कोई 5-7 मिनट के बाद कामिनी वापस आई। उसके एक हाथ में नारियल तेल की शीशी पकड़ रखी थी और दूसरे हाथ से अपने अपने शरीर पर लिपटे हुए तौलिए को कसकर पकड़ रखा था। वह बेचारा तौलिया उसकी उफनती जवानी को ढक पाने में कहाँ सक्षम था, वह तो केवल उसके उरोजों और सु-सु को ही थोड़ा ढक सकता था।
मैं तो फटी आँखों से अपलक उसे देखता ही रह गया। कामिनी मेरे सामने आकर खड़ी हो गई और उसने अपनी आँखें बंद कर के अपनी मुंडी झुका ली थी।
मैंने उसके तौलिये को हाथ से खींचकर हटा दिया। शर्म के मारे कामिनी ने अपने दोनों हाथों से अपनी सु-सु को ढक लिया। अब मैंने उसे अपनी गोद में बैठा लिया।
“आप तो मुझे पूरा ही बेशर्म बनाकर छोड़ोगे?”
“मेरी जान … भोजन और भोग में शर्म नहीं की जाती.” कहते हुए मैंने कामिनी की गर्दन और कानों पर चुम्बनों की झड़ी लगा दी और उसके उरोजों को मसलना शुरू कर दिया। मेरा लंड उसके कसे हुए नितम्बों के नीचे दबा कसमसा रहा था। कामिनी जान बूझकर अपने नितम्बों से मेरे लंड को दबा सा रही थी।
“कामिनी तुम्हारा लड्डू तुम्हारे प्यार के लिए तरस रहा है मेरी जान!”
“आह… तरसने दो…” कह कर कामिनी ने एक बार अपने नितम्बों को थोड़ा सा उठाया और फिर से मेरे लंड को दबाने लगी।
“कामिनी तुम अपने पैर इस सोफे की आर्म्स पर रख लो तो आसानी होगी।”
कामिनी ने मेरे कहे अनुसार अपने पैरों को सोफे की आर्म्स पर रख लिया। मेरा लंड उछलकर उसके नितम्बों की दरार से होता हुआ आगे की तरफ निकलकर उसकी सु-सु के चीरे से लग गया था। अब मैंने पास पड़ी शीशी से तेल निकाल कर अपने पप्पू पर लगा लिया। फिर मैंने कामिनी की गांड के छेद को टटोला तो मुझे उस पर चिकनाई का अनुभव हुआ। मुझे लगता है कामिनी पूरी तैयारी के साथ आई थी। कामिनी ने अपने नितम्बों को थोड़ा सा ऊपर उठा लिया और मेरे पप्पू को पकड़ कर अपनी गांड के छेद पर लगा लिया।
नितम्बों में बीच लंड के चुभन स्त्री को बहुत जल्दी कामतुर बना देती है। अब मैं एक हाथ से उसकी सु-सु के पपोटे मसल रहा था और दूसरे हाथ से उसके उरोजों की नुकीली फुनगियों को मसलने लगा था। साथ में उसके गालों और गर्दन पर चुम्बन की बौछारें भी चालू कर दी थी।
कामिनी तो अब उछलने ही लगी थी। मेरी जाँघों पर उसके गद्देदार नितम्बों स्पर्श पाकर आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि अपने लैंडर रोवर को उसके ऑर्बिटर में डालने मेरी इच्छा कितनी बलवती होती जा रही थी।
“कामिनी मेरी जान… अब बेचारे पप्पू को और ज्यादा मत तरसाओ.” मैंने उसके गालों को चूमते हुए कहा।
“आह… उईइ माँ… आपने पता नहीं मेरे ऊपर क्या जादू-टोना कर दिया है? आप पूरे कामदेव हो… आआईईई…”
कामिनी का पूरा शरीर लरजने लगा था। कामिनी तो रोमांच के मारे उछलने ही लगी थी। इस समय मेरा पप्पू अपने पूरे जलाल पर था। उसका सुपारा फूल सा गया था और लंड पूरा कठोर हो गया था।
मेरा मन तो कर रहा था जैसे ही कामिनी जल्दी से थोड़ी ऊपर उठे मैं अपने पप्पू को उसकी गांड के गुलाबी छेद के ठीक नीचे लगा दूं। और जैसे ही वह नीचे आये मेरा पप्पू एक ही झटके में अन्दर चला जाए। पर अभी जल्दबाजी में ऐसा नहीं किया जा सकता था।
मैंने उसकी मदनमणि पर अपनी तर्जनी अंगुली फिरा दी।
“आआआईईई” रोमांच के कारण कामिनी की किलकारी निकल गई।
“कामिनी तुम एक बार थोड़ा सा ऊपर उठो मैं अपने पप्पू को सेट करता हूँ फिर धीरे-धीरे उस पर बैठ जाना.
”
“ओहो… आप रुको… तो सही… एक मिनट…” कहते हुए कामिनी ने अपने नितम्ब थोड़े से ऊपर उठा लिए। उसने मेरे पप्पू की गर्दन पकड़ ली और मेरे लिंगमुंड को अपनी गांड के गुलाबी छेद पर लगा लिया।
लगता है वह पहले से ही अपने आप को इस स्थिति के लिए तैयार कर चुकी थी। वह धीरे-धीरे नीचे होने लगी। एक दो बार तो लंड थोड़ा फिसला पर कामिनी ने 2-3 बार निशाना साधे हुए अपने नितम्बों को ऊपर नीचे किया तो मेरा सुपारा उसकी गांड में सरकने लगा।
ये पल कामिनी के लिए बहुत ही संवेदनशील थे। मैं दम साधे उसी तरह बैठा रहा। हाँ मैंने उसकी कमर को जरूर सहारा दिए रखा। वह थोड़ा सा रुकी और फिर धीरे-धीरे उसने अपने नितम्बों को नीचे करना शुरू कर दिया।
मेरा पप्पू उसकी गांड को चीरता हुआ अन्दर समा गया।
उसके साथ ही कामिनी की हल्की चीख सी निकल गई- उईईईईई…
मैंने कसकर उसे अपनी बांहों में भर लिया। उसने मेरी जाँघों पर हाथ रखकर थोड़ा उठने की कोशिश की पर मैंने उसे अपनी बांहों में जकड़ रखा था तो उसकी कोशिश बेकार थी। वह जोर-जोर से साँसें लेने लगी थी। उसका शरीर कांपने सा लगा था।
थोड़ी देर हम ऐसे ही बैठे रहे। कामिनी अब थोड़ा संयत हो गई थी। अब मैंने कामिनी को फिर से चूमना शुरू कर दिया। लंड अन्दर और ज्यादा कठोर होकर ठुमके लगाने लगा था।
“कामिनी तुम अपने शरीर को ढीला छोड़ दो फिर कोई दिक्कत नहीं होगी.”
