Incest अनैतिक संबंध

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rajsharma
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Re: Incest अनैतिक संबंध

Post by rajsharma »

ये तो साफ़ था की मैं चाहे कुछ भी कह लूँ या भले ही अपना दिल निकाल कर आशु के सामने रख दूँ ये मानने वाली नहीं हे. अगर इससे प्यार न करता तो अब तक इसे छोड़ देता पर साला अब करूँ क्या ये नहीं पता! ऊपर से मैं भी बावला हो चला था जो आशु के चक्कर में एक से बढ़कर एक बावलापे करने लगा था? क्या जरुरत थी तुझे हरामी यहाँ छत पर खुले में ये सब करने की? पर अगर ये ना करता तो मुझे ये सब कैसे पता चलता? तुझे जरा भी डर नहीं लगा की तू इस तरह आशु को अपने लिंग से चिपटाये पड़ा है? भूल गया वो खेत के बीचों बीच पेड़ की डाल पर लटक रहे भाभी और उनके प्रेमी की अस्थियाँ? वहीँ जा कर मरना है तुझे? और ये क्या तूने आशु को अपने सर पर चढ़ा रखा है? हरामी उसकी हर एक ख्वाइश पागलों की तरह पूरी करता है और बदले में उसे ही तेरे ऊपर विश्वास नहीं! ये कैसा प्यार है?
आशु की सांसें दुरुस्त होने तक मेरा ही दिमाग मेरे दिल को गरिया रहा था. "जानू! क्या सोच रहे हो?" आशु ने मुझे झिंझोड़ा तो मैं अपने 'मन की अदालत' से बाहर आया. मैंने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया बल्कि अपनी टांगें मोड़ कर आशु के इर्द-गिर्द से हटाईं और उठ खड़ा हुआ. आशु फटाफट खडी हुई और मेरा हाथ पकड़ के रोक लिया; "क्या हुआ? कहाँ जा रहे हो?" मैं अब भी कोई जवाब नहीं दिया और उसके हाथों की गिरफ्त से अपना हाथ छुड़ाया और आंगन में आ गया.आशु छत पर से नीचे झाँकने लगी और फिर उसे मैं बाथरूम में जाता हुआ नजर आया. आशु छत पर खडी नीचे देखती रही और इंतजार करने लगी की मैं बाथरूम से कब निकलुंगा. मैंने निकल कर ऊपर देखा तो वो अब भी वहीँ खड़ी थी और मेरे ऊपर आने का इंतजार कर रही थी. मैं अगर उस समय ऊपर जाता तो वो मुझसे पूछती की मेरे उखड़ जाने का कारन क्या है और तब मेरा कुछ भी कहना बवाल खड़ा कर देता, ऐसा बवाल जिसे सुन आज काण्ड होना तय था. इसलिए में आंगन में पड़ी चारपाई पर ही लेट गया पर आशु अपनी जगह से टस से मस ना हुई और टकटकी बांधे मुझे देखती रही. मैंने अपनी आँखें बंद की और सोने की कोशिश करने लगा, जो बात मेरे दिम्माग में चल रही थी वो ये थी की मुझे अपने दिल पर काबू रखना होगा वरना आशु मुझे कहीं फिर से अपनी जिस्म के जरिये पिघला ना ले.
पिछले नौ दिनों से जो हम दोनों के बीच जिस्मानी दूरियाँ आई थी उससे कुछ तो काम आसान हो गया था पर आज उस कर्म वाले काण्ड ने फिर से उस दबी हुई आग को हवा दे दी थी. शायद इस तरह उससे दूरियाँ बनाने से आशु को कुछ अक्ल आये, अब क्योंकि उसकी हर ख़ुशी पूरी करने के चक्कर में मैं अपनी और नहीं लगवाना चाहता था. शादी के बाद चाहे वो मुझसे जो करवा ले पर उससे पहले तो हम दोनों को म्याचुरिटी दिखानी होगी. पर दिमाग जानता था की कुछ होने वाला नहीं है...काण्ड तो होना ही है! इधर आशु की हिम्मत नहीं हो रही थी की वो नीचे आ कर मुझसे पूछ सके की मैं क्यों उसके साथ ऐसा बर्ताव कर रहा हूँ? वो पैरापिट वाल पर अपनी कोहनियाँ टिकाये मुझे बस देखती रही! वो पूरी रात मैं बस करवटें बदलता रहा और बार-बार आशु को खुद को देखते हुए नोटीस करता रहा.
सुबह हुई तो ताई जी उठ के आंगन में आईं; "अरे बिटवा? तू यहाँ क्या कर रहा है?" उन्होंने पूछा. उन्हें देखते ही आशु नीचे आ गई; "ताई जी..वो रात को पेट ख़राब हो गया था इसलिए मैं नीचे ही लेट गया." मैंने झूठ बोला. ताई जी मेरे पास बैठ गईं और आशु बाथरूम में नहाने घुस गई और फ्रेश हो कर चाय बनाने लगी. मैं भी उठा और नहा धो के तैयार हो गया और अब तो घर वाले सब बारी-बारी नाहा के नाश्ते के लिए तैयार बैठे थे. "राज , नारायण भैया तुम लोगों के साथ जायेगा." ताऊ जी ने कहा और मैंने बस 'जी' कहा. पर ये सुनते ही आशु को बहुत गुस्सा आया, वो सोच रही थी की वो शहर जा कर मुझसे कल रात के उखड़ेपन का कारन पूछेगी पर नारायण भैया के साथ जाने से उसके प्लान पर पानी फिर गया था. पर मुझे तो जैसे कोई फर्क ही नहीं पड़ा था. नाश्ता कर के हम तीनों निकले और बस स्टैंड तक पैदल चल दिये. आशु पीछे थी और आगे-आगे मैं और नारायण भैया थे. वो अपनी बातें किये जा रहे थे और मैं बस हाँ-हुनकुर ही कर रहा था. बस आई और हम तीनों चढ़ गए, आशु तो एक अम्मा के साथ बैठ गई. हम दोनों खड़े रहे और कुछ देर बाद हमें सीट मिल गई. मुझे नींद आ रही थी तो मैं खिड़की से सर लगा कर सो गया पर आशु के मन में उथल-पुथल मची थी. बस स्टैंड पहुँच कर नारायण भैया को तहसीलदार के जाना था और उसे वहाँ का कुछ पता नहीं था तो हमने एक ऑटो किया और उसमें बैठ गये. सबसे पहले आशु हुई, फिर मैं और आखरी में नारायण भैया घुसा. मैं आशु की तरफ ना देखकर सामने देख रहा था. अब आशु मुझसे बात करने को मरे जा रही थी पर अपने बाप के डर के मारे कुछ कह नहीं पा रही थी. आशु ने चुपके से मेरा दाहिना हाथ पकड़ लिया पर मैंने किसी तरह हाथ छुड़ा लिया और नारायण भैया से बात करने लगा. पहले आशु का कॉलेज आया और उसे वहाँ उतारने लगे तो लगा जैसे वो जाना ही ना चाहती हो! "जा ना?" मैंने कहा तो आशु सर झुकाये कॉलेज के गेट की तरफ चली गई और हमारा ऑटो तहसीलदार के ऑफिस की तरफ चल दिया. नारायण भैया को वहाँ छोड़ कर मैं घर आ गया और मेल देखने लगा की शायद कोई जॉब ओपनिंग आई हो. एक मेल आई थी तो मैं वहाँ इंटरव्यू के लिए चल दिया. शाम को ४ बजे घर पहुँचा और आ कर ऐसे ही लेट गया.ठीक ५ बजे दरवाजे पर दस्तक हुई और मैंने जब दरवाजा खोला तो सामने आशु खड़ी थी.
