Fantasy मोहिनी
- SATISH
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Re: Fantasy मोहिनी
बहुत मस्त स्टोरी है डॉली जी लाजवाब अगले अपडेट की प्रतिक्षा है
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- Dolly sharma
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Re: Fantasy मोहिनी
Thanks to all
खूनी रिश्तों में प्यार बेशुमारRunning.....परिवार मे प्यार बेशुमारRunning..... वो लाल बॅग वाली Running.....दहशत complete..... मेरा परिवार और मेरी वासना Running..... मोहिनी Running....सुल्तान और रफीक की अय्याशी .....Horror अगिया बेतालcomplete....डार्क नाइटcomplete .... अनदेखे जीवन का सफ़र complete.....भैया का ख़याल मैं रखूँगी complete.....काला साया complete.....प्यासी आँखों की लोलुपता complete.....मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग complete......मासूम ननद complete
- Dolly sharma
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Re: Fantasy मोहिनी
जब हम गयी रात तक बातें करते और नींद आने लगती तो मुझे यूँ महसूस होता कि वह मेरे सिर पर विश्राम करने के लिये हाथ-पाँव फैलाकर पसर गयी है। उसके थोड़ी देर बाद ही मोहिनी के खर्राटों की मद्धिम-मद्धिम आवाज सुनायी देती। वह दिलकश बातें करती थी। उसके सोने का अन्दाज भी निराला था। मुझे अब उसकी हर बात बड़ी दिलकश लगती। मैं उसके जिस्म का गुराज अपने सिर पर महसूस करता।
कोई बीस दिन बड़े आराम से बीत गये। इस अरसे में मेरे और मोहिनी के बीच अच्छी-खासी मित्रता हो चुकी थी; जबकि मैं उसे देख न सकता था। फिर भी मैंने अपने अनुमान के माध्यम से अपने मस्तिष्क के कैनवस पर मोहिनी की एक खूबसूरत तस्वीर बना डाली थी नाजुक और कोमल सी एक खूबसूरत लड़की जिसके चेहरे पर सौंदर्य की आग दमकती थी। उसके पतले और नाजुक तराशे होंठ हर समय मुस्कुराने के आदी थे। उसकी आँखों में मुझे हर समय तरोताजा कमल तैरते नज़र आते और उसके बात करने का अंदाज; मैं सदैव यही महसूस करता जो बातें करते समय वह बेहद शर्मीली और मासूम सी नज़र आती थी। हाँ, तो हम दोनों एक-दूसरे से बेहद खुल गये थे। अपने फ्लैट में लेटा मैं घण्टों उसके साथ इधर-उधर की बातें करता। मैं दबी-दबी जुबान में लोगों से नजरें बचाकर उसका उत्तर दे दिया करता।
मोहिनी ने मुझसे जो कुछ वायदा किया था, वह उस पर स्थिर थी। मेरी प्रत्येक इच्छा एक के बाद एक पूरी हो रही थी। मैं मोहिनी से कहता और मोहिनी मुझे उसकी प्राप्ति का रास्ता बता देती। मेरे फ्लैट का हुलिया अब एकदम बदल चुका था। टूटी हुई कुर्सियों के स्थान पर फ्लैट में एक खूबसूरत सोफ़ा सैट मौजूद था। झिलंगी चारपाई का स्थान मसहरी ने ले लिया था। साधारण सुती कपड़ों के बजाय अब मेरे पास पहनने के लिये बेहतरीन सूट भी मौजूद थे। अब मैंने सामने वाले होटल में बैठकर नाश्ता करना छोड़ दिया था। बल्कि मैं शहर के एक ऊँचे किस्म के होटल में जाया करता था जहाँ नौकर और वेटर मेरे आगे-पीछे हाथ बाँधे खड़े रहते थे और में गर्व के साथ छुरी का ँटे से खाने में जुटा रहता। अब मुझे बिल पेमेंट के लिये पैसों का हिसाब करने की आवश्यकता नहीं थी; बल्कि अब मैं बिल के साथ-साथ पाँच-दस रुपए टिप भी दे दिया करता था।
