मिस्टर & मिसेस पटेल (माँ-बेटा:-एक सच्ची घटना) complete

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SATISH
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Re: मिस्टर & मिसेस पटेल (माँ-बेटा:-एक सच्ची घटना)

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पिछले ६ साल से में उनसे और एक दूसरे प्यार से अटैच हुआ हू जो खबर केवल मेरा मन ही जानता. और कभी कोई जान भी नहीं पायेगा. उनके प्यार मे में कब से मेरे अंदर एक अलग आदमी को जनम दे दिया है. जो आदमी माँ से प्यार करता है. उनके साथ एक अलग दुनिया में ही जीता है. लेकिन उसको भी मालूम है की यह मन की बात केवल मन में ही रहेगी पूरी ज़िंदगी.


ओर पिछला ६ साल से में अपनी ही माँ को सोच सोच के रोज रात में मस्टरबैट करते आ रहा हू उसमे मुझे दुनियाका सबसे ज़ादा ख़ुशी , और संतुष्टि मिलती है.

देखते देखते वह दिन भी आगया जिस दिन में कंपनी जाने के लिए. ट्रैन स्टेशन पे खड़ा है माँ, नानाजी, नानीजी सब आये है. कंपनी मुझे वहां रहने के लिए फिलहाल एक जगह प्रोवाइड कर रहा है. ज्वाइन करने के बाद में धीरे धीरे अपना रहने का बंदोबस्त खुद की करूंगा. इस्स लिए नानाजी मेरे साथ चल रहे है. नानीजी बार बार नानाजी को क्या क्या करना है वह याद दिला रही है. मुझे वहां में कोई तकलीफ न हो, इस लिए सब बंदोबस्त सही तरीके से करने के लिए उनको बार बार सब चीज़ों को एक एक करके बता रही है. लास्ट मोमेंट्स में सब को सब चीज़ बतानेका यह एक तरीका में बचपन से सब के अंदर देख ते रहा हू घर में भी यह सब डिस्कस हो चुका है. माँ मेरे पास मेरे सीट पे बैठ के मेरा एक एक हाथ उनकी दोनों हाथ के अंदर लेके चुप चाप बैठि है और नाना नानी का बाते सुन रही है. एक बार माँ मेरे तरफ देखी. उनकि आंखे गिली है. मन में कष्ट हो रहा है उनको . वह उस फीलिंग्स को दबा के रखा है सब के सामने. मुझे मालूम है माँ घर जाके रूम लॉक करके बहुत रोयेगी. मैं इतने सालों से उनको थोड़ा बहुत जानता तोह था. उनकी हर हरकत, हर अदा का क्या मीनिंग है वह में साफ समझ सकता था मैं उन्हें कभी दुःख पहुचाया नही, नाहीं की कभी दुःख दूंगा. यह मेरा खुद के साथ खुद का वादा है. मैं भी माँ को देख. उनका इनोसेंस फेस और नज़रियाँ मुझे हमेशा से अजीब फीलिंग्स देता है. वह मुझ से धीरे से बोली ' तुम मुझे रोज फ़ोन करना'. मैं स्माइल करके धीरे से गर्दन हिलाया हाँ में. उधऱ नानाजी नानाजी को सब समझा रहा है अभी भी. मेरा नाना हमेशा नानी से बेहद प्यार करते है. इस्स लिए उनका ज़ादा बोलना उनको कभी इर्रिटेट किया नही. वह खुद नानीजी से कम ही बोलते है. मेरी माँ शायद उनपे ही गई. इस्स लिए माँ नानाजी से भी कम बोलती है. सुनते और समझते ज्यादा. अचानक ट्रैन में एक झटका खाया. टाइम हो चुका है. अभी चलेगी. इस्स लिए सब उतरने लगे. नानीजी मेरा सर पकड़ के मेरा सर चूमा और उतरने लगी. माँ मेरा हाथ जो उनके हाथों से पकड़ा हुआ था वह मुह के सामने लाक़े मेरा हाथ चुमा. और मेरा गाल पे उनका दाया हात रख के एक बार फिराया और गिली आँखों से स्माइल किया. इस्स का मतलब मुझे मालूम है. मुझे ठीक से रहने का, ठीक टाइम पे खाने का, सोने का, ठीक से काम करने का, अपना ख्याल रखने का ..यह सब बाते वह बिना कुछ बोले मुझे समझा के गयी. . वह लोग बाहर जाके खिड़की के पास खड़ी हो गयी. और ट्रैन चल्ने लगी. नानी और माँ धिरे धिरे दूर होने लगी. ऐसा लगा की मेरा कुछ यहाँ रह गया और में कहीं चल पडा. क्या रह गया वह कह नहीं सकता. मेरा मन भारी हो गया. और ट्रैन रफ़्तार पकड़ने लगी.

