शाम के आठ बज रहे थे। चंद्रेश मल्होत्रा बैठक में बैठा हुआ था। आज उसका सोफे से उठने का विचार नहीं था, तभी वहाँ वंशिका ने प्रवेश किया। वह उसके सामने आकर सोफे पर बैठ गयी।
“आज क्या खाने का विचार है?” वंशिका ने पूछा।
चंद्रेश ने बैठे-बैठे ही उसे घूर कर देखा।
“अब यह नाटक बन्द करो। तुम्हें मेरी फिक्र करने की जरूरत नहीं है। अब यहाँ कोई नहीं है। तुम बताओ तुम कौन हो?” चंद्रेश ने गुस्से भरी नजरों से उसे देखते हुए कहा।
“ओह! तो मिजाज अब भी नहीं बदले। कोई बात नहीं, मैं खाना बना दूंगी। तुम्हें खाना है, तो ठीक है, नहीं तो मैं खा लूंगी। भाड़ में जाओ तुम।”
यह कह कर वह सोफे से उठ खड़ी हुई। चंद्रेश ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और मुँह घुमाकर दूसरी तरक घूम गया। थोड़ी देर वैसे ही पड़ा रहा, फिर रजाई उठा कर सोफे पर आ गया। वहाँ एक बुक पड़ी थी। वह उसे उठाकर पढ़ने लगा। पढ़ते-पढ़ते ही उसकी आँख लग गयी।
अचानक कोई आहट सुन कर उसकी आँख खुल गयी। उसने सामने टंगी घड़ी देखी। साढ़े ग्यारह बज रहे थे। सब तरफ सन्नाटा छाया हुआ था। आहट फिर हुई, पहले तो उसने अपना वहम समझा था, पर इस बार फुसफुसाहट की आवाज सुनाई दे रही थी।
चंद्रेश दबे पांव उठा और बैडरूम की तरफ बढ़ गया। उसने बैडरूम के पास पहुँच कर कान दरवाजे से लगाए। अन्दर वंशिका फोन पर किसी से बात कर रही थी। धीमी-धीमी आवाज उसके कानों में पड़ने लगी। अचानक कुछ शब्द सुन कर उसका चेहरा खिल उठा। वह वापस अपने सोफे पर आकर लेट गया। अब उसकी नींद पूरी तरह से उड़ चुकी थी।
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राहुल मकरानी ने अपना मोबाइल उठाया और नम्बर पंच कर के मोबाइल कान से लगाया।
“हैलो निशा, क्या हो रहा है?”
“कुछ नहीं, टीवी देख रही हूँ।” दूसरी तरफ से आवाज कानों में पड़ी।
“बात कहां तक पहुँची।”
“मेरी पूरी कोशिश रहेगी, चंद्रेश के करीब आने की।”
“मैं मुलाकात का इन्तजाम करता हूँ क्योंकि अभी मेरी हालत काफी खराब चल रही है। अभी खान के पालतू कुत्ते आकर मेरी धुनाई कर के गये हैं। अभी मेरी हालत ऐसी नहीं हैं कि हिल सकूँ।” राहुल की आवाज में लड़खड़ाहट थी।
“तुम्हारे कर्म तुम्हें ले डूबेंगे।” निशा ने हँसते हुए कहा।
“ठीक है, कल नक्की लेक पर तुम पहुँचो। हम वहीं से प्लान स्टार्ट करेंगे।” निशा बोली।
“मैं ग्यारह बजे दोपहर को तुम्हरा नक्की लेक पर इंतजार करूंगा।” कह कर राहुल ने फोन काट दिया।
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Thriller फरेब
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Re: Thriller फरेब
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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Re: Thriller फरेब
नक्की झील का मनोरम दृश्य चारों तरफ बगीचे थे। लोग नौकायान का लुत्फ ले रहे थे। फोटोग्राफर बीच-बीच में लोगों को डिस्टर्ब कर रहे थे। दिन के साढ़े दस बजे थे। सर्दी में भी आईसक्रीम की सेल बढ़ रही थी। लोग आईसक्रीम का लुत्फ उठा रहे थे। एक बेंच पर निशा ओबेराय और राहुल मकरानी बैठे बात कर रहे थे। दोनों ने चेहरे पर ब्लेक गॉगल्स लगा रखे थे। ऐसा लग रहा था कि दोनों पति-पत्नी हैं। तभी एक फोटोग्राफर उनके पास पहुँचा दोनों की बातों में रुकावट आ गयी।
“कहिये।” राहुल ने उसे घूरते हुए कहा।
“सर आप दोनों की जोड़ी शानदार लग रही है। यदि आप कहें, तो एक दो एक्शन में आपकी फोटो खींच सकता हूँ।” फोटो ग्राफर बोला
“हमें नहीं खिंचवानी है मिस्टर, तुम अपना काम करो।” निशा ने कठोर स्वर में कहा।
“सर मेरे द्वारा खिंची गयी तस्वीर देख लीजिये। चार्ज भी कम हैं और जल्द ही प्रिन्ट-आउट भी दे दूँगा।” फोटोग्राफर ने दयनीय स्वर में कहा।
“मिस्टर फोटोग्राफ, तुम्हें सीधी बात समझ में नहीं आती क्या? हम लोकल हैं और यहाँ जो बोटिंग का ठेका है, वह मेरे मित्र चंद्रेश के पास है। समझे, अब फूटो यहाँ से।”
“ओह! सॉरी सर, मैंने आपको पर्यटक समझा था। आप मल्होत्रा साहब के मित्र हैं।” कहकर फोटोग्राफर वहाँ से चला गया।
“तुम्हारा यह मित्र चंद्रेश मल्होत्रा कितने बजे अपने ऑफिस आता है?” निशा ने गहरी सांस लेते हुए पूछा।
“पता नहीं आज कैसे लेट हो गया? ग्यारह बजे के करीब तक तो आ जाता है।”
तभी राहुल मकरानी का मोबाइल बज उठा। उस पर एक अन्जान नम्बर से कॉल आ रही थी। उसने फोन काट दिया और निशा की तरफ देखते हुए कहा, “अब तक तो उसे आ जाना चाहिये था।”
तभी मोबाइल की रिंग दोबारा बजी। उसने मोबाइल निकाल कर देखा पुनः वह ही नम्बर था। उसने हरा बटन दबाकर फोन उठाया। दूसरी तरफ से अन्जान स्वर कानों में पड़ा, “ मकरानी साहब को इस नाचीज का सलाम।” राहुल के कानों में आवाज गूँजी।
“कौन बोल रहे हैं?”
