Romance बन्धन

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Jemsbond
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Re: Romance बन्धन

Post by Jemsbond »

(^%$^-1rs((7)
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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Jemsbond
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Re: Romance बन्धन

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गोविन्द और मुनीम जी ने चौंक कर कहा शीला की ओर देखा।

मुनीम जी ने जल्दी से कहा, "मालकिन, साख बनाने के लिए कभी.कभी भी लेना पड़ता है।


"कर्ज वह लेते हैं, जिनके पास कुछ नहीं होता।" शीला मुस्कराई, “हमारे पास तो इतना है कि किसी के आगे हाथ फैलाये बिना हम अपने पैरों पर खड़े हो सकते हैं।"
"लेकिन मालकिन हमारे पास तो कुल इक्कीस हजार रूपए हैं।"

"लगभग बीस हजार रूपए के गहने हैं मेरे पास। और साठ.सत्तर हजार की यह कोठी।"

"शीला...!" गोविन्द ने आश्चर्य से कहा।

"मालकिन," मुनीम जी आश्चर्य से बोले, “आप अपने गहने बेचेंगी? और कोठी बेच देंगी, तो रहेंगी कहां?"

___ "मुनीम जी, "शीला मुस्कराई, “ये गहने और कोठी इस कारोबार से ही तो मिले थे। जब कोठी नहीं थी, तब भी तो हम कहीं न कहीं रहते ही थे। और गहने...। नारी का सच्चा गहना उसका पति होता है। कारोबार शुरू हो गया, तो फिर बन जायेंगें।"

"लेकिन शीला...।"

"जिद न कीजिए, हम लोग किसी किराए के मकान में दिन काट लेंगे। जब भगवान देगा तो कोठी भी बन जायगी और गहने भी। मुनीम जी आप इंतजार कीजिए। सब ठीक हो जाएगा।"

"मगर मालकिन...!"

"आप मेरे पिता के समान हैं मुनीम जी, अगर आप मेरा पक्ष ने लेंगे, तो मुझे दु:ख होगा।"

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"मालकिन...! आप महान हैं...जिस आदमी की पत्नी इतनी महान हो, उसके जीवन में दु:ख की छाया कभी नहीं पड़ सकती।"

"मुनीम जी, आप जाइए और इंतजाम कीजिए।" ‘

"जा रहा हूं मालकिन। आपने मुझे पिता कहा है, इसलिए आपको भी मेरी एक विनती माननी पड़ेगी। मैं आपका नौकर हूं, एक मामली आदमी हूं। मेरा छोटा.सा घर है, जिसमें मैं अकेला ही रहता हूं जब तक आप लोगों को भगवान बंगला बनवाने के योग्य बनाए, तब तक आपको मेरी झोंपड़ी में रहना पड़ेगा। शायद इसी तरह मेरे मन पर पड़ा यह बोझ कुछ हलका होगा कि मैं ही अपने मालिक की बर्बादी का जिम्मेदार हूं।"

मुनीम जी ने जल्दी.जल्दी अपने उमझते आंसू पोंछे और तेजी से बाहर निकल गए।

गोविन्द ने शीला की ओर देखा। शीला मुस्कराकर कहा.

“क्या सोच रहे हैं आप ?"

गोविन्द ने शीला की ओर बढ़ते हुए कहा, “शीला, मैं स्वप्न में भी नहीं सोच सकता था कि मेरी इतनी बड़ी समस्या इतनी आसानी से हल हो जायेगी। सचमुच, मैं बहुत ही भाग्यशाली हूं शीला कि भगवान ने तुम जैसी पत्नी दी है।"

__ "मैं भी तो कम भाग्यशाली नहीं हूं," शीला ने गोविन्द के कंधे से लगकर कहा, "जिसे भगवान ने आप जैसा पति दिया है। न जाने मेरे किन पूर्व.जन्मों के सत्कर्म थे कि भगवान ने पति के रूप में आपको दिया। भगवान से मेरी प्रार्थना है कि वह अगले जन्मों में भी आपको ही मुझे पति के रूप में दें।"

कहते.कहते शीला की आवाज भर्रा गई।

गोविन्द ने उसे सीने से लिपटाते हुए कहा, "रोती हो पगली, भगवान ने चाहा, तो हजारों जन्मों तक हम.तुम साथ रहेंगे। संभव है, पिछले जन्मों में भी साथ रहे हों। मुझे तो ऐसा लग रहा है कि हमारा साथ जन्म.जन्म का है। अगर तुम मुझे न मिल पातीं तो शायद मैं जिन्दा न रह पाता।"

शीला ने जल्दी से गोविन्द के मुंह पर हाथ रख दिया.

