छोटी सी भूल compleet

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rajsharma
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Re: छोटी सी भूल

Post by rajsharma »

उसकी बात सुन कर मेरी आँखो में आंशू आने को हो गये. पर मैने खुद को थाम लिया. पता नही सिधार्थ मुझे इतना प्यार क्यो करता है. मुझे यकीन नही था कि वो ये डाइयरी पढ़ कर भी ऐसी बात कहेगा. यही कारण है कि मैं बेचन हूँ. अब सिधार्थ को मैं कैसे मना करूँगी, समझ नही पा रही हूँ.

==========

डेट : 9-02-09 11:30 पीयेम

आज बहुत बड़े राज से परदा खुल गया

आज सुबह सुबह अलार्म की बजाए मुझे दीप्ति के फोन ने उठाया.

सुबह 7 बजे मेरा फोन बज उठा.

“दीप्ति …., क्या बात है, इतनी सुबह क्यो फोन किया” ---- मैने हैरानी में पूछा

“ऋतु बहुत बड़ी बात पता चली है, अभी अभी मनीष का फोन आया था. सारी गुथि सुलझती नज़र आ रही है” ---- दीप्ति ने कहा.

मैं झट से अपने बेड पर बैठ गयी और कहा, “अछा, जल्दी बताओ क्या पता चला है”

“ये सारी कहानी एक ही नाम पर जा कर रुक गयी है, वो है कविता” ---- दीप्ति ने कहा

“ कविता … कौन कविता, अब ये कविता कहा से आ गयी” --- मैने पूछा

“संजय के क्लिनिक में नर्स थी वो, तुम तो उसे जानती होगी” ---- दीप्ति ने पूछा

“ओह हां…. याद आया… तुम उस कविता की बात कर रही हो. बहुत अछी और सारीफ़ लड़की थी. एक बार चिंटू के बर्तडे पर घर भी आई थी. मेरी उस से अछी बोल चाल थी. पर वो तो कोई 2 साल पहले क्लिनिक छ्चोड़ कर चली गयी थी”

“शी ईज़ मिस्सिंग ऋतु, 2 साल से वो गायब है, उसके साथ क्या हुवा, वो अब कहा है, जींदा है भी या नही …किसी को नही पता” ??? ---- दीप्ति ने कहा.

“ओह्ह मुझे इस बारे में नही पता था, एक बार जब में क्लिनिक गयी थी तो संजय से पूछा था कि कविता कहा है, उन्होने तो यही कहा था कि वो वाहा से काम छ्चोड़ कर चली गयी” --- मैने कहा

“संजय तो यही कहेगा, क्योंकि हो सकता है कि कविता के गायब होने में उसका हाथ हो, मनीष को इस बारे में शक है. हां पर विवेक का इसमें पक्का हाथ है” ---- दीप्ति ने कहा

“पर मेरे साथ जो कुछ हुवा, उस से कविता का क्या लेना देना दीप्ति” --- मैने हैरानी में पूछा.

“बिल्लू कविता का छोटा भाई है ऋतु. और ये पता चला है कि वो 2 साल से अपनी सिस्टर को ढूंड रहा है. बहुत प्यार करता है वो कविता को. उशके मा बाप के मरने के बाद कविता ने ही उसे पाला है. पोलीस कुछ नही कर रही. या फिर ये समझ लो कि किसी के दबाव के कारण पोलीस कुछ करना नही चाहती. मनीष बिल्लू के देल्ही वाले घर गया था. वाहा पता चला है कि बिल्लू तो बहुत सरीफ़ और नेक लड़का है”

“बस-बस मुझे पता है वो कितना नेक है, हां पर कविता के लिए मुझे दुख है, बहुत मेहनती थी वो. मैं जब भी क्लिनिक जाती थी उसे काम करते हुवे ही पाती थी. संजय भी उसकी काफ़ी तारीफ़ करते थे, कहते थे कि कविता ने अकेले ही काफ़ी काम संभाल रखा है” ---- मैने दीप्ति से कहा.

“कविता के ही कारण मनीष पर उस दिन जान लेवा हमला हुवा था. मुझे यकीन है कि संजय और विवेक नही चाहते कि किसी को पता चले कि कविता के गायब होने में उनका हाथ है. वो हमला उन दौनो ने ही करवाया होगा” ----- दीप्ति ने कहा

“संजय ऐसा नही करेंगे, हां विवेक कुछ भी कर सकता है. पर वो तो मर गया होगा. मैने खुद उसे गोली मारी थी.” ---- मैने कहा.

“इस बारे में मुझे नही पता. पर इतना ज़रूर सॉफ हो गया है कि बिल्लू कविता के कारण ही तुम्हारे पीछे पड़ा था. शायद उसे शक होगा कि कविता के गायब होने में संजय का हाथ है” ---- दीप्ति ने कहा.

“इस से उसका गुनाह कम नही हो जाता” --- मैने कहा.

