Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

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Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

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ये प्यास है कि बुझती ही नही

अपडेट - 1
प्यार. बड़ा छोटा सा लफ्ज़ है लेकिन ज़िंदगी बदल जाती है जो एक बार ये हो जाए.
लोग कहते है के ये एक बार होता है और सिर्फ़ नसीब वालो को मिलता है. दुनिया मे
इस से बढ़कर कुछ नही. इश्क़ को लोग भगवान/खुदा के बराबर मानते है. लेकिन
क्या सच है ये? क्या प्यार सबसे बड़ा एहसास है? कैसा होता है ये? और क्या दुनिया
प्यार से आगे भी है? और क्या सीमा है इस प्यार की?

शायद सही, शायद ग़लत. कम से कम एक शक़स तो है ऐसा जो मानता है कि प्यार ऐसा
नही जैसा लोग कहते है. और इसका एहसास उनको ज़रा भी नही है क्योंकि जो भी प्यार
पे निबंध लिखता है उसको ये कभी हुआ ही नही होता. प्यार एक बार नही सो बार हुआ.
आज 40 का होने वाला हू तो अपने अतीत को देख रहा हू. करने को कुछ बचा ही नही है.

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"अर्जुन-अर्जुन, कहा है तू? उठा या नही अभी तक. आज पेपर है तेरा", अर्जुन की मा रेखा
अपने बेटे को आवाज़ दे रही थी क्योंकि सुबह क 7 बज रहे थे. और वो घोड़े बेच के सो
रहा था. सारी रात जो पढ़ता रहा था वो. फिर मा के आवाज़ देने पे उठा और सीधा चला
गया आँगन मे बने बाथरूम मे.
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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Re: Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

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इंट्रोडक्षन
साल - 1998

ये परिवार है हरयाणा राज्य के एक शहर मे बसे प्रतिष्टित व्यक्ति पंडित रामेश्वर जी का.
रामेश्वर शर्मा - परिवार के मुखिया. रिटायर्ड एसएसपी है अभी उमर है 70 साल. पूरे शहर मे इनका
नाम इज़्ज़त से लिया जाता है बड़े ही सुलझे हुए इंसान है. अपने नाम का अनुसरण करते है और
हमेशा सिर्फ़ सच का साथ देने वाले. अपने टाइम मे लाहोर से एम.ए. किया था और फिर पोलीस मे नौकरी
लग गई. 4 बजे उठ जाते है ऑर रात 10 सो जाना इनकी आदत है. पूजा पाठ नियम से करते है ऑर
पूरे परिवार का ध्यान रखते है. सब इन्हे पंडित जी कहते है. कुल मिला कर खुशमिजाज़ इंसान है.

कौशल्या देवी - 68 साल की एक बेहद संस्कारी ऑर धार्मिक महिला है ये. इस घर को घर बनाने वाली
यही है. पति तो पोलीस की नौकरी मे रहे 35 साल लेकिन इन्होने अपने बच्चो की परवरिश मे कोई कमी
नही आने दी. सबकी इज़्ज़त करती है लेकिन मिजाज़ से एकदम सख़्त औरत है. अनुशासन, संस्कार ऑर धरम
करम. बस यही इनको पसंद है. रामेश्वर जी से इनको 4 संतान हुई. तीन बेटे और सबसे छोटी एक बेटी
है.

