हूँ। आपकी दोस्त आरती की मौत की इन्वेस्टिगेशन चल रही है। उसी सिलसिले में आपसे बात करनी थी।”
“ब...बोलिए - मैं क्या मदद कर सकती हूँ ?” उसके स्वर में कुछ घबराहट उभरी।
“आप मंडी कब आने वाली हैं ? मैं सोच रहा था अगर आप इधर आ रही हैं तो बैठकर आराम से बातचीत हो जायेगी।”
“जी अभी तो कुछ दिन पहले ही आकर गई हूँ। अब दोबारा तो अगले महीने ही आना होगा।”
“अच्छा कोई बात नहीं। फिलहाल मैं आप से फोन पर ही बात करके काम चला लूंगा। आप उसी की कंपनी में काम करती हैं ?”
“नहीं जी! मैं दूसरी जगह काम करती हूँ।”
“फिर आरती से दोस्ती कैसे हुई ?”
“दोस्ती तो मंडी में हुई थी। हम एक ही कॉलेज में थे। दिल्ली में शुरू में हम साथ रहते थे फिर मेरी शादी हो गई और मैं उसी सोसाइटी की दूसरी बिल्डिंग के एक फ़्लैट में अपने हसबैंड के साथ शिफ्ट हो गई।”
“अच्छा! यानि आपके फ़्लैट आस-पास ही हैं ?”
“हाँ!”
“फिर तो रोजाना मुलाकात हो जाती होगी।”
“रोज तो नहीं पर अक्सर...”
“तो आरती फ़िलहाल अकेले रहती थी ?”
“हाँ!”
“ओके! मुझे आरती की पर्सनल लाइफ के बारे में जानना है। क्योंकि यहाँ पुलिस से जो जानकारी मुझे मिली है उससे उसकी सुसाइड की कोई स्पष्ट वजह समझ में नहीं आई है।”
“जी! यह तो मुझे भी नहीं पता। जहाँ तक मुझे पता है उसकी यहाँ नौकरी ठीक-ठाक चल रही थी। फिर अचानक ही उसने नौकरी छोड़ दी और कहा कि अब घर जा रही है। मैंने उससे पूछा हुआ क्या, तो उसने बस यही कहा कि बस अब मन नहीं लग रहा है यहाँ। घर जाऊंगी।”
“अच्छा! क्या उसका कोई बॉयफ्रेंड था ?”
वह चुप हो गई।
“देखिए मुझसे कोई बात मत छुपाइये। जवान लड़की ने खुदकुशी की है इसलिये यह सब चीजें मेरे लिये जानना बहुत जरूरी है। लड़कियां तो अक्सर अपनी दोस्त से यह सब बातें शेयर करती हैं। आपको जो पता है मुझे बता दीजिए आपको कोई दिक्कत नहीं होगी।”
“देखिए आरती बहुत कम ही बोलती थी। मैं उसकी बचपन से दोस्त जरूर थी पर वह हर चीज मेरे साथ शेयर नहीं करती थी। मेरे ख्याल से उसका बॉयफ्रेंड जरूर था। क्योंकि दिल्ली में जब उससे मिलती थी तो उसे अक्सर किसी के फोन या मैसेज आते थे और उसके हाव-भाव से ये अंदाजा तो मैंने लगा लिया था कि उसका किसी के साथ अफेयर चल रहा है। एक बार ये ज़रूर बोली थी कि उसका कोई फ्रेंड है लंडन में। मैं हमेशा बोलती थी कि वह जरूर तेरा बॉयफ्रेंड है तो वह हंसकर टाल देती थी और साफ मना करती थी।”
“आपने फोटो तो देखा होगा उसका ?”
