कामिनी की कामुक गाथा

Post Reply
User avatar
SATISH
Super member
Posts: 9811
Joined: 17 Jun 2018 16:09

Re: कामिनी की कामुक गाथा

Post by SATISH »

“अब काहे की न न। मना करने का का फायदा अब।” वह बोला। मेरे संभलनेसे पहले ही बड़ी तेजी से सुनें अपने कपड़े खोल फेंके और मादरजात नंगा हो गया। अब विस्मित और भयभीत होने की बारी मेरी थी। जड़ हो गयी मैं, आंखें फटी की फटी रह गईं मेरी। उफ़ भगवान, पूरा दानव था दानव। पूरा शरीर रीछ जैसे बालों से भरा हुआ, लंबा तगड़ा, तोंदियल। और और और उसकी जांघों के बीच ओ्ओ्ओ्ओह्ह्ह भगवान, लंबे लंबे घने बालों से भरा, झूमता हुआ काला, विशालकाय, घोड़े जैसा लिंग, तना हुआ। भय से मेरी घिग्घी बंध गयी।

“नहीं, नहीं, प्लीज, मत आओ पास।”

“पास न आएं तो चोदेंगे कैसे।”

“प प प पहली बात, मैं वैसी औरत नहीं हूं।” झूठ, सरासर झूठ बोल रही थी मैं, जो कि आदत है मेरी।

“कैसी औरत?”

“वैसी, जैसी तुम समझ रहे हो।”

“कैसी समझ रहे हैं हम?”

“सस्ती, सेक्सी, मैं ऐसी हूं नहीं।” फिर झूठ।

“वो तो दिख रहा है। आप को बहुत बढ़िया से समझ गये हैं हम।” वह अब अपने पीली दंतपंक्तियों की नुमाइश करते हुए बेहद कामुकता भरी मुस्कान बिखेरते हुए बोला।

“ग़लत समझे हो।”

“सही समझे हैं।” मेरे उठने के प्रयास को व्यर्थ करते हुए बोला उठा। अब मैं सोफे में धंसी उसके चंगुल में थी। वह मुझ पर आ गया था। उसके तन से उठता दुर्गन्ध असह्य था। उफ़ कितनी गंदी गंध थी। उबकाई सी आ रही थी। लेकिन मैं चाह कर भी उस कैद से मुक्त नहीं हो सकती थी। उसके बनमानुषी खुरदुरी हथेलियां अब मेरे उत्तेजना से चुनचुनाते उन्नत चूचियों पर अठखेलियां करने लगे। “वाह वाह, करता मजेदार चूंचियां हैं और निप्पल तो गजब, इत्तने बड़े, वाह वाह मजा आ गया, हम तो चूसेंगे।” मेरी चूचियों को चुटकियों में भर कर बोला।

“आ्आ्आ्आ्आ्ह्हृह्, छ छ छ छोड़ो, ओह छोड़ो मुझे प्प्प्प्प्ली्ई्ई्ई्ईज।” मेरे चूचकों को चुटकियों में मसलना मुझे पीड़ा दे रहा था, साथ ही साथ एक अलग तरह का आनंददायक अनुभूति भी प्रदान कर रहा था।

“अब का छोड़ें और का पकड़ें, समझ ही नहीं आ रहा।” कहते हुए उसने अपने घिनौने मुंह में मेरी चूचियों को बारी बारी से ले कर चूसना आरंभ कर दिया।

“उफ्फ उफ्फ, न न न न, यह कककक्या्आ्आ्आ्आ करते हो, आ्आ्इ्आ्आ्ह्ह्ह्ह।” मैं पगलाई जा रही थी, फिर भी ड्रामा, सहमति अब भी नहीं दे रही थी, मगर मेरी सहमति असहमति की अब किसे परवाह थी, उसकी उंगलियां अठखेलियां करती हुई मेरी रसीली योनि तक पहुंच चुकी थीं और उसनें अपनी जादुई उंगलियों का जादू मेरी पनियायी, फकफकाती योनि पर चलाना आरम्भ कर दिया। चिहुंक उठी मैं जब उसकी उंगलियों का स्पर्श योनि छिद्र के ऊपरी हिस्से में स्थित भगनासे पर हुआ, “आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह्ह अम्म्म्म्मा्आ्आ्आ्आ।”

“अब का हुआ, अब्भीए तो शुरू हुआ है।” उसने मेरी चूचियों को चूस चूस कर लाल करके मुंह उठा कर कहा। उत्तेजना के आवेग में मेरे चूचक तन कर खड़े हो चुके थे।

“उफ्फ, बस बस अब आगे नहीं।” तड़प उठी मैं।

“चुप, अब कुछ न बोल।”