ओफिस में पहला दिन थोड़ा डर लग रहा था सब बड़े बड़े इंजिनिअर्स और ऑफिसर्स के साथ परिचय हुआ. सब के बीच मुझे नेर्वेस फील हुआ. सब मेरा हालत समझ गये थे इस्स लिए वह लोग मेरे साथ ऐसा कम्फर्टेबले तरीके से मिल घुलने लगा की एक ही दिन में मुझे इनिशियल हेसिताशन और डर भूलके कॉन्फिडेंस आने लगा. लेकिन एक बात है.. कोई बिस्वास नहीं कर रहा था की में २० साल का था और जस्ट कॉलेज से पास आउट हुआ. मुझे देख के इतना मचुर्ड समज रहे थे, जब में असलियत बताया तब सब हास्के मुझे गले लगाने लगे. मैं गुजरात से हू पर वह लोग मेरी अच्छी हिंदी सुनके मेरी तारीफ भी करने लगे.

इधर नानाजी मैं ऑफिस निकल जाते ही वह भी निकल गये. मेरा रहने के लिए अच्छा बंदोबस्त ढूँढ़ने के लिये. शाम को दोनों एक साथ घर वापस आये..यानी की जहाँ कंपनी हमें रहने के लिए रूम दिया था नानाजी मेरा ऑफिस का पहला दिन का एक्सपीरियंस सुने. मुझे भी उनका दिन भर का करनामे का वर्णन किया. रात को खाना खाके हम सोने गये. एक रूम था अच्छा है. पर एक ही बेड़. इस्स लिए नानाजी और मुझे एक साथ सोना पड़ेगा. नानाजी दिन भर इधर उधर भटके ,मेरे रहने के लिए घर ढूँढ़ते बिजी रहे, तोह वह भी थोड़ा थके थे. इस्स लिए वह जल्दी सो गये. थोड़ी देर में उनकी गहरी नींद की आवाज़ नाक से निकल ने लगी.

