Adultery * * * * *पाप (30 कहानियां) * * * * *

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rajaarkey
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आठ दिन-2

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तुम्हारा वही पति जिसके लिए घर की साफ सफाई कितना मतलब रखती थी और सिर्फ घर के अंदर की ही नहीं बल्कि घर के बाहर की भी सफाई। और आज सोचता हूँ तो शायद हँसी भी आती है की कभी मेरी यही बातें । तुम्हें कितनी ज्यादा पसंद थी। कितनी मोहब्बत करती थी तुम मेरी इन्हीं आदतों से जो बाद में तुम्हें परेशान करने लगी थी। कैसे पहली बार जब तुमने मेरा कमरा देखा तो ये कहा था की ये दूसरे लड़कों के कमरों जैसा गंदा नहीं बल्कि बहुत साफ है। और बाद में तुम्हें मेरी यही आदत और सफाई पर तुम्हें टोकना कितना बुरा लगने लगा था।


तो तुम बाहर बैठी घर के गंदी हालत को देखोगी और दिल ही दिल में अपने आपसे कहोगी की तुम इसके लिए जिम्मेदार नहीं हो। पाँच हफ्ते हो जाएंगे तुम्हें गये हुए और इन पाँच हफ़्तो में सिर्फ दो बार तुमने मुझसे फोन किया और हर बार मुझे बस यही कहा की मैं तुम्हें जाने दें।
कहा क्या बल्कि तुमने तो मुझसे हाथ जोड़कर भीख ही माँग ली की मैं तुम्हें भूल जाऊं और जाने दें। जैसे तुम्हें मुझसे भीख माँगने की कोई भी जरूरत थी।
घर के बाहर मेरी कार देखकर तुम समझ जाओगी की मैं घर पर ही हूँ और शायद इस बात का तुम्हें अफसोस भी हो क्योंकी सारे रास्ते तुम यही उम्मीद और दुआ करती आई होगी की मैं तुम्हें घर पर ना मिलूं और तुम चुपचाप अपना समान लेकर निकल जाओ। की तुम्हें मेरा सामना ना करना पड़े।
पर शायद तुम ये भूल चुकी होगी की मैंने तुमसे ये वादा किया था की मैं तुम्हें उस वक़्त घर पर ही मिलूंगा। ताकि हम एक आखिरी बार मिल सकें और अपने डाइवोर्स पेपर्स पर साइन कर सके। ताकि हम सारे सेटलमेंट्स निपटा सकें।
हैरत की बात है की साथ जीने मरने की कश्में अब सेटमेंट जैसे एक शब्द में सिमट गई। घर के बाहर खड़ी कार हमारी कार है, ये घर हमारा घर है। क्योंकी ये सारी प्रॉपर्टीस में तुम बराबर की हिस्सेदार हो। यूँ तो तुम एक हाउसवाइफ थी और घर का सारा खर्चा मेरे जिम्मे था। ये सब चीजें मैंने खुद खरीदी थी पर फिर भी मैंने इन सब चीजों का तुम्हें भी बराबर मालिक बनाया है क्योंकी तुम मेरी बीवी हो, मेरी हमराज हो, मेरी हम-सफर
हो, मेरी अर्धांगिनी हो, मेरी बेटर हाफ हो।
क्योंकी मैं तुमसे बे-इंतेहाँ मोहब्बत करता हूँ।
एयरपोर्ट से घर तक तुम पूरे रास्ते सोचती हुई आई होंगी। मुझसे क्या कहना है, क्या बात करनी है, सारी लाइन्स तुमने एक बार फिर रिहर्स की होंगी। तुम जानती हो की मैं तुमसे कहूँगा की तुम अपना इरादा बदल दो और सब भूलकर एक बार फिर घर आ जाओ और तुम जवाब में अपनी लाइन रिहर्स करती आओगी.. की मुझे कैसे समझाना है की अब सब खतम हो चला है। की अब तुम वापिस कभी नहीं आ सकती सिवाय इस एक घंटे के जबकी तुम अपना समान लेने आओगी। सिवाय एक घंटे के जब तुम आओगी भी तो वापिस चले जाने के लिए।
तुम मुझसे कहोगी की मैं तुम्हें माफ कर दें और की तुम बहुत शर्मिंदा हो, की तुम्हें बहुत अफसोस है। हैरत की बात है के साफ जीने मरने की कश्में शर्मिंदगी और अफसोस जैसे लफ़्ज़ों में सिमट जाएंगी।
वफा की आखिरी हद से गुजर लिया जाए, सितमगारों के मोहल्ले में घर लिया जाए, जिधर निगाह उठे आप ही के जलवे हों, जिए तो ऐसे जिएं वरना मर लिया जाए।
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आठ दिन-3