“वो तो ठीक है ऋतु, मैं तो बस बिल्लू का मोटिव बता रही थी. पर यार मनीष अब कविता के केस पर लग गया है. हे ईज़ टेकिंग इट पर्सनली नाउ, वो समझ ही नही रहा है कि इस में उसकी जान को ख़तरा है, मुझे डर लग रहा है” ----- दीप्ति ने कहा

“दीप्ति लगता है वो ज़िद्दी है. तुम बस उसे ये समझाओ कि अपना ख्याल रखे. मुझे नही लगता कि उसे समझाने का कोई फाय्दा होगा. और तुम डरो मत अब तो वो बिल्कुल ठीक है, है ना”

“कहा ठीक है, लड़खड़ा कर चलता है अभी भी, पर चलो, अब मैं चलती हूँ, मुझे ऑफीस के लिए भी तैयार होना है” ---- दीप्ति ने कहा

“ओह्ह… मैं भी लेट हो रही हूँ, बाइ फिर फ़ुर्सत में बात करेंगे” --- मैने कहा

मैने जल्दी से फ्रेश हो कर ब्रेकफास्ट किया और ऑफीस के लिए तैयार हो गयी. पर हर पल मेरे मन में दीप्ति की कही बातें घूम रही थी.

मैने खिड़की से बाहर झाँक कर देखा, वाहा कोई नही था. मैने सोचा कि शायद बिल्लू थोड़ी देर में आने वाला होगा.

ठीक 9 बजे सिधार्थ ने डोर बेल बजाई.

जैसे ही मैने दरवाजा खोला उसने पूछा, “ बाहर सड़क पर तो कोई नही है, ये डाइयरी तुम्हारी कोई फिक्षन स्टोरी तो नही है”

नही सिधार्थ बिल्लू रोज सुबह सड़क पर खड़ा मिलता है. आज शायद वो नही आया. फिर मैने सिधार्थ को सुबह वाली बात बता दी. मैने उसे वो सब कुछ बता दिया जो कि दीप्ति ने मुझे बताया था.

“ह्म्म…..वेरी सॅड… बट स्टिल, बिल्लू ईज़ ए क्रिमिनल” ---- सिधार्थ ने कहा.

“हां में भी यही सोचती हूँ” ---- मैने कहा

जैसे ही मैं अपने घर से सिधार्थ के साथ निकली मेरी आँखे चारो तरफ बिल्लू को ही ढूंड रही थी. मैं उस से मिलना तो नही चाहती थी, हां पर ये ज़रूर सोच रही थी कि आख़िर वो आज यहा क्यों नही आया.

“बिल्लू को ही ढूंड रही हो, है ना” ? ---- सिधार्थ ने एमोशनल टोन में पूछा

मैने उसकी और देखा और बोली, “मैं हैरान हूँ कि आज वो क्यो नही आया”

“अछा ही तो है, उस से अब तुम्हे क्या मतलब, भाड़ में जाए वो” ---- सिधार्थ ने थोड़ा गुस्से में कहा

में समझ गयी कि सिधार्थ को हर्ट हुवा है. मैं चुपचाप उसकी कार में बैठ गयी और यहा वाहा देखना बंद कर दिया.

कितनी अजीब बात है, कयि बार हम ऐसी हरकते कर जाते है क़ि हमें भी नही पता चलता कि हम क्यो कर रहे है. दर-असल सुबह दीप्ति से बात करने के बाद मैं बिल्लू से एक बार मिलना चाहती थी. यही कारण था कि मैं सुबह उसे सड़क पर ना पा कर हैरान हो रही थी. सिधार्थ को ये बात बुरी लगनी ही थी. वो मुझे प्यार जो करता है.
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


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Re: छोटी सी भूल

Post by rajsharma »

सारा दिन ऑफीस में बड़ा ही मुश्किल बीता. मन कर रहा था कि अभी घर चली जाउ, बिल्लू ज़रूर मेरे फ्लॅट के आस पास ही होगा. एक एक पल मेरा बड़ी मुश्किल से बीत रहा था. कविता का चेहरा भी बार बार मेरे मन में घूम रहा था. मैं ये भी सोच रही थी कि अगर बिल्लू इतना नेक है तो मेरे साथ इतनी घिनोनी हरकत क्यो की उसने. जो भी हो, मैं एक बार बिल्लू से मिलना चाहती थी.

मैने लंच टाइम में अपने ऑफीस के बाहर भी देखा, पर वो वाहा भी नज़र नही आया. मैने सोचा कि हो सकता है वो देल्ही चला गया हो. फिर ख्याल आया कि शाम को घर जाते वक्त वो ज़रूर सड़क पर मिल जाएगा.

इसी उधेड़बुन में मेरा हर पल बीत रहा था.

5:30 बजे में झट से सभी काम निपटा कर घर के लिए निकल पड़ी. बहुत बेचन थी मैं घर पहुँचने के लिए.

मेरा घर आ गया पर बिल्लू कही नज़र नही आ रहा था. मैने कार से उतर कर चारो और नज़र दौड़ाई पर दूर दूर तक मुझे बिल्लू की परछाई तक नही दीखी. मैने मन ही मन सोचा कहा चला गया आज वो ?

