Thriller मिशन

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josef
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Re: Thriller मिशन

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वर्तमान समय
नई दिल्ली
अभय कुमार ने फिलहाल राज के लिये सीबीआई से और होम मिनिस्ट्री से बात करके समय मांग लिया था। उसका यही कहना था कि जब तक सीक्रेट सर्विस आहूजा की इन्वेस्टिगेशन पूरी नहीं कर लेती वह राज को नहीं सौंप सकती। क्योंकि राज खलीली के मिशन में अहम एजेंट था इसलिये उसका इन्वेस्टिगेशन में होना अनिवार्य था। अभय के दिये इन तर्कों को सीबीआई मानना तो नहीं चाहती थी पर होम मिनिस्ट्री ने अनुमति दे दी और फिर भारत सरकार ने उसी हिसाब से लियोन को भी जवाब दिया–यानि दो महीने इंतजार करने के लिये कह दिया गया।
साथ ही अभय ने राज से इस बारे में भी बात की कि आहूजा के खिलाफ इन्वेस्टिगेशन के लिये सीक्रेट सर्विस के एजेंट सीबीआई ऑफिस आएंगे। पहले तो राज थोड़ा झिझका, उसने कहा इसकी कोई ज़रूरत नहीं क्योंकि वह पहले ही जांच-पड़ताल कर चुके हैं और आहूजा के खिलाफ यहाँ ऐसा कोई तथ्य मौजूद नहीं जिससे वह आतंकवादी साबित हो। पर अभय ने कहा क्योंकि उसके खिलाफ सबूत एकत्रित करने का जिम्मा सीक्रेट सर्विस को है तो ये उन्हें करना ही होगा। राज ने फिर ज्यादा हुज्जत नहीं दिखाई।
ज़ाहिद और सुरेश ने सीबीआई ऑफिस आने से पहले राज को फोन करके अनुमति ले ली थी। राज ने उन्हें सीबीआई के इंटरपोल विंग में पहुँचने को कहा, जो कि सीबीआई के लोधी रोड स्थित ऑफिस के ब्लॉक नंबर ४ में हुआ करता था। वहाँ उन्हें मनोज रामचंद्रन से मिलने को कहा गया।
उन्हें कुछ देर गेट पर इंतजार करना पड़ा, फिर मनोज ने गेट पर आकर उन्हें एस्कोर्ट किया और एंट्री करवाने का बाद अन्दर ले गया।
“मैं आपको सीधे इंटरपोल ऑफिस ले चलता हूँ।” कहते हुए वह राहदारी में तेजी से आगे बढ़ता चला गया।
कुछ देर बाद वो एक भव्य दरवाजे पर पहुँचे जिस पर ‘नेशनल सेन्ट्रल ब्यूरो –इण्डिया’ लिखा हुआ था। मनोज एक्सेस कार्ड के सहारे अन्दर दाखिल हुआ। अन्दर अच्छा-ख़ासा ऑफिस था–काफी लोग काम कर रहे थे। वहाँ एक छोटा मीटिंग रूम था। उसने चाभी से उसका लॉक खोला फिर अन्दर आकर लाईट जला दी।
अन्दर कुछ कुर्सी, कंप्यूटर टेबल, फोन, प्रिंटर आदि मौजूद थे।
“इसी कमरे में तीन साल पहले आहूजा काम किया करता था।”
“उसके साथ कौन काम किया करता था ?” सुरेश ने पूछा।
“वैसे तो वो ज्यादातर इंडिपेंडेंटली काम करता था, पर कभी-कभी मैं उसे असिस्ट करता था।”
“आप इसी ऑफिस में पोस्टेड हैं ?”
“हाँ! बतौर एनालिस्ट।”
“आहूजा इनमे से किसी सिस्टम पर काम किया करता था ?” सुरेश वहाँ रखे कंप्यूटर देखते हुए बोला।
“नहीं! उसका खुद का लैपटॉप था। वह उसी पर काम करता था।”
“प्रिंट आउट वगैरह ?”
“उसके गायब होने पर हमने सबकुछ चैक किया था, वह अपने पीछे कोई सुराग नहीं छोड़ गया था।”
सुरेश ने हामी भरी।
“इस ऑफिस में आपके आलावा और किसी से उसकी बातचीत होती थी ?” ज़ाहिद ने पूछा।
“नहीं! मेरे से भी सिर्फ काम से काम, मतलब की बात वो करता था। कोई पर्सनल बात उसने कभी नहीं की।”
“वो रहता कहाँ था ?”
“सरकारी गेस्ट हॉउस में। वहाँ भी पूरी जांच की गई थी। वह अपने पीछे एक रत्ती भर क्लू भी नहीं छोड़ गया था।”
“तो उसके तीन साल अनाधिकृत रूप से गायब रहने के बारे में इंटरपोल क्या बोलता है ?” ज़ाहिद ने पूछा, “क्या तीन साल किसी एजेंट के गायब रहने के बाद भी इंटरपोल उसे अपना एजेंट मानता है ?”
“ये लियोन का आउटलुक है। पर मैं समझ रहा हूँ–आप क्या कहना चाहते हैं। अगर कोई इतने लम्बे अरसे गायब रहे तो उसे वैसे ही नौकरी से बर्खास्त माना जाना चाहिये, फिर उस दशा में इंटरपोल का इतने सवाल पूछने का अधिकार ही नहीं बनता। पर मामला कोई आम नौकरी का हो तो फिर भी चल जाता पर यहाँ आतंकवाद जैसे संगीन मामले उसकी गुमशुदगी के साथ गुत्थम-गुत्था थे, तो इंटरपोल अवश्य उससे हर जानकारी निकलवाता, उससे ये इंश्योर करता कि उसने इंटरपोल की जानकारियों का कोई गलत प्रयोग तो नहीं किया, आदि।”
“यानि वो मानते हैं कि आहूजा का लिंक आंतकवादी गतिविधियों से था ?” सुरेश ने आँखों में चमक के साथ कहा। ये सवाल उसके कहने के अंदाज़ से लगा कि उसने मनोज से न करके खुद से किया हो।
“बिना सबूत के वो कुछ नहीं मानने वाले।”
“उसे आखिरी बार कब और किसने देखा था ?” ज़ाहिद ने पूछा।
“इस ऑफिस से तो वो देर रात निकला था, गार्ड ने पुष्टि की थी कि निकलते वक़्त उसके पास लैपटॉप बैग था और वो यहाँ से अपनी सरकारी कार में गेस्ट हाउस गया था।”
“और गेस्ट हाउस में ?”
“गेस्ट हाउस वो पहुँचा ज़रूर था, पर दूसरे दिन किसी को नहीं मिला। रात में वो कब निकला, कैसे निकला, किसी को खबर नहीं।”
“हम्म...! यानि वो हवा हो गया।”
“उस वक़्त उसे ढूंढने कोई लियोन से क्यों नहीं आया ?” सुरेश ने पूछा।
“आये थे न, पर यहाँ इन्वेस्टिगेशन से यहीं लगा कि वह भारत से लन्दन वापस चला गया। वो तो उसकी यहाँ मौत के बाद अब सबको समझ आया कि वह कभी भारत छोड़कर गया ही नहीं था।”
“आई सी!”
कुछ देर और बात करने के बाद सुरेश और राज वहाँ से रुखसत हुए।
☐☐☐
सीबीआई कार्यालय से निकलने के बाद ज़ाहिद और सुरेश ने अलग-अलग दिशा में निकलने का फैसला किया। सुरेश उस गेस्ट हाउस पर जांच-पड़ताल के लिये निकला जहाँ आहूजा रुका था और ज़ाहिद निक के बारे में पूछताछ करने जेएनयू की तरफ चल दिया।
जेएनयू के पास स्थित निक के ठिकाने के आस-पास पूछताछ करने पर ज़ाहिद को उसके कुछ दोस्त मिले जो कि निक के साथ वाकफियत रखते थे। सबका यही कहना था कि दो साल से उन्होंने निक के बारे में कुछ भी नहीं सुना था। वह किसी को कोई जानकारी दिये बगैर अचानक ही गायब हो गया था। उससे पहले वह अक्सर जेएनयू के विद्यार्थियों के साथ और अपने बैंड के मेंबर्स के साथ देखा जाता था। उसके रॉक बैंड के बारे में भी इन्वेस्टिगेट करते हुए ज़ाहिद को उनके बैंड के एक मेंबर के बारे में पता चला जो फिलहाल दिल्ली में ही था। वह आखिर तक निक के साथ था और बैंड का रेगुलर मेंबर था। वह एक ड्रमर हुआ करता था और फिलहाल एक सॉफ्टवेयर कंपनी में काम करता था। उसका नाम कुलदीप सिंह उर्फ कूल्स था। वो एक लंबा चौड़ा सरदार था।
ज़ाहिद उससे उसकी कंपनी के पास एक रेस्टोरेंट में मिला।
चाय पीते हुए ज़ाहिद ने पूछा, “तो आखिरी बार तुमने निक के साथ कब परफॉर्म किया था ?”