Post by rajaarkey »

ये घर, हमारा घर। दो साल पहले जब हमने ये घर बनवाया था तो कितने शौक से बनवाया था। किस तरह से तुमने घर की हर एक चीज को बड़ी देखभाल से खुद डिजाइन किया था। कैसे कौन सा कमरा कहाँ बनेगा, किस तरह बनेगा, कितने कमरे होंगे, कौन सा पेंट होगा, कौन से पर्दे, हर चीज को तुमने खुद अपने आप शौक से पसंद किया था। और क्यों ना करती, कब से हम इस घर की आस लगाए बैठे थे। कब से तुम दिन रात बस अपने घर की बातें किया करती थी। कैसे तुम कहा करती थी की जब अपना घर होगा तो तुम ऐसे सजाओगी, वैसे सजाओगी।
कैसे तुमने पूरे घर को ये ध्यान में रखकर बनवाया था की हमारे दो बच्चे होंगे। शादी के 6 साल हो जाने के बाद भी तुम बच्चा नहीं चाहती थी क्योंकी तुम्हें इस बात की जिद थी की तुम अपने बच्चे को जनम अपने घर में दोगी जहाँ वो पल बढ़कर बड़ा होगा। और हैरत की बात है की कैसे तुमने मुझे फोन पर आखिरी बार बात करते हुए कहा था- “बैंक गाड हमारा कोई बच्चा नहीं है..”
तुम्हें कार में बैठे बैठे थोड़ी देर हो चुकी होगी। टैक्सी ड्राइवर ने कार का एंजिन और एसी दोनों बंद कर दिए होंगे
और तुम्हें अब हल्की हल्की गर्मी महसूस होनी शुरू हो चुकी होगी।
तुम हमेशा बहुत सुंदर थी, बेहद खूबसूरत। इतनी खूबसूरत की कभी कभी मुझे लगता था की तुमने क्यों मुझे अपना पति चुना। शकल सूरत में मैं कहीं से भी तुम्हारी मुकाबले नहीं था और कई बार अंजाने में तुमने मुझे इस बात का एहसास कराया भी था।
कैसे तुम हँसते हँसते मजाक में कह जाती थी की तुम चाहती तो तुम्हें एक से एक खूबसूरत लड़के मिल जाते। कैसे तुम अक्सर मासूमियत से मुझे मेरे चेहरे का एहसास करा देती थी। पर मैंने कभी तुमसे कोई शिकायत नहीं की। हाँ मुझमें शायद कमी थी पर किस में नहीं होती। भगवान ने हर इंसान में अच्छे और बुरे का सही मिश्रण। बनाया है। गुण अवगुण सब में होते हैं। मुझमें भी थे। तुममें भी थे पर कभी मैंने तुम्हें उसका कोई एहसास नहीं कराया। मैं शायद तुम्हारी वो अच्छी साइड ही देखता रहा जिससे मुझे बेन्तेहाँ मोहब्बत था। जिस पर मैं दिल
ओ-जान से मरता था।
कार से बाहर निकलकर अपने आपको धूप से बचाती तुम घर की तरफ बढ़ोगी और दिल ही दिल में सख़्त धूप और गर्मी की अपने आपसे शिकायत करोगी। 5 हफ्ते देल्ही से बाहर रह कर तुम भूल चुकी होगी के इन दिनों देल्ही का मौसम कैसा रहता है।
गरम, बहुत गरम।
और ऐसे ही कुछ गर्मी शायद मेरी आत्मा के अंदर भी है, मेरी रूह और मेरे दिल में भी जा बसी है। तुम मेरी बीवी हो और मैंने कभी तुम्हारे साथ कोई ज्यादती नहीं की। कभी अपनी आवाज तक तुम्हारे सामने ऊँची नहीं
की। उस वक्त भी नहीं जब तुम मेरे सामने पागलों की तरह चिल्ला रही थी की तुम तलाक चाहती हो, की तुम मुझसे प्यार नहीं करती, कभी किया ही नहीं। और तब पहली बार मैंने तुम्हारी नजर में सच्चाई देखी थी। अब तक जो मोहब्बत मैं तुम्हारे चेहरे में देखता था वो तो सब धोखा था। तब पहली बार मैंने तुम्हारी नजर में अपने लिए घमंड देखी थी।