“आप मेरी जान लेकर मानोगे? आह…”
“अरे नहीं मेरी जान … कोई अपनी जान कैसे ले सकता है… तुम तो मेरी जान हो… आई लव यू…”
Adultery लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
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( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).
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कामिनी को थोड़ा दर्द तो जरूर हो रहा था पर कामिनी ने खूब सारी क्रीम और तेल अपनी गांड में लगा लिया था और मैंने भी अपने पप्पू पर ढेर सारा तेल लगा लिया था तो चिकनाई के कारण पूरा लंड झेलने में उसे ज्यादा परेशानी नहीं आई।
और अब तो वैसे भी मेरी तोतेजान की गूपड़ी इसकी अभ्यस्त हो ही गई है। कामिनी ने अपने नितम्बों का संकोचन शुरू कर दिया था। सच कहता हूँ उसकी गांड अन्दर से इतनी कसी हुई थी कि मुझे लग रहा था जैसे किसी ने मेरे पप्पू की गर्दन ही दबोच रखी है।
अब तो कामिनी ने भी अपने नितम्ब हिलाने शुरू कर दिए थे। मैं उसके गालों गर्दन पर चुम्बन लेते जा रहा था। फिर मैंने अपना हाथ नीचे करके उसकी भगनासा को उँगलियों में लेकर मसलना शुरू कर दिया और दूसरे हाथ से उसके स्तन के निप्पल को भी मसलना चालू कर दिया। वह तो अब जोर-जोर से उछलने लगी थी साथ में आह… उईई… भी करती जा रही थी।
मैंने उसके चीरे पर अंगुलियाँ फिरानी चालू रखी और कभी-कभी उसके मदनमणि को भी मसलता जा रहा था। अचानक मुझे लगा कामिनी की साँसें तेज होने लगी है और बुर ने संकोचन शुरू कर दिया है और उसका शरीर भी हिचकोले से खाने लगा है। और फिर अचानक उसके मुंह से एक रोमांच भरी किलकारी सी निकली और उसके साथ ही उसकी बुर ने पानी छोड़ दिया। मेरी अँगुलियों पर चिपचिपा सा पानी महसूस होने लगा।
लंड तो गांड के अन्दर बैठा अपने भाग्य को सराह रहा था। कामिनी 3-4 बार और ऊपर-नीचे उछली और फिर उसका शरीर ढीला सा पड़ गया और वह लम्बी-लम्बी साँसे लेने लगी। मैंने उसे बांहों में भरे रखा और उसके गालों को चूमता रहा।
कामिनी के पैर अभी भी सोफे के हत्थे पर ही थे। उसने अपने नितम्बों को थोड़ा ऊपर कर लिया था। अब मैंने नीचे से हलके हलके धक्के लगाना शुरू आकर दिया था। कामिनी की मीठी सित्कारें निकलने लगी थी।
कोई 8-10 मिनट के बाद मुझे लगा कामिनी थोड़ा थक सी गई है। पर मेरी ख़ुशी के लिए हर दर्द सहन कर रही है।
“कामिनी मेरी जान… अब दर्द तो नहीं हो रहा ना?”
“दर्द तो इतना नहीं है पर मेरे पैर दुखने लगे हैं?”
“तुम अपने पैर नीचे रख लो फिर आराम मिलेगा.”
कामिनी ने धीरे-धीरे अपने पैर नीचे जमीन पर कर लिए। ऐसा करने से उसकी गांड का छेद बहुत ही कस गया था और अब धक्के नहीं लगाए जा सकते थे। बस उस आनंद को महसूस किया जा सकता था कि मेरा पूरा लंड कामिनी के अन्दर समाया हुआ है। उसकी मखमली जांघें मेरी जाँघों से सटी हुई थी।
“एक… बात बोलूं?” कामिनी ने शर्माते हुए कहा।
“हम्म?” मैंने कामिनी की कांख पर जीभ फिराते हुए कहा।
“वो… वो…”
ईइईस्सस्स स्सस… कामिनी की यह शर्माने की आदत तो मेरा कलेजा ही चीर देगी।
“प्लीज बोलो ना?”
“वो डॉगी स्टाइल में हो जाऊं क्या?”
“अरे वाह… मेरी जान… तुमने तो मेरे मुंह की बात छीन ली? नेकी और पूछ-पूछ?”
“ज्यादा दर्द तो नहीं होगा ना?”
“अरे मेरी जान … तुम्हारे भैया की तरह मैं कोई अनाड़ी थोड़े ही हूँ? तुम चिंता मत करो.”
मेरे ऐसा कहने पर कामिनी ने मेरी गोद से उठने का प्रयास किया तो मैंने उसके कमर पकड़ते हुए उठने से मना कर दिया। मैं जानता था एक बार अगर मेरा लंड बाहर निकल गया तो वापस डालने में बड़ी दिक्कत हो सकती है। इसलिए लंड अन्दर डाले हुए ही कामिनी को डॉगी स्टाइल में करना ठीक रहेगा।
“कामिनी मैं तुम्हें कमर से पकड़ कर गोद में उठाता हूँ फिर हम धीरे-धीरे बड़े वाले सोफे पर शिफ्ट हो जाते हैं. पर आराम से, जल्दबाजी मत करना!”