दोपहर के खाने के बाद कुछ देर आराम करना और रात के खाने के बाद टहलना मेरी नित्य क्रिया बन चुकी थी। शाम के समय अब मैं बड़े नियमित रूप से सिविल लाइब्रेरी के क्षेत्र में जाता था जहाँ केवल बड़े लोग आ और जा सकते थे। साधारण लोग और मध्यम श्रेणी के लोग वहाँ के रखरखाव और वहाँ के घूमने-फिरने वालों की शान-ओ-शौकत देखकर ही आत्मग्लानि के शिकार बन जाते थे। मेरे साथ कोई ऐसी समस्या नहीं थी। मैं बराबर जीत रहा था। मोहिनी ने इन बीस दिनों में मेरे साथ जो कुछ किया था, जीवन भर भी यदि हाथ-पाँव मारता रहता तो भी पूरा न हो सकता। इसलिए मैं भी उसका बेहद ख्याल रखता। यदि मैं महसूस करता कि वह सो रही हैं या आराम करने के लिये लेटी हुई हैं तो मैं उसे सम्बोधित करने की बजाय खामोश ही रहता। तो हम दोनों के बीच गढ़ी छन रही थी। मुझे यदि कोई चिन्ता थी तो बस इतनी ही थी कि मोहिनी ने अभी तक मुझसे कोई काम नहीं लिया था। जबकि मैं यही चाहता था कि वह मुझसे कोई काम ले और मैं उसे पूरा करके उसके अहसानों के बोझ को कुछ हल्का कर सकूँ।
आज भी रोज के समान जब मैं एक कीमती सूट से अपने जिस्म को सजाए सिविल लाइब्रेरी वाले पार्क में चहलकदमी कर रहा था। मेरा मस्तिष्क इस सोच में उलझा हुआ था कि आखिर मोहिनी ने अब तक मुझसे कोई सेवा क्यों नहीं प्राप्त की। फिर मैंने सोचा सम्भव है उसने मात्र समझौते के कारण यूँ ही एक शर्त लगा दी हो वरना भला उसे मेरी क्या आवश्यकता पड़ सकती है?
अब मैं इस बात को अच्छी प्रकार महसूस कर चुका था कि वास्तव में मोहिनी रहस्यमय शक्तियों की मालिक है। दुनिया का कोई भी काम उसके लिये कठिन या असम्भव नहीं है। परन्तु मेरा ख्याल गलत साबित हुआ। मोहिनी वास्तव में मेरी सहायता की मोहताज थी लेकिन किस सिलसिले में यह मैं बाद में बताऊँगा। बहरहाल मोहिनी के साथ समझौता कर लेने बाद किस तरह गले-गले तक मुसीबतों के दल-दल में फँस चुका था इसका आभास मुझे बाद में हुआ। यदि कहीं आरम्भ में मुझे इस बात की हवा भी लग जाती कि मोहिनी अपनी कृपाओं का बदला मुझसे इस प्रकार चाहेगी तो मैं मरते मर जाता लेकिन मोहिनी के साथ कोई समझौता कभी न करता।
अब मैं फिर वास्तविक घटना की तरफ आता हूँ। जब से मोहिनी से मेरी भेंट हुई और मेरे बुरे दिन फिरे थे, मैं बड़े नियमित रूप से चहलकदमी के लिये शाम के समय पार्क में आया करता था। यहीं मेरी दृष्टि एक लड़की से लड़ी थी और मेरे हृदय में यह इच्छा बल पकड़ती गयी थी कि उसे जीवन साथी के रूप में सदैव के लिये अपना लूँ। क्लर्की के जमाने में उस लड़की का ख्याल करके मैं दिल मारकर रह जाता था परन्तु अब मुझें विश्वास था कि लड़की भी मुझ में दिलचस्पी ले रही थी जिसका अनुमान मैंने उसकी मुस्कुराती हुई दृष्टि से लगा लिया था। जबकि उसकी और मेरी आज तक कोई बात नहीं हुई थी। लेकिन जितनी देर मैं पार्क में उपस्थित रहता वह भी वहाँ रहती। हम एक-दूसरे को देखते फिर जल्दी से दृष्टि को झुका लेते। अभी तक न तो उसने मेरे निकट आकर कोई बात करने की कोशिश की थी, न ही मेरा साहस पड़ा था कि मैं अपनी तरफ से पहल कर सकूँ।