आशु बिना कुछ कहे अंदर आई और दरवाजा उसने लात मार कर मेरी आँखों में देखते हुए बंद किया. फिर अगले ही पल उसकी आँखें छल-छला गईं और उसने मेरी कमीज का कालर पकड़ लिया और मुझे पीछे धकेलने लगी. "क्या कर दिया मैंने जो आप मुझसे इस तरह उखड़े हुए हो? कल रात से ना कुछ बोल रहे हो न कुछ बात कर रहे हो? ऐसा क्या कर दिया मैंने? कम से कम मुझे मेरा गुनाह तो बताओ? आपके अलावा मेरा है कौन और आप हो की मुझसे इस तरह पेश आ रहे हो?" आशु एक साँस में रोते-रोते बोल गई पर उसका मुझे पीछे धकेलना अब भी जारी था. मैंने पहले खुद को पीछे जाने से रोका और फिर झटके से उसके हाथों से अपना कालर छुड़ाया और बोला; "गलती पूछ रही है अपनी? तूने मुझे समझ क्या रखा है? तुझे क्या लगता है की तू मुझे अपने जिस्म की गर्मी से पिघला लेगी? तुझे इतना समझाया, इतनी कसमें खाईं की मैं तुझसे प्यार करता हूँ और सिर्फ तेरा हूँ पर तेरी ये इनसिक्युरीटी खत्म होने का नाम ही नहीं लेती? इसी लिए जयपुर से आने के बाद मुझसे इतना चिपक रही थी ना? मैं तो साला तेरे चक्कर में पागल हो गया था. तुझे गाँव छोड़ के उल्लू की तरह जागता रहता था. तेरे जिस्म ने तो मुझे कहीं का नहीं छोड़ा था. वो तो शुक्र है की मैंने व्रत रखे और खुद पर काबू पाया वरना मैं भी तेरी तरह हरकतें करता! क्या-क्या नहीं किया मैंने तेरे प्यार में और तुझे ये सब मज़ाक लग रहा है? तुझे मनाने के लिए क्या-क्या नहीं किया मैंने? इतना जोखिम उठा कर कल पहले तुझे खेतों में ले गया और फिर पहले तेरे कमरे में आना और वो रात को छत पर बैठना? पर तुझे तो बस अपने जिस्म की आग बुझानी है मुझसे! एक दिन अगर तुझे मैं ना छुओं तो तेरे बदन में आग लग जाती है! तुझे पता भी है की तू अपनी इस जलन के मारे कब क्या बोल देती है की तुझे खुद नहीं पता होता. क्या जरुरत थी तुझे आंटी जी से कहने की कि मेरी जॉब चली गई? अगर मैं बात नहीं पलटता तू तो वहाँ सब कुछ बक देती!
निशा को तू जानती है ना, वो मुँहफ़ट है पर दिल की साफ़ हे. वो जानबूझ कर मुझसे मज़ाक करती है और ये सुन कर तुझे किस बात का गुस्सा आता है? भाभी को भी तू अच्छे से जानती है ना? उसके मन में क्या-क्या है वो सब जानती है तू और तूने ही मुझे उनके बारे में आगाह किया था पर आज तक मैंने कभी उनकी तरफ आँख उठा के नहीं देखा. जब मैं बिमारी में गाँव गया था तो उसने क्या-क्या नहीं किया मुझे उकसाने के लिए. पर तेरे प्यार की वजह से मैं नहीं बहका, इससे ज्यादा तुझे और क्या चाहिए?
देख मैं तुझे आज एक बात आखरी बार बोल देता हूँ, आज के बाद अगर मुझे ये तेरी इनसिक्युरीटी दिखाई दी तो दिस विल् बी दीं एंड ऑफ अवर रिलेशनशिप!” मेरी बातें सुन आशु फफक के रोने लगी और अपने घुटनों के बल बैठ गई और हाथ जोड़ कर मिन्नत करते हुए बोली; "मुझे माफ़ कर दो! प्लीज ....मेरा आपके अलावा और कोई नहीं! ये सच है की मैं इनसिक्युअर हूँ आपको ले कर पर ये भी सच है की मैं आपसे सच्चा प्यार करती हु. मैंने आपसे प्यार संभोग के लिए नहीं किया, बल्कि इसलिए किया क्योंकि इस दुनिया में सिर्फ एक आप हो जो मुझसे प्यार करते हो."
"तो तुझे ये बात समझ में क्यों नहीं आती की मैं सिर्फ तुझसे प्यार करता हूँ? मैंने आज तक तेरे सामने कभी किसी से फ्लर्ट नहीं किया तो ये काहे बात की इनसिक्युरीटी है?! तुझे ऐसा क्यों लगता है की तुझ में कुछ कमी है? मैं तुझे छोड़ कर किसके पास जाऊँगा? बोल???"
"मुझे नहीं पता...बस डर लगता है की कोई आपको मुझसे छीन लेगा!" आशु ने अपने दोनों हाथों को मेरी कमर के इर्द-गिर्द लपेट लिया.
"कोई और नहीं....तू खुद ही मुझे अपने से दूर कर देगी." मैंने खुद को उसकी गिरफ्त से आजाद करते हुए कहा.
"नहीं ...प्लीज ऐसा मत कहिये!"
