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Horror अनहोनी ( एक प्रेत गाथा )
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Re: Horror अनहानी ( एक प्रेत गाथा )
मेरी नशीली चितवन Running.....मेरी कामुकता का सफ़र Running.....गहरी साजिश .....काली घटा/ गुलशन नन्दा ..... तब से अब तक और आगे .....Chudasi (चुदासी ) ....पनौती (थ्रिलर) .....आशा (सामाजिक उपन्यास)complete .....लज़्ज़त का एहसास (मिसेस नादिरा ) चुदने को बेताब पड़ोसन .....आशा...(एक ड्रीमलेडी ).....Tu Hi Tu
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Re: Horror अनहानी ( एक प्रेत गाथा )
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कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
- Sexi Rebel
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Re: Horror अनहानी ( एक प्रेत गाथा )
साथ बने रहने के लिए शुक्रिया दोस्तो
- Sexi Rebel
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Re: Horror अनहानी ( एक प्रेत गाथा )
हवेली की फिजा बड़ी अजीब-सी थी। नमीरा के बारे में कोई कुछ बताने को तैयार नहीं था। होंठ सिले हुए थे। साथ ही कई अनकही कहानियां नमीरा और उसकी बच्ची के बारे में गर्दिश कर रही थीं, लेकिन कोई किसी बात की पुष्टि करने को तैयार नहीं था। खुद मां-बाप का रवैया उलझा देने वाला था। नफीसा के चेहरे पर जो भाव थे... वह उनकी जुबान पर न थे और जो जुबान पर था, उनके चेहरे से मेल न खाता था।
नमीरा और उसकी नवजात बच्ची के पीछे कोई रहस्य जरूर था, लेकिन वह क्या रहस्य था, इसका सिर समीर क हाथ में नहीं आ रहा था। उसक बेचैनी....बेकरारी बढ़ती जा रही थी।
शायद उसी से गफलत हो गई थे।
अभी पन्द्रह दिन पहले ही तो समीर को नलमीरा का पत्र मिला था। वह बस, सिर्फ एक पंक्ति का पत्र था, लेकिन इस एक पंक्ति में एक वाक्य में ही जैसे एक पूरी दास्तान लिखी हुई थी। नमीरा ने लिखा था
"मैं खुद को बहुत अकेली महसूस करती हूं...हो सके तो मुझसे मिल जाओ.... ।"
इस संक्षिप्त से व्यथापूर्ण पत्र को पढ़कर समीर कुछ देर के लिए उदास हो गया था। उस शाम उसे एक म्यूजिक प्रोग्राम में जाना था। उसकी वक्त उसके दोस्त उसे लेने आ गये थे और वह उसे म्यूजिक कन्सर्ट में शामिल हो कुछ ऐसा व्यस्त हुआ कि नमीरा उसके जहन में निकल गई।
फिर मुम्बई की रंगीन शामों, संगीत भरी रातों, युनिवर्सिटी की हंसती-मुस्कुराती सुबहों में वह कुछ इस तरह गुम हुआ था कि प्रायःवह यह भी भूल जाता था कि वह कौन है।
नमीरा उसका चुनाव और उसकी पसन्द थी। वह उसे एक संगीत समारोह में मिली थी। उनकी यह पहली मुलाकाल ही बहुत गहरी साबित हुई। वे एक-दूसरे के दिलों में उतरते चले गये। नमीरा एक मध्यवर्गीय परिवार की लड़की थी। परिवार का नाता एक छोटे से शहर अमरोहा से था। उसके पिता बरसों पूर्व ही अमरोहा छोड़कर मुम्बई में आ बसे थे और यहां वह एक प्राइवेट फर्म में मैनेजर के पद पर थे।