कोई बीस दिन बड़े आराम से बीत गये। इस अरसे में मेरे और मोहिनी के बीच अच्छी-खासी मित्रता हो चुकी थी; जबकि मैं उसे देख न सकता था। फिर भी मैंने अपने अनुमान के माध्यम से अपने मस्तिष्क के कैनवस पर मोहिनी की एक खूबसूरत तस्वीर बना डाली थी नाजुक और कोमल सी एक खूबसूरत लड़की जिसके चेहरे पर सौंदर्य की आग दमकती थी। उसके पतले और नाजुक तराशे होंठ हर समय मुस्कुराने के आदी थे। उसकी आँखों में मुझे हर समय तरोताजा कमल तैरते नज़र आते और उसके बात करने का अंदाज; मैं सदैव यही महसूस करता जो बातें करते समय वह बेहद शर्मीली और मासूम सी नज़र आती थी। हाँ, तो हम दोनों एक-दूसरे से बेहद खुल गये थे। अपने फ्लैट में लेटा मैं घण्टों उसके साथ इधर-उधर की बातें करता। मैं दबी-दबी जुबान में लोगों से नजरें बचाकर उसका उत्तर दे दिया करता।
मोहिनी ने मुझसे जो कुछ वायदा किया था, वह उस पर स्थिर थी। मेरी प्रत्येक इच्छा एक के बाद एक पूरी हो रही थी। मैं मोहिनी से कहता और मोहिनी मुझे उसकी प्राप्ति का रास्ता बता देती। मेरे फ्लैट का हुलिया अब एकदम बदल चुका था। टूटी हुई कुर्सियों के स्थान पर फ्लैट में एक खूबसूरत सोफ़ा सैट मौजूद था। झिलंगी चारपाई का स्थान मसहरी ने ले लिया था। साधारण सुती कपड़ों के बजाय अब मेरे पास पहनने के लिये बेहतरीन सूट भी मौजूद थे। अब मैंने सामने वाले होटल में बैठकर नाश्ता करना छोड़ दिया था। बल्कि मैं शहर के एक ऊँचे किस्म के होटल में जाया करता था जहाँ नौकर और वेटर मेरे आगे-पीछे हाथ बाँधे खड़े रहते थे और में गर्व के साथ छुरी का ँटे से खाने में जुटा रहता। अब मुझे बिल पेमेंट के लिये पैसों का हिसाब करने की आवश्यकता नहीं थी; बल्कि अब मैं बिल के साथ-साथ पाँच-दस रुपए टिप भी दे दिया करता था।
दोपहर के खाने के बाद कुछ देर आराम करना और रात के खाने के बाद टहलना मेरी नित्य क्रिया बन चुकी थी। शाम के समय अब मैं बड़े नियमित रूप से सिविल लाइब्रेरी के क्षेत्र में जाता था जहाँ केवल बड़े लोग आ और जा सकते थे। साधारण लोग और मध्यम श्रेणी के लोग वहाँ के रखरखाव और वहाँ के घूमने-फिरने वालों की शान-ओ-शौकत देखकर ही आत्मग्लानि के शिकार बन जाते थे। मेरे साथ कोई ऐसी समस्या नहीं थी। मैं बराबर जीत रहा था। मोहिनी ने इन बीस दिनों में मेरे साथ जो कुछ किया था, जीवन भर भी यदि हाथ-पाँव मारता रहता तो भी पूरा न हो सकता। इसलिए मैं भी उसका बेहद ख्याल रखता। यदि मैं महसूस करता कि वह सो रही हैं या आराम करने के लिये लेटी हुई हैं तो मैं उसे सम्बोधित करने की बजाय खामोश ही रहता। तो हम दोनों के बीच गढ़ी छन रही थी। मुझे यदि कोई चिन्ता थी तो बस इतनी ही थी कि मोहिनी ने अभी तक मुझसे कोई काम नहीं लिया था। जबकि मैं यही चाहता था कि वह मुझसे कोई काम ले और मैं उसे पूरा करके उसके अहसानों के बोझ को कुछ हल्का कर सकूँ।
आज भी रोज के समान जब मैं एक कीमती सूट से अपने जिस्म को सजाए सिविल लाइब्रेरी वाले पार्क में चहलकदमी कर रहा था। मेरा मस्तिष्क इस सोच में उलझा हुआ था कि आखिर मोहिनी ने अब तक मुझसे कोई सेवा क्यों नहीं प्राप्त की। फिर मैंने सोचा सम्भव है उसने मात्र समझौते के कारण यूँ ही एक शर्त लगा दी हो वरना भला उसे मेरी क्या आवश्यकता पड़ सकती है?