"तुझे पता है मैं कितनी परेशानियों से जूझ रहा हूँ? कितनी जिम्मेदारियाँ मेरे सर पर हैं? जॉब नहीं है, सेविंग्स नहीं हैं और दो साल बाद हमें भाग कर शादी करनी है! क्या-क्या मैनेज करूँ मैं? मैंने तुझसे आजतक कुछ माँगा है? नहीं ना? फिर? "
"एक लास्ट चांस दे दो!आई प्रॉमिस ... अब ऐसा कुछ भी नहीं करूँगी!आई प्रॉमिस ...!!!" आशु ने अपने आँसू पोछे और सुबकते हुए कहा. पर में जानता था की इसके मन की ये सोच कभी नहीं जा सकती. पर सिवाए कोशिश करने के मैं कुछ कर भी नहीं सकता था. प्यार जो करता था उस डफर से! मैं उसके सामन घुटनों पर बैठा और अपने बाएं हाथ से उसके बाल पकडे और उन्हें जोर से खींचा की आशु की गर्दन ऊपर को तन गई और उसकी नजरें ठीक मेरे चेहरे पर थीं;
"मैं बस तेरा हूँ...समझी?" आशु ने सुन कर हाँ में सर हिलाया पर मैं उससे 'हाँ' सुनने की उम्मीद कर रहा था. उसके कुछ न बोलने और सिर्फ सर हिलाने से मुझे गुस्सा आया और मैंने उसके बाएँ गाल पर एक चपत लगाईं और अपना सवाल दुबारा पुछा; "मैंने कुछ पुछा तुझसे? मैं सिर्फ तेरा हूँ.... बोल हाँ?" तब जा कर आशु के मुँह से हाँ निकला.
"तू सिर्फ मेरी है!" मैंने कहा.
"ह...हाँ!" आशु ने डर के मारे कहा.
"मैं किस्से प्यार करता हूँ?" मैंने आशु के गाल पर एक चपत लगाते हुए पूछा.
"म....मु...मुझसे!"
"तू किससे प्यार करती है?"
"आपसे!"
"और हम दोनों के बीच में कभी कोई नहीं आ सकता!" आशु ने ये सुन कर हाँ में गर्दन हिलाई पर मुझे ये जवाब नहीं सुनना था तो मैंने फिर से उसके गाल पर एक चपत लगाईं और तब जा कर आशु को समझ आया की मैं क्या सुनना चाहता हु.
"ह...हम दोनों के बीच...कोई नहीं आ सकता!" आशु ने घबराते हुए कहा.
आशु की आँखें रोने से लाल हो चुकी थीं और अब मुझे उस पर तरस आने लगा था. इसलिए मैंने उसके बाल छोड़ दिए और अपनी दोनों बाहें खोल दी. आशु घुटनों के बल ही मेरे सीने से लिपट गई और फिर से रोने लगी. मैंने आशु के बालों में हाथ फेरना शुरू किया ताकि उसका रोना काबू में आये; "बस ...बस... हो गया! और नहीं रोना!" ये सुन आशु ने धीरे-धीरे खुद पर काबू किया और रोना बंद किया. मैंने उसे अपने सीने से अलग किया और उसके आँसू पोछे फिर मैं खड़ा हुआ और उसे भी सहारा दे कर खड़ा किया. "जाके मुँह धो के आ फिर मैं तुझे हॉस्टल छोड़ देता हु." आशु मुँह-धू कर आई और फिर से मेरे गले लग गई; "आपने मुझे माफ़ कर दिया ना?" मैंने उसके जवाब में बस हाँ कहा और फिर उसे खुद से दूर किया और दरवाजा खोल कर बाहर उसके आने का इंतजार करने लगा. आशु बेमन से बाहर आई और शायद उसके मन में अब भी यही ख़याल चल रहा था की मैंने उसे माफ़ नहीं किया हे. मैंने पहले उसे उसका फ़ोन वापस किया और फिर नीचे से ऑटो कर उसे हॉस्टल छोडा. घर पहुँचा ही था की मेरा फ़ोन बज उठा, ये किसी और का नहीं बल्कि आशु का ही था. उसने सुमन के फ़ोन से मुझे कॉल किया था. ये सोच कर की मैं शायद उसका कॉल न उठाऊँ. मैंने कॉल उठाया" जानू! आपकी एक मदद चाहिए!"
"हाँ बोल" मैंने सोचा कहीं कोई गंभीर बात तो नहीं? पर अगर ऐसा कुछ होता तो वो उस वक़्त क्यों नहीं बोली जब वो यहाँ थी? "वो कॉलेज के असाइनमेंट्स में एक प्रोजेक्ट मिला था. बाकी साब तो हो गया बस एक वही प्रोजेक्ट बचा हे.तो कल आप मेरा प्रोजेक्ट शुरू कर व दोगे?" मैं समझ गया की ये कॉल बस उसका ये चेक करना था की मैंने उसे माफ़ किया है या नहीं? "कल शाम ५ बजे मुझे राम होटल पर मिल" अभी बात हो ही रही थी की मुझे पीछे से सुमन की आवाज आई; "डॉली तेरी बात हो जाए तो मुझे फ़ोन दियो." आशु ने बड़े प्यार से कहा; "मेरी बात हो गई दीदी!" और उसने फ़ोन सुमन को दे दिया. "राज जी! मैं तो आपको अपना दोस्त समझती थी और अपने ही मुझे पराया कर दिया?"
"अरे! मैंने क्या कर दिया?" मैंने चौंकते हुए कहा.
"आप ने अपनी जॉब के बारे में क्यों नहीं बताया?" सुमन ने सवाल दागा.
"अरे...वो...याद नहीं रहा?" मैंने बहाना मारा.
"क्या याद नहीं रहा? वो तो माँ ने मुझे बताया तब जाके मुझे पता चला. मैं देखती हूँ कुछ अगर होता है तो आपको बताती हु."
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
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"थैंक यू" मैंने कहा. बस इसके बाद उसने मुझसे कहा की मैं उसे अपना रिज्यूमे भेज दूँ और वो एक बार अपनी कंपनी में बात कर लेगी. रात को बिना कुछ खाये-पीये ही लेट गया, आज जो मैं कहा और किया वो मुझे सही तो लग रहा था पर शायद मेरा आशु के साथ किया व्यवहार मुझे ठीक नहीं लग रहा था. मेरा उस पर गुस्सा निकालना ठीक नहीं था....शायद!