“हओ”
कामिनी को अपनी गोद में उठाये हुए मैं बड़े वाले सोफे की ओर आ गया। कामिनी ने अपने घुटने मोड़ दिए और डॉगी स्टाइल में हो गई। लंड थोड़ा तो बाहर निकला था पर आधा तो अन्दर ही फंसा रहा था।
मैं फर्श पर खड़ा हो गया और कामिनी ने अपना सिर सोफे पर टिका दिया। ऐसा करने से उसके नितम्ब अब खुलकर मेरे सामने नुमाया हो गए। उसकी गांड का गुलाबी छल्ला तो ऐसे लग रहा था जैसे किसी छोटे बच्चे की कलाई में कोई चूड़ी फंसी हुई हो। मैं तो बस उसे देखता ही रह गया।
कामिनी के नितम्ब अब भी लाल से लग रहे थे। थोड़ी देर पहले जब हमने इसी मुद्रा में सेक्स किया था उस समय मैंने कामिनी के नितम्बों पर थप्पड़ लगाये थे उनकी लाली अभी भी बरकरार थे।
मैंने प्यार से उसके नितम्बों पर हाथ फिराना चालू किया और फिर हल्का सा धक्के लगाया।
“आईईई …” कामिनी की मीठी सीत्कार निकल गई।
गांड के अन्दर-बाहर होता लंड तो किसी पिस्टन की तरह लग रहा था। कामिनी ने एक बार अपनी गांड का संकोचन किया। इस अदा से मेरा लंड तो निहाल ही हो गया।
कामिनी ने अपना एक हाथ पीछे कर के मेरे लंड को टटोला और फिर अपनी गांड के छल्ले पर अंगुलियाँ फिराई। शायद वह यह जानना चाहती थी कि मेरा इतना बड़ा और मोटा लंड वास्तव में ही गांड के अन्दर चला गया है।
खैर उसका जो भी सोचना था पानी जगह था पर मेरे रोमांच का पारावार ही नहीं था। कई बार मैंने मधुर के साथ भी इसी मुद्रा में कई बार गुदा मैथुन किया है पर कामिनी की कसी हुई गांड तो वास्तव में ही लाजवाब है।
मुझे लगता है वो ऑफिस वाला नताशा नाम का जो मुजसम्मा है उसकी गांड भी कामिनी की तरह बहुत ही खूबसूरत और कसी हुई होगी। जिस प्रकार वह अपने नितम्बों को मटकाकर चलती है लगता है उसे भी अपने नितम्बों की खूबसूरती का अहसास जरूर है। काश! एक बार उसकी गांड मारने को मिल जाए तो मज़ा आ जाए। मेरा तो मन करता है उसे बाथरूम में घोड़ी बनाकर एक ही झटके में अपना पप्पू उसकी गुलाबी गांड में डाल दूं।
कितना अजीब सी बात है ना? पुरुष और स्त्री की मानसिकता में? पुरुष एकाधिकारी बनाना चाहता है उसका प्रेम बस किसी वस्तु या सुन्दर स्त्री को प्राप्त के लेने से पूर्ण हो जाता है जबकि स्त्री अपने प्रेम को दीर्घायु बनाना चाहती है। जब तक मुझे कामिनी की चूत और गांड नहीं मिली थी तब तक मैं उसके लिए जैसे मरा ही जा रहा था और जब कामिनी मुझे अपना सब कुछ सोंप कर पूर्ण समर्पिता बन गई है मेरा मन फिर से किसी ओर की तरफ आकर्षित होने लगा है।
“क्या हुआ?” मैं कामिनी की आवाज सुनकर चौंका।
“ओह… हाँ…” मैं अपने ख्यालों से वापस हकीकत के धरातल पर आया।
मैंने उसकी कमर पकड़ कर फिर से धीरे-धीरे धक्के लगाने शुरू कर दिए। कामिनी की फिर से मीठी किलकारियां निकलने लगी थी। मैंने थोड़ा सा तेल अपने लंड पर और उंडेल लिया था. अब तो पप्पू महाराज हंसते हुए अन्दर बाहर होने लगे थे।
और अब तो वैसे भी मेरी तोतेजान की गूपड़ी इसकी अभ्यस्त हो ही गई है। कामिनी ने अपने नितम्बों का संकोचन शुरू कर दिया था। सच कहता हूँ उसकी गांड अन्दर से इतनी कसी हुई थी कि मुझे लग रहा था जैसे किसी ने मेरे पप्पू की गर्दन ही दबोच रखी है।
अब तो कामिनी ने भी अपने नितम्ब हिलाने शुरू कर दिए थे। मैं उसके गालों गर्दन पर चुम्बन लेते जा रहा था। फिर मैंने अपना हाथ नीचे करके उसकी भगनासा को उँगलियों में लेकर मसलना शुरू कर दिया और दूसरे हाथ से उसके स्तन के निप्पल को भी मसलना चालू कर दिया। वह तो अब जोर-जोर से उछलने लगी थी साथ में आह… उईई… भी करती जा रही थी।
मैंने उसके चीरे पर अंगुलियाँ फिरानी चालू रखी और कभी-कभी उसके मदनमणि को भी मसलता जा रहा था। अचानक मुझे लगा कामिनी की साँसें तेज होने लगी है और बुर ने संकोचन शुरू कर दिया है और उसका शरीर भी हिचकोले से खाने लगा है। और फिर अचानक उसके मुंह से एक रोमांच भरी किलकारी सी निकली और उसके साथ ही उसकी बुर ने पानी छोड़ दिया। मेरी अँगुलियों पर चिपचिपा सा पानी महसूस होने लगा।
लंड तो गांड के अन्दर बैठा अपने भाग्य को सराह रहा था। कामिनी 3-4 बार और ऊपर-नीचे उछली और फिर उसका शरीर ढीला सा पड़ गया और वह लम्बी-लम्बी साँसे लेने लगी। मैंने उसे बांहों में भरे रखा और उसके गालों को चूमता रहा।
कामिनी के पैर अभी भी सोफे के हत्थे पर ही थे। उसने अपने नितम्बों को थोड़ा ऊपर कर लिया था। अब मैंने नीचे से हलके हलके धक्के लगाना शुरू आकर दिया था। कामिनी की मीठी सित्कारें निकलने लगी थी।
कोई 8-10 मिनट के बाद मुझे लगा कामिनी थोड़ा थक सी गई है। पर मेरी ख़ुशी के लिए हर दर्द सहन कर रही है।
“कामिनी मेरी जान… अब दर्द तो नहीं हो रहा ना?”
“दर्द तो इतना नहीं है पर मेरे पैर दुखने लगे हैं?”
“तुम अपने पैर नीचे रख लो फिर आराम मिलेगा.”
