Thriller मिशन

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josef
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“नहीं! पर मुझे पता है। तुम चाहो तो मंडी के हॉस्पिटल जाकर पता कर लेना। लाश अरेंज करना आसान नहीं था पर जब अरेंज हो गई–उसके बाद प्लान बनाया गया। ऐसा नहीं था कि कहीं से रेंडम लड़की पकड़ ली और उसे मारकर मेरी जगह डाल दिया गया। यह लोग दरिंदे नहीं है।”
“निर्दोष लोगों को इस तरह मरने का नाटक कर के अपनी आइडेंटिटी खत्म नहीं करनी पड़ती।”
“तुम समझ नहीं रहे हो।”
“समझ तुम नहीं रहीं। वो लोग शायद नहीं चाहते कि तुम सरकार के हाथ लगो। उन्हें डर होगा कि तुम से आहूजा की कोई इन्फोर्मेशन लीक हो सकती है।”
“अगर ऐसा होता तो वो मुझे वाकई मार ही नहीं देते ?”
“तर्क अच्छा है! पर मैं जानता हूँ आहूजा की दुश्मनी भारत के आम नागरिकों से नहीं बल्कि सरकार से थी। शायद उसके साथियों की धारणा भी कुछ ऐसी थी। आहूजा को तो नहीं बचाया जा सका पर अगर तुमने मदद की तो इन लोगों को ज़िंदा पकड़कर सही रास्ते पर लाया जा सकता है।”
आरती के चेहरे पर ऐसे भाव आये जैसे अब राज की बात उसे समझ आने लगी हो।
“अगर तुम वाकई मानती हो कि धीरज और उसके साथी अच्छे लोग हैं तो उनके बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी मुझे दो ताकि उन्हें आतंकवादी की उपाधि न मिले बल्कि उन्हें सिर्फ गुमराह नवयुवक माना जाये।”
आरती बेचैनी से इधर-उधर देखने लगी।
“मैं जब तक तुम्हारे इन रहनुमाओं से मिल नहीं लेता तब तक विश्वास नहीं कर सकता की वह देश के रक्षक है या भक्षक।”
“मैं तुम्हें उनसे नहीं मिला सकती।”
“तुम्हें मुझे किसी से मिलवाने की जरूरत नहीं। वह लोग जहाँ मिल सकते हैं वो लोकेशन और उनके कॉन्टेक्ट नंबर मुझे दे दो।”
“मेरे पास कोई जानकारी नहीं है। वे लोग खुद मुझसे मिलते थे और कॉन्टेक्ट करते थे। फोन का कभी इस्तेमाल नहीं किया।”
“परसों उन में से कोई मिलने आया था यहाँ ?” पूछते हुए राज ने उसे मफलर वाले का हुलिया बताया।
“हाँ! आया था।”
“क्या नाम है उसका ?”
“मैं उसे रघु नाम से जानती हूँ।”
“क्यों मिलने आया था ?”
“उसने मुझे सतर्क रहने के लिये कहा था। उसका कहना था कि कोई मुझे मंडी में ढूंढ...” कहते हुए आरती अचानक ही रुक गई।
राज मुस्कराया और फिर बोला, “अब समझी न ? एक जासूस, देश के रक्षक से सतर्क रहने के लिये कह रहे थे वो। अगर उनकी नीयत अच्छी थी तो ऐसा क्यों करते वो ?”
“हो सकता है वो तुम्हारी असलियत न जानते हों। बस ये देख रहे हों कि कोई मुझे ढूंढ रहा है।”
राज ने उसे प्रशंसात्मक भाव से देखते हुए कहा- “मानना पड़ेगा। तुम उनके बारे में गलत सोचने के लिये तैयार ही नहीं।”
“जिन्होंने हमेशा मदद की हो उन पर इतनी आसानी से भरोसा कैसे टूटेगा ?”
“वेलिड पॉइंट! पर उन्होंने मुझ पर जानलेवा हमला किया था।”
“तुम उन्हें अगली बार अपनी असलियत बता देना, शायद वो सहयोग करें।” अचानक वो चारों तरफ बढ़ती भीड़ देखकर कुछ उद्वेलित हो गई। शाम होते ही लोग घूमने-फिरने उस तरफ आने लगे थे। “अब मैं चलती हूँ। बहुत देर हो गई है।”
तेजी से पलटते हुए वो लड़खड़ा गई। राज ने लपककर उसे गिरने से बचाया।
“थै...थैंक्स!” वो उसकी आँखों में देखते हुए कुछ शरमाते हुए बोली।
“थैंक्स तो मैं तुम्हें करना चाहता हूँ। तुमने कैसे भी सही पर मुझ पर विश्वास करके इतना कुछ बताया।”
“तुम्हारा नाम क्या है ?”
“अमन शर्मा!” राज बोला।
“अमन! मैं तुम्हारी मदद ज़रूर करुँगी पर प्लीज़...मैं अब अपने जीवन में कोई नये ट्विस्ट नहीं चाहती।”
“चिंता मत करो। सब सही हो जायेगा। अगली बार जब उन में से किसी से मुलाकात होने वाली हो तो क्या तुम मुझे बताओगी ?”