पर कल से में थोड़ा व्याकुल था कल भी रात को सोने का यहि इन्तज़ाम था इस्स लिए मुझे मेरा पिछला ६ साल का आदत से छूट ना पड़ा. अभी तक पीसी का इन्तेज़ाम नहीं किया. नया घर मिलतेही सब कुछ कनेक्ट करुन्गा. पर मेरे मन में मेरा हर वक़्त का ख़ुशी का मूर्ति , हमेशा के लिए जल जल कर रही थी. आँख बंध करते ही वह पूरा तन्न मन में छा जाती थी. पर कुछ कर नहीं सकते क्यों की में बाथरूम में जाके वह सब करके मज़ा पाया नहीं कभी. मुझे तो मेरा कम्फर्टेबल प्लेस चाहिए होता है. उप्पर से रोज की तरह माँ की उंगलिया फ़िरने का सुख और प्यार भरी नज़रों से स्वीट स्माइल बहुत मिस किया. आज भी वही शामे हाल है. मैं चेयर पे बैठ के आँख बंध कर के मेरी प्यारी माँ को याद कर रहा था, अचानक याद आया की माँ मुझे रोज फ़ोन करने के लिए कही थी. कल तोह पहली रात थी स्टेशन से आके सब कुछ समेट्ने में देर रात हो चुका था , ऊपर से आज ऑफिस ज्वाइन करना था इस्स लिए कॉल करना भूल गया. अब याद आया. मैं झट से चेयर छोड़ के उठा और मेरा मोबाइल उठाया. आब रात ११ बज चुके है. माँ इस टाइम में सो जाते है हमारे घर में. फिर भी में एकबार ट्राय करने के लिए सोचा. नानाजी को प्रॉब्लम न हो इस लिए रूम का दरवाजा खोल के बाहर बालकनी में आया. मा को फ़ोन लगाया. एक बार रिंग होते ही वह फ़ोन उठा ली. मेरा दिमाग में फ्रैक्शन ऑफ़ सेकंड में यह खेल गया की माँ जरूर मेरा फ़ोन का इंतज़ार में बैठि थी. इस्स लिए इतनी जल्दी रिसीव करली और इतनी रात को भी जागी हुई है. माँ रिसीव करतेहि मैंने बोला
'' हल्लो...मा...''.
मा के तरफ से कुछ रिप्लाई नहीं आई. मैं फिर से बोला
'' मा...कैसी हो तुम्"
फिर से सन्नाता. मैं भी चुप होकर समझने की कोशिश कर रहा था की आखिर हुआ क्या. मैं फिर बोला
'' क्या हुआ मा...तुम ठीक तो होना?'' मेरा आवाज़ में चिंता थी अब माँ थोड़ी देर बाद बोली
" कल तुम फ़ोन क्यों नहीं किये?"
मा की आवाज़ में न जाने क्या था जो मेरे कान में आते ही मेरा पूरा बदन एक अनजानी फीलिंग्स से कांप उठा. दिल की धड़कन तेज हो गई. मुझे यह भी तसल्ली मिली की वह सही सलामत है. मैं खुद को सम्हलकर जबाब दिया
" सॉरी माँ..कल सब कुछ करते करते बहुत रात हो गया था और आज ऑफिस में पहला दिन......"
मेरी बात ख़तम होने से पहले ही उन्होंने मुझे रोक दिया और बोल ने लगी
" बस बेटा...इतनी सफाई की जरुरत नही"
फिर थोड़ा रुक के बोलने लगी
"मैं कल पापा को फ़ोन किआ था"
मैं सोचने लगा , माँ नानाजी को कब फोन किया. शायद में जब रात को बाहर खाना खरीदने गया था , तभी किया होगा. फिर मेरा दिमाग में यह स्ट्राइक किया की माँ को मेरा मोबाइल नम्बर मालूम है. तोह मुझे क्यों नहीं किया. हाँ...उनका एक ही बेटा हू उनसे दूर गया. तो मेरी खबर तो वह लेंगी ही किसी भी तरीके से. लेकिन मुझे क्यों नहीं किया. तभी माँ बोली
चलो यह बताओ ..वहा तुम्हे कुछ प्रॉब्लम तो नहीं हो रहा है ना?
"नही मा...नानाजी साथ में है ना.. . तुम तोह उनको जानती हो. सब वही देख रहे है"
लेकिन में यह बता नहीं सकता की माँ तुम से दूर रहके मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा है.
तभी माँ बोली
" और आज पहला दिन ऑफिस में कैसा रहा..?"
" ठीक था मा. सब मुझे अच्छे से बात किया. और मेरा जो बॉस है मुझे अपना कोई पुराण पहचान वाला जैसा मेरे से बात किया. सब बहुत अच्छे लोग है. लेकिन...."
मैन चुप हो गया तो माँ ने पूचि
"लेकिन क्या?"
"सब मुझे देखके मेरी उम्र ज़ादा सोच रहे थे. पर मेरी सही उम्र जान के सब हस पडे." ऐसी बहुत सारी बाते माँ से होती रही.
