ये कैसी दूरियाँ( एक प्रेमकहानी )

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rajsharma
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ये कैसी दूरियाँ( एक प्रेमकहानी )

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ये कैसी दूरियाँ( एक प्रेमकहानी )

कुछ हो ना हो पर रिश्तों को निभाने के लिए जिन्दगी में प्यार होना ज़रूरी है। पर क्या सच में? अगर ऐसा है तो फिर आज प्यार से जोड़े गये रिश्ते क्यों टूटते हैं?क्यों अधिकतर लोग नयी उम्र में जिससे प्यार करते हैं, शादी के बाद उससे रिश्ता तोड़ लेते हैं? सच तो ये है कि हमने रिश्तों को निभाने में ज़रूरी भरोसे को खोया। प्यार करना तो हमने फिल्म देखकर सीख लिया पर प्यार के लिए ज़रूरी भरोसा करना,हम नही सीख पाए।

ये कैसी दूरियाँ एक ऐसी लड़की की कहानी है,जिसे इस दुनिया की कोई समझ नही होती है। हालात कुछ ऐसे होते हैं कि उसे अपना घर छोड़ना पड़ता है । घर छोड़ने के बाद उसकी जिंदगी में ना जाने कितने मोड़ आते है। उस इंसान ने उसे समझा जिससे उसका कोई रिश्ता नही था और उसके अपने माँ-बाप उसे नही समझ सके। किसी के भरोसे के सहारे वो सम्भल तो गयी, पर कितनी ही बार उसे अपनों और गैरों से दिए ज़ख़्मों को सहना पड़ा।

1.
बहुत देर से वो सड़क के किनारे खड़ी किसी रिक्शे का इंतज़ार कर रही थी , पर उधर से कोई भी रिक्शा नही गुज़रा। अंधेरा भी थोड़ा थोड़ा होने लगा था । उसने अब लिफ्ट माँगनी शुरू कर दी,लेकिन उसे डर भी लग रहा था। इससे पहले वो कभी भी इतनी देर तक बाहर नही रही थी और ना ही कभी उसने किसी से लिफ्ट ली थी , पर उसके पास कोई रास्ता भी नही था। तभी एक गाड़ी उसके पास आकर रुकी ,कोई 19-20 साल का लड़का था।

“आप मुझे राजापुर तक छोड़ सकते हैं ,”शीतल ने कहा।

उस लड़के ने कुछ नही कहा और बैठने का इशारा किया। शीतल को ये लड़का थोड़ा अजीब लगा। उसने जिस तरह से उससे बैठने का इशारा किया जिस तरह से वो उसे देख रहा था, ये सब उसे अजीब लग रहा था। उस लड़के के लिए जैसे शीतल कुछ थी ही नही। इतनी सुंदर लड़की को देखकर आम-तौर पर जैसा व्यवहार उसने लड़कों का देखा था वो उन सब से अलग था,वो बिल्कुल शांत और खुद में खोया हुआ था। उसने शीतल को उसकी बताई जगह पर छोड़ दिया। जैसे ही वो चलने को हुआ की शीतल बोली-“थैंक्स ,अपना नाम तो बता दो। ”

“राज,”इतना कह कर वो वहाँ से चला गया।

पूरी रात वो सिर्फ उस लड़के के बारे में सोचती रही। सुबह उठी तो उसने देखा की उसकी माँ घर की सफाई कर रही थी।

“मम्मी,आज कुछ है क्या?”शीतल ने पूछा।

“नही बेटा,आज कोई आने वाला है,”उसकी माँ ने जवाब में कहा।

“कौन मम्मी ?”

उसकी माँ ने कुछ भी नही कहा। उसने फिर पूछा पर कोई जवाब नही मिलता। वो कॉलेज के लिए तैयार होने लगी।

“बेटा आज कॉलेज मत जाओ,”उसकी माँ ने कहा।

“क्यों मम्मी?”