वह हिचकी।
“अगर वाकई शांति चाहती हो तो ये ज़रुरी है।”
उसने सहमित में सिर हिलाया।
“मुझे इस नंबर पर कॉल करना” राज ने कागज़ पर उसे एक नया मोबाइल नंबर लिखकर दिया, जो उसने हाल ही में हासिल किया था। “कॉल न लगे तो मैसेज छोड़ देना। आशा करता हूँ तुम्हारे पास...”
“फोन है!”
“ओके! बाय!” राज ने उससे विदा ली और फिर दोनों सनसेट पॉइंट से अलग-अलग दिशाओं में बढ़ गए। सूरज धीरे-धीरे पहाड़ों की ओट में छिपने को अग्रसर था।
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वर्तमान समय
नई दिल्ली
सुरेश और ज़ाहिद सीक्रेट सर्विस की दिल्ली ब्रांच के गेस्ट हाउस में अपने कमरे में शाम बिता रहे थे जब सुरेश को इल्यास का फोन आया।
“बोलो इल्यास!”
“सर रज़ा मलिक के बारे में कुछ-कुछ पता चला है। उसे दिल्ली में ही रिक्रूट किया गया था। उससे पहले वह पुरानी दिल्ली में उठाईगिरी, चोरी-चकारी किया करता था। फिर उसने दो मर्डर किये, जिससे आईएसआई काफी इम्प्रेस हुआ और फिर उसे रिक्रूट किया गया।”
“वो कहाँ रहता था ?”
“काफी समय पुरानी दिल्ली में ही रहा था।”
“एड्रेस मिलेगा ?”
“कोशिश करता हूँ।”
“उसको अच्छे से जानने वाला कोई और पता चले तो भी बताना।”
“जी ज़रूर।”
फोन रखकर सुरेश बोला, “उम्मीद है जल्दी उसके बारे में कुछ सबूत मिल जाये।”
ज़ाहिद ने सहमति में सर हिलाया। इस वक़्त उसने लैपटॉप पर एक लिस्ट खोल रखी थी।
“क्या देख रहे हो ?”
“फ्लाइट 301 की पैसिंजर लिस्ट। इन सभी पैसिंजर्स के बारे में जानना जरूरी है क्योंकि इन्हीं में से कोई पैसिंजर इस हाईजैकिंग या विमान गायब होने की वजह हो सकता है। अब वो कोई एक पैसिंजर है या अनेक यह पता लगाने वाली बात है।”
सुरेश भी लिस्ट देखने लगा।
“तुम ठीक कह रहे हो। तो जो जांच पहले हुई थी उसकी रिपोर्ट क्या कहती है ?”
“उस रिपोर्ट में सभी पैसिंजर्स के बारे में लिखा हुआ था। कोई भी ऐसा वीआईपी नहीं था जिसकी वजह से पूरा प्लेन हाईजैक कर लिया जाये। ज्यादातर आम नागरिक थे, कुछ बिजनेसमैन, तीन पॉलीटिशियंस के रिश्तेदार, इत्यादि। पर इनमें से कोई भी ऐसा अहम इंसान नहीं था जिसकी वजह से कोई इतना बड़ा अभियान रचे।”
“पॉलीटिशियन के रिश्तेदार! क्या तुमने देखा कौन से पॉलीटिशियन थे ?”
“हां! मैंने देखा था। अलग-अलग पॉलीटिशियन थे। कोई बहुत बड़ा नहीं था। सब स्टेट लेवल तक के पॉलीटिशियन थे। दो पैसिंजर्स अलग-अलग नेताओं के बेटे थे और एक की बीवी थी। तीनों ही पॉलीटिशियंस या उनके इन तीन रिश्तेदारों का आपस में दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं था।”
“वैसे भी कोई फिरौती नहीं मांगी गई थी।” सुरेश सोच में डूबता हुआ बोला।
“हाँ। वहीं तो। पर अब मेरा ध्यान उन पाँच लोगों पर है जिन पर इस रिपोर्ट में खास तवज्जो नहीं दी गई। ऐसे पाँच लोग जो यह फ्लाइट बोर्ड करने वाले थे पर उन्होंने बोर्ड नहीं की। उनका रिजर्वेशन था फिर भी उन्होंने फ्लाइट बोर्ड नहीं की। मेरा ध्यान उन पर है।”
“हो सकता है आखिरी मौके पर प्लान चेंज हो गया हो। ऐसा अक्सर होता ही है। फिर लोग फ्लाइट कैंसिल भी नहीं करते क्योंकि पैसा तो उनका पूरा जाता है।”
“तुम्हारी बात ठीक है। पर मुमकिन है कोई दूसरी वजह हो ?”
सुरेश ने ज़ाहिद की तरफ देखा और सहमति में सिर हिलाया।
“हैं कौन यह पांच लोग ?” सुरेश ने पूछा।
“सुज़ुकी नामक धर्मगुरु और उसके चार शिष्य।”
“सुज़ुकी! सीनो देश का वह धर्मगुरु जो सीनो देश से भागा हुआ है और भारत ने उसे शरण दी हुई है ?”