“मैं कौन बोल रहा हूँ साहब इस बात की चिन्ता ना करें। मैं क्या चाहता हूँ इस बात की चिन्ता करें....।”
“मैं फालतू बात नहीं करना चाहता....” कहकर राहुल ने फोन काटना चाहा।
“ना... ना... ना... मुन्ना, फोन काटने की कोशिश भी ना करना, वरना मैं तुम्हारे और निशा ओबेराय के प्लान की धज्जियाँ उड़ा सकता हूँ, वह भी मात्र दो मिनट में।“ दूसरी तरफ से बोलने वाले शख्स का ठंडा स्वर कानों में गूंजा।
“कौन हो तुम?” राहुल ने घबराये स्वर में पूछा।
“मैं एक सवाल का एक बार ही जबाव देता हूँ। सवाल पूछना मेरा काम है। तुम तो केवल सुनो।”
“तुम ऐसा नहीं कर सकते।”
“मैं बहुत कुछ कर सकता हूँ। तुम कहो तो नमूना दिखाऊँ?”
“नहीं।” राहुल काँप गया।
निशा ओबरॉय ने उसकी तरफ ध्यान से देखा।
“तो जैसा में बोल रहा हूँ, ठीक वैसा ही होना चाहिये।” वह फोन पर राहुल को समझाने लगा।
बात खत्म होने पर राहुल के चेहरे में सर्दी में भी पसीना आने लगा। फोन रखने के बाद उसने रुमाल से अपना पसीना पौछा।
“किसका फोन था?” निशा ने उसकी तरफ देख कर कहा।
“पता नहीं कोई अजनबी था। फोन पर कह रहा था वह सब बातें जानता है। मेरे और तुम्हारे बारे में, रंगा-बिल्ला के बारे में, यहाँ तक की तुम्हारे पति अमन ओबेराय के बारे में भी।” चिन्तित स्वर में राहुल मकरानी बोला।
“अब क्या होगा?” निशा ने व्याकुलता से कहा। उसके गोरे चेहरे पर चिन्ता की लकीर खींच गयी।
“उसने एक काम बताया है। वह करने पर हमारा राज, राज ही रहेगा।” राहुल ने कहा।
“क्या करने को कहा है उसने?” निशा ने पूछा।
राहुल उसे धीमे-धीमे शब्दों में कुछ समझाने लगा। बातें सुनकर निशा के चेहरे का रंग बदलने लगा। तभी सामने से आता हुआ चंद्रेश दिखायी दिया। वह काले रंग की पेन्ट और सफेद शर्ट पहने हुआ था। शर्ट के ऊपर काले रंग का कोट पहने था। उसके हाथ में अटैची थी। वह कुछ चिन्तित लग रहा था। कुछ सोचता हुआ वह इनके पास से निकल गया। उसका ध्यान इनकी तरफ नहीं गया।
अचानक राहुल पीछे से बोला।”हाय चंद्रेश, कैसे हो?”