कामिनी ने धीरे-धीरे अपने पैर नीचे जमीन पर कर लिए। ऐसा करने से उसकी गांड का छेद बहुत ही कस गया था और अब धक्के नहीं लगाए जा सकते थे। बस उस आनंद को महसूस किया जा सकता था कि मेरा पूरा लंड कामिनी के अन्दर समाया हुआ है। उसकी मखमली जांघें मेरी जाँघों से सटी हुई थी।
“एक… बात बोलूं?” कामिनी ने शर्माते हुए कहा।
“हम्म?” मैंने कामिनी की कांख पर जीभ फिराते हुए कहा।
“वो… वो…”
ईइईस्सस्स स्सस… कामिनी की यह शर्माने की आदत तो मेरा कलेजा ही चीर देगी।
“प्लीज बोलो ना?”
“वो डॉगी स्टाइल में हो जाऊं क्या?”
“अरे वाह… मेरी जान… तुमने तो मेरे मुंह की बात छीन ली? नेकी और पूछ-पूछ?”
“ज्यादा दर्द तो नहीं होगा ना?”
“अरे मेरी जान … तुम्हारे भैया की तरह मैं कोई अनाड़ी थोड़े ही हूँ? तुम चिंता मत करो.”
मेरे ऐसा कहने पर कामिनी ने मेरी गोद से उठने का प्रयास किया तो मैंने उसके कमर पकड़ते हुए उठने से मना कर दिया। मैं जानता था एक बार अगर मेरा लंड बाहर निकल गया तो वापस डालने में बड़ी दिक्कत हो सकती है। इसलिए लंड अन्दर डाले हुए ही कामिनी को डॉगी स्टाइल में करना ठीक रहेगा।
“कामिनी मैं तुम्हें कमर से पकड़ कर गोद में उठाता हूँ फिर हम धीरे-धीरे बड़े वाले सोफे पर शिफ्ट हो जाते हैं. पर आराम से, जल्दबाजी मत करना!”
“हओ”
कामिनी को अपनी गोद में उठाये हुए मैं बड़े वाले सोफे की ओर आ गया। कामिनी ने अपने घुटने मोड़ दिए और डॉगी स्टाइल में हो गई। लंड थोड़ा तो बाहर निकला था पर आधा तो अन्दर ही फंसा रहा था।
मैं फर्श पर खड़ा हो गया और कामिनी ने अपना सिर सोफे पर टिका दिया। ऐसा करने से उसके नितम्ब अब खुलकर मेरे सामने नुमाया हो गए। उसकी गांड का गुलाबी छल्ला तो ऐसे लग रहा था जैसे किसी छोटे बच्चे की कलाई में कोई चूड़ी फंसी हुई हो। मैं तो बस उसे देखता ही रह गया।
कामिनी के नितम्ब अब भी लाल से लग रहे थे। थोड़ी देर पहले जब हमने इसी मुद्रा में सेक्स किया था उस समय मैंने कामिनी के नितम्बों पर थप्पड़ लगाये थे उनकी लाली अभी भी बरकरार थे।
मैंने प्यार से उसके नितम्बों पर हाथ फिराना चालू किया और फिर हल्का सा धक्के लगाया।
“आईईई …” कामिनी की मीठी सीत्कार निकल गई।
गांड के अन्दर-बाहर होता लंड तो किसी पिस्टन की तरह लग रहा था। कामिनी ने एक बार अपनी गांड का संकोचन किया। इस अदा से मेरा लंड तो निहाल ही हो गया।
कामिनी ने अपना एक हाथ पीछे कर के मेरे लंड को टटोला और फिर अपनी गांड के छल्ले पर अंगुलियाँ फिराई। शायद वह यह जानना चाहती थी कि मेरा इतना बड़ा और मोटा लंड वास्तव में ही गांड के अन्दर चला गया है।
खैर उसका जो भी सोचना था पानी जगह था पर मेरे रोमांच का पारावार ही नहीं था। कई बार मैंने मधुर के साथ भी इसी मुद्रा में कई बार गुदा मैथुन किया है पर कामिनी की कसी हुई गांड तो वास्तव में ही लाजवाब है।
मुझे लगता है वो ऑफिस वाला नताशा नाम का जो मुजसम्मा है उसकी गांड भी कामिनी की तरह बहुत ही खूबसूरत और कसी हुई होगी। जिस प्रकार वह अपने नितम्बों को मटकाकर चलती है लगता है उसे भी अपने नितम्बों की खूबसूरती का अहसास जरूर है। काश! एक बार उसकी गांड मारने को मिल जाए तो मज़ा आ जाए। मेरा तो मन करता है उसे बाथरूम में घोड़ी बनाकर एक ही झटके में अपना पप्पू उसकी गुलाबी गांड में डाल दूं।
कितना अजीब सी बात है ना? पुरुष और स्त्री की मानसिकता में? पुरुष एकाधिकारी बनाना चाहता है उसका प्रेम बस किसी वस्तु या सुन्दर स्त्री को प्राप्त के लेने से पूर्ण हो जाता है जबकि स्त्री अपने प्रेम को दीर्घायु बनाना चाहती है। जब तक मुझे कामिनी की चूत और गांड नहीं मिली थी तब तक मैं उसके लिए जैसे मरा ही जा रहा था और जब कामिनी मुझे अपना सब कुछ सोंप कर पूर्ण समर्पिता बन गई है मेरा मन फिर से किसी ओर की तरफ आकर्षित होने लगा है।
“क्या हुआ?” मैं कामिनी की आवाज सुनकर चौंका।
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मैंने उसकी कमर पकड़ कर फिर से धीरे-धीरे धक्के लगाने शुरू कर दिए। कामिनी की फिर से मीठी किलकारियां निकलने लगी थी। मैंने थोड़ा सा तेल अपने लंड पर और उंडेल लिया था. अब तो पप्पू महाराज हंसते हुए अन्दर बाहर होने लगे थे।
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Re: Adultery लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
मैंने अब अपना हाथ नीचे किया और उसके उरोजों को भी मसलना चालू कर दिया। दूसरे हाथ से उसकी सु-सु के मोटे मोटे पपोटों और फांकों को मसलना चालू कर दिया। अपनी अँगुलियों पर चूत से निकला चिपचिपा सा तरल लेप सा महसूस करने से मुझे लगा कामिनी का एक बार फिर से स्खलन हो गया है।
हमें 15-20 मिनट तो हो ही गए थे कामिनी की सु-सु को मसलना चालू रखा। अब तक कामिनी की गूपड़ी ने पप्पू से पक्की दोस्ती कर ली थी। अब मैं भी अपनी अंतिम मंजिल पा लेना चाहता था।
“कामिनी मेरी जान … अब मेरा प्रेम बरसने वाला है क्या तुम तैयार हो?”