1. राजकुमार शर्मा - ये है रामेश्वर जी के सबसे बड़े बेटे. 51 साल की उमर है इनकी ऑर पढ़ाई के बाद
इनकी सरकारी विभाग मे नौकरी लग गई थी. शरीर दरमियाना है लेकिन सेहतमंद इंसान है. सही उमर
मे रामेश्वर जी ने इनकी शादी पास के ही गाँव के एक अच्छे परिवार की लड़की से करवा दी थी. इनकी पत्नी
का नाम है ललिता देवी. 47 साल की एक बेहद खूबसूरत महिला है. राजकुमार जी का दिल आज भी इन्ही
के क़ब्ज़े मे है. इनकी 3 संतान है. एक बेटा संजय (25 साल), बेटी मधुरी (23) और सबसे छोटी अलका
(20 साल). संजय एक प्राइवेट इन्सोरेन्स कंपनी मे मॅनेजर है. अंतर्मुखी व्यक्ति है. ज़्यादा बोलता नही
बस काम से काम रखता है. दादा-दादी की हर बात इसके लिए एक कसम समान है. सांवला है लेकिन शरीर
एकदम पत्थर है. वही मधुरी अपनी मास्टर्स डिग्री करने के बाद अपनी माँ के साथ घर के काम मे हाथ
बँटवाती है और खाली समय मे सिलाई कढ़ाई करती है. नाचने का शौंक है इनको. खूबसूरत इतनी है
कि मधुरी डिक्सिट भी पानी भरती नज़र आए. राजकुमार जी की लाडली अलका भी कुछ कम नही है. घर
मे कद-काठी तो सभी अच्छी है पर ये लड़की तो अपने भाई से भी 2 इंच उँची है. जहाँ मधुरी का
शरीर गठीला ऑर एवरेज लंबाई है वही अलका बिलुल गुलाब सी गुलाबी और एकदम नाज़ुक. इसकी हर बात
पूरे घर मे सुनी जाती है. दादा जी प्यार से इसको लक्ष्मी बुलाते है.

2. शंकर शर्मा - ये जनाब पूरे शर्मा परिवार मे विख्यात है. पेशे से सरकारी डॉक्टर है ऑर
इनकी उमर है 48 साल. 5'10" की लंबाई है और आकर्षक व्यक्तित्व के धनी. कॉलेज टाइम मे ये
राष्ट्रीय स्तर पे बॉक्सिंग कर चुके है. लेकिन एक भी गुण रामेश्वर जी का नही है इनमे सिवाए
शरीर और अनुशासन के. इनके गुस्से से खुद रामेश्वर जी भी चुप रह जाते है. बचपन से ही
ये अपने माँ-बाप के चहेते थे. जो दिल मे आता है वही करते है. सिग्रेट और शराब के भी शौकीन लेकिन
समाज सेवा भी इनके जैसी कोई नही करता. ग़रीब इंसान का इलाज़ उसके घर भी जाकर कर देते है.
लेकिन इनकी धर्मपत्नी जी एकदम शांत महिला है. रेखा शर्मा, उमर 45 साल और ये इस घर की सबसे
शांत महिला है. अपनी जेठानी को बड़ी बेहन मानती है. इनके बच्चे ही इनकी दुनिया है. 2 बड़ी लड़किया
और सबसे छोटा है इनका बेटा अर्जुन. बड़ी बेटी कोमल 21 वर्ष की है ऑर ग्रॅजुयेशन लास्ट एअर मे है.
दूसरी बेटी ऋतु 19 साल की है ऑर अभी एमबीबीएस के फर्स्ट एअर मे है. जहाँ कोमल एकदम भरे शरीर की
आकर्षक युवती है है वही ऋतु लंबी छरहरी काया वाली एक ग़ुस्सेल लड़की. कोमल अपनी माँ रेखा जी
पे गई है ऑर ऋतु अपने पिता शंकर जी की लाडली है. सबसे छोटा है अर्जुन. ये अभी मेट्रिक मे है.
माँ-बाप से ज़्यादा ये अपने दादा-दादी की जान है. अर्जुन मीट्रिक से पहले बोरडिंग मे ही रहा था 8 साल.
और साल मे एक बार ही घर आता था. शुरू से ही रामेश्वर जी का अनुसरण करता आया है. पढ़ाई मे
पूरे घर मे इस जैसा कोई नही. बड़ी बहनो को भी इंग्लीश पढ़ा देता है. पूरे 6 फीट की लंबाई है
इसकी ऑर कसरत का शौकीन. रामेश्वर जी खुद इसको 4:30 बजे उठा देते है ऑर 10 किमी की दौड़ लगा के आने
के बाद 2 गिलास बादाम का दूध अपने सामने पिलाते है. अर्जुन भी रोज रात को अपने दादा जी और दादी जी
के पैर दबाता है जितने दोनो सो नही जाते. कुलमिलाकर ये लड़का इस घर का तारा है.

