दोस्त बहुत ही मस्त जा रही हैं कहानी
अगले भाग की प्रतीक्षा में
हसीन गुनाह की लज्जत 2
- rajababu
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Re: हसीन गुनाह की लज्जत 2
मित्रो मेरे द्वारा पोस्ट की गई कुछ और भी कहानियाँ हैं
( नेहा और उसका शैतान दिमाग..... तारक मेहता का नंगा चश्मा Running) भाई-बहन वाली कहानियाँ Running) ( बरसन लगी बदरिया_Barasn Lagi Badriya complete ) ( मेरी तीन मस्त पटाखा बहनें Complete) ( बॉलीवुड की मस्त सेक्सी कहानियाँ Running) ( आंटी और माँ के साथ मस्ती complete) ( शर्मीली सादिया और उसका बेटा complete) ( हीरोइन बनने की कीमत complete) ( चाहत हवस की complete) ( मेरा रंगीला जेठ और भाई complete) ( जीजा के कहने पर बहन को माँ बनाया complete) ( घुड़दौड़ ( कायाकल्प ) complete) ( पहली नज़र की प्यास complete) (हर ख्वाहिश पूरी की भाभी ने complete ( चुदाई का घमासान complete) दीदी मुझे प्यार करो न complete
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Re: हसीन गुनाह की लज्जत 2
बढ़िया अपडेट के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
अगले अपडेट का इंतज़ार रहेगा
अगले अपडेट का इंतज़ार रहेगा
मांगलिक बहन....एक अधूरी प्यास- 2....Incest सपना-या-हकीकत.... Thriller कागज की किश्ती....फोरेस्ट आफिसर....रंगीन रातों की कहानियाँ....The Innocent Wife ( मासूम बीवी )....Nakhara chadhti jawani da (नखरा चढती जवानी दा ).....फिर बाजी पाजेब Running.....जंगल में लाश Running.....Jalan (जलन ).....Do Sage MadarChod (दो सगे मादरचोद ).....अँधा प्यार या अंधी वासना ek Family ki Kahani...A family Incest Saga- Sarjoo ki incest story).... धड़कन...
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Re: हसीन गुनाह की लज्जत 2
बहुत ही शानदार अपडेट है दोस्त
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`·.¸.·´ -- Raj sharma
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Re: हसीन गुनाह की लज्जत 2 complete
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पिशाच की वापसी(running])
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लंगडा प्रेत(coming soon)
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Re: हसीन गुनाह की लज्जत 2 complete
मैंने अपना हाथ पैंटी के अंदर ही हथेली का एक कप सा बना कर, जिसमें मेरी चारों उंगलियां नीचे की ओर थी वसुन्धरा की तपती जलती योनि पर रख दिया.
“आ … आ … आ … आह!” उत्तेजना-वश वसुन्धरा ने मेरी उँगलियों पर ज़ोर से काट लिया. मैंने फ़ौरन अपना हाथ वसुन्धरा के मुंह से निकाल लिया और उसी हाथ से वसुन्धरा के दोनों उरोजों से खिलवाड़ करने लगा.
वसुन्धरा की योनि से कामरस का अत्यधिक प्रवाह हो रहा था. मेरा हाथ वसुन्धरा के योनि-रज से पूरा सन गया था. लगता था कि वसुन्धरा एक-आध बार स्खलित भी हो चुकी थी.
मैंने अपने बाएं हाथ की मध्यमा उंगली को योनि के निचले सिरे से शुरू कर के, योनि की दरार के ऊपर-ऊपर, अंदर की ओर मोड़ना शुरू किया। तत्काल वसुन्धरा के जिस्म में थिरकन सी होने लगी. मेरी उंगली का सिरा तो योनि की दरार के ऊपरी हिस्से पर स्थित चने के दाने के साइज़ के भगनासे पर आ कर ठहर गया लेकिन वसुन्धरा के मुंह से जोर-जोर से कराहें … कराहें क्या एक तरह से चीखें निकलने लगी.