“बस, ऐसे ही।”
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


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Re: ये कैसी दूरियाँ( एक प्रेमकहानी )

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शीतल नहीं मानती वो कॉलेज चली गयी। शीतल को बाहर घूमने का बहुत शौक था इसलिए वो हर रोज़ कॉलेज से लौटते समय अपने दोस्तों के साथ किसी पार्क या फिर रेस्टौरेंट जाती थी। उस दिन पार्क में उसे राज मिला,वो तुरंत उसके पास गयी और उससे बात करने लगी। राज को भी वो ठीक लगी इसलिए उन दोनों में जल्द ही दोस्ती हो गयी। वो अक्सर मिलने लगे थे। शीतल को राज की बातों से बहुत हिम्मत मिलती थी पर राज बात बहुत कम करता था और शीतल बहुत ज़्यादा। उनकी मुलाक़ातें ज़्यादा नही हुई थी वो सिर्फ़ 4-5 बार ही मिले थे।

उस दिन शीतल के घर उसकी बुआ शीतल के लिए शादी का रिश्ता लेकर आई थी। लड़का शीतल से 12 साल बड़ा था,वो 19 की थी और वो 31 का। शीतल का परिवार आर्थिक रूप से कमजोर था और इस लड़के का परिवार आर्थिक रूप से बहुत मजबूत था। शीतल को अपनी बड़ी बहन के साथ जो हुआ था वो जब भी याद आता था तो शादी के नाम से भी चिढ़ने लगती थी। वो अपनी माँ से कहती थी कि मम्मी,मुझे शादी नही करनी है और तब तक तो बिल्कुल नही जब तक कि मैं कुछ बन ना जाऊँ। शीतल की बड़ी बहन को उसके ससुराल वाले बहुत परेशन करते थे वो अक्सर दहेज की माँग करते थे और अपनी माँग पूरी ना होने पर वो उसे मारते थे,तंग आकर उसने अपने को आग लगाकर जला लिया था। उसकी मौत के बाद से शीतल के अंदर एक डर बैठ गया था। उसे लगता था की उसके साथ भी ऐसा ही किया जाएगा।

कई दिन बाद जब उसकी मुलाकात राज से हुई तो उसने राज से कहा-“राज,क्या तुम मुझसे शादी करोगे?क्या मैं तुम पर भरोसा करके अपना घर छोड़ सकती हूँ?”

“आप पागल तो नही हो,हम अभी सिर्फ़ 5-6 बार ही मिले हैं और आप शादी की बात कर रही हो। मैं आप से प्यार नही करता,और मेरे लिए आप अपना घर मत छोड़िए। मुझे आप से कोई मतलब नही है , मैं सिर्फ़ आप से ऐसे ही बोल देता हूँ , बस। आप भी अपना घर कभी भी मत छोड़िएगा बाहर की दुनिया में जीना इतना आसान नही है। आपके लिए क्या,मैं अपने माँ-बाप को दुनिया की किसी भी लड़की के नही छोड़ सकता ना ही उनके खिलाफ जा सकता हूँ,किसी के साथ बिताये 20 दिन के लिए मैं अपने माँ-बाप का दिल नही दुखा सकता हूँ। अगर आप को कोई समस्या हो तो आप मुझ पर भरोसा कर सकती हैं । उस समय मैं आपका साथ दूँगा,पर ऐसे-वैसे किसी भी कदम में नही दे सकता हूँ……………। ग़लत के खिलाफ खड़े होना सीखीए,ग़लत करना नही।”

शीतल बिल्कुल शांत हो गयी । उससे कुछ भी नही बोला जा रहा था। फिर भी वो बहुत हिम्मत करके बोली-“प्यार तो मैं भी तुमसे नही करती हूँ,बस ये जानना चाहती थी की कहीं तुम तो मुझसे प्यार नही करते हो। मैं बस तुम्हारी अपने प्रति सोच जानना चाहती थी और कुछ नही , इतनी पागल मैं नही हूँ की 5 मुलाकात में किसी को दिल दे बैंठू। मुझे तो डर था कहीं तुम तो मुझे लेकर कोई सपना नही देखने लगे हो।”