चंद्रेश ने पीछे मुड़ कर देखा और खुशी से बोला, “हाय राहुल! तुम को देख कर बहुत खुशी हुई। आओ यार, ऑफिस में चलकर बात करते हैं।” चंद्रेश ने चलते हुए कहा।
“ये निशा ओबेराय हैं। मेरी फ्रेन्ड।” राहुल ने दोनों का परिचय कराया।
“आपकी शक्ल कुछ जानी पहचानी लग रही है।” चंद्रेश ने निशा से हाथ मिलाते हुए कहा। निशा के होठों पर जानलेवा मुस्कान उभरी, पर उसने कुछ नहीं कहा।
“चलो ऑफिस में चलकर बात करते हैं।” चंद्रेश ने चलते हुए कहा और तीनों के कदम चंद्रेश मल्होत्रा के ऑफिस की तरफ बढ़ गये।
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“कहिये।” राहुल ने उसे घूरते हुए कहा।
“सर आप दोनों की जोड़ी शानदार लग रही है। यदि आप कहें, तो एक दो एक्शन में आपकी फोटो खींच सकता हूँ।” फोटो ग्राफर बोला
“हमें नहीं खिंचवानी है मिस्टर, तुम अपना काम करो।” निशा ने कठोर स्वर में कहा।
“सर मेरे द्वारा खिंची गयी तस्वीर देख लीजिये। चार्ज भी कम हैं और जल्द ही प्रिन्ट-आउट भी दे दूँगा।” फोटोग्राफर ने दयनीय स्वर में कहा।
“मिस्टर फोटोग्राफ, तुम्हें सीधी बात समझ में नहीं आती क्या? हम लोकल हैं और यहाँ जो बोटिंग का ठेका है, वह मेरे मित्र चंद्रेश के पास है। समझे, अब फूटो यहाँ से।”
“ओह! सॉरी सर, मैंने आपको पर्यटक समझा था। आप मल्होत्रा साहब के मित्र हैं।” कहकर फोटोग्राफर वहाँ से चला गया।
“तुम्हारा यह मित्र चंद्रेश मल्होत्रा कितने बजे अपने ऑफिस आता है?” निशा ने गहरी सांस लेते हुए पूछा।
“पता नहीं आज कैसे लेट हो गया? ग्यारह बजे के करीब तक तो आ जाता है।”
तभी राहुल मकरानी का मोबाइल बज उठा। उस पर एक अन्जान नम्बर से कॉल आ रही थी। उसने फोन काट दिया और निशा की तरफ देखते हुए कहा, “अब तक तो उसे आ जाना चाहिये था।”
तभी मोबाइल की रिंग दोबारा बजी। उसने मोबाइल निकाल कर देखा पुनः वह ही नम्बर था। उसने हरा बटन दबाकर फोन उठाया। दूसरी तरफ से अन्जान स्वर कानों में पड़ा, “ मकरानी साहब को इस नाचीज का सलाम।” राहुल के कानों में आवाज गूँजी।
“कौन बोल रहे हैं?”
“मैं कौन बोल रहा हूँ साहब इस बात की चिन्ता ना करें। मैं क्या चाहता हूँ इस बात की चिन्ता करें....।”
“मैं फालतू बात नहीं करना चाहता....” कहकर राहुल ने फोन काटना चाहा।
“ना... ना... ना... मुन्ना, फोन काटने की कोशिश भी ना करना, वरना मैं तुम्हारे और निशा ओबेराय के प्लान की धज्जियाँ उड़ा सकता हूँ, वह भी मात्र दो मिनट में।“ दूसरी तरफ से बोलने वाले शख्स का ठंडा स्वर कानों में गूंजा।
“कौन हो तुम?” राहुल ने घबराये स्वर में पूछा।
“मैं एक सवाल का एक बार ही जबाव देता हूँ। सवाल पूछना मेरा काम है। तुम तो केवल सुनो।”
“तुम ऐसा नहीं कर सकते।”
“मैं बहुत कुछ कर सकता हूँ। तुम कहो तो नमूना दिखाऊँ?”
“नहीं।” राहुल काँप गया।
निशा ओबरॉय ने उसकी तरफ ध्यान से देखा।
“तो जैसा में बोल रहा हूँ, ठीक वैसा ही होना चाहिये।” वह फोन पर राहुल को समझाने लगा।
बात खत्म होने पर राहुल के चेहरे में सर्दी में भी पसीना आने लगा। फोन रखने के बाद उसने रुमाल से अपना पसीना पौछा।
“किसका फोन था?” निशा ने उसकी तरफ देख कर कहा।
“पता नहीं कोई अजनबी था। फोन पर कह रहा था वह सब बातें जानता है। मेरे और तुम्हारे बारे में, रंगा-बिल्ला के बारे में, यहाँ तक की तुम्हारे पति अमन ओबेराय के बारे में भी।” चिन्तित स्वर में राहुल मकरानी बोला।
“अब क्या होगा?” निशा ने व्याकुलता से कहा। उसके गोरे चेहरे पर चिन्ता की लकीर खींच गयी।
“उसने एक काम बताया है। वह करने पर हमारा राज, राज ही रहेगा।” राहुल ने कहा।
“क्या करने को कहा है उसने?” निशा ने पूछा।
राहुल उसे धीमे-धीमे शब्दों में कुछ समझाने लगा। बातें सुनकर निशा के चेहरे का रंग बदलने लगा। तभी सामने से आता हुआ चंद्रेश दिखायी दिया। वह काले रंग की पेन्ट और सफेद शर्ट पहने हुआ था। शर्ट के ऊपर काले रंग का कोट पहने था। उसके हाथ में अटैची थी। वह कुछ चिन्तित लग रहा था। कुछ सोचता हुआ वह इनके पास से निकल गया। उसका ध्यान इनकी तरफ नहीं गया।
अचानक राहुल पीछे से बोला।”हाय चंद्रेश, कैसे हो?”