वो पल मैं कभी चाह कर भी भूल नहीं सकता।
बर्क नजरों को, बाद-ए-सबा चाल को, और जुलफ को काली घटा कह दिया, मेरी आँखों में सावन की ऋतु आई, जब दीदा-ए-यार को मकड़ा कह दिया। मैं कहाँ, जुर्रत-ए-लाबकूशाई कहाँ, तौबा तौबा जुनून की ये बेताबियां, रूबरू जिनके नजरें भी कभी उठती ना थी, उनके मुँह पर आज उन्हें बेवफा कह दिया।
उस वक़्त मुझे एहसास हुआ था की शादी के 7 साल तक तुम जो दिखा रही थी वो सिर्फ एक भ्रम था। तुम्हारी असलियत तो जैसे एक पर्दे की पीछे थी और तुम सिर्फ बीवी होने का अपना रोल प्ले कर रही थी। और अब अचानक वो रोल खतम करते हुए जब शायद तुम्हें समझ नहीं आया की क्या कहा जाए, जब तुम्हारे पास अल्फ़ाज की कमी हो गई तो तुम गुस्से में चिल्लाने लगी थी।
कैसे तुमने चिल्ला चिल्लाकर अपने चेहरे से नकाब हटा दिया था। कैसे तुमने वो परदा फाड़ दिया था जिसके पीछे तुम सात साल तक छुपी रही।
मैं तुमसे प्यार नहीं करती। तुमसे शादी करना एक बहुत बड़ी गलती थी। प्लीज मुझे जाने दो। मैं यहाँ नहीं रह सकती। दम घुटने लगा है मेरा यहाँ।
और मैं किसी पागल गूंगे की तरह खड़ा तुम्हें देख रहा था। सदमे में सिर्फ तुम्हारे मुँह को हिलता हुआ देख रहा था पर उससे निकलते शब्द नहीं सुन रहा था। मैं तुम्हारी तरफ बढ़ा तो तुम फौरन पीछे हट गई थी, जैसे मुझसे कोई बदबू आ रही हो। और तब मैंने तुमसे कहा था की मैं तुम्हें जाने नहीं दे सकता और ना ही जाने दूंगा। क्योंकी तुम मेरी बीवी हो। याद है कैसे तुम सर्दी के दिनों में चुपचाप मेरे पीछे से आकर ठंडे हाथ मेरी कमीज के अंदर डाल देती थी।
तुम अक्सर ऐसे बच्चों जैसी हरकतें करती थी।
याद है एक बार तुम मेरे लिए वैलेंटाइनस डे पर गिफ्ट लेकर आई थी और खामोशी से मुझे बिना बताए मेरी डेस्क पर रख दिया था। और मैं अपने काम में इतना मगन रहता था की उसी सेम डेस्क पर बैठे होने के। बावजूद हफ्तों तक मुझे वो गिफ्ट नजर नहीं आया। तुम इंतेजार करती रही और फिर थक कर तुमने खुद मुझे उस गिफ्ट के बारे में बताया और मुझे खोलकर दिखाया।
तुम्हारे प्यार से भरे उस सप्टइज को मैंने पूरी तरह खराब कर दिया था पर शायद तुम्हें चोट मैंने उस वक़्त । पहुँचाई जब तुम्हारे गिफ्ट खोलने के बाद मेरे चेहरे पर जरा भी खुशी तुम्हें दिखाई नहीं दी और मैं एक बार फिर अपने काम में लग गया।



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आठ दिन-4

Post by rajaarkey »

