Erotica साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन complete

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naik
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Re: साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन!

Post by naik »

😖 for the new story brother
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kunal
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Re: साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन!

Post by kunal »

सुनीता के लिए यह बहुत बड़ा सदमा था। सुनीता की माताजी का कुछ समय पहले ही देहांत हुआ था। पिताजी ने कभी सुनीता को माँ की कमी महसूस नहीं होने दी। सुनील अपनी पत्नी सुनीता को लेकर अपने ससुराल पहुंचा। वहाँ भी सुनीता के हाल ठीक नहीं थे। वह ना खाती थी ना कुछ पीती थी। पिताजी के क्रिया कर्म होने के बाद जब वह वापस आयी तो उसका मन ठीक नहीं था। सुनील ने सुनीता का मन बहलाने की बड़ी कोशिश की पर फिर भी सुनीता की मायूसी बरकरार थी। वह पिता जी की याद आने पर बार बार रो पड़ती थी।

जब यह हादसा हुआ उस समय कर्नल साहब और उनकी पत्नी ज्योति दोनों ज्योति के मायके गए हुए थे। ज्योति अपने पिताजी के वहाँ थोड़े दिन रुकने वाली थी। जिस दिन कर्नल साहब अपनी पत्नी ज्योति को छोड़ कर वापस आये उसके दूसरे दिन कर्नल साहब की मुलाक़ात सुनील से घर के निचे ही हुई। कर्नल साहब अपनी कार निकाल रहे थे। वह कहीं जा रहे थे। सुनील को देख कर कर्नल साहब ने कार रोकी और सुनील से समाचार पूछा तो सुनील ने अपनी पत्नी सुनीता के पिताजी के देहांत के बारे में कर्नल साहब को बताया। कर्नल साहब सुनकर काफी दुखी हुए। उस समय ज्यादा बात नहीं हो पायी।

उसी दिन शामको कर्नल साहब सुनील और सुनीता के घर पहुंचे। ज्योति कुछ दिनों के लिए अपने मायके गयी थी। सुनील ने दरवाजा खोल कर कर्नल साहब का स्वागत किया। कर्नल साहब आये है यह सुनकर सुनीता बाहर आयी तो कर्नल साहब ने देखा की सुनीता की आँखें रो रो कर सूजी हुई थीं।

कर्नल साहब के लिए सुनीता रसोई घर में चाय बनाने के लिए गयी तो उसको वापस आने में देर लगी। सुनील और कर्नल साहब ने रसोई में ही सुनीता की रोने की आवाज सुनी तो कर्नल साहब ने सुनील की और देखा। सुनील अपने कंधे उठा कर बोला, "पता नहीं उसे क्या हो गया है। वह बार बार पिताजी की याद आते ही रो पड़ती है। मैं हमेशा उसे शांत करने की कोशिश करता हूँ पर कर नहीं पाता हूँ। चाहो तो आप जाकर उसे शांत करने की कोशिश कर सकते हो। हो सकता है वह आपकी बात मान ले।" सुनील ने रसोई की और इशारा करते हुए कर्नल साहब को कहा। कर्नल साहब उठ खड़े हुए और रसोई की और चल पड़े। सुनील खड़ा हो कर घर के बाहर आँगन में लॉन पर टहलने के लिए चल पड़ा।


कर्नल साहब ने रसोई में पहुँचते ही देखा की सुनीता रसोई के प्लेटफार्म के सामने खड़ी सिसकियाँ ले कर रो रही थी। सुनीता की पीठ कर्नल साहब की और थी।

कर्नल साहब ने पीछे से धीरे से सुनीता के कंधे पर हाथ रखा। सुनीता मूड़ी तो उसने कर्नल साहब को देखा। उन्हें देख कर सुनीता उनसे लिपट गयी और अचानक ही जैसे उसके दुखों का गुब्बारा फट गया। वह फफक फफक कर रोने लगी। सुनीता के आँखों से आंसूं फव्वारे के सामान बहने लगे। कर्नल साहब ने सुनीता को कसके अपनी बाँहों में लिया और अपनी जेब से रुमाल निकाला और सुनीता की आँखों से निकले और गालों पर बहते हुए आंसू पोंछने लगे।

उन्होंने धीरे से पीछे से सुनीता की पीठ को सहलाते हुए कहा, "सुनीता, तुमने कभी किसी आर्मी अफसर की लड़ाई में मौत होते हुए देखि है?"

सुनीता ने अपना मुंह ऊपर उठाकर कर्नल साहब की और देखा। रोते रोते ही उसने अपनी मुंडी हिलाते हुए इशारा किया की उसने नहीं देखा। तब कर्नल साहब ने कहा, "मैंने एक नहीं, एक साथ मेरे दो भाइयों को दुश्मन की गोली यों से भरी जवानी में शहीद होते हुए देखा है। मैंने मेरी दो भाभियों को बेवा होते देखा है। मैं उनके दो दो बच्चों को अनाथ होते हुए देखा है। और जानती हो उनके बच्चों ने क्या कहा था?"