“हाँ। वहीं।”
“उनके अलावा कोई और भी ऐसा पैसिंजर था जिसने फ्लाइट बोर्ड नहीं की ?”
“नहीं! यहीं पाँच दिखाई दे रहे हैं।” ज़ाहिद ने कहा।
सुरेश स्क्रीन को घूरते हुए बोला, “इन्हें किस तरह कॉन्टेक्ट किया जा सकता है ?”
“मुझे नहीं लगता उसके लिये कोई विशेष प्रोटोकॉल है। आखिर वह रेफ्यूजी हैं कोई वीआईपी नहीं। हम लोग अपने मिशन के अंतर्गत आराम से उनसे मिल सकते हैं।”
“ज्यादा दूर भी नहीं है।” सुरेश बोला, “हिमाचल में ही है न इन का आश्रम ?”
“हाँ! धर्मशाला! चलना है मिलने ?”
“चलते हैं। पर ये लोग तो सीनो भाषा बोलते हैं। एक इंटरप्रेटर भी साथ ले जाना पड़ेगा।”
“उसकी व्यवस्था चीफ करा देंगे।”
“बढ़िया! फिर दो-तीन दिन में निकलते हैं।” सुरेश उठते हुए बोला, “तब तक यहाँ जो काम फैलाया है उसे निपटा लेते हैं। कोमजुम लोल्लेन, निक, रज़ा मालिक – इन तीनों के सिरे देखने हैं कहाँ जाकर मिलते हैं।”
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josef
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वर्तमान समय से सात साल पहले- सन 2012
अज्ञात जगह, एनसीआर
कमरे में सिगरेट का धुआं मौजूद था।
रमन आहूजा अपने दो साथियों के साथ उस कमरे में मौजूद था। उनमे से एक लैपटॉप के सामने बैठा था। दूसरा कमर पर हाथ रखकर खड़ा था। वह छोटे कद का छोटी-छोटी आँखों वाला बलिष्ठ पहाड़ी था।
सिगरेट का कश लेकर धुंआ छोड़ते हुए आहूजा बोला, “क्या हुआ निक? तुम परेशान क्यों हो?”
“क्या तुमने मेरे प्लान के बारे में सोचा?”
“सोचा! पर वो प्लान हमारा नहीं। किसी और का है। मिशन अंतर्द्वंद्व किसी और की टर्म्स पर नहीं चल सकता।”
“कौन तुम्हें टर्म्स बता रहा है?”
“अल्टीमेटली तो प्लान किसी और का है तो टर्म्स भी उसी की चलेंगी।”
“प्लान हमें उनके साथ मिलकर बनाना है।”
“उनका उद्देश्य क्या है?”
“वहीं जो हमारा है। देश को करप्शन से मुक्त करना।”
“सिर्फ कहने से क्या होता है? हम ऐसे कैसे उन पर विश्वास कर लें? आई मीन- प्लेन हाइजैकिंग कोई मजाक नहीं है और इसके पीछे उनका असली उद्देश्य कुछ और भी हो सकता है।”
“क्या तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं?”
“ये बेतुका सवाल है।”
“जिस तरह तुम्हें मुझ पर विश्वास है उसी तरह मुझे भी उन पर है। मैं जानता हूँ वे कोई टेररिस्ट या माफिया नहीं। मैं तुम्हारी उनसे मीटिंग कराता हूँ तुम...”
आहूजा ने उसे टोका- “वो बाद में करेंगे पहले बताओ उद्देश्य क्या है?
“इस प्लेन के ज़रिये दो करप्ट लोगों को ब्लैकमेल किया जायेगा उससे हजारों करोड़ की जो धनराशि मिलेगी उसे वापस गवर्नमेंट को पहुँचाया जायेगा – सोचो ये बात जब आम पब्लिक तक पहुंचेगी तो हर कोई जानेगा कि मिशन अंतर्द्वंद्व वाले क्या कर सकते हैं, हमें मास सपोर्ट मिलेगा।”
“उसका हम क्या करेंगे? हमें इलेक्शन थोड़ी न लड़ना है।”
“पर तुम ही कहते हो न कि मिशन के बारे में ज्यादा से ज्यादा लोगों को पता चलना चाहिये।”
“हाँ!...पर प्लेन में कितने बेक़सूर लोग होंगे। उनकी जान को खतरे में डालना ठीक नहीं।”
“कुछ बड़ा करने के लिये थोड़ा तो रिस्क लेना होगा। और अभी प्लान बनना है। वो हमारे ही ऊपर है कि ऐसा प्लान बनायें कि किसी पैसिंजर को नुक्सान न हो।”
“प्लेन ही क्यों? उन लोगों को सीधे किडनैप क्यों न कर लिया जाये?”