शायद यही सब बातें थी जिन्होंने तुम्हें मुझसे इतनी दूर कर दिया। शायद।
पर शादी के वक्त तुमने मुझसे वादा किया था के तुम कभी मेरी किसी बात का बुरा नहीं मनोगी, की तुम्हें कभी मेरे काम को लेकर किसी बात से कोई तकलीफ नहीं होगी। मैंने तुम्हें बताया था की मेरा काम मेरे लिए सबसे । पहले है और मेरी पर्सनल लाइफ पर शायद इसका थोड़ा बहुत फरक भी पड़े। और तुमने फौरन मुझसे वादा किया था के मेरे काम को लेकर तुम्हें कोई परेशानी नहीं होगी, तुम कभी बुरा नहीं मनोगी, की तुम हमेशा मुझसे प्यार करती रहोगी।
क्या झूठ बोला था तुमने... या जल्दबाजी में बिना सोचे समझे एक वादा कर दिया था जो अब तोड़ रही हो...
उनका कोई पैगाम ना आया, दिल का तड़पना काम ना आया, तू ना मिला तो दर्द मिला है, । दर से मगर तेरे नाकाम ना आया। हस्न ने की जी भर के जफाएं, उसपे मगर इल्ज़ाम ना आया, तेरे बगैर आए जान-ए-तमन्ना, दिल को कहीं आराम ना आया।
और अब तो हम दोनों ही शायद उन टूटे हुए वादों से कहीं आगे निकल चुके हैं। अगर ये सच है की मोहब्बत एक जिंदगी चीज है और हर ज़िंदा चीज की तरह ये भी एक दिन मर जाती है तो क्या ऐसा हो सकता है की मरी हुई मोहब्बत में फिर से जान आ जाए...
घर के बाहर पहुँच कर तुम बेल बजाओगी। वही बेल जो एक दिन तुम खुद पसंद करके खरीद कर लाई थी। पूरे 4 दिन मार्केट में भटकने के बाद तुम्हें ये दोरबेल पसंद आई थी। तुम्हें कोई ऐसी बेल चाहिए थी जो थोड़ी म्यूजिकल हो और जिसका म्यूजिक हम दोनों की पर्सनालिटी से मैच करे।
बाहर खड़ी तुम कुछ देर तक बेल बजाती रहोगी। किसी बाहर के आदमी की तरह तुम अपनी चाबी से डोर खोलकर अंदर नहीं आना चाहोगी जो की तुम तब किया करती जब तुम इस घर में रहती थी। जब तुम इस घर को अपना समझती थी। और जब दरवाजा नहीं खुलेगा तो तुम मेरा नाम लेकर मुझे पुकारोगी। कोई जवाब नहीं आएगा। तुम एक बार फिर घंटी बजाओगी और फिर मेरा नाम पुकारोगी। इतनी खामोशी। एक पल के लिए तो तुम्हें ऐसा लगेगा जैसे की घर पर कोई है ही नहीं। और फिर आखिर में तुम आखिर में अपने पर्स में रखी घर
की चाबी निकलोगी और दरवाजा खालोगी।
चाबी डालते हुए तुम्हारा दिल एक पल के लिए धड़केगा और तुम शायद ये उम्मीद भी करोगी की चाबी फिट ना हो, की तुम्हारे पागल पति ने तुम्हारे जाने के बाद घर के लाक्स चेंज कर दिए हों और तुम्हें अपनी जिंदगी और घर से हमेशा के लिए निकाल दिया हो।