_ नमीरा कुछेक मुलाकातों में ही समीर के दिल पर किसी स्टिकर की तरह चिपक गई। समीर राय ने 'प्रपोज' किया...शादी की पेशकश की और नमीरा शादी के लिए फौरन तैयार हो गई। लेकिन उसके मां-बाप ने कहा, जब तक समीर के घरवाले रिश्ता मांगने नहीं आते, वे रिश्ता नहीं करेंगे।
समीर ने अपने आपसे बात की। उसने खुले दिल होने का सबूत देते हुए नमीरा को अपनी बहू बनाने पर तो रजामन्दी जाहिर कर दी..... लेकिन अपने से छोटे लोगों के दर पर रिश्ता मांगने जोन से साफ इंकार कर दिया।
बिना उसके मां-बाप के आये....नमीरा का बाप रिश्ता देने पर तैयार नहीं था...और समीर का बाप रिश्ता मांगने पर राजी न था। परिणाम यह रहा-समीर व नमीरा का रिश्ता परम्पराओं के अनुसार न हो सका और समीर व नमीरा ने अपने तौर पर औपचारिकताएं पूरी कर ली। समीर ने अपने एक दोस्त के घर..अपने दोस्तों की मौजूदगी में चुपचाप नमीर से निकाह (विवाह) कर लिया।
जब नमीरा के मां-बाप को अपनी बेटी के इस दुस्साहस व संगीन कदम की सूचना मिली तो उन्होंने जिन्दगी भर के लिए उसका मुंह न देखने की कसम खा ली-और जब समीर, अपनी विवाहित नमीरा का लेकर हवेली पहुंचा तो उसके मां-बाप ने भी बड़े बुझे मन से उनका स्वागत कियां बाप तो बाप, समीर की मां को भी यह बात पसन्द नहीं आई थी। पसन्द न आने के बावजूद भी नफीसा ने नमीरा को हवेली से निकाल बाहर नहीं किया था। शायद इसलिए कि वह जानती थी कि अगर ऐसा किया तो समीर बिगड़ इसलिए कि वह जानती थी कि अगर ऐसा किया तो समीर बिगड़ जाएगा और वे दोनों अपने इकलौते बेटे से हाथ धोना नहीं चाहते थे।
नमीरा सुन्दर तो थी ही...खूबसूरत होने के साथ-साथ जहीन भी थी। उसने शीघ्र ही नफीसा बेगम को अपनी तरफ झुका लिया। सास-बहू के रिश्ते में जो ठण्डापन था...वह धीरे-धीरे कम होता गया। नमीरा ने अपनी जहानत और अपने मधुर व्यवहार से नफीसा बेगम के दिल में घर करना शुरू कर दिया।
इधर वह सास के दिल में घर करती जा रही थी तो समीर के दिल से निकलती जा रही थी। नमीरा का नशा उतरा जा रहा था। वह नमीरा को भूलता जा रहा था। समीर एन.ए. कर रहा था और होस्टल में रहता था। मुम्बई में, बांद्रा के इलाके में उसके बाप का बंगला था, लेकिन समीर को उसमें रहना पसन्द नही था। उसकी तो हवेली से जान जलती थी.फिर वह इतने बड़े बंगले में अकेला कैसे रहता। उस होस्टल ही रास आता था। दूसरो के साथ उनके बीच रहना पसन्द था। वह एक भावुक लेकिन दृढ़ निश्चय नौजवान था। जो दिल में समा जाता था...उसे कर गुजरता था। नमीरा से शादी भी उसने दिल में उठने वाले ज्वार-भाटा के प्रभाव में कर ली थी। अब वह जोश कम हो रहा था। वह नमीरा को हवेला में पहुंचाकर जैसे भूल ही गया था।