” रा..!..! …!..ज़! सी … ई … ई … ई! … उफ़..फ़..फ़ … बस..! मर गयी … मैं..!!! … सी..सी..सी … आह … ह … ह … ह!”
अब तक तो मेरी उंगली ने वापसी का सफर शुरू कर दिया था.
” राज … बस … बस … बस करो … नईं..ईं … ईं … और आगे नहीं … आ … ह …! आ … आ … आ … ह … आह …!!!”
लेकिन इन चीखों का कोई मोल नहीं था, ये चीखें आनन्द … बल्कि परमानन्द वाली थी. धीरे-धीरे मेरी उंगली वसुन्धरा की योनि के निचले सिरे पर वापिस अपने मुकाम तक पहुंची और फिर उसने योनि की दरार के साथ-साथ ऊपर की ओर दोबारा गश्त शुरू कर दी. मध्यमा उंगली से सितार बजाने की सी जुम्बिश मैंने बारह-पंद्रह बार दोहरायी. वसुन्धरा के मुंह से निकलने वाली सिसकारियाँ बदस्तूर जारी थी.
अभी तक तो मैं वसुन्धरा की योनि से सिर्फ हल्की-फ़ुल्की छेड़-छाड़ ही कर रहा था ताकि वसुन्धरा आगे की काम-केलि की परम काम-उत्तेजना को सहन करने लायक हो जाए. अभी तक मैंने अपनी उंगली से वसुन्धरा की योनि को हल्का सा भी कुरेदा नहीं था.
लेकिन अब वक़्त आ गया था कि थोड़ा आगे बढ़ा जाए. मैंने अपनी तर्जनी उंगली और अनामिका उंगली से वसुन्धरा की योनि की दरार को ज़रा सा फैलाया और इस बार भगनासा की ओर बढ़ती मेरी मध्यमा उंगली, वसुन्धरा की योनि की दरार के ऊपर नहीं अपितु योनि की पंखुड़ियों के जरा सी अंदर-अंदर ऊपर को उठ रही थी.
वसुन्धरा के मुंह से निकलती आहों-कराहों में भयंकर वृद्धि हो गयी थी. जैसे ही मेरी उंगली से वसुन्धरा की योनि के शीर्ष पर सजे भगनासा को छुआ, मैंने अपने अंगूठे और उंगली के बीच में लेकर भगनासा ज़रा सा मसल दिया.
वसुन्धरा का शरीर पलंग से करीब फुटभर उछला- हे राम! रा … आ … अ … ज़! मर गयी … मैं! उफ़..फ़..फ़ …!
मेरी प्रेयसी की योनि ने तत्काल बहुत सारा काम-रस छोड़ा. वसुन्धरा ने तत्काल रजाई परे फेंक मारी और हाँफते हुए अपना बायां हाथ अपनी पैंटी के अंदर लेजा कर मेरे बाएं हाथ पर रखकर उसे अपने योनि से जबरन उठाने की कोशिश करने लगी.
अब इंसान की सारी कोशिशें तो कामयाब नहीं होती न … तो वसुन्धरा की यह कोशिश भी कामयाब नहीं हुई. लेकिन इस धींगा-मुश्ती में वसुन्धरा का जिस्म करवट लिए होने की बजाये बिस्तर पर सीधा हो गया और मैं अभी भी दायीं करवट ही था. मैंने मौक़े की नज़ाकत को देखते हुए वसुन्धरा के बाएं निप्पल को अपने मुंह में लिया और चुमलाने लगा.
वसुन्धरा ने तत्काल अपना बायां हाथ मेरे हाथ पर से हटाया और अपने दोनों हाथों से मेरे सर को जकड़ा और मेरे सर को अपने स्तन की ओर दबाने लगी. इधर मैंने अपने बाएं हाथ को वसुन्धरा की योनि से उठा कर हल्के हाथ से वसुन्धरा की पैंटी घुटनों तक उतार दी और फिर उसी हाथ से वसुन्धरा की रेशमी जाँघों पर हाथ फेरते-फेरते, वसुन्धरा के घुटने खड़े करके वसुन्धरा की पैंटी को भी उसकी ड्यूटी से फ़ारिग कर दिया.