3. नरेन्दर शर्मा - ये है सबसे छोटे बेटे रामेश्वर जी के. अच्छे कद-काठी के ज़िंदगी से भरपूर
इंसान. 44 साल की उमर मे भी ये किसी कॉलेज के युवक समान है. बहुत ही सरल और हँसमुख व्यक्ति.
इनकी सबसे ज़्यादा अपने भाई शंकर शर्मा से निभती है. दोनो भाई एक दूसरे से बे-इंतिहा प्यार करते है.
ये पंजाब के एक बड़े शहर मे अपने परिवार के साथ रहते है. इनकी पत्नी कृष्णा देवी एक अंतर्मुखी
महिला है. ज़्यादातर सेहत खराब रहती है इनकी ब्लड प्रेशर की वजह से. लेकिन नरेन्दर जी अपनी
बीवी से प्यार बहोत करते है. जिसका परिणाम है इनकी 2 बेहद खूबसूरत बेटियाँ. प्रियंका (21) और
आरती (19). दोनो ही कॉलेज मे है और बिलुल एक जैसी है ये. जवानी से भरपूर, एकदम सही साँचे मे
ढली हुई. शहर के लड़के इनके कॉलेज के बाहर इन दोनो को ही देखने आते है बस ऐसा समझ लीजिए.
लेकिन ये भी बड़ी अनुशासन प्रिया ऑर अपने परिवार की इज़्ज़त रखने वाली लड़कियाँ है. नरेन्दर जी ने इन्हे
कहीं कोई कमी नही होने दी है आजतक. और साल मे 2 बार ये सब लोग कुछ दिनो के लिए अपने बड़े घर
ज़रूर जाते है. गर्मी की छुट्टियों मे और दीवाली के समय. ये रामेश्वर जी की बनाई हुई एक परंपरा
है.

4. मधु शर्मा. रामेश्वर जी की सबसे छोटी औलाद ऑर सब को अपने से छोटा समझने वाली महिला. इतना
घमंड शायद रावण मे ना रहा हो जितना इनमे है. हो भी क्यो ना इनके बाप शहर के सबसे बड़े पोलीस
अधिकारी जो रह चुके. उपर से इनका विवाह भी रामेश्वर जी ने ऐसे परिवार मे कर दिया जहाँ संस्कार से
ज़्यादा पैसा मायने रखता हो. ये रिश्ता करवाया था कौशल्या जी के छोटे भाई हँसमुख ने.

मधु शर्मा की उमर तो है 40 साल लेकिन पैसे ने इनको जवान बना रखा है. दिखने मे ये बिलखुल खजुराहो की
मूर्ति के समान है. इनके पतिदेव श्रीमान अशोक वशिष्ठ जी की खुद की कंपनी है हिमाचल मे जहाँ
बिजली का समान बनाया जाता है. अशोक जी का अधिकतर समय कंपनी और टूरिंग मे ही रहता है. और
मधु शर्मा रहती है अपने 2 बच्चो के साथ हिमाचल के एक खूबसूरत शहर मे. जहाँ साल मे आधा
समय बरफ ही जमी रहती है. बहुत बड़ा घर है इनका ऑर करने को ज़्यादा कुछ है नही. एक बेटी है
तारा (19), बिल्कुल अपनी माँ पे गई है. खूबसूरत, घमंडी और रोब झाड़ने वाली. बेटा हिमांशु (18)
बिल्कुल अलग. होशियार है, प्रकृति प्रेमी और लोगो के बीच खुश रहने वाला. अभी बोरडिंग स्कूल मे
है. वही तारा देल्ही मे फॅशन का कोर्स कर रही है. कुल मिलाकर ये एक अलग परिवार है रामेश्वर
जी के बनाए संसार से.
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अपडेट - 2
प्रारंभ (शुरुआत)

पंडित जी को बागवानी का बहोत शॉक है. अपनी मेहनत से उन्होने 1000 गज के अपने घर मे 500 गज
जगह मे एक खूबसूरत बगीचा बनाया हुआ था जो पूरे घर को और आकर्षक बनाता था. गुलाब, गेन्दा,
चमेली, अशोक, अमरूद, पपीते, अंगूर ऑर पता नही कॉन कॉन से पौधे लगा रखे थे उन्होने. अपने
बच्चो की तरह ध्यान रखते थे वो अपने बगीचे का और उनका पूरा साथ देता था उनके दोनो पोते का.
अपने घर का नाम उन्होने रखा था "संसार" और वाकई मे ये एक संसार ही तो था जिसको उन्होने
अपनी संगिनी कौशल्या के साथ मिलकर बनाना शुरू किया था जब उनके बच्चे भी नही हुए थे. और
आज यही घर सिर्फ़ घर नही रहा था. आशियाना था ये एक भरे पूरे संस्कारी परिवार का. लेकिन
समय कब एक सा रहा है.

