Romance संयोग का सुहाग

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Rohit Kapoor
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Re: Romance संयोग का सुहाग

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आखिरकार मीनाक्षी और समीर ऊपर वाले कमरे में आमने सामने हुए। रात घटनाओं के कारण मीनाक्षी के चेहरे पर अभी भी दुःख की चादर चढ़ी हुई थी।

“थैंक यू फॉर मीटिंग विद मी। इट इस रियली बिग ऑफ़ यू!”

मीनाक्षी ने कुछ नहीं कहा - उसकी आँखें अभी भी रोने के कारण लाल थीं।

समीर ने आदेश के बचपन की तस्वीरें देखी हुई थीं, और उन सब में उसका मुख्य आकर्षण मीनाक्षी ही थी - एक तरह से उसने मीनाक्षी को बड़ा होते हुए देखा हुआ था। वो एक सुन्दर लड़की थी। चेहरे पर एक आकर्षक भोलापन था। उसका शरीर परिपक्व था। अच्छी, पढ़ी-लिखी और कोमल स्वभाव की लड़की थी। कुछ बात थी मीनाक्षी में, जो समीर को वो पहली नज़र में ही भा गई थी।

“आपको मुझसे जो भी पूछना हो, पूछ लीजिए।”

मीनाक्षी ने कुछ नहीं कहा। समीर ने दो मिनट उसके कुछ कहने का इंतज़ार किया फिर कहा,

“अगर कुछ नहीं पूछना है, तो मैं आपसे कुछ पूछूँ?”

मीनाक्षी ने सर हिला कर हामी भरी।

“आप मुझसे शादी करना चाहेंगी?”

मीनाक्षी थोड़ा सा झिझकी फिर बोली, “आप पापा को पसंद हैं। माँ को भी, और आदेश को भी!”

“और आपको?”

समीर को एक भ्रम सा हुआ कि उसके इस सवाल पर एक बहुत ही क्षीण सी मुस्कान, बस क्षण भर को मीनाक्षी के होंठों पर तैर गई। उसने कुछ कहा फिर भी नहीं।

“आपको जोक्स पसंद हैं।” समीर ने पूछा।

मीनाक्षी ने फिर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।

“अच्छा, जोक्स तो सभी को पसंद होते हैं… मैं आपको एक सुनाता हूँ -

पत्नी ने कहा, “सुनिए जी, आपके जन्मदिन पर मैंने इतने अच्छे कपड़े लिए हैं कि क्या कहूँ!
पति (खुश हो कर बोला), “अरे वाह! दिखाओ जल्दी!”
पत्नी, “रुकिए, मैं अभी पहन कर दिखाती हूँ!”

या तो मीनाक्षी को समीर का जोक समझ नहीं आया, या फ़िर वो जान बूझ कर नहीं मुस्कुराई।

“अरे कोई भी रिएक्शन नहीं? ठीक है, मैं आपको एक और जोक सुनाता हूँ -

एक सुंदर लड़की ने पप्पू को आवाज लगाई, “ओ भाईजान, ज़रा सुनिए तो”
पप्पू बोला, “ओ हीरोइन, पहले फैसला कर ले -- भाई या जान! ऐसे कंफ्यूज क्यों कर रही है?”

इस घटिया से जोक पर आख़िरकार मीनाक्षी अपनी मुस्कान रोक नहीं पाई और एक हलकी सी मुस्कान दे बैठी।

“अब बताइए।”

“क्या?” मीनाक्षी अच्छे से जानती थी कि समीर ने क्या पूछा।

“आप मुझसे शादी करना चाहेंगी? वो तीनों मुझे पसंद करते हैं, इस बात से ज़्यादा इम्पोर्टेन्ट है कि मैं आपको कितना पसंद हूँ!” समीर ने सवाल दोहरा दिया।

मीनाक्षी एक सीधी सी लड़की थी। उसको अपने जीवन से कोई बुलंद उम्मीदें नहीं थीं। उसके जीवन की सबसे बड़ी अभिलाषा किसी कॉलेज में लेक्चरर बनने की थी। उतना हो जाए तो वो खुश थी। उसको वो न भी मिलता तो चल जाता। अगर एक छोटे से सुखी परिवार की उसकी अभिलाषा पूरी हो जाती।

मीनाक्षी उत्तर में बस हलके से मुस्कुरा दी। इतना संकेत काफी था समीर के लिए। चलो, कम से कम इधर तो पापड़ नहीं बेलने पड़े।

“अब बस एक आखिरी रिक्वेस्ट?”