ड्राइवर ने पूछा, “मेडम किशी को ढूंड रहे हो क्या:”

“नही तुम जाओ और कल टाइम पर आ जाना” ---- मैने ड्राइवर से कहा.

मैं तेज़ी से अपने फ्लॅट की तरफ चल पड़ी. चलते चलते सोच रही थी कि ज़रूर बिल्लू ने आज भी कोई चिट छ्चोड़ी होगी

पर आज कोई चिट नही थी

“बिल्लू कहा गया, क्या वो वापस देल्ही चला गया, वैसे वो कह तो रहा था कि मेरी फाइनान्षियल पोज़िशन ठीक नही है, मैं यहा ज़्यादा देर नही ठहर सकता” ------- यही सब मेरे दीमाग में घूम रहा था.

फिर मुझे ख्याल आया कि गेट वे ऑफ इंडिया पर जाकर देखती हूँ, वो ज़रूर वही होगा.

सिधार्थ ने मुझे बताया था कि गेट वे ऑफ इंडिया तुम्हारे घर से वॉकिंग डिस्टेन्स पर है

मैने झट से घर को लॉक किया और पैदल ही लोगो से पूछते पूछते गेट वे ऑफ इंडिया की तरफ चल पड़ी.

और जैसा क़ि मुझे लग रहा था, बिल्लू मुझे वही मिला. वो गेट वे ऑफ इंडिया के पास जो समुंदर के चारो और दीवार बनी है उस से सॅट कर खड़ा था.

उसका चेहरा समुंदर की ओर था और ऐसा लग रहा था जैसे कि वो गहरे विचारो में खोया है.

मैं उशके करीब आ गयी. पर वो जैसे एक मूर्ति की तरह खड़ा था और एक तक समुंदर को देखे जा रहा था. ऐसा लग रहा था जैसे की उसे होश ही नही है कि उसके आस पास क्या हो रहा है.

मैं बिल्कुल उशके पीछे खड़ी थी. समझ नही पा रही थी कि उसे कैसे बुलाउ.

“बिल्लू, कविता के बारें में सुन कर दुख हुवा” ---- मैने धीरे से कहा.

पर बिल्लू के शरीर में कोई हरकत नही हुई. वो वैसे ही मूर्ति की तरह वाहा खड़ा रहा

मैने उसके कंधे पर हाथ रखा और कहा, “बिल्लू मुझे कविता के लिए दुख है”

वो धीरे से मेरी और घुमा और मैने उसकी आँखो में आंशू देखे. यकीन ही नही हो रहा था कि बिल्लू रो भी सकता है. उसकी आँखो में आंशु देख कर मेरी आँखे भी नम हो गयी.

वो मेरे गले लग गया और फूट फूट कर रोने लगा और बोला, “ पता नही कहा गायब कर दिया मेरी दीदी को कमिनो ने ऋतु”

मैं भी भावुक हो गयी. मैने उसे रोकने की कोशिस नही की. बिल्लू आज एक बच्चा लग रहा था. मैं सोच भी नही सकती थी कि वो इस तरह रो सकता है.

मैं उसे चाह कर भी अपने सीने से नही हटा पाई. चारो और लोग हमें ही देख रहे थे. तभी मैने दूर से सिधार्थ को आते देखा. मैं सिधार्थ को देख कर हड़बड़ा गयी. सोच रही थी कि पता नही वो क्या सोचेगा मुझे बिल्लू के साथ ऐसी हालत में देख कर.

मैने बिल्लू से कहा, बिल्लू बस हट जाओ, लोग हमें ही देख रहे है

मैने उसके कंधो को पकड़ा और उसे दूर हटाने की कोशिस की पर तभी वो मेरे हाथ से छूट कर ज़मीन पर गिर गया.

“बिल्लू उठो….. क्या हो गया तुम्हे” ---- मैने बिल्लू को हिलाते हुवे कहा

तभी सिधार्थ भी वाहा आ गया.

“क्या हुवा इसे ऋतु” ---- सिधार्थ ने पूछा

पता नही सिधार्थ अभी मेरे गले लग कर बहुत रो रहा था, अचानक नीचे गिर गया

“ओह्ह ये बेहोश हो गया है. इसे हॉस्पिटल ले चलते है, हटो मैं इसे उठाता हूँ” ---- सिधार्थ ने मुझे बिल्लू के उपर से हटाते हुवे कहा.

सिधार्थ ने बिल्लू को अपने दौनो हाथो में उठा लिया और उठा कर अपनी कार की तरफ चल दिया और बोला, “जल्दी चलो ऋतु सोचने का वक्त नही है, पता नही इसे क्या हुवा है”

मुझे कुछ समझ नही आ रहा था कि क्या हो रहा है. पर ये सच था कि मैं बिल्लू के लिए बहुत परेशान थी. ऐसा क्यों था. इसका मेरे पास कोई जवाब नही है.

सिधार्थ ने बिल्लू को कार की पिछली शीट पर लेटा दिया और हम दौनो आगे बैठ गये.