कर्नल साहब की बात सुनकर सुनीता का रोना बंद हो गया और वह अपना सर ऊपर उठाकर कर्नल साहब की आँखों में आँखें डालकर देखने लगी पर कुछ ना बोली। कर्नल साहब ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, "मैं जब बच्चों को ढाढस देने के लिए गया, तो दोनों बच्चे मुझसे लिपट कर कहने लगे की वह भी लड़ाई में जाना चाहते है और दुश्मनों को मार कर उनके पिता का बदला जब लेंगे तब ही रोयेंगे। जो देश के लिए कुर्बानी देना चाहते हैं वह वह रो कर अपना जोश और जस्बात आंसूं के रूप में जाया नहीं करते।"

कर्नल साहब की बात सुनकर सुनीता का रोना और तेज हो गया। वह कर्नल साहब से और कस के लिपट गयी बोली, "मेरे पिता जी भी लड़ाई में ही अपनी जान देना चाहते थे। उनको बड़ा अफ़सोस था की वह लड़ाई में शहीद नहीं हो पाए।"

कर्नल साहब ने तब सुनीता का सर चूमते हुए कहा, "सुनीता डार्लिंग, जो शूरवीर होते हैं, उनकी मौत पर रो कर नहीं, उनके असूलों को अमल में लाकर, इनके आदर्शों की राह पर चलकर, जो काम वह पूरा ना कर पाए इन कामों को पूरा कर उनके जीवन और उनके देहांत का गौरव बढ़ाते हैं। यही उनके चरणों में हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी। उनके क्या उसूल थे? उन्होंने किस काम में अपना जीवन समर्पण किया था यह तो बताओ मुझे, डिअर?

उनकी बात सुनकर सुनीता कुछ देर तक कर्नल साहब से लिपटी ही रही। उसका रोना धीरे धीरे कम हो गया। वह अपने को सम्हालते हुए कर्नल साहब से धीरे से अलग हुई और उनकी और देख कर उनका हाथ अपने हाथ में ले कर बोली, "कर्नल साहब, आप ने मुझे चंद शब्दों में ही जीवन का फलसफा समझा दिया। मैं आपका शुक्रिया कैसे अदा करूँ?"

कर्नल साहब ने सुनीता की हथेली दबाते हुए कहा, "तुम मुझे जस्सू, कह कर बुलाओगी तो मेरा अहसान चुकता हो जाएगा। "

सुनीता ने कहा, "कर्नल साहब मेरे लिए आप एक गुरु सामान हैं। मैं आपको जस्सू कह कर कैसे बुला सकती हूँ?"

कर्नल साहब ने कहा, "चलो ठीक है। तो तुम मुझे जस्सू जी कह कर तो बुला सकती हो ना?"
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kunal
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Re: साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन!

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सुनीता कर्नल साहब की बात सुनकर हंस पड़ी और बोली, "जस्सूजी, आपका बहुत शुक्रिया, मुझे सही रास्ता दिखाने के लिए। मेरे पिताजी ने अपना जीवन देश की सेवा में लगा दिया था। उनका एक मात्र उद्देश्य यह था की हमारा देश की सीमाएं हमेशा सुरक्षित रहे। उस पर दुश्मनों की गन्दी निगाहें ना पड़े। उनका दुसरा ध्येय यह था की देश की सेवा में शहीद हुए जवानों के बच्चे, कुटुंब और बेवा का जीवन उन जवानों के मरने से आर्थिक रूप से आहत ना हो।"

कर्नल ने कहा, "आओ, हम भी मिलकर यह संकल्प करें की हम हमारी सारी ताकत उन के दिखाए हुए रास्ते पर चलने में ही लगा दें। हम निर्भीकता से दुश्मनों का मुकाबला करें और शहीदों के कौटुम्बिक सुरक्षा में अपना योगदान दें। यही उनके देहांत पर उनकी सच्ची श्रद्धांजलि होगी और उनका सच्चा श्राद्ध होगा।"

सुनीता की आँखों में आँसू आ गये। सुनीता कर्नल से लिपट गयी और बोली, "जस्सूजी, जितना योगदान मुझसे बन पडेगा मैं दूंगी और उसमें आपको मेरा पथ प्रदर्शक और मार्ग दर्शक बनना होगा।"

कर्नल ने मुस्कराते हुए कहा, "यह मेरा सौभाग्य होगा। पर डार्लिंग, मुझमें एक कमजोरी है और मैं तुम्हें इससे अँधेरे में नहीं रखना चाहता हूँ। जब मैं तुम्हारी सुन्दरता, जांबाज़ी और सेक्सीपन से रूबरू होता हूँ तो अपने रंगीलेपन पर नियत्रण नहीं रख पाता हूँ। मैं आपका पूरा सम्मान करता हूँ पर मुझसे कभी कहीं कोई गलती हो जाए तो आप बुरा मत मानना प्लीज?"