अगली सुबह उठा पर आज मुझे कहीं भी नहीं जाना था तो मैं घर के काम निपटाने लगा, झाडू-पोछा कर के घर बिलकुल चकाचक साफ़ किया फिर खाना खाया और फिर से सो गया.शाम को पाँच बजे मैं राम होटल पहुँचा तो देखा की आशु वहां पहले से ही खड़ी हे. हम दोनों पहले की ही तरह मिले और फिर उसने मुझे प्रोजेक्ट के बारे में बताया और हम दोनों उसी में लग गये. घण्टे भर तक हम उसी पर चर्चा करते रहे और थोड़ा हंसी मजाक भी हुआ जैसे पहले होता था. आगे कुछ दिनों तक इसी तरह चलता रहा, हमारा प्यार भरा रिश्ता वापस से पटरी पर आ गया था पर आशु अब मुझे नार्मल लग रही थी. मतलब अब उसका वो पजेसिवनेस और इनसिक्युअर होना कम हो गया था. मुझे नहीं पता की सच में वो खुद को काबू कर रही थी या फिर नाटक, मैंने यही सोच कर संतोष कर लिया की कम से कम अब वो पहले की तरह तो बीह्याव नहीं कर रही.
करवाचौथ से दो दिन पहले की बात थी और आशु मुझे कुछ याद दिलाना चाहती थी. पर झिझक रही थी की कहीं मैं उस पर बरस न पडूँ| मैंने फ़ोन निकाला और घर फ़ोन किया; "नमस्ते पिताजी! एक बात पूछनी थी. दरअसल ऑफिस में काम थोड़ा ज्यादा है और बॉस ज्यादा छुट्टी नहीं देगा.तो अगर मैं करवाचौथ की बजाये दिवाली पर छुट्टी ले कर आ जाऊँ तो ठीक रहेगा?" मैंने जान बूझ कर बात बनाते हुए कहा, कारन साफ़ था की कहीं कोई यहाँ आशु को लेने ना टपक पडे. "तूने वैसे भी करवाचौथ पर आ कर क्या करना था? शादी तो तूने की नहीं! पर दिवाली पर अगर यहाँ नहीं आया तो देख लिओ!" पिताजी ने मुझे सुनाते हुए कहा. "जी जरूर! दिवाली तो अपने परिवार के साथ ही मनाऊँगा!" बस इतना कह कर मैंने फ़ोन रखा. आशु जो ये बातें सुन रही थी सब समझ गई और उसका चेहरा ख़ुशी से जगमगा उठा. "कल सुबह मैं लेने आऊँगा, तैयार रहना!" मैंने मुस्कुराते हुए कहा और ये सुनके आशु इतना चिहुँकि की मुझे गले लगना चाहा, पर फिर खुद ही रूक गई क्योंकि हम बाहर पार्क में बैठे थे. मैंने मन ही मन सोचा की शायद आशु को अक्ल आ गई है!
अगली सुबह मैं जल्दी उठा और अपनी बुलेट रानी की अच्छे से धुलाई की, आयल चेक किया और फिर नाहा-धो कर आशु को लेने चल दिया. आशु पहले से ही अपना बैग टाँगे गेट पर खड़ी थी. मेरी बाइक ठीक हॉस्टल के सामने रुकी और वो मुस्कुराती हुई आ कर पीछे बैठ गई. मैंने बाइक सीधा हाईवे की तरफ मोड़ दी और आशु हैरानी से देखने लगी; "हम घर नहीं जा रहे?" उसने पीछे बैठे हुए पूछा. तो मैंने ना में गर्दन हिलाई और इधर आशु का मुँह फीका पड़ गया, उसे लगा की हम गाँव जा रहे हे. एक घंटे बाद मैंने हाईवे से गाडी स्टेट हाईवे १३ पर गाडी मोडी तो आशु फिर हैरान हो गई की हम जा कहाँ रहे हैं? आखिर आधे घंटे बाद जब बाइक रुकी तो हम एक शानदार साडी की दूकान के सामने खड़े थे. आशु बाइक से उत्तरी और सब समझ गई और मेरी तरफ हैरानी से देखने लगी; "जानू! आप.... थैंक यू!" वो कुछ कहने वाली थी पर फिर रूक गई. मैंने बाइक पार्क की और हम दूकान में घुसे और वहाँ आज बहुत भीड़भाड़ थी. ये दूकान मेरे कॉलेज के दोस्त की थी और मैं यहाँ से कई बार ताई जी और माँ के लिए साडी ले गया था.
मुझे देखते ही प्रसाद (मेरा दोस्त) काउंटर छोड़ कर आया और हम दोनों गले मिले "अरे भाभी जी! आइये-आइये!" उसने आशु से हँसते हुए कहा. "यार अभी शादी नहीं हुई है, होने वाली है!" मैंने कहा. "तभी मैं सोचूँ की तूने शादी कर ली और मुझे बुलाया भी नहीं!" ये सुन कर हम तीनों हँसने लगे, प्रसाद ने अपने एक लड़के को आवाज दी: "भाई और भाभी को साड़ियाँ दिखा और रेट स्पेशल वाले लगाना."
"यार एक हेल्प और कर दे, स्टिचिंग कल तक करवा दे यार जो एक्स्ट्रा लगेगा मैं दे दूँगा!" मैंने कहा और वो ये सुन कर मुस्कुरा दिया.
"हुस्ना भाभी के पास माप दिलवा दिओ और बोलिओ प्रसाद भैया के भाई हैं." मैंने उसे थैंक्स कहा, फिर वो वापस कॅश काउंटर पर बैठ गया और हम दोनों को वो लड़का साड़ियाँ दिखाने लगा. आज पहलीबार था की आशु अपने लिए साडी ले रही थी और बार-बार मुझसे पूछ रही थी की ये ठीक है? आखिर मैंने उसके लिए साडी पसंद की और फिर हम माप देने के लिए उस लड़के के साथ चल दिये. हुस्ना आपा बड़ी खुश मिज़ाज थीं और उन्होंने बड़ी बारीकी से माप लिया और ब्लाउज के कट के बारे में भी आशु को अच्छे से समझाया. जब मैंने पैसे पूछे तो उन्होंने २०००/- बोले जिसे सुनते ही आशु मेरी तरफ देखने लगी. पैसे ज्यादा थे पर साडी भी तो कल मिल रही थी. मैंने जेब से पैसे निकाल के उन्हें दिए और कल १२ बजे का टाइम फिक्स हुआ! हम वापस दूकान आये और कॅश काउंटर पर प्रसाद ने जबरदस्ती हमें बिठा लिया और चाय मँगा दी. मैंने जब उससे पैसे पूछे तो उसने २,५००/- कहा, जब की साडी पर ३,५००/- लिखा था. वो हमेशा जी मुझे होलसेल रेट दिया करता था. पर आशु के लिए तो ये भी बहुत था वो फिर से मेरी तरफ देखने लगी. मैंने पेमेंट कर दी और हम बाहर आ गए; "जानू! आपने इतने पैसे क्यों खर्च किये?" आशु ने पुछा तो मैंने उसके दोनों गाल उमेठते हुए कहा; "क्योंकि ये मेरी जान का पहला करवाचौथ है! इसे स्पेशल तो होना ही है?" आशु की आँखें भर आईं थी. मैंने उसके आँसू पोछे और हम घर के लिए निकल पडे. घर के पास ही बाजार था वहाँ मुझे मेहँदी लगाने वाली औरतें दिखीं तो मैंने आशु को मेहँदी लगवाने को कहा. मेहँदी लगवाने के नाम से ही वो खुश हो गई और फिर उसने अपने पसंद की मेहँदी लगवाई और मुझे दिखाने लगी. आखिर हम घर आ गए और अब भूख बड़ी जोर से लगी थी. इस सब में मैं कुछ खाने को लेना ही भूल गया, मैंने कहा की मैं खाना ले कर आता हूँ तो आशु मना करने लगी; "मेरा मन आज मैगी खाने का हे." आशु बोली और मैं समझ गया की वो क्यों मना कर रही है, मैं और पैसे खर्चा न करूँ इसलिए. मैंने मैगी बनाई और आशु को अपने हाथ से खिलाया क्योंकि उसके तो हाथों में मेहँदी लगी थी.