“क्या कह रहा था बिल्लू” --- सिधार्थ ने पूछा

“कुछ नही उसने बस एक ही बात कही कि ‘पता नही कहा गायब कर दिया मेरी दीदी को कमिनो ने ऋतु’ और फिर फूट फूट कर रोने लगा” --- मैने सिधार्थ से कहा

“ह्म्म…… लगता है किसी गहरे शॉक में है वो” --- सिधार्थ ने कहा

“हां होगा ही सिधार्थ, उसकी दीदी गायब है 2 साल से” ---- मैने कहा

जल्दी ही सिधार्थ ने कार एक क्लिनिक के बाहर रोक दी.

सिधार्थ ने झट से बिल्लू को कार से बाहर निकाला और उसे उठा कर सीधा क्लिनिक में घुस्स गया.

पता नही सिधार्थ ये सब क्यो कर रहा था. पर इतना ज़रूर था कि इस से ये बात साबित हो रही थी कि सिधार्थ बहुत अछा इंशान है. क्योंकि वो उस लड़के की मदद कर रहा था जिसके कारण वो सुबह हर्ट हुवा था.

डॉक्टर ने बिल्लू को ग्लूकोस चढ़ाया और चेक करने के बाद कहा.

“लगता है कोई बहुत गहरा मेंटल शॉक लगा है इसे. पर इसे खाना तो ठीक से खिलाया करो आप लोग. लगता है 2-3 दिन से इसने कुछ नही खाया है” ---- डॉक्टर ने कहा

मैने मन ही मन में सोचा “ओह्ह गॉड क्या बिल्लू की फाइनान्षियल पोज़िशन इतनी खराब थी कि उसके पास खाने तक को पैसे नही थे”. और मेरी आँखो में आंशु भर आए. कैसी अजीब बात हो रही थी. मैं उस बिल्लू के लिए आंशु बहा रही थी जिसने मुझे बर्बाद किया था. जींदगी भी अजीब खेल खेलती है.

क्रमशः........................

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Re: छोटी सी भूल

Post by rajsharma »

गतांक से आगे ...................

ऐसा नही था कि बिल्लू से मेरी नाराज़गी दूर हो गयी थी, और ना ही ऐसा था कि मैने उसे माफ़ कर दिया था, पर फिर भी एक इंशान होने के नाते मैं बिल्लू के लिए परेशान थी.चाहे उसने मुझे बर्बाद किया हो पर फिर भी उसका मुझ से कोई ना कोई संबंध तो था ही.

बिल्लू को थोड़ी ही देर में होश आ गया. वो हड़बड़ा कर एक दम से उठ गया और बोला, “मैं कहा हूँ”

मैं वही उसके करीब ही थी, सिधार्थ भी मेरे साथ ही खड़ा था.

मैने कहा, “बिल्लू तुम बेहोश हो गये थे, अभी तुम क्लिनिक में हो, चिंता मत करो सब ठीक है”

“कुछ ठीक नही है ऋतु, मुझे तुमसे अकेले में बात करनी है” ------- बिल्लू ने मेरी ओर देख कर कहा.

सिधार्थ ने मेरी और देखा और मैने उसे आँखो ही आँखो में वाहा से बाहर जाने की रिक्वेस्ट की.

सिधार्थ मेरा इशारा समझ गया, और बाहर चला गया. बहुत ही अजीब पल था वो मेरे लिए. सोच रही थी कि कही सिधार्थ को बुरा ना फील हो की मैं बिल्लू से बात क्यो करना चाहती हूँ. पर पता नही क्यो मैं बिल्लू की बात सुन-ना चाहती थी

सिधार्थ के जाने के बाद बिल्लू बोला, “

बैठ जाओ ऋतु”

पहले तुम कुछ खा लो बिल्लू डॉक्टर कह रहा था कि तुमने 2-3 दिन से कुछ नही खाया, क्या तुम्हारी फाइनान्षियल पोज़िशन इतनी खराब है

मेरी बात सुन कर वो थोड़ी देर तक मेरी और देखता रहा, जैसे की मेरे चेहरे पर कुछ पढ़ रहा हो.

मैने उशे ध्यान से देखा तो पाया कि उसकी आँखे नम थी. वो नम आँखे लिए मुझे देखे जा रहा था.

वो बोला, “क्या तुम्हे मेरी चिंता हो रही है ऋतु, ऐसा मत करो मैं इस लायक नही हूँ”

“नही ऐसी बात नही है, डॉक्टर कह रहा था कि तुमने कुछ दीनो से कुछ नही खाया इश्लीए कह रही थी” ---- मैने कहा

“फाइनान्षियल पोज़िशन इतनी भी खराब नही है. कल जब तुमने मंदिर के बाहर मुझे यहा से दफ़ा हो जाने को कहा तो मेरी उमीद टूट गयी. लग रहा था कि तुमसे मिले बिना ही यहा से जाना पड़ेगा. इश्लीए कल मेरा कुछ खाने का मन नही हुवा. और आज इश्लीए नही खा पाया क्योंकि आज मेरी दीदी कविता का बिर्थडे है और मुझे कुछ नही पता कि वो कहा है, किस हाल में है, इस दुनिया में है भी या नही. ऐसी हालत में कोई कैसे खाना खाएगा ऋतु. मैं एक भाई का फ़र्ज़ नीभाने में नाकाम रहा हूँ.” ---- बिल्लू ने एमोटिनल हो कर कहा.