"भगवान के लिए ऐसा न कहिए। भगवान आपको हजारों साल की उम्र दें। मेरी उम्र भी आपको लग जाए।"

__ "नहीं शीला, हमारे होने वाले बच्चे को हम दोनों की जरूरत होगी" गोविन्द सहसा विचारों में खो गया, “क्या.क्या सपने देखे थे मैने। लेकिन सब मिट्टी में मिल गए।"


" भगवान ने चाहा तो हमारी हालत फिर वैसी ही हो जायेगी। आप चिन्ता क्यों करते हैं?"
और गोविन्द ने शीला को अपनी बाहों में भर लिया।

___ कमला को ऐसा लग रहा था जैसे उसके कानों में कोई पिघला हुआ सीसा उड़ेल रहा हो। हॉल से स्त्री.पुरूषों मिले.जुले कहकहे
और पश्चिमी संगीत की आवाजें उभरकर चारों ओर गूंज रही थीं।

अचानक क्लाक ने ग्यारह के घंटे बजाए। कमला ने चौंककर क्लाक की ओर देखा।

तभी कमरे के दरवाजे पर शम्भू की आवाज सुनाई दी. मालकिन?"

कमला जल्दी.जल्दी आंसू पोंछने लगी।

शम्भू ने पास आकर कहा, “मालकिन ग्यारह बज चुके हैं। आखिर आप कब तक भूखी बैठी रहेंगी?"

"काबा, जब तक वह खाना न खा लें, मैं कैसे खा सकती हूँ।"

___"मालकिन, जिस आदमी का शराब से ही पेट भरता हो, उसके लिए खाना जरूरी थोड़े ही है।...आप कब तक इस नियम में बंधी रहेंगी। उन्हें आपकी रत्ती भर भी परवाह नहीं। जब से आए हैं, आपसे एक बार भी सीधे मुंह बात नहीं की है। घर की लक्ष्मी को ठुकराकर फिरंगिन के साथ रात भर रंगरेलियां मनाते हैं। सुना है, उससे शादी
करने वाले हैं।"

कमला आंखें फाडकर शम्भू की ओर देखने लगी।

"इसीलिए तो उस फिरंगिन को लिए रात.रात शोर मचाते हैं। क्योंकि आपके होते हुए दूसरी शादी नहीं कर सकते, इसीलिए आपसे किसी.न.किसी तरह पीछा छुड़ाना चाहते हैं।"

तभी शम्भू की कमर पर एक जोरदार लात पड़ी और वह कराह कर कमला के पैरों के पास जा गिरा।
कमला के हलक से चीख निकल गई.

"काका...!"

उसने जल्दी से शम्भू को उठाया। दरवाजे में खड़ा मदन उन दोनों की ओर खूखार

नजरों से देख रहा था। कमला कांप उठी।

“कमीने...कुत्ते...," मदन फुफकारा, "हमारे टुकड़ों पर पलकर हमारे ही ऊपर भौंकता है...हम इस घर के मालिक हैं, जो चाहेंगे, करेंगे। हमें रोकने वाला कौन है? हम अपनी पसन्द से शादी कर रहे हैं। जूली । हमारी होने वाली पत्नी है। इस अनपढ़, गँवार को डैडी जबरदस्ती हमारे सिर मढ़ गये थे। अब हम आजाद हैं। हमने सोचा था कि यह अनाज्ञ है, इसलिए इसे घर में पड़ा रहने देंगे। मगर अब हमारे घर में इसके लिए कोई जगह नहीं है।"
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"नाथ...!" कमला कांप उठी।

"निकल जाओ, तुम दोनों इसी समय यहां से निकल जाओ। हम आस्तीन में सांप नहीं पाल सकते।"

"मालिक...मैं तो नौकर हूं, निकल जाऊंगा, लेकिन मालकिन तो आपकी पत्नी है।"

"बको मत, हमारा इस अनपढ़ गंवार से कोई सम्बन्ध नहीं। निकल जाओ यहां से। वरना दोनों को मार.मारकर निकाल दूंगा।"

"नहीं नहीं, मैं नहीं जाऊँगी।" कमला पीछे हटती हुई बोली।

__ “जायेगी कैसे नहीं...तेरे तो फरिश्ते भी जायेंगे" मदन आगे बढ़ा।

“भगवान के लिए मुझे अपने चरणों से दूर मत कीजिए,” कमला गिड़गिड़ाई, "मैं आपके किसी काम में दखल नहीं दूंगी...मैं आपकी दासी बनकर रहूंगी...भगवान के लिए मुझे मत निकालिए।"

"नहीं, तेरे लिए अब इस घर में कोई जगह नहीं है।"

मदन कमला को खींचने लगा। कमला रोती गिड़गिड़ाती रही। मदन उसे खींचकर सदर दरवाजे पर ले आया और उसे बाहर धकेल दिया। कमला लड़खड़ाकर बाहर बरामदे में जा गिरी।

शम्भू चीख उठा.

"मालकिन...।"

कमला दरवाजा खुलने के स्थान पर अंदर से कहकहे और संगीत सुनाई दिया।

"यह क्या हो गया काका!...अब क्या होगा?...मैं कहां जाऊंगी?"