यहां तक कि नमीरा का एक पंक्ति वाला जज्बाती पत्र भी समीर के दिल के समुद्र में हलचल नहीं मचा सका था और यूं नमीरा अपने अकेलेपन का रोना रोती व उसे याद करती मर गई थी.... ।
समीर सोचे जा रहा था और जितना सोच रहा था, उसका गम, उसकी पीड़ा बढ़ती जा रही थी। उसका गला बार-बार रुंध जाता था। आंखें छलकी जा रही थीं।
नमीरा और उसकी नवजात बच्ची के पीछे कोई रहस्य जरूर था, लेकिन वह क्या रहस्य था, इसका सिर समीर क हाथ में नहीं आ रहा था। उसक बेचैनी....बेकरारी बढ़ती जा रही थी।
शायद उसी से गफलत हो गई थे।
अभी पन्द्रह दिन पहले ही तो समीर को नलमीरा का पत्र मिला था। वह बस, सिर्फ एक पंक्ति का पत्र था, लेकिन इस एक पंक्ति में एक वाक्य में ही जैसे एक पूरी दास्तान लिखी हुई थी। नमीरा ने लिखा था
"मैं खुद को बहुत अकेली महसूस करती हूं...हो सके तो मुझसे मिल जाओ.... ।"
इस संक्षिप्त से व्यथापूर्ण पत्र को पढ़कर समीर कुछ देर के लिए उदास हो गया था। उस शाम उसे एक म्यूजिक प्रोग्राम में जाना था। उसकी वक्त उसके दोस्त उसे लेने आ गये थे और वह उसे म्यूजिक कन्सर्ट में शामिल हो कुछ ऐसा व्यस्त हुआ कि नमीरा उसके जहन में निकल गई।
फिर मुम्बई की रंगीन शामों, संगीत भरी रातों, युनिवर्सिटी की हंसती-मुस्कुराती सुबहों में वह कुछ इस तरह गुम हुआ था कि प्रायःवह यह भी भूल जाता था कि वह कौन है।
नमीरा उसका चुनाव और उसकी पसन्द थी। वह उसे एक संगीत समारोह में मिली थी। उनकी यह पहली मुलाकाल ही बहुत गहरी साबित हुई। वे एक-दूसरे के दिलों में उतरते चले गये। नमीरा एक मध्यवर्गीय परिवार की लड़की थी। परिवार का नाता एक छोटे से शहर अमरोहा से था। उसके पिता बरसों पूर्व ही अमरोहा छोड़कर मुम्बई में आ बसे थे और यहां वह एक प्राइवेट फर्म में मैनेजर के पद पर थे।
_ नमीरा कुछेक मुलाकातों में ही समीर के दिल पर किसी स्टिकर की तरह चिपक गई। समीर राय ने 'प्रपोज' किया...शादी की पेशकश की और नमीरा शादी के लिए फौरन तैयार हो गई। लेकिन उसके मां-बाप ने कहा, जब तक समीर के घरवाले रिश्ता मांगने नहीं आते, वे रिश्ता नहीं करेंगे।
समीर ने अपने आपसे बात की। उसने खुले दिल होने का सबूत देते हुए नमीरा को अपनी बहू बनाने पर तो रजामन्दी जाहिर कर दी..... लेकिन अपने से छोटे लोगों के दर पर रिश्ता मांगने जोन से साफ इंकार कर दिया।
बिना उसके मां-बाप के आये....नमीरा का बाप रिश्ता देने पर तैयार नहीं था...और समीर का बाप रिश्ता मांगने पर राजी न था। परिणाम यह रहा-समीर व नमीरा का रिश्ता परम्पराओं के अनुसार न हो सका और समीर व नमीरा ने अपने तौर पर औपचारिकताएं पूरी कर ली। समीर ने अपने एक दोस्त के घर..अपने दोस्तों की मौजूदगी में चुपचाप नमीर से निकाह (विवाह) कर लिया।