चंद्रेश ने पीछे मुड़ कर देखा और खुशी से बोला, “हाय राहुल! तुम को देख कर बहुत खुशी हुई। आओ यार, ऑफिस में चलकर बात करते हैं।” चंद्रेश ने चलते हुए कहा।
“ये निशा ओबेराय हैं। मेरी फ्रेन्ड।” राहुल ने दोनों का परिचय कराया।
“आपकी शक्ल कुछ जानी पहचानी लग रही है।” चंद्रेश ने निशा से हाथ मिलाते हुए कहा। निशा के होठों पर जानलेवा मुस्कान उभरी, पर उसने कुछ नहीं कहा।
“चलो ऑफिस में चलकर बात करते हैं।” चंद्रेश ने चलते हुए कहा और तीनों के कदम चंद्रेश मल्होत्रा के ऑफिस की तरफ बढ़ गये।
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Re: Thriller फरेब
ऑफिस के अन्दर तीनों चेयर पर बैठे थे। सामने सेन्टर टेबल पर नाश्ता और कॉफी के प्याले रखे हुए थे। तीनों ने अभी तक कॉफी के प्यालों को हाथ भी नहीं लगाया था। तीनों अपने अपने विचारों में खोये हुए थे। चंद्रेश सोच रहा था, अपनी पत्नी वंशिका के बारे में, राहुल सोच रहा था अपने प्लान के बारे में और निशा सोच रही थी, फोन करने वाले और अपने पति अमन ओबेराय के बारे में। अचानक चंद्रेश का ध्यान भंग हुआ। उसने कॉफी का प्याला उठाते हुए दोनों को ध्यान से देखा।
“कहाँ खो गये तुम लोग?” हडबड़ाते हुए राहुल और निशा भी सोच से बाहर आये और उन्होंने भी अपनी अपनी कॉफी उठाई और चुस्कियाँ लेने लगे।
“आज कैसे टाइम मिल गया राहुल?”
“बस ऐसे ही, दोस्त से मिलने की इच्छा थी, तो आ गये। रास्ते में निशा मिल गयी। हमारी पुरानी जान-पहचान थी, तो इसे भी अपने साथ ले आया।” राहुल चंद्रेश की तरफ देख कर बोला।
राहुल ने चंद्रेश को देखते हुए कहा, “तुमने अमन साहब का नाम तो सुना होगा। निशा जी उन्हीं की पत्नी हैं।”
“ओह ! अमन साहब को तो मैं जानता हूँ। निशा जी से ये मेरी पहली मुलाकत है, पर शक्ल कुछ जानी- पहचानी लगती है। पर याद नहीं आ रहा।” सोचते हुए चंद्रेश बोला। उसकी कॉफी खत्म हो गयी। उसने प्याला मेज पर रख दिया।
" तुम्हारे लिये एक गिफ्ट है। " राहुल ने चंद्रेश की तरफ देख कर कहा।
" क्या ...........?" चंद्रेश ने सवाल पूछा।
"अभी यह राज है। जब खुलेगा तो तुम भी हैरान रह जाओगे " राहुल निशा की तरफ देख कर बोला।
निशा के चेहरे पर मुस्कान आ गयी, वो चंद्रेश को देखने लगी।
“यार तुम खोये-खोये से हो, ऐसा क्या हो गया?” राहुल ने उसे उदास देख कर पूछा।
“कुछ नहीं यार एक मुसीबत में फँस गया हूँ।” चंद्रेश के स्वर में उकताहट के भाव थे।
“क्या हुआ चंद्रेश?” राहुल ने पूछा।
चंद्रेश ने अपनी और वंशिका की बात राहुल को बताई। निरंजन वाली बात भी बताई।
“यार, उसे हर बात का पता है। मेरे शरीर में कहां कौन-सा निशान है, मैं चाभी कहाँ रखता हूँ, वह हर बात जानती है। उसे मेरे साथ घटी एक एक घटना का पता है। मैं साबित नहीं कर सकता कि वह मेरी वाईफ नहीं है। यहाँ तक की मेरी शादी के फोटोग्राफ भी बदल दिये गये हैं। बहुत गहरी साजिश रची जा रही है मेरे खिलाफ। मैं जान कर भी कुछ नहीं कर सकता।” चंद्रेश ने जोर से मुक्का सेन्टर टेबल पर मारते हुए कहा।
“और तू यह बात मुझे अब बता रहा है।” राहुल ने गुस्से से चंद्रेश से कहा।