“आह… हाँ… मेरे साजन… अपनी इस रानी को पटरानी बना दो.”
और फिर मेरे लंड ने पिचकारियाँ मारनी शुरू कर दी। कामिनी ने पूरा साथ दिया और मेरे पूरे वीर्य को अपने अन्दर सहेज लिया। मैं कामिनी की पीठ से चिपक गया था।
अब कामिनी ने अपने पैर सीधे करके नीचे कर लिए थे। थोड़ी देर में मेरा लंड फिसल कर बाहर आ गया। कामिनी की गांड का छल्ला भी धीरे-धीरे संकोचन करता सिकुड़ता गया और उसमें से गाढ़ा वीर्य निकल कर उसकी मोटी-मोटी फांकों और चीरे को भिगोने लगा था।
मैं अब सोफे पर बैठ गया था। कामिनी भी सरक कर उकड़ू सी होकर फर्श पर बैठ गई और अपनी मुंडी झुकाकर नीचे देखने लगी। शायद वह अपनी गांड की हालत और उससे निकलते रस को देख रही थी।
मेरा मन भी उस दृश्य को देखने का कर रहा था पर मुझे लगा शायद कामिनी को यह अन्तरंग बात पसंद नहीं आएगी। मैंने कामिनी का सिर अपने हाथों में पकड़ लिया और एक बार फिर से उसके होंठों को चूम लिया।
कामिनी तो उईईई… करती ही रह गई।
और फिर अगले 8-10 दिन हमने लगभग रोज ही इस आनंद अलग-अलग आसनों में भोगा। कभी बाथरूम में, कभी रसोई में, कभी इसी सोफे पर और कभी नंगे फर्श पर।
अब तो कामिनी मेरे लंड की मलाई पीने को में भी माहिर सी हो गई है।
भगवान् ने हर प्राणी मात्र में काम भावना को कूट-कूट कर भरा है और उसमें इतना माधुर्य और आनंद भरा है कि इसे कितना भी भोग लें पर मन कभी नहीं अघाता (भरता)।
बीच-बीच में मधुर ने भी अहसान सा दिखाते हुए अपना पत्नी धर्म निभाती रही। हेड ऑफिस से मेल आ गया था कि मुझे अब थोड़े ही दिनों में ट्रेनिंग के लिए बंगलुरु पहुँचना होगा।
आज मधुर की शायद छुट्टी थी। जब मैं शाम को ऑफिस से घर आया तो कामिनी कहीं दिखाई नहीं दे रही थी। बाद में मधुर ने बताया कि कामिनी की तबियत ठीक नहीं है। उसे थोड़ा बुखार सा भी है और पेट गड़बड़ी की वजह से जी मिचलाता है।
सुबह मैंने भी देखा तो था कामिनी वाश-बेसिन पर जब हाथ मुंह धो रही थी तो उसे उबकाई सी आई थी। पर उस समय मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया था।
रात को मधुर ने जी भर के चुदवाया। आज तो उसने मेरे ऊपर बैठ कर अपनी मुनिया को मेरे मुंह पर भी रगड़ा और मेरे लंड को भी कई महीनों के बाद चूसा था। और फिर हमने सारी रात पति पत्नी धर्म निभाया।
और फिर दूसरे दिन मधुर ने शाम को खुशखबरी सुनाई कि उसकी मनोकामना सिद्ध हो गई है और वह पेट से रह गई है। चलो 8-9 महीने की कठोर तपस्या का फल लिंग देव ने आखिर दे ही दिया।
मधुर ने अपने भैया-भाभी और रिश्तेदारों को भी यह खुशखबरी सुना डाली थी।
और फिर अचानक रात को कोई 9 बजे उसकी मुंबई वाली ताईजी का फ़ोन आया। ताऊजी की तबियत बहुत खराब है उनको फिर से हार्ट की परेशानी हो गई है। मधुर तो रोने ही लगी थी।
किसी तरह उसे समझाया कि तुम मुंबई जल्दी से जल्दी चली जाओ।
वह तो मुझे भी साथ ले जाना चाहती थी पर मेरी ऑफिस की मजबूरी थी।
और फिर मधुर के कहने पर मैंने अगले दिन सुबह ही हवाई जहाज के दो टिकट बुक करवा दिए। मुझे हैरानी हो रही थी मधुर ने दो टिकट मधुर माथुर और मधु के नाम से बुक करवाने को कहा था।
मधुर तो अपने साथ कामिनी को ले जाने वाली थी. यह मधु का क्या चक्कर है? मेरी समझ से परे था.
मुझे हैरानी हो रही थी. भरतपुर से सीधी उड़ान तो नहीं थी पर आगरा तक टेक्सी से और फिर वहाँ से मुंबई के लिए सीधी उड़ान थी।
दोस्तो! नियति के खेल बड़े अजीब होते हैं। आदमी अपने आप को कितना भी गुरु घंटाल या बुद्धिमान समझे भविष्य में क्या होगा कोई नहीं जानता। आगरा तक मैं भी मधुर के साथ गया और उन दोनों को एअरपोर्ट छोड़कर मैं वापस आ गया। मैंने मधुर को गले लगाकर विदा किया।
मधुर ने कामिनी की ओर इशारा किया तो कामिनी झिझकते हुए मेरे पास आई और वह भी मेरे गले लग गई। उसके चेहरे को देख कर लग रहा था वह अभी रो पड़ेगी।
पास में खड़े एक आदमी के मोबाइल पर कॉलर ट्यून बज रही थी:
लग जा गले से फिर ये हसीं रात हो ना हो!
शायद इस जन्म में फिर मुलाक़ात हो ना हो!