2 मंज़िल का ये घर सबके रहने के हिसाब से ही बनाया गया था. जैसे जैसे सदस्य बढ़ते गये
वैसे वैसे कमरे भी बनते गये. पहली मंज़िल पे सबसे आगे रामेश्वर जी की बैठक थी जहाँ
3 सोफे और एक दीवान सजे रहते थे. और कुछ कुर्सिया. उसके पीछे ही थे उनका ऑर कौशल्या जी का
कमरा जिसके साथ एक मंदिर कक्ष भी जुड़ा था. आँगन और बड़ी रसोई इनसे आगे और फिर आख़िर मे 4
कमरे और बने थे. एक कमरा था राजकुआर जी ऑर उनकी पत्नी का, उसके साथ मे उनकी दोनो बेटियो मधुरी ऑर अलका का,
तीसरा कमरा था कोमल और ऋतु का और सबसे आख़िर मे रेखा और शंकर का. शंकर तो महीने मे
कभी एक या 2 बार ही आते थे. सभी कमरे हवादार ऑर बेहद प्यार से सजाए गये थे.

दूसरी मंज़िल. यहाँ पे जाने के लिए 2 रास्ते थे. एक घर के मुख्य द्वार के पास बनी गोलाकार सीढ़ियो
से ऑर दूसरा पिछले आँगन मे बने बाथरूम के साथ बनी सीढ़ियो से. उपर तो कोई आँगन था नही
लेकिन वहाँ 2 पार्टीशन थे. सामने वाले भाग मे 2 कमरे, एक ड्रॉयिंग रूम, एक बाथरूम और एक रसोई जो अब स्टोर का ही काम करती थी. पिछले पोर्शन मे 2 कमरे और एक बाथरूम था. ये वाला हिस्सा अधिकतर बंद ही
रहता था. अगले हिस्से मे सीढ़ियो के सामने वाले कमरे मे संजीव सोता था और दूसरा कमरा था अर्जुन
का. जहाँ सिर्फ़ किताबें ऑर एक सिंगल बेड ही था. पूरे घर मे टीवी सिर्फ़ 2 ही थे. एक पहली मंज़िल
की बैठक मे और दूसरी मंज़िल के ड्रॉयिंग रूम मे. संजीव ने वही पे एक छोटी जिम भी बना रखी थी.
इतना संपन्न परिवार था रामेश्वर जी का लेकिन एक और खास बात थी कि पूरे घर मे कही भी ए.सी. नही
लगवाया गया था. हाँ 4 कूलर ज़रूर थे. ये वो दिन थे जब बिजली भी बहोत जाती थी और ज़्यादा इनवेर्टर
भी प्रचलन मे नही थे. गर्मियो मे बड़े लोग तो नीचे दोनो आँगन मे सो जाया करते थे ऑर बच्चे उपर
खुली छत पे.

आस-पड़ोस भी बड़ा शांत और हरा-भरा था. घर लगभग सभी बड़े थे तो दूर-दूर भी थे. लेकिन
इसके आसपास सभी सहूलियत भी थी. पार्क, थोड़ी दूर पे मार्केट, 3 बड़े स्कूल और एक कॉलेज भी था.
शहर का सबसे खुला सेक्टर था ये और शांतिपूर्ण भी.

चलिए वापिस कहानी पे चलते है.

अर्जुन नहा धो के आया और फिर पंडित जी के पास गया आशीर्वाद लेने. आज उसका आख़िरी इम्तिहान है
दसवी कक्षा का. और इसके बाद एक महीने का आराम.