जब नमीरा के मां-बाप को अपनी बेटी के इस दुस्साहस व संगीन कदम की सूचना मिली तो उन्होंने जिन्दगी भर के लिए उसका मुंह न देखने की कसम खा ली-और जब समीर, अपनी विवाहित नमीरा का लेकर हवेली पहुंचा तो उसके मां-बाप ने भी बड़े बुझे मन से उनका स्वागत कियां बाप तो बाप, समीर की मां को भी यह बात पसन्द नहीं आई थी। पसन्द न आने के बावजूद भी नफीसा ने नमीरा को हवेली से निकाल बाहर नहीं किया था। शायद इसलिए कि वह जानती थी कि अगर ऐसा किया तो समीर बिगड़ इसलिए कि वह जानती थी कि अगर ऐसा किया तो समीर बिगड़ जाएगा और वे दोनों अपने इकलौते बेटे से हाथ धोना नहीं चाहते थे।
नमीरा सुन्दर तो थी ही...खूबसूरत होने के साथ-साथ जहीन भी थी। उसने शीघ्र ही नफीसा बेगम को अपनी तरफ झुका लिया। सास-बहू के रिश्ते में जो ठण्डापन था...वह धीरे-धीरे कम होता गया। नमीरा ने अपनी जहानत और अपने मधुर व्यवहार से नफीसा बेगम के दिल में घर करना शुरू कर दिया।
इधर वह सास के दिल में घर करती जा रही थी तो समीर के दिल से निकलती जा रही थी। नमीरा का नशा उतरा जा रहा था। वह नमीरा को भूलता जा रहा था। समीर एन.ए. कर रहा था और होस्टल में रहता था। मुम्बई में, बांद्रा के इलाके में उसके बाप का बंगला था, लेकिन समीर को उसमें रहना पसन्द नही था। उसकी तो हवेली से जान जलती थी.फिर वह इतने बड़े बंगले में अकेला कैसे रहता। उस होस्टल ही रास आता था। दूसरो के साथ उनके बीच रहना पसन्द था। वह एक भावुक लेकिन दृढ़ निश्चय नौजवान था। जो दिल में समा जाता था...उसे कर गुजरता था। नमीरा से शादी भी उसने दिल में उठने वाले ज्वार-भाटा के प्रभाव में कर ली थी। अब वह जोश कम हो रहा था। वह नमीरा को हवेला में पहुंचाकर जैसे भूल ही गया था।
यहां तक कि नमीरा का एक पंक्ति वाला जज्बाती पत्र भी समीर के दिल के समुद्र में हलचल नहीं मचा सका था और यूं नमीरा अपने अकेलेपन का रोना रोती व उसे याद करती मर गई थी.... ।
समीर सोचे जा रहा था और जितना सोच रहा था, उसका गम, उसकी पीड़ा बढ़ती जा रही थी। उसका गला बार-बार रुंध जाता था। आंखें छलकी जा रही थीं।
- Sexi Rebel
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- Joined: 27 Jul 2016 21:05
Re: Horror अनहानी ( एक प्रेत गाथा )
वह गाड़ी लेकर कब्रिस्तान की तरफ चल दिया। अभी वह आधे रास्ते में ही था कि उसे एकाएक ब्रेक लगाने पड़े।
वह शख्स बिल्कुल अचानक ही गाड़ी के सामने आया था।
समीर ने फुर्ती से पांव ब्रेक पर न रख दिया होता तो गाड़ी यकीनन उस शख्स पर चढ़ जाती। वो कोई फकीर था। उसक सिर के बाल लम्बे व उलझे हुए थे। मूंछ व दाढ़ी के बाल भी बेतहाश बढ़े हुए थे। उसका जिस्म एक सफेद चादर में लिपटा हुआ था। वह सांवले रंग व ऊंचे कद का आदमी था। उसकी काली आंखों में एक खास किस्त की चमक थी।
एक फकीर का यह दुस्साहस देखकर समीर को गुस्सा आया। जागीर में कौन ऐसा शख्स था, जो समीर राय से वाकिफ न था? मालिक की गाड़ी आते देखकर उसे सामने आकर रोकना तो बड़े दिलगुर्दे का आत्मघाती कदम था। समीर वैसे भी अपने आपे में नहीं था। वह उसे देखकर गुस्से से चीख उठा
"क्या है.?"