माँ मुझ से बात करके खुश थी स्टार्टिंग में वह जैसे अभिमान लेके बात शुरू की थी , वह अंत में जाके एक प्यारी माँ आपने बेटे के लिए ढेर सारा प्यार उड़ेल कर मुझे भी एक सुकून सा दिया. मैं पता करने लगा की माँ से दूर रह के भी इस फ़ोन कन्वर्सेशन के जरिये उनको मेरे पास महसूस कर सकता हू अंत में माँ ने गुड नाईट बोलके फ़ोन काट दिया. मैं कभी माँ से बत्तमीज़ जैसा पेश नहीं हुआ, ना की माँ के साथ कभी लूसे टॉक किया, नाहीं कभी उनको ज़बर्दस्ती पकड़के हुग किया या गाल चुमके एक बेटा का प्यार दिखाया. मेरा परवरिष ही ऐसा था हमारे घर में हम सब के बीच गहरा प्यार बंधन है , साथ में सब सब को रेस्पेक्ट देते है. रेस्पेक्टफुल्ली पेश होते है. मेरे मन में माँ के लिए पिछला ६ साल से एक अजीब अद्भुत फीलिंग ग्रो किया, पर में कभी उनसे सेक्स लेके, या डबल मीनिंग बात लेके, या बिना कारन में उनको हुग करना या उनका टच पाने का कोशिश करना....यह सब कभी नहीं किया. नाही कभी करने का मन हुआ. हा...में उनसे प्यार करता हू रेस्पेक्ट भी करता हू पर वह प्यार में भाषा में बयां नहीं कर पाऊंगा. जो इंसान वह फील करता है, केवल वह उसको समझ सकता है.
आईसे ही एक हप्ता गुजर गया. ऑफिस में मेरा थोड़ा खुलापन आ चुका था मुझे काम करनेके लिए रिस्पांसिबिलिटी भी सौपा गया. और में ख़ुशी से वह करना भी सुरु कर दिया. इधर नानाजी मेरे लिए एक घर किराया में ले लिये. एक बेडरुम, छोटा सा एक ड्राइंग रुम, किचन और बाथरूम. एक आदमी के लिए काफी है. घर के लिए सब सामान भी खरीद के पूरा सजा डीए. मुझे बस ऑफिस जाना है और काम करना है. पहला संडे था मेरा. उस दिन शिफ़्ट करके में और नानाजी एकदम सब बंदोबस्त पक्का कर लिया. मेरा सब सामान सही जगह रख दिया. मेरा पीसी भी कनेक्ट कर दिए. रात को माँ से बात हुआ. वह जान के खुश हो गयी. मुझे अकेले रहने के लिए जो जरूरी चीज़ , वह सब थोड़ी बहुत बतायी. माँ कम ही बोलती है. पर उस दिन अपनी बेटे के लिए कंसर्नड थी. खाने के लिए एक आदमी ठीक किया नानाजी, जो दोनों टाइम टिफ़िन बॉक्स से खाना बना के देके जाएगा.
नानाजी अहमेदाबाद जाने के लिए निकल पड़े और में ऑफिस के लिये. उस दिन ऑफिस में एक कलीग की शादी थी सब लोग शाम को वहां जाने वाले थे. मुझे भी जाने के लिए कहा, में मना किया तोह वह लोग बताया की मेरा भी इनविटेशन है. वह कलीग एक हप्ते से छुट्टी लिया है, इस लिए मुझसे मुलाकात हुआ नहीं अब तक, पर उन्होंने फ़ोन करके मेरा जोईनिंग का खबर पाके मुझे भी जाने के लिए रिक्वेस्ट किया. वह मेरा की सेक्शन का कलीग है. नहीं जाउँगा तोह बाद में क्या सोचेग. इस्स लिए में भी उन सब के साथ शाम को शादी में गया.
आज तक में सब गुजराती शादी ही देखते आया. आज पहली बार और दूसरे कोम की शादी देखने को मिला. ऑफिस कलीग्स सब एक जगह पे बैठे है. और कोई कोई ड्रिंक भी कर रहे है, में आज तक कोई नशा किया नही. मुझे वह सब कभी अट्रॅक्ट नहीं किया. एक दो बार टेस्ट किया. पर परमानेंटली आदत नहीं बनाया. दूल्हा यानि की मेरा कलीगसे परिचय हुआ. दुलहन से भी मिल लिया. मैं अकेला बैठा था , सब को देख रहा था बैठे बैठे यहाँ एक नया अनुभुति हुआ. मुझे यहाँ सब लोग एक इंडिविजुअल पर्सन जैसा ट्रीट कर रहा है. आजतक जहाँ भी गया शादी में, पूरी फॅमिली के साथ जाते थे. यहाँ अकेला अपना एक नया परिचय के साथ, एक अलग रेस्पेक्ट के साथ बैठा हुण. अच्छा लगा...कयूं की में बड़ा हो गया. मुझे ऐसा लगा की में भी रिस्पांसिबिलिटी लेने के लायक हो गया हुण
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Re: मिस्टर & मिसेस पटेल (माँ-बेटा:-एक सच्ची घटना)