“अजी दो साल से ज्यादा हो गये। अभी तो याद ही नहीं आ रहा है मुझे। लगता है... अरे नई...दरअसल ढाई साल हो गये जी। हमने सीएपी कॉलेज के कल्चरल फेस्टिवल में जाकर एक शो किया था। वो शो के बाद निक से एक ही बार मिला और वही लास्ट मुलाकात थी। उसके बाद मैं जॉब में बिजी, फिर वह भी कहीं बिजी, कभी कॉन्टेक्ट नहीं किया। फिर एक बार जब याद आया... फोन किया, तो उसका फोन ही नहीं मिल रहा था। उसके घर का एक चक्कर लगाया तो वहाँ से भी वह जा चुका था। पता नहीं किधर गायब...”
वह कुछ ज्यादा बोलने वाला शख्स लग रहा था इसलिये ज़ाहिद ने उसे काटकर अगला सवाल किया-
“निक की फोटो तो होगी तुम्हारे पास ? दिखाओ।”
“हां जी! फोटो ही फोटो हैं। एक क्या बहुत सी फोटो हैं। हम लोगों ने शुरू के दो सालों में तो इतने परफॉर्मेंस की थी...आपको परफॉर्मेंस की फोटो दिखा देता हूँ। कहो तो कॉलेज की फोटो दिखा दूंगा।” कहते हुए वह अपना फोन खोलकर गैलरी में दो साल पुराने फोटो दिखाने लगा। फिर उसने अपने रॉक बैंड के फोटो दिखाए, जिसमें कम कद का छोटी-छोटी आँखों वाला एक शख्स गिटार बजाता दिख रहा था।
“यहीं है- देख लीजिए। आपको भेजता हूँ। आप अपना नंबर बताओ।”
ज़ाहिद ने बताया। कुलदीप ने कई फोटो फॉरवर्ड कर दिये।
“तुमने इसे फिर ढूंढने की कोशिश नहीं की ?”
“जी! बताया तो...उसके घर गया था। वहाँ पर नहीं था। अब और कहां ढूंढता ? वैसे भी वह एक जगह टिकने वाला बंद तो था नहीं। उसकी बातों से ही लगता था - कहीं हवा में उड़ना चाहता था। कभी कुछ तो कभी कुछ! न जाने कौन-कौन से बिजनस करता था। नौकरी तो कभी उसने कोई की नहीं। हो सकता है कोई लंबी फिराक में कहीं निकल गया होगा... बता कर तो कुछ भी नहीं गया।”
“निक का कोई और ऐसा परिचित जिनसे वह अक्सर मिलता-जुलता हो ?”
“एक तो उसका वह पायलट दोस्त था...”
“कौन ? विक्रम ?”
“हां विक्रम! अक्सर हमारे परफॉर्मेंस में आया करता था। ड्रेसिंग रूम में ही डायरेक्ट एंट्री मारता था। काफी गहरा यार था उसका।”
“उसके अलावा कोई ?”
कुलदीप इधर-उधर देखते हुए सोचने लगा।
“आराम से सोच समझ कर जवाब दो।” ज़ाहिद बोला।
“आप यह तो बताओ चक्कर क्या है जी ?”
“एक तरह से समझ लो– निक गायब हो चुका है।” ज़ाहिद समझाते हुए बोला, “और उसका गायब होना इतनी गहरी साजिश से ताल्लुकात रखता है जिसका सम्बन्ध देश की सुरक्षा से जुड़ा है।”
“हैं!” उसने आँखें फाड़कर देखा। “वह कैसे जी ?”
“वो तो मैं नहीं समझा सकता। फिलहाल यही समझो कि निक का जल्द से जल्द मिलना बेहद जरूरी है।”
“हाँ जी! आप सही कह रहे हो। अब इस तरह से किसी का गायब हो जाना भी तो ठीक नहीं होता है। उसका आगे-पीछे भी कोई नहीं था पर फिर भी दोस्त तो बहुत थे। ऐसे कहां गायब हो गया ?”
“तुम सोचो।”
कुलदीप सोचने लगा।
“उसके और परिचित कौन थे ? उसका कोई और खास दोस्त ? उसकी कोई गर्लफ्रेंड ?”
उसने इंकार में सिर हिलाया।
“लड़कियों को बस लाइन मारता था। फ्रेंड बनाने तक की नीयत तो उसकी कभी रही नहीं। एक बार तो एक लड़की को सीधा प्रपोज भी कर दिया। लड़की ने पलट कर ‘हां’ बोल दिया। तो ये बोला– मैं मजाक कर रहा था।” कहकर कुलदीप हंसने लगा
ज़ाहिद चुपचाप उसे देखता रहा। फिर उसने पूछा, “ध्यान से याद करो कुलदीप। तुम अक्सर उसके साथ बैंड में रहते थे, परफॉर्म करते थे। कोई और खास शख्स जो अक्सर उससे मिलता था ? या वह मिलने जाता था ? सोचो–उससे मिलने वाला कोई ऐसा शख्स जो तुम्हें कुछ अजीब सा लगा हो ?”
कुलदीप अपनी कनपटी पर हाथ रख कर टेबल की तरफ देखने लगा– मानो सोचने का भरसक प्रयास कर रहा हो।
“ऐसा कोई शख्स तो नहीं याद आ रहा। पर वह अपने अजीबोगरीब बिजनस के लिये अक्सर कुछ जुगाड़ लगाकर बड़े लोगों मीटिंग करता रहता था। आप समझ रहे हैं न–ऊपर तक पहुँच वाले लोगों के साथ।”
“इस तरह का कोई हाई प्रोफाइल शख्स याद आ रहा है जिससे वे अक्सर मिलता था ?”
“एक बार किसी मिनिस्टर के सेक्रेटरी से मिलने की बात कर रहा था। कह रहा था उसकी मदद से उसको बिजनेस डील भी मिल रही है।”
“नाम बताओ उस सेक्रेट्री या मिनिस्टर का।”
“कोई नॉर्थ ईस्ट का नाम था कमजुम...शायद! नाम याद नहीं आ रहा है।”
“कोमजुम लोल्लेन तो नहीं ?” ज़ाहिद ने कहा।
“हां शायद कोमजुम लोल्लेन ही था।”
“वह तो केंद्रीय मंत्री जोमिन तुकी का सेक्रेटरी है। जोमिन तुकी यानि कि साइंस एन्ड टेक्नोलॉजी मिनिस्टर। इंट्रेस्टिंग! आखिर बिजनस था क्या निक का ? कुछ तो आईडिया लगा होगा ?”
“कोई एक बिजनस रहा हो तो बताऊँ। पता नहीं क्या-क्या करता था। एक बार तो कुछ इलेक्ट्रिकल इक्विपमेंट की डीलरशिप ले ली थी। मुझे भी बोल रहा था पैसे लगाने को पर मैंने मना कर दिया। इस तरह के कई नये-नये बिजनस ट्राई करता रहता था, ज्यादा डिटेल मुझे पता नहीं।”
“कोई बात नहीं।” ज़ाहिद बोला, “तो जोमिन तुकी का नाम तुमने कब सुना ? कुछ और याद करो उस बारे में।”
“करीब तीन साल पहले की बात है। उसे फोन आया था कोमजुम लोल्लेन का हमारी बैंड प्रैक्टिस के बीच में। मैंने पूछा भाई इतना अर्जेंट किसका फोन है तो गर्व से बोला कि सेंट्रल मिनिस्टर जोमिन तुकी के सेक्रेटरी का है। जोमिन तुकी नाम मैंने तब पहली बार सुना। फिर मैंने या बाकी बैंड के मेंबर्स ने कोई और सवाल उससे किया नहीं, तो यह बात बाद में कभी हुई नहीं।”
“इसके अलावा और कोई बात अगर बाद में ध्यान आए तो मुझे कॉल करना।”
“ज़रूर सर जी!”
फिर ज़ाहिद ने कुलदीप से विदा ली।
उसने सुरेश को फोन किया। वह फ्री हो गया था। ज़ाहिद ने उसे रेंटेड कार से जाकर पिकप किया।
सुरेश के कार में बैठते ही ज़ाहिद बोला, “पायलेट्स के कनेक्शन निक से और निक का कनेक्शन कोमजुम लोल्लेन से और कोमजुम लोल्लेन का कनेक्शन केंद्रीय मंत्री से पता चला है।”
कहकर उसने गेयर में डालकर गाड़ी आगे बढ़ा दी और फिर कुलदीप से हुई पूरी बात बताई।
“ये निक जो भी है बहुत इंपॉर्टेंट किरदार बनता जा रहा है।” सुरेश बोला, “उसका मिलना बिल्कुल जरूरी हो गया है। उसका फोटो मैं हेडक्वार्टर भेज रहा हूँ। तुरंत सरवैलेंस पर लगवा दिया जायेगा।”
“वह तो है पर फिलहाल कोमजुम लोल्लेन पर भी हाथ डाला जा सकता है।”
“पर यह काम आसान नहीं होगा।”
“बहुत मुश्किल भी नहीं होने वाला।” ज़ाहिद आक्रामक स्वर में बोला, “यह कोई आम मामला नहीं है। भारत का विमान गायब हुआ है और अगर इस साजिश में पॉलीटिशियंस की कोई मिलीभगत है तो उन पर भी हाथ डाला जायेगा।”
“तुम सही कह रहे हो।” सुरेश बोला, “चीफ को बोलते हैं कि कोमजुम लोल्लेन से मीटिंग अरेंज करवाएं। मेरे ख्याल से होम मिनिस्ट्री हमारा यह काम आसान करवा देगी।” कहते हुए सुरेश ने मोबाइल पर अभय का फोन लगाया और सारी स्थिति से अवगत किया।
अभय ने सारी बात सुनकर कहा – “मैं बहुत जल्दी कोमजुम लोल्लेन से तुम लोगों की मीटिंग अरेंज करवाता हूँ।”
फोन काटकर सुरेश ने गहरी सांस छोड़ी।
ज़ाहिद ने पूछा, “गेस्ट हाउस पर कुछ पता चला ?”