“बिल्लू मैं समझ रही हूँ, पहले तुम खाना खा लो फिर बात करेंगे, मैं तुम्हारी बात सुन-ने के लिए तैयार हूँ” ----- मैने कहा

“नही ऋतु तुम्हे सब कुछ बताए बिना एक नीवाला भी मेरे मूह से नही उतरेगा, पहले मेरी बात सुन लो, खाना पीना तो होता रहेगा” ------ बिल्लू मेरी और देख कर बोला

“चलो ठीक है, शुनाओ मैं शुन रही हूँ” --- मैने कहा

“पहले ये बताओ कैसी हो तुम” ------- बिल्लू ने मेरी ओर देख कर पूछा

“कैसी लग रही हूँ बिल्लू………….. बस जी रही हूँ, वरना तो अब बचा ही क्या है” ---- मैने भावुक हो कर कहा.

“समझ सकता हूँ, पीछले 2 साल से मेरी भी यही हालत है” ------- बिल्लू ने कहा

“इश्लीए तुमने मेरी भी यही हालत कर दी”

? ----- मैने पूछा

“हालात ही कुछ ऐसे थे ऋतु, वरना आज तक मैने किसी को नुकसान नही पहुँचाया, सुनो मैं तुम्हे पूरी बात डीटेल में बताता हूँ.” ----- बिल्लू ने कहा

मैने कहा, “हां सुनाओ मैं जान-ना चाहती हूँ कि मेरी बर्बादी का क्या कारण है”

बिल्लू के शब्दो में :-----

ऋतु, मेरी दीदी कविता मेरे लिए सब कुछ थी. मेरे पेरेंट्स कोई 10 साल पहले एक आक्सिडेंट में मारे गये थे. उसके बाद मेरी दीदी कविता ने ही मुझे पाल पोश कर इतना बड़ा किया है. वो कोई तुमसे 3 साल बड़ी होंगी.

दीदी ने जब 2005 में फरीदाबाद में संजय के क्लिनिक में जाय्न किया था तो वो काफ़ी खुस थी. पर में उनके साथ फरीदाबाद नही आ सकता था. तब मैं बी.कॉम सेकेंड एअर में था. इश्लीए देल्ही में ही रहता था. पर कभी कभी दीदी से मिलने आ जाता था.

सब कुछ अछा चल रहा था. मैं दीदी के लिए कोई लड़का ढूंड रहा था. वैसे वो हमेशा कहती थी कि तुम चिंता मत करो अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो, मैं खुद सब कुछ संभाल लूँगी. पर मैं ये आछे से जानता था कि उन्हे मेरे कारण अपनी शादी की चिंता नही है.

खैर मैने दीदी के लिए एक लड़का ढूंड ही लिया. लड़का सारीफ़ था और उसके घर वालो की कोई डिमॅंड भी नही थी. हमारी हालत वैसे भी ऐसी नही थी कि ज़्यादा दहेज दे सकें. लड़का सेट्ल था, और बॅंक में पी.ओ था.

मैने 2-02-2007 की सुबह को दीदी को फोन करके बताया कि आप छुट्टी ले कर देल्ही आ जाओ, मैने एक लड़का पसंद किया है, लड़के वाले आपको देखना चाहते है.

पहले तो उन्होने मुझे डांटा की अपनी पढ़ाई छ्चोड़ कर बेकार के काम में क्यों लगे हो, पर फिर वो देल्ही आने के लिए मान गयी और मुझे कहा, “ लगता है, अब तुम बड़े हो गये हो”

ये बोल मुझे अभी तक याद है क्योंकि उसके बाद आज तक मैं दीदी की आवाज़ के लिए तरस रहा हूँ. हर पल लगता है कि अभी फोन बजेगा, अभी कोई आहट होगी और दीदी मुझे कहेगी, “बिल्लू तुम पढ़ाई क्यों नही कर रहे”

3-2-07…को मैं सारा दिन बेचैन रहा. सुबह से दोपहर हुई और दोपहर से शाम, लड़के वाले बहुत देर तक बैठ कर चले गये. जाते जाते कह गये, “कोई बात नही बेटा, हम फिर कभी आ जाएँगे”

मैं दीदी का मोबाइल नंबर. ट्राइ कर-कर के थक गया. हर बार उनका मोबाइल स्विच्ड ऑफ आ रहा था.मुझे लग रहा था कि कुछ ना कुछ गड़बड़ है, वरना दीदी कभी अपना मोबाइल ऑफ नही रखती है.

