Thriller फरेब

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rajsharma
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Re: Thriller फरेब

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खान साधारण सी पेंट-शर्ट पहने क्वालिस के आगे वाली सीट पर बैठा था। जोशी ड्राइविंग कर रहा था। पीछे सात-आठ लड़ाके बैठे थे, जो पूरी तरह हथियारों से लैस थे और हर परिस्थिति से मुकाबला करने में सक्षम थे। खान और जोशी ने उनकी हर गतिविधि को देखा, बोरे वैन में शिफ्ट होते हुए, राहुल को कार छोड़ कर वैन में बैठते हुए भी। खान के होंठ सिकुड़ गये।
“जोशी, जो बोरे अभी वैन में रखे गये हैं, उसमें नेता के बरसों की काली कमाई है। अब हमें थोड़ी देर में एक्शन में आना है।”
जोशी का सिर सहमति से हिला, “लेकिन एक बात समझ नहीं आयी खान साहब, नेता को इतनी सुबह यह सब करने की क्या जरूरत थी?”
“तुम नहीं जानते जोशी, नेता बहुत ही कुत्ती चीज़ है, सुबह ज्यादा भाग-दौड नहीं रहती। लोग-बाग़ अभी मीठी नींद में होंगे, उन्हें क्या पता कि क्या हो रहा है, नेता ने दिमाग सही चलाया।” जोशी ने खान बात का समर्थन किया।
“लेकिन यह स्थिति हम जैसे लोगों के लिये बढ़िया है। अभी ज्यादा लोग भी नहीं हैं, रोड भी खाली है। कार को लूटने में कोई परेशानी नहीं होगी।” खान ने सिगार जलाते हुआ कहा।
“सही कहा आपने, नेता भूल गया सुनसान सड़क पर गाड़ी को लूटना आसान रहता है। भीड़-भाड में यह काम मुश्किल हो सकता था।” शान्त स्वर में जोशी विंडस्क्रीन देखता हुआ बोला।
“अब हमें एक्शन में आ जाना चाहिये। इनको ज्यादा वक़्त देना उचित नहीं।” जोशी का सिर सहमति से हिला।
“इन्हें ज्यादा मौका देना उचित नहीं।”
खान ने अपने आदमियों को देखा, “तैयार हो जाओ, गोली सीधी वैन के टायरों में लगनी चाहिये। पहले दोनों गाड़ियों के टायर ब्लास्ट करो।”
राहुल मकरानी शांत भाव से बैठा था। उसका मोबाइल बजने लगा। उसने फ़ोन उठाया, दूसरी तरफ से आवाज आयी, “गाड़ी भगाओ, तुम्हारे पीछे खतरा है।”
“क्या कह रहे हो।” राहुल ने हैरानी से पीछे देखते हुए बोला, “पीछे तो कुछ भी नहीं है।”
“एक क्वालिस तुम्हारा पीछा कर रही है। उसमें शायद चार-पाँच लोग सवार हैं। सब शायद हथियारों से लैस हैं, क्योंकि अभी हमें हथियारों की झलक मिली हैं।” सुनकर राहुल के प्राण काँप गये।
उसकी नज़रों के सामने खान का खूंखार चेहरा घूमा। उसने ड्राइवर की तरफ देखकर कहा, “स्पीड बढ़ाओ, हम खतरे में हैं।” ड्राइवर भी एक्सपर्ट था। उसने एक्सेलरेटर पर पैर रखा। गाड़ी की स्पीड अचानक बढ़ गयी।
खान और जोशी हड़बड़ाए, “यह क्या हो रहा है।” जोशी जोर से बड़बड़ाया।
“बेवकूफ, उन्हें पीछा होने का शक हो गया है। अब करो या मरो की स्थिति है। स्पीड बढ़ा कर ओवर टेक करो या टायर ब्लास्ट करो।” गुस्से से काँपता हुआ खान चिल्लाया।
पीछे से एक गुंडे ने गन निकाली और टायर पर निशाना साधा। ड्राइवर दक्ष था वह भांप गया, उसने सड़क पर गाड़ी लहराई और निशाना चूक गया।
अब ड्राइवर गाड़ी को सीधा नहीं चला रहा था, गाड़ी को लहरा रहा था। पीछे से निशाना लगाने वालों का निशाना बार-बार चूक रहा था।
राहुल मकरानी बोला, “हम पर आक्रमण हो गया है, लगता है मुकाबला करना पड़ेगा।”
वैन में जोशी ने कहा, “खान साहब, सामने वाला दक्ष ड्राइवर है। हाथ भी नहीं रखने दे रहा।”
“गाड़ी की स्पीड बढ़ाओ और ओवर टेक करो।” खान जोर से चिल्लाया, “ऐसा मौका बार-बार नहीं मिलता। मैं यह खोना नहीं चाहता करो या मरो।”
“खान साहब, इससे ज्यादा स्पीड से गाड़ी चलायी, तो एक्सीडेंट हो जायेगा, गाड़ी पलटने का डर है।”
“परवाह नहीं, तुम गाड़ी की स्पीड बढ़ाओ।” जोशी के जबड़े भिंच गये। उसने एक्सेलरेटर पर पाँव रखा। गाड़ी तोप के गोले तरह आगे बढ़ी।
सामने वाली गाड़ी से फासला कम होने लगा। राहुल मकरानी घबरा गया, “गाड़ी भगाओ, वह हमारे बहुत करीब आ गये हैं।” राहुल मकरानी जोर से चिल्लाया।
“इससे ज्यादा गाड़ी तेज चलायी, तो गाड़ी पलट सकती है।” ड्राइवर ने राहुल को देख कर कहा।
राहुल परिस्थिति समझ रहा था, पर वह बेबस था। उसके दाँत भिंच गये। वह समझ गया, अब बस मुकाबले के अलावा कोई चारा नहीं है। थोड़ी देर में खान की गाड़ी ने वैन को ओवर टेक किया और आगे जाकर गाड़ी तिरछी कर के रोक दी।
वैन वाला घबराकर वैन के ब्रेक पर खड़ा हो गया। गाड़ी तेज आवाज के साथ क्वालिस से थोड़ी दूर आकर रूक गयी।
क्वालिस से खान और उसके साथी उतरे और पोजीशन ले ली। खान ने एक गोली चलाई, जो विंड स्क्रीन तोड़ते हुए ड्राइवर को लगी। ड्राइवर को भनक भी नहीं लगी कि कब उसके शरीर ने आत्मा छोड़ दी और आत्मा ने भगवान के घर दस्तक दे दी।
राहुल ड्राइवर की लाश देख कर बहुत ज्यादा घबरा गया। उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी। अपनी रिवाल्वर चलाने की।
अचानक खान के जोर से चिल्लाने आवाज आयी, “राहुल, हम से टकराने की कोशिश बेकार है। तुम अकेले हमारा मुकाबला नहीं कर सकते। चुपचाप अपने आपको हमारे हवाले कर दो।”