Post by naik »

very beautiful update mitr
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SATISH
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Re: मिस्टर & मिसेस पटेल (माँ-बेटा:-एक सच्ची घटना)

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ओफिस का एक कलीग उसकी गाड़ी में मुझे घर छोड़ गया. मैं अंदर आते ही एक अजीब फीलिंग्स हुआ. यह घर आज से मेरा. मेरा ही रूल्स चलेगा यहा. जो भी करुण, जैसे भी करूण, कोई नहीं है रोक्ने के लिये. किसी से डरके कुछ करने की भी जरुरत नहि. पर सच यह भी है की में जिस तरह से बड़ा हुआ, मेरा परवरिष जैसे हुआ, जो वैल्यूज और मोरालिटी मुझ में है...वह सब मुझे हर तरह का बुरा काम करने से बचायेगा. हर बुराई से रक्षा करेंगा. यह मेरा घरवालों भी जानते है. पर फिर भी मुझे इस घर का मालिक लगने लगा.
मेरा दिमाग में आया की में भी इस तरह एकदिन शादी करुन्गा. मुझे ऎसी एक लड़की दुल्हन के रूप में मिलेगा. सब मेरे शादी पे आयेंगे. फिर मेरा खुद का फॅमिली बनेगा. यह सब सोचते सोचते में फ्रेश होके , कपड़े चेंज करके मेरा कम्प्यूटर ऑन किया. एक हप्ता बाद मुझे आज एकांत में मेरा पीसी के साथ टाइम मिला. मैं मोबाइल उठाके माँ से बात करने लगा. मैं आज का दिन कैसे गया बताया. शादी पे गया था , वह बात भी बताया.. माँ भी ऐसे इधर उधर की बात पूछ रहे थी. मैं मेरा पीसी का सीक्रेट फोल्डर खोल के माँ की तस्वीर देख रहा था और साथ में माँ से बात कर रहा था. मुझे अच्चा लग रहा था. जैसे उनसे में फेस टू फेस बात कर रहा हूण. वह कुछ भी बोलने के टाइम कैसे कैसे उनका अदा या पोस्चर क्या होता है, मुह, आंख, नाक कैसे रियेक्ट करते है , सब में जनता था. और उनकी बात सुनते सुनते में वैसा पिक्स देख रहा था. इस्स लिए मुझे लाइव कन्वर्सेशन जैसा मेहसुस हुआ. मैं एक सकुन और ख़ुशी की फीलिंग्स में डुबा हुआ था. थोड़ी देर बाद मेरा मन में एक अजीब प्यार आने लगा माँ के लिये. पर में उस को दबा के माँ से बात कंटिन्यू करने लगा. उनके सामने में वह ज़ाहिर नहीं कर सकता था किसी भी हाल में. सो मेरा बदन सिरसिर करने लगा. और तभी माँ बात ख़तम करके गुड नाईट कहके फोन काट दिया. मुझे एक नशा लग गया. आज इतना दिन बाद मेरा माँ का सुन्दर चेहरा का फोटोज और हर पोज़ में उनकी अलग अलग अदा देख के में धीरे धीरे उत्तेजित होने लगा. ७ दिन का इमोशन आज भर भर के रोम रोम में छाने लगा. मैं सपनो जैसा एक दुनिया में पहुच गया और माँ का तस्वीर गौर से देखने लगा. अचानक शाम को देखी हुई दुल्हन का चेहरा मेरी नज़र के सामने आने लगा. मैं माँ को देखते देखते वह दुल्हन की कल्पना किया. और मेरा पूरा बदन कापने लगा. मैं जोर जोर से स्वास छोड़ने लगा. मेरा राईट हैंड न जाने कब मेरा पेनिस को हिलने शुरू कर दिया. मैं माँ की एक मुस्कुराती हुई फोटो को नज़्दीक जाके देखने लगा. और ऐसे लगा की मेरा माँ ही उस दुल्हन का सज में है. वह दुल्हन की जैसे सज धज के मेरे तरफ देख के मुस्कुरा रही है. मेरे खून में ाग लग गायी. आज एक नया अनुभुति होने लगा. मैं जोर जोर से हिलने लगा. मेरा पेनिस का कैप अभी से एकदम फूल के गोल होगये. मैं चेयर में सीधे बैठके दो पेअर को पूरा फैला दिया टेबल के नीच. सामने माँ का फोटो और दिमाग में दुल्हन का बेष में माँ को कल्पना करके मेरा ओर्गास्म चरम सीमा पर आगया. मैं आँख बांध कर लिया. स्वस और गरम हवा छोङे लगा. मैं माँ को दुल्हन के रूप में कल्पना करके मेरा ओर्गास्म में पहुच गया. और में फुल स्ट्रोक के साथ साथ फुली हुई कैप को मुठ्ठी में ले लेके जोर जोर से हिलने लगा. जब मेरा सीमेन निकलने वाला है तब मेरा मुह से केवल ''मंजू.....मंजू...मंजू..." शब्द निकलने लगा. और अचानक मेरा दिमाग में अँधेरा फैलाके मेरा गरम गरम सीमेन चिरिक चरिक से निकलने लगा.