अब मैं इस बात को अच्छी प्रकार महसूस कर चुका था कि वास्तव में मोहिनी रहस्यमय शक्तियों की मालिक है। दुनिया का कोई भी काम उसके लिये कठिन या असम्भव नहीं है। परन्तु मेरा ख्याल गलत साबित हुआ। मोहिनी वास्तव में मेरी सहायता की मोहताज थी लेकिन किस सिलसिले में यह मैं बाद में बताऊँगा। बहरहाल मोहिनी के साथ समझौता कर लेने बाद किस तरह गले-गले तक मुसीबतों के दल-दल में फँस चुका था इसका आभास मुझे बाद में हुआ। यदि कहीं आरम्भ में मुझे इस बात की हवा भी लग जाती कि मोहिनी अपनी कृपाओं का बदला मुझसे इस प्रकार चाहेगी तो मैं मरते मर जाता लेकिन मोहिनी के साथ कोई समझौता कभी न करता।
अब मैं फिर वास्तविक घटना की तरफ आता हूँ। जब से मोहिनी से मेरी भेंट हुई और मेरे बुरे दिन फिरे थे, मैं बड़े नियमित रूप से चहलकदमी के लिये शाम के समय पार्क में आया करता था। यहीं मेरी दृष्टि एक लड़की से लड़ी थी और मेरे हृदय में यह इच्छा बल पकड़ती गयी थी कि उसे जीवन साथी के रूप में सदैव के लिये अपना लूँ। क्लर्की के जमाने में उस लड़की का ख्याल करके मैं दिल मारकर रह जाता था परन्तु अब मुझें विश्वास था कि लड़की भी मुझ में दिलचस्पी ले रही थी जिसका अनुमान मैंने उसकी मुस्कुराती हुई दृष्टि से लगा लिया था। जबकि उसकी और मेरी आज तक कोई बात नहीं हुई थी। लेकिन जितनी देर मैं पार्क में उपस्थित रहता वह भी वहाँ रहती। हम एक-दूसरे को देखते फिर जल्दी से दृष्टि को झुका लेते। अभी तक न तो उसने मेरे निकट आकर कोई बात करने की कोशिश की थी, न ही मेरा साहस पड़ा था कि मैं अपनी तरफ से पहल कर सकूँ।
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Re: Fantasy मोहिनी
बहरहाल जितनी देर पार्क में रहते एक-दूसरे के आमने-सामने रहते और दिलों की भाषा नज़रों की जुबानी एक-दूसरे से बयान करने में व्यस्त रहते। मैंने उस लड़की के बारे में अब तक इतनी जानकारियाँ प्राप्त कर ली थीं कि उसका नाम डॉली है। उसका बाप एक बड़ा प्रकाशक था जिसकी गणना हिंदुस्तान के पॉकेट बुक्स व्यवसाय के बड़े प्रकाशकों में होती थी। यदि मोहिनी से मेरी मुलाकात न होती तो कदाचित मैं डॉली की कल्पना भी न कर सकता था। परन्तु मौजूदा सूरत में दौलत के लिहाज से डॉली के बाप से किसी तरह कम नहीं था। जितनी दौलत उसने अपने सारे जीवन भर लेखकों का खून चूसकर कमाई थी, उतनी दौलत मैं किसी भी समय मोहिनी के माध्यम से प्राप्त कर सकता था।