मीनाक्षी ने नज़र उठा कर समीर की तरफ देखा। एक हैंडसम, आकर्षक युवक - दिखने में कॉंफिडेंट, बोलने में कॉंफिडेंट, यह तथ्य कि वो अपनी शादी जैसा एक बहुत ही अहम फैसला खुद ही कर सकता है, यह सब उसके व्यक्तित्व का बखान करने के लिए बहुत है। अंदर ही अंदर मीनाक्षी को अच्छा लगा कि अगर ऐसा जीवन-साथी मिल जाए, तो जीने में कैसा आनंद रहेगा।

“मैं आपको छू लूँ?” समीर ने झिझकते हुए पूछा।

मीनाक्षी एकदम से सतर्क हो गई। मिडिल क्लास में की गई परवरिश उसका ढाल बन गई। उसने कुछ क्षण सोचा - अंत में उसके मन में बस यही बात आई कि समीर उसके साथ कुछ भी ऐसा वैसा नहीं करेगा। प्रपोजल ले कर वही आया है। मतलब उसको उससे समीर है; और अगर समीर है तो आदर भी होगा। यह सब सोच कर मीनाक्षी ने सर हिला कर हामी भर दी।

समीर ने मीनाक्षी के घुटनो के पास सिमटे उसके हाथों को अपनी उंगली से बस हलके से छू लिया। एकदम कोमल, क्षणिक स्पर्श!

“थैंक यू!”

दो निहायत छोटे से शब्द - लेकिन इतनी निष्कपटता और इतनी संजीदगी से बोले समीर ने कि वो दोनों शब्द मीनाक्षी के दिल को सीधे छू गए। उसकी नज़रें समीर की नज़रों से टकराईं। समीर ने आदतन अपने सीने पर हाथ रख थोड़ा सा झुक कर मीनाक्षी का अभिवादन किया। मीनाक्षी की आवाज़ भीग गई। उसके गले से एक पल आवाज़ निकलनी बंद सी हो गई। आँसुओं और औरतों का रिश्ता बड़ा अजीब है। जैसे पानी ढाल पर हमेशा नीचे की तरफ बहता है, आंसू भी औरत की छाती के खाली गड्ढे में इकट्ठे होते जाते हैं। और यह गड्ढा कभी भी सूखता नहीं। जब भी इनको निकासी का कोई रास्ता मिलता है, ये बाहर आने शुरू हो जाते हैं। समीर के दो शब्द, और मीनाक्षी की आँखों से आँसुओं की बड़ी बड़ी बूँदें टपक पड़ीं।
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Rohit Kapoor
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Re: Romance संयोग का सुहाग

Post by Rohit Kapoor »

“ओ गॉड! आई ऍम सॉरी! प्लीज मुझको माफ़ कर दीजिए।”

“नहीं नहीं.. आप माफ़ी मत पूछिए।” मीनाक्षी ने रूंधे गले से कहा, “बस रात की बात याद आ गई।”

वो दोनों कुछ और कहते या सुनते, उसके पहले ही आदेश की आवाज़ आई, “दीदी…”

“मैं चलती हूँ।” मीनाक्षी ने आँसू पोंछते और उठते हुए कहा। और कमरे से बाहर निकल गई।

........................