“वो एक वीवीआईपी से जुड़े लोग हैं, उन्हें खास सिक्योरिटी हासिल है। देश में रहकर उन पर हाथ डालना मुश्किल है। अगर सफल हो भी गये तो सबकुछ होने के बाद कहाँ भागेंगे। इसलिये प्लेन द्वारा देश के बाहर ले जाकर ये डीलिंग आसन होगी। खैर वो सब उनका हेडेक है– हमें कहीं नहीं जाना होगा।”
आहूजा ने सिगरेट का फ़िल्टर ऐशट्रे में कुचला। वह सोच में डूबा था।
निक आहूजा का बचपन का दोस्त था। दोनों के घर अगल-बगल हुआ करते थे। करीब दो महीने पहले आहूजा को यूँ ही लगा कि उसके हाल-चाल पता किये जांए क्योंकि भारत छोड़ने के बाद से वह उसके कॉन्टेक्ट में नहीं था। आहूजा को पता चला कि वह धर्मशाला में किसी धर्मगुरु के आश्रम में रह रहा था। वह निक से मिलने पहुँचा। निक उसे देखकर चौंका फिर उसके गले लग गया। आहूजा ने उसे आश्रम में रहने का कारण पूछा। निक ने बताया कि उसे पुलिस ने ड्रग्स बेचने के झूठे इलज़ाम में फंसा दिया था और तीन साल जेल की सजा काटने के बाद वह डिप्रेशन से जूझता धर्मगुरु सुज़ुकी के आश्रम में आ गया था।
आहूजा उसे आश्रम से बाहर लाया। उसने उस पुलिस वाले के बारे में उसे पूछा और फिर मिशन अंतर्द्वंद्व के अंतर्गत पहले आहूजा ने उस सब इंस्पेक्टर के बारे में बैकग्राउंड चैक किया- पता चला कि वह एक करप्ट अफसर था।
ये पहला मौका था जब आहूजा ने किसी वर्दीधारी पर हाथ डाला था, पर काम निर्विध्न हुआ। उसे किडनैप किया गया, उसे टॉर्चर करके उसके सारे काले धंधे पता किये गये और फिर उसकी लाश उसकी काली करतूतों के सबूत सहित पुलिस थाने के बाहर डाल दी गई।
पुलिस ने बहुत हाथ-पाँव मारे पर हमेशा की तरह मिशन अंतर्द्वंद्व ने कोई सबूत नहीं छोड़ा था। सब इंस्पेक्टर के सताए हुए लोगों की लिस्ट भी काफी लंबी थी इसलिये किसी ने निक पर शक भी नहीं किया।
उसके बाद आश्रम छोड़कर निक आहूजा के साथ दिल्ली आ गया और मिशन अंतर्द्वंद्व में उसका अहम साथी बन गया।
“अगर हमें वाकई देश में कुछ बदलाव लाना है तो इसी तरह से कुछ बड़ा करना होगा।” निक बोला, “तभी कुछ होगा। अरबों की आबादी में यूं कब तक हम एक-एक करप्ट इंसान को ढूँढेंगे और सजा देंगे?”
आहूजा चुपचाप शून्य में घूरता रहा। लैपटॉप में मशगूल उसके साथी ने काफी देर बाद नज़रें उठाई और बोला, “मुझे निक की बात सही लग रही है।”
आहूजा ने सहमति में सिर हिलाया। “ठीक है! उनके साथ मीटिंग फिक्स करो।”
निक ने उत्साह से उसकी तरफ देखा फिर अपने मोबाइल की तरफ हाथ बढ़ाया।
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josef
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वर्तमान समय
हिमाचल प्रदेश
पिछली शाम जब राज ने खुद ही आरती को गिराया और फिर संभाला, तब उसने उसकी गर्दन पर एक बेहद सूक्ष्म जीपीएस डिवाइस चिपका दिया था। ऐसा डिवाइस जो खाल पर तुरंत चिपक जाता था। वह इतना चपटा था कि उसे छूने पर भी किसी को आभास न हो। वह किसी तिल की तरह आरती की गर्दन पर चिपका हुआ था और लगातार उसकी लोकेशन राज तक पहुँचा रहा था।
सुबह आठ बजे जब राज होटल में नाश्ता कर रहा था उसे आरती की लोकेशन आश्रम से बाहर निकलती हुई नज़र आई।
फटाफट नाश्ता निपटाकर वह उठा और अपने फोन में नज़र रखते हुए बाहर निकला। उसने एक ऑटो रिक्शा किया और आश्रम की तरफ चल दिया। आरती की लोकेशन आश्रम की पहाड़ी से नीचे उतरती हुई दिखाई दे रही थी तो राज पहाड़ी पर नहीं गया बल्कि उसने रिक्शा वाले को कुछ मिनट नीचे ही रुकने को कहा। कुछ ही देर में एक रिक्शा वहाँ से निकला। लोकेशन के हिसाब से राज को समझ आ गया कि वह उसी में थी, साथ ही उसे उसकी हल्की-सी झलक भी दिखाई दे गई थी। अब वह उसके पीछे लग गया।
कुछ दूर जाने के बाद आरती रिक्शा से उतर गई और पैदल ही एक कच्चे रास्ते पर चलने लगी।
राज ने रिक्शे का बिल भुगतान किया और नीचे उतरा।
उस वक्त काफी ठंडा थी। स्वेटर और जैकेट पहने होने के बाद भी राज को ठिठुरन महसूस होने लगी थी।
आरती निरंतर चले जा रही थी। चलते-चलते काफी समय बीत गया। राज उचित दूरी बनाकर छिपते-छिपाते उसके पीछे था। वे अब शहर से काफी बाहर आ गए थे। राज ने रुककर देखा दूर-दूर तक बर्फ से ढके पहाड़ नज़र आ रहे थे जिन के आंचल में वह खड़ा था। वाकई स्वर्ग से कम नहीं थी यह जगह।
फोन में देखते हुए राज का माथा ठनका। ऐसा लग रहा था–आरती त्रिउंड की तरफ जा रही है। राज ने जल्दी से गूगल में देखा–त्रिउंड ट्रैकिंग के लिये मशहूर जगह थी।
इस वक्त अचानक अकेले ट्रैकिंग पर जाने का क्या मतलब ? त्रिउंड में कोई आरती का कोई जानने वाला रहता हो ऐसा भी मुमकिन नहीं क्योंकि वहाँ आबादी तो बस्ती नहीं। फिर सुबह-सुबह उस तरफ जाने का क्या मतलब ?