“काहे न बोलूं।”

“अब समय आ गया।”
User avatar
SATISH
Super member
Posts: 9811
Joined: 17 Jun 2018 16:09

Re: कामिनी की कामुक गाथा

Post by SATISH »

“काहे का समय।” सब समझती थी, अब वह किसी भी क्षण मेरी योनि की दुर्गति कर सकता है। घोड़े का लिंग, भय से सिहर उठी।

“चोदने का।” बोलने का अंदाज ऐसा कि रूह कंपकंपा जाए। मेरी रीढ़ में ठंडी लहर दौड़ गयी।

“चुप, एकदम चुप, चल अब देख हमारे लंड का जलवा।” कहते हुए उसनें मेरे पैरों को फैलाया और मेरी जांघों के बीच आ गया। एक हाथ से मुझे दबोचे हुए दूसरे हाथ से अपने मूसलाकार लिंग को थाम कर मेरी योनि के प्रवेशद्वार पर रखा। उफ्फ, भय से मेरी कंपकंपी छूट रही थी। अबतक इतने विशाल लिंग, जो अबतक पूरे आकार में आ चुका था, ताकरीबन साढ़े ग्यारह इंच लंबा और इतना मोटा कि मेरी मुट्ठी में भी न समाए, एकदम घोड़े के लिंग की तरह, से मेरा पाला पहली बार पड़ रहा था।

“आज तो गयी रे तू साली बुरचोदी, छिनाल कुतिया, बड़ी लंड की भूख लगी थी न, अब चूत फड़वाए बिना जाएगी कहां बच के” मन ही मन खुद को कोस रही थी। उस पहाड़ जैसे दानव का दानवी औजार अपने लक्ष्य के करीब था, दस्तक दे रहा था और मैं अगले पलों में जो कयामत बरपा होने वाला था उसकी कल्पना से हलकान हो रही थी। एकल सोफे के दाएं बाएं से निकल नहीं सकती थी, सामने और ऊपर से वह दानव मुझ पर छाया हुआ था, सत्य ही मैं असहाय थी, इस स्थिति से छूटने की कोई गुंजाइश रत्ती भर भी नहीं थी।

“तो, अब हो जा तैयार।” वह बोला।

“नहीं प्लीज। रहम करो।” गिड़गिड़ाने लगी मैं।

“नौटंकी कहीं की, बंद कीजिए अब ड्रामा, नहीं तो हमको गुस्सा आ जाएगा।”

“यह नौटंकी नहीं है।”

“चोओओओओओप्प्प्प्प्प मैडम चोप्प, एकदम चोप्प। दस साल से कोई औरत चोदने का मौका नहीं मिला। जो भी औरतें मिली, मेरा लंड देख कर भाग गयीं, अब किस्मत से आप जैसी इतनी खूबसूरत माल मिली और आप भी नौटंकी किए जा रही हैं। आखिर हम भी मर्द हैं, खाली मूठ मारते रहें? न न न न, अब नहीं।” तो इसका मतलब इस आदमी का लिंग औरतों के लिए कयामत है? वह औरतें सौभाग्यशाली रही होंगी जो इसके चंगुल से बच निकलीं। मगर मैं तो आ बैल मुझे मार वाली कहावत चरितार्थ कर बैठी। अवश्य आज यह मुझे मार ही डालेगा। रोंगटे खड़े हो गये मेरे। मगर अब पछताए का होत है जब चिड़िया चुग गई खेत। अंतिम प्रयास में भी मैं असफल रही और तभी, ओह भगवान, तभी,
User avatar
SATISH
Super member
Posts: 9811
Joined: 17 Jun 2018 16:09

Re: कामिनी की कामुक गाथा

Post by SATISH »

“हुंआ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह।” उसनें अपने लिंग पर दबाव बढ़ाना आरंभ कर दिया। मेरी योनि ककड़ी की तरह चिरने लगी।

“आ्आ्आ्आ्आ्आह, ननननहीं्ईं्ईं्ईं्ईं् ओ्ओ्ओ, मर गयी मां्मां्आं्आं्आं।” उसका घोड़े जैसा लिंग मेरी योनि को जबरदस्ती फैलाता हुआ अंदर जाने लगा। “छोड़ो मुझे, निकालो निकालो आह मेरी चूत उफ़ भगवान फट रही है आह।” मेरी दर्दनाक आवाज का कोई असर उस ग्वाले पर न पड़ रहा था। मैं पीड़ा से हलकान हुई जा रही थी, उफ़, वह असहनीय पीड़ा, जान निकली जा रही थी मेरी। छटपटाने में भी तो असमर्थ थी। चुदने की चाह में यह मैं क्या कर बैठी थी।

“आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह मैया, मरी मैं मरी ओह छोड़ो कमीने, आह, मर जाऊंगी।” पीड़ा से मेरी आंखें बाहर को आ गयी थीं। चेहरा विकृत हो उठा। पसीने पसीने हो उठी मैं। ज़िंदगी में ऐसी स्थिति में पहली बार फंसी थी। सच में जिंदगी में पहली बार दहशत में आ गयी थी मैं। ऐसी पोजीशन थी जिसमें मैं बिल्कुल बेबस थी, कुछ कर सकना तो दूर, हिलने में भी असमर्थ थी। उसका जालिम लिंग हौले हौले चीरते हुए मेरी योनि में घुसा चला जा रहा था, सूत दर सूत, इंच दर इंच। उस राक्षस को तो कोई फर्क न पड़ा मेरे आर्त निवेदन का। घुसाता चला गया, घुसाता चला गया, ओह मां्आं्आं्आं्आं्इ, लंड की लंबाई मुझे मारे डाल रही थी। मोटाई जो थी वह तो थी ही जो मेरी योनि को उसके लचीलेपन की सीमा से बाहर फैला चुका था, फटने फटने के कागार पर थी मेरी योनि। हाय यह मैं क्या कर बैठी।

“धीरज रखो मैडम, फटेगी नहीं।” बेकार सा आश्वासन दे रहा था वह, फट तो चुकी ही थी शायद।

“चुप कमीने कुत्ते, फट तो गई, ओह मां।”

“नहीं, नहीं फटी।” वह आदमखोर पशु, अपने घोड़े के लिंग सदृश अमानवीय लिंग को पूरा का पूरा ठूंसने की जद्दोजहद में लगा था, शायद एकाध इंच की कसर रह गयी थी, तभी वह रुका, लेकिन इतने में ही उसका लिंग मेरे गर्भद्वार पर दस्तक दे चुका था।

“आ्आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह, बेरहम निर्दयी जानवर, निकाल निकाल अपना लंड ओह, फाड़ दिया, बर्बाद कर दिया मुझे। साले हरामी।” असहनीय दर्द से पागल हो रही थी, बदन पीड़ा से ऐंठ रहा था, मेरी आंखों से आंसू बह निकले।

“हो गया। अब काहे का रोना।”

“रोऊं नहीं तो क्या करूं। बर्बाद कर दिया मुझे हरामजादे, कुत्ते।”
User avatar
SATISH
Super member
Posts: 9811
Joined: 17 Jun 2018 16:09

Re: कामिनी की कामुक गाथा

Post by SATISH »

“अब जो हुआ सो हुआ, अब ऐसे ही कैसे छोड़ दें। जो होना था हो गया। इतना होने के बाद अब हम तो न छोड़ेंगे। तू भी मना करके काहे अपना नुकसान कर रही है। फटना था फट गया। अब तो मजा लेने का टाईम है। इतना दर्द सहने के बाद जब मज़ा लेने का टाईम आया तो पीछे काहे हट रही हो।” कहते हुए अब उसनें आधा लिंग बाहर खींचा। ओह मेरे भगवान, अब थोड़ी राहत मिली। मगर मेरी चूत को तो एक छोटे सुरंग से बड़ी सी गुफा में तब्दील कर दिया था उसनें। अब बचा क्या था। जो होना था हो चुका था। वासना की आंधी में बह कर मैं अपनी चूत को बली चढ़ा बैठी थी। बली भी किस तरह, एक निर्दयी दानवाकार कसाई के हाथों, जिसने झटके से कत्ल नहीं किया, बल्की बड़ी बेरहमी से धीरे धीरे हलाल किया। उफ़ वे लम्हे, अब याद आती है तो झुरझुरी सी दौड़ जाती है सारे तन में। खैर, उस समय दांत भींच कर उन पीड़ामय लम्हों से पार होने की दुआ कर रही थी।

“बहुत टाईट है, मजा आ गया।”

“मजा साले कुत्ते, तुझे मजा आ रहा है, इधर मेरी जान निकल रही है, ओह।” मैं कलकला कर बोली, अब मैं सचमुच का विरोध कर रही थी, मगर इस तरह फंसी थी कि, हिलने से भी मजबूर थी।

“अब तुमको भी मजा आएगा।”

“खाक मजा आएगा, फट गयी मेरी चूत हाय राम, आ्आ्आ।”

“तभी तो, अब ढीली हो गयी मैडम तेरी चूत। मेरे लंड का कमाल देखा, बना लिया रास्ता।”