खाना खाने के बाद मैंने लैपटॉप पर एक पिक्चर लगा दी, आशु ने कहा की हम नीचे फर्श पर बैठें.मैं नीचे बैठा और अपनी दोनों टांगें वी के आकार में खोलीं और आशु मुझसे सट कर बीच में बैठ गई. लैपटॉप सेंटर टेबल पर रखा था. आशु ने अपना सर मेरी छाती पर रख दिया. अपने दोनों हाथ मेरी टांगों पर खोल कर रखे और सामने मुँह कर के पिक्चर देखने लगी. पिक्चर देखते-देखते आशु को नींद का झोंका आने लगा और उसकी गर्दन इधर-उधर गिरने लगी. मैंने अपने दोनों हाथों को आशु की गर्दन के इर्द-गिर्द से घुमाते हुए उसके होठों के सामने लॉक कर दिया. आशु ने मेरे हाथ को चूमा और फिर मेरी दाहिने बाजू का सहारा लेते हुए सो गई. शाम होने को आई थी और अब चाय बनाने का समय था. पर आशु ने बड़ी मासूमियत से अपने हाथ मुझे दिखाते हुए तुतला कर कहा: "जानू! मेरे हाथों में तो मेहँदी लगी है! आप ही बना दो ना!" उसके इस बचपने पर ही तो मैं फ़िदा था! मैंने मुस्कुराते हुए चाय बनाई और अब बारी थी उसे चाय पिलाने की. हम दोनों फिर से वैसे ही बैठ गए और मैंने फूँक मार के उसे चाय पिलाई. सात बज गए पर आशु जानबूझ कर अब भी अपने हाथ नहीं धो रही थी. उसे मुझसे काम कराने में मजा आ रहा था. जब मैंने उससे पुछा की रात में क्या बनाऊँ तब वो हँसने लगी और बाथरूम में जा कर हाथ धोये और नहा कर आ गई. "आप हटिये, मैं बनाती हूँ!" पर मेरी नजरें उसके हाथों पर थीं जिन पर मेहँदी फ़ब रही थी. मैंने उसके दोनों हाथों को पकड़ा और उन्हें चूम लिया. आशु शर्मा गई और फिर आशु ने भिंडी की सब्जी और उर्द दाल बनाई. खाना तैयार हुआ और हम दोनों बैठ गए खाने, पर इस बार खाना आशु ने मुझे खिलाया. पेट भर के खाना खाया और अब बारी थी सोने की पर आशु बस अपने मेहँदी वाले हाथ देखने में मग्न थी. "क्या देख रही है?" मैंने मुस्कुराते हुए पूछा. उसने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे अपने पास बिठा लिया, फिर अपने दोनों हाथों को मेरी गर्दन के इर्द-गिर्द लपेट कर मेरे कंधे पर सर रखते हुए बोली; "आज मैं बहुत खुश हूँ! आपने बिना मेरे मांगे मेरी हर इच्छा पूरी कर दी! मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था की मुझे आज का दिन देखना नसीब होगा! साडी खरीदना... मेहंदी लगवाना...ये सब मेरे लिए लिए एक सपने जैसा हे. थैंक यू! फॉर मेकिंग दिस डे सो मेमोरेबल!" मैंने आशु के सर को चूमा और हम दोनों लेट गए, पर आज कमरे का वातावरण बहुत शांत था. पहले आशु लेटते ही जैसे अपना आपा खो देती थी और मुझसे चिपक कर चूमना शुरू कर देती थी. पर आज वो बस मुझसे कस कर लिपटी रही और सो गई. मैं इस उम्मीद में की आशु कोई पहल करेगी कुछ देर जागता रहा पर जब मुझे लगा वो सो चुकी है तो मैं भी चैन से सो गया.
अगली सुबह आशु पहले ही जाग चुकी थी और बाथरूम में नहा रही थी. मैं उठा और खिड़की से पीठ टिका कर हाथ बंधे आशु के बाहर निकलने का इंतजार करने लगा. १० मिनट बाद आशु निकली, टॉवल अपने स्तनों के ऊपर लपेटे हुए और उसके गीले बाल जिन से अब भी पानी की बूँदें टपक रही थी. साबुन और शैम्पू की खुशबू पूरे कमरे में भर गई थी और मैं बस आशु को देखे जा रहा था. मुझे खुद को देखते हुए आशु थोड़ा शर्मा गई और शर्म से उसके गाल लाल हो गये. "क्या देख रहे हो आप?" उसने नजरें झुकाते हुए पूछा. "यार या तो शायद मैंने कभी गौर नहीं किया या फिर वाक़ई में आज तुम्हें पहली बार इस तरह देख रहा हूँ! मन कर रहा है की तुम्हें अपनी बाहों में कस लूँ और चूम लूँ!" मैंने कहा तो आशु हँसने लगी; "रात भर का सब्र कर लो, उसके बाद तो मैं आपकी ही हूँ!" "हाय! रात भर का सब्र कैसे होगा!" मैंने कहाँ और आशु की तरफ बढ़ने लगा, पर मैंने उसे छुआ नहीं बल्कि बाथरूम में घुस गया.आशु उम्मीद कर रही थी की मैं उसे अपनी बाहों में भर लूँगा पर जब मैं उसकी बगल से गुजर गया तो वो थोड़ा हैरान हुई. जब मैं नहा कर निकला तो आशु अपने बाल सूखा रही थी. मैं बाहर आया और आशु से बोला; "जल्दी से तैयार हो जाओ!"
