बहुत ही मस्त जा रही हैं कहानी राकेश भाई
अगले भाग की प्रतीक्षा में
Incest क्या.......ये गलत है? complete
- mastram
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Re: क्या.......ये गलत है?
मस्त राम मस्ती में
आग लगे चाहे बस्ती मे.
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भाई बहन,ननद भाभी और नौकर .......... सेक्स स्लेव भाभी और हरामी देवर .......... वासना के सौदागर .......... Incest सुलगते जिस्म और रिश्तों पर कलंक Running.......... घर की मुर्गियाँ Running......नेहा बह के कारनामे (Running) ....मस्तराम की कहानियाँ(Running) ....अनोखा इंतकाम रुबीना का ..........परिवार बिना कुछ नहीं..........माँ को पाने की हसरत ......सियासत और साजिश .....बिन पढ़ाई करनी पड़ी चुदाई.....एक और घरेलू चुदाई......दिल दोस्ती और दारू...
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Re: क्या.......ये गलत है?
बहुत ही बढ़िया अपडेट..
- kunal
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Re: क्या.......ये गलत है?
मस्त अपडेट है भाई …….
fabulous update
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फूफी और उसकी बेटी से शादी.......Thriller वासना का भंवर .......Thriller हिसक.......मुझे लगी लगन लंड की.......बीबी की चाहत.......ऋतू दीदी.......साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन!
- SATISH
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Re: क्या.......ये गलत है?
excellent story mind blowing hot & sexy please continue
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- Rakeshsingh1999
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Re: क्या.......ये गलत है?
कविता और जय यूँही लेटे हुए सो गए। तब शाम के करीब 5 बज रहे थे। जय कविता के चुच्चीयों पर सर रखके सोया था। कविता की चुच्चियाँ अभी भी तनी हुई थी। जय का सर दोनों चुच्चीयों के बीच में था। कविता का दाहिना हाथ उसके सर पर था। जय का दाहिना हाथ कविता के बुर पर रखा था। जय के मुंह और चेहरे पर कविता की बुर के रस चिपके हुए थे, उसके मुंह मे कविता के बुर की महक आ रही थी। कविता का मुंह खुला हुआ था। उसके बाल बिखरे हुए थे, जय ने उसके बालों को उसकी मुंह की चुदाई के लिए हैंडल की तरह इस्तेमाल जो किया था। जय का लण्ड अभी थोड़ा शांत था, हालांकि जय ने अभी तक अपने लण्ड का रस नहीं निकाला था। उसके आंड में वीर्य कुलबुला रहे थे। दोनों बिहारी भाई बहन हिंदुस्तान की राजधानी दिल्ली में एक नया इतिहास लिख रहे थे। एक दूसरे पर नंगे परे भाई बहन नींद की गहराइयों में सोए हुए थे, कि तभी कविता के मोबाइल की घंटी बजी जो कि बाहर हॉल में सोफे पर पड़ी थी। कविता की नींद खुली, लेकिन जय अभी भी सो रहा था। कविता ने जय की टेबल पर रखी उसकी रिस्ट वॉच में मिलमिलाती आंखों से टाइम देखा तो शाम के सात बजे चुके थे। उसने जय को देखा और उसके हाथ को अपने बुर से हटाया। फिर उसके सर को उसके आहिस्ते से हटाया, तो जय करवट मारके दूसरी साइड सो गया। कविता बिस्तर से उठी, उसके कोई भी कपड़े वहां नहीं थे। जय का तौलिया था, जो वो लपेट के बाहर आयी। उसने मोबाइल उठाया तब तक फ़ोन कट चुका था। उसने देखा कि उसकी माँ का फोन था। कविता अपने फोन से जब तक डायल करती, तब तक उधर से फिर फोन आ गया।
कविता- हेलो। माँ प्रणाम।
ममता- खुश रहो। कैसी हो?
कविता- ठीक हैं, माँ। तुम कहाँ पहुंची?
ममता- अरे ये ट्रेन बहुत लेट है। सुबह तक पहुंचाएगा। और जय कैसा है?
कविता- वो भी ठीक है। तुम खाना खाई?
ममता- हाँ, खाये थे। ट्रेन में ही खाना दे रहा था। तुमलोग खाना खाए कि नहीं?
कविता- हाँ, खाये हैं दोनों लोग।
कविता को ज़ोर से पेशाब लगी थी। वो अपने दोनों पैर को भींच रही थी। वो प्रतीक्षा कर रही थी कि कब ममता फोन काटे।
ममता- ख्याल रखना दोनों, हम पहुँचके फोन करेंगे।
कविता- अच्छा मां, प्रणाम रखते हैं।
कविता- हेलो। माँ प्रणाम।
ममता- खुश रहो। कैसी हो?
कविता- ठीक हैं, माँ। तुम कहाँ पहुंची?
ममता- अरे ये ट्रेन बहुत लेट है। सुबह तक पहुंचाएगा। और जय कैसा है?
कविता- वो भी ठीक है। तुम खाना खाई?
ममता- हाँ, खाये थे। ट्रेन में ही खाना दे रहा था। तुमलोग खाना खाए कि नहीं?
कविता- हाँ, खाये हैं दोनों लोग।
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