“हां! एक बार दूर से दिख गया था। उसने दिखाया नहीं था। उसका तो यही कहना था कि उसके बहुत से ऐसे फ्रेंड है। शायद वह जिस कंपनी में काम करती थी वह उनका क्लाइंट था। इसलिये उसका यही कहना था कि प्रोफेशनल टाइप की दोस्ती है। तो मैंने भी फिर कभी ज्यादा जोर नहीं डाला।”
“ओके! आरती का ईमेल आईडी तो आपके पास होगा ? वह मुझे बता दीजिए।”
पल्लवी ने बताया। राज ने उसे नोट कर लिया और फिर बोला, “जरूरत पड़ने पर मैं आपको दोबारा फोन करूंगा।”
“जी जरूर!” राज ने फोन काटा और वापस अपने कमरे में आ गया। खाना आ गया था। खाना खाते हुए वह अब यही सोचने लगा कि आरती के ईमेल आईडी और फोन नंबर से जानकारी किस तरह निकलवाई जाये। सीक्रेट सर्विस के ऑफिस में बैठकर यह सब काम करवाना चुटकियों का खेल था पर एक भगौड़े जासूस को ये सारी सुविधाएँ कहाँ हासिल होती हैं।
खाना खाने के बाद वह कमरे में ही टहलने लगा। तभी दरवाजे पर दस्तक हुई।
राज को लगा बैरा बर्तन लेने और बिल पर साइन लेने के लिये आया होगा। उसने तुरंत दरवाजा खोल दिया।
दरवाजा खुलते ही उसने अपने सामने एक नकाबपोश को खड़ा पाया जिसके हाथों में एक छोटा सा पिस्टल मौजूद था। नकाबपोश अंदर आ गया उसका पूरा चेहरा काले नकाब से ढका हुआ था, सिर्फ आंखें चमक रही थी, जिनमें खतरनाक भाव थे। राज के हाथ स्वतः ही ऊपर उठ गये और वह पीछे हटता चला गया।
राज ने नकाबपोश के पीछे झांककर चौंकने का अभिनय किया पर नकाबपोश पर इसका कोई असर नहीं हुआ। उसने दरवाजा अंदर से बंद कर लिया और फिर अचानक ही पिस्टल जेब में रखा और हाथ फैलाकर कराटे की मुद्रा में आ गया। राज को आश्चर्य हुआ इस तरह का अक्सर फिल्मों में ही देखा जाता था। पिस्टल होते हुए भी वह उसे मारने की जगह लड़ने का मौका दे रहा था। इसका मतलब यह कोई ऐसा व्यक्ति था जो उससे नफरत करता था और मारने से पहले उसकी पिटाई करना चाहता था या फिर कोई ऐसा था जो उसकी जान लेने का जोखिम नहीं लेना चाहता था। वह जो भी था उसे पहचानता था।
ऐसा कौन है जो यहाँ मंडी में मेकअप के बावजूद मुझे पहचान गया।
अभी राज सोच ही रहा था कि नकाबपोश ने तेजी से राज के ऊपर हाथ घुमाया। राज ने उसे अपने हाथों से रोक लिया और जवाब में मार्शल आर्ट का रंग दिखाते हुए पैर घुमाया जो नकाबपोश के मुंह पर जाकर लगा और वे पीछे जा गिरा। वह आश्चर्य से उसे देखते हुए उठा। शायद उसे उम्मीद नहीं थी कि राज इस तरह से लड़ने का हुनर भी जानता होगा।
“क्या बात है भाई ? मार्शल आर्ट सीखने आये हो क्या ? देखो ट्रेनिंग देने की फीस लगती है। फ्री में तो यह काम...”