"बेटी," शम्भू ने भर्राई आवाज में कहा."तुम इस दुनिया में अकेली नहीं हो बेटी, मैंने वर्षों इस घर का नमक खाया है। और इस घर के सम्मान की रक्षा की है।"

"काका...!"

कमला बिलख.बिलखकर रोने लगी।

शम्भू ने उसके सिर पर हाथ फेरकर तसल्ली देते हुए कहा, “मत रो बेटी, मत रो...चल, इस जहर भरी हवा में सांस लेना भी पाप है।"

कमला शम्भू के पीछे.पीछे चल दी।

अंदर मदन और जूली के कहकहे गूंज रहे थे।

टैक्सी एक छोटे.से मकान के सामने जा रूकी। मुनीम जी ने उतरकर किराया चुकाया।

और शीला और गोविन्द को लेकर मकान के अंदर चला गया। मुनीम जी के चेहरे पर प्रसन्नता फूटी पड़ रही थी। उसने हाथ जोड़कर कहा."मालिक, यही गरीब की झोंपड़ी है। यहां आपको वह आराम तो नहीं मिलेगा, जो कोठी मे मिलता था, लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि भगवान ने आपकी सेवा का अवसर देकर मुझे स्वर्ग दे दिया है।"

"मुनीम जी, "गोविन्द ने मुनीम जी के कंधे पर हाथ रखकर मुस्कराते हुए कहा, "यह झोंपड़ी तो हमारे लिए महल से बढ़कर
मुनीम जी ने अपने आंसू पोंछते हुए कहा, “अच्छा मालिक, अब आप लोग आराम कीजिए, मैं आपका सामान ले आऊं।"

मुनीम के जाने के बाद गोविन्द की ओर देखकर शीला ने मुस्कराते हुए कहा, “आप क्या सोचने लगे?"

__ "सोच रहा हूं, भाग्य की कैसी विडम्बना है। जब तुम्हें अच्छी जगह और आराम की जरूरत थी, हमें यहां आना पड़ा है।"

ऐसी बातें न सोचिये, सभी स्थान भगवान के बनाए हुए हैं। और फिर संसार में ऐसे कितने लोग हैं, जो कोठियों और बंगलों में रहते हैं? बात ही कितने दिनों की है?
आपका काराबोर शुरू होने भर की देर है, इस बार पहले से भी शानदार कोठी बन जाएगी।"

"शीला, तुम में कितना धैर्य और सहनशीलता है। "गोविन्द ने शीला के कन्धों पर हाथ रखते हुए कहा।

"अब आप ये सब अपने दिमाग से निकालकर मुस्करा दीजिए।"

गोविन्द के होंठों पर एक प्यार.भरी मुस्कराहट थिरक उठी। और फिर दोनों एक साथ हँस पड़े। ऐसी हँसी जो आंसुओं से गीली थी।

अचानक शीला की आंखों के आगे अंधेरा छा गया। वह घबराकर जल्दी से पलंग पर बैठ गई। उसका दिमाग तेजी से घूम रहा था। वह जल्दी से बिस्तर पर ले गई।
अचानक गोविन्द ने कमरे में आते हुए पुकारा.


"शीला...कहां हो तुम?"

शीला ने उठने की कोशिश की, लेकिन उठ न सकी।

गोविन्द ने उसके पास आकर मुस्कराते हुए कहा, “खुश खबरी सुनो शीला। मुनीमजी की कोशिशों से सारे काम बनते जा रहें हैं। हमार कारोबार अब जल्द ही शुरू हो जायेगा। एक छोटी.सी फैक्टरी का सौदा हो गया है। अगले हफ्ते खरीद ली जायेगी।"

"सच?" शीला की आवाज खुशी से कांप उठी थी।

___ उसके दोनों हाथ उठे। गोविन्द ने उसके दोनों हाथ थाम लिए और फिर एक पल बाद चौंक कर बोला."अरे, तुम्हें तो बहुत तेज बुखार है।"


"बुखार नहीं है मेरे देवता, आपकी अमानत आपको सुपुर्द करने का समय आ गया है।"

"सच कह रही हो शीला?" प्रसन्नता से गोविन्द की आवाज कांप उठी।

__ "हां, मुझे जल्दी से अस्पताल ले चहिए।"

गोविन्द मुनीमजी के पास जाकर बोला "मुनीमजी, जल्दी शीला को अस्पताल ले चलने का इंतजाम कर दीजिए।"

“सच?" खुशी से मुनीमजी उछल पड़े। और फिर दौड़ते हुए बाहर निकल गए।

गोविन्द बेचैनी से बरामदे में टहल रहा था। उसकी निगाहें बार.बार उस वार्ड की ओर उठ जाती थीं, जिसमें शीला भर्ती थी। कभी उसके चेहरे पर घबराहट छा जाती तो कभी उसका चेहरा खुशी से चमक उठता था।
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