और साथ ही उसी हाथ से अपने जॉकी को भी अपने जिस्म से अलग कर दिया.
अब हम दोनों एक से हो गये थे … एकदम नग्न! लेकिन वसुन्धरा को इसका अभी अहसास नहीं था और बिना एहसासों के न तो जिंदगी सार्थक होती है न कामक्रीड़ा. तो मैंने अपने बायें हाथ से वसुन्धरा का दायां हाथ अपने सर पर से उठाया और पकड़ कर नीचे ले जा कर अपने लिंग पर धर दिया.
जैसे ही वसुन्धरा समझ में आया कि उसके हाथ में मेरा कौन सा अंग है, उसका सारा जिस्म ऐसे काँपा जैसे उसे चार सौ चालीस वाल्ट का झटका लगा हो. वसुन्धरा ने तत्काल अपना हाथ मेरे लिंग पर से परे झटकने की कोशिश तो की लेकिन वसुन्धरा के हाथ के ऊपर तो मेरे बायें हाथ की मज़बूत पकड़ अभी भी बनी हुई थी.
“आ … आ … आ … आह!” उत्तेजना-वश वसुन्धरा ने मेरी उँगलियों पर ज़ोर से काट लिया. मैंने फ़ौरन अपना हाथ वसुन्धरा के मुंह से निकाल लिया और उसी हाथ से वसुन्धरा के दोनों उरोजों से खिलवाड़ करने लगा.
वसुन्धरा की योनि से कामरस का अत्यधिक प्रवाह हो रहा था. मेरा हाथ वसुन्धरा के योनि-रज से पूरा सन गया था. लगता था कि वसुन्धरा एक-आध बार स्खलित भी हो चुकी थी.
मैंने अपने बाएं हाथ की मध्यमा उंगली को योनि के निचले सिरे से शुरू कर के, योनि की दरार के ऊपर-ऊपर, अंदर की ओर मोड़ना शुरू किया। तत्काल वसुन्धरा के जिस्म में थिरकन सी होने लगी. मेरी उंगली का सिरा तो योनि की दरार के ऊपरी हिस्से पर स्थित चने के दाने के साइज़ के भगनासे पर आ कर ठहर गया लेकिन वसुन्धरा के मुंह से जोर-जोर से कराहें … कराहें क्या एक तरह से चीखें निकलने लगी.
” रा..!..! …!..ज़! सी … ई … ई … ई! … उफ़..फ़..फ़ … बस..! मर गयी … मैं..!!! … सी..सी..सी … आह … ह … ह … ह!”
अब तक तो मेरी उंगली ने वापसी का सफर शुरू कर दिया था.
” राज … बस … बस … बस करो … नईं..ईं … ईं … और आगे नहीं … आ … ह …! आ … आ … आ … ह … आह …!!!”
लेकिन इन चीखों का कोई मोल नहीं था, ये चीखें आनन्द … बल्कि परमानन्द वाली थी. धीरे-धीरे मेरी उंगली वसुन्धरा की योनि के निचले सिरे पर वापिस अपने मुकाम तक पहुंची और फिर उसने योनि की दरार के साथ-साथ ऊपर की ओर दोबारा गश्त शुरू कर दी. मध्यमा उंगली से सितार बजाने की सी जुम्बिश मैंने बारह-पंद्रह बार दोहरायी. वसुन्धरा के मुंह से निकलने वाली सिसकारियाँ बदस्तूर जारी थी.
अभी तक तो मैं वसुन्धरा की योनि से सिर्फ हल्की-फ़ुल्की छेड़-छाड़ ही कर रहा था ताकि वसुन्धरा आगे की काम-केलि की परम काम-उत्तेजना को सहन करने लायक हो जाए. अभी तक मैंने अपनी उंगली से वसुन्धरा की योनि को हल्का सा भी कुरेदा नहीं था.