“इस बात की क्या गारंटी है कि तुम लोग मुझे कुछ नहीं करोगे।” डरते हुए राहुल बोला। वाकई उसकी हिम्मत जवाब दे चुकी थी।
“हमें केवल नेता की दौलत से मतलब है। तुमसे हमारी कोई दुश्मनी नहीं है।” खान ने चिल्लाते हुए जवाब दिया।
“ठीक है मैं बाहर आ रहा हूँ।” राहुल मकरानी ने कहा।
खान के सारे आदमी पोजीशन में आ गये। राहुल ने वैन का साइड डोर खोला और अपने हाथ ऊपर करके बाहर निकला। पेंट की जेब में रिवाल्वर दिखायी दे रही थी।
“रिवाल्वर बाहर निकाल कर साइड में फेंक कुत्ते।” खान गरजा।
राहुल अकेला सात-आठ आदमियों का मुकाबला नहीं कर सकता था। उसने जेब में हाथ डाला और रिवाल्वर निकाल कर खान को दिखाकर गिरा दिया।
“अब आगे बढ़ो और जीप से दूर हो जाओ।” थोड़ी देर में गाड़ी और वैन पर खान का अधिकार हो गया।
खान के साथियों में उत्साह की लहर दौड़ गयी। जोशी और खान ने एक-दूसरे को देखा। खान ने ख़ुशी से जोशी को गले लगा लिया। राहुल बेबस खड़ा दोनों को देख रहा था। खान और जोशी राहुल को देख कर जोर से ठहाका लगा कर हंसने लगे।
“नेता सुंदर लाल अवस्थी अपने आपको बुद्धिमान समझते थे, खान को उन्होंने पागल समझ रखा है क्या?” व्यंग्य से खान बोला
“चलो होने वाली दौलत के दर्शन किये जाएँ।” जोशी के कंधे पर हाथ रख कर खान बोला।
खान के छह-सात लोगों ने वैन और जीप को चारों तरफ से घेर रखा था। एक तरफ राहुल खड़ा बेबस नज़रों से सब देख रहा था।
खान ने वैन का पीछे वाला हिस्सा खोला और ऊपर चढ़ गया। अंदर आठ बोरे ठसाठस भरे हुए थे। खान ने जेब से चाकू निकाला। बोरे को थोड़ा-सा फाड़ा। फरफराती हुई हजार की गड्डी के दर्शन हुए, फिर खान जीप की तरफ बढ़ा। उसमें तीन बोरे रखे हुए थे। खान ने एक बोरे का मुँह खोला, तो वह पांच सौ के नोटों से भरा हुआ था। खान की आँखें जुगनुओं की तरह चमकने लगी। खुशी से उसका मन फुला नहीं समा रहा था। तभी जोशी उसके पास आया और बोला, “खान साहब, ‘फतह’।
खान की गर्दन सहमति से हिली।
“अब क्या करना है? मेरे हिसाब से इस दौलत को नष्ट करना ज्यादा सही रहेगा, क्योंकि जो नेता की समस्या थी, नोट चेंज करने की, वह हमारी भी रहेगी।”
खान की गर्दन इनकार से हिली।
“इनको चेंज करने का हमारे पास बेहतर आईडिया है। दोनों गाड़ियों पर कब्ज़ा करो और फार्महाउस की तरफ चलो।” जोशी ने खान का आदेश पालन करने के लिये गर्दन हिलाई।
माहौल तनाव रहित था। अब कोई चिंता की बात नहीं थी।
“इसका क्या करना है?” जोशी ने राहुल की तरफ इशारा करके कहा।
“गोली मारो साले को, इसके जैसा कमीना इंसान दूसरा ना होगा।” दरिंदगी से खान बोला।
सब रिलैक्स मूड में थे।
“जल्द से जल्द रोड खाली करो कुछ देर में चहल-पहल शुरू हो जायेगी।” जोशी ने कहा।
राहुल मन ही मन यह सोच कर काँप रहा था कि बस वह थोड़ी देर का मेहमान है।
जोशी ने गन का रुख राहुल की तरफ किया ही था कि रोड से दो गाड़ियों की तीव्र हेड लाइट चमकी, जिसने थोड़ी देर के लिये उन्हें अँधा कर दिया। राहुल के जेहन में एक नाम गूंजा ‘देसाई’ वह इस आपा-धापी में यह तो भूल ही गया था कि देसाई उन पर नज़रें रखे हुआ था।
राहुल ने मौके का फायदा उठा कर अँधेरे में छलांग लगा दी और ऐसे भागा जैसे कि गधे के सिर से सींग, उसका पीछे होने वाली घटना से कोई मतलब ही न हो।
दूसरी तरफ खान ने तीव्र हेड लाइट देखी, तो समझ गया कि खतरा है। उसका दिमाग जाग गया। नेता केवल एक आदमी के भरोसे इतनी दौलत नहीं छोड़ सकता। वह और जोशी और कुछ समझ पाते, तब तक दोनों ओर से गोलियां चलने लगी। कुछ गोली खान को लगी, कुछ जोशी को, एक गोली दिल में लगी। तुरंत उसकी आत्मा भगवान के दरबार में हाजरी दे रही थी। खान के सारे गनर या तो घायल हो गये थे या मर गये थे। खान को तीन गोली लगी, दो पैर में, एक हाथ में। खान दाँत भींच कर दर्द से तड़पते हुए नीचे गिरा। उसे दूर से देसाई की झलक मिली। वह समझ गया खेल बिगड़ गया है।
वह जहाँ गिरा, वहाँ से थोड़ी दूर राहुल की रिवाल्वर पड़ी हुई थी। उसने बिना कुछ सोचे रिवाल्वर उठाई और गोली वैन ओर पेट्रोल टंकी पर चला दी। निशाना सही लगा और दोनों गाड़ियाँ धू-धू कर जलने लगी। एक भयानक धमाका हुआ और नेता की काली दौलत स्वाहा हो गयी। यह देख कर देसाई हड़बड़ाया। वह खान के नजदीक पहुँचा। खान ने रिवाल्वर उसकी तरफ करके गोली चलाई, लेकिन वह रिवाल्वर की गोली से पहले ही नेता की दौलत को बर्बाद कर के खत्म कर चुका था।
रिवाल्वर से खाली पिट-पिट की आवाज आयी। गुस्से में दर्द से तड़पते खान ने रिवाल्वर देसाई पर फेंकी। नीचे झुककर देसाई ने खुद को बचाया। उसके चेहरे पर मौत के भाव आ गये। उसने दाँत भींच कर खान को देखा, “खान, अपने अल्लाह को याद कर ले, मैं तेरी मुलाकात उससे कराने जा रहा हूँ।” देसाई ने हँसते हुए कहा।
उसने रिवाल्वर की नाल सीधी की। खान ने आँखें बंद कर ली।
“अल्लाह तेरे गुनाहो से तुझे मुक्त करे।” देसाई ने दाँत भींच कर ट्रिगर दबा दिया। गोली सीधे खान के सर में लगी। वह कुछ पल तड़पा और शांत हो गया।