जब भावनाओं का ज्वार थमा, तब मीनाक्षी ने अपने जीवन की इस नई वास्तविकता का लेखा जोखा लेना शुरू किया।

ये आदेश तो ऐसा गन्दा संदा रहता है… संभव है कि उसका दोस्त भी उसके जैसे ही हो? आखिर दोस्ती तो एक जैसे विचार रखने वालों में होती है।

यह विचार आते ही मीनाक्षी का दिल बैठ गया - आदेश तो लाइफबॉय साबुन से भी नहा लेता है, और अगर वो ख़तम हो जाए, और उसके पास कोई अन्य उपाय न हो, तो तो कपड़े धोने के साबुन से भी नहा लेता है.. और उसी से अपने बाल भी धो लेता है… शैम्पू को तो वो समझता है कि वो तो बस महिलाओं के ही उपयोग की वस्तु है। लेकिन फिर भी उसके बाल इतने घने काले और मुलायम थे! और उसके मोज़े! उफ्फ्फ़! एक जोड़ी मोज़े जब तक एक मील दूर से दुर्गन्ध न देने लगें, तब तक वो उनका इस्तेमाल करता। जब भी वो मोज़े उतारता तो पूरा घर दुर्गन्ध से भर जाता! अब ऐसा तो उसका भाई था… ऐसे आदमी का दोस्त भी तो उसके जैसा ही होगा न!

‘ओह! यह मैंने क्या कर दिया! कहीं मैंने खुद ही अपना सत्यानाश तो नहीं कर लिया?!’ मीनाक्षी ने सर पकड़ लिया।

लेकिन अब चारा ही क्या है? हाँ तो वो पहले ही बोल चुकी है! गनीमत है कि देखने बोलने में तो अच्छा है - अच्छा क्या, बहुत अच्छा है। हैंडसम है। लेकिन उसके बारे में कुछ मालूम ही नहीं!

‘आदेश से भी क्या पूछूँ उसके बारे में! भाई है मेरा - भला ही चाहेगा। उसको लगा होगा कि उसका दोस्त मेरे लिए ठीक है, नहीं तो उससे शादी करने से मुझे मना तो करता ही न! वैसे शादी का प्रपोजल उसी ने दिया है। उसके मन में मेरे लिए कुछ तो होगा! कुछ तो सोचा ही होगा न उसने? और फिर मैं भी तो हूँ ही न। उसको और उसका घर ठीक करने और ठीक से रखने की कोशिश करूंगी जितना हो सकेगा। भगवान ने चाहा तो निभ जाएगी हम दोनों की। लेकिन मैं बहुत बड़ी हूँ उससे उम्र में। कैसे निभेगी? उसके मन में मेरे लिए कैसी भावना होगी?’

ऐसे ही न जाने कैसे कैसे, और न जाने कितने ही विचार मीनाक्षी के मन में आते, और जाते जा रहे थे। और उसका दिल बैठता जा रहा था।

“क्या बेटा! अब हमको ऐसे ऐसे सरप्राइसेस दोगे?” समीर के पिता जी ने फ़ोन पर उसको कहा।

“डैडी… वो... मैं…” समीर थोड़ा अचकचा गया।

“हा हा! अरे तुम घबराओ नहीं! हमको आदेश अच्छा लगता है। उसकी दीदी भी ज़रूर अच्छी लगेगी!”

समीर मुस्कुराया।

“डैडी, इसका मतलब आप और मम्मी नाराज़ तो नहीं हैं?”

“नाराज़? ऑन द कोंट्ररी! वी आर वेरी हैप्पी! हमने तुमको हमेशा तुम्हारी खुद की पसंद की लड़की से शादी करने को एनकरेज किया है..... और आज, जब तुमने अपनी चॉइस सेलेक्ट कर ली है, तो हम तुमको सपोर्ट करेंगे! हमको बस तुम्हारी ख़ुशी चाहिए। और बेटे… एक और बात... वी आर वेरी प्राउड ऑफ़ यू!”

“थैंक यू डैडी! इट मीन्स ए लॉट कमिंग फ्रॉम यू!”