पर नहीं। ऐसा कुछ नहीं होगा। लाक्स अब भी वही हैं और चाभी भी। तुम चाभी घुमाओगी और दरवाजा खुल जाएगा।
तुम घर के बड़े से भारी दरवाजे को खोलकर अंदर आओगी। पूशिंग ओपन थे डोर। बड़ा भारी सा दरवाजा जिस पर काले रंग का पेंट है और तुम्हारे पंजे का निशान छपा हुआ है।
अंदर आते हुए तुम यही उम्मीद करोगी की घर के अंदर वैसी ही स्मेल होगी जैसे तब होती थी जब ये घर तुम्हारा था। तुम उम्मीद कर रही होगी की अंदर एसी ओन होगा और एक ठंडी हवा तुम्हारे चेहरे पर लगेगी जो तुम्हें बाहर की गर्मी से बचाएगी। पर नहीं। ना तो ठंडी हवा होगी और ना ही वो खुश्बू जो इस घर में तुम्हारे होने से होती थी।
घर के अंदर की हवा गरम होगी वैसी ही जैसी की बाहर की हवा है। बल्कि उससे भी बुरी क्योंकी अंदर की बंद हवा में एक अजीब सी बदबू होगी हो घर में घुसते ही तुम्हारे चेहरे पर थप्पड़ की तरह लगेगी। घबरा कर तुम एक बार फिर मेरा नाम पुकारोगी।
तुम्हारी आवाज खुद तुम्हारे ही कानों को कितनी कमजोर और परेशान सी लगेगी। और तुम घर के अंदर से उठ रही स्मेल की वजह से फिर एक बार अपनी नाक सिकोड़ लागी। ठीक उसी तरह जो मुझे बहुत पसंद आया करता था। परेशान होकर तुम घर के अंदर से उठ रही स्मेल से बचने के लिए लिविंग रूम की खिड़की खोलने की कोशिश करोगी।
मुझे माफ कर दो प्लीज।
मैं अब एक घंटे से ज्यादा के लिए वापिस नहीं आ सकती। कभी नहीं। ये शायद मेरी ही गलती थी। मुझे तुमसे शादी नहीं करनी चाहिए थी। मुझे पता होना चाहिए था की हम दोनों गलती कर रहे हैं। हाँ मैंने अपने घरवालों के कहने पर तुमसे शादी की थी, उनके दबाव में आकर। वो कहते थे के तुम एक बहुत बड़े प्रोफेसर हो और तुम्हारे साथ मेरा फ्यूचर सेफ और सेक्योर होगा।
मैंने तुम्हें प्यार करने की बहुत कोशिश की। बहुत चाहा की तुम्हारी बीवी बन सकें, सिर्फ जिश्म से नहीं बल्कि दिल से भी। मैं सिर्फ अपना समान लेने आऊँगी। और जो मैं नहीं ले जा सकती वो तो किसी को दे देना या फेंक देना। तुम मेरी जिंदगी में पहले लड़के थे। तुमसे पहले मैं किसी लड़के को नहीं जानती थी। अगर जानती होती तो शायद...
नहीं मैंने तुमसे कभी प्यार नहीं किया, कभी कर ही नहीं पाई। अपना जिश्म तो तुम्हें दे दिया पर दिल नहीं दे पाई और कभी दे भी नहीं पाओगी।