१५ दिन बाद २ण्ड वीकेंड में में अहमदाबाद गया. माँ बेसब्री से मेरा इंतज़ार कर रही थी. कल रात फ़ोन पे वह मुझे बार बार पूछ रही थी की में कितने बजे का ट्रैन से आउंगा. कब पहुँचूंगा अहमदाबाद और ढेर सारे सवाल. तभी मुझे एह्सास हुआ की ज़िन्दगी में पहली बार १५ दिन तक में माँ से और माँ मुझसे दूर है. नानी जी ने दरवाजा खोलके मुझे वहीं गले लगा लिया. पीछे नाना जी खड़े थे. वह भी ख़ुश होकर मुझसे बात करने लगे. मैं अंदर आया. और अपना बैग कन्धे से उतार के नीचे रखा. माँ उन सब के पीछे खड़े होक मुझे देख रही थी. उनकी प्यार भरी नज़रों से जो ममता और अपना बेटे के लिए उदबेग और ख़ुशी नज़र आया, वह देख के मेरा दिल पिघल ने लगा. वह ऐसी एक सुंदरता और शान्ति की मूर्ति है, जिसको में ज़िन्दगी भर बिना पलक झपकाये देख सकता हू. माँ हमेशा घर पे साड़ी ही पहनती है. बहुत रेस्पेक्टफ़ुल्ली ड्रेस चूनती है और पहनती भी वैसेहि. रख धक् के ड्रेस पहन ना उनको पसंद था और कोई भी ड्रेस चुनती थी जो उनको पूरी तरह से धकके रखे. बचपन से में देखा केवल उनकी इनोसेंट फेस और नाक, पीछे का सुडौल गर्दन, एल्बो से नीचे का हाथ का हिसा, दोनों हाथ में दो सोने का चूडि, और लंबी लंबी गोल गोल उँगलियाँ , उन्होंने लेफ्ट हाथ की उँगलियाँ में हल्का सा लाइट कलर नेल पोलिश लगातीकभी कभी. मैं कभी कभी चुपके उनका पेट् का थोड़ा पोरशन देखा था, जो एकदम गोरा, मुलायम और फ्लैट था, यानि की उनका पेट् का जो हिस्सा मुझे नज़र आता है उसमे कोई फैट जमा नहीं आज तक्. पेट् नीचे जाके पतली कमर में समां गया. और साथ में स्लिम बॉडी होने के कारन उनका उम्र कभी पता नहीं लगता था. कोई भी देखता था तोह उनको २० - २२ साल की लड़की सोचता था. कोई नहीं बिस्वास करता था की वह मेरा माँ है और उनकी उम्र अब ३६ है. उनका पैर मुझे सबसे ज़ादा आकर्षित करता था. ऐसा सुन्दर छोटी छोटी मुलायम पैर और हल्का नेल पोलिश वाली उंगलिया देखके मुझे हमेशा एक नशा आजाता है. इस औरत को में जितना देखता हू, मेरा देखना कभी सम्पूर्ण होता नही. जितना जानता हूँ फिर भी लगता है में उन्हें पूरी तरह जान नहीं पाया. यह सबकुछ उनके लिए मेरे दिल में प्यार और रेस्पेक्ट बढा देता है. हमेशा उनके लिए एक अलग अनुभुति मेरे मन में छा जाता है. नाना-नानी पैर पढ़ने के बाद में माँ के पास गया . मैं भी उनसे मिलने के लिए बेताब था. मैं उनके पैर छुये. मैं जैसे ही खड़ा हुआ वह मुझको पकड़ के मेरे गले लगना चाही . पर उनका सर मेरे शोल्डर पे टिक गया. और दोनों हाथ से वह मुझे पीछे से बेडी लगाके कसके पकड़ली. वह इतने दिन की दूरि मुझसे ऐसे गले लगा के पूरी कर रही है. नाना - नानी हास्के बोलने लगे की "क्य मंजू...बेटे को और जाने नहीं देगी क्या?" माँ मेरे नज़्दीक रहकर, उनका ही हिस्सा, उनका ही खून, जो आज एक नौजवान पुरुष बन गया, उस को मेहसुस कर रही है एक अपने स्नेह के साथ.

रात को डिनर के टाइम हमेशा की तरह सब लोग खाने बैठे. हमारे परिवार में सब डिनर एकसाथ करते थे. माँ जनरली सर्व करती है पर कभी कभी वह भी साथ में बैठ जाती थी और सेल्फ सर्विस चलता था. सब हसि मज़ाक़ और मस्ती के साथ वह पल बिताते है. आज भी सब लोग बैठे. माँ सर्व कर रही है. मैं पिछला ५ घंटे से आया. तब से सब लोग मेरे पीछे पड़ गये. मेरा शरीर और हालत १५ दिन में सुख सा गया, ऐसा लगा उन लोगों को. उनको लगता है में खाना नहीं खाया इन १५ दिन. बार बार पूछ रहे है ऑफिस में क्या खता हूण. वह खाना सप्लाई करनेवाला आदमी ठीक से खाना देता है क्य, में उसको ठीक से खाता हुन या नही. एक लौता पोता और एक लौते बेटे के लिये.. सब चिन्ता थी, यह में मेहसुस कर रहा था.

मा आज मेरे लिए मेरा सब पसन्दीदा खाना बनायीं है. ऐसा लगा माँ मुझे एक दिन में सब कुछ खिलाके पूरी हप्ते की कमी बराबर करना चाहती है. पर में माँ को दुःख नहीं पहुचाना चाहता था, इस लिए सब चाट पूस के खा लिया. मालूम है इससे माँ को ख़ुशी मिलेगी. उनकी ख़ुशी के लिए में कुछ भी कर सकता था.