शाम के कोई 6 बजे मैने फरीदाबाद जाने का फ़ैसला किया. एक घंटा तो देल्ही के आइएसबीटी पहुँचने में ही लग गया. मैं कोई 9 बजे फरीदाबाद पहुँच गया और सीधा वाहा पहुँच गया जहा दीदी पेयिंग गेस्ट थी. पर वाहा मुझे लॉक मिला. मैने आस पास के लोगो से पूछा तो उन्होने बताया कि उन्होने कल से कविता को नही देखा. एक लेडी ने ये भी बताया कि कल से वो वाहा आई ही नही थी.

फिर मैने दीदी के क्लिनिक मतलब कि संजय के क्लिनिक जाने का फ़ैसला किया.
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Re: छोटी सी भूल

Post by rajsharma »

फिर मैने दीदी के क्लिनिक मतलब कि संजय के क्लिनिक जाने का फ़ैसला किया.

क्लिनिक पहुँच कर मैने संजय से पूछा, “डॉक्टर मेरी सिस्टर कविता कहा है” ?

उसने मुझे घूर कर देखा और बोला, “वो तो यहा से काम छ्चोड़ कर चली गयी, मुझे नही पता वो कहा है”

ये सुन कर मैं हैरान रह गया. मैं सोच रहा था कि, दीदी ने तो ऐसा कुछ नही बताया, अभी कल ही तो उनसे मेरी बात हुई थी.

मैं मायूसी भरा चेहरा लेकर क्लिनिक से बाहर आ गया.

तभी मुझे याद आया कि दीदी अक्सर किसी वीना जोसेफ के बारे में बात करती थी. वीना जोसेफ ने दीदी को नर्सिंग फील्ड में काफ़ी प्रॅक्टिकल टिप्स दी थी.

मैं फिर से क्लिनिक में घुस्स गया और एक नर्स से पूछा “क्या आप वीना जोसेफ को जानती है” ?

उसने मुझे हाथ से इशारा किया कि वो सामने वीना जोसेफ ही खड़ी है.

मैं वीना जोसेफ के पास गया और उनसे पूछा कि मेरी दीदी कविता कहा है.

उन्होने मुझे धीरे से कहा कि क्लिनिक के बाहर वेट करो में बाहर आती हूँ.

मुझे कुछ समझ नही आ रहा था कि वो ऐसा क्यो कह रही है

मैं क्लिनिक के बाहर आ गया और थोड़ी देर में वीना जोसेफ भी आ गयी. रह रह कर मुझे दीदी की चिंता हो रही थी. यही सोच रहा था कि आख़िर वो कहा है.

वीना जोसेफ ने मुझे बताया, “बेटा कल कविता शाम को संजय के कॅबिन में गयी थी. कह रही थी कि एक दिन की छुट्टी माँगने जा रही हूँ. पर जब वो बाहर निकली तो उसकी आँखो में आंशु थे. वो बिना किसी से कुछ कहे क्लिनिक से निकल गयी. उशके पीछे पीछे मैने संजय के दोस्त विवेक को जाते देखा. बस इतना ही मुझे पता है. आज वो क्लिनिक नही आई. मैने डॉक्टर से पूछा तो उन्होने मुझे यही बताया कि वो काम छ्चोड़ कर चली गयी. वैसे कविता यहा कुछ दीनो से परेशान थी. ये विवेक अक्सर उसके साथ छेड़-छाड़ करता था. कयि बार मैने खुद अपनी आँखो से उसे कविता को छेड़ते देखा है. पर कल ज़रूर कुछ ज़्यादा हुवा होगा, इश्लीए उसकी आँखो में आन्शु थे.

ये सुन कर मेरा दिल बैठ गया, मैं सोच भी नही सकता था कि दीदी के साथ ऐसा होगा

मैने पूछा, “क्या जब कविता बाहर आई थी, तब डॉक्टर संजय भी अंदर थे”

वीना जोसेफ ने बताया, “ हां . संजय अंदर ही थे”

ये सुनते ही मेरी रागो में खून दौड़ गया. मैं भाग कर संजय के कॅबिन में घुस्स गया और उसे इतना मारा कि उसके मूह से खून निकलने लगा. पर तभी ना जाने कहा से विवेक भी वाहा आ गया और दौनो ने मुझे काबू कर लिया. मैं फिर भी उन्हे संभाल लेता पर विवेक के पास पिस्टल थी.

“कौन है ये संजय” --- विवेक ने पूछा.

“ये कविता का भाई है विवेक, तू इस पर निशाना लगा कर रख मैं इसे बताता हूँ कि कैसे किसी को मारा जाता है” ------- संजय ने विवेक से कहा

संजय ने मेरे पेट में, मूह पर… हर तरफ घूससों की बोछर कर दी

मैं गिर गया, क्या करता वैसे भी विवेक ने मेरे उपर बंदूक तान रखी थी

“ओह्ह हां याद आया मेरा मोबाइल कहा है, इसे ऐसी मौत दूँगा कि तड़प तड़प कर मरेगा साला हरामी, मुझ पर हाथ उठाएगा” ---- संजय ने कहा

संजय ने मेरी आँखो के आगे अपना मोबाइल किया. उसमे एक मूवी क्लिप चल रही थी.