रामेश्वर जी (आरएस)- मेरा शेर आज कुछ ज़्यादा ही सोया लगता है. बर्खुरदार इतनी मेहनत भी नही करो
कि बिस्तर पकड़ लो. साइन्स का पेपर है?

अर्जुन - क्या बाबा, आप ही तो बोलते हो जिनके सपने बड़े हो उन्हे ज़्यादा जागना चाहिए उन्हे पूरा करने
के लिए. बस ये पर्चा आज हो जाए फिर तो मैं आपके साथ रोज नये फूल उगाउन्गा हमारे बगीचे मे.

आरएस- क्यो नही बेटे. हम दोनो चलेंगे यूनिवर्सिटी और जो नई किसमे आई है वो लगाएँगे यहाँ.
फिर कौशल्या देवी ने अर्जुन को दही-शक्कर खिला के विदा किया. फिर अर्जुन अपनी माँ और ताई
जी के पाव छू आशीर्वाद ले निकल गया.


घर के पास ही उसके क्लासमेट संदीप का भी घर था. अर्जुन और संदीप साथ चल दिए स्कूल.

संदीप- भाई आज का क्या इरादा है? देख आख़िरी दिन है तेरे पास जवाब देने का. मैं तेरी जगह होता
तो कब का खिलाड़ी बन चुका होता.

अर्जुन- पागल है क्या? भाई अभी ये सब की उमर नही अपनी. और उपर से वो मुझे पसंद भी नही.

संदीप - देख मेरे भाई आकांक्षा पे पूरा स्कूल जान देता है और वो सिर्फ़ तुझे देखती है. सुना था
ना इंग्लीश वाले पेपर क टाइम राणा और कुलविंदर क्या बोले थे. "अर्जुन की जगह हम होते तो कब का पेल
दिया होता उस पर-कटी को". देख आज पेपर के बाद जब वो तुझे बुलाए तो कम से कम अकेले मे एक बार
मिल तो लिओ उस से. फिर चाहे जो दिल कर वो करिओ भाई.

अर्जुन- देख भाई ये जो भी है कुछ सही नही है. मैं तुझे मेरी ज़िंदगी का लक्ष्य समझा नही सकता
लेकिन जो तू मुझे सलाह दे रहा है ये उसमे विघ्न ज़रूर डाल सकती है. और रही बात सिर्फ़ मिलने की
तो चल मैं आज मिल लेता हूँ उस से.

(राणा और कुलविंदर स्कूल के सबसे बदनाम लड़के थे. और वो 2 साल सीनियर भी थे अर्जुन के. हर लड़की
इनको सिर्फ़ काम की देवी ही लगती थी. लेकिन दिल के सॉफ थे वो दोनो. सामने से किसी को कुछ नही कहते थे
लेकिन इनके खुद के फैलाए झूठे क़िस्सों ने इन्हे बदनाम किया हुआ था)

बातें करते हुए संदीप और अर्जुन स्कूल पहुँच गये. वहाँ पे खड़ी स्कूल बस से सभी स्टूडेंट्स को
उनके सेंटर पे लेके जाया जाता था. एक बस देख दोनो चढ़ गये लेकिन यही ग़लती हो गई. पूरी बस मे
सिर्फ़ 2 सीट खाली थी जिसमे से एक पे संदीप बैठ गया और दूसरी सीट जिसके साथ वाली सीट पे एक बेहद
ही खूबसूरत सी लड़की बैठी थी वो खाली थी. अर्जुन वही रुक गया बस के गेट पे. लेकिन तभी उनकी
स्कूल टीचर मिसेज़ वालिया की आवाज़ आई.

मिसेज़ वालिया - अर्जुन. खड़े क्यो हो. चलो बैठो वहाँ पे आकांक्षा के साइड मे.

अर्जुन - यस मॅम.

ये वही लड़की थी जिसके बारे मे संदीप बात कर रहा था. दूध सी गोरी, आँखों पर एक स्टाइलिश
नज़र का चश्मा, हल्के गुलाबी होंठ, भूरी आँखें. लड़की क्या साक्षात परी थी वो. और जो मुस्कान
उसके चेहरे पे आई मेडम की बात सुन के बेहद दिलकश. अर्जुन चुपचाप जा कर उसके बगल मे बैठ गया.