“बना लिया कि बर्बाद कर दिया हरामजादे, आ्आ्आ।” तभी उसने भक्क से दुबारा घुसेड़ दिया लंड। “आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह, नहींईंईंईंईंईंईं।” दर्द की लहर मेरी रीढ़ की हड्डियों में दौड़ गयी। इस धक्के नें रही सही कसर पूरी कर दी। उफ़ भगवान, ऐसा लगा मानो मेरे गर्भ के द्वार को भी खोल बैठा। उफ़, मेरी चूत का बंटाढार करने के बाद अब क्या यह मेरे गर्भ का भी वही हस्र करने वाला था? कांप उठी मैं। कहां से यह मुसीबत मोल बैठी थी मैं। कराह उठी।

“बस बस, घुसा, पूरा घुस्स गया, ओह मेरी रानी इतना गर्म है अंदर, ओह, आह, टाईट चूत, चिकनी चूत, मस्त चूत, गरमागरम चूत, मजा आ गया। अब रोना वोना बंद कर साली मैडम, चोदने दे। बहुत साल बाद किसी औरत की बुर में मेरा लौड़ा घुसा है, चोदने दे, ऊ्ऊ्ऊ्ऊ्ऊ्ऊ,” कहते कहते खींचा उसनें लंड और “हुम्म्म्म्म्म” दुबारा ठोका।
User avatar
SATISH
Super member
Posts: 9811
Joined: 17 Jun 2018 16:09

Re: कामिनी की कामुक गाथा

Post by SATISH »

“आ्आ्आ्आ्आ,” मैं तड़प उठी। “ओह मादरचोद, मार डाला साला चूतिया, पागल हरामी।”

“अब जो बोलना है बोल, जो गाली देना है दे, हमको तो मिल गया, जो हमको चाहिए था। अब तेरा जो होगा सो होगा, हम तो चोदबे करेंगे। आराम से चुदवाना है तो चुदवा, नहीं तो जबर्दस्ती चोदेंगे।” वह अब मात्र एक कामान्ध नरपशु बन चुका था। मेरे दर्द पीड़ा से उसे अब कोई सरोकार नहीं रह गया था। उसे मुंहमांगी मुराद मिल चुकी थी। कामुकता के आवेग और अपनी जीत की खुशी में सब कुछ भूल चुका था। उसका विशाल शरीर मेरी टांगों के बीच समाया हुआ था और मैं अपनी हार मान कर अपने दोनों टांगों को अपनी पूरी क्षमता के अनुसार फैला कर उसके लंड को आत्मसात करने को तत्पर हो गयी, क्योंकि मेरे पास इसके अलावा और कोई चारा नहीं था। मेरे समर्पण को समझ कर वह प्रसन्न हो गया।

“ये हुआ, ये हुआ न बात।” गच्च से ठोंका लंड।

“आह, अब क्या करूं मैं, बर्बाद तो हो गयी। अब मना करने का क्या फायदा। जबरदस्ती लूट लिया तूने मेरी इज्जत।” मैं रोने लगी। यह रोना जरूर एक दिखावा था। मैं इतनी कमजोर दिल वाली औरत नहीं हूं कि ऐसी परिस्थितियों में रोने बैठ जाऊं। पीड़ा तो थी अवश्य, किंतु अब धीरे धीरे वह पीड़ा असह्य न रहा। चूत का तो सारा कस बल निकल चुका था।

“एक और ले, उंह हुम्म, एक और ले, उंह हुम्म।” गच्च गच्च गच्च गच्च, एक मिनट की ठुकाई के पश्चात ही बड़े आराम से उस भयावह लंड को अपनी चूत में लेने में सक्षम हो गयी। जानती थी, अंततः यही होने वाला है, फिर भी उस प्रथम पीड़ामय पलों की भयावहता अब भी मेरे जेहन में तारी थी।

“इस्स इस्स इस्स अस्सी्ई्ई्ई्ई,” न चाहते हुए भी मेरी सिसकारी निकल पड़ी।

“अब? अब? लग रहा है न मजा? दर्द शरद तो नहीं है न अब?” वह चुदक्कड़ दानव मेरी चुतड़ों को अपने बनमानुषी पंजों से मसलते हुए भच्च भच्च मेरी चूत की कुटाई करते हुए कहा।

“दर्द नहीं है तो? तो इसका मतलब क्या? यह ठीक हुआ क्या? आह आह” उन पीड़ामय लम्हों से उबर कर, अपने अंदर की पुनर्जागृत वासना की आंधी से उत्तेजित होती कामुक कामिनी को सप्रयास नियंत्रित करती बोली, फिर भी न चाहते हुए मेरी आनंदमयी आहों नें मुझ में चढ़ी मस्ती की चुगली कर ही डाली।
Post Reply