पता है ऋतु उस क्लिप में क्या था.

बिल्लू थोड़ी देर चुप हो गया और मैने देखा कि वो रो रहा है.

मैने पूछा “क्या था बिल्लू बताओ मैं सुन रही हूँ”

मेरी दीदी रो रही थी और रोते-रोते ज़ोर ज़ोर से चील्ला रही थी और विवेक उसके साथ रेप कर रहा था. मुझ से देखा नही गया मैने अपनी आँखे बंद कर ली. पर तभी मेरे सर पर संजय ने कुर्सी दे मारी और मैं ज़मीन पर गिर गया.

तब संजय ने मेरे सर के बॉल पकड़ कर खींचे और अपने मोबाइल को मेरी आँखो के सामने ले आया और बोला, “देख साले क्या हॉट माल है तेरी बहन, क्या मज़े से चील्ला चील्ला कर दे रही है”

मेरी दीदी रो रही थी, और विवेक उसके साथ…..

“बस बिल्लू….. बस करो, मैं और नही सुन पाउन्गि” ---- मैने अपने कानो पर हाथ रख कर कहा.

ऋतु मेरी दीदी के साथ कोई 4 लोग रेप कर रहे थे और मुझे ज़बरदस्ती सब कुछ देखाया गया. संजय और विवेक को तो मैं जानता हूँ, बाकी के 2 लोगो का मुझे नही पता कि वो कौन थे. और पता है जगह कौन सी थी.

“कौन सी बिल्लू” ----- मैने पूछा.

“तुम्हारा बेडरूम ऋतु, वही बेडरूम जहा उस दिन में तुम्हे अपनी बाहों में उठा कर ले गया था. तुम्हारा बेडरूम देखते ही मैं पहचान गया था कि ये वही मोबाइल क्लिप वाली जगह है” --- बिल्लू ने कहा

मैने कहा “ओह याद आया उन दीनो मैं शायद अपने मायके में थी, मतलब कि देल्ही में थी, पर क्या संजय ने भी…”

“कह तो रहा हूँ, वाहा 4 लोग थे संजय उनमे से एक था” ------- बिल्लू ने मेरी ओर देख कर कहा.

“ओह गॉड….. मुझे विश्वास नही होता” ---- मैने कहा

“यही वो वजह थी जिसके कारण मैने उस दिन संजय को वाहा खिड़की पर बुलाया और अपने पीछे अशोक और राजू को खड़ा कर लिया. अशोक और राजू तुम्हारे लिए वाहा नही थे ऋतु, वो संजय को दीखाने के लिए थे. मैं उसे दीखाना चाहता था कि देखो कैसा लगता है किसी अपने को ऐसी हालत में देख कर” ---- बिल्लू ने कहा

“पर क्या तुम्हे मेरी कोई चिंता नही थी, तुमने एक पल को भी नही सोचा कि मेरा क्या होगा” --- मैने बिल्लू की ओर देख कर पूछा

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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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Re: छोटी सी भूल

Post by rajsharma »

“ऋतु मैं तो उस दिन को टालना चाहता था. तुम्हे याद होगा मैने तुम्हे कहा था कि तुम संजय को सब कुछ बता दौ, याद है ना तुम्हे, मैने कहा था ना. ” बिल्लू ने पूछा

“हां याद है, पर तुम्हे मुझे अशोक के आगे फेंकने की क्या ज़रूरत थी” ---- मैने पूछा

बिल्लू कंटिन्यू….

मैं बस संजय को बर्बाद करना चाहता था और चाहता था कि उसकी बीवी के चरित्र को छलनी छलनी कर दूं.

पर बाद में मुझे अपनी ग़लती का अहसास हुवा. शायद मुझे तुमसे प्यार होने लगा था.

इश्लीए मैने उस साइकल वाले को मारा था. मैं बिल्कुल बर्दस्त नही कर पाया कि उस साइकल वाले ने तुम्हे बस में छेड़ा है. उस वक्त मुझे पहली बार अहसास हुवा था कि मैं तुमसे प्यार करता हूँ.

पर बदले की आग तब तक प्यार पर हावी थी. इश्लीए प्यार इतना उभर नही पाया.

अशोक ने कयि बार बाद में मुझे कहा कि ऋतु को एक बार फिर ले आओ, पर मैने उसे सॉफ मना कर दिया था कि मेरे अलावा उसे कोई नही छूएगा. और उसे ये भी कह दिया था कि तुमने अगर ऐसा सोचा भी तो तुम्हे जान से मार दूँगा. ऐसा असर हुवा था तुम्हारा मुझ पर.

पर उस दिन संजय को दीखाने के लिए ज़रूर अशोक और राजू को पीछे खड़ा किया था. मेरे लिए भी वो पल मुश्किल था. मैं तुम्हे दुख नही देना चाहता था. पर बदले की आग में मैं सब कुछ कर गया”

पर आज सोचता हूँ कि मुझे क्या मिला ?