“हम मर गये थे क्या? ऐसे कैसे कोई किसी के घर में कब्जा कर किसी की जगह ले सकता है। चल मैं पहचान करता हूँ।” राहुल उठते हुए बोला।
“बैठ जा यार, अब कुछ नहीं हो सकता। वह इंस्पेक्टर भी मुझे ही गलत साबित कर के गया है।” चंद्रेश ने निराशा भरे स्वर में कहा। वह बहुत टूटा हुआ महसूस कर रहा था।
“बहुत खूब मिस्टर चंद्रेश।” निशा ने हँसते हुए कहा।
“तुम हँस रही हो और यहाँ मेरी जान पर बनी पड़ी है।” चंद्रेश ने निशा की तरफ देख कर गुस्से से कहा।
“आपने मुझे बड़े ध्यान से शायद देखा नहीं मिस्टर चंद्रेश। नहीं तो आप अभी खुशी से उछल पड़ते।” निशा अदा के साथ मुस्करा कर बोली।
“आप मुझे जानी-पहचानी लग रही हैं, लेकिन आपको कहाँ देखा है, कह नहीं सकता।” चंद्रेश बोला।
“पाँच-सात साल ज्यादा तो नहीं होते मिस्टर चंद्रेश, किसी को भूलने के लिये, जरा याद करो सुखाड़िया कालेज उदयपुर। मैं तो आपको एक बार में पहचान गयी थी।’’ निशा मुस्कराते हुए बोली।
“अरे तुम निशा कोठारी।” चंद्रेश उसको पहचानते हुए बोला। उसका पूरा शरीर अकड़ गया। वह तन कर बैठ गया।
“शादी के बाद लड़कियों का सरनेम चेन्ज हो जाता है मिस्टर चंद्रेश।” निशा के स्वर में हल्का सा व्यंग्य आ गया।
“ओह मैं बता नहीं सकता तुम को देख कर मैं कितना खुश हूँ।” चंद्रेश के स्वर में जहाँ भर की खुशी समा गयी।
“मैं पुराने दिनों के लिये माफी माँगती हूँ मिस्टर चंद्रेश। उस समय मेरे अन्दर बचपना था। मेरी वजह से आप लोगों को जो दिक्कत हुई, उसकी माफी तो मैं पहले ही आपकी शादी में कार्ड देकर माँग चुकी हूँ।”
“अरे मैं पुरानी बातों को भूल चुका हूँ और तुमसे और सुमित से मुझे कोई गिला नहीं हैं।” चंद्रेश शांत स्वर में बोला।
माहौल संवेदनशील हो गया था।
“यह वंशिका का क्या मामला हैं। वंशिका और तुम्हारी तो लव मैरिज थी। तुम तो किसी लड़की की तरफ देखते भी नहीं थे। मैंने कितनी लाईन मारी तुम पर, मगर सब बेकार गयी।” निशा मुस्कुराते हुए बोली।
अचानक चंद्रेश खुशी से उछल पड़ा, “अरे हाँ यार, तुम तो वंशिका से मिली हुई हो और उसे जानती भी हो। तुम नकली वंशिका को झूठा साबित कर दोगी।” और वह खुशी से खड़ा हो गया।
राहुल का हाथ अपने हाथ में लेता हुआ बोला।”तुमने निशा से मिलाकर मेरा जीवन खुशियों से भर दिया। अब में नकली वंशिका को बताऊँगा कि मैं क्या चीज हूँ।” चंद्रेश खुशी से चहकने लगा।
“वैसे तुम्हारी बात सुनकर में बहुत कुछ समझ गयी, लेकिन एक बार फिर बताओ कि क्या हुआ था?” निशा ने समान्य स्वर में कहा।
चंद्रेश मल्होत्रा ने पूरी कहानी सुना दी।”अब तुम्हें चिन्ता कि क्या जरुरत है। तुम्हारे पास दो-दो गवाह हैं, जो यह बात साबित कर देंगें कि घर में उपस्थित वंशिका नकली है।” राहुल मकरानी बोला।
चंद्रेश के दिल में खुशी के लड्डू फूट रहे थे। उसने खुशी-खुशी फोन उठाया और सौ नम्बर डायल करने लगा।
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“कहाँ खो गये तुम लोग?” हडबड़ाते हुए राहुल और निशा भी सोच से बाहर आये और उन्होंने भी अपनी अपनी कॉफी उठाई और चुस्कियाँ लेने लगे।
“आज कैसे टाइम मिल गया राहुल?”