“वहाँ का स्टाफ तो एकदम टिपिकल सरकारी टाइप था, कुछ भी काम की बात पता नहीं चली। मैंने उसका कमरा भी खुलवाया था।”
“दो साल में तो कई लोग उसमे रुककर गए होंगे।”
“ट्रू! वहाँ कुछ भी पता नहीं चल सका।”
“मुश्किल है, हर बार भाग्य साथ नहीं दे सकता पुराने केस सुलझाने में। जैसे तुमने लम्बे अरसे से बंद पड़े मिनाज़ के फ़्लैट से सबूत ढूंढ निकाले थे [3] ।”
“वो एक मर्डर केस था इसलिये चांस भी थे कुछ मिलने के। अब हमें सोचना पड़ेगा कि गेस्ट हाउस से गायब होने के बाद आहूजा के कदम कहाँ-कहाँ पड़े हो सकते हैं।”
“उसने कहा था कि आईएसआई का एजेंट बनने के लिये उसने चार साल लगाये थे।”
“और दो साल वो माइंस के अन्दर था। हमें उसके हिसाब से सोचना होगा कि उसने क्या किया होगा। उसने खुद को आईएसआई का एजेंट कैसे स्टेब्लिश किया होगा- क्या उसने खुद को नये एजेंट के रूप में भर्ती किया या किसी और की जगह ले ली ?”
ज़ाहिद सामने ट्रैफिक की तरफ देखते हुए गहन सोच में था। “रज़ा मलिक! वो एक अधेड़ उम्र के एजेंट के रूप में था! आईएसआई में मौजूद हमारा कोई मोल इस बारे में बता सकता है।”
“गुड आइडिया! इल्यास से बात करता हूँ।” कहकर सुरेश ने इल्यास नामक उस डबल एजेंट को फोन किया जो कि आईएसआई में सीक्रेट सर्विस का जासूस था।
“हेल्लो सर! बोलिये।”
“सब खैरियत ?”
“जी!”
“एक मैसेज करने वाला हूँ। उसकी कुछ जानकारी निकालने की कोशिश करो।”
“ज़रूर!” कहकर उसने फोन काट दिया।
सुरेश ने उसे एसएमएस में रज़ा मालिक लिख भेजा।
फिर वे दोनों वहाँ से सीधे अपने गेस्ट हाउस पहुँचे।
☐☐☐
josef
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वर्तमान समय
हिमाचल प्रदेश
राज बालकनी में ही खड़ा था। उस वक्त वह चौंक गया जब उसे होटल के ठीक सामने सड़क के किनारे एक खास व्यक्ति दिखाई दिया। उसे वह खास इसलिये लगा कि उसकी दृष्टि बार-बार चोरी-छिपे राज के होटल की तरफ जा रही थी। उसने भूरे रंग का स्वेटर पहना हुआ था, और कानों और गले को ढंकने के लिये मफलर बाँध रखा था।
राज को साफ़ लगा कि वह वहाँ किसी और कारण से नहीं बल्कि होटल की निगरानी करने की नीयत से ही खड़ा है। ऐसा उसे अपनी ट्रेनिंग और तजुर्बे से पता करना बड़ी बात नहीं थी। वह व्यक्ति अखबार पढ़ने का नाटक कर रहा था, जबकि उसका ध्यान पूरी तरह अखबार में नहीं था। चोरी-छिपे वह बार-बार होटल की तरफ देख रहा था।
आखिर यह चाहता क्या है ? मेरी निगरानी कर रहा है या किसी और की ? पता करना पड़ेगा।
राज कमरे में लौट आया। उसने जैकेट पहनी और पिस्टल उसकी जेब में छिपा लिया। कमरे की लाइट ऑन छोड़कर वह बाहर निकल आया।
वह होटल से नीचे उतरा और सामने से निकलने की जगह पीछे किचन की ओर से निकल कर बगल वाली इमारत के प्रांगण में कूदकर आ गया। फिर उस इमारत से बाहर निकलने लगा। उसे यकीन था कि उस व्यक्ति की नज़र होटल पर ही होगी।
वह सावधानी बरतते हुए ईमारत से बाहर निकला और सड़क पर आ गया। सड़क की दूसरी तरफ उसे भूरे स्वेटर वाला अभी भी दिखाई दे रहा था। राज विपरीत दिशा में आगे चला गया और फिर सड़क पार करके उस तरफ आ गया जिधर भूरे स्वेटर वाला था। वह सावधानी से उसकी तरफ चलने लगा। उसे दिखा भूरे स्वेटर वाला अब विपरीत दिशा में जा रहा था। राज भी तेजी से उसके पीछे चलने लगा। दोनों तेजी से चल रहे थे पर दौड़ने की कोशिश कोई भी नहीं कर रहा था।
फिर अचानक नकाबपोश ने एक रिक्शा रुकवाया और उसमे बैठ कर रिक्शा वाले को कहीं जाने का निर्देश दिया।
तब तक राज भी दौड़कर वहाँ पहुँचा और जबरन रिक्शा के अंदर आ बैठा।
रिक्शा वाले और भूरे स्वेटर वाले दोनों ने हैरानी से उसे देखा।
“अरे रिक्शा मैंने पहले देखा था।” राज बोला।
“देखा होगा, पर मैं पहले बैठ गया। तुम उतरो।” भूरे स्वेटर वाले ने धमकी भरे स्वर में कहा।
“चलो कुछ दूर ही जाना है। आधे पैसे में दे दूँगा।”
रिक्शा वाले ने पलटकर भूरे स्वेटर वाला को देखा।
उसने अनमने भाव से राज को देखा फिर रिक्शा वाले को सहमति दी।
रिक्शा आगे बढ़ गया। दोनों विपरीत दिशा में बाहर देख रहे थे।
कुछ ही पल बाद राज ने पूछा, “किसे ढूंढने आये थे ?”
“क्या ?” वह राज की तरफ पलटा।
“होटल पर नज़र रखे हुए थे।”
“कौन बोला ?”
“तुम्हारी आँखें।”
“तुम हो कौन ? क्यों फालतू मुझ से भिड़ रहे हो ?”
“मैं कौन हूँ वो तो तुम जानते ही होगे। पर तुम कौन हो ये भी तो मुझे पता होना चाहिये।” कहते हुए राज ने अपना पिस्टल निकला और आराम से जांघ पर रख लिया।
“ये...क्या!” वह बुरी तरह से चौंका।
“पहली बार देखा है ?”
अचानक ही उसने राज पर कोहनी से प्रहार किया और चलते रिक्शा से ही बाहर कूद गया।
राज दर्द से चिहुंक उठा। वह इसके लिये तैयार नहीं था। कोहनी का जबरदस्त प्रहार उसके चेहरे पर हुआ था। उसका पिस्टल नीचे गिर गया था। उसने उसे उठाया। तब तक रिक्शा वाले ने ब्रेक लगा दिये थे। राज तेजी से बाहर निकला। रिक्शा चालक ने पिस्टल देख लिया था इसलिये वह फिर वहाँ रुका नहीं।
भूरे स्वेटर वाला रिक्शा से कूदकर रास्ते पर गिरा ज़रूर था पर उसके बाद वह फुर्ती के साथ उठा और दौड़ते हुए एक गली में प्रविष्ट हो गया था। राज भी सड़क पार करते हुए उस गली की तरफ दौड़ा।
गली के अंदर पहुँचने पर राज को वह व्यक्ति कहीं दिखाई नहीं दिया। तभी गली के अंत की तरफ से कूदने की आवाज़ आई।
राज दौड़कर उस तरफ पहुँचा। गली के अंत में एक छह फिट ऊंची दीवार थी। राज उस पर चढ़ गया। दूसरी तरफ कुछ अँधेरा था और इक्का-दुक्का अंडर-कंस्ट्रक्शन इमारतें थी।
वह सावधानी के साथ उस तरफ उतर आया। मुख्य सड़क से आने का रास्ता काफी आगे दिखाई दे रहा था।
इतनी जल्दी तो वो उस तरफ से नहीं भाग पाया होगा ।
उस तरफ काफी धूल-मिट्टी थी, शायद कंस्ट्रक्शन के कारण। राज की नज़र नीचे गई। उसे तलाश थी क़दमों के निशान की। पर वहाँ अनगिनत निशान थे, शायद दिन में उस तरफ काम करने वाले मजदूरों के।
वह नीचे झुककर निरीक्षण करने लगा। बारीकी से देखने पर उसे एक तरफ की धूल कुछ हवा में उड़ती नज़र आई। उस दिशा में एक मकान दिखाई दिया जो अँधेरे में डूबा हुआ था।
राज सीधे न जाते हुए, छिपते हुए, घूमकर मकान के पीछे जा पहुँचा। फिर पीछे घूमते हुए उसकी खिड़कियों के पास जा खड़ा हुआ ताकि अगर अंदर कोई हो तो उसे आहट मिल सके।
किसी तरह का संकेत न मिलने पर उसने ज़मीन से एक चिकना गोल पत्थर उठाया अपना पिस्टल साधा और घूमते हुए सामने की तरफ आ गया और फिर दबे पांव दरवाजे की तरफ बढ़ने लगा। उसने मुख्य द्वार को धीरे से धकेला तो पाया वह खुला हुआ था। शायद वह एक वीरान पड़ा मकान था, जहाँ कोई सालों से नहीं रह रहा था।
राज ने पत्थर लिया और फिर मकान की फर्श पर अंदर की तरफ लुढ़का दिया। वह तेज आवाज़ करते हुए अंदर लुढ़कता चला गया और उसी समय राज दौड़कर बाहर की तरफ भागा और ओट में छिप गया।
दूसरे ही पल राज की चाल काम आई। मकान से उसका विरोधी दौड़ते हुए बाहर आया। जैसा कि राज ने चाल चली थी शायद उसे लगा कि अंदर कोई बम लुढ़काया गया है।
उस पर नज़र पड़ते ही राज ने उस पर हमला कर दिया। उसने विरोध करना चाहा। उसके हाथ में भी पिस्टल था। राज ने पहले उसका हाथ झटक कर उसे गिराया और फिर जमकर उसकी धुनाई की।
जब वह बेहाल होकर ज़मीन पर गिर गया तब राज ने पूछा-
“अब बोल- कौन है तू ? किस फ़िराक में था ? किसने भेजा था तुझे ?”