तभी रास्ते में एक दुकान नज़र आई। राज वहाँ पहुँचा और फिर उसने दुकानदार से पूछा, “क्या यह रास्ता त्रिउंड की तरफ जाता है ?”
“हां जी सर! बिल्कुल जाता है। आप ट्रैकिंग पर जा रहे हैं ? चार घंटे लगते हैं। शाम को जल्दी निकल लेना वहाँ से अँधेरा हो गया तो थोड़ी दिक्कत हो सकती है। अरे...आपके पास तो ट्रैकिंग का कुछ सामान भी नहीं है।”
“अरे भाई! हुआ यह कि मेरी गर्लफ्रेंड और मैं दोनों साथ में जाने वाले थे पर मैं आलस कर रहा था, सोये जा रहा था तो वह रूठ कर अकेले ही निकल गई। इधर से ही निकली होगी तो शायद तुमने देखा भी होगा।” कहकर राज ने मोबाइल में आरती की फोटो दिखाई।
“अरे हां!” वह बोला, “यह मैडम तो अभी इधर निकली थीं पर उनके पास तो सारा सामान था। अच्छे-खासे कपड़े पहने थे। पीठ पर बैग भी था।”
“हां! वो पूरी तैयारी के साथ निकली है पर पता नहीं मेरे लिये कुछ सामान रखा भी है कि नहीं।”
“अरे! मैं आपकी मदद करता हूँ न।” दुकानदार बोला, “यह दुकान और किसलिये खोली है मैंने–आप जैसे टूरिस्ट के लिये ही तो खोली है। सब कुछ किराए पर उपलब्ध है। आपको ट्रैकिंग शूज लगेंगे और आपका इस जैकेट से काम नहीं चलेगा। मेरे पास फर वाली गरम जैकेट है, वो ले लीजिए। बैग आपके पास है नहीं। चलिए बैग वैसे में किराए पर नहीं देता। पर एक मेरा पड़ा है वहीं ले जाइए। इसमें इंस्टेंट नूडल्स के कुछ पैकेट हैं। थरमस में आपको चाय और गर्म पानी रख कर देता हूँ।”
“वाह भाई! सारा इंतजाम है तुम्हारे पास तो।”
“यही तो काम है हमारा, सर!”
“चलो फिर फटाफट दे दो सब। मैं निकलता हूँ। कहीं मेरी गर्लफ्रेंड ज्यादा ही आगे न निकल जाए।” कहकर राज ने जेब से बटुआ निकाला।
उसे पेमेंट कर के राज ने फटाफट जूते बदले, जैकेट बदला, बैग लिया और त्रिउंड की तरफ चल दिया।
आरती निरंतर आगे बढ़ रही थी। राज उसकी दिशा में चलता रहा। करीब आधा घंटा चलने के बाद उसे कई और सैलानी आगे बढ़ते नज़र आये, कुछेक उसे अपने पीछे आते भी नज़र आ रहे थे। कुछ के बैग बड़े-बड़े थे जिनमे शायद स्लीपिंग बैग या टेंट था, उनका शायद रात वही गुज़ारने का इरादा था।
अगर मुझे भी किसी वजह से रात वहीं बितानी पड़ी तो ? टेंट वगैरह कुछ भी नहीं है, ठंड में कुल्फी जम जायेगी। खैर, देखा जायेगा।
कुछ देर में राज ट्रेक पर काफी आगे निकल आया। पथरीले रास्ते पर शुरू में चलने में जितना उत्साह हो रहा था अभी वह दुर्गम लगने लगा था। थकान जल्दी हो रही थी। सांस भी तेज चल रही थी। राज धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था। अब नीचे हरी-भरी घटी और ऊपर बर्फीले पहाड़ों का नज़ारा बेहद लाजवाब दिख रहा था।
उसे काफी दूर एक लड़की अकेले आगे बढ़ती नज़र आई। उसे लगा वहीं आरती होगी। उसने भूरे रंग की जैकेट पहनी थी और काले रंग की पैंट, पैरों में ट्रैकिंग शूज़ और सिर पर फर वाली गोल टोपी। कल उसने उसे भगवे वस्त्रों में देखा था। इस रूप में उसे पहचानना मुश्किल होता पर राज समझ सकता था कि इस ट्रैक पर अकेली लड़की आरती के अलावा कोई और हो ये मुश्किल था।