देसाई ने गुस्से में उसे देखा, जिस तरह गाडियाँ आयी थी। उसी तरह वापस चली गयी। उस जगह अब लाशें ही लाशें पड़ी थी। चारों तरफ तबाही का भंडार था। धीरे-धीरे दिन की रोशनी फ़ैलने लगी। भीड़ इकट्ठी होने लगी। किसी सभ्य नागरिक ने 100 नंबर पर फ़ोन करके अपने जिम्मेवार होने का सबूत दे दिया था।
बीच सड़क पर दह्शत का दूसरा नाम खान की लाश पड़ी थी। उसकी मौत इस तरह होगी, किसी ने सोचा भी नहीं था। थोड़ी देर में कई पुलिस अफसरों की गाड़ियाँ यहाँ-वहाँ अपनी हाजिरी भर रही थी।
दुर्घटनास्थल की हालत काफी गंभीर थी। कमजोर दिल वाले दृश्य नहीं देख सकते थे। पुलिस अफसरों की नींद हराम हो गयी थी, क्योंकि हालात बहुत कुछ दर्शा रहे थे।
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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Re: Thriller फरेब

Post by rajsharma »

नेताजी को जब से यह खबर मिली कि उनकी दौलत स्वाहा हो गयी तो उनका दिल बैठ गया। उनको समझ में नहीं आ रहा था, इतनी सिक्योरिटी होने के बाद भी ये घटना कैसे घट गयी।
उन्होंने अंत तक इस बात को रहस्य बना रखा था कि दौलत कहाँ से लेनी है और कहाँ पहुँचनी है, लेकिन एक खबर उसके काम की थी और वह था- खान समाप्त हो गया।
देसाई और नेता आमने-सामने बैठे हुए थे। नेताजी अपनी बर्बादी का रोना रो रहे थे।
“हमने बहुत कोशिश की कि दौलत को बचाया जा सके, पर कामयाब नहीं हुए।” देसाई गर्दन झुका कर बोला।
“मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि हमसे गलती कहाँ हुई? इस बात की कानों कान किसी को खबर भी नहीं थी फिर खान को कैसे भनक लगी?” उदास स्वर में नेताजी बोले।
“मेरे ख्याल से राहुल को प्लान में शामिल करके हमने बड़ी भूल की। सारी गलती की गुंजाइश वहीँ से है। प्लान लीक वहीं से हुआ हैं।” देसाई मातम भरे स्वर में बोला।
“कैसे? पूरे प्लान की जानकारी तो राहुल को भी नहीं थी?” नेताजी कुर्सी से खड़े होकर टहलते हुए बोले।
“शायद खान राहुल की निगरानी कर रहा था। उसके एक-एक मूवमेंट की खबर थी खान के पास।” उत्तेजना से देसाई बोला।
“यह भी हो सकता है कि राहुल खान से मिल गया हो?” नेता ने अपना संदेह प्रकट किया।
नकारात्मक ढंग से देसाई की गर्दन हिली।
“तुम कैसे कह सकते हो?” नेता ने देसाई को देख कर कहा।
“खान ने राहुल को मारने का पूरा बंदोबस्त कर दिया था। अगर हम ठीक टाइम पर नहीं पहुँचते, तो उसका क्रिया कर्म हो गया होता।” देसाई बोला
“राहुल कहाँ गया?” नेता ने कहा।
“मौके का फायदा उठा कर अँधेरे में गायब हो गया।” शांत स्वर में देसाई बोला। यदि खान और राहुल मिले होते, तो खान राहुल को मारने की कोशिश नहीं करता।”
नेताजी की गर्दन सहमति से हिली
“लेकिन हमारा तो नुकसान हो गया। जीवन भर की पूँजी लूट गयी। कहीं के नहीं रहे हम।” दुखी मन से नेताजी बोले।
“आप सलामत हो, यही बहुत है। दौलत तो और भी कमाई जा सकती है नेताजी, शुक्र मनाओ कि आपका और मेरा जानी दुश्मन मेरे हाथों से इस दुनिया से विदा हो गया।”
नेता ने दुखी मन से गर्दन हिलाई। दौलत खोने का गम उनके चेहरे पर जाहिर हो रहा था।
“अब हमें अकेला छोड़ दो देसाई। आज किसी काम की इच्छा नहीं हैं।” देसाई ने नेताजी को देखा और कुर्सी छोड़ दी।
“अपना ख्याल रखना नेताजी। जो होना था हो गया।” यह कहकर देसाई बहर निकल गया।
नेताजी सोच में डूबे अपनी दौलत खोने का गम मन रहे थे, पर वह किसी से नहीं कह सकते थे।
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राहुल मकरानी अंधेरे में भागता जा रहा था। वह समझ गया कि देसाई की वजह से ही आज उसकी जान बच गयी। पीछे क्या हुआ, उसे पता नहीं था। कुछ आगे चलने पर उसे टैक्सी मिल गयी, जिससे वह अपने अपार्टमेंट में पहुँच गया। हालात को समझ कर वह अभी भी काँप रहा था। पता नहीं उसने क्या अच्छे कर्म किये जो वह खान के हाथों से मौत के मुँह में जाकर वापस आया। मन ही मन सोच रहा था देसाई खान को ख़त्म कर दे। उसके सर से खान का डर हट जाये और उसकी रकम भी खान के खात्मे के साथ ही ख़त्म हो जाती। खान अगर ना रहा, तो वह कर्जे से मुक्त हो जायेगा।
वह मन ही मन भगवान से प्रार्थना कर रहा था कि खान अल्लाह को प्यारा हो जाये। भगवान को शायद राहुल की प्रार्थना पर तरस आ गया था। खान की अल्लाह के पास हाजिरी लग गयी थी, पर राहुल इस बात से बेखबर था।
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Re: Thriller फरेब

Post by rajsharma »

घटनास्थल पर पब्लिक से ज्यादा पुलिस की गाडियां खडी थी। प्रेस वाले भी पुलिस के अफसरों के पीछे पड़े राज जानना चाहते थे। प्रेस वालों को भनक लग गयी थी कि जलती गाड़ी में पांच सौ के नोटो की गड्डियां जली हुई मिली हैं। पुलिस इस बात को छिपाने की बहुत कोशिश कर रही थी, पर प्रेस वाले पीछा नहीं छोड़ रहे थे।
एक पत्रकार पुलिस कमिश्नर के पास पहुँचा, “सर मैं पत्रिका से हूँ, सुना है गाड़ियों में पांच सौ और हजार के नोटों की अधजली गड्डियां मिली हैं। क्या मैंने सही सुना है?”