इस बार नकाबपोश राज पर हाथ पैरों से कराटे के अंधाधुंध वार करने लगा। राज कुछ को डिफेंड कर पाया कुछ उसे झेलने पड़े। वाकई नकाबपोश प्रोफेशनल था पर राज भी अपने मार्शल आर्ट का कौशल दिखाते हुए उसके साथ जूझ रहा था।
जब नकाबपोश को ये अहसास हो गया कि राज पर काबू पाना मुश्किल है तो उसने फिर से अपनी जेब से पिस्टल निकाली और राज पर तान दी। तभी दरवाजे पर जोर-जोर से दस्तक होने लगी। इसमें कोई आश्चर्य नहीं था कि जिस तरह उन दोनों ने कमरे में उठा-पटक मचा रखी थी उसकी आवाज होटल में बाकी लोगों तक पहुंची न हो।
पल भर के लिये नकाबपोश का ध्यान हटा और राज ने उसका पूरा फायदा उठाते हुए उसके पैरों की तरफ डाइव लगा दी।
वह पिस्टल नहीं चला पाया और औंधे मुंह सामने की तरफ गिरा। पर गिरते ही इस बार वह फुर्ती से उठा और तेजी से बालकनी की तरह दौड़ पड़ा। देखते ही देखते वह बालकनी से नीचे कूद गया।
राज ने आश्चर्य से उस तरफ देखा और उठकर बालकनी में पहुँचा। वह कमरा तीसरी मंजिल पर था।
नकाबपोश बालकनी से लटक कर नीचे ग्राउंड फ्लोर पर बने टॉयलेट की छत पर कूद कर और फिर वहाँ से नीचे उतरकर होटल के बाहर पहुँच चुका था। बाहर निकलते ही वह तेजी से भागने लगा। राज ने नीचे की तरफ देखा पर उसे लगा उसे ऐसा स्टंट भारी पड़ सकता है।
न जाने किस मिट्टी का बना था।
राज वापस कमरे में आया और उसने दरवाजा खोला। कमरे के बाहर होटल का मैनेजर, एक वेटर व दो-तीन लोग और थे। सब उससे कुशल मंगल पूछने लगे। राज ने बताया कि न जाने कौन था जिस ने हमला किया। मैनेजर ने उसे पुलिस को रिपोर्ट करने की सलाह दी। पर राज ने इंकार कर दिया। राज ने कहा वह शायद उसका लैपटॉप आदि चोरी करने के इरादे से आया था। उसने यह बात नहीं बताई कि उसके पास हथियार भी मौजूद था।
उसके बाद सब अपने-अपने काम पर चले गये और राज ने कमरा अंदर से बंद कर लिया। उसने बालकनी अंदर से बंद कर ली और फिर सोचने लगा।
उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई
हमले से इस बात की पुष्टि हो गई है कि मैं सही ट्रैक पर हूँ । मंडी आते ही मुझ पर हमला हुआ । आरती के घर जाने और उसके केस के बारे में जानकारी निकालते ही हमला हुआ । मतलब उसकी मौत में ज़रूर कोई ऐसा रहस्य छिपा है जो यह लोग उजागर नहीं होना देना चाहते। यानि जो भी हो आरती की मौत खुदकुशी नहीं थी।
☐☐☐
josef
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Re: Thriller मिशन

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दूसरे दिन राज उठा और फिर नाश्ता करते हुए सोच में डूब गया। उसके दिमाग में सिर्फ आरती घूम रही थी। अचानक ही उसके दिमाग में एक विचार कौंधा और वह भागकर नीचे पहुँचा और फिर उसने लैंडलाइन से पल्लवी का नंबर लगाया। पल्लवी ने कुछ ही देर में फोन उठाया।
राज व्यग्रता के साथ बोला, “सुबह-सुबह ज्यादा समय नहीं लूंगा। सिर्फ एक सवाल पूछना था।”
“ज़रूर पूछिए सर।”
“क्या तुम्हें मालूम है आरती दिल्ली से किस तारीख को और कितने बजे निकली थी ?”
पल्लवी कुछ याद करते हुए बोली, “हाँ उसने बताया था छह तारीख को सुबह निकल रही है।”
“कितने बजे ? शायद बताया होगा... ?” राज ने आशापूर्ण लहजे में पूछा।
“नहीं, समय तो नहीं बताया था पर आठ बजे की बस से ही निकली होगी... हमेशा की तरह।”
“ओके और दिल्ली से मंडी आने में कितना समय लगता है ?”
“करीब नौ घंटे।”
“यानि अगर सुबह उसने साढ़े आठ की बस भी ली होगी तो मंडी पहुँचते-पहुँचते शाम के पाँच-छह बज गये होंगे ?”
“हाँ! आप सही कह रहे हैं। मैं भी अक्सर सुबह साढ़े आठ की बस ही लेती हूँ, वह शाम छह बजे तक पहुँच ही जाती है।”
“ठीक है! थैंक यू! बाय बाय।”
फिर राज हाथ मसलते हुए उठा और चल दिया। पैदल चलते हुए ही वह कुछ मिनटों में आरती के घर पहुँचा। आरती के मां-बाप घर पर ही मिले। वहाँ पहुँचते ही उसने सीधे यह सवाल पूछा- “आरती दिल्ली से किस दिन और कितने बजे घर आई थी ?”