आकांक्षा- हाई (बेहद शालीनता से)

अर्जुन- हेलो आकांक्षा

आकांक्षा- नाराज़ हो. देखो उस दिन मैं हार गई थी खुद से और सबके सामने अपने प्यार का इज़हार कर दिया.
मैं और कुछ नही कहूँगी अर्जुन. तुम्हे मेरा प्यार क़बूल हो या नही. बस एक बार पेपर के बाद मुझे
5 मिनिट दे देना. और कुछ नही चाहिए.

अर्जुन- ठीक है. वापिस स्कूल आने के बाद.

ये दोनो जो भी बात कर रहे थे ये इतनी धीमे हो रही थी की शायद ही किसी को सुनाई दे. एग्ज़ॅम का सेंटर
15 किमी दूर था और अभी काफ़ी टाइम बाकी था. दोनो खामोश हो गये थे अब. बाकी स्टूडेंट्स कुछ डिसकस कर
रहे थे कुछ शोर मचा रहे थे. आज आख़िरी इम्तिहान जो था. आकांक्षा खिड़की से बाहर देख रही थी
अपनी ही विचारो मे गुम. अर्जुन, जो संयम और अनुशासन का पक्का था आज उसने पहली बार कनखियो से
उस लड़की की तरफ देखा. उसकी गुम्सुम सी भोली सूरत, सफेद रब्बर मे बँधे गर्दन तक आते बाल जिनमे
से कुछ आज़ाद होकर हवा से उड़ रहे थे. सफेद स्कूल शर्ट मे उसका गुलाबी चेहरा ऐसा लग रहा था
जैसे एक दूध पे रखा गुलाब हो.

"चलो चलो जल्दी करो सब. सब लाइन से एंट्री करेंगे", स्कूल टीचर की आवाज़ सुनाई दी अर्जुन को.
अर्जुन अपने ही मन मे, "ये क्या हुआ. आज एक मिनिट मे ही सेंटर पहुँच गये."
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अर्जुन को पता भी नही चला की कितनी देर से वो उस लड़की को देख रहा था. शायद समय ही रुक गया
था. और एहसास तब हुआ जब मेडम की आवाज़ सुनाई दी.

"हम भी चलें बाहर, देखो सब उतर गये बस से.", अर्जुन ने देखा उन्ही 2 आँखों को जो उसे शरमा के
कुछ बोल रही थी.

अर्जुन - (झिझकते हुए) सॉरी - सॉरी. चलिए

झेंपता हुआ वो बिना किसी की तरफ देखे सीधा बिल्डिंग मे एंटर हो गया. मन मे उथल पुथल मची हुई
थी उसके. ये सब क्या था और ये आज कैसे हो गया. मैं तो कभी उसको पसंद नही करता था तो आज
क्यूँ मेरा ध्यान उसपे गया. ये सब विचार उसके मन को हिला रहे थे. जब कुछ भी नही सूझा तो अर्जुन
ने अपनी आँखें बंद की ऑर खुद से कहा, "ये आख़िरी इम्तिहान है. लक्ष्य से नही भटकना,"

अगले 2 1/2 घंटे उसका ध्यान सिर्फ़ परीक्षा पत्र और उनके उत्तर लिखने मे ही रहा. सभी सवाल हाल
करने के बाद एक बार फिर से उसने पूरे प्रश्न-उत्तर का मिलान किया ऑर अपनी शीट जमा करवा दी. परीक्षा
कक्ष से बाहर आया तो कलाई घड़ी मे देखा कि अभी भी 20 मिनिट बाकी है. वो चुप चाप स्कूल बस की
तरफ चल दिया. वहाँ उसके अलावा कोई भी स्टूडेंट नही था. सिर्फ़ बस के 2-3 ड्राइवर छाया मे खड़े बीड़ी का
कश लगा रहे थे. अर्जुन उनको नज़र-अंदाज़ करता हुआ बस मे आख़िरी सीट पे जाकर बैठ गया. मंन
फिर से अशांत हो रहा था उसका. ये कभी ऐसा नही हुआ था उसके साथ. फिर आज क्यो ऐसा हो रहा है.
जब ध्यान टूटा तो देखा कि बस पूरी भर गई थी ऑर उसके पास दूसरे सेक्षन के स्टूडेंट्स बैठे थे.