राज आगे बढ़ता रहा। आरती निरंतर उसकी नज़र में थी। बीच-बीच में घुमावदार पहाड़ी रास्ते के चलते वह गायब भी हो जाती थी पर कुछ देर बाद फिर दिखाई देने लगती थी। पर अंतिम आधे घंटे में वह काफी तेजी से आगे बढ़ी और दिखाई देना बंद हो गई। वजह ये भी थी कि थकने के कारण राज की गति मंद पड़ गई थी।
हाँ भाई! तुम तो पहाड़ी घोड़ी हो, दौड़ती जाओगी। अपना तो तेल निकला जा रहा है।
एक जगह सुस्ताते, पानी पीते हुए राज ने मोबाइल स्क्रीन पर नज़र डाली। आरती की लोकेशन एक जगह पर स्थिर हो गई थी।
लगता है त्रिउंड पहुँच गई। दस-पंद्रह मिनट में मैं भी पहुँच जाऊंगा।
आखिरकार राज त्रिउंड पहुँचा।
पहुँचते ही वह वहाँ के खूबसूरत नज़ारों में एक पल को आरती को भूल ही गया। बर्फ से ढके पहाड़ एकदम सामने दिखाई दे रहे थे। चारों तरफ सर्द हवाएं चल रही थी। ठंड बहुत ज्यादा थी। जिस पहाड़ी पर वह खड़ा था वहाँ कई चट्टानें नज़र आ रहीं थीं।
वहाँ छह-सात टेंट लगे हुए थे। एक कोने में छपरे वाली दुकान या रेस्टोरेंट-सा कुछ दिखाई दे रहा था। राज का ध्यान आरती की लोकेशन ढूंढने पर गया। चलते हुए वह उसकी लोकेशन पर पहुँच गया पर आरती कहीं नज़र नहीं आई। वह अब पहाड़ के छोर पर खड़ा था, जिसके आगे हजारों फुट गहरी खाई थी।
उसकी लोकेशन दस मीटर इधर-उधर हो सकती है, पर उससे ज्यादा नहीं। किधर चली गई!
राज ये सोचते हुए वापस आया कि शायद लोकेशन में कुछ गड़बड़ है। वह उस रेस्टोरेंट की तरफ आया। वहाँ दस-पन्द्रह लोग थे, फैमिली वाले भी थे, पर अकेली लड़की कोई नहीं दिख रही थी। भूख जबरदस्त लग रही थी। इसलिये राज ने वहाँ ब्रेड ऑमलेट का ऑर्डर दे दिया। पेपर प्लेट पर परसा हुआ ऑर्डर मिलने पर उसे खाते-खाते वह बाहर घूमने लगा। वह सभी टेंटस् पर नज़र डाल रहा था। अभी दिन का वक्त था तो कोई टेंट बंद भी नहीं था, इसलिये उसे आरती के वहाँ होने की पुष्टि करने में कोई दिक्कत नहीं हो रही थी।
घूमते हुए उसे एक दूर कोने में पेड़ों के झुरमुट में एक लड़का और लड़की के होने की झलक मिली। लड़की वेश-भूषा से आरती-सी लगी।
राज पेड़ों के पीछे छिपता-छिपाता उस तरफ बढ़ा।
लड़का-लड़की पेड़ के पीछे क्या कर रहे थे इसका अंदाज़ा राज को अब लगने लगा था।
क्यों नहीं! आखिर...रोमांटिक जगह है। पर आहूजा की मौत को अभी कुछ महीने भी नहीं हुए और आरती...
राज इस बार सहज भाव से चलते हुए उनके पास से निकला। लड़का-लड़की को उसका आभास हुआ तो उन्होंने चोर नज़र उस पर डाली। बस उतना राज के लिये लड़की की शिनाख्त करने के लिये काफी था। वह आगे बढ़ गया। वह लड़की आरती नहीं थी।
चक्कर क्या है ?
राज ने फिर से ट्रैकिंग एप में आरती की लोकेशन देखी। वह अभी-भी पहाड़ी के अंत की तरफ ही दिखा रही थी और एक जगह पर ही स्थिर थी।
ज़मीन के अंदर घुस गई क्या!