कमिश्नर ने प्रश्नों से खुद को बचा कर कहा, “हम शाम को प्रेस कांफ्रेंस कर के सारी जानकारी आप लोगों को दे देंगे, प्लीज लीव मी।”
“सर, इतनी सारी दौलत किसकी हो सकती है?” दूसरे पत्रकार ने अपना प्रश्न दागा।
“हम छानबीन कर रहे हैं। जैसे ही पता चलेगा, हम आपको जानकारी दे देंगे।” कमिश्नर पत्रकारों से बचते हुए अपनी गाड़ी की तरफ बढ़ गया।
कई बड़े अधिकारियों को पता था यह संपत्ति स्वास्थ्य मंत्री सुन्दर लाल अवस्थी की है क्योंकी उनके पास पहले से खबर कर दी गयी थी कि इन गाड़ियों की तरफ ध्यान न दें। इसमें अपनी अवैध कमाई नेता ट्रान्सफर कर रहा है।
सबका हिस्सा पहुँच चुका था। अब दौलत नष्ट हो जाने के बाद सब अनजान बन रहे थे और छानबीन का नाटक हो रहा था, जैसे उन्हें कुछ पता ही न हो।
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दूसरे दिन यह घटना अखबारों की सुर्खियों में थी। खान की मौत और अनजान दौलत, जो आग के लपेटे में आकर नष्ट हो गयी थी, हर बड़े अखबार में यही छपा था। लोग पुलिस को कोस रहे थे। पत्रकारों ने पुलिस की छवि को पूरी तरह नकारा साबित कर दिया था।
शहर में इतनी बड़ी घटना हो गयी और पुलिस अभी तक खान के कातिल और किसकी दौलत है, यह भी पता नहीं लगा पायी। यह खबर हर जगह छपी थी।
राहुल मकरानी ने जैसे ही खान की मौत की खबर सुनी, उसके सिर पर से भारी बोझ उतर गया। उसने जश्न की तैयारी कर ली। इस घटनाक्रम से किसी को फायदा हुआ हो या ना हो, पर उसकी चांदी हो गयी थी।
लाखों का क़र्ज़ उसके सिर से उतर गया था। वह अपने माइंड को फ्री महसूस कर रहा था। उसका दिल हवा में उड़ रहा था।
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वंशिका और सागर ने मिलकर चंद्रेश की हालत पतली कर रखी थी। अपने ही घर में वह मेहमान की तरह लग रहा था जबकि वंशिका और सागर घर के मालिक की तरह लग रहे थे।
चंद्रेश का दिमाग फटा जा रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि इन लोगों से कैसे पीछा छुडाया जाये।
“सागर जी आपने सुना, हमारे पतिदेव ने पांच करोड़ की L.।.C कराई हुई है।” वंशिका व्यंग्य से चंद्रेश की तरफ देखते हुए सागर से बोली।
चंद्रेश ने चिहुँक कर वंशिका को देखा, “क्यों लगा न चार सौ चालीस वोल्ट का करंट?” मज़े लेते हुए वंशिका बोली।
सुनकर सागर सोफे पर ही सीधा हो गया, “क्या कह रही हो जान तुम?”
अब उन दोनों में चंद्रेश से कोई छुपाव नहीं रहा। वह वंशिका को डायरेक्ट जान बोल रहा था।
चंद्रेश ने खा जाने वाली नज़रों से वंशिका को देखा, “तुमको कैसे मालूम यह बात?”