30 मिनिट क बाद सभी बस उनके स्कूल के स्टॅंड पे खड़ी थी और सभी लोग एक दूसरे से मिल रहे थे.
अर्जुन चुप चाप निकलने की कोशिश मे मुख्य द्वार की तरफ चल पड़ा. अभी कुछ हे दूर गया था की
उसकी नज़र विपरीत दिशा मे फुटबॉल ग्राउंड के कोने मे पेड़ के नीचे खड़ी आकांक्षा पर पड़ी जो उसकी
तरफ एकटक देख रही थी. अर्जुन सम्मोहित सा चल पड़ा उस तरफ बिना कुछ देखे. संदीप दूर खड़ा
सब देख रहा था और मुस्कुरा रहा था.

आकांक्षा- जा रहे थे ना बिना मिले?

अर्जुन- नही बस संदीप को ढूंड रहा था. तुम यहा अकेली?
आकांक्षा- हा मेरी ज़्यादा फ्रेंड्स नही है स्कूल मे. और तुम्हारा दोस्त तो खुद तुम्हारे हे पीछे चल
रहा था.

अर्जुन नज़र घूमाते हुए देखता है कि सच मे संदीप दूर खड़ा था वही जहाँ कुछ समय पहले अर्जुन
खड़ा था.

"हां वो ज़रा सर दर्द था तो ध्यान नही दिया." कुछ और नही सूझा तो अर्जुन ने यही बोल दिया
अगले ही पल उसको ऐसा लगा जैसे किसी ने बरफ रख दी हो उसके सर पे. आकांक्षा का हाथ उसके
माथे पे था.

"तुम ठीक तो हो?" घबराई सी आवाज़ मे उसने अर्जुन से पूछा..

"आह... हाँ. मैं ठीक हूँ."

10 महीने मे पहली बार आज अर्जुन ने आकांक्षा को इतने करीब से देखा था या यूँ कहे कि उसका
स्पर्श महसूस किया था. उसको ऐसा लगा था के सिर्फ़ हाथ के स्पर्श से इस लड़की ने उसकी आत्मा को
पकड़ लिया हो. आलोकिक अनुभव

"तुम्हे कुछ कहना था मुझ से?" अर्जुन ने होश मे आते ही सवाल किया

"मुझे नही पता कि तुम मेरे बारे मे क्या सोचते हो अर्जुन. शायद जैसा बाकी सब सोचते है
कि मैं एक अमीर, घमंडी, बे-गैरत लड़की हूँ तुम भी ऐसा सोचते होगे. लेकिन मुझे उनके सोचने
से कोई फरक नही पड़ता क्योंकि मुझे उनकी परवाह नही है. मेरे माँ-बाप ने कभी प्यार नही दिया
लेकिन वो सब दिया जिस से लोग मेरे बारे मे ग़लत अनुमान लगते है. मैने कभी किसी की तरफ
नही देखा लेकिन जब भी तुम्हे देखती हूँ तो ऐसा लगता है जैसे बस एक तुम्हारी कमी थी
इस ज़िंदगी मे." बोलते बोलते उस फूल सी खिली लड़की की आँखें नम हो चुकी थी और ये देख
के आज पहली बार अर्जुन का दिल भी पसीज गया था.

वो फिर बोली,"जब मुझे लगा कि अब शायद हम ना मिल पाए तो मैने पिछले एग्ज़ॅम मे तुम्हे प्रपोज़
कर दिया और शायद ये भी एक और ग़लती हो गई मुझ से. मैं तुम्हारे सपनो के बीच नही आना
चाहती अर्जुन लेकिन मेरा सपना अब तुम ही हो. इसलिए मैने पहली बार तुम्हारे दोस्त से भी रिक्वेस्ट
की थी कि वो तुम्हे एक बार मुझ से बात करने के लिए मना ले." इतना बोल कर आकांक्षा अर्जुन की
तरफ आशा भरी नज़रों से देखने लगी.