उस फकीर पर, उस ऊल-जुलूल शख्स पर समीर के गुस्से को कोई असर न हुआ। वो गाड़ी के सामने से हटकर समीर के करीब आ गया और अपनी तीखी पैनी नजरों से उसे घूरते हुए बोला
"मूर्ख, कब्रिस्तान में क्या रखा है? वहां क्यों जाता है? अरे.....जाना है तो रेगिस्तान में आ । खाली कब्रों में तुझे क्या मिलेगा...?"
इतन कहकर वह मलंग रुका नहीं। वो घूमकर गाड़ी के पीछे आया और फिर सड़क से उत्तर पेड़ों के झुण्ड में चला गया।
समीर उसकी बात सुनकर एकदम चौंका। वह फौरन गाड़ी से उतरकर बाहर आया, ताकि उस अजनबी शख्स से सवाल-जवाब कर सके, उससे पूछे सके कि उसे कैसे मालूम हुआ कि वह इस वक्त कब्रिस्तान जा रहा है? कब्रों और रेगिस्तान में तलाश से उसकी क्या मुराद थी?
उसने गाड़ी से उतरकर देखा तो मलंग, पेड़ों के झुण्ड में जा रहा था।
"ठहरो....सुनो....।" समीर उसे पुकारता हुआ उसके पीछे लपका।
लेकिन जब समीर उसके पीछे पेड़ों के झुण्ड में दाखिल हुआ तो वो रहस्यमय शख्स उसे कहीं नजर नहीं आया। इतनी देर में वो न जाने कहां छिप गया था? वो गायब हो चुका था।
समीर निराश होकर गाड़ी की तरफ लौटा व फिर गाड़ी स्टार्ट कर कब्रिस्तान की तरफ चल दिया।
समीर का दिल तो पहले ही अपने काबू में नहीं थां नमीरा की अचानक वव दर्दनाक मोत की इत्तला उसे खून के आंसू रुला रही थी। दिल का दर्द बढ़ता ही जाता था। उसे अपने बाप पर बहुत गुस्सा कि आखिर उन्होंने उससे यह खबर क्यों छिपाई थी? इसमें उसका क्या हित था? मां ने कहा था उसकी बेहतरी के लिए ही उसे यह इत्तला नहीं भेजी गई थी। उसकी क्या बेहतरी हो सकती थी? मां ने जरूर उसकी तसल्ली के लिए ही ऐसा कहा है।
समीर के जहन में सोचों के झंझावात उठने लगे।
फिर यह मलंग..? कौन था वो? अचानक सामने आया और अचानक ही गायब भी हो गया। देखने में वो भिखमंगा लगता था...लेकिन उसने भीख तो न मांगी थी?
वो तो कुछ रहस्यमय बोल बोलकर चला गया। समीर कहां जा रहा है, क्यों जा रहा है? यह कोई नहीं जानता था, फिर इस मलंग ने कैसे अंदाज लगाया? उसने खाली कब्रों का जिक्र क्यों किया ? रेगिस्तान की बात जुबान पर क्यों लगाया..? आखिर कौन था वो? क्या चाहता था?
समीर इन्हीं तपती सोचों के साथ गाड़ी ड्राइव करता रहा।
फिर उसे दूर से कब्रिस्तान का गेट नजर आया। गेट बन्द था। उसने गेट बन्द देख गाड़ी का हॉर्न बजाना शुरू कर दिया और गाड़ी की रफ्तार भी कम कर ली।
वह शख्स बिल्कुल अचानक ही गाड़ी के सामने आया था।
समीर ने फुर्ती से पांव ब्रेक पर न रख दिया होता तो गाड़ी यकीनन उस शख्स पर चढ़ जाती। वो कोई फकीर था। उसक सिर के बाल लम्बे व उलझे हुए थे। मूंछ व दाढ़ी के बाल भी बेतहाश बढ़े हुए थे। उसका जिस्म एक सफेद चादर में लिपटा हुआ था। वह सांवले रंग व ऊंचे कद का आदमी था। उसकी काली आंखों में एक खास किस्त की चमक थी।
एक फकीर का यह दुस्साहस देखकर समीर को गुस्सा आया। जागीर में कौन ऐसा शख्स था, जो समीर राय से वाकिफ न था? मालिक की गाड़ी आते देखकर उसे सामने आकर रोकना तो बड़े दिलगुर्दे का आत्मघाती कदम था। समीर वैसे भी अपने आपे में नहीं था। वह उसे देखकर गुस्से से चीख उठा
"क्या है.?"
