स्वाहा

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SATISH
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Re: स्वाहा

Post by SATISH »

"सबकुछ मुमकिन हैं, इस मायावी धरती पर क्या सम्भव नहीं है। देख लिया कैद करके और भूखा रखकर में कोई मामूली लड़की नहीं हूँ।" रेखा ने रौब जमाने की कोशिश की।

"मैंने कब कहा कि तू मामूली लड़की है। मामूली होती तो यहां तक कैसे आ जाती ?"

"राकल क्या तू अपनी बहन को समझा नहीं सकता।" रेखा ने विषय बदलते हुए कहा ।

"क्या समझाऊं?" जैसे वो जानता ही न हो।

"यही कि वो मेरे भाई का पीछा छोड़ दे।"

"अगर मैं उससे यह कहूँगा तो वह पलटकर मुझे कहेगी... "

"तुझे वह क्या कह सकती है?"

" वह कहेगी कि रेखा को आजाद कर दे तो मैं उसकी यह

बात कैसे मान सकता हूँ। में रेखा को आजाद करने के लिए तो नहीं लाया यहां।" वह रेखा को लगावट से निहारते हुए बोला।

"रेखा तेरी कैद में नहीं रह सकेगी। और यह बात तू अच्छी तरह जानता है। तू अपना वक्त बर्बाद कर रहा है।"

"तू वक्त की बात करती है मैं तेरे पीछे सूद बर्बाद हो गया। यह प्रेम की जंग है जिसमें सबकुछ जायज होता है यह बात तू भी अच्छी तरह जानती होगी।"

"जानती हूँ।" रेखा के लहजे में व्यंग्य भर आया- "अच्छी तरह जानती हूँ कि तेरी तबाही अब ज्यादा दूर नहीं है । "

"हा... हा... हा !" राकल ने खलनायकी कहकहा लगाया "मैं अगर तबाह हुआ तो न तू रहेगी और न तेरा भाई

रहेगा।" राकल ने धमकी दी।

"देखा जाएगा...।" रेखा भी डरने वालों में से नहीं थी।

"चल अब मेरे साथ।" राकल ने अपने मतलब की बात कही।

"कहां...?" रेखा ने पूछा।

"जिन्दगी के हर आराम और अनन्द को पाने के लिए।"

"मुझे बस मेरा भाई चाहिये।" रेखा ने कुछ सोचकर कहा - "इसके लिऐ मझे क्या करना होगा?" वो राकल की आंखों में झांकने लगी।

"मुहब्बत का जवाब मुहब्बत से देना होगा।" राकल की आंखों में चमक भर आई थी। उसने साफ-साफ कहा ।

"लेकिन मुझे तो तुमसे मुहबत नहीं है।"

" हो जाएगी । तू मेरे बारे में सोचना तो शुरू कर ।" राकल ने कांटा फेंका।

"एक लंगड़े और बाजू टूटे शख्स के बारे में मेरे जैसी लड़की सोचे भी तो क्या?" रेखा शब्दों में जवाब दिया।

और रेखा के इस जवाब ने जैसे उसके अंदर आग लगा दी। उसने अपनी बगल के नीचे से घड़ी निकाल ली और अपनी एक टांग पर जमकर खड़ा हो गया। फिर उसने हाथ ऊपर उठाया और चाहा कि छड़ी रेखा के सिर पर दे मारे ।

उसी क्षण वह पहाड़ सी औरत कमरे में दाखिल हुई जो इस कैदखाने की निगरान थी। उसने आते ही चेतावनी देते स्वर में पुकारा- "राकल..।"
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SATISH
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Re: स्वाहा

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कल का हाथ उठा का उठा रह गया। वह पहले ही गुस्से में था इस हस्तक्षेप पर भिन्नाकर रह गया।

" क्या है?" 'दहाड़ा।

वह पहाड़-सी काली भुजंग औरत उसके सामने आकर झुकी और आदर से बोली-

"सरदार कोलाना का कारिन्दा आया है। वो तुझसे मिलना चाहता है।"

"सरदार कोलाना का नाम सुनकर राकल का ऊपर उठा नीचे गिर गया। उसने अपना राजदण्ड बगल में दबा लिया। एक नजर रेखा की तरफ देखा, जैसे कहता हो-

"मेरा इन्तजार कर ... तुझे अभी आकर देखता हूँ..." फिर फौरन पलटा और उस देवकाय औरत के साथ हो लिया।

रेखा उन्हें जाते हुए देखती रही।
और इसके बाद की कहानी "लंगड़ा प्रेत" मे पढे काले जादू के माहिर तांत्रिकों व प्रेत- लोक के खलनायकों के बीच खूनी संघर्ष
....🙏🙏 सतीश
समाप्त...
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