कुछ देर बाद दोनो वहाँ से चले जाते हैं। दो दिन बाद शीतल को देखने के लिए फिर से वो लोग आए। वो लोग शीतल को ऐसे देख रहे थे जैसे वो शादी के लिए नही बल्कि इंटरव्यू लेने आयें हों। वो लड़का मुँह में पान दबाए हुए था और शीतल को ऐसे घूर रहा था जैसे कभी कोई लड़की नही देखी हो,शीतल को बहुत गुस्सा आ रहा था,तभी उसकी माँ ने उसे चाय लाने के लिए कहा। जब वो चाय लेकर आई तो उससे उस लड़के ने अपने बगल में बैठने का इशारा किया पर शीतल वहाँ से जाने लगी।

“रुकिये , मुझे आप से कुछ बात करनी है,”उसने शीतल को रोकते हुए कहा।

शीतल रुक जाती है, तो उसने उससे अकेले में बात करने की बात कही,शीतल ना चाहते हुए भी सब के कहने पर उससे बात करने के लिए तैयार हो गयी।

“ तुम इतनी सुंदर हो,तुम्हारे पीछे लड़के तो ज़रूर पड़े होंगे,”उसने पूछा।

“हाँ,बहुत पीछे पड़े रहते थे पर मैं इन सब पर ध्यान नही देती,”शीतल ने कहा।

“तुम्हारा किसी के साथ कोई चक्कर नही है।”

“नही,प्लीज़ आप मुझसे कुछ और बात करिये………………मुझे इस तरह की कोई बात नही पसंद है।”

“किसी लड़के से कोई रिश्ता तो नही है तुम्हारा………।”

“मतलब……? मुझे कुछ समझ नही आया।”

“किसी लड़के के साथ कभी कुछ किया………………खुद समझ सकती हो।”
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Re: ये कैसी दूरियाँ( एक प्रेमकहानी )

Post by rajsharma »

“मैंने कहा ना मैं ऐसी लड़की नही हूँ …………। अभी हमारी शादी नही हुई है जो आप मुझसे ऐसे सवाल पूछ रहे हैं,”शीतल ने कहा।

“फिर भी इतनी ज़्यादा सुंदर हो कोई तो होगा………,”उसने कहा।

“आप यहाँ से तुरन्त चले जाईए और हो सके तो पहले किसी लड़की से बात करने की तमीज़ सीख लीजिए,”शीतल ने कहा और तुरन्त अपनी माँ के पास आई,बोली-“मम्मी,इन सब को तुरन्त यहाँ से जाने को कह दो।”

और उसने उनको घर से भगा दिया। उनके जाने के बाद सब शीतल को डाँटने लगे कि उसने उन्हें इस तरह से क्यों भगा दिया अगर उसे शादी नही करनी थी तो वो बाद में भी मना कर सकती थी।

उस दिन ज़िंदगी को कुछ और ही मंजूर था,तभी तो हमेशा शीतल का पक्ष लेने वाली उसकी माँ भी उसके खिलाफ थी और शीतल भी लड़ने को तैयार थी।

“मम्मी,वो बहुत बुरा है और मुझे अभी शादी भी नही करनी है। मैं आपकी बात मान लूँगी पर मुझे कुछ वक्त चाहिए। मैं कुछ बन जाऊँ तो आप किसी से भी कर देना पर अभी नही।”

“हम और इंतज़ार नही कर सकते,तुम्हारे बाद तुम्हारी छोटी बहन भी है और हम में दहेज देने की क्षमता नही है,जो हम तुम्हारे लिए अच्छे रिश्ते ढूँढ सके और अभी जो भी रिश्ते आ रहे वो उम्र बढ़ने पर नही आएँगे,”शीतल के पापा ने कहा।

“पापा,क्या मैं किसी शराबी से शादी करके अपनी ज़िंदगी बर्बाद कर लूँ। इसी लिए आप ने मुझे इतना पढ़ाया है,”शीतल ने कहा।

शीतल की माँ कुछ कहने ही वाली थी की उसकी बुआ बोली-“शीतल तुम एक लड़की हो और तुम्हे इतना नही बोलना चाहिए,क्या हुआ अगर तुम उससे शादी कर लेती हो। तुमने अब तक बहुत पढ़ लिया अब जैसा हम कह रहे हैं तुम वैसा ही करोगी। क्या हुआ अगर वो थोड़ी शराब पीता है। ”