सुनीता ने भी शरारती मुस्कान देते हुए कहा, "आप के रँगीलेपन को मैंने महसूस भी किया और वह दिख भी रहा है।"

क्या सुनीता का इशारा कर्नल की टाँगों के बिच के फुले हुए हिस्से की और था? पता नहीं। शायद सुनीता ने जब कर्नल साहब को जफ्फी दी तो जरूर उसने कर्नल साहब का रँगीलापन महसूस किया होगा।

जब सुनीता कर्नल साहब के साथ चाय लेकर मुस्काती हुई ड्राइंग रूम में वापस आयी तो उसे मुस्काती देख कर सुनील को यकीन ही नहीं हुआ की यह वही उसकी पत्नी सुनीता थी जो चंद मिनट पहले अपना रोना रोक ही नहीं पा रही थी। सुनील ने कर्नल साहब की और मुड़ कर कहा, "कर्नल साहब, आपने सुनीता पर क्या जादू कर दिया? मुझे यकीन ही नहीं होता की आपने कैसे सुनीता को मुस्काना सीखा दिया। मैं आपका बहुत बहुत शुक्र गुजार हूँ। सुनीता को मुस्कराना सीखा कर आज आपने मेरी जिंदगी में नया रंग भर दिया है। आपने तो मेरी बिगड़ी हुई जिंदगी बना दी मेरी परेशानी दूर करदी।"

कर्नल साहब ने हंस कर कहा, "सुनील भाई, मैंने सुनीता को हँसता कर दिया है इसका मतलब यह नहीं की आप उस पर अचानक ही चालु हो जाओ। रात को उसे ज्यादा परेशान मत करना। उसे थोड़ा आराम करने देना।"

कर्नल साहब की बात सुनकर सुनील हँस पड़ा। सुनील की पत्नी सुनीता शर्म से अपना मुंह चुनरी में छुपाती हुई रसोई की और भागते हुए बोली, "जस्सूजी अब बस भी कीजिये। मेरी ज्यादा खिचाई मत करिये।"

इसके काफी दिनों तक कर्नल साहब कहीं बाहर दौरे पर चले गए। उनकी और सुनील की मुलाकात नहीं हो पायी। इस बिच सुनीता ने बी.एड. का फॉर्म भरा। सुनीता की सारे विषयों में बड़ी अच्छी तैयारी थी पर उसे गणित में बहुत दिक्कत हो रही थी। सुनीता गणित में पहले से ही कमजोर थी। सुनीता ने अपने पति सुनील से कहा, "सुनील, मैं गणित में कुछ कोचिंग लेना चाहती हूँ। मेरे लिए नजदीक में कहीं गणित का एक अच्छा शिक्षक ढूंढ दो ना प्लीज?"

सुनील ने इधर उधर सब जगह पता किया पर कोई शिक्षक ना मिला। सुनील और सुनीता से काफी परेशान थे क्यूंकि परीक्षा का वक्त नजदीक आ रहा था। उस दरम्यान सुनीता की मुलाक़ात कर्नल साहब की पत्नी ज्योति से सब्जी मार्किट में हुई। दोनों मार्किट से वापस आते हुए बात करने लगीं तब सुनिता ने ज्योति को बताया की उसे गणित के शिक्षक की तलाश थी। तब ज्योति ने सुनीता की और आश्चर्य से देखते हुए पूछा",सुनीता, क्या सच में तुम्हें नहीं मालुम की कर्नल साहब गणित के विषय में निष्णात माने जाते हैं? उन्हें गणित विषय में कई उपाधियाँ मिली हैं। पर यह मैं नहीं कह सकती की वह तुंम्हें सिखाने के लिए तैयार होंगें या नहीं। वह इतने व्यस्त हैं की गणित में किसीको ट्यूशन नहीं देते।"

जब सुनीता ने यह सूना तो वह ख़ुशी से झूम उठी। वह ज्योति के गले लग गयी और बोली, "ज्योतिजी, आप मेहरबानी कर कर्नल साहब को मनाओ की वह मुझे गणित सिखाने के लिए राजी हो जाएं।"

ज्योति सुनीता के गाल पर चूँटी भरते हुए बोली, "यार कर्नल साहब तो तुम पर वैसे ही फ़िदा हैं। मुझे नहीं लगता की वह मना करेंगे। पर फिर भी मैं उनसे बात करुँगी।"

उस हफ्ते सुनीता ने ज्योति और कर्नल साहब को डिनर पर आने के लिए दावत दी। तब कर्नल साहब ने सुनील के सामने एक शर्त रखी। पिछली बार सुनील की पत्नी सुनीता ने कुछ भी सख्त पेय पिने से मना कर दिया था। कर्नल साहब ने कहा की आर्मी के हिसाब से यह एक तरह का अपमान तो नहीं पर अवमान गिना जाता है। कर्नल साहब का आग्रह था की अगर वह सुनील के घर आएंगे तो सुनीताजी एक घूंट तो जरूर पियेंगी।
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