राज वापस पहाड़ी के छोर की तरफ बढ़ गया।
वहाँ पहुँचकर वह नीचे झाँकने लगा। वह इतना आगे आ गया कि नीचे गिरने का भी खतरा होने लगा।
उधर कोई भी नहीं था। अब एक ही सम्भावना थी कि लोकेशन बताने वाला डिवाइस या तो आरती की नज़र में आ गया और उसने निकाल दिया या फिर वह खुद ही निकल गया, अत्यधिक पसीना निकलने से ऐसा हो सकता था।
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राज को फिर एक ही तरीका सूझा उसने अपने फ़ोन में आरती की फोटो निकाली और फिर वहाँ मौजूद विभिन्न सैलानियों को दिखाकर पूछने लगा।
एक जोड़े को फोटो दिखाते हुए वह बोला, “ये मेरी गर्लफ्रेंड है, आगे –आगे निकल आई थी पर अब यहाँ कहीं दिखाई नहीं दे रही।”
“कहीं ट्रैकिंग करते हुए और आगे तो नहीं निकल गई ?” लड़के ने सुझाया।
“और आगे ? किधर ?”
“स्नो पॉइंट कैफे होते हुए काफी लोग लहेश केव्स या इन्द्रहर पास तक जाते हैं।”
“अब ये किधर है ?”
लड़के ने इशारा करते हुए कहा, “उस तरफ से चलते-चले जाइए। डेढ़ घंटे में स्नो पॉइंट कैफे पहुँच जायेंगे।”
ओ तेरी! डेढ़ घंटे की ट्रैकिंग और...
उनका शुक्रिया अदाकार राज ट्रेक की तरफ अग्रसर हुआ।
उसने रुककर एक लम्बी सांस लेते हुए सामने दिखाई दे रहे पथरीले रास्ते पर नज़र डाली जो सीधे पर्वतों में जाता हुआ प्रतीत हो रहा था।
चल बेटा राज! जोर लगा के...
राज अपनी अगली मंजिल की तरफ चल पड़ा। जीपीएस डिवाइस बंद होने के चलते उसे अब ये भी नहीं पता था कि उसका इस तरफ जाना किसी काम आने वला भी है कि नहीं।
कुछ आगे चलकर उसे एक विदेशी अपने बड़े से बैग को पीठ पर लादे धीरे-धीरे आगे बढ़ता नज़र आया।
राज ने उसे मुस्कान दी तो उसने पलटकर उसे हाय बोला। राज उसके साथ चलने लगा और बातों-बातों में उसे पता चला कि वह युक्रेन से आया था और उसका नाम येगोर था। अकेले ट्रेक पर चलने से ये अनुभव काफी अच्छा रहा क्योंकि इससे मन लगा रहा और ट्रेक के सफ़र की थकान का भी पता नहीं चला और वक़्त आसानी से गुज़र गया।
डेढ़ घंटे में वे स्नो लाइन कैफे पहुँच गए।
जैसे-जैसे वो आगे बढ़ते जा रहे थे नज़ारे और भी सुखद होते जा रहे थे। वहाँ वे तीन बर्फीली चोटियाँ देख सकते थे जो थी तो अभी भी काफी दूर पर लगता था जैसे एकदम सामने ही हों। दूसरी तरफ नीचे हरी-भरी वादियाँ और उसमे बस्ती दिखाई दे रही थीं। आसमान में बदल थे और कुछ बदल आस-पास पहाड़ी पर भी मंडराते नज़र आ रहे थे।
उसने येगोर के साथ मिलकर एक टेंट किराए पर ले लिया फिर दोनों तिरपाल से ढके उस कैफे में बैठकर नूडल्स और चाय पर इधर-उधर की बातें करने लगे।
उस सुखद अहसास में कुछ पल तो राज भूल ही गया कि वह यहाँ किस उद्देश्य से आया था।
राज ने येगोरे से पूछा, “अकेले ही इतनी दूर घूमने कैसे आ गये ?”
येगोर ने अपनी टूट-फूटी अंग्रेजी में जवाब दिया–“मुझे अकेले घूमना पसंद है और घुमक्कड़ी की आदत इतनी ज्यादा है कि गर्लफ्रेंड हमेशा साथ नहीं दे पाती। तुम बताओ–तुम यहाँ अकेले कैसे घूम रहे हो ?”
“मुझे एक लड़की की तलाश है।”
“क्या बात है।” येगोर पूरी बत्तीसी दिखाते हुए मुस्कराया फिर उसने चाय का कप राज के कप से किसी जाम की तरह टकराते हुए कहा- “चियर्स! किसी ख़ास लड़की की या...”
“हे तो एक ख़ास लड़की, खुद में बहुत से रहस्य छिपाये रहती है। पहाड़ों की ही रहने वाली है। मेरे ख्याल से इसी तरफ घूमते हुए आई है।”
“और तुम उसका पीछा कर रहे हो ? स्टाकर कहीं के...” वह हंसा।
“दरअसल बात वो नहीं है। मैं उसके लिये अजनबी नहीं हूँ, उससे मिला हूँ, उससे बातें भी की है। उसके पीछे आने की वजह ये है कि मुझे लगता है वो खतरे में है। मैं उसे इधर आने से तो नहीं रोक सकता था पर उसका ख्याल रखने से मुझे कौन रोकेगा ?”