ऐसेही ही ज़िन्दगी चल्ने लगा. वीकडेस में सब से दूर रहके काम करना. अपनी देख भाल खुद ही करना. माँ से फोन पे बात करना ..यह सब एक रूटीन बन रहा था. फिर वीकेंड में घर जाने में एक ख़ुशी महल बन जाता था. फिर सब का प्यार , ममता, सनेह और मेरे बारे में उनलोगों का चिंता के साथ दो दिन बिताके फिर वापस आना. ऑफिस में धीरे धीरे काम का प्रेशर बढ़ ने लगा. इस्स लिए शायद सच मुछ मेरे शरीर पे इस का प्रभाव पड़ने लगा. फिर से वीकेंड आया और में घर वापस आया. मेरी हालत देखके सब परेशान हो गए. माँ केवल पूछा में खाना खता हु क्या टाइम पे. उनके आँखों में एक ममता भरा चिन्ता दिखा. नाना नानी ज़ादा सोच में पड़ गये.

कईसे दो महिना कट गया मेरा ऑफिस मे. अब में कभी कभी मेरे सीनियर के साथ साइट में भी जाने लगा. मेरा काम में फुर्ती देख के सब मुझे और अच्चा करने का होसला देता है.
मैन जब यह सब साइट विसीत, नया नया चल्लेंजिंग काम करके अपना पैर जमा रहा था तब मेरे घर अहमेदाबाद में और कुछ चल रहा था.

उधर का बाते मुझे बाद में मालूम चला था..”कैसे क्या हुआ था?