“अपने चाहने वालों की हर बात हम जानते हैं।” वंशिका अंगडाई लेती हुई बोली।
चंद्रेश ने आश्चर्य से सागर को देखा। वंशिका और मूड बनाते हुए बोली, “अगर हमारे पतिदेव का एक्सीडेंट हो गया, दुर्घटना घट गयी या हमारे पतिदेव लाचार हो गये तो....” वंशिका का सुन्दर चेहरा खूंखार हो गया।
“तो क्या?” सागर ने वंशिका से पूछा।
“तो सारी जायदाद की मालिक यह नाचीज़ हो जायेगी, यानी चंद्रेश की धर्मपत्नी मैं?” वंशिका ने सिर झुकाकर अदा से कहा।
“तुम मुझे धमकी दे रही हो। मुझे मार कर मेरी दौलत हथिया लोगी।” चंद्रेश का स्वर गुस्से से भर गया और वह वंशिका का गला दबाने आगे बढ़ गया।
“भाई के होते हुए बहन पर कोई आंच आये, यह मैं बर्दाश्त नहीं करूँगा। आखिर वकील हूँ कोई भी धारा लगा दूँगा।” व्यंग्य से सागर बोला।
चंद्रेश कसमसा के रह गया, “औरत तो देवी का अवतार होती है। पति को अपने प्राणों से ज्यादा प्यार करती है। तूने झूठे ही अगर मुझे पति माना है, तो उसका थोड़ा-सा मान तो रख कमीनी।” गुस्से से चंद्रेश का मुँह लाल हो गया। वह तीखी नजरों से वंशिका को देखने लगा।
“वाह-वाह क्या डायलॉग मारा है पतिदेव जी ने।” वह जोर-जोर से हंसने लगी और ताली बजाने लगी। सागर मज़े लेते हुए सारा सीन देख रहा था।
“तेरे खूबसूरत चेहरे के पीछे इतना गन्दा चेहरा छिपा है, तू मेरी वंशिका की परछाई भी नहीं हो सकती। वह आसमान है, तू जमीन है, तेरा उसका कोई मुकाबला नहीं।” गुस्से में चंद्रेश मल्होत्रा बोला।
अचानक सागर बोला, “जब इसने अपने नाम से पांच करोड की L। C करा रखी है, तो तुम्हारे नाम से भी करा रखी होगी। अब तुमने इसे मर्डर का आईडिया सरका दिया। यह तीर तो तुम पर भी ठीक बैठता है।”
चंद्रेश ने गुस्से में दोनों को देखा।
“हाय दैया, इस तरह तो मैंने सोचा ही नहीं। अब तुमको मेरी हिफाजत करनी होगी।” अपने दिल पर हाथ रख कर अदा से वंशिका बोली।
चंद्रेश ने दोनों को गुस्से में देखा और बाहर निकल गया। दोनों के हंसने की आवाज उसके कानों में पिघला शीशा उड़ेल रही थी।
उसने कान पर हाथ रख कर ऊपर आकाश की तरफ देखा, “हे भगवान, आप को मुझे ऐसे दिन भी दिखाना था।”
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
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Re: Thriller फरेब

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पुलिस कमिश्नर के ऑफिस में सामने टेबल पर छोटा-सा तिरंगा रखा हुआ था। सामने टेबल पर फाइलों का ढेर लगा हुआ था। कमिश्नर के सामने वाली टेबल पर निरंजन और भाटी विराजमान थे। किसी विषय पर उनकी चर्चा चल रही थी।
कमिश्नर ने चश्मा उतारकर टेबल पर रखा और भाटी की ओर देख कर बोला, “भाटी, मुझे तुमसे यह उम्मीद नहीं थी कि सुमित अवस्थी का केस इतना लम्बा होगा। कातिल का अभी तक सुराग नहीं मिला। तुम जैसे सीनियर और जिम्मेदार ऑफिसर से मैं ऐसे ढील की उम्मीद नहीं कर सकता।” कमिश्नर गंभीर स्वर में बोला।
“सर मुझे थोड़ा सा समय और दे दो। हम कातिल तक पहुँचने ही वाले हैं। एक नए केस में काम करते हुए सुमित अवस्थी के बारे में हमें महत्वपूर्ण जानकारी मिली है, जो इस केस को सुलझाने में मदद करेगी।” अपने स्वर को गंभीर बनाये भाटी बोला।
निरंजन ने उसकी हाँ में हाँ मिलायी।
“किस केस पर काम कर रहे हो आप लोग?” साधारण स्वर में कमिश्नर ने पूछा।
“सर चंद्रेश मल्होत्रा नाम के एक साहब हैं, जिनका दावा है कि उनकी बीवी नकली है। जबकि हर बात साबित करती है कि वंशिका असली है। उसी केस से पता चला। इन सब लोगों का कनेक्शन किसी न किसी तरह सुमित अवस्थी से है।” किशोर सिंह भाटी के स्वर में आदर के भाव थे।
कमिश्नर का सिर सहमति से हिला, “ठीक है, जैसे भी हो, ये मामला जल्द से जल्द ख़त्म करो।” कमिश्नर ने टेबल पर से अपना चश्मा उठा कर पुनः अपनी आँखों में लगाया।
“सर एक बात पूछनी है, अगर आप बुरा ना माने तो।” भाटी ने रिक्वेस्ट करते हुए पूछा।
“पूछो भई, क्या जानना चाहते हो?”
“सर, बाजार में अफवाह फैली हुई है, जो सुबह आग में अधजले नोट मिले हैं, वह सुन्दर लाल अवस्थी की काली कमाई का अंश है।” भाटी रहस्यमयी स्वर में बोला।
“हमें तो अभी ऐसी कोई जानकारी नहीं मिली है, जिससे कि यह साबित हो कि वह पुराने हजार पांच सौ के नोट सुंदर लाल अवस्थी के हैं।”
“पर सर बिना आग के तो धुआ नहीं उठता है, कुछ न कुछ सच्चाई तो इस बात में होगी ही।”
“हो सकता है, जांच चल रही है।” कमिश्नर ने बात टालते हुए कहा, “तुम अपने केस पर ध्यान दो भाटी, मैं जल्द से जल्द रिजल्ट चाहता हूँ।”
“जी सर।” कह कर भाटी और निरंजन ने जोरदार सेल्यूट कमिश्नर को मारा। कमिश्नर की गर्दन हिली।
वे दोनों लकड़ी का दरवाजा खोलकर बाहर निकल गये। दरवाजा चरमरा कर अपने आप बंद हो गया।
कमिश्नर ने कुछ सोचा, फिर सुन्दर लाल अवस्थी को फ़ोन लगाया, “बोलो कमिश्नर, कैसे याद किया?” भारी स्वर सुनाई दिया।
“सर लोगों में खबर फ़ैल रही है, जो नोट मिले हैं वह आप के हैं।”
“तुम क्या जानते हो?” नेताजी ने सवाल पूछा।
कमिश्नर घबरा गया, “जी, मैं... मैं ...”