"क्यों? अब कहाँ जाना है?" आशु ने रुकते हुए पूछा.
"पार्लर" ये सुन के आशु आँखें फाड़े मुझे देखने लगी!
"पर ...वहाँ...." आगे उसे समज ही नहीं आया की क्या बोलना हे.
"अरे बाबा! आज के दिन औरतें पार्लर जाती हैं और पता नहीं क्या-क्या करवाती हैं, तो तुम्हें भी तो करवाना होगा न?!" आशु ने तो जैसे सोचा ही नहीं था की उसे ऐसा भी करना होगा.
"पर ...मुझे तो पता नहीं...वहाँ क्या..." आशु ने डरी हुई आवाज में कहा क्योंकि वो आजतक कभी पार्लर नहीं गई थी. हमारे गाँव में तो कोई पार्लर था नहीं जो उसे ये सब पता होता.
"जान! वहाँ कोई एक्सपेरिमेंट नहीं होता जो तू घबरा रही है! जो सजने का काम तू घर पर करती है वही वो लोग करेंगे." अब पता तो मुझे भी ज्यादा नहीं था तो क्या कहता.
"तो मैं यहीं पर तैयार हो जाऊँगी, वहाँ जा कर पैसे फूँकने की क्या जरुरत है?"
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साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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Re: Incest अनैतिक संबंध

Post by rajsharma »

मैंने थोड़ा गुस्सा करते हुए कहा. "अच्छा? कहाँ है तेरे मेक-अप का सामान? ये एक नेल पोलिश....और ये एक फेसवाश....ओह वेट ये...ये फेस क्रीम...बस?! फाउंडेशन कहाँ है? और...वो क्या बोलते हैं उसे...मस्कारा कहाँ है?" ये एक दो नाम ऐसे थे जो मैंने कहीं सुने थे तो मैंने उन्हीं को दोहरा दिया. ये सुन कर तो आशु भी सोच में पड़ गई क्योंकि उसके पास कोई सामान था ही नहीं, वो मुझे सिंपल ही बहुत अच्छी लगती थी पर आज तो उसका पहला करवाचौथ था तो सजना-सवर्ना तो बनता था.
"पर वहाँ जा कर मैं बोलूं क्या? की मुझे क्या करवाना है? मुझे तो नाम तक नहीं पता की वो क्या-क्या करते हैं." आशु ने पलंग पर बैठते हुए कहा.
'वहाँ जा कर पूछना की पायथ्यागोरस थ्योरम क्या होती है?" मैंने थोड़ा मजाक करते हुए कहा.
"वो तो मुझे आती है“ ये कहते हुए आशु हँसने लगी.
"तू ऐसे नहीं मानेगी ना? रुक अभी बताता हूँ तुझे मैं" इतना कह कर मैं आशु को पकड़ने को उसके पीछे भागा और हम दोनों पूरे घर में भागने लगे. मैं चाहता तो आशु को एक झटके में पकड़ सकता था पर उसके साथ ये खेल खलेने में मजा आ रहा था. वो कभी पलंग पर चढ़ जाती तो कभी दूसरे कोने में जा कर मुझे चीढाने की कोशिश करती.आखिर मैंने उस का हाथ पकड़ लिया और उसे बिस्तर पर बिठा दिया और उसके सामने मैं अपने घुटनों पर बैठ गया; "देख...पार्लर जा और वहाँ जा कर मेनीक्योर, पेडीक्युर, ब्लिचिंग, फेशियल, थ्रीडिंग वगैरह-वगेरा करवा| फिर भी कुछ समझ ना आये तो अपना दिमाग इस्तेमाल कर और जो भी तुझे वहाँ पर ऑल - इन वन पैक मिले उसे करवा ले| वहाँ जो भी आंटी या दीदी होंगी उनसे पूछ लिओ और ये जो तेरे फ़ोन में गूगल बाबा हैं इनमें सर्च कर ले.अब मैं तेरे आगे हाथ जोड़ता हूँ प्लीज चली जा!" मैंने आशु के आगे हाथ जोड़े और वो ये देख कर खिलखिलाकर हँस पडी. "ठीक है जी! पर पार्लर तक तो छोड़ दो, मुझे थोड़े पता है यहाँ पार्लर कहाँ हे." आशु ने हार मानते हुए कहा.
"इतने दिनों से या आती है तुझे ये नहीं पता की पार्लर कहाँ है?" मैंने आशु को प्यार से डांटा.
"आपके लिए चाय बना देती हूँ फिर चलते हैं." आशु ने कहा पर मेरा प्लान तो उसके साथ व्रत रखने का था.
"बिलकुल नहीं! मेरी बीवी भूखी-प्यासी बैठी है और मैं खाना खाऊँ?" मेरे मुँह से बीवी सुनते ही आशु का चेहरे ख़ुशी से दमकने लगा.
"आप प्लीज फास्टिंग मत करो! ये फ़ास्ट तो औरतें अपने पति की लम्बी उम्र के लिए करती हैं, ना की आदमी!"
"यार ये क्या बात हुई? मैं इतनी लम्बी उम्र ले कर क्या करूँगा अगर तुम ही साथ न हुई तो? बैलेंस बना कर रखना चाहिए ना?" मेरे तर्क के आगे उसका तर्क बेकार साबित हुआ पर फिर भी आशु ने बड़ी कोशिश की पर मैं नहीं माना और मैं भी ये व्रत करने लगा. आशु को पार्लर छोड़ा और मैं उसकी साडी लेने चल दिया.
हुस्ना आपा का शुक्रिया किया की उन्होंने इतने कम समय में काम पूरा किया और फिर वापस निकल ही रहा था की प्रसाद मिल गया.उससे कुछ बातें हुई और मुझे वापस आने में देर हो गई. दोपहर के ३ बजे थे और आशु का फ़ोन बज उठा. "जान! मैं बाहर ही खड़ा हु." ये सुनकर ही आशु ने फ़ोन काट दिया और जब वो बाहर निकली तो मैं उसे बस देखता ही रह गया.उसके चेहरे की दमक १००० गुना बढ़ गई थी. होठों पर गहरे लाल रंग की लिपस्टिक देख मन बावरा होने लगा था. आज पहली बार उसने आई लायनर लगाया था जिससे उसकी आँखें और भी कातिलाना हो गई थी. उसकी भवें चाक़ू की धार जैसी पतली थीं और मैं तो हाथ बाँधे बस उसे देखता रहा. आशु शर्म से लाल हो चुकी थी और ये लालिमा उसके चेहरे पर चार-चाँद लगा रही थी. "जल्दी से घर चलिए!" आशु ने नजरें झुकाये हुए ही कहा.