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आठ दिन-5

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तुम एक बार फिर मेरा नाम पुकारोगी। पूछोगी की क्या मैं ऊपर के कमरे में हूँ... तुम्हारा दिल तुम्हें फौरन पलट जाने को कह रहा होगा। भाग जाने को कह रहा होगा। फिर भी तुम अपने दिल की बात ना सुनते हुए सीढ़ियां । चढ़ती ऊपर के कमरे की तरफ आओगी।
तेरी यादों के जो आखिरी थे निशान, दिल तड़पता रहा, हम मिटाते रहे।
खत लिखे थे जो तुमने कभी प्यार में, उनको पढ़ते रहे और जलाते रहे।
धड़कते दिल के साथ तुम सीढ़ियां चढ़ती ऊपर आओगी। सीढ़ियों पर अब भी वही कार्पेट होगा जो तुम पसंद करके लाई थी। जिसके रंग को लेकर हम दोनों में काफी बहस हुई थी। सीढ़ियों के साथ बनी रेलिंग का सहारा । लिए तुम ऊपर को चढ़ती आओगी, जैसे कोई नींद में चल रहा हो। ऊपर आते हुए पता नहीं तुम्हारे दिल में कौन
सी फीलिंग होगी... गिल्ट... अफसोस.. दुख... इर.. आजादी...
या तुम सिर्फ ये सोच रही होगी की ऊपर तुम्हें क्या मिलने वाला है.. या ये की क्योंकी तुम अब तक मेरी बीवी हो तो तुम्हारा फर्ज बनता है की एक बार ऊपर आकर देखो..
तुम्हारे चेहरे पर तुम्हारी वो क्यूट सी स्माइल होगी इस बात का मुझे पूरा यकीन है। वही स्माइल जिसका मैं ।
आज भी दीवाना हूँ पर फर्क सिर्फ इतना होगा की तब वो स्माइल नकली होगी, ये सोचकरके अगर मैं तुम्हें ऊपर मिला तो तुम मुश्कुरा कर मुझे देखो।
तुम घबरा रही होंगी। शायद तुम्हें हल्के से चक्कर भी आ रहे हों। दिल जोर से धड़क रहा होगा और खून का । बहाव दिमाग की तरफ ज्यादा बढ़ जाएगा। जैसे जैसे डरते हुए तुम सीढ़ियां चढ़ोगी वैसे वैसे कभी तुम्हारी आँखों के आगे रोशनी होगी तो कभी अंधेरा सा।
तुम एक पल के लिए रुकोगी और एक गहरी साँस। पर ज्यादा लंबी और गहरी ले नहीं पावगी। क्योंकी घर में नीचे आ रही स्मेल यहाँ और भी ज्यादा तेज होगी। गर्मी की घुटन से भरी एक अजीब से तेज स्मेल। तुम्हारा दम घुटने लगेगा और शायद तुम्हें उल्टी भी आने को हो पर तुम पलट नहीं सकती। वापिस नहीं जा सकती। तुम्हें बेडरूम का दरवाजा खोलकर अंदर देखना ही पड़ेगा।
इश्क़ को दर्द-ए-सर कहने वालों सुनो, कुछ भी हो हमने ये दर्द-ए-सर ले लिया, वो निगाहों से बचकर कहाँ जाएंगे, अब तो उनके मोहल्ले में घर ले लिया। आए बन तनके शहर-ए-खामोशी में वो, कब्र देखी जो मेरी तो कहने लगे, अरें आज इतनी तो इसकी तरक्की हुई, एक बेघर ने अच्छा सा घर ले लिया।

और हमारे बेडरूम तक आने से पहले तुम्हें उस छोटे से कमरे के आगे से गुजरने होगा, वो कमरा जो तुमने हमारे बच्चे के लिए बनवाया था। वो बच्चा जो कभी हुआ ही नहीं।
बेडरूम का दरवाजा बंद होगा। तुम अपना हाथ दरवाजे पर रखकर धकेलना चाहोगी और तुम्हें दरवाजे की गर्मी महसूस होगी। और अब भी तुम्हारे दिमाग में ये चल रहा होगा की तुम दरवाजा खोलकर अंदर नहीं देखना । चाहती पर फिर भी तुम ऐसा कर रही हो। तुम दरवाजे के बाहर बने नाब को अपने हाथ से पकड़कर घुमाओगी
और हिम्मत करते हुए धीरे से दरवाजा खोलोगी।
भिन-भिनाहट के आवाज कितनी तेज होगी। इस कदर तेज जैसे कहीं आग लगी हो। और उसके ऊपर से कमरे
में उठ रही बदबू जैसे कहीं कुछ सड़ रहा हो। भिन-भिनाहट और बदबू दोनों मिलकर ऐसा आलम बना रही होंगी जिसका तुम यूँ अचानक सामना नहीं कर पाओगी।
कोई चीज तुम्हारे चेहरे को छूकर गुजर जाएगी, तुम्हारी आँखों को, तुम्हारे होंठों को। घबरा कर तुम दो कदम पीछे हो जाओगी और फिर मेरे नाम लेकर पुकारोगी। कमरे में कोई हलचल नहीं होगी। पर्दै गिरे हुए होंगे और लाइट्स आफ होंगी। उस हल्की सी रोशनी में तुम्हारी आँखों को अड्जस्ट होने में थोड़ा वक्त लगेगा। और जब दिखाई देना शुरू होगा तब तुम्हें कमरे में भरी मक्खियों का एहसास होगा।
वो भिन-भिनाने की आवाज इन्हीं मक्खियों की होगी। हजारों... लाखों... छत से लेकर दीवारों तक, हर चीज पर । मक्खियां। और नीचे कार्पेट पर भी। उसी कार्पेट पर जिसपे किसी चीज का गाढ़ा सा दाग है। और बिस्तर पर भी मक्खियां। हाँ वही महगा सा बेड जो हम दोनों अपने लिए पसंद करके लाए थे। जिसपर मैंने जाने कितनी बार तुमसे मोहब्बत की। जिसपर तुम हर रात मेरी बीवी बनकर मेरे साथ सोई।
क्या ये.. कौन है ये? ये चेहरा या जो कुछ भी चेहरे का बचा है अब पहचान में नहीं आ रहा। चमड़ी सूज कर इस हद तक पहुँच चुकी है की अब तो बुलबुले से उठ रहे हैं जैसे चूल्हे पर रखा कुछ गाढ़ा सा पक रहा हो। चमड़ी अब चमड़ी बची नहीं। ये तो अब एक कुछ काली सी चीज बन चुकी है जो धीरे-धीरे गल कर जैसे नीचे बिस्तर पर बह रही है, जैसे नीचे जमीन पर बह रही है। चमड़ी जो अब धीरे-धीरे उस जिम से अलग हो रही है। जिस जिश्म को ढकना उसका काम था।
जिश्म भी इस तरह से फूल सा गया है जैसे अंदर हवा भर दी गई हो। धीरे-धीरे सड़ रहा जिश्म जिसपर
मक्खियां जैसे दावत मनाने आई हों। और यहाँ वहाँ टुकड़ों में ही जो कभी मुँह था, जो कभी नाक थी, जो कभी कान थे। उस इंसान शरीर जैसी चीज की कलाईयों पर काटने का निशान है। खून से सना चाकू अब भी वहीं पड़ा होगा जहाँ वो हाथ से छूट कर गिरा था
दोनों हाथ और बाहें जो मक्खियों से पूरी तरह ढके हुए होंगे इस तरह फैले हैं जैसे किसी को गले लगा लेना चाहते हों। हर तरफ और हर जगह गाढ़े काले पड़ चुके खून के धब्बे हैं। लाश के कपड़ों, चादर और नीचे कार्पेट पर। बदबू बहुत ज्यादा है। सड़ने की बदबू जो कमरे की हवा को पूरी तरह गंदा कर चुकी है पर फिर भी तुम पलट नहीं पाओगी।