“छोड़ो कमिश्नर, उन नोटों पर हमारा नाम नहीं लिखा था। कोई कुछ भी कहे, उन नोटों से हमारा कोई सम्बन्ध नहीं हैं।” कह कर सुन्दर लाल अवस्थी ने फ़ोन काट दिया।
कमिश्नर ने मन ही मन नेताजी को सुंदर-सी गाली दी।
बाहर निकल कर भाटी निरंजन से बोला, “देखा नोटों वाली बात सुनकर कमिश्नर ने कितनी जल्दी बात बदल दी। साले सब मिले हुए हैं। सब ने कमीशन खाया है।” गुस्से में भाटी बोला।
“सर इससे हमें क्या करना है? हमारी प्राथमिकता सुमित मर्डर केस है। उसके कातिल को जल्द से जल्द पकड़ना है।” चलते-चलते निरंजन बोला।
“यह केस मेरी इज्जत का सवाल बन गया है। दो दिन में केस हल न किया, तो मेरा नाम भाटी नहीं। तुमको मेरा साथ देना होगा निरंजन।” भाटी निरंजन को देखते हुऐ बोला।
“डन सर।” भाटी ने निरंजन का हाथ थाम लिया। दोनों थाने की ओर रवाना हो गये।
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राहुल मकरानी की कार जब जागृति अपार्टमेंट में पहुँची, उस समय रात के दस बज रहे थे। राहुल कार पार्क कर बाहर निकला, तो पूरी तरह टुन्न था। शराब का नशा उस पर पूरी तरह हावी था।
अब उसे खान का भय नहीं रहा। हर रात उस के लिये जश्न की रात थी। बड़ी मुश्किल से वह अपने फ्लैट के पास पहुँचा। किसी तरह चाभी लगा कर उसने मेनडोर खोला। स्विच पर हाथ रख कर उसने स्विच ऑन किया, तो सारा कमरा प्रकाश से नहा उठा।
अचानक रुम की तरफ नजर पड़ते ही वह चिहुँक उठा, ऐसा महसूस हुआ, जैसे ततैया ने काट खाया हो। ठगा-सा वह अपने रुम को देख रहा था। घर का सारा सामान बिखरा हुआ था। यूँ लग रहा था जैसे रूम की तलाशी ली गयी हो। उसका सारा नशा हिरन हो गया। उसको समझ नहीं आ रहा था कि खान के बाद नया दुश्मन कौन पैदा हो गया?
अचानक उसने अपने दिमाग पर जोर दिया। सामने दीवार पर बड़ी फोटो फ्रेम लगी हुई थी, जिसमें सूरज का उगता हुआ चित्र था, जो शानदार दिख रही थी। राहुल ने बेड पर चढ़ कर वह चित्र दीवार से हटाया। पीछे गुप्त रुप से छिपी सेफ नजर आयी। राहुल मकरानी ने चाभी से सेफ खोली अन्दर नोटों की गड्ड़ी के साथ कुछ फाईले रखी थी। राहुल का ध्यान नोटों के बजाय, फाईलों पर अधिक था। सब चीज ठीक पाकर उसने सेफ बन्द की। फ्रेम वापस दीवार पर लगाई।
बेड से नीचे उतकर उसने मोबाइल जेब से निकाला और नम्बर पंच करने लगा। थोड़ी देर बेल होने के बाद सामने से फोन उठाया गया।
“देसाई साहब, आपने इस तरह तलाशी लेकर ठीक नहीं किया। अगर कुछ प्राबल्म थी, तो मुझसे बात करनी थी।” राहुल मकरानी बोला।
“क्या कहना चाहता है तू?” गुस्से में देसाई बोला।
“अभी आपने कुछ आदमी भेज कर मेरे रूम की तलाशी करवाई। कुछ चाहिये तो मुझे बोलना था। यह तरीका सही नहीं है।” राहुल बोला।
“अपनी जुबान के लगाम दे कुत्ते। तेरी इतनी औकात हो गयी तू मुझ से इस प्रकार बात करे। अरे, मुझे कुछ चाहिये होता, तो छिप कर तेरे रूम की तलाशी नहीं करवाता। तुझे उठवा ही लेता। शुक्र कर मेरी वजह से नेताजी की टेढ़ी नजर तेरे ऊपर नहीं पड़ी वरना अभी तक तेरी लाश का भी पता नहीं लगता। साले शुक्रिया अदा करने की जगह इल्जाम लगा रहा है। दोबारा फोन किया, तो तेरी खैर नहीं।” हिंसक स्वर में बोल कर देसाई ने फोन काट दिया।
राहुल का पूरा शरीर पसीने से नहा गया। उसने सोफे पर बैठ कर अपने शरीर को ढीला छोड़ दिया और रिलेक्स हो गया। तभी राहुल के मोबाइल की रिंगटोन बजी। राहुल ने ग्रीन बटन दबा कर फोन उठाया।
“कैसे हो मिस्टर ब्लैकमेलर?” उसके कानों में रोबिला स्वर गूंजा।
“कौन बदतमीज बात कर रहा है?” राहुल बोला।
“तमीज तो तुमको बतानी है मिस्टर मकरानी? आजकल तुम बहुत उड़ रहे हो। तुम्हारे पर काटने जरुरी हैं। काफी जिन्दगी तुम बर्बाद कर चुके हो, पर अब ऐसा नहीं होगा। मेरी नजरें हर पल तुम पर टिकी हैं।” सामने से आवाज आयी।
“ओह, तो तुम मुझे धमका रहे हो। मेरे घर की तलाशी तुमने ली?” राहुल व्यंग्य से बोला।
“तलाशी लेने जैसे काम मैं पंसद नहीं करता। अगर तुने बुरे काम ना छोड़े, तो अपने अन्जाम के जिम्मेदार तुम खुद होगे।” बोलने वाला रौब से बोला।
“तुम कोई खुदा हो, जो तुम कहो और मैं करूं।” राहुल मकरानी चिढ़ कर बोला।
“लगता है तुम्हें अपनी जिन्दगी से प्यार नहीं है। अब अपने बुरे दिन गिनना शुरु कर दो।” कहकर सामने से फोन काट दिया गया।
राहुल मकरानी काफी देर तक आवाज पहचानने की कोशिश करता रहा, पर उसे कुछ समझ में नहीं आया। थक हार कर वह लेट गया। उसको लगने लगा कि उसके बुरे दिन अभी खत्म नहीं हुए हैं।
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साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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Re: Thriller फरेब

Post by rajsharma »

शाम का वक्त था मौसम खुशनुमा था। निशा ओबरॉय की कार हनीमून प्वाइंट की तरफ बढ़ रही थी। आज उसकी इच्छा डूबते सूरज को देखने की हो रही थी।