“बस ऐसे ही, दोस्त से मिलने की इच्छा थी, तो आ गये। रास्ते में निशा मिल गयी। हमारी पुरानी जान-पहचान थी, तो इसे भी अपने साथ ले आया।” राहुल चंद्रेश की तरफ देख कर बोला।
राहुल ने चंद्रेश को देखते हुए कहा, “तुमने अमन साहब का नाम तो सुना होगा। निशा जी उन्हीं की पत्नी हैं।”
“ओह ! अमन साहब को तो मैं जानता हूँ। निशा जी से ये मेरी पहली मुलाकत है, पर शक्ल कुछ जानी- पहचानी लगती है। पर याद नहीं आ रहा।” सोचते हुए चंद्रेश बोला। उसकी कॉफी खत्म हो गयी। उसने प्याला मेज पर रख दिया।
" तुम्हारे लिये एक गिफ्ट है। " राहुल ने चंद्रेश की तरफ देख कर कहा।
" क्या ...........?" चंद्रेश ने सवाल पूछा।
"अभी यह राज है। जब खुलेगा तो तुम भी हैरान रह जाओगे " राहुल निशा की तरफ देख कर बोला।
निशा के चेहरे पर मुस्कान आ गयी, वो चंद्रेश को देखने लगी।
“यार तुम खोये-खोये से हो, ऐसा क्या हो गया?” राहुल ने उसे उदास देख कर पूछा।
“कुछ नहीं यार एक मुसीबत में फँस गया हूँ।” चंद्रेश के स्वर में उकताहट के भाव थे।
“क्या हुआ चंद्रेश?” राहुल ने पूछा।
चंद्रेश ने अपनी और वंशिका की बात राहुल को बताई। निरंजन वाली बात भी बताई।
“यार, उसे हर बात का पता है। मेरे शरीर में कहां कौन-सा निशान है, मैं चाभी कहाँ रखता हूँ, वह हर बात जानती है। उसे मेरे साथ घटी एक एक घटना का पता है। मैं साबित नहीं कर सकता कि वह मेरी वाईफ नहीं है। यहाँ तक की मेरी शादी के फोटोग्राफ भी बदल दिये गये हैं। बहुत गहरी साजिश रची जा रही है मेरे खिलाफ। मैं जान कर भी कुछ नहीं कर सकता।” चंद्रेश ने जोर से मुक्का सेन्टर टेबल पर मारते हुए कहा।
“और तू यह बात मुझे अब बता रहा है।” राहुल ने गुस्से से चंद्रेश से कहा।
“हम मर गये थे क्या? ऐसे कैसे कोई किसी के घर में कब्जा कर किसी की जगह ले सकता है। चल मैं पहचान करता हूँ।” राहुल उठते हुए बोला।
“बैठ जा यार, अब कुछ नहीं हो सकता। वह इंस्पेक्टर भी मुझे ही गलत साबित कर के गया है।” चंद्रेश ने निराशा भरे स्वर में कहा। वह बहुत टूटा हुआ महसूस कर रहा था।
“बहुत खूब मिस्टर चंद्रेश।” निशा ने हँसते हुए कहा।
“तुम हँस रही हो और यहाँ मेरी जान पर बनी पड़ी है।” चंद्रेश ने निशा की तरफ देख कर गुस्से से कहा।
“आपने मुझे बड़े ध्यान से शायद देखा नहीं मिस्टर चंद्रेश। नहीं तो आप अभी खुशी से उछल पड़ते।” निशा अदा के साथ मुस्करा कर बोली।
“आप मुझे जानी-पहचानी लग रही हैं, लेकिन आपको कहाँ देखा है, कह नहीं सकता।” चंद्रेश बोला।
“पाँच-सात साल ज्यादा तो नहीं होते मिस्टर चंद्रेश, किसी को भूलने के लिये, जरा याद करो सुखाड़िया कालेज उदयपुर। मैं तो आपको एक बार में पहचान गयी थी।’’ निशा मुस्कराते हुए बोली।
“अरे तुम निशा कोठारी।” चंद्रेश उसको पहचानते हुए बोला। उसका पूरा शरीर अकड़ गया। वह तन कर बैठ गया।
“शादी के बाद लड़कियों का सरनेम चेन्ज हो जाता है मिस्टर चंद्रेश।” निशा के स्वर में हल्का सा व्यंग्य आ गया।
“ओह मैं बता नहीं सकता तुम को देख कर मैं कितना खुश हूँ।” चंद्रेश के स्वर में जहाँ भर की खुशी समा गयी।
“मैं पुराने दिनों के लिये माफी माँगती हूँ मिस्टर चंद्रेश। उस समय मेरे अन्दर बचपना था। मेरी वजह से आप लोगों को जो दिक्कत हुई, उसकी माफी तो मैं पहले ही आपकी शादी में कार्ड देकर माँग चुकी हूँ।”
“अरे मैं पुरानी बातों को भूल चुका हूँ और तुमसे और सुमित से मुझे कोई गिला नहीं हैं।” चंद्रेश शांत स्वर में बोला।
माहौल संवेदनशील हो गया था।
“यह वंशिका का क्या मामला हैं। वंशिका और तुम्हारी तो लव मैरिज थी। तुम तो किसी लड़की की तरफ देखते भी नहीं थे। मैंने कितनी लाईन मारी तुम पर, मगर सब बेकार गयी।” निशा मुस्कुराते हुए बोली।
अचानक चंद्रेश खुशी से उछल पड़ा, “अरे हाँ यार, तुम तो वंशिका से मिली हुई हो और उसे जानती भी हो। तुम नकली वंशिका को झूठा साबित कर दोगी।” और वह खुशी से खड़ा हो गया।
राहुल का हाथ अपने हाथ में लेता हुआ बोला।”तुमने निशा से मिलाकर मेरा जीवन खुशियों से भर दिया। अब में नकली वंशिका को बताऊँगा कि मैं क्या चीज हूँ।” चंद्रेश खुशी से चहकने लगा।
“वैसे तुम्हारी बात सुनकर में बहुत कुछ समझ गयी, लेकिन एक बार फिर बताओ कि क्या हुआ था?” निशा ने समान्य स्वर में कहा।
चंद्रेश मल्होत्रा ने पूरी कहानी सुना दी।”अब तुम्हें चिन्ता कि क्या जरुरत है। तुम्हारे पास दो-दो गवाह हैं, जो यह बात साबित कर देंगें कि घर में उपस्थित वंशिका नकली है।” राहुल मकरानी बोला।
चंद्रेश के दिल में खुशी के लड्डू फूट रहे थे। उसने खुशी-खुशी फोन उठाया और सौ नम्बर डायल करने लगा।
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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`·.¸.·´ -- raj sharma
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Re: Thriller फरेब
थाने में किशोर सिंह भाटी और निरंजन इसी मसले पर चर्चा कर रहे थे।
“सर, वहाँ मिले सारे सबूत वंशिका को सच्चा सबित करते हैं।” निरंजन बोला।
“निरंजन मुझे तो चंद्रेश मल्होत्रा सही बोलता लग रहा था। थाने में उसका रात भर बैठना गलत नहीं हो सकता। उसकी बातों से नहीं लगा कि वह झूठ बोल रहा है।” भाटी ने मूंछो पर ताव देते हुए कहा। उसने अपनी मूंछो की नोक को गोल किया।
“लेकिन सर, सारे सबूत तो वंशिका के पक्ष में और चंद्रेश के खिलाफ मिले।”
“तुम को पुलिस विभाग में कितना टाइम हो गया है?”