“बुआ आप मुझ से कुछ ना कहिए वैसे भी मेरे मम्मी-पापा को आपने ही शादी के लिए तैयार किया है,कल तक तो वो शादी की बात भी नही करते थे……। अच्छा होगा की आप अपने घर चली जाएँ,”शीतल ने कहा।

“तुम तय करोगी की कौन रहेगा और कौन नही,जाना है तो तुम इस घर को छोड़ कर चली जाओ हम सब से कह देंगे की तुम पढ़ने गयी हो। कोई बदनामी नही होगी हमारी,”शीतल की माँ ने गुस्से से कहा।

शीतल कुछ नही बोली उसकी आँखों आँसू से बहने लगे,वो कुछ समझ ही नही पा रही थी की ये सब क्या हो रहा था। उसे कोई भी नही समझ रहा था। तभी उसकी बुआ बोली-“क्या हुआ शीतल चुप क्यों हो,अब कुछ नही कहना। ”

शीतल को उनकी बात बहुत बुरी लगी,वो सीधे अपने कमरे में गयी अपनी मार्कशीट और सर्टिफिकेट्स लेकर घर से जाने लगी,उसे उम्मीद थी की कोई ना कोई उसे रोक लेगा पर किसी ने नही रोका।

“बेटी,घर चाहे जैसा भी हो पर बाहर की दुनिया से बहुत अच्छा होता है, “ उसकी माँ ने कहा।

शीतल कुछ नही बोली वो चुपचाप घर छोड़ कर चली गयी। घर तो छोड़ दिया पर अब वो जाए तो कहाँ जाए,वो कुछ भी नही समझ पा रही थी। उसने बाहर की दुनिया भी इतनी नही देखी थी, पढ़ने में तो अच्छी थी पर दुनिया की समझ अभी उसे नही थी,वो सुंदर भी बहुत ज़्यादा थी, ऐसे में उसे और भी डर लग रहा था।

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Re: ये कैसी दूरियाँ( एक प्रेमकहानी )

Post by rajsharma »

2.
वो वहीं पार्क में चली गई,जहाँ उसे कई बार राज मिला था। इस आश में की शायद राज मिल जाए और हुआ भी ऐसा ही राज वहीं था। शीतल राज के पास गयी।

“राज,मैंने अपना घर छोड़ दिया है क्या तुम मेरी कोई मदद कर सकते हो?” उसने राज से कहा।

“नहीं,मैं कोई मदद नही कर सकता हूँ,”राज ने कहा।

“क्यों?”

“मैंने तुमसे पहले ही कह दिया था की मैं तुमसे प्यार नही करता फिर तुमने मेरे लिए घर क्यों छोड़ा।”

‘मैंने तुम्हारे लिए नही छोड़ा,कोई बात हो गयी थी इसलिए।”

“मेरे पास क्यों आई हो…………। और अच्छा होगा की तुम अपने घर वापस लौट जाओ,हो सकता है की कोई बड़ी बात हो पर घर से अच्छा कुछ नही होता।”

शीतल,राज के सामने रोने लगी वो रोते हुए बोली-“मैं अब घर नही जा सकती मैं तुम्हारे भरोसे हूँ प्लीज़ मेरी मदद करो। ”

शीतल ने राज को एक गहरी सोच में डुबो दिया था। वो चाहकर भी उसकी कोई मदद नही कर सकता था,उसने खुद दुनिया नही देखी थी।

“मुझे माफ़ करना मैं तुम्हारी कोई मदद नही कर सकता,मैं तुम्हे लेकर कहाँ जाऊँगा?” राज ने कहा।

“मुझे कहीं भी ले चलो,अगर कोई जगह ना हो तो मुझे ले जाकर बेच दो या फिर मेरे साथ तुम कुछ भी करो मैं कुछ नही कहूँगी,ज़िंदगी तो बर्बाद होगी ही क्यों ना तुम ही कर दो,” शीतल ने राज की ओर देखे बिना कहा।

राज कुछ नही बोला वो उसे देखता ही रह गया,एक लड़की अपने को बेचने की बात कैसे कर सकती है ? लड़किया तो इससे बेहतर मरना पसंद करती हैं और ये ऐसी बात कर रही है।