हनीमून प्वाइंट पर सनसेट देखने के लिये काफी लोग आते थे। यहाँ से सनसेट देखने का अलग ही मजा था। देखते- देखते आग का गोला कैसे गायब होता है। इस नजारे को देखने माउंट में सात बजे से हनीमून प्वाइंट पर लोग इकट्ठा होते हैं। निशा की कार जब हनीमून प्वाइंट पहुँची, तो सनसेट शुरु हो गया था।
निशा कार से बाहर निकली और एक चट्टान से टेक लगा कर खड़ी हो गयी। सनसेट का मजा ले रही थी। लोग डूबते सूरज के साथ तरह-तरह की फोटो ग्राफी कर रहे थे। निशा की सुन्दरता पर अनेक मनचलों की नजर पड़ी। कुछ ने उसे आर्कषित करने की कोशिश की, लेकिन निशा इन सब से बेखबर नजारों में मस्त थी।
अचानक उसके मोबाइल की रिंगटोन बजी। निशा ने खूबसूरत हैन्डबैग से मोबाइल निकाला और स्क्रीन को देखा, तो अमन ओबरॉय का नाम दिखायी दिया। निशा ने ग्रीन बटन दबा कर फोन उठाया।
“कैसी हो स्वीट हार्ट?” दूसरी तरफ से अमन ओबरॉय का रोबिला स्वर सुनाई दिया।
अमन की आवाज में वह रोब था कि सामने वाला नमस्तक हो जाता था। निशा का शरीर तन गया।
“ठीक हूँ स्वीट हार्ट, तुम बताओ काम कैसा चल रहा है? वापस कब आ रहे हो? तुम्हारी कमी बहुत खल रही है।” निशा ने अपने शब्दों में शहद लपेटा।
“जल्द ही वापस आऊँगा स्वीट हार्ट, अभी थोड़ा काम बाकी है। तुम चिन्ता क्यों करती हो। कोई प्रॉब्लम है तो बताओ।” अमन का प्यार-भरा स्वर उसे सुनाई दिया।
“तुम्हारे होते हुए मुझे कोई दिक्कत हो सकती है? संभव ही नहीं।” निशा बोली।
“निशा एक बात ध्यान रखो मैं कहीं भी हूँ लेकिन मेरी नजरें तुम पर हमेशा रहती हैं। तुमको मैं दुखी नहीं देख सकता, यह बात तुम जानती हो।” अमन के स्वर में दिवानापन उभरा।
“मैं जानती हूँ अमन, तुम मुझे कितना चाहते हो। मुझसे कुछ छिपा हुआ नहीं है। तुम्हारा प्यार देख कर ही तो मैंने शादी करने की हामी भरी, बाकी मेरी शादी करने की कोई इच्छा नहीं थी।” निशा ने कहा।
“मैं जानता हूँ स्वीट हार्ट, तभी तो आज पूरे भारत में तुम्हारे नाम से रेस्टोरेंट और होटल खोलने का प्लान बना रहा हूँ। मैं चाहता हूँ कि तुम्हारा नाम दुनिया देखे। अगर कोई प्राब्लम हो, तो तुरन्त मुझसे सम्पर्क करना।”
“तुम्हें क्यों लगता है मुझे कोई प्राब्लम है?” निशा ने सवाल किया।
“जब भी तुम प्राब्लम में होती हो, मुझे यहाँ पता लग जाता है। मेरे दिल में पिछले कुछ दिनों से गलत-गलत विचार आ रहे हैं।” अमन चिंतित स्वर में बोला।
“किसी तरह का वहम न पालो, मैं यहाँ ठीक हूँ। तुम जल्द से जल्द काम खत्म करके वापस आ जाओ। तुम्हारे बिना घर में अकेलापन लगता है।” निशा बोली।
“ठीक है स्वीटहार्ट, मैं जल्द काम खत्म कर के आ रहा हूँ। वैसे चार-पाँच दिन में मेरा आबू आने का विचार है। अपना ध्यान रखना।” कहकर अमन ने फोन काट दिया।
निशा ने मोबाइल पर्स में रखा, तब तक सनसेट हो चुका था। धीरे-धीरे लोग लौट रहे थे। निशा ने गाड़ी रिवर्स गेयर में डाल कर घुमाई। वह मन ही मन सोच रही थी। अमन उसे कितना प्यार करता है उससे और वह क्या कर रही है, उससे फरेब ! उसके मन में ख्याल आया, अगर अमन सच बोल रहा है कि वह उसके पल-पल की खबर रखता है तो सब जानता होगा। सोच कर उसका सिर भारी होने लगा। उसने कुछ पल अपने शरीर को ढीला छोड़ा और फिर एक झटके से कार स्टार्ट कर आगे बढ़ा दी।
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थाने में किशोर सिंह भाटी और निरंजन गंभीर अवस्था में बैठे सुमित अवस्थी वाले केस के बारे में चर्चा कर रहे थे। टेबल पर रखी चाय कब ठंड़ी हो गयी, उन्हें पता भी नहीं लगा।
सोच से बाहर निकलते हुए भाटी बोला, “निरंजन केस पूरा खुला हुआ है। अब हमारे पास चार सस्पैक्ट हैं। चंद्रेश मल्होत्रा, निशा ओबरॉय और विमल जो इस कहानी में किसी न किसी रूप से जुड़े हुए हैं।” निरंजन की गर्दन हाँ में हिली।
“इसमें दो नाम और जोड़ लीजिये सर, अयूब खान और राहुल मकरानी का।” निरंजन ने कहा।
“वैसे देखा जाये तो विमल और राहुल मकरानी को इस मामले से बाहर रख सकते हैं क्योंकि विमल, सुमित अवस्थी के मर्डर के वक्त यहाँ नहीं था और राहुल मकरानी का इस मर्डर में कोई रोल दिखायी नहीं दे रहा।” भाटी ने मूंछो पर हाथ फेरते हुए कहा।
“सर हमें हर एंगल से सोचना है तो अभी कोई भी शक के दायरे से बाहर नहीं हो सकता।” निरंजन भाटी की तरफ देख कर बोला।
भाटी की गर्दन सहमति से हिली, “तुम सही कहते हो निरंजन। हमें छानबीन शुरु से करनी है और नये सिरे से करनी है, क्योंकि अब हमारे पास कई रास्ते खुले पड़े हैं। कातिल तक पहुँचने के लिये हमें सारे सबूत वापस से देखने होंगे और शुरुवात वहीं से होगी, जहाँ सुमित अवस्थी रहता था।”
निरंजन की गर्दन सहमति में हिली।
“एक बात मुझे और परेशान कर रही है सर। यदि चंद्रेश की बात सच माने, तो जो वंशिका अभी है वो नकली है तो असली कहाँ गयी?”