"ना ...पहले मुझे आई लव यू कहो और एक किस दो!" मैंने आशु के सामने शर्त रखी.
"प्लीज ...चलो न...घर जा कर सब कुछ कर लेना...पर अभी तो चलो! मुझे बहुत शर्म आ रही है!"
"ना...मेरी गाडी बिना आई लव यू और 'किस' के स्टार्ट नहीं होगी." माने अपनी बुलेट रानी पर हाथ रखते हुए कहा.
"सब हमें ही देख रहे हैं!" आशु ने खुसफुसाते हुए कहा.
"तो? यहाँ तुम्हें जानने वाला कोई नहीं हे. किसी चाहिए मुझे!" मैंने अपने दाएँ गाल पर ऊँगली से इशारा करते हुए कहा. आशु जानती थी की मैं मानने वाला नहीं हूँ इसलिए हार मानते हुए उसने थोड़ा उचकते हुए मेरे गाल को जल्दी से चूम लिया और शर्म के मारे मेरे सीने में अपना चेहरा छुपा लिया. "अच्छा बस! इतनी मेहनत लगी है इस चाँद से चेहरे को निखारने में, इसे खराब ना कर." मैंने आशु को खुद से अलग किया. हम वापस बाइक से घर पहुँचे और बाइक से उतरते ही आशु भाग कर घर में घुस गई. मैं बस हँस के रह गया, बाइक खड़ी कर मैं ऊपर आया तो आशु शीशे में खुद को निहार रही थी उसे खुद यक़ीन नहीं हो रहा था की वो इतनी सुंदर हे. "१,२००/- लग गए! पर सच में जानू मैंने कभी सोचा नहीं था की मैं इतनी सूंदर हूँ!" आशु ने कहा. "अब तो मुझे इनसिक्युरीटी होने लगी है!" मैंने हँसते हुए कहा और आशु भी ये सुन कर खिलखिलाकर हँसने लगी. मैंने आशु को उसकी साडी दी और तैयार होने को कहा क्योंकि हमें मंदिर जाना था जहाँ की कथा होनी थी. इधर मैं भी तैयार होने लगा, पर जब आशु पूरी तरह से तैयार हो कर आई तो मेरे चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगी.
दो मिनट तक जब मैं कुछ नहीं बोला तो आशु ने ही मेरा ध्यान भंग किया; "जानू???" उसके बुलाते ही मेरे मुँह से ये शेर निकला;
"उस हसीन चेहरे की क्या बात है
हर दिल अज़ीज़, कुछ ऐसी उसमें बात है
है कुछ ऐसी कशिश उस चेहरे में
के एक झलक के लिए सारी दुनिया बर्बाद हे."
ये सुनते ही आशु को उसकी खूबसूरती का एहसास हुआ और शर्म से उसके गाल फिर लाल हो गये. पर आज मेरा मेरे ही दिल पर काबू नहीं था आज तो उसने बगावत कर दी थी;
"जब चलती है गुलशन में बाहर आती है
बातों में जादू और मुस्कराहट बेमिसाल है
उसके अंग अंग की खुश्बू मेरे दिल को लुभाती है
यारो यही लड़की मेरे सपनो की रानी हे."
एक शेर तो जैसे आज उसके हुस्न के लिए काफी नहीं था.
"नज़र जब तुमसे मिलती है मैं खुद को भूल जाता हूँ
बस इक धड़कन धड़कती है मैं खुद को भूल जाता हूँ
मगर जब भी मैं तुमसे मिलता हूँ मैं खुद को भूल जाता हु."
आज तो वो शायर बाहर आ रहा था जो आशिक़ी की हर हद को फाँद सकता था.
"तेरे हुस्न का दीवाना तो हर कोई होगा लेकिन मेरे जैसी दीवानगी हर किसी में नहीं होगी."
मेरी एक के बाद एक शायरी सुन आशु का शर्म के मारे बुरा हाल था. उसके गाल और कान पूरे लाल हो गए थे. वो बस नजरें झुकाये सब सुन रही थी और अपने आप को मेरी बाहों में बहक जाने से रोक रही थी. वो कुछ सोचती हुई मेरे नजदीक आई और मेरी आँखों में देखते हुए बोली; "हमे कहाँ मालूम था की ख़ूबसूरती क्या होती है? आज आपने हमारी तारीफ कर हमें हसीन बना दिया." उसके इस शेर पर मेरा मन किया की उसके हसीन लबों को चूम लूँ पर फिर खुद पर काबू पाया. "पहली बार के लिए शेर अच्छा था!" मैंने आशु के शेर की तारीफ करते हुए कहा. मैंने आशु का दाहिना हाथ पकड़ा और टेबल पर से चूड़ियाँ उठा कर उसे पहनाने लगा, साइज थोड़ा बड़ा था पर चूँकि इमीटेशन जेवेलरी थी तो वो फिर भी अच्छी लग रही थी. "ये तो मैं लेना भूल ही गई थी!" आशु ने कहा पर मैंने तो इस दिन की प्लानिंग पहले से ही कर रखी थी. बस एक चीज बची थी वो था सिन्दूर! मैंने आते समय वो भी ले लिया था. डिब्बी से एक चुटकी सिन्दूर निकाल के मैंने आशु की मांग में भरा तो आशु ने अपनी आँखें बंद कर लीन और आसूँ के एक बूँद निकल कर नीचे जा गिरी. "हे??? क्या हुआ मेरी जान?" आशु ने खुद को रोने से रोका और फिर बोली; "आज से मैं आपकी पर्मनंट वाइफ बन चुकी हूँ!" उसने थोड़ा माहौल हल्का करने के लिए कहा. पर मैं उसका मतलब समझ गया था. उसका मतलब था की आज से हम दोनों का प्यार पुख्ता रूप ले चूका है और अब हम पति-पत्नी बन चुके हे. "नो...देर इज समथिंग मिसिंग!" मेरे मुँह से ये सुन आशु सोच में पड़ गई. पर जब मैंने जेब से उसके लिए लिया हुआ मंगलसूत्र निकाला तो वो सब समझ गई. "ये तो नया है! वो पुराना कहाँ गया?" आशु ने पूछा. "जान वो तो नकली था! ये असली वाला हे." ये सुन कर आशु चौंक गई और अपने होठों पर हाथ रखते हुए बोली; "ये सोने का है? पर पैसे?" मैं जवाब देने से पहले ही आशु के पीछे आया और उसे अपने हाथों से मंगलसूत्र पहनाते हुए कहा; "मेरी जान से तो महँगा नहीं हो सकता ना?" आशु ये सुन कर चुप हो गई और आगे कुछ नहीं बोली, वो जानती थी की आगे अगर कुछ बोली तो मैं नाराज हो जाऊंगा. वो फिर से मुस्कुराने लगी; "टेकनिकली नाऊ वी आर हसबंड अँड वाइफ!!!" ये सुन कर आशु बहुत-बहुत खुश हुई और हम दोनों का कतई मन नहीं था की ये समां कभी खत्म हो पर पूजा के लिए तो जाना ही था!