“क्या हो गया ?” उसके पिता ने चौंकते हुए पूछा।
“प्लीज़ बताइए। यह जानना मेरे लिये बहुत जरूरी है।”
आरती का पिता उलझन में पड़ गया। उसने अपनी बीवी की तरफ देखा। वह मोबाइल में देखने लगी, शायद मैसेज देख रही थी।
“वह सात तारीख को आई थी। यह देखिए सात को सुबह-सुबह उसका मैसेज आया था, कि मैं दिल्ली से निकल गई हूँ।”
राज की आंखें चमक उठी।
“मुझे इसी बात का अंदेशा था।”
“क्यों ? क्या हुआ ? इससे क्या पता चला ?” उसके पिता ने उलझन भरे भाव के साथ पूछा।
“असलियत में आरती दिल्ली से छह तारीख को चली थी, सात को नहीं।”
“ऐसा कैसे हो सकता है ?” आरती की मां ने पूछा- “अगर वह छह को चली होती तो छह को ही मंडी पहुँच जाती और घर आ जाती। पर वह तो सात की शाम को आई थी। इसका मतलब सात की सुबह ही दिल्ली से चली होगी...”
“आपका कहना सही है, अगर वह सात को चली होती तो। वह छह तारीख को कहां गई, अगर ये पता चल जाये तो काफी रहस्य खुल सकते हैं।”
दोनों राज को इस तरह देख रहे थे जैसे उसके सिर पर सींग उग आए हों।
“अब मैं चलता हूँ। आपसे बाद में मिलूँगा।”
“अरे मगर...” आरती के पिता बोलते ही रह गए पर राज अपनी धुन में तेजी से वहाँ से निकल गया।
फिर उसने एक पब्लिक फोन पकड़ा और किसी को फोन किया। दूसरी तरफ से आवाज आते ही वह बोला-
“तेजश्री! मैं राज बोल रहा हूँ। तुम्हारे लिये एक काम है जो तुम्हें मुझे आज की आज ही करके देना है।”
“पांय लागू राज सर! आप तो सर्वव्यापक हैं आप सर्वशक्तिमान हैं। आप हुकुम कीजिए।” तेजश्री बोली। वह एक आईटी प्रोफेशनल थी जो कि अक्सर सीक्रेट सर्विस के काम आती थी।
राज तुरंत बोला, “तुम्हें एक ईमेल आईडी दे रहा हूँ। कैसे भी करके तुम्हें उसे हैक करना है और हैक करके मुझे उसका एक्सेस देना है।”
“ राज सर! यह तो एक मामूली-सा काम है। आप तो जानते ही हैं मैं कितनी टैलेंटेड हूँ। कोई बड़ा काम दिया कीजिए। तभी मजा आएगा।”
“तुम यह काम तो करो। बड़े काम भी दूंगा।”
“देंगे न पक्का ?”
“हां पक्का।”
“सीक्रेट सर्विस में परमानेंट नौकरी भी दिलवाएंगे न ?”
“अरे यार...” राज बड़बड़ाया – “आगे कभी कोई ओपनिंग निकली तो सबसे पहले तेरा ही नाम दूंगा।”
“मुझे आप पर पूरा भरोसा है, राज सर। मुझे देश के लिये कुछ करना है। ये प्राइवेट नौकरी में कुछ नहीं रखा। अंग्रेजों की गुलामी है ये बस। आई रिस्पेक्ट यू। यू वर्क फॉर अवर कंट्री! आई एम प्राउड ऑफ यू! आप...”
“अच्छा-अच्छा! ठीक है! अब रख रहा हूँ।”
“जी! मैं हैक करते हु आपको पासवर्ड मैसेज करती हूँ।”
“नहीं! मैसेज नहीं करना। मेरे फोन में कुछ प्रॉब्लम है. मैं एक ईमेल देता हूँ- नोट कर...हाँ! इस पर भेजना।”
“ओके! पांय लागू राज सर!”