उस फकीर पर, उस ऊल-जुलूल शख्स पर समीर के गुस्से को कोई असर न हुआ। वो गाड़ी के सामने से हटकर समीर के करीब आ गया और अपनी तीखी पैनी नजरों से उसे घूरते हुए बोला
"मूर्ख, कब्रिस्तान में क्या रखा है? वहां क्यों जाता है? अरे.....जाना है तो रेगिस्तान में आ । खाली कब्रों में तुझे क्या मिलेगा...?"
इतन कहकर वह मलंग रुका नहीं। वो घूमकर गाड़ी के पीछे आया और फिर सड़क से उत्तर पेड़ों के झुण्ड में चला गया।
समीर उसकी बात सुनकर एकदम चौंका। वह फौरन गाड़ी से उतरकर बाहर आया, ताकि उस अजनबी शख्स से सवाल-जवाब कर सके, उससे पूछे सके कि उसे कैसे मालूम हुआ कि वह इस वक्त कब्रिस्तान जा रहा है? कब्रों और रेगिस्तान में तलाश से उसकी क्या मुराद थी?
उसने गाड़ी से उतरकर देखा तो मलंग, पेड़ों के झुण्ड में जा रहा था।
"ठहरो....सुनो....।" समीर उसे पुकारता हुआ उसके पीछे लपका।
लेकिन जब समीर उसके पीछे पेड़ों के झुण्ड में दाखिल हुआ तो वो रहस्यमय शख्स उसे कहीं नजर नहीं आया। इतनी देर में वो न जाने कहां छिप गया था? वो गायब हो चुका था।
समीर निराश होकर गाड़ी की तरफ लौटा व फिर गाड़ी स्टार्ट कर कब्रिस्तान की तरफ चल दिया।
समीर का दिल तो पहले ही अपने काबू में नहीं थां नमीरा की अचानक वव दर्दनाक मोत की इत्तला उसे खून के आंसू रुला रही थी। दिल का दर्द बढ़ता ही जाता था। उसे अपने बाप पर बहुत गुस्सा कि आखिर उन्होंने उससे यह खबर क्यों छिपाई थी? इसमें उसका क्या हित था? मां ने कहा था उसकी बेहतरी के लिए ही उसे यह इत्तला नहीं भेजी गई थी। उसकी क्या बेहतरी हो सकती थी? मां ने जरूर उसकी तसल्ली के लिए ही ऐसा कहा है।
समीर के जहन में सोचों के झंझावात उठने लगे।
फिर यह मलंग..? कौन था वो? अचानक सामने आया और अचानक ही गायब भी हो गया। देखने में वो भिखमंगा लगता था...लेकिन उसने भीख तो न मांगी थी?
वो तो कुछ रहस्यमय बोल बोलकर चला गया। समीर कहां जा रहा है, क्यों जा रहा है? यह कोई नहीं जानता था, फिर इस मलंग ने कैसे अंदाज लगाया? उसने खाली कब्रों का जिक्र क्यों किया ? रेगिस्तान की बात जुबान पर क्यों लगाया..? आखिर कौन था वो? क्या चाहता था?
समीर इन्हीं तपती सोचों के साथ गाड़ी ड्राइव करता रहा।
फिर उसे दूर से कब्रिस्तान का गेट नजर आया। गेट बन्द था। उसने गेट बन्द देख गाड़ी का हॉर्न बजाना शुरू कर दिया और गाड़ी की रफ्तार भी कम कर ली।