“इंट्रेस्टिंग! काफी रहस्यमई पसंद है तुम्हारी। लगता है उसकी ये बात तुम्हें एड्रिनालीन रश देती है।”
“शायद!” राज ने मुस्कराते हुए चाय की चुस्की ली और उसे ख़त्म करते हुए उठा। “अब मैं उसको ढूंढने निकलता हूँ। त्रिउंड से वो नज़रों से गायब है।”
“मेरे पास बाइनाकुलर्स हैं, ले जाओ, काम आएंगे।”
“बढ़िया!”
“पर ज्यादा दूर न चले जाना, कुछ ही देर में अँधेरा होने वाला है।”
“अभी एक घंटा और है सनसेट में।”
दोनों कैफे से बाहर निकले। टेंट में आकर येगोर ने उसे बाइनाकुलर्स दिए। राज ने अपना बैग वहीं रख दिया, पिस्टल पहले ही उसकी जैकेट के अन्दर छिपा था। बाइनाकुलर्स उसने अपने गले में डाले और चलने को तैयार हो गया।
“गुड लक!” येगोर बोला, “मैं तुम्हारा यहीं इंतजार करूँगा। बॉन फायर का इंतजाम करता हूँ, डिनर काफी इंट्रेस्टिंग होने वाला है।”
“ज़रूर!” कहकर राज ने उससे विदा ली और आगे बढ़ गया। उसके जाते ही येगोर ने अपना फोन लिया और युक्रेनियन भाषा में कुछ बोलते हुए खुद का वीडियो बनाने लगा।
राज ने देखा–वहाँ करीब आठ-दस टेंट लगे थे। राज टहलते हुए टेंट में रुके लोगों पर नज़र डालने लगा।
ऐसा भी हो सकता है कि आरती अपने किसी सीक्रेट लवर से यहाँ मिलने आई हो। क्या पता वह सीक्रेट लवर उन्हीं लोगों में से कोई हो जो आहूजा की मौत के बाद से उसकी मदद करते आ रहे हैं। पर अगर ऐसा है तो आहूजा से उसके रिश्ते की कितनी अहमियत थी ? क्या ये वाकई वहीं आरती है जो आहूजा की गर्लफ्रेंड थी, कहीं वो वाकई मर तो नहीं गई। जो लाश मंडी में मिली थी वो असली आरती हो सकती है। क्या पता जो कहानी इस आरती ने सुनाई है वो नकली हो ?
राज सोचता जा रहा था और बर्फीली पहाड़ियों की दिशा में आगे बढ़ता जा रहा था। जैसे-जैसे वह आगे बढ़ता गया–चारों तरफ पथरीली चट्टानों का समागम दिखाई देता गया।
कुछ दूर चलने के बाद उसे एक पहाड़ी नदी दिखाई दी। राज ने जूते उतारे और उसे पार करने लगा। पानी एकदम बर्फीला था क्योंकि वह पास के ग्लेशियर से अभी-अभी पिघल कर निकला था।
नदी पार करते ही उसे दूर चट्टानों में एक सफ़ेद कपड़ा चमका। राज का ध्यान उसकी तरफ आकर्षित हुआ और वह सीधे रास्ते पर जाने की बजाये गीली चट्टानों पर चढ़ते हुए उस तरफ चल दिया। पास आने पर वह एक इंसानी आकृति प्रतीत होने लगी। ऐसा लग रहा था–कोई लेटा हुआ है।
कुछ ही पलों में राज उसके पास पहुँचा। उसने देखा–वह पहाड़ी नवयुवक था जिसके सफ़ेद कपड़ों में लाल रंग का समावेश था। वह रंग जो कि उसके रक्त से उभरा था।
राज उसके पास खड़ा उसे ध्यान से देख रहा था। उसकी आँखें खुली थीं। उसने राज को देखा तो कुछ बोलने की कोशिश करने लगा। राज नीचे झुका।
“पा...नी!” वह क्षीण स्वर में बोला।
राज ने अपने कंधे से बोतल निकाली और उसके मुख में पानी की कुछ बूँदें डालीं।
उसके चेहरे पर कुछ संतुष्टि के भाव आये।
“ये सब...कैसे हुआ ?”
वह राज को निरंतर देखता रहा। राज ये समझने की कोशिश कर रहा था कि वह कुछ बताना नहीं चाहता या फिर उसमे कुछ भी बोलने का सामर्थ्य नहीं बचा था।
अचानक उसकी आँखें शून्य में स्थिर हो गईं।
राज ने उसकी नब्ज़ टटोली। वह रुक चुकी थी।
वह उठकर खड़ा हुआ और उसने घूमकर चारों तरफ देखा। दूर-दूर तक कोई भी नज़र नहीं आया। उस वीरानी जगह बस नदी की ‘कल-कल’ आवाज आ रही थी और बीच-बीच में पक्षियों की, जो अब शाम होने का आभास होते ही अपने-अपने बसेरे की तरफ कूच कर रहे थे।
इसका जख्म देखकर लगता है किसी धारदार हथियार से हमला किया गया है। जख्म ताज़ा है, हमलावर ज्यादा दूर नहीं होना चाहिये।
वह चट्टानों के बीच आगे बढ़ने लगा।
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