लेकिन अब वक़्त आ गया था कि थोड़ा आगे बढ़ा जाए. मैंने अपनी तर्जनी उंगली और अनामिका उंगली से वसुन्धरा की योनि की दरार को ज़रा सा फैलाया और इस बार भगनासा की ओर बढ़ती मेरी मध्यमा उंगली, वसुन्धरा की योनि की दरार के ऊपर नहीं अपितु योनि की पंखुड़ियों के जरा सी अंदर-अंदर ऊपर को उठ रही थी.
वसुन्धरा के मुंह से निकलती आहों-कराहों में भयंकर वृद्धि हो गयी थी. जैसे ही मेरी उंगली से वसुन्धरा की योनि के शीर्ष पर सजे भगनासा को छुआ, मैंने अपने अंगूठे और उंगली के बीच में लेकर भगनासा ज़रा सा मसल दिया.
वसुन्धरा का शरीर पलंग से करीब फुटभर उछला- हे राम! रा … आ … अ … ज़! मर गयी … मैं! उफ़..फ़..फ़ …!
मेरी प्रेयसी की योनि ने तत्काल बहुत सारा काम-रस छोड़ा. वसुन्धरा ने तत्काल रजाई परे फेंक मारी और हाँफते हुए अपना बायां हाथ अपनी पैंटी के अंदर लेजा कर मेरे बाएं हाथ पर रखकर उसे अपने योनि से जबरन उठाने की कोशिश करने लगी.
अब इंसान की सारी कोशिशें तो कामयाब नहीं होती न … तो वसुन्धरा की यह कोशिश भी कामयाब नहीं हुई. लेकिन इस धींगा-मुश्ती में वसुन्धरा का जिस्म करवट लिए होने की बजाये बिस्तर पर सीधा हो गया और मैं अभी भी दायीं करवट ही था. मैंने मौक़े की नज़ाकत को देखते हुए वसुन्धरा के बाएं निप्पल को अपने मुंह में लिया और चुमलाने लगा.
वसुन्धरा ने तत्काल अपना बायां हाथ मेरे हाथ पर से हटाया और अपने दोनों हाथों से मेरे सर को जकड़ा और मेरे सर को अपने स्तन की ओर दबाने लगी. इधर मैंने अपने बाएं हाथ को वसुन्धरा की योनि से उठा कर हल्के हाथ से वसुन्धरा की पैंटी घुटनों तक उतार दी और फिर उसी हाथ से वसुन्धरा की रेशमी जाँघों पर हाथ फेरते-फेरते, वसुन्धरा के घुटने खड़े करके वसुन्धरा की पैंटी को भी उसकी ड्यूटी से फ़ारिग कर दिया.
और साथ ही उसी हाथ से अपने जॉकी को भी अपने जिस्म से अलग कर दिया.
अब हम दोनों एक से हो गये थे … एकदम नग्न! लेकिन वसुन्धरा को इसका अभी अहसास नहीं था और बिना एहसासों के न तो जिंदगी सार्थक होती है न कामक्रीड़ा. तो मैंने अपने बायें हाथ से वसुन्धरा का दायां हाथ अपने सर पर से उठाया और पकड़ कर नीचे ले जा कर अपने लिंग पर धर दिया.
जैसे ही वसुन्धरा समझ में आया कि उसके हाथ में मेरा कौन सा अंग है, उसका सारा जिस्म ऐसे काँपा जैसे उसे चार सौ चालीस वाल्ट का झटका लगा हो. वसुन्धरा ने तत्काल अपना हाथ मेरे लिंग पर से परे झटकने की कोशिश तो की लेकिन वसुन्धरा के हाथ के ऊपर तो मेरे बायें हाथ की मज़बूत पकड़ अभी भी बनी हुई थी.