वह चुपचाप ज़मीन पर पड़ा रहा। राज ने उसे एक ठोकर मारी फिर झुककर उसकी जेबें टटोलने लगा। उसने विरोध किया तो फलस्वरुप उसके मुंह पर एक जबरदस्त घूँसा रसीद किया।
जेब से कुछ रुपये और रसीदों के सिवा कुछ नहीं मिला।
“बोलना शुरू कर। अगर पुलिस के सामने ही बोलने वाला है तो ये भी सही।”
“मैंने किया क्या है जो मैं पुलिस से डरूं ?” वह निर्भीक स्वर में बोला।
एक पल को राज भी सोच में पड़ गया। आखिर वो सिर्फ उसके होटल के बाहर खड़ा निगरानी कर रहा था।
“जासूसी भी एक जुर्म होता है अगर दूसरे देश के खिलाफ की जाये।”
“मैं जासूस नहीं हूँ।”
“अब इसका फैसला तो पुलिस ही करेगी।”
फिर राज उसे लेकर उस तरफ की गली से होते हुए मुख्य सड़क पर पहुँचा।
वह अभी किसी रिक्शा या टैक्सी की रह ही देख रहा था कि अचानक उसे अपने पीछे किसी का आभास हुआ।
“रिवॉल्वर साइलेंसरयुक्त है।” सर्द लहजे में आवाज़ आई – “किसी को पता भी नहीं चलेगा। चलो अब अपना रिवॉल्वर अपनी जेब में रखो।”
राज ने अपनी पिस्टल जो छिपाकर मफलर वाले के पेट में लगा रखी थी, को आज्ञाकारी ढंग से अपनी जेब के हवाले कर लिया।
अगले ही पल उसके सिर पर पीछे से जबरदस्त प्रहार हुआ। वह चकराकर नीचे जा गिरा।
☐☐☐
राज को जब होश आया तब सड़क सुनसान पड़ी थी।
वह अपने सिर को सहलाते हुए उठा।
चोट हो गई। सही लीड मिली थी पर हाथ से निकल गई। पर अब ये तो साफ़ हो गया है कि यहाँ बहुत बड़ी साजिश चल रही है और ये लोग नहीं चाहते कि मैं उसकी तह तक पहुंचूं। मैं आरती के घर गया, पुलिस स्टेशन गया, हॉस्पिटल गया, यानि इस दौरान मुझ पर इन लोगों की नज़र थी और वो मेरे हर कदम पर नज़र रख रहे थे।
सोचते हुए राज उठा। उसने अपने कपड़े झाड़े और धीरे-धीरे होटल की तरफ चल दिया। उसने जैकेट की जेब में हाथ डाला। पिस्टल मौजूद था।
गनीमत है कि पिस्टल लेकर नहीं गए।
जैकेट की दूसरी जेब में उसे कुछ कागज़ महसूस हुए। उसने उन्हें निकाला। उसे याद आया कि कुछ रुपये और कागज़ मफलर वाले की तलाशी में उसे मिले थे। उसने रुपये वापस जेब में डाले और एक-एक करके कागजों को देखना शुरू किया। दो रेस्टोरेंट के खाने के बिल थे। वे मंडी के ही रेस्टोरेंट थे। फिर उसे एक बस का टिकट दिखाई दिया। वह धर्मशाला से मंडी का तीन दिन पहले का टिकट था।
हम्म ...आरती भी दिल्ली से धर्मशाला गई थी और ये भी स्पेशल मिशन पर धर्मशाला से यहाँ आया । इस साजिश की जड़ें धर्मशाला तक फैली हैं ।
उसे एक कागज़ और मिला। वह धर्मशाला के किसी आश्रम में दिये दान की रसीद थी।
जासूस सरीखे लोगों का आश्रम में क्या काम ? लगता है अब वहाँ जाना ही पड़ेगा।
☐☐☐

वर्तमान समय
नई दिल्ली
अगले दिन शाम को ज़ाहिद और सुरेश कोमजुम लोल्लेन के ऑफिस में थे। उससे मिलने के लिये उन्हें आधा घंटा इंतजार करना पड़ा।
फिर चपरासी ने उन्हें कैबिन में जाने का इशारा किया। ज़ाहिद और सुरेश कोमजुम लोल्लेन के कैबिन में दाखिल हुए।
कोमजुम लोल्लेन औसत ऊंचाई, गोर रंग का पचपन की उम्र का होने के बावजूद एक फिट व्यक्ति था, जिसकी आंखें छोटी-छोटी थीं, जिन पर एक फ्रेम्लेस चश्मा चढ़ा था। सफेद शर्ट और पैंट पहने हुए वह कुर्सी पर बैठा किसी फाइल में व्यस्त था। उन दोनों के अंदर आते ही बिना नज़र उठाये उन्हें बैठने का इशारा करके वह वापस फाइल में डूब गया। ज़ाहिद और सुरेश ने आसन ग्रहण किया। ज़ाहिद निरंतर उसे घूरे जा रहा था जबकि सुरेश ऑफिस के अंदर चारों तरफ नज़र घुमा रहा था। करीब पाँच मिनट उनका समय खराब करने के बाद कोमजुम लोल्लेन ने फ़ाइल बंद की और उनकी तरफ देखा।
“सीक्रेट सर्विस का हमारे ऑफिस में आज पहली बार कदम पड़ा है। बताइए क्या सेवा की जाए ?”
उसकी साफ़ हिंदी सुनकर ज़ाहिद और सुरेश चौंके, फिर ज़ाहिद बोला-
“हम लोग लापता फ्लाइट 301 की इन्वेस्टिगेशन कर रहे हैं।”
“ओह! याद है हमें। वाकई एक अजूबे से कम नहीं था। पूरा का पूरा प्लेन गायब हो गया और आज तक उसका कुछ पता नहीं चला। बहुत अच्छा कर रहे हैं आप लोग। उसका पता लगना चाहिए।”
“उसी सिलसिले में आपकी मदद चाहिए।”
“जरूर बोलिए। मिनिस्ट्री ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी आपके किसी काम आ सकी तो इससे ज्यादा गर्व की बात क्या होगी हमारे लिये।”
“सुनकर अच्छा लगा फिलहाल सिर्फ आपकी मदद ही मिल जाये तो काफी होगा।” ज़ाहिद बोला।
“जरूर! आज्ञा दीजिए।”
“आप निक नाम के किसी लड़के को जानते हैं ?”
“निक ?”
सुरेश ने अपने मोबाइल में निक की तस्वीर निकालकर उसके सामने रख दी। कोमजुम ने फोन उठाया और अपना चश्मा उतारकर बेहद गौर से उसे देखने लगा।
“जाना-पहचाना सा लग रहा है। पर कुछ याद नहीं आ रहा।”
“जायज है। करीब तीन साल हो चुके हैं।” सुरेश बोला, “हमने इसकी फोन हिस्ट्री निकलवाई थी और उसमें आप से हुई कई कॉल्स की डिटेल पता चली है।”
“ओह अच्छा! फिर तो जान-पहचान वाला ही होगा तभी फोन पर बात हुई होगी। रुको मैं अपने फोन में देखता हूँ। उसका नंबर... उसका नंबर क्या है ? आप बताएंगे ?”
ज़ाहिद ने नंबर बताया। कोमजुम लोल्लेन ने अपने फोन में टाइप किया और फिर बोला, “अच्छा हां! निक! बीटा सॉल्यूशंस नाम की किसी नई कंपनी का मालिक था और वह हमसे उसका प्रमोशन करवाना चाह रहा था, किसी साइंस एग्झीबिशन में बुलाकर... और जहां तक हमें याद आ रहा है उस एग्झीबिशन में हम नहीं जा पाए थे। उसके बाद हमने प्रमोट करने के लिये उसे लिखित रूप में कुछ वाक्य लिख कर दिये थे। बस इतनी ही वाकफियत थी।”
ज़ाहिद और सुरेश उसे ध्यान से देख रहे थे।
“इसका मतलब आप उससे कभी फेस टू फेस नहीं मिले ?” सुरेश ने पूछा।
“नहीं! मिलने का मौका ही नहीं आया। फोन पर ही कनेक्शन बना था। लड़का अच्छा था। उसका बिजनस मॉडल अच्छा था तो हमने उसको प्रमोट करने के लिये जो हो सकता था वह किया। वैसे क्या मैं जान सकता हूँ कि इस लड़के का फ्लाइट गायब होने से क्या रिश्ता है ?”
“हम लोग वही पता करने की कोशिश कर रहे हैं। जब से इस इन्वेस्टिगेशन में लगे हैं घूम-फिरकर इस लड़के पर ही पहुँचते हैं इसलिये यह हमारी इन्वेस्टिगेशन का अहम किरदार बन गया है। मामला और दिलचस्प हो गया है क्योंकि अब यह लड़का खुद कुछ समय से गायब है और इसका कोई ठौर-ठिकाना पता नहीं चल पा रहा है।” सुरेश ने कहा।
“वाकई काफी हैरानी वाली बात है। जैसा कि आपने कहा–कुछ न कुछ कनेक्शन तो जरूर होगा।”
“आपको उसके बारे में कोई और जानकारी है जो हमारे काम आ सके ?” ज़ाहिद ने पूछा।
“जो मैं जानता था मैंने बता दिया। कभी उससे मुलाकात भी नहीं हुई। मुझे दुख है कि मैं आपके ज्यादा काम नहीं आ सका।”
कहकर कोमजुम लोल्लेन ने आँखों से ऐसा इशारा दिया कि ज़ाहिद और सुरेश को उस से विदा लेने के लिये उठना पड़ा।
“आप के समय के लिये बहुत-बहुत शुक्रिया।” ज़ाहिद ने कहा और नमस्कार की मुद्रा में आ गया। सुरेश ने भी वैसा ही किया।
कोमजुम लोल्लेन ने मुस्कुराकर आंखें झपकाई। ज़ाहिद और सुरेश उसके ऑफिस से बाहर निकले और फिर बाहर जाती हुई राहदारी में आ गये।
“अब क्या करना है ?” सुरेश ने पूछा।
“इस पर नज़र रखने का इंतजाम करना पड़ेगा।”
“वीआईपी है।”
“तो फिर वीआईपी इंतजाम करना पड़ेगा।” ज़ाहिद सामने देखते हुए बोला।
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josef
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वर्तमान समय
हिमाचल प्रदेश
अगली सुबह ही राज ने धर्मशाला की बस पकड़ ली। उसे पता था उसकी मंजिल वही है। आठ बजे की निकली बस दोपहर बारह बजे से कुछ पहले ही धर्मशाला पहुँच गई। वहाँ का नज़ारा मनमोहक था। दूर-दूर तक बर्फ से ढकी धौलाधार श्रृंखला दिखाई दे रहीं थी। हरे-भरे पेड़ों से परिपूर्ण उस शहर का मौसम सुहावना था।
दोपहर होने के बावजूद मंडी की अपेक्षा धर्मशाला का तापमान ठंडा था।
बस से उतरकर राज ने बस अड्डे पर ही खाना खाया फिर एक टैक्सी से उस आश्रम की तरफ चल दिया।
वह आश्रम धर्मशाला के एक छोटे-से उपनगर मैक्लॉडगंज में स्थित था जो कि एक तरह से तिब्बतियों की भारत में राजधानी मानी जाती थी। वहाँ अनेकों बौद्ध मोनेस्ट्री थी। इसके आलावा सीनो धर्म के कुछ आश्रम भी थे।
कुछ ही मिनटों में वह अपनी मंजिल यानि ओसाका आश्रम पहुँच गया।
वह एक पहाड़ी के ऊपर निर्मित था, जहां जाने वाली सड़क संकरी थी, फिर भी कार या रिक्शा द्वारा आराम से ऊपर तक पहुँचा जा सकता था।
आश्रम की इमारत लाल-पीले रंग की थी, जो कि वृत्ताकार थी और वह तीन मंजिला थी, ऊपर के माले छोटे होते जा रहे थे और सबसे ऊपर एक छोटा-सा नुकीला गुम्बद बना था।
पीछे की ओर बर्फ से ढकी धौलाधार श्रृंखला थी जिसके दर्शन से अंतर्मन में एक सुखद अहसास होता था।
राज को आश्रम में प्रवेश करते ही बेहद अच्छा लगने लगा। काफी समय बाद मन में सकारात्मक भाव आ रहे थे।
वहाँ चारों तरफ भगवे कपड़े धारण किये दुबले-पतले पहाड़ी लोग घूम रहे थे। उनके सिर पर मात्र छोटी चुटिया भर के बाल थे। जिस किसी की भी नज़र राज पर पड़ रही थी वह उसका झुककर अभिवादन कर रहे थे। शायद वहाँ नये मेहमान का सभी इसी तरह स्वागत करते थे।
आश्रमनिवासियों के आलावा वहाँ कई और आगंतुक भी थे जो कि आश्रम के दर्शन करने आए थे।
भारत के पड़ोसी सीनो देश से उपजे सीनो धर्म के कई अनुयायी भारत में भी थे और उत्तर व पूर्वोत्तर भारत के पहाड़ी क्षेत्रों में इनकी काफी तादाद थी [4] । आश्रम में घूमते हुए एक पत्थर पर लिखी इबारत पर पढ़कर राज को पता चला कि ये आश्रम धर्मगुरु ओसाका ने नौ साल पहले स्थापित किया था और इसका उद्घाटन तत्कालीन हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा हुआ था।
आश्रम में एक हॉलनुमा पूजास्थल था जहाँ बड़े-बड़े पानी के कलशों के बीच दीप जल रहे थे। दीवारों पर सीनो भाषा के बड़े-बड़े अक्षरों में विभिन्न मन्त्र लिखे थे। अनुयायी पूजा करते हुए उन मन्त्रों का उच्चारण कर रहे थे जिनका गुंजन हॉल में व्यापक हो रहा था। राज उस परिवेश में मंत्रमुग्ध-सा हो रहा था।
यहाँ पहले ही क्यों न आया।
कुछ देर में पूजा समाप्त हुई और वह हॉल से बाहर आया। उसे याद आया कि वह यहाँ किसी उद्देश्य से आया था। पूछताछ के लिये उसके पास मफलर वाले की कोई फोटो भी नहीं थी। फिर उसे कुछ ख्याल आया और उसने फोन में आरती की फोटो निकाली।
असली उद्देश्य तो यहीं है।
उसने वह फोटो आश्रमनिवासियों को दिखानी शुरू की। कुछ लोगों ने साफ़ मना कर दिया। फिर उसने वह फोटो वहाँ उपस्थित औरतों को दिखाया। उन्होंने राज को कोई जवाब तो नहीं दिया पर अब वह उसे उपेक्षित नज़रों से देख रहीं थीं। कुछ ने सीनो भाषा में उससे कुछ कहा, जिसका मतलब तो वो नहीं समझा पर भाव से समझ गया कि वे उसे वहाँ से जाने को बोल रही हैं।
तभी वहाँ उपस्थित एक जवान लड़की उठकर उसके पास पहुंची। वह शक्ल से शहरी लग रही थी।
“किसे ढूंढ रहे हो ?” उसने राज से पूछा।
राज ने उसकी तरफ देखा। उसने भगवे रंग का कुर्ता-पायजामा पहना हुआ था। उसके मुख से साफ़ हिंदी सुनकर राज को कुछ सुकून महसूस हुआ।
“इस लड़की को ढूंढ रहा हूँ। इसका नाम आरती है।”
“तुम्हारी रिश्तेदार है ?”
राज ने हामी भरते हुए कहा – “इसके माता-पिता बेहद दुखी हैं।”
“मेरे साथ आओ।” उसने कहा और एक तरफ बढ़ गई। एक कोने में सीढ़ियाँ थीं। वह उन पर चढ़ती चली गई। ऊपर राहदारी थी जिस पर किसी छात्रावास की तरह कई कमरे नज़र आ रहे थे।
वह एक कमरे में प्रविष्ट हुई। वहाँ एक लड़की कुर्सी पर बैठी खिड़की के बाहर पर्वतों का नज़ारा देखते हुए स्वेटर बुन रही थी।
“दीपिका!” उसने उसे पुकारा।
वह पलटी। उसने लड़की को देखा और फिर स्वतः ही उसकी नज़र उसके पीछे खड़े राज पर चली गई।
राज उसे ध्यान से देखते हुए धीरे-धीरे उसके पास पहुँचा। पहले तो उसे देखकर उसे लगा कि शायद कोई धोखा हुआ है। उसने कई बार मोबाइल पर आरती की फोटो देखी और फिर उस लड़की को देखा। लड़की की शक्ल मिलती-जुलती तो लग रही थी पर फिर भी नैन-नक्श कुछ बदले हुए से थे।
वह लड़की उठ खड़ी हुई और कुछ सहमे से स्वर में बोली, “कौन हैं आप ?”
“तुम आरती हो ?”
“नहीं! मेरा नाम दीपिका है।”
“तुम मंडी की रहने वाली हो ?”
“नहीं!”
“तुम दिल्ली में नौकरी करती थीं ?”
“नहीं!”
“तुम रमन आहूजा को जानती हो ?”
“नहीं! लगता है आपको कोई ग़लतफ़हमी हुई है।”
राज ने एक बार और मोबाइल पर आरती की फोटो देखी और फिर उस लड़की पर नज़र डाली। वाकई दोनों अलग थीं। पर फिर इस लड़की को कैसे धोखा हुआ। उसने पलटकर उसे सवालिया दृष्टि से देखा और फोन दिखाया।
“एक बार को देखने पर ये बिलकुल दीपिका जैसी लग रही है। मैं भी धोखा खा गई।” वह हँसी।
“आप यहाँ कब से रह रही हैं ?” राज ने दीपिका से पूछा।
“अभी कुछ ही दिन हुए हैं।”
“किस शहर से हैं ?”
“धर्मशाला से ही हूँ। अनाथ हूँ। पहले एक अनाथाश्रम में रहती थी। कुछ समय पहले इस आश्रम के बारे में सुना और क्योंकि मैं सीनो धर्म में शुरू से विश्वास रखती थी तो यहाँ आ गई।”
राज कुछ पल वहीं खड़ा रहा। अपने अगले कदम को लेकर वो विचारता रहा। फिर अचानक बोला-
“आपको कष्ट देने के लिये सॉरी! आपकी शक्ल काफी मिलती-जुलती है आरती से। दरअसल ये लड़की मंडी से गायब है। इसके माँ-बाप बेहद परेशान हैं।”
“ओह! मैं प्रार्थना करुँगी वो आपको जल्दी मिल जाये।”
“थैंक्स!” राज ने कहा फिर वापस नीचे की तरफ चल दिया। उसके साथ आई लड़की वहीं रुक गई।
राज नीचे आ गया।
ऐसा लग रहा था कि मंजिल मिल गई पर लगता है अभी मंजिल काफी दूर है।
नीचे आकर वह वापस पूजा वाले हॉल में आ गया। एक जगह पालथी मारकर बैठकर उसने आँखें मूँद ली।
यूँ तो राज शायद ही कभी किसी मंदिर गया हो पर आज इस आश्रम में आने के बाद उसे कुछ अलग महसूस हो रहा था। उसका मन उद्वेलित था। वह मन ही मन रिंकी की आत्मा की शांति की प्रार्थना करने लगा। वह इस बात के लिये भी प्रार्थना करने लगा कि उसे अपने ऊपर लगे इल्जामों से बरी होने के लिये सही मार्गदर्शन मिले।
कुछ देर बाद उसने आँखें खोलीं। उसने हॉल की दीवार पर आलोकित हो रहे मन्त्रों की तरफ देखा। अचानक उसकी नज़र उसके सामने रखे फूलों पर गई। उसने देखा पूजा करते हुए लोगों के सामने पुजारी, पुजरिनें प्रसाद की तरह फूल रख रहे थे। उसने दूसरों का अनुसरण करते हुए फूल उठा लिये।
तभी उसने देखा फूलों के बीच एक छोटा सा नोट था। उसने पढ़ा- ‘एक घंटे बाद आश्रम के बाहर मिलो।’
राज ने हैरानी से चारों तरफ नज़र घुमाई। उसे पीछे दीपिका लोगों के सामने अपनी डलिया से फूल रखती नज़र आई। उसने राज को अनदेखा कर दिया।
राज ने मुस्कराते हुए फूल और नोट अपनी जेब में रखे और आश्रम से बाहर की तरफ चल दिया।
☐☐☐
आश्रम से बाहर कुछ दूरी पर एक पान की दुकान से सिगरेट का पैकेट हासिल करने के बाद राज यूँ ही सड़क किनारे समय व्यतीत करने लगा।
करीब एक घंटे बाद दीपिका बाहर निकलती नज़र आई। राज के पास से निकालते हुए उसने एक सरसरी नज़र उस पर डाली और आगे बढ़ गई।
राज उसके पीछे चल दिया।
कुछ दूर जाने के बाद वे उस पहाड़ी के एक कोने पर आ गये जो कि एक सनसेट पॉइंट था। फिलहाल वहाँ ज्यादा चहल-पहल नहीं थी। दीपिका खाई के किनारे रेलिंग के पास जाकर खड़ी हो गई। सामने ऊंचे-ऊंचे पर्वत थे और उनके नीचे स्लेटी रंग के बादल तैर रहे थे।
राज उसके पास आकर खड़ा हो गया और सामने देखते हुए बोला-
“तो तुम ही आरती हो ?”
उसने स्वीकृति में सिर हिलाया।
“तुम यहाँ क्या कर रही हो ?”
“मैं अब इसी आश्रम में रहती हूँ।”
“क्या तुम्हारे माँ-बाप को इस बारे में पता है।”
उसने इंकार में सिर हिलाया। उसके चेहरे पर पीड़ा के भाव उभर आये।
“पापा-मम्मी कैसे हैं ?”
“तुम्हारे पेरेंट्स हैं, बुजुर्ग हैं, तुम्हें मालूम होना चाहिये।”
“आप...कौन हैं ?”
“एक सरकारी जासूस। मैं तुम्हें तलाशते हुए अब तक तकरीबन पूरा हिमाचल घूम चुका हूँ।”
“मुझे क्यों तलाश कर रहे थे ?
“रमन आहूजा के लिये।”
उसने पलटकर राज को ध्यान से देखा। राज को उसकी खूबसूरत आँखों में दुःख के भाव दिखे।
“क्या आप भी उसकी टीम में थे ?”
“कौन-सी टीम ?”
“धीरज के मिशन की टीम।”
“नहीं! पर मुझे उसके बारे में जानना है।”
“धीरज तो मर चुका है। अब आप लोगों को और क्या चाहिये ?” वह तड़पते हुए शब्दों में बोली।
शायद इसको पता नहीं है कि आहूजा की मौत मेरे हाथों ही हुई थी। अगर पता चला तो ...
“धीरज के मिशन के बारे में पूरी जानकारी जानना देश की सुरक्षा के लिये बेहद ज़रुरी है। मुझे उम्मीद है तुम उसके बारे में जो कुछ जानती हो सच-सच मुझे बताओगी।”
“बताने की नीयत न होती तो यूँ आप से मिलने न आती।” आरती उसे गौर से देखते हुए बोली, “आप तो मुझे पहचान नहीं पाये थे। वापस ही चले जाते न ?”
josef
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राज चुप रहा। आरती पलटकर नीचे वादियों की तरफ देखने लगी और बोली, “इन गहरी वादियों की तरह ही गहरे रहस्य थे उस शख्स के जिससे मैंने प्यार किया था। कभी सोचती हूँ अगर वह मेरी ज़िंदगी में न आया होता तो आज मेरी ज़िंदगी कितनी अलग होती। खैर, शायद भगवान को ये मंजूर नहीं था कि मैं एक साधारण ज़िंदगी जियूं।
“मैं दिल्ली में एक आईटी कंपनी में नौकरी कर रही थी। वहीं रमन आहूजा यूके में हमारा क्लाइंट था। अक्सर काम के लिये मेरी उससे बातें होती थी। धीरे-धीरे हम लोग दोस्त बन गये और फिर दोस्ती कब लगाव में बदल गई, पता नहीं चला। मुझे यह बिल्कुल भी नहीं पता था कि धीरज मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने के अलावा एक इंटरपोल एजेंट भी था। हालाँकि उसने मुझे अपनी फैमिली के बारे में सब सच-सच बता दिया था। उसके फादर की कैसे करप्शन के हाथों बलि चढ़ी और फिर उसकी मां ने दूसरी शादी की और यूके शिफ्ट हो गई। इस तरह हम दोनों के बीच लॉन्ग डिस्टेंस रिलेशन बन गया। आज से करीब पाँच साल पहले उसने मुझे बताया कि वह इंडिया आने वाला है। मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा क्योंकि अब हम पहली बार फेस टू फेस मिलने वाले थे। वो इण्डिया आ गया और क्लाइंट विजिट के बाद हम दोनों कंपनी के बाहर मिले। दिल्ली में सात दिन साथ घूमे-फिरे।
“हम दोनों के बीच प्यार का इजहार हो गया। फिर उसने मुझे बताया कि असलियत में वह एक इंटरपोल एजेंट था। यह मल्टीनेशनल की नौकरी तो सिर्फ दिखावा था और इस वक्त वह एक मिशन पर भारत आया था और सीबीआई में उसके लिये एक ऑफिस उपलब्ध था। कुछ ही दिन में वह एमएनसी की नौकरी छोड़कर पूरा समय मिशन को देने वाला था।
“मैं हैरान रह गई। पर मैं खुश थी कि धीरज एक बहुत अच्छा काम कर रहा था। मेरे लिये उसके प्रति प्रेम और सम्मान दोनों बढ़ गए। क्योंकि वह अब दिल्ली में ही था हम अक्सर मिलते रहते थे। मैंने कई बार उसे अपने साथ मंडी चलकर मेरे परिवार वालों से मिलने के लिये कहा पर वह टालता रहा। उसके मिशन का काम बहुत ज्यादा था और उसके मुताबिक वह छुट्टी अफोर्ड नहीं कर सकता था। आज सोचती हूँ तो लगता है कि वो महज मुझे टाल रहा था। शायद मिशन पूरा होने तक वह किसी सीरियस रिलेशन में नहीं बंधना चाहता था।
“मैंने उससे मिलना कम कर दिया, वह भी कहीं मशरूफ था। फिर एक दिन उसने मिलने का आग्रह किया। उसका कहना था कि मिलना बेहद ज़रुरी है क्योंकि उसके बाद वह काफी समय तक मिल नहीं सकेगा। उस रात हम मिले और उसने बताया कि वह अंडरग्राउंड होकर काम करने वाला है और इस बीच उसका किसी से कोई संपर्क नहीं हो सकेगा। इस काम में कुछ साल लग सकते थे। उस रात मैं उससे लिपटकर बहुत रोई थी। ऐसा लग रहा था अब मैं धीरज से कभी नहीं मिल सकूंगी और...और देखो मेरा सोचना कितना सही था। वाकई उस रात के बाद मैं उससे कभी नहीं मिल सकी...”
कहते हुए आरती फफक-फफककर रोने लगी। उसकी कहानी सुनकर राज का दिल भी पसीज आया।
आखिर क्या ज़रूरत थी आहूजा को किसी लड़की की ज़िंदगी बर्बाद करने की जबकि वह जानता था कि जिस राह पर वह चल रहा है वहाँ कुछ भी हो सकता है ।
“किसी जंग पर गये फौजी की बीवी की तरह मैंने दो साल उसका इंतजार किया। फिर एक दिन अचानक उसका व्हाट्सअप्प कॉल आया। मैं बेहद खुश हुई। मुझे लगा धीरज वापस आने वाला है पर उसने मुझे कहा कि उसका मिशन अब बेहद क्रिटिकल मोड़ पर आ पहुँचा है, आगे कुछ भी हो सकता है। अगर उसे कुछ हो गया तो मैं तैयार रहूँ क्योंकि उसके बाद मैं भी सेफ नहीं रहूंगी पर उस दशा में मुझे मदद मिलेगी।”
“फिर क्या हुआ ?” रहस्य से रोमांचित होते हुए राज ने पूछा।
“उसके बाद मुझे समाचार मिला कि वह नहीं रहा। मिशन के दौरान उसकी डेथ हो गई।” उसकी आँखों से आंसुओं का सैलाब बहता ही जा रहा था।
“आरती! आई एम सॉरी फॉर योर लॉस पर आहूजा भटक गया था। बदले की भावना के चलते उसने गलत राह पकड़ ली थी। उसने मिशन पर बेहद अच्छा काम किया था पर उसने जो अपने ही देश से बदला लेने की प्लानिंग की हुई थी वहीं उसे महँगी पड़ गई।”
“जिस धीरज को मैं जानती थी वो एक कर्मनिष्ठ और सच्चा इंसान था। मैंने उससे प्रेम किया था। मैं उसे अच्छी तरह से जानती थी।”
“आरती! मैं तुम्हें कोई प्रवचन नहीं देना चाहता पर धीरज और मेरे जैसे जासूसों की अच्छी-खासी ट्रेनिंग होती है। हम लोग अपने मोटिव कभी आम इंसान पर ज़ाहिर नहीं होने देते। धीरज भी एक जासूस था और तुम जानती थी कैसे वह दिखावे के लिये मल्टीनेशनल कंपनी में काम कर रहा था। क्या उसकी असलियत कोई और जानता था ? वह तुम से प्रेम कर बैठा तो उसने खुद के बारे में तुम्हें काफी कुछ बताया पर क्या उसने अपने मिशन के बारे में तुम्हें कभी बताया ? नहीं न ? एक जासूस ये बातें आम इंसान के साथ शेयर नहीं करता और अपने असली मिशन के बारे में तो वो वैसे भी तुम से कभी सच नहीं बोलता क्योंकि उसके बारे में जानकर तुम उस से नफरत करने लगती।”
“क्या था उसका असली मिशन ?” वह रहस्य में फंसे हुए स्वर में बोली।
“वह अपने ही देश यानि भारत के अंदर न्यूक्लियर मिसाइल गिराकर क्रांति लाना चाहता था।”
“ऐसा नहीं हो सकता।”
“पर ऐसा ही हुआ है।”
“मैं नहीं मान सकती। तुम तो ऐसे बोल रहे हो जैसे वो कोई टेररिस्ट था। और...और मैंने भी न्यूज़ फोलो की है। मैं जानती हूँ ये न्यूक्लियर हमले का मिशन तो ISIK का था।”
राज ने न में सिर हिलाया। “वो सच है। पर रमन आहूजा का मिशन भी यहीं था।”
“तुम चाहते क्या हो ?” वह रोष भरे स्वर में बोली, “तुम झूठ बोल रहे हो न ? यहीं तुम जासूसों का काम होता है न। अभी तुम्हीं ने बोला था न... धीरज के खिलाफ मेरे मन में नफरत पैदा कर के मुझसे क्या हासिल करना चाहते हो ? मैं तो वैसे भी तुम्हें सब सच बता रही हूँ।”
“मैं तुम्हें किसी ग़लतफ़हमी में नहीं रखना चाहता। तुम जानती ही हो कि उसके पिता के साथ क्या हुआ था। उसी का बदला वह पूरे देश से ले रहा था।”
आरती अवाक सी राज को देखती रही। उसके चेहरे पर आश्चर्य और अविश्वास के मिश्रित भाव थे।
“मैं जानता हूँ आहूजा के साथी ही तुम्हें अब तक प्रोटेक्ट करते आये होंगे इसलिये तुम्हें सच नहीं पता...”
“मुझे नहीं पता! मुझे नहीं पता!” आरती झुंझला उठी – “पर मुझे यह जरूर पता है कि उसके ऊपर क्या बीती थी। उसका बचपन कैसा था। वह कैसा इंसान था। तुम नहीं जानते पर वो एक बेहद सेंसिटिव इंसान था...और कैसे न होता ? जब एक छोटे मासूम बच्चे को अपने पिता की दर्दनाक मौत के बारे में पता चलता है... क्या तुम समझ सकते हो उसके मन पर क्या असर होता है ? हो सकता है उन कारणों से उसकी थिंकिंग बदल गई हो।”
“हो सकता है, पर इससे देश पर हमला करने की कोशिश तो जस्टिफाई नहीं की जा सकती।”
अचानक ही उसके चेहरे के भाव बदले।
“तुम ज़रूर जानते हो।” वह राज के नजदीक आ गई और बोली, “तुम्हें पता है उसकी मौत किन हालातों में हुई। तुम्हें ज़रूर पता है उसे किसने मारा... ब...बताओ मुझे!”
“तुम ये जानकर क्या करोगी ?”
“पता नहीं! पर मुझे हक है ये जानने का।”
“वह हमारे देश के सुरक्षाबल में से एक...एक एनएसजी के हाथों मारा गया था।” राज उसकी आँखों में झांकते हुए बोला।
आरती के चेहरे पर भावुकता छाई हुई थी। बड़ी मुश्किल से उसके मुंह से शब्द निकले – “क्या...क्या उसे बिना मारे रोका नहीं जा सकता था ? शायद उसे कभी सही काउंसलिंग नहीं मिली। शायद साइकेट्रिक हेल्प मिलने के बाद वो सही हो जाता...”
राज नज़रें चुराते हुए बोला, “जिन हालातों में देश की सुरक्षा दांव पर लगी हो और एक पल में फैसला करना हो, सुरक्षाबल इसी तरह से फैसले करती है। जैसे कि जंग के मैदान में आर्मी वाला दुश्मन को देखते ही गोली चला देता है। उनके पास सोचने का समय नहीं होता। अपने देश को तबाही से बचाने के लिये अगर किसी ने ये कदम उठाया तो ये सही कदम था। जब न्यूक्लियर हमला होता है तो उसके परिणाम लोग कई सालों, कई पीढ़ियों तक भुगतते हैं। क्या तुम नहीं जानती जापान में क्या हुआ था ?”