डॉली मेरे दिलोदिमाग पर छा चुकी थी। आज भी मैं पार्क के एक सुनसान कोने में बैठा उसे कनखियों से देख रहा था। वह मुझसे आठ-दस फीट के फासले पर दूसरे बेंच पर बैठी थी। कभी-कभी जब हम दोनों की दृष्टि एक-दूसरे तक जाती थी तो वह झिझककर अपनी निगाहें झुका लेती। बहुत देर से हमारे बीच आँखमिचौली हो रही थी। अचानक मैंने एक खूबसूरत नौजवान को डॉली के निकट जाकर बैठते देखा। नौजवान के आ जाने से डॉली कुछ चिन्तित हो उठी थी। परन्तु मैंने यही अनुमान लगाया कि वह नौजवान उसके लिये अजनबी था। यदि ऐसी कोई बात होती तो डॉली यकीनन उठ गयी होती। उसका अपने निकट बैठना कभी गँवारा नहीं करती। मैं अपने स्थान पर बैठा उस नौजवान को खा जाने वाली दृष्टि से देख रहा था। वह जिस भाव में मुस्कुरा-मुस्कुराकर डॉली से बात करने की कोशिश कर रहा था, उससे मेरे सीने में एक आग सी लग गयी थी।
ठीक उसी समय जब मैं अपनी बेंच पर बार-बार पहलू बदल रहा था और दिल ही दिल में कसमसा रहा था तो मैंने महसूस किया कि मोहिनी जो मेरे सिर पर लेटी थी अचानक हड़बड़ाकर उठ बैठी। उसी के साथ मेरे कानों में उसकी रसीली आवाज गूँजी।
“राज! क्या तुम जानते हो यह नौजवान कौन है?”
“नहीं!” मैंने धीरे से कहा।
“यह डॉली का मंगेतर है।” मोहिनी फुसफुसाई – “मैं चाहती हूँ तुम इसकी हत्या कर दो।”
मोहिनी की जुबानी यह सुनकर कि वह नौजवान डॉली का मंगेतर है। मेरे दिल को बड़ा धक्का लगा। परन्तु मैं चूँकि शुरू से ही अहिंसा पसन्द आदमी था इसलिए नौजवान को मार डालने का सुझाव सुनकर मेरा दिल धड़कने लगा।
“मोहिनी! क्या तुम मेरे लिये कुछ नहीं कर सकतीं ?” मैंने दबी जुबान में कहा। “मैं बहुत बेचैन हूँ।”
“नहीं! तुम्हें इस नौजवान की हत्या वैसे भी मेरे लिये करनी होगी। तुम्हें अपना वादा तो याद होगा न ?”
“मैं अब भी अपने वायदे पर अडिग हूँ; लेकिन तुम्हारी इस नौजवान से कौन सी दुश्मनी है ?” मैंने पूछा।
“कुछ भी नहीं! परन्तु इसके बावजूद तुम्हें मेरी आज्ञा पर इस नौजवान की हत्या करनी होगी।” मोहिनी का स्वर इस बार कठोर और आज्ञा भरा था – “मुझे इस नौजवान के खून की आवश्यकता है।”
“क्या?” मैं बौखला गया।
“स्पष्ट है, तुम इंकार नहीं कर सकते। इंकार का मतलब है वायदा खिलाफी और वायदा खिलाफी करने वाला मेरे लिहाज से बहुत बड़ी सजा का मुजरिम है। तुम मेरी शक्तियों का अनुमान तो लगा ही चुके हो।”
“लेकिन?”
“बहस मत करो राज!” मोहिनी ने झल्लाये स्वर में मेरी बात काटते हुए। “सुनो, इंसानी खून मेरा भोजन है। उसके बिना मेरा अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। तुमने यदि वायदा खिलाफी की तो नुकसान में रहोगे। तुम्हें हर हाल में मेरे लिये यह खतरा उठाना होगा जिसका तुम वायदा कर चुके हो।”
इससे पहले कि मैं कोई उत्तर देता, मेरे सिर में नुकीले पंजों की चुभन तेज होने लगी। यह कदाचित मोहिनी की ओर से खामोश चैलेंज था कि यदि मैंने उसकी बात न मानी तो वह मुझे भी हानि पहुँचाने में नहीं हिचकिचायेगी।
समय की नजाकत को महसूस कर मैं काँप उठा। मेरे चेहरे पर पसीने की नन्ही-नन्ही बूँदे चमकने लगीं। मेरे मस्तिष्क में एक हलचल सी मच गयी थी। मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ।
“क्यों राज ? तुमने क्या फैसला किया ?”