राज ने फोन काट दिया।
उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई। काफी दिनों बाद उसने कुछ हल्का महसूस किया था।
लगता है सही दिशा में बढ़ रहा हूँ। एक बार ईमेल अकाउंट हाथ में आ जाये, काफी कुछ पता चल सकता है।
वहाँ से राज सरकारी अस्पताल पहुँचा, जहां पर आरती की लाश का पोस्टमार्टम हुआ था। वहाँ भी राज ने उसी तरह से फटाफट अपना आईडी दिखाया और डॉक्टर से भेंट की।
वह एक नौजवान डॉक्टर था, जिसका नाम मनीष खुराना था। राज उसके साथ कैफेटेरिया में चाय पर बैठा।
“तो डॉक्टर मनीष!” राज बोला, “मैंने पुलिस की रिपोर्ट में अटैच्ड पोस्टमार्टम की रिपोर्ट देखी थी। फिर भी कुछ अनसुलझे सवाल थे इसलिये मुझे लगा आपसे मिलकर शायद उनके जवाब मिल सकें।”
“जी! मैं जवाब देने की पूरी कोशिश करूंगा।” मनीष बोला।
“वेरी गुड! सबसे पहले तो मैं यह जानना चाहता हूँ कि आपने आरती की शिनाख्त कैसे की ?”
“यह आप कैसी बात कर रहे हैं ? शिनाख्त करना तो पुलिस का काम होता है। मैं तो डॉक्टर हूँ। मेरे पास तो डेड बॉडी आ गई और मैंने पोस्टमार्टम किया।”
“हां! मैं अच्छी तरह से जानता हूँ आपने यही किया होगा पर पुलिस ने रिपोर्ट में लिखा था कि लाश दो दिन तक पानी में पड़े रहने की वजह से बुरी तरह से फूल गई थी और लड़की का चेहरा पहचानना मुश्किल था। ऐसे में अक्सर मेडिकल साइंस की मदद से डेड बॉडी की पहचान की जाती है। मैं बस यह जानना चाहता हूँ - क्या आपके द्वारा ऐसी कोई कोशिश की गई थी ?”
“जी नहीं! मुझसे जितना कहा गया मैंने वही किया। मैंने सिर्फ पोस्टमार्टम किया था।”
“चलिए बहुत अच्छा! यह बात साफ हो गई। दूसरी बात यह जानना चाहता था कि उसकी मौत का सही समय क्या था ?”
“जी ?” मनीष ने आँखें फैलाई।
“अक्सर पोस्टमार्टम में मौत का वक्त भी बताया जाता है न ?”
मनीष बगले झांकने लगा।
“दरअसल उसकी तो जरूरत समझी नहीं गई। डूब कर मरी थी। अब कितने बजे मरी थी यह बताना तो बहुत मुश्किल होता है...”
“फिर भी एक टाइम रेंज तो दी ही जाती है ?”
“जी मुझे माफ करिए... पर किसी ने इतनी डिटेल नहीं पूछी थी। शायद जरूरत नहीं समझी गई।”
“ओह!” राज निराशाजनक स्वर में बोला, “सच कहूँगा - यहाँ की पुलिस प्रणाली देख कर काफी दुःख हुआ है।”
“मैं तो इस काम में नया हूँ। यहाँ कोई एक्सपीरियंस डॉक्टर है नहीं। जो पुराने हैं भी वह यह काम करना नहीं चाहते...”
“कोई बात नहीं। मैं समझ सकता हूँ। फिर भी अब अगर आपको सोचना पड़े तो आपको क्या लगता है ? लाश पानी में कितने समय से पड़ी रही होगी ?”
“जी अब उसमें क्या सोचना ? लड़की दो दिन से गायब थी...”
“वह भूल जाओ।” इस बार राज ने सख्ती के साथ उसकी बात काटी – “बस ये सोचो कि लाश मिली है। अब यह बताओ कि उसका मुआयना देखकर क्या लगा था कितने दिनों से पड़ी थी पानी में ?”
मनीष असमंजस में पड़ गया, विचार करने लगा।
“देखिए पुख्ता तौर पर कुछ भी नहीं कहा जा सकता। पर लाश अच्छी-खासी फूली हुई थी, जैसे कि कई-कई दिन तक पानी में पड़ी रहने के बाद हो जाती है।”
“यानि दो दिन से काफी ज्यादा ? राइट ?”
“शायद! मैं सिर्फ अनुमान ही लगा सकता हूँ। डूबी हुई लाश देखने का ज्यादा अनुभव नहीं है मेरे पास।”
“कोई बात नहीं। मेरे पास है वह अनुभव। तुम हाथ से दिखाओ–कितनी फूली थी। कितना बड़ा चेहरा था, उसका ?”