मुझे कुछ नही मिला ऋतु, मेरी दीदी आज भी गायब है और आज मैं तुम्हारा गुनहगार बन गया हूँ.

उस दिन मैं वही संजय के कॅबिन में ही मर जाता तो अछा होता. पर किसी तरह से मैं बच गया.

उस वक्त संजय से कोई मिलने आ गया था.

किसी नर्स ने बाहर से आवाज़ लगाई, “डॉक्टर आपसे शुक्ला जी मिलने आए है”

संजय और विवेक का ध्यान मेरे उपर से हट गया और मैं मोका देख कर कॅबिन की खिड़की से कूद गया.

पर मैने जो उस मोबाइल में क्लिप देखी थी वो आज भी मेरे दीमाग में घूम रही है.

अपनी दीदी को आखरी बार देखा भी तो कहा देखा, एक मोबाइल की क्लिप में, उनका रेप होते हुवे.

मैने पोलीस में रिपोर्ट की, सब कुछ किया जो मेरे बस में था, पर आज तक मेरी दीदी का कुछ नही पता ऋतु, कुछ नही पता. पता नही रेप करने के बाद उन्होने मेरी दीदी के साथ क्या किया. अब मुझे लगने लगा है कि मेरी दीदी इस दुनिया में नही है. मैं अब यही सोचता हूँ कि वो लोग कम से कम मेरी दीदी को जींदा तो छ्चोड़ देते. किसी से भी जीने का अधिकार यू ही नही छीन लेना चाहिए.

…………

सच में बिल्लू ने जो मुझे बताया उसेसुन कर मेरे रोंगटे खड़े हो गये. क्या बीती होगी बीचरी कविता पर मैं सोच भी नही सकती. अछा किया मैने जो उस दिन विवेक को गोली मार दी.

सबसे ज़्यादा हैरान में संजय के बारे में सुन कर थी.

मेरे मन पर बोझ था कि मैने संजय को धोका दिया है, आज ये बोझ मेरे मन से हट गया.

“ऋतु क्या सोच रही हो” ---- बिल्लू ने पूछा.

“कुछ नही बिल्लू क्या सोचूँ अब, तुमने वो किया जो तुम्हे ठीक लगा, पर बर्बादी तो दौनो तरफ एक औरत की ही हुई. उधर कविता बर्बाद हुई…. इधर मैं…… ये कैसा खेल है” ? ----- मैने बिल्लू की ओर देख कर कहा.

बिल्लू ने अपने हाथ से ग्लूकोस हटा दिया और बेड से उतर कर मेरे कदमो में बैठ गया.

“ऋतु मैं अपनी ग़लती मानता हूँ, इश्लीए सब कुछ भुला कर मुंबई आया हूँ. मुझे अब ये भी याद नही है कि मुझे किसी से बदला लेना है. मैं थक चुका हूँ. मुझे आज बस एक बात याद है, और वो ये है कि “मैं तुम्हे प्यार करता हूँ” -------- बिल्लू ने मेरे हाथो को थाम कर कहा.

“प्यार क्या होता है, तुम्हे इसका मतलब भी पता है बिल्लू” ----- मैने पूछा

“मुझे नही पता, मुझे बस एक अहसास है कि मैं तुम्हारे बिना नही रह सकता. तुम्हारे शरीर को पा कर में तुम्हारी आत्मा तक पहुँच गया हूँ. और पता है मैने क्या पाया है वाहा पहुँच कर” ? ---- बिल्लू ने मेरी आँखो में देख कर पूछा

मैने पूछा, “क्या बिल्लू” ?

“मैने पाया है कि जीतना शुनदर तुम्हारा शरीर है, उस से भी कही शुनदर तुम्हारा मन है” --- बिल्लू ने कहा

“रहने दो बिल्लू मुझे मेरे अंदर अंधेरा नज़र आता है और तुम्हे वाहा शुनदरता दीख रही है” --- मैने कहा

“जो मैने देखा है बता रहा हूँ, और ये सच है” --- बिल्लू ने कहा

“मैं हवश में आँधी हो कर तुम्हारे साथ खो गयी थी, उसे तुम सुंदरता कहते हो, वो मेरी सबसे बड़ी भूल थी” ----- मैने बिल्लू से कहा

“ऋतु तुम्हारे साथ जो मैने किया वो कोई मामूली सेडक्षन नही था. दट वाज़ इन ए वे एक्सट्रीम फॉर्म ऑफ सेडक्षन. मैने तुम्हे बहकने पर मजबूर किया था, और आज भी कर सकता हूँ. पर आज बात प्यार की है. मैं मुंबई तुम्हे पाने आया हूँ. अपनी दीदी को तो मैने खो दिया, पर तुम्हे मैं नही खोना चाहता” ---- बिल्लू ने कहा

मैने गुस्से में पूछा “ये क्या बकवास है बिल्लू, तुम ये सब सोच भी कैसे सकते हो, मैं सोच रही थी कि तुम्हे अपनी ग़लती का अहसास है”

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