“मैं तैयार हूँ।” मैंने एकाएक कहा और उस नौजवान को घूरने लगा जो डॉली के साथ बैठा बातें कर रहा था। समय जैसे-जैसे गुजरता गया मेरे खून की गर्दिश भी तेज होती गयी।
मेरी नजरें बराबर उस नौजवान पर जमी हुई थीं जो सामने वाली बेंच पर बैठा डॉली से हँस-हँसकर बातें कर रहा था। हालाँकि डॉली को उसमें कोई दिलचस्पी नहीं थी – ऐसा मैं महसूस कर रहा था। जब से मोहिनी ने मुझे यह बताया था कि वह नौजवान डॉली का मंगेतर है तब से मैं काँटों पर लोट रहा था। ऐसा सोचना ही मेरे लिये असहनीय था। इसलिए कि मैंने डॉली के लिये न जाने कितने खूबसूरत रंग अपने दामन में बना लिये थे।
कुछ दिन ऐसे भी आए जब मैं उसी के सम्बन्ध में सोचता रहा। फिर यह कैसे सम्भव था कि मैं अपनी खुशियों, अपने अरमानों का खून आसानी से बर्दाश्त कर लेता और अब तो यह बात यूँ भी असम्भव थी। क्योंकि मोहिनी मेरी सहायता को तैयार थी। वह मोहिनी जो रहस्यमय शक्तियों की मालिक थी। जैसे-जैसे समय गुजरता गया मेरे दिल से उठने वाली आग भड़कती गयी। यदि मोहिनी से वायदा खिलाफी का ख्याल न होता तब भी यह मालूम हो जाने के बाद कि वह नौजवान मेरे सपनों की शहजादी को मुझसे छीन ले जाने की कोशिश कर रहा है, मैं इसे किसी भी कीमत पर सहन नहीं कर सकता था।
बहरहाल मैं निर्णय कर चुका था कि इस नौजवान को जरूर ठिकाने लगा दूँगा। डॉली ने नौजवान की उपस्थिति में भी दो-तीन बार तिरछी नज़रों से मेरी ओर देखा था। कदाचित वह अपने चेहरे पर फैली हुई बेचैनी के भावों द्वारा बताना चाहती थी कि नौजवान उसके लिये बिन बुलाए मेहमान की हैसियत रखता है। मैंने उसकी नज़रों से यह भी अनुमान लगाया कि वह अब तक वहाँ केवल मेरे लिये बैठी हुई थी वरना नौजवान की उपस्थिति से वह बोर होकर उठ चुकी होती। इन सब बातों को महसूस कर लेने के बाद मैं इस उधेड़बुन में लगा हुआ था कि किस समय मुझे अवसर मिले और मैं अपने दुश्मन को ठिकाने लगाऊँ।
मैंने उसकी हत्या करने के लिये उचित स्थान का निरीक्षण करना शुरू कर दिया। शाम का धुंधलापन गहरा होने लगा तो मैंने डॉली को बेंच से उठते देखा। उसने अंतिम बार थकी-थकी नज़रों से देखा फिर वापसी के लिये चल पड़ी। नौजवान बराबर उसके साथ था। उन दोनों के आगे बढ़ते ही मैं झटके से खड़ा हुआ और कदम बढ़ाता उनके पीछे हो लिया। मेरे दिल की धड़कने हर पल तेज होती जा रही थी। मुझे केवल एक ऐसे अवसर की तलाश थी जब मैं उस नौजवान को किसी सुनसान स्थान पर पकड़ सकता और मुझे यह अवसर शीघ्र प्राप्त भी हुआ।