“निरंजन तुम्हारी बात में दम है। मुझे लगता है यदि यह वंशिका नकली है तो हमें दो-दो मर्डर केस की छानबीन करनी पड़ेगी।”
“क्या कह रहे हो, सर?” निरंजन हैरानी से बोला।
“यदि वंशिका नकली हैं तो सौ प्रतिशत असली वंशिका इस दुनिया में नहीं है और उसे मारने के पीछे जरूर नकली वंशिका और सागर का हाथ है।” भाटी ने सिगरेट सुलगाते हुए कहा।
“सर मुझे सागर का रंग-ढंग समझ में नहीं आ रहा। पट्ठा हाथ भी नहीं रखने देता। कानून का पूरा नॉलेज है। हर बात का जवाब है उसके पास।” निरंजन ने कहा।
“अब मैं देखता हूँ कैसे बचता है वह? कानून के हाथ लम्बे होते हैं। मुजरिम कितना भी चालाक हो, लेकिन कुछ न कुछ सबूत जरुर छोड़ कर जाता है। हमें वही पकड़ना है।” भाटी विश्वास से बोला।
“चलो सर, शुरुवात सुमित अवस्थी के होटल से करते हैं। पता नहीं इतना पैसा होने के बाद सुमित होटल में क्यों रहता था।”
“पहले तो हम कन्फ्यूज थे पर चंद्रेश की स्टोरी से पता चलता है कि सुमित अय्याश किस्म का आदमी था। होटल में कोई रोक-टोक नहीं थी। उल्टा वहाँ तो अय्याशी के सारे साधन उपलब्ध थे।”
निरंजन का सिर सहमति से हिला। उसने भाटी की बात का समर्थन किया।
होटल हिलटाउन माउंट आबू का शानदार होटल, जो अपनी भव्यता के लिये प्रसिद्ध था, उसको इस तरह डिजाईन किया गया था कि राजा-महाराजा के महल याद आ जाये। जगह-जगह एन्टीक आईटम्स रखे हुए थे, जो उसकी खूबसूरती को और बढ़ा रहे थे। सामने ही बड़ा-सा गार्डन था, जहाँ बीच में पानी का फव्वारा लगा हुआ था, जो चालू था। रात के समय वहाँ की रंगीन लाईटें भी चालू कर दी जाती थी। रंग-बिरंगी रोशनी से वातावरण और हसीन हो जाता था। फिलहाल दिन के समय लाईटें बन्द थी। होटल के बाहर अचानक भाटी और निरंजन अपनी शानदार वर्दी के साथ जीप से उतरे और सीधा रिसेप्शनिष्ट की तरफ बढ़े। वहाँ एक खूबसूरत लड़की बैठी थी, जिसने मेकअप का शानदार इस्तेमाल किया हुआ था। वह पुलिस को देख कर चौंक कर सीधी बैठ गयी।
भाटी ने कहा “मुझे मैनेजर साहब से मिलना है।” लड़की का सिर सहमति में हिला।
वह कुछ कहने ही वाली थी कि सामने पड़े दो फोन में से एक चिल्ला उठा। उसने फोन उठाया फिर किशोर सिंह भाटी को देखा। मैनेजर के रूम की तरफ जाने का इशारा किया। भाटी और निरंजन मैनेजर रूम की तरफ मुड़े।
“सी. सी. टीवी कैमरे का कमाल है।” निरंजन मुस्कुराते हुए बोला।
दोनों मैनेजर के सामने बैठे थे। पैंतालिस वर्षीय मैनेजर शक्ल से शरीफ नजर आ रहा था। ऑफिस में AC की हवा से ठण्डापन था। मैनेजर ने दोनों के लिये कॉफी का ऑर्डर कर दिया।
“कहिये भाटी साहब, क्या सेवा कर सकता हूँ?” मैनेजर आदरपूर्ण स्वर में बोला।
“शुक्ला जी दोबारा आपको तंग करने के लिये माफी चाहता हूँ, लेकिन अब काफी टाइम हो गया है। केस सॉल्व करना जरूरी है। आप सुमित अवस्थी के बारे में वापस बताइये। कौन उससे मिलने आता था? कत्ल वाले दिन कौन-कौन मिलने आया? किसके साथ अपॉइन्टमेन्ट थी? क्या- क्या हुआ? सारी बातें दोबारा डीटेल से बताइये। कोई भी चीज बचनी नहीं चाहिये।”
“जी सर, मैं समझता हूँ आप पर केस हल करने का प्रेशर है। जहाँ तक मैं जानता हूँ सुमित अवस्थी रिजर्व रहता था। ज्यादा लोग उसके पास नहीं आते थे। लेकिन दो लड़कियाँ और दो-तीन साहब अक्सर उससे मिलने आते थे।”
“लड़कियाँ या महिलाएँ? “ निरंजन ने टोका।
“अब आजकल के फैशन में कहाँ मालूम पड़ता है साहब, कौन लड़की है और कौन शादीशुदा है?” मैनेजर ने शान्त स्वर में कहा।
निरंजन ने सहमति से सिर हिलाया।
“सुनने में आया है सुमित अवस्थी रंगीन तबियत का आदमी था।” भाटी बोला।
“भाटी साहब, उस उम्र में सभी रंगीन तबियत के रहते हैं।” मैनेजर बोला।
“सुमित अवस्थी के कत्ल वाले दिन के बारे में आपको याद है? क्या हुआ था?” भाटी ने सवाल किया।
“सर, अब तक यह बात इतनी रिपीट हो चुकी है कि ऐसा लगता है, सारा दृश्य सामने चल रहा है।” मैनेजर बोला।
“तो बताइये, उस दिन क्या हुआ था? मामूली से मामूली बात भी बताइये।”
मैनेजर ने सोचते हुए बताना शुरु किया। उस दिन होटल में ज्यादा भीड़ नहीं थी और दिनों के मुकाबले ठंड भी अधिक थी। लोग कम ही बाहर निकल रहे थे। शाम पाँच बजे एक सुन्दर-सी महिला आयी। वह सुमित साहब के साथ तीन घण्टा रही। आठ बजे के करीब वह चली गयी, तो सुमित अवस्थी साहब बाहर आये। तभी उनसे मिलने एक सज्जन आये। आधा घण्टा दोनों गार्डन में रहे। फिर किसी बात में उनमें और सुमित साहब में गरमा-गरमी हो गयी। वह साहब उन को देख लेने की धमकी देने लगे। होटल के कर्मचरियों ने उनका बीच-बचाव किया। वह व्यक्ति गुस्से में ही उनसे कहता हुआ निकला कि “तुम्हारी जिन्दगी के दिन पूरे हो गये मिस्टर सुमित अवस्थी। मुझ से बचकर रहना।” फिर वह व्यक्ति अपनी कार में बैठ कर चला गया। मैनेजर शान्त भाव से बोला।
“हाