Thriller मिशन

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josef
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Re: Thriller मिशन

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रात के एक बज चुके थे।
राज आश्रम के बाहर घूमकर वापस आया।
आश्रम के आँगन में आरती, वैध और ओसाका के दो ख़ास शिष्य बैठे विचार-विमर्श कर रहे थे। ओसाका अपने कमरे में चला गया था।
राज गहरी सोच के साथ बोला, “आश्रम से निकलना आसान नहीं होगा। गेट के आस-पास रोड की दोनों तरफ, सादे लिबास में पुलिस का पहरा है।”
“इसका मतलब– अगर हम निकले तो वो हमें रोकेंगे तो नहीं पर पीछा ज़रूर करेंगे।” आरती बोली।
“कह नहीं सकते। रोक भी सकते हैं।”
“पर हमारे खिलाफ उनके पास अभी कोई अरेस्ट वारंट नहीं होगा।”
राज सोच रहा था। फिर वह बोला, “हमें गुप्त रूप से निकलने का प्लान बनाना होगा।”
“ओके! तुम जासूस हो तुम ही कुछ सुझाओ।”
कुछ देर राज विचारमग्न होकर आँगन में चहलकदमी करता रहा। फिर वह उन सबकी तरफ पलटा और अपना प्लान समझाने लगा।
☐☐☐
एक बजकर चालीस मिनट हुआ था।
ओसाका के आश्रम से एक के बाद एक मोतिरी बाहर निकलकर प्रांगण में एकत्रित होने लगीं।
सुरेश एक पुलिस जीप में बाहर पहरे पर था। उसकी नज़र आश्रम में हो रही इस नई गतिविधि की तरफ गई।
वह संभलकर बैठ गया। उसने दूरबीन से उस तरफ नज़र डाली। भगवे वस्त्र धारण की हुई करीब दस औरतें वहाँ एकत्रित हो चुकी थीं और कुछ और आश्रम के अन्दर से बाहर आ रहीं थीं।
सुरेश ने ज़ाहिद को फोन मिलाया।
“आश्रम में कुछ एक्टिविटी दिखाई दे रही है। औरतें निकलकर सभा बना रही हैं।”
“ राज है तो कुछ न कुछ प्लान करेगा ही। जो भी हो हमें आश्रम से निकलने वाले सभी लोगों का पीछा करना है या उन्हें रोकना है।”
“पर हम यहाँ कुल बारह लोग ही हैं। अगर आश्रम के लोग अलग-अलग दिशा में निकलने लगे तो पीछा करना मुश्किल होगा।”
“तो निकलते हुए लोगों की शक्ल देखते रहना। जो शक्ल छिपाने की कोशिश करे वहीं हमारा टारगेट होगा, यानि– ओसाका और राज। उनके अलावा बाकि लोगों से हमें क्या।”
“राईट! अरेस्ट वारंट का क्या हुआ ?”
“मैं कोशिश तो कर रहा हूँ, पर कल सुबह से पहले ये काम होना मुश्किल है।”
“ओके! नो प्रॉब्लम! मैं उन्हें कहीं भी अकेले निकलने नहीं दूंगा।”
“गुड!” कहकर ज़ाहिद ने कॉल समाप्त की।
सुरेश बराबर आश्रम पर नज़र रखे हुए था। अब वहाँ करीब तीस महिलाएं दिखाई दे रही थीं। फिर वे मुख्य द्वार की तरफ बढ़ीं।
सुरेश एक कांस्टेबल से बोला, “उन्हें रोको और पूछो इतनी रात को बाहर निकलने की क्या वजह है।”
“जी!”
तीन कांस्टेबल गेट की तरफ चल दिये।
मोतिरी गेट से बस बाहर निकलने ही वाली थीं।
“रुक जाइए!” कांस्टेबल ने कड़क आवाज़ में कहा।
“क्या है ?” एक बुजुर्ग औरत ने पूछा।
“आप इतनी रात में कहाँ जा रही हैं ?”
“तुम कौन होते हो पूछने वाले ?”
वह हड़बड़ाया– “मैं...मैं पुलिस में हूँ।”
“क्या रात को निकलना अपराध है ?”
“नहीं! पर आधी रात को बड़े गुट में सड़कों पर निकलना निषेध है।”
“हम कोई धरना देने नहीं जा रहीं। ये हमारी प्रथा है। हम लोकेश टेकरी पर जा रही हैं।”
“इतनी रात को! पर क्यों ?” दूसरे कांस्टेबल ने पूछा। “ये सुरक्षा के लिहाज से भी ठीक नहीं है।”
इधर सुरेश तीक्ष्ण नज़रों से सभी औरतों के चेहरे देख रहा था।
मेरे आम! अगर तू औरत के भेष में है तो मेरी नज़रों से तो नहीं बच पायेगा।
कुछ मिनटों बाद सभी मोतिरी सड़क पर आ गईं । पुलिस ने हार मान ली और उन्हें जाने दिया।
सुरेश ने उन्हें वापस बुलाया और कहा– “दो लोग मेरे साथ चलेंगे और बाकि यहीं रुकें।”
“सर, उनकी हरकतें तो संदिग्ध हैं पर वो सभी औरतें हैं। ऐसा लगा नहीं कोई आदमी औरत के भेष में रहा हो।”
“तुम इतने कॉन्फिडेंस से कैसे बोल सकते हो।” सुरेश ने कहा तो वह हड़बड़ा गया।
“हमने सभी को ध्यान से देखा था।”
सुरेश उन पर मुस्कराया। “कभी अय्यारों के बारे में सुना है ?”
“अय्यार! हाँ...चन्द्रकान्ता में देखा था।”
“हाँ! वहीं! अय्यारों की खासियत होती है कि वह किसी का भी भेष धारण कर सकते हैं, अपोज़िट सेक्स का भी।”
“पर वो तो जादू से ऐसा करते थे।”
“कुछ जासूस भी जादूगर से कम नहीं होते।”
कांस्टेबल मुस्करा दिया। एक हंस पड़ा।
“अब जाओ– उनके पीछे।”
फिर एक जीप आगे बढ़ गई जिसे कांस्टेबल चला रहा था और उसके अलावा दो कांस्टेबल और बैठे थे।
सुरेश एक दूसरी पुलिस जीप में आकार बैठ गया। एक बार फिर उसकी व बाकि पुलिसकर्मियों की नज़रें आश्रम की तरफ घूम गईं।
अभी कुछ ही मिनट गुजरे थे कि आश्रम के अन्दर से बारह औरतों की एक और टोली निकली।
इस बार पुलिस वालों के साथ सुरेश गेट पर पहुँचा।
एक कांस्टेबल अड़कर रास्ते में खड़ा हो गया।
“अब आप लोग कहाँ जा रहे हैं ?”
“लोकेश टेकरी!”
“आज पूरा आश्रम उधर ही जायेगा क्या ?”
वे चुप रहीं। सुरेश चुपचाप सभी की शक्लें ध्यान से देख रहा था।
“आप लोग नहीं जा सकतीं।”
“क्यों ?”
“अरे, इतनी औरतें आधी रात को बाहर घूमेंगी तो...आप लोगों की सुरक्षा की जिम्मेदारी कौन लेगा ?”
“आप हमारी चिंता न करें।” एक वरिष्ठ मोतिरी बोली, “हमारा ईश्वर हमारा रखवाला है।”
“पर...” वह शायद कुछ और देर उन्हें टरकाता पर सुरेश ने आँखों के इशारे से उसे उन्हें जाने देने को कहा।
“ठीक है! जाइये...”
वे आगे बढ़ गईं और सुरेश इस बार एक कांस्टेबल के साथ जीप में सवार होकर उनके पीछे लग लिया।
जाने से पहले उसने वहाँ उपस्थित एक कांस्टेबल को आश्रम पर नज़र रखे रहने का निर्देश दिया।
☐☐☐
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