आरती चुपचाप सुनती रही।
“तो फिर आहूजा की मौत के बाद तुमने क्या किया ?” राज ने पूछा।
“न्यूज़ मिलने के दो दिन बाद ही मुझे कुछ लोगों ने अप्रोच किया और फिर पूरा प्लान बनाया गया। शायद आहूजा को पहले ही ये अंदेशा हो गया था कि दुश्मनों को पता चल सकता है कि उसका मेरे साथ सम्बन्ध है इसलिये उसने मुझे बचाने का पूरा इंतजाम कर रखा था। फिर प्लान यही बना कि मैं दिल्ली से तुरंत अपने घर चली जाऊं और फिर वहाँ मेरी मौत का नाटक करके हमेशा के लिये मुझे गायब कर दिया जायेगा।”
“पर तुम्हारे परिवार वालों पर जो बीत रही है क्या तुम जानती हो ?”
“मैं जानती हूँ। उन्हें पता है – मैं जिंदा हूँ।”
“क्या ?” राज ने चौंककर उसकी तरफ देखा।
“हां! यह सच है।”
“फिर तो मानना पड़ेगा तुम्हारे पेरेंट्स को। काफी अच्छी एक्टिंग करते हैं।”
“दरअसल उनकी एक्टिंग नेचुरल इसलिये भी हुई क्योंकि जब मैं गायब हुई तो वाकई उनको यही खबर मिली थी कि मैं मर गई। पर उसके कुछ दिन बाद मैं उनसे गुप्त रूप से मिली और मैंने सब बता दिया।”
“ओह!”
“तो अब तुम्हारा क्या प्लान है ? यहाँ कब तक रहोगी ?”
“मैं यहाँ किसी प्लान के तहत नहीं रह रही हूँ। मेरी मौत के नाटक के बाद आहूजा के साथियों ने मुझे नई ज़िंदगी शुरू करने के कई आइडिये दिये थे। पर मैं सीनो धर्म को पहले से मानती थी। मेरे साथ जो हुआ उसने मुझे धर्म की तरफ और भी समर्पित कर दिया। उन्होंने मुझे मेकअप के सहारे शक्ल बदलना सिखाया और नया नाम और नई आइडेंटिटी दिलवाई इसीलिये तुम मुझे पहचान नहीं सके थे।”
“तो उसके बाद से तुम पर किसी ने कभी कोई हमला नहीं किया ?”
“नहीं!”
“तो इसीलिये जब तुम दिल्ली से चलीं थी तो पहले धर्मशाला आई थीं और उसके बाद मंडी गईं।”
“तुम्हें कैसे पता चला ?” उसने चौंककर पूछा।
“तुम भूल गई हो मैं एक सीक्रेट सर्विस का एजेंट हूँ। इस तरह के सीक्रेट पता करना मेरा जॉब है। तो उस वक्त धर्मशाला आने की क्या वजह थी ?”
“धीरज के दोस्तों को पता था कि दुश्मन मुझे गायब पाकर दिल्ली से ढूंढते हुए सीधे मंडी ही पहुंचेंगे, इसलिये दिल्ली से सीधे धर्मशाला आकर ही सारी प्लानिंग की गई।”
“अच्छा!
“तो यहाँ किसके साथ रुकी थीं ? कौन थे वे लोग ?”
“उससे तुम्हें क्या मतलब ? मैं उन लोगों के बारे में कुछ नहीं जानती।”
“चेहरे तो पहचानती ही होगी।”
“मैं जितना जानती थी तुम्हें सब बता दिया अब तुम और क्या चाहते हो ? जिन लोगों ने मेरी मदद की मैं उनके खिलाफ नहीं जा सकती।”
“अब तुम जान चुकी हो कि रमन आहूजा गलत राह पर था तो उसके साथी भी गलत राह पर हो सकते हैं। तुम्हें कैसे पता जो तुम्हें खोजते हुए आने वाले थे वो देश के दुश्मन थे ? वो मेरे जैसे जासूस भी हो सकते हैं जो देश का हित चाहते हैं।”
आरती के चेहरे पर असमंजस के भाव आ गये।
“तुम एक सीधी-सादी लड़की हो। तुम्हें जो बोला गया–तुमने सच समझ लिया। अच्छा ये तो बताओ- मैं तो यहाँ से लौटकर जा रहा था फिर तुम खुद आगे बढ़कर मुझसे क्यों मिलीं ? मुझे अपनी असलियत क्यों बताई ?”
“तुमने मेरे पापा-मम्मी का ज़िक्र किया था इसलिये मुझे चिंता हो गई थी और मुझे लगा शायद तुम भी आहूजा के दोस्तों में से एक हो।”
“देखो...” राज मुस्कराया – “कितनी आसानी से तुमने मुझ पर भरोसा कर लिया। अगर मैं तुम्हारा नुक्सान करने की नीयत से आया होता तो... ?”
आरती ने शंकित निगाह उस पर डाली। “पर तुम ऐसे लगते तो नहीं...”
“यही तो बात है। आप किसी की शक्ल से उसकी इंटेंशन नहीं बता सकते। खैर, लकिली मैं तुम्हारे लिये अच्छा ही निकला और अगर सब ठीक रहा तो तुम्हें इस तरह की गुमनाम ज़िंदगी नहीं बितानी पड़ेगी।”
“और बदले में तुम उनके बारे में जानना चाहते हो जिन्होंने बुरे वक्त में मेरी मदद की ? तुम चाहते हो मैं उन लोगों की जानकारी तुम्हें दे दूँ जिन्होंने मेरी जान बचाई ? तुम क्या मुझे इस हद तक खुदगर्ज समझते हो ? तुम चाहे मेरे साथ कुछ कर लो उन लोगों के बारे में तुम्हें कुछ नहीं बताऊंगी।”
“तुम्हें क्या लगता है–सोहनगढ़ माइंस में जो हुआ उसका परिणाम सिर्फ तुम भुगत रही हो ? बहुतों ने अपनों को खोया है। एक कर्तव्यनिष्ठ कमिश्नर हुआ करता था उसे उसकी बेटी ने अपनी आँखों के सामने ज़िंदा जलकर मरते हुए देखा था। एक भाई-बहन प्रतिशोध की आग में जल रहे थे, पर दोनों ने अलग तरीका चुना, एक ने कानून के साथ और दूसरे ने कानून को हाथ में लेकर...”
“तुम किसकी बात कर रहे हो ?”
“आहूजा के मिशन में उसका एक पार्टनर था- समीर चौधरी उर्फ नूर मोहम्मद! वो असल में एक इंडस्ट्रियलिस्ट था पर गुप्त रूप से आहूजा के साथ मिशन पर लगा था। उसकी बहन एक जासूस थी। जब उसे पता चला कि उसका भाई एक आतंकवादी बन चुका है और उसे रोकना नामुमकिन हो गया तो उसे खुद अपने हाथों से उसकी जान लेनी पड़ी। इस अपराधबोध के चलते वह खुद भी जीवित न रह सकी और उसने मेरी आँखों के सामने अपनी कनपटी में गोली मार ली।”
आरती उसे देखती रही।
“तुम उस वक्त वहीं थे ?” उसने पूछा।
“हा...हाँ!” राज को अचानक लगा कि उसे शीशे में उतारने के चक्कर में वह कुछ ज्यादा ही बोल गया।
“धीरज कैसे मरा था ?”
राज चुप रहा।
“प्लीज़ मुझे बताओ- मैं जानना चाहती हूँ।”
“मैंने तुम्हें बताया तो था एक एनएसजी...”
“मतलब...उसे कहाँ गोली लगी थी ? क्या वह दर्द से तड़पा था...क्या... ?”
“क्यों तुम अपने गम को बढ़ाना चाहती हो ?”
“प्लीज़! मेरे लिये ये जानना ज़रूरी है।”
“वो न्यूक्लियर मिसाइल चलाने जा रहा था, तब एनएसजी ने उसे चेतावनी दी। पर फिर भी वह नहीं रुका तो उस पर फायरिंग कर दी। गोली ठीक उसके सर में लगी थी। वह तुरंत ही मर गया था।”
आरती ने आँखें बंद कर लीं। उन में से आँसू टपक पड़े। कुछ पल बाद खुद को संयमित करते हुए वह बोली-
“मैं मानती हूँ हिंसा में कुछ नहीं रखा है। मेरे साथ जो हुआ सो हुआ पर अब मैं शांतिपूर्वक अपना जीवन बिताना चाहती हूँ। तुम अब लौट जाओ। आहूजा के बारे में यहाँ तुम्हें इससे ज्यादा कुछ और पता नहीं चलने वाला। मैं तुम्हारी तरह जासूस न सही पर लोगों की पहचान मुझे भी है। जिन लोगों ने मेरी मदद की वह शांतिप्रिय लोग हैं...”
“शांतिप्रिय! वो लाश किसकी थी ?”
“कौन सी ?”
“जिसे तुम्हारी बता कर केस बनाया गया था।”
“उससे क्या फर्क पड़ता है ?”
“फर्क ही नहीं पड़ता! वाह! अभी तो तुम हिंसा के खिलाफ थीं और वो लोग शांतिप्रिय हैं ? किसी की जान लेकर यह स्वांग रचाया गया और कुछ फर्क ही नहीं पड़ता!”
“तुम्हें क्या लग रहा है – किसी का मर्डर किया गया था ? अरे वो लाश हॉस्पिटल से अरेंज की गई थी, एक गुमशुदा लड़की मरी हुई मिली थी।”
“तुम्हें क्या पता ? तुमने खुद थोड़ी न अरेंज की होगी।”
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