"सच कहूँ आकांक्षा? आज तक मैने कुछ भी नही सोचा था. एक साल से मैने कभी भी तुम पे
गोर नही किया था. आज सुबह मैने पहली बार तुम्हे देखा था. और अभी मैं यहाँ तुम्हारे पास
खड़ा हूँ. मुझे नही पता कि इस सबका क्या मतलब है लेकिन इतना कहता हूँ कि मैं यहाँ अभी 2 साल
और हूँ. हम दोस्त बन सकते है और बात कर सकते है." हिम्मत कर के अर्जुन ने उसकी आँखों
मे देखते हुए ये सब कहा. लेकिन उसकी बात पूरी होते होते आकांक्षा के चेहरे पे एक छोटी
सी मुस्कान आ चुकी थी. अब तक सभी स्टूडेंट्स जा चुके थे और वहाँ कोई भी नही था.

"मुझे भी सिर्फ़ यही चाहिए अर्जुन." खुशी मे वो अर्जुन के गले लग गई थी. और आज ये
एक और नया एहसास था उसकी ज़िंदगी मे. दोनो ही चल पड़े गेट की तरफ जहाँ संदीप खड़ा
इंतज़ार कर रहा था अर्जुन का. फिर मिलने का बोल के अर्जुन चल दिया अपने दोस्त के साथ घर की तरफ.

"वाह चीते! कमाल कर दिया भाई तूने आख़िर उस से बात कर ही ली", संदीप ने बात शुरू की
"पता नही यार मैं घर की तरफ निकल रहा था लेकिन जैसे ही उसको देखा तो लगा कि ये सही
नही होगा. बात ही तो करनी है, कर ही लेता हूँ. और फिर दोस्त बनाने मे क्या बुराई." अर्जुन बोला

संदीप- भाई वो तुझे पसंद करती है, देखा नही कैसे गले लगी थी. और लड़की भी ग़ज़ब है
तेरी तो लॉटरी लग गई."

अर्जुन- क्या कुछ भी बोलता है. ऐसा कुछ भी नही होता. चल छोड़ ये सब और बता अब एक महीना
क्या करना है?

संदीप"करना क्या है भाई मैं तो आराम करूँगा, जिम शुरू करूँगा और बुक्स लूँगा नेक्स्ट क्लास की."

अर्जुन- कंबाइंड स्टडीस भी कर लेंगे भाई कभी कभी. और जिम तो शायद मैं संजीव भैया
के साथ ही करूँगा."

ऐसे ही बातें करते करते दोनो अपने अपने घर पहुच गये. शाम को मिलने का प्लान बना के.

घर पहुचते ही हाथ-मूह धोया और बैठ गया खाने की टेबल पे अर्जुन.

"सब कहा है? कोई नज़र नही आ रहा दीदी." अर्जुन ने कोमल से पूछा जो उसका खाना लगा रही थी

"मल्होत्रा अंकल के घर आज पूजा है तो सभी वही गये है. और बाबा अपने कमरे मे सो रहे है
वो भी कुछ देर पहले ही आए थे. बाकी सब शाम तक आएँगे." खाना डालते हुए कोमल ने बताया

घर पे कोमल ज़्यादातर कॉटन के सिंपल सूट ही पहनती थी और आज भी उसने वही सिंपल सा नीला
सूट पहना हुआ था. लेकिन शरीर कुछ ज़्यादा ही गदराया हुआ था तो सूट भी छाती से चिपका रहता
था. दुपट्टा लिया नही था गर्मी की वजह से तो जैसे ही वो झुकी तभी अर्जुन की नज़र उसके सूट
से झाँकते उभार पर चली गई. उसने शर्मिंदगी से अपनी नज़र नीचे कर ली. कोमल भी खाना परोस
के चली गई.

"आज शायद सब कुछ ग़लत हो रहा है. ऐसा एहसास पहले कभी नही हुआ था. लेकिन अभी जो हुआ
वो आकांक्षा वाले एहसास से अलग था. बुरा भी लगा लेकिन नही भी." खुद के मन मे ही सोचता हुआ
अर्जुन खाना खा के अपने कमरे मे जा कर लेट गया..
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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Re: Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

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