ख़ुशी-ख़ुशी आशु ने पूजा का सारा सामान एक बड़ी थाली में इकठ्ठा किया और हम घर से निकले| किसी संस्था ने एक मंदिर के बाहर बहुत बड़ा पंडाल लगाया था और वहीँ पर पूजा होनी थी. हम दोनों भी वहाँ पहुँच गए, वहीँ पर हमें कल्पना भाभी मिलीं जिससे आशु को एक कंपनी मिल गई. पूरे विधि-विधान से पूजा और कथा हुई और रात ८ बजे हम घर लौटे. अब एक दिक्कत थी. वो ये की चंद्र उदय होने के समय बिल्डिंग की सभी औरतें और आदमी वहाँ इकठ्ठा होने वाले थे और ऐसे में हम दोनों का वहाँ जाना शायद किसी न किसी को खलता.मैं अभी ये सोच ही रहा था की कल्पना भाभी ने दरवाजा खटखटाया; "अरे डॉली तू यहाँ क्या कर रही है, चल जल्दी से ऊपर." अब आशु तो कब से ऊपर जाना चाहती थी पर मैंने ही उसे मना कर दिया था; "भाभी वो... अभी वहाँ सब होंगे तो.... हम दोनों को देख कर कहीं कुछ ऐसा वैसा बोल दिया तो मुझे गुस्सा आ जायेगा!" मैंने अपनी चिंता जताई.
"कोई कुछ नहीं कहेगा, मैं बोल दूँगी ये मेरी बहन है और तुम तो मेरे छोटे देवर जैसे हो. पापा भी ऊपर ही हैं कोई कुछ बोला तो जानते हो ना पापा कैसे बरस पड़ते हैं?" भाभी की बात सुन कर मन को चैन आया की पुरुषोत्तम अंकल तो सब जानते ही हैं की हम दोनों की शादी होने वाली हे. इसलिए हम तीनों ऊपर आ गए और यहाँ तो लोगों का ताँता लगा हुआ हे. एक-एक कर सब हम दोनों से मिले, इधर आशु ने जा कर पुरुषोत्तम अंकल जी के पैर छुए और उनका आशीर्वाद लिया. काफी लोगों से तो मैं आज पहली बार मिल रहा था इसका कारन था की मेरे पास कभी किसी से घुलने-मिलने का समय ही नहीं होता था. आशु के कॉलेज से पहले भी मैं घर पर बहुत कम ही रहता था. अकेले रहने से तो बाहर घूमना अच्छा था इसलिए मैं अक्सर फ्री टाइम में खाने-पीने निकल जाता और रात को आ कर सो जाया करता था. आज जब सब से मिला तो सब यही कह रहे थे की एक ही बिल्डिंग में रह कर कभी मिले नही. इधर आशु भाभी के साथ बाकी सब से मिलने में व्यस्त थी. भाभी सब को यही कह रही थी की हम दोनों की शादी होने वाली है और ये आशु का पहला करवाचौथ हे. सब हैरान थे की भला ये क्या बात हुई की शादी के पहले ही करवाचौथ तो भाभी ही बीच-बचाव करते हुए बोली; "जब दिल मिल गए हैं तो ये रस्में निभानी ही चाहिए."
खेर आखिर कर चाँद निकल ही आया और सब आदमी अपनी-अपनी बीवियों के पास जा कर खड़े हो गये. आज पहलीबार था की हम दोनों यूँ सबके सामने प्रेमी नहीं बल्कि पति-पत्नी बन के विधि-विधान से पूजा कर रहे हे. शर्म से आशु पूरी लाल हो चुकी थी और इधर थोड़ी-थोड़ी शर्म मुझे भी आने लगी थी. आशु ने जल रहे दीपक को छन्नी में रख के पहले चाँद को देखा और फिर मुझे देखने लगी. उस छन्नी से मुझे देखते ही उसकी आँखें बड़ी होगी ऐसा लगा जैसे वो मुझे अपनी ही आँखों में बसा लेना चाहती हो. उस एक पल के लिए हम दोनों बस एक दूसरे को देखे जा रहे थे, बाकी वहाँ कौन क्या कर रहा है उससे हमें कोई सरोकार नहीं था. आखिर भाभी ने हँसते हुए ही हम दोनों की तन्द्रा भंग की; "ओ मैडम! देखती रहोगी की आगे पूजा भी करोगी?" तब जा कर हम दोनों का ध्यान भंग हुआ, मैं तो मुस्कुरा रहा था और आशु शर्म से लाल हो गई! भाभी के बताये हुए तरीके से उसने पूजा की और अंत में मेरे पाँव छुए. अब ये पहली बार था की आशु मेरे पाँव छू रही थी और मुझे समझ नहीं आया की मैं उसे क्या आशीर्वाद दूँ? मैंने बस अपना हाथ उसके सर पर रख दिया और दिल ही दिल में कामना करने लगा की मैं उसे एक अच्छा और सुखद जीवन दू. बाकी सब लोग अपनी पत्नियों को पानी पिला रहे थे तो मैंने भी पानी का गिलास उठा कर आशु को पानी पिलाया और उसके बाद उसने भी मुझे पानी पिलाया. अब ये देख कर भाभी फिर से दोनों की टांग खींचने आ गई; "अच्छा जी!!! राज ने भी व्रत रखा था? वाह भाई वाह!" जिस किसी ने भी ये सुना वो हँसने लगा, पुरुषोत्तम अंकल बोले; "बेटा यूँ ही हँसते-खेलते रहो और जल्दी से शादी कर लो."
"बस अंकल जी २ साल और फिर तो शादी ...!!!" मैंने भी हँसते हुए कहा. आशु का शर्माना जारी था.... सारे लोग एक-एक कर नीचे आ गये.
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Re: Incest अनैतिक संबंध

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Re: Incest अनैतिक संबंध

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😆 😋 😡
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