नाना नानी इतना परेशान था मेरा हालत को लेके की उन लोगों ने मेरा इस प्रॉब्लम का सलूशन ढूँढ़ना सुरु कर दिया. वह दोनों रात में सोटे टाइम आपस में बात करने लगा. पहले यह तय किया की मेरी माँ मेरा पास जायेगी और मेरे साथ रहके मेरा देख भाल करेंगे. माँ को भी प्रॉब्लम नहीं होना चाहिए क्यों की वह हमेशा अपने बेटे के लियेही सब कुछ छोड़के आज ऐसा एक ज़िन्दगी चुना. तोह वह भी इस में खुश होके मेरे पास रहना पसंद करेंगे. फिर वह लोग सोचे की में अब २० साल का हो गया. बाकि सेम उम्र के लड़कों से में थोड़ा म्याचूर्ड भी दीखता हूण. साथ में जॉब करता हूण. अच्छा सैलरी भी मिल रहा है. साथ में नानाजी का सब कुछ मेरा ही है. और कोई वारिस नहीं मेरी माँ छोडकर. सो आखिर सब कुछ मेरे पास ही आयेगा. सो यह सब काउंट करेंगे तोह मेरे लिए आच्छे घर की एक अच्छी सुन्दर सुशिल लड़की मिल जाएगी. नाना नानी यह सोचे की जब ज़िन्दगी में शादी करवाना है और अब इस प्रॉब्लम का हल ढूँढ़ना है , तब क्यों ना अभी उसके लिए लड़की ढुंडके शादी न करवा दिया जाए. यह तरीका उनको सही लगा. पर जब नानी जी थोड़ा टाइम चुप रह, कुछ बोल नहीं रही थी तब नाना जी पूछे उनको की क्या कोई गलत सोचा वह लोग? नानी जी तब बोलने लगी की नहीं गलत कुछ नही. पर आज हीतेश का शादी करवाके उसका लाइफ सेट हो तो जाएगा. पर हम और कितने दिन जियेंगे? नानाजी ६० क्रॉस कर चुके है और नानीजी भी दो चार साल में ६० टच कर लेगी. वह लोग और जीतना दिन है, तब तक ठीक है. पर वह लोग जानेके बाद उनकी बेटी मंजु बिलकुल अकेली हो जाएगी. हीतेश है एक सहारा. पर बीवी आनेके बाद सब बेटा बीवी का ही हो जाता है. बीवी की ही सुनता है. तब माँ का सुन्ना , माँ का ओबीडियन्ट बेटा बनके रहने में बहुत सारा झमेला आजाता है. बीवी अपने पति के ऊपर और किसी का अधिकार सह नहीं सकती. बीवी हमेशा अपनी फॅमिली की लग़ाम अपनेहि हाथ में रखना चाहती है. अपनी सास, जो उसका पति को पाल पोश के आज इस लायक बनाया, उनको भी वहां घुसना पसंद नहीं करती. बेटा कितना भी चाहे, अपनी बीवी के खिलाफ जाना मतलब अपनी ही पैर में कुल्हाड़ी मारना यह समझ जाता है. इस्स लिए सब जानके भी शान्ति रखने के लिए दिल पे पथ्थर रखके सब कुछ मानने की कोशिस करते है. पर जो औरत अपने बेटे के लिए पूरी ज़िन्दगी विसर्जन दि, दोबारा अपनी ज़िन्दगी में सब कुछ पाने के मौके को अपने ही हाथ से गवाया केवल अपने बेटे का मुह देखके, जो अपनि पूरी जिंदगी की ख़ुशी अपने बेटे में ही ढूंडा--उस औरत के साथ अगर ऐसा होगा तोह इस दुनिया में अकेली कैसे जी पाएंगे? नानीजी ने बोला की जब तक हम इस दुनिया में है तब तक ठीक है. पर हमारे जाने के बाद कौन देखेगा उसको उसके बुढ़ापे मे. वह लोग जानता है हीतेश ऐसा लड़का नही. उसका परवरिश भी उस तरह हुआ नही. बचपन से वह सब कुछ देखते आया. हमारा प्यार, बॉन्डिंग वह अछि तरह से मेहसुस करते आया. वह कभी अपनी माँ को दुःख देगा नही. बिना बाप की ज़िन्दगी में वह अपनी माँ से जो प्यार, माँ की ममता उसको मिली है, उसमे कभी बाप की कमी शायद मेहसुस नहीं किया होगा. हा..यह बात सच है की उसने कभी किसीको 'पापा' कह के बुलाने का सौभाग्य प्राप्त नहीं कर पाया. नाना नानी बचपन से सब कुछ सपोर्ट देके आज ऐसा एक इंसान बनाया उसको. पर है तो वह एक लौता. उसी से ही इस खानदान की अगली पीढी आयेगा. इस्स लिए उसको शादी भी करना पडेगा. उसको अपने लिए बीवी भी चुननी पड़ेगी. आज कल की लड़की होते भी सब ऐसेही. अपना पति और अपने बच्चो को ही अपना दुनिया मानता है. परिवार के बाकि सब को लेके जो एक फॅमिली बनता है, और उसमे जो सुख मिलता है , वह सब आज कल की लड़की लोगों की मानसिकता में नहीं है. धीरे धीरे समाज ब्यबस्ता और शिक्षा का हाल भी दूसरी तरफ जा रहा है. सब इधर उधर भटक रहा है लगता है. कोई भी किसी भी दिशा में भाग रहा है. न इस पीडी का कोई लक्ष है न कोई भविष्य. नाना नानी यह सोच के मायुस हुआ की अगर वह लोग तभी माँ का न सुनके अगर उनका शादी फिर से करवा देते तोह आज यह दुश्चिंता उनलोगो को सताता नहीं . तब बाहर का कोई आदमी आके हमारि फॅमिली को अलग कर देंगा, हीतेश को उस से दूर कर देगा, हम को अकेला करके चले जायेंगे---यह सब सोच के उनकी बेटी अपना ज़िन्दगी का सब ख़ुशी अपने ही हाथ से दूर फ़ेक दिया. और आज वह घडी आगया फिर से वैसे एक परिस्थिति आनेका. आज एक लड़की इस फॅमिली में बहु बनके आयेगा. वह आके कैसे बर्ताव करेगी अपने सास से, अपने पति के नाना नानी से, यह सब सोच ते उनको दिल पे काला मेघ छा ने लगता है. लेकिन करे तो करे कया. शायद एहि दुनिया का नियम. आप जीस प्रॉब्लम से दूर भागते हो, वह प्रॉब्लम आगे आपके लिए वेट कर रहा है आपसे गले लगाने के लिये. यह सब चिंता में से वह लोग डूबे रहते थे. और हर रोज सोने के टाइम दो बूढ़ा बूढी एहि डिस्कुस करने लगे. ऐसे ही एक दिन उनलोगों के दिमाग में यह सब के अलावा और एक सोलुशन नज़र आया. पहले वह लोग खुद ही थोड़ा आचर्यचकित हो गए थे. बाद में बातों बातों में सब कुछ सही लगा. लगा के, सब ठीक विचार करके, सब का भलाई सोचके, सब का फ्यूचर का कुछ प्लानिंग ठीक करके धीरे धीरे एक फैसले में पहुच चुके. आखिर में उस बारे में बहुत उँछनिछ बाते होने के बाद नाना नानी एक डिसिशन पे पहुचे. लेकिन तब भी वह लोग भी नहीं जानते थे की सच में यह मुमकीन होगा या नही. और होगा भी तो उस के लिए किसको क्या क्या करना पड़ेगा, क्या सैक्रिफाइस करना पड़ेगा , या किस तरीके से मुमकीन होगा यह वह लोग बिलकुल नहीं जानते थे.
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jay
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Re: मिस्टर & मिसेस पटेल (माँ-बेटा:-एक सच्ची घटना)

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