जिस चीज ने तुम्हें पकड़कर कमरे में थाम रखा होगा वो तुम्हें इतनी आसानी से छोड़ेगी नहीं। पूरा कमरा उस वक़्त जैसे एक खुला पड़ा जख्म होगा। तुम्हारा पति मरा नहीं है बस एक दूसरी दुनिया में चला गया है जहाँ से वो हमेशा तुम्हें देख सकेगा, अपनी बीवी की तरह। क्योंकी वो अपनी जिंदगी में तुमसे कभी अलग हुआ ही नहीं, उसने कभी तुमसे अपना रिश्ता तोड़ा ही नहीं। वो तो जिया भी तुम्हारे इश्क़ में, तुम्हारा पति बनकर और मरा भी तुम्हारे इश्क़ में तुम्हारा पति कहलाते हुए।
हवा में उड़ रही हजारों लाखों आँखें तुम्हारे पति की ही हैं जो तुम्हें देख रही है, ये हवा में फैली अजीब सी भिन्न भिन्न की आवाज तुम्हारे पति की ही है जो तुमसे बात करना चाह रही है, कुछ गिला कोई शिकवा करना चाह रही है। मक्खियां तुम्हारे चेहरे को, तुम्हारी आँखों को, तुम्हारे होंठों को छूकर गुजर रही है जैसे आखिरी बार तुम्हारा पति तुम्हें छूना चाह रहा हो। तुम हाथ हिलाती उन्हें अपने सामने से हटाओगी और धीमे कदमों से बिस्तर पर पड़ी लाश की तरफ बढ़ोगी। लाश के पास बिस्तर पर एक कागज का टुकड़ा पड़ा होगा जो तुम उठाकर पढ़ोगी।

गम मौत का नहीं है, गम ये है की आखिरी वक्त भी, तू मेरे घर नहीं है।
निचोड़ अपनी आँखों को, की दो आँसू टपकें, और कुछ तो मेरी लाश को हुस्न मिले,
डाल दे अपने आँचल का टुकड़ा, की मेरी मैय्यत पर चादर नहीं है।

***** समाप्त *****
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