“सर, पाँच साल पूरे हो गये, छ्ठा चल रहा है।” निरंजन ने जवाब दिया।
“मुझे सत्ताइस साल हो गये, इस विभाग में। मुजरिम द्वारा झूठे सबूत पैदा करना और सच्चे सबूत नष्ट करना, सत्ताईस साल से यहीं सब देख रहा हूँ।” भाटी ने गर्व से कहा।
“सर हो सकता है कि आप ठीक कह रहे हो, पर फिलहाल तो वंशिका के फेवर में सारा मामला जाता है।”
भाटी कुछ कहना ही चाहता था कि थाने में लगे फोन की घंटी बजने लगी। भाटी ने घूरकर फोन को देखा। दोनों की बातचीत रुक गयी।
“ये भी न, बेवक्त बजती है।”
“होगा कोई फरियादी, आपका चाहने वाला, जिसे आपका चैन से बैठना रास नहीं आता।” निरंजन ने मुस्कराकर कहा। भाटी ने मूंछो को ताव देते हुए फोन उठाया।
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“हलो....., नमस्कार सर।” दूसरी तरफ से खुशी भरा स्वर कानों में पड़ा।
“नमस्कार कौन बोल रहा है?” भाटी ने पूछा।
“निरंजन जी से बात करनी है।” दूसरी तरफ से कहा गया।
“आप कौन साहब बोल रहे हैं?” भाटी ने पूछा।
“सर मैं चंद्रेश मल्होत्रा बोल रहा हूँ।” चंद्रेश बोला।
“अरे मल्होत्रा साहेब, आप तो ऐसे खुश हो रहें हैं जैसे जन्नत मिल गयी हो, हमें तो लगा था कि गम के मारे आपको हार्टअटैक ना आ जाये।” भाटी व्यंग्य भरे स्वर में बोला।
“भाटी सर, आप भी मेरा मजाक उड़ा रहे हैं।” दु:ख भरे स्वर में चंद्रेश ने कहा।
“अरे नहीं भाई, कहो कैसे फोन किया, कहीं आप और आपकी बीवी में समझौता तो नहीं हो गया, जो इतना खुश दिखायी दे रहे हैं।” अर्थपूर्ण स्वर में पूछा गया।
“नहीं सर, मेरे पास ऐसा पक्का सबूत है जो दूध का दूध और पानी का पानी साबित कर दे।” उसके स्वर में विश्वास के भाव थे।
“लगता है हम लोगों का चैन से बैठना आप लोगों को रास नहीं आ रहा है। हमारे निंरजन जी कहते हैं कि वंशिका सच्ची है और आप झूठ बोल रहे हैं और आप सबूत लिये बैठे हैं कि वह झूठी हैं। अजीब मजाक लगा रखा है आप लोगों ने।” भाटी ने तीखे स्वर में कहा।
“सर प्लीज, एक बार मेरी बात का यकीन कीजिये।” उसके स्वर में विनती के भाव थे।
“ठीक है। हम पहुँचते हैं तुम्हारी कॉटेज पर।” भाटी ने कहा।
“नहीं सर, आप कॉटेज पर नहीं, मेरे नक्की वाले ऑफिस में पहुँचिये।” जल्दी से चंद्रेश बोला।
“क्यों भाई?” भाटी ने पूछा।
“वंशिका को अचानक झटका देना चाहता हूँ। मैं नकली वंशिका के चेहरे पर पिटे भाव देखना चाहता हूँ।”
“कहीं ऐसा न हो जाये, कि बाजी ही पलट जाये।” भाटी व्यंग्य से बोला।
“कुछ नहीं होगा सर, आप निरंजन सर को भी साथ ले आइये।” बेचैनी से कहा गया।
“क्यों? निरंजन में हीरे जड़े हुए हैं।” भाटी ने कहा
“उन्होंने कल पूरी कार्यवाही देखी। वह अच्छी तरह सही गलत का पता लगा सकते हैं।”
“ओके।” भाटी ने फोन पटका और निरंजन की तरफ देखते हुए कहा, “चलो देखते हैं, आज क्या नया नाटक देखने को मिलता है।” भाटी ने उठते हुए कहा।
“सर, आपकी बात से लगता है कि चंद्रेश का फोन है और उसे कोई सबूत मिल गया है, जिससे यह साबित हो कि वंशिका नकली है।” निरंजन बोला।
“तुम्हारा सोचना सही है निरंजन।” भाटी भी उठ खड़ा हुआ।
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“सर, वहाँ मिले सारे सबूत वंशिका को सच्चा सबित करते हैं।” निरंजन बोला।
“निरंजन मुझे तो चंद्रेश मल्होत्रा सही बोलता लग रहा था। थाने में उसका रात भर बैठना गलत नहीं हो सकता। उसकी बातों से नहीं लगा कि वह झूठ बोल रहा है।” भाटी ने मूंछो पर ताव देते हुए कहा। उसने अपनी मूंछो की नोक को गोल किया।
“लेकिन सर, सारे सबूत तो वंशिका के पक्ष में और चंद्रेश के खिलाफ मिले।”
“तुम को पुलिस विभाग में कितना टाइम हो गया है?”