“लेकिन हाँ, बस इस बात की शिकायत रहेगी कि सब कुछ इतनी जल्दी जल्दी हो रहा है।”

“जी! वो तो है। लेकिन क्या करें! सारा इंतज़ाम तो है ही यहाँ।”

“हाँ! वो समझ रहे हैं हम दोनों! ख़ैर, मुहूर्त और कुण्डली के फेर में हम लोग नहीं पड़ते। इसलिए कोई बात नहीं! जहाँ तक रिश्तेदारों की बात है, बाद में रिसेप्शन करेंगे ही हम। इसलिए कोई प्रॉब्लम नहीं है। और हाँ, हम लोग सवेरे ही निकल पाएँगे। मन तो तुरंत ही आने का हो रहा है, लेकिन तुम्हारी मम्मी को सब इंतज़ाम करने में टाइम लगेगा।”

“जी डैडी! ठीक है। कल मिलते हैं तो आपसे और मम्मी से!”


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Re: Romance संयोग का सुहाग

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(^^^-1$i7) 😱 बहुत ही मस्त स्टोरी है रोहितभाई एकदम लाजवाब नयी कहानी के लिये धन्यवाद अगले अपडेट का इंतजार है 😋
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Rohit Kapoor
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Re: Romance संयोग का सुहाग

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समीर के माँ बाप को थोड़ा अफ़सोस तो था - इस बात का नहीं कि वो अपनी पसंद की लड़की से शादी कर रहा है.... शादी तो खुद की पसंद की लड़की से ही करनी चाहिए - बल्कि इस बात का कि समय की कमी कुछ ऐसी थी कि अपने एकलौते लड़के की शादी के लिए जिस तरह की धूम-धाम उन्होंने सोची थी, वैसा वो कुछ भी नहीं कर पाएँगे। फिर उन्होंने सह सोच कर खुद को समझा लिया कि इस तरह के बाहरी, सामाजिक दिखावे के लिए वो अपना मन छोटा करें भी तो क्यों! शादी के लिए सबसे ज़रूरी कुछ है, तो वह है लड़का और लड़की का एक दूसरे के लिए प्रेम और आदर। बाकी किसी बात का कोई मोल थोड़े ही है! वो दोनों यह बात समझते थे, क्योंकि उन्होंने भी आर्य समाजी रीति से ही शादी करी थी। और इसको ले कर उनके माता-पिता और उनमें काफ़ी दिनों तक मन मुटाव रहा।

ऐसे में समीर के माता पिता एक दूसरे का सम्बल बने। उन्होंने कठिन श्रम से एक छोटा सा बिज़नेस जमाया, जो अब बड़ा हो चला था। उनके माता पिता और उनके बीच यह मन मुटाव, समीर के पैदा होने के बाद ही कम होना शुरू हो सका। धीरे धीरे जब घर में संपन्नता आई, तो उनके सभी रिश्तेदारों ने देखा और समझा कि एक सफ़ल वैवाहिक जीवन के लिए क्या चाहिए! ठीक वैसा ही तो अपने समीर के लिए चाहते थे। वो अपने पैरों पर खड़ा था। और आज जब उसने अपने जीवन का सबसे बड़ा निर्णय ले लिया था, तो वे उसको अपना पूरा समर्थन देना चाहते थे।

वर्मा परिवार में शायद ही कोई उस रात सोया हो। समीर कुछ घण्टों के लिए सो तो गया, लेकिन उसकी आदत सवेरे छः बजे उठने की पड़ी हुई थी, इसलिए उठ गया।

“गुड मॉर्निंग, जीजा जी।” आदेश ने मुस्कुराते हुए कहा।

“गुड मॉर्निंग! अबे यार.... तू भी न!”

“अरे! तू मेरी दीदी से शादी करेगा, और मैं तुझे जीजा जी भी न कहूँ! वाह भई!”

“ठीक है स्साले! बाकी सब किधर हैं?”

“बाकी सारे मुस्टंडे पड़े पड़े सो रहे हैं। तू जल्दी सो गया था। तेरे सोने के दो घण्टे और बाद तक हमारी बकर चलती रही। मैं नहीं सोया, क्योंकि आज काफ़ी सारे काम निबटाने हैं। तू जल्दी से फ्रेश हो जा। तब तक अंकल ऑन्टी भी आ जाएँगे। साथ में ही ब्रेकफास्ट करेंगे आज। बढ़िया गरमा गरम कचौरियां, छोले भठूरे, और जलेबियाँ बनेंगीं। चल। टूथब्रश देता हूँ।”


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