मनीष ने उसे अजीब नज़र से देखा फिर अगल-बगल देखते हुए हाथ फैलाये, पहले कुछ ज्यादा, फिर कुछ सोचते हुए कम किया, फिर एक नाप पर रुकते हुए बोला, “इतनी होगी ।”
राज ध्यान से देखते हुए बोला, “अच्छा ठीक है! यह बात बहुत सही बताई! मजा आ गया।”
मनीष ने राज को इस तरह से देखा जैसे उसे हैरानी हुई हो कि किस बात पर राज को मजा आ गया।
मनीष से विदा लेकर राज शहर में निकला और यूं ही घूमने लगा।
शाम के वक्त जब राज अपने होटल में आराम कर रहा था तब उसे तेजश्री का ईमेल आया। उसने ईमेल में ही लिखा था – राज सर! यह लीजिए -आपका पासवर्ड- .......
वह उठ कर बैठ गया और फिर उसने अपने फोन पर जीमेल खोल कर आरती के ईमेल आईडी को तेजश्री के दिये पासवर्ड से लॉगइन किया।
लॉगइन सफल रहा। राज की आंखें चमक उठी। वह उसकी ईमेल देखने लगा - अधिकतर प्रोमोशनल टाइप की मेल्स दिखीं। फिर उसे बैंक स्टेटमेंट दिखे और बस टिकट के ईमेल भी दिखे।
वाह! यही तो चाहिये था । अगर ऑनलाइन टिकट बुक न किया होता तो मुश्किल आती ।
उसने टिकट का ईमेल खोला।
तो ये था किस्सा!
छह तारीख का जो टिकट उस ईमेल में था, वह दिल्ली से धर्मशाला का था।
josef
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Re: Thriller मिशन

Post by josef »

राज मुस्कुराया।
तो ये बात है - आरती जी पहले गई थी दिल्ली से धर्मशाला और मंडी पहुंची वह सात की शाम को यानी असल में वह धर्मशाला छह की शाम को पहुँच गई थी। वहाँ उसने छह की रात गुजारी और सात की सुबह भी और दोपहर करीब मंडी के लिये निकली होगी। अब आगे सवाल है कि आहूजा की मौत से उचटने की वजह से ही वह नौकरी वगैरह छोड़कर दिल्ली से रुखसत हुई पर घर जाने की जगह धर्मशाला जाने का क्या मतलब है ? क्या धर्मशाला से आहूजा का कुछ कनेक्शन है ?
अब क्या किया जाये ? धर्मशाला जाऊं ? पर धर्मशाला जा कर करूंगा क्या ? सिर्फ इतना ही पता चला है कि यह लड़की छह तारीख की शाम को धर्मशाला पहुंची थी। उसके बाद कहां गई उसके सिरे कहां से मिलेंगे ? कैसे मिलेंगे ?
सोचते हुए राज ने बालकनी में पहुँचकर सिगरेट सुलगा ली। अचानक उसे नकाबपोश की याद आई। वह चारों तरफ देखने लगा।
काश कि वह नकाबपोश ही दुबारा हमला कर दे। तो उसे दबोच कर कुछ पता किया जाये।
राज ने लंबा कश लिया और ढेर सारा धुआं छोड़ दिया।
☐☐☐

24 मार्च 2013, रात्रि 1 बजे
फ्लाईट 301
अब्दुल ने उस लड़के का लैपटॉप वापस कर दिया था। उसे उसमे ऐसी कोई संदिग्ध बात दिखाई न दी जिससे ऐसा लगे कि वह प्लेन के सॉफ्टवेयर सिस्टम को हैक कर रहा हो।
“मैंने पहले ही कहा था।” वह आँखें तरेरकर बोला। लैपटॉप वापस मिलते ही वह एक बार फिर उस पर काम करने के लिये बैठ गया।
“कमाल है!” अरुण उसे देखकर बुदबुदाया। “कोई इतना निश्चिंत कैसे हो सकता है ? मिस्टर...”
“अब्दुल!”
“मिस्टर अब्दुल! प्लेन और किस तरह हाइजैक हो सकता है ?”