“सर, पाँच साल पूरे हो गये, छ्ठा चल रहा है।” निरंजन ने जवाब दिया।
“मुझे सत्ताइस साल हो गये, इस विभाग में। मुजरिम द्वारा झूठे सबूत पैदा करना और सच्चे सबूत नष्ट करना, सत्ताईस साल से यहीं सब देख रहा हूँ।” भाटी ने गर्व से कहा।
“सर हो सकता है कि आप ठीक कह रहे हो, पर फिलहाल तो वंशिका के फेवर में सारा मामला जाता है।”
भाटी कुछ कहना ही चाहता था कि थाने में लगे फोन की घंटी बजने लगी। भाटी ने घूरकर फोन को देखा। दोनों की बातचीत रुक गयी।
“ये भी न, बेवक्त बजती है।”
“होगा कोई फरियादी, आपका चाहने वाला, जिसे आपका चैन से बैठना रास नहीं आता।” निरंजन ने मुस्कराकर कहा। भाटी ने मूंछो को ताव देते हुए फोन उठाया।
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“हलो....., नमस्कार सर।” दूसरी तरफ से खुशी भरा स्वर कानों में पड़ा।
“नमस्कार कौन बोल रहा है?” भाटी ने पूछा।
“निरंजन जी से बात करनी है।” दूसरी तरफ से कहा गया।
“आप कौन साहब बोल रहे हैं?” भाटी ने पूछा।
“सर मैं चंद्रेश मल्होत्रा बोल रहा हूँ।” चंद्रेश बोला।
“अरे मल्होत्रा साहेब, आप तो ऐसे खुश हो रहें हैं जैसे जन्नत मिल गयी हो, हमें तो लगा था कि गम के मारे आपको हार्टअटैक ना आ जाये।” भाटी व्यंग्य भरे स्वर में बोला।
“भाटी सर, आप भी मेरा मजाक उड़ा रहे हैं।” दु:ख भरे स्वर में चंद्रेश ने कहा।
“अरे नहीं भाई, कहो कैसे फोन किया, कहीं आप और आपकी बीवी में समझौता तो नहीं हो गया, जो इतना खुश दिखायी दे रहे हैं।” अर्थपूर्ण स्वर में पूछा गया।
“नहीं सर, मेरे पास ऐसा पक्का सबूत है जो दूध का दूध और पानी का पानी साबित कर दे।” उसके स्वर में विश्वास के भाव थे।
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“सर प्लीज, एक बार मेरी बात का यकीन कीजिये।” उसके स्वर में विनती के भाव थे।
“ठीक है। हम पहुँचते हैं तुम्हारी कॉटेज पर।” भाटी ने कहा।
“नहीं सर, आप कॉटेज पर नहीं, मेरे नक्की वाले ऑफिस में पहुँचिये।” जल्दी से चंद्रेश बोला।
“क्यों भाई?” भाटी ने पूछा।
“वंशिका को अचानक झटका देना चाहता हूँ। मैं नकली वंशिका के चेहरे पर पिटे भाव देखना चाहता हूँ।”
“कहीं ऐसा न हो जाये, कि बाजी ही पलट जाये।” भाटी व्यंग्य से बोला।
“कुछ नहीं होगा सर, आप निरंजन सर को भी साथ ले आइये।” बेचैनी से कहा गया।
“क्यों? निरंजन में हीरे जड़े हुए हैं।” भाटी ने कहा
“उन्होंने कल पूरी कार्यवाही देखी। वह अच्छी तरह सही गलत का पता लगा सकते हैं।”
“ओके।” भाटी ने फोन पटका और निरंजन की तरफ देखते हुए कहा, “चलो देखते हैं, आज क्या नया नाटक देखने को मिलता है।” भाटी ने उठते हुए कहा।
“सर, आपकी बात से लगता है कि चंद्रेश का फोन है और उसे कोई सबूत मिल गया है, जिससे यह साबित हो कि वंशिका नकली है।” निरंजन बोला।
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