डॉली मेरे दिलोदिमाग पर छा चुकी थी। आज भी मैं पार्क के एक सुनसान कोने में बैठा उसे कनखियों से देख रहा था। वह मुझसे आठ-दस फीट के फासले पर दूसरे बेंच पर बैठी थी। कभी-कभी जब हम दोनों की दृष्टि एक-दूसरे तक जाती थी तो वह झिझककर अपनी निगाहें झुका लेती। बहुत देर से हमारे बीच आँखमिचौली हो रही थी। अचानक मैंने एक खूबसूरत नौजवान को डॉली के निकट जाकर बैठते देखा। नौजवान के आ जाने से डॉली कुछ चिन्तित हो उठी थी। परन्तु मैंने यही अनुमान लगाया कि वह नौजवान उसके लिये अजनबी था। यदि ऐसी कोई बात होती तो डॉली यकीनन उठ गयी होती। उसका अपने निकट बैठना कभी गँवारा नहीं करती। मैं अपने स्थान पर बैठा उस नौजवान को खा जाने वाली दृष्टि से देख रहा था। वह जिस भाव में मुस्कुरा-मुस्कुराकर डॉली से बात करने की कोशिश कर रहा था, उससे मेरे सीने में एक आग सी लग गयी थी।
ठीक उसी समय जब मैं अपनी बेंच पर बार-बार पहलू बदल रहा था और दिल ही दिल में कसमसा रहा था तो मैंने महसूस किया कि मोहिनी जो मेरे सिर पर लेटी थी अचानक हड़बड़ाकर उठ बैठी। उसी के साथ मेरे कानों में उसकी रसीली आवाज गूँजी।
“राज! क्या तुम जानते हो यह नौजवान कौन है?”
“नहीं!” मैंने धीरे से कहा।
“यह डॉली का मंगेतर है।” मोहिनी फुसफुसाई – “मैं चाहती हूँ तुम इसकी हत्या कर दो।”
मोहिनी की जुबानी यह सुनकर कि वह नौजवान डॉली का मंगेतर है। मेरे दिल को बड़ा धक्का लगा। परन्तु मैं चूँकि शुरू से ही अहिंसा पसन्द आदमी था इसलिए नौजवान को मार डालने का सुझाव सुनकर मेरा दिल धड़कने लगा।
“मोहिनी! क्या तुम मेरे लिये कुछ नहीं कर सकतीं ?” मैंने दबी जुबान में कहा। “मैं बहुत बेचैन हूँ।”
“नहीं! तुम्हें इस नौजवान की हत्या वैसे भी मेरे लिये करनी होगी। तुम्हें अपना वादा तो याद होगा न ?”
“मैं अब भी अपने वायदे पर अडिग हूँ; लेकिन तुम्हारी इस नौजवान से कौन सी दुश्मनी है ?” मैंने पूछा।
“कुछ भी नहीं! परन्तु इसके बावजूद तुम्हें मेरी आज्ञा पर इस नौजवान की हत्या करनी होगी।” मोहिनी का स्वर इस बार कठोर और आज्ञा भरा था – “मुझे इस नौजवान के खून की आवश्यकता है।”
“क्या?” मैं बौखला गया।
“स्पष्ट है, तुम इंकार नहीं कर सकते। इंकार का मतलब है वायदा खिलाफी और वायदा खिलाफी करने वाला मेरे लिहाज से बहुत बड़ी सजा का मुजरिम है। तुम मेरी शक्तियों का अनुमान तो लगा ही चुके हो।”
“लेकिन?”
“बहस मत करो राज!” मोहिनी ने झल्लाये स्वर में मेरी बात काटते हुए। “सुनो, इंसानी खून मेरा भोजन है। उसके बिना मेरा अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। तुमने यदि वायदा खिलाफी की तो नुकसान में रहोगे। तुम्हें हर हाल में मेरे लिये यह खतरा उठाना होगा जिसका तुम वायदा कर चुके हो।”
इससे पहले कि मैं कोई उत्तर देता, मेरे सिर में नुकीले पंजों की चुभन तेज होने लगी। यह कदाचित मोहिनी की ओर से खामोश चैलेंज था कि यदि मैंने उसकी बात न मानी तो वह मुझे भी हानि पहुँचाने में नहीं हिचकिचायेगी।
समय की नजाकत को महसूस कर मैं काँप उठा। मेरे चेहरे पर पसीने की नन्ही-नन्ही बूँदे चमकने लगीं। मेरे मस्तिष्क में एक हलचल सी मच गयी थी। मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ।
“क्यों राज ? तुमने क्या फैसला किया ?”