“क्या हुआ ? कुछ बोल क्यों नही रहे हो, मदद नही कर सकते हो तो कुछ ग़लत ही कर दो,कुछ तो करने की हिम्मत जुटा लो ग़लत या मदद।”

राज फिर भी कुछ नही बोला वो शीतल का चेहरा ही देखता रह गया,उसकी आँखो से आँसू बहे जा रहे थे,उसके मासूम से चेहरे को देखकर कोई भी पिघल सकता था। राज अपनी बाइक लाया और उसे बैठने का इशारा किया,शीतल बिना सोचे समझे तुरंत बैठ गयी। राज उसे अपने घर ले गया,घर पहुँच कर उसने शीतल को बाहर ही खड़े रहने को कहा और खुद अंदर चला गया। उसने अपनी माँ को सारी बात बताई और कहा कि मम्मी उसे कुछ दिन के लिए यहाँ रहने दो,एक दो दिन में वो खुद चली जाएगी।
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उसकी माँ नही मानी बोली-“मैं किसी घर से भागी हुई लड़की को अपने घर में नही रख सकती। ”

“मम्मी,वो ऐसी लड़की नही है जैसा आप समझ रही हैं,”राज ने कहा।

“क्या तुम उससे प्यार करते हो और शादी करना चाहते हो?”उसकी माँ ने पूछा।

“नही,मैं उससे सिर्फ़ 4—5 बार ही मिला हूँ,”राज ने कहा।

“उससे कह दो की यहाँ से चली जाए,वो यहाँ नही रह सकती,”उसके पापा ने कहा।

“पर पापा वो कहाँ जाएगी,बाहर उसकी ज़िंदगी भी खराब हो सकती है,”राज ने कहा।

“कहीं भी जाए पर इस घर में उसके लिए कोई जगह नही है और तुम उसे यहाँ लेकर ही क्यों आए मुझे तो लगता है कि उसने तुम्हारे लिए ही घर छोड़ा है,” उसकी भाभी ने कहा।

“भाभी,ऐसा कुछ नही है मैं सिर्फ़ उसकी मदद करना चाहता हूँ और कुछ नही,”राज ने कहा।

“किसी की मदद करने के लिए तुम उसे घर उठा लाओगे,क्या ये घर कोई धर्मशाला है,”उसके पापा ने कहा।

“पापा बचपन से आप लोग ही दूसरों की मदद करना हमें सिखाते हैं और जब कोई किसी मदद करने की कोशिश करता है तो सबसे पहले उसके घरवाले ही उसके खिलाफ हो जाते हैं..............। मैं उसे यहाँ से जाने को नही कह सकता वो मुझ पर भरोसा करती है और मैं उसका भरोसा नही तोड़ूँगा,”राज ने कहा।

“तो फिर ठीक है तुम भी ये घर छोड़ कर चले जा,”उसके पापा ने कहा।

“मैं घर से क्यों जाऊँ ? मुझे समझ है की बिना आप लोगों के मेरी कोई पहचान नही है।”

“अगर घर में रहना है तो तुम उस लड़की को जाने को कह दो,नही तो तुम भी घर छोड़ कर चले जाओ,”उसके पापा ने कहा।

“मैं उससे जाने को नही कह सकता ना ही मैं घर छोड़ कर जा रहा हूँ।”

“बेटा समझने की कोशिश करो लोग क्या कहेंगे,”उसकी माँ ने कहा।

“आप मुझे समझिए मम्मी,सिर्फ़ एक दो दिन की बात है कौन सा मैं उससे शादी करने को कह रहा हूँ,”राज ने कहा।

“हमें कुछ नही समझना है तुम उसे लेकर यहाँ से चले जाओ,”उसके पापा ने कहा।

राज थोड़ी देर सोचता रहा फिर अपने कमरे में गया और अपने सर्टिफिकेट्स लेकर घर से जाने लगा उसकी माँ ने रोकना चाहा पर कुछ सोच कर वो भी कुछ नही बोली। सबको उम्मीद थी की वो एक दो दिन में वापस आ जाएगा।
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