“सबसे ज्यादा कन्विनियेंट तो पायलेट्स के लिये ही है।”
“वो तो एक सम्भावना है ही, पर जैसा यू सेड... इलेक्ट्रॉनिक हाइजैकिंग का और क्या तरीका हो सकता है ?”
“प्लेन बनाने वाली कंपनी के अंदर ही किसी ने सॉफ्टवेयर को मेनिपुलेट किया हो सकता है।”
“लेकिन फिर उसे कंट्रोल कैसे किया जा रहा है ?”
“बहुत आसान है।”
तभी कॉकपिट की तरफ से चीखने की आवाज़ ने उन्हें आकर्षित किया। उस तरफ स्टीवर्ड रोहित और पतली आवाज़ वाले गंजे के बीच हाथापाई होने लगी थी।
“ये तुम लोगों कि साजिश है... तुम सब मिले हो।” वह चीख रहा था।
लोगों ने बीच-बचाव करके दोनों को अलग किया।
“प्लीज़! आप लोग समझने की कोशिश क्यों नहीं करते ?” हिना चिल्लाने लगी, “हम भी आप ही लोगों की तरह फंसे हैं।”
गंजे को जबरदस्ती एक सीट पर बैठा दिया गया।
“भाईसाब! आराम से...लड़ाई-झगड़े से क्या फायदा ?” उसके पास बैठा पैसिंजर बोला।
“मुझे क्या बोल रहे हैं ? ये लोग ही प्लेन उड़ा रहे हैं और इन्हें ही नहीं पता प्लेन कहाँ जा रहा है। कब से प्लेन उड़ रहा है! अब तक तो कतर क्या लंडन पहुँच जाते। ये इन्हीं लोगों की साजिश है। आप देखना अभी ये कहीं लैंड होगा और उसके बाद ये भारत सरकार से पैसों की मांग करेंगे।”
“चुप रहो, अगर और बकवास की तो...” रोहित उसकी तरफ लपका, पर बाकि लोगों ने उसे रोक लिया।
“क्या करेगा ? मारेगा मुझे ? तुम सब पर केस करूँगा मैं...”
“सर! प्लीज़!” अरुण उसके पास पहुँचा। “अभी तो हमें ये भी नहीं पता कि ये प्लेन ठीक-ठाक लैंड होने वाला है भी कि नहीं। वी शुड बी यूनाइटेड। हमें मिलकर इस मुसीबत से बाहर निकलना होगा।”
“प्लेन काफी देर से एक ही दिशा में उड़ रहा है।” अब्दुल बोला, “जिस तरह का डाईवर्ज़न इसने लिया था इसकी दिशा साउथ की तरफ होगी। रात के एक बज गये हैं अब तक तो ये श्रीलंका के आस-पास कहीं होगा।”
“राइट! सोचने वाली बात है- जिसने भी प्लेन हाइजैक किया है इसको कहाँ लेकर जा रहा है ?”
“शायद मॉरिशियस!” कोई बोला।
“श्रीलंका ही जा रहा होगा, वहाँ LTTE है।”
“LTTE इज़ डेड!”
“सब चल रहा है...उनका लीडर ही मरा है, ऑर्गेनाईजेशन इज़ स्टिल देयर।”
“इन्डियन ओशन में कई आइलैंड हैं।” एक वरिष्ठ बोला।
“पर हर आइलैंड में इतना बड़ा प्लेन लैंड करने के लिये एयरस्ट्रिप भी तो होनी चाहिये।” अब्दुल बोला।
“उनमे से कुछ ब्रिटिश टेरिटरी हैं- वहाँ ऐसी एयरस्ट्रिप मिलेंगी।”
“ब्रिटिश क्यों करेंगे...”
अचानक अरुण बोला, “अगर प्लेन हाइजैक फिरौती की नीयत से किया है तो लैंडिंग के बारे में ज़रूर सोचा गया होगा।”
“और अगर ये टेररिज्म के लिये किया गया हो तो ?” अब्दुल शून्य में घूरते हुए गंभीर स्वर में बोला, “फिर तो एयर स्ट्रिप हाईजैकर्स के लिये कोई इशु नहीं होगा। वे इसे इंडियन ओशन में कहीं भी क्रेश कर सकते हैं।”
उसकी इस बात से सभी पैसिंजर्स के बीच भय की लहर दौड़ गई। सभी निःशब्द थे।
☐☐☐
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