“मैं तैयार हूँ।” मैंने एकाएक कहा और उस नौजवान को घूरने लगा जो डॉली के साथ बैठा बातें कर रहा था। समय जैसे-जैसे गुजरता गया मेरे खून की गर्दिश भी तेज होती गयी।
मेरी नजरें बराबर उस नौजवान पर जमी हुई थीं जो सामने वाली बेंच पर बैठा डॉली से हँस-हँसकर बातें कर रहा था। हालाँकि डॉली को उसमें कोई दिलचस्पी नहीं थी – ऐसा मैं महसूस कर रहा था। जब से मोहिनी ने मुझे यह बताया था कि वह नौजवान डॉली का मंगेतर है तब से मैं काँटों पर लोट रहा था। ऐसा सोचना ही मेरे लिये असहनीय था। इसलिए कि मैंने डॉली के लिये न जाने कितने खूबसूरत रंग अपने दामन में बना लिये थे।
कुछ दिन ऐसे भी आए जब मैं उसी के सम्बन्ध में सोचता रहा। फिर यह कैसे सम्भव था कि मैं अपनी खुशियों, अपने अरमानों का खून आसानी से बर्दाश्त कर लेता और अब तो यह बात यूँ भी असम्भव थी। क्योंकि मोहिनी मेरी सहायता को तैयार थी। वह मोहिनी जो रहस्यमय शक्तियों की मालिक थी। जैसे-जैसे समय गुजरता गया मेरे दिल से उठने वाली आग भड़कती गयी। यदि मोहिनी से वायदा खिलाफी का ख्याल न होता तब भी यह मालूम हो जाने के बाद कि वह नौजवान मेरे सपनों की शहजादी को मुझसे छीन ले जाने की कोशिश कर रहा है, मैं इसे किसी भी कीमत पर सहन नहीं कर सकता था।
बहरहाल मैं निर्णय कर चुका था कि इस नौजवान को जरूर ठिकाने लगा दूँगा। डॉली ने नौजवान की उपस्थिति में भी दो-तीन बार तिरछी नज़रों से मेरी ओर देखा था। कदाचित वह अपने चेहरे पर फैली हुई बेचैनी के भावों द्वारा बताना चाहती थी कि नौजवान उसके लिये बिन बुलाए मेहमान की हैसियत रखता है। मैंने उसकी नज़रों से यह भी अनुमान लगाया कि वह अब तक वहाँ केवल मेरे लिये बैठी हुई थी वरना नौजवान की उपस्थिति से वह बोर होकर उठ चुकी होती। इन सब बातों को महसूस कर लेने के बाद मैं इस उधेड़बुन में लगा हुआ था कि किस समय मुझे अवसर मिले और मैं अपने दुश्मन को ठिकाने लगाऊँ।
मैंने उसकी हत्या करने के लिये उचित स्थान का निरीक्षण करना शुरू कर दिया। शाम का धुंधलापन गहरा होने लगा तो मैंने डॉली को बेंच से उठते देखा। उसने अंतिम बार थकी-थकी नज़रों से देखा फिर वापसी के लिये चल पड़ी। नौजवान बराबर उसके साथ था। उन दोनों के आगे बढ़ते ही मैं झटके से खड़ा हुआ और कदम बढ़ाता उनके पीछे हो लिया। मेरे दिल की धड़कने हर पल तेज होती जा रही थी। मुझे केवल एक ऐसे अवसर की तलाश थी जब मैं उस नौजवान को किसी सुनसान स्थान पर पकड़ सकता और मुझे यह अवसर शीघ्र प्राप्त भी हुआ।
खूनी रिश्तों में प्यार बेशुमारRunning.....परिवार मे प्यार बेशुमारRunning..... वो लाल बॅग वाली Running.....दहशत complete..... मेरा परिवार और मेरी वासना Running..... मोहिनी Running....सुल्तान और रफीक की अय्याशी .....Horror अगिया बेतालcomplete....डार्क नाइटcomplete .... अनदेखे जीवन का सफ़र complete.....भैया का ख़याल मैं रखूँगी complete.....काला साया complete.....प्यासी आँखों की लोलुपता complete.....मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग complete......मासूम ननद complete