फिर मधुर बोली- प्रेम! 10-5 दिन की बात है मैंने गुलाबो को कुछ पैसे भिजवा दिए हैं और उससे बात कर ली है. सानिया रोज घर की सफाई कर दिया करेगी और खाना-नाश्ता भी बना दिया करेगी।
मुंबई पहुँच कर मधुर ने फ़ोन पर बताया कि ताऊजी को अस्पताल में भर्ती करवा दिया है। भैया भी जयपुर से कल सुबह आ रहे हैं। अब चिंता की बात नहीं है पर 2-3 महीने उसकी देखभाल के लिए वहाँ रहना पड़ेगा।
ताई जी ने कई बार मुझे भी मुंबई में आकर अपने ताऊ जी का कारोबार संभालने के लिए कहा है पर इस नौकरी को छोड़कर मुंबई जाने से थोड़ा हिचकिचा सा रहा था।
ऑफिस में अभी मेरी जगह नए आदमी ने ज्वाइन नहीं किया है, उसके ज्वाइन करने के बाद ही मैं बंगलुरु जा सकूंगा।
कामिनी के जाने के बाद मेरी हालत का अंदाज़ा आप लगा सकते हैं। मेरा किसी काम में मन ही नहीं लग रहा था। बस अब तो नताशा नाम के उस नए मुजसम्मे का ही सहारा बचा था।
नताशा आजकल बहुत खुश नज़र आ रही है। मेरे कहने पर उसकी भी 10 दिनों की छुट्टी मंजूर हो गई है और वह रोज पूछती है कि साथ में क्या क्या बनाकर ले चलूँ? आपके रहने की व्यवस्था कहाँ होगी? मैं आपसे मिलने जरूर आऊँगी।
उसकी आँखों में अजीब सा नशा दिखाई देता है और वह बार बार कोई ना कोई बहाना लेकर मेरे केबिन में आने का प्रयास करती है। कई बार तो अपने घर से खाना और मिठाई भी लेकर आती है।
साधारण लड़कियां करियर बनाने के लिए मन लगाकर खूब पढ़ती हैं और खूबसूरत लड़कियां मजे करती हैं क्योंकि उन्हें पता होता है कोई ना कोई उल्लू का पट्ठा उनके लिए डॉक्टरी या इंजीनियरिंग कर रहा है।
नताशा के बारे में मुझे बाद में पता चला कि उसके वाला कबूतर (उल्लू का पट्ठा) विद्युत निगम में किसी तकनीकी पद पर है और बिजली के खम्बे की तरह दुबला पतला है।
हमें 15-20 मिनट तो हो ही गए थे कामिनी की सु-सु को मसलना चालू रखा। अब तक कामिनी की गूपड़ी ने पप्पू से पक्की दोस्ती कर ली थी। अब मैं भी अपनी अंतिम मंजिल पा लेना चाहता था।
“कामिनी मेरी जान … अब मेरा प्रेम बरसने वाला है क्या तुम तैयार हो?”
“आह… हाँ… मेरे साजन… अपनी इस रानी को पटरानी बना दो.”
और फिर मेरे लंड ने पिचकारियाँ मारनी शुरू कर दी। कामिनी ने पूरा साथ दिया और मेरे पूरे वीर्य को अपने अन्दर सहेज लिया। मैं कामिनी की पीठ से चिपक गया था।
अब कामिनी ने अपने पैर सीधे करके नीचे कर लिए थे। थोड़ी देर में मेरा लंड फिसल कर बाहर आ गया। कामिनी की गांड का छल्ला भी धीरे-धीरे संकोचन करता सिकुड़ता गया और उसमें से गाढ़ा वीर्य निकल कर उसकी मोटी-मोटी फांकों और चीरे को भिगोने लगा था।
मैं अब सोफे पर बैठ गया था। कामिनी भी सरक कर उकड़ू सी होकर फर्श पर बैठ गई और अपनी मुंडी झुकाकर नीचे देखने लगी। शायद वह अपनी गांड की हालत और उससे निकलते रस को देख रही थी।
मेरा मन भी उस दृश्य को देखने का कर रहा था पर मुझे लगा शायद कामिनी को यह अन्तरंग बात पसंद नहीं आएगी। मैंने कामिनी का सिर अपने हाथों में पकड़ लिया और एक बार फिर से उसके होंठों को चूम लिया।
कामिनी तो उईईई… करती ही रह गई।
और फिर अगले 8-10 दिन हमने लगभग रोज ही इस आनंद अलग-अलग आसनों में भोगा। कभी बाथरूम में, कभी रसोई में, कभी इसी सोफे पर और कभी नंगे फर्श पर।
अब तो कामिनी मेरे लंड की मलाई पीने को में भी माहिर सी हो गई है।
भगवान् ने हर प्राणी मात्र में काम भावना को कूट-कूट कर भरा है और उसमें इतना माधुर्य और आनंद भरा है कि इसे कितना भी भोग लें पर मन कभी नहीं अघाता (भरता)।
बीच-बीच में मधुर ने भी अहसान सा दिखाते हुए अपना पत्नी धर्म निभाती रही। हेड ऑफिस से मेल आ गया था कि मुझे अब थोड़े ही दिनों में ट्रेनिंग के लिए बंगलुरु पहुँचना होगा।
आज मधुर की शायद छुट्टी थी। जब मैं शाम को ऑफिस से घर आया तो कामिनी कहीं दिखाई नहीं दे रही थी। बाद में मधुर ने बताया कि कामिनी की तबियत ठीक नहीं है। उसे थोड़ा बुखार सा भी है और पेट गड़बड़ी की वजह से जी मिचलाता है।
सुबह मैंने भी देखा तो था कामिनी वाश-बेसिन पर जब हाथ मुंह धो रही थी तो उसे उबकाई सी आई थी। पर उस समय मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया था।
रात को मधुर ने जी भर के चुदवाया। आज तो उसने मेरे ऊपर बैठ कर अपनी मुनिया को मेरे मुंह पर भी रगड़ा और मेरे लंड को भी कई महीनों के बाद चूसा था। और फिर हमने सारी रात पति पत्नी धर्म निभाया।
और फिर दूसरे दिन मधुर ने शाम को खुशखबरी सुनाई कि उसकी मनोकामना सिद्ध हो गई है और वह पेट से रह गई है। चलो 8-9 महीने की कठोर तपस्या का फल लिंग देव ने आखिर दे ही दिया।
मधुर ने अपने भैया-भाभी और रिश्तेदारों को भी यह खुशखबरी सुना डाली थी।
और फिर अचानक रात को कोई 9 बजे उसकी मुंबई वाली ताईजी का फ़ोन आया। ताऊजी की तबियत बहुत खराब है उनको फिर से हार्ट की परेशानी हो गई है। मधुर तो रोने ही लगी थी।
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वह तो मुझे भी साथ ले जाना चाहती थी पर मेरी ऑफिस की मजबूरी थी।
और फिर मधुर के कहने पर मैंने अगले दिन सुबह ही हवाई जहाज के दो टिकट बुक करवा दिए। मुझे हैरानी हो रही थी मधुर ने दो टिकट मधुर माथुर और मधु के नाम से बुक करवाने को कहा था।
मधुर तो अपने साथ कामिनी को ले जाने वाली थी. यह मधु का क्या चक्कर है? मेरी समझ से परे था.
मुझे हैरानी हो रही थी. भरतपुर से सीधी उड़ान तो नहीं थी पर आगरा तक टेक्सी से और फिर वहाँ से मुंबई के लिए सीधी उड़ान थी।
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पास में खड़े एक आदमी के मोबाइल पर कॉलर ट्यून बज रही थी:
लग जा गले से फिर ये हसीं रात हो ना हो!
शायद इस जन्म में फिर मुलाक़ात हो ना हो!
फिर मधुर बोली- प्रेम! 10-5 दिन की बात है मैंने गुलाबो को कुछ पैसे भिजवा दिए हैं और उससे बात कर ली है. सानिया रोज घर की सफाई कर दिया करेगी और खाना-नाश्ता भी बना दिया करेगी।
मुंबई पहुँच कर मधुर ने फ़ोन पर बताया कि ताऊजी को अस्पताल में भर्ती करवा दिया है। भैया भी जयपुर से कल सुबह आ रहे हैं। अब चिंता की बात नहीं है पर 2-3 महीने उसकी देखभाल के लिए वहाँ रहना पड़ेगा।
ताई जी ने कई बार मुझे भी मुंबई में आकर अपने ताऊ जी का कारोबार संभालने के लिए कहा है पर इस नौकरी को छोड़कर मुंबई जाने से थोड़ा हिचकिचा सा रहा था।
ऑफिस में अभी मेरी जगह नए आदमी ने ज्वाइन नहीं किया है, उसके ज्वाइन करने के बाद ही मैं बंगलुरु जा सकूंगा।
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(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).
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(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
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- jay
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Re: Adultery लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
अब नताशा के गदराये बदन को संभालना उस बेचारे के लिए कहाँ संभव था।
मैंने देखा नताशा की आँखों के नीचे हल्का सा सांवलापन सा नज़र आता है। अक्सर सेक्स में असंतुष्ट और ज्यादा आत्म रति (मुट्ठ मारने) करने से ऐसा हो जाता है।
और आज शाम को संजीवनी बूटी मतलब मेरी बंगाली पड़ोसन संजया बनर्जी सुहाना को लेकर घर आ पहुंची। मैं तो उन दोनों को अपने घर के दरवाजे पर देख कर चौंक ही पड़ा। सुहाना ने सफ़ेद रंग का छोटा निक्कर और लाल रंग का टॉप पहन रखा था।
हे भगवान्! यह तो इन 2-3 महीनों में ही कलि से खिलकर फूल बन गई है। डोरी वाले टॉप में उसके चीकू तो अब रस भरे अनार जैसे लगने लगे है। गोरी शफ्फाक जांघें देख कर तो मेरा दिल हलक के रास्ते बाहर ही आने को करने लगा था।
“आ… आइए मैम!”
“माथुर साहब! आपसे एक काम था.”
“ओह … आइए अन्दर तो आइए!”
“वो मिसेज माथुर दिखाई नहीं दे रही?”
“ओह … हाँ वो 5-7 दिन के लिए मुंबई गई हुई हैं.”
“ओह … आपको खाने-पीने की बड़ी दिक्कत होती होगी. आप हमारे यहाँ खाना खा लिया करें।” संजीवनी बूंटी ने जिस अंदाज़ में यह प्रस्ताव रखा था मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगा था।
मेरे निगाहें तो बस सुहाना को ही घूरती जा रही थी। छोटे से निक्कर में फंसे उसके नितम्ब तो कामिनी से भी ज्यादा कसे हुए लग रहे थे और उसकी जांघें तो बस मुझे छू लेने का निमंत्रण सा देने लगी थी। मैं तो बस अपने होंठों पर जबान ही फिराता रह गया।
“ओह … थैंक यू! बताइए आपकी क्या सेवा करूँ?”
“वो दरअसल सुहाना का एक प्रोजेक्ट है.”
“कैसा प्रोजेक्ट?”
जैसे किसी अमराई में कोई कोयल कूकी हो या किसी ने जलतरंग छेड़ दिया हो। कितने बरसों के बाद निशा जैसी (दो नंबर का बदमाश) मधुर आवाज सुनी थी।
हे भगवान् … इसके गुलाबी रंगत वाले संतरे की फांकों जैसे होंठ और मोटी-मोटी आँखें और कमान की तरह तनी काली घनी भोंहें उफ्फ्फ … क़यामत जैसे मेरे सामने बैठी मुझे क़त्ल करने पर आमादा हो।
“ओह … बहुत खूबसूरत … आई मीन बहुत बढ़िया प्रोजेक्ट है. श्योर मैं हेल्प कर दूंगा।”
“इसे आपके ऑफिस में भेजूं या आप यहीं इसे गाइड कर देंगे?” संजया ने पूछा.
“कक्क … कोई बात नहीं, इसे दिन में ऑफिस भेज दें और शाम को एक घंटे घर भी आप कहेंगी तो मैं हेल्प कर दूंगा पर … इसे मेहनत बहुत करनी पड़ेगी.”
“हा … हा … हा … शी इज क्वाइट हार्ड वर्किंग एंड सिरियस गर्ल!” संजया ने हंसते हुए कहा।
हे भगवान् संजया के गालों पर पड़ने वाले गड्ढों को देखकर तो मेरा पप्पू पैंट में कसमसाने ही लगा था।
“आपके लिए चाय बना देता हूँ?”
“अरे नहीं आप अकेले हैं परेशानी होगी? आप हमारे यहाँ चलें वही चाय पीते हैं और प्लीज मना मत करना आज का खाना भी आपको हमारे साथ ही खाना पड़ेगा।”
अब इतनी प्यार भरी मनुहार को नकारना मेरे लिए कितना मुश्किल था।
प्रिय पाठको और पाठिकाओ!
इस समय आप मेरी हालत और परिस्थितियों को अच्छी तरह समझ सकते हैं। इस समय मैं जिन्दगी के दोराहे पर नहीं चौराहे पर खड़ा हूँ। एक तरफ नौकरी और घर गृहस्थी है और दूसरी तरफ नताशा नामक मुजसम्मा है, तीसरी ओर सानिया और चौथे रास्ते पर संजीवनी बूटी सुहाना को अपने साथ लिए खड़ी मुझे आमंत्रण दे रही हैं।
मेरे तो कुछ समझ नहीं आ रहा मैं क्या करूँ?
अगर आप इस सम्बन्ध में अपनी कीमती राय लिखेंगे तो प्रेमगुरु को अपनी जिन्दगी का अहम् फैसला लेने में बड़ी सहायता मिलेगी।
विदा मित्रो! आप सभी ने इस लम्बी कहानी कहानी को धैर्यपूर्वक पढ़ा उसके लिए आप सभी का हृदय से आभार। मैं अपने उन पाठकों की भी क्षमा प्रार्थी हूँ जिनको इस कहानी की लम्बाई को लेकर शिकायत रही थी। मुझे विश्वास है प्रेमगुरु की इस कहानी को आप तक पहुंचाने के मेरे इस छोटे से प्रयास के बारे में अपनी राय जरूर देंगे।
धन्यवाद सहित
मैंने देखा नताशा की आँखों के नीचे हल्का सा सांवलापन सा नज़र आता है। अक्सर सेक्स में असंतुष्ट और ज्यादा आत्म रति (मुट्ठ मारने) करने से ऐसा हो जाता है।
और आज शाम को संजीवनी बूटी मतलब मेरी बंगाली पड़ोसन संजया बनर्जी सुहाना को लेकर घर आ पहुंची। मैं तो उन दोनों को अपने घर के दरवाजे पर देख कर चौंक ही पड़ा। सुहाना ने सफ़ेद रंग का छोटा निक्कर और लाल रंग का टॉप पहन रखा था।
हे भगवान्! यह तो इन 2-3 महीनों में ही कलि से खिलकर फूल बन गई है। डोरी वाले टॉप में उसके चीकू तो अब रस भरे अनार जैसे लगने लगे है। गोरी शफ्फाक जांघें देख कर तो मेरा दिल हलक के रास्ते बाहर ही आने को करने लगा था।
“आ… आइए मैम!”
“माथुर साहब! आपसे एक काम था.”
“ओह … आइए अन्दर तो आइए!”
“वो मिसेज माथुर दिखाई नहीं दे रही?”
“ओह … हाँ वो 5-7 दिन के लिए मुंबई गई हुई हैं.”
“ओह … आपको खाने-पीने की बड़ी दिक्कत होती होगी. आप हमारे यहाँ खाना खा लिया करें।” संजीवनी बूंटी ने जिस अंदाज़ में यह प्रस्ताव रखा था मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगा था।
मेरे निगाहें तो बस सुहाना को ही घूरती जा रही थी। छोटे से निक्कर में फंसे उसके नितम्ब तो कामिनी से भी ज्यादा कसे हुए लग रहे थे और उसकी जांघें तो बस मुझे छू लेने का निमंत्रण सा देने लगी थी। मैं तो बस अपने होंठों पर जबान ही फिराता रह गया।
“ओह … थैंक यू! बताइए आपकी क्या सेवा करूँ?”
“वो दरअसल सुहाना का एक प्रोजेक्ट है.”
“कैसा प्रोजेक्ट?”
जैसे किसी अमराई में कोई कोयल कूकी हो या किसी ने जलतरंग छेड़ दिया हो। कितने बरसों के बाद निशा जैसी (दो नंबर का बदमाश) मधुर आवाज सुनी थी।
हे भगवान् … इसके गुलाबी रंगत वाले संतरे की फांकों जैसे होंठ और मोटी-मोटी आँखें और कमान की तरह तनी काली घनी भोंहें उफ्फ्फ … क़यामत जैसे मेरे सामने बैठी मुझे क़त्ल करने पर आमादा हो।
“ओह … बहुत खूबसूरत … आई मीन बहुत बढ़िया प्रोजेक्ट है. श्योर मैं हेल्प कर दूंगा।”
“इसे आपके ऑफिस में भेजूं या आप यहीं इसे गाइड कर देंगे?” संजया ने पूछा.
“कक्क … कोई बात नहीं, इसे दिन में ऑफिस भेज दें और शाम को एक घंटे घर भी आप कहेंगी तो मैं हेल्प कर दूंगा पर … इसे मेहनत बहुत करनी पड़ेगी.”
“हा … हा … हा … शी इज क्वाइट हार्ड वर्किंग एंड सिरियस गर्ल!” संजया ने हंसते हुए कहा।
हे भगवान् संजया के गालों पर पड़ने वाले गड्ढों को देखकर तो मेरा पप्पू पैंट में कसमसाने ही लगा था।
“आपके लिए चाय बना देता हूँ?”
“अरे नहीं आप अकेले हैं परेशानी होगी? आप हमारे यहाँ चलें वही चाय पीते हैं और प्लीज मना मत करना आज का खाना भी आपको हमारे साथ ही खाना पड़ेगा।”
अब इतनी प्यार भरी मनुहार को नकारना मेरे लिए कितना मुश्किल था।
प्रिय पाठको और पाठिकाओ!
इस समय आप मेरी हालत और परिस्थितियों को अच्छी तरह समझ सकते हैं। इस समय मैं जिन्दगी के दोराहे पर नहीं चौराहे पर खड़ा हूँ। एक तरफ नौकरी और घर गृहस्थी है और दूसरी तरफ नताशा नामक मुजसम्मा है, तीसरी ओर सानिया और चौथे रास्ते पर संजीवनी बूटी सुहाना को अपने साथ लिए खड़ी मुझे आमंत्रण दे रही हैं।
मेरे तो कुछ समझ नहीं आ रहा मैं क्या करूँ?
अगर आप इस सम्बन्ध में अपनी कीमती राय लिखेंगे तो प्रेमगुरु को अपनी जिन्दगी का अहम् फैसला लेने में बड़ी सहायता मिलेगी।
विदा मित्रो! आप सभी ने इस लम्बी कहानी कहानी को धैर्यपूर्वक पढ़ा उसके लिए आप सभी का हृदय से आभार। मैं अपने उन पाठकों की भी क्षमा प्रार्थी हूँ जिनको इस कहानी की लम्बाई को लेकर शिकायत रही थी। मुझे विश्वास है प्रेमगुरु की इस कहानी को आप तक पहुंचाने के मेरे इस छोटे से प्रयास के बारे में अपनी राय जरूर देंगे।
धन्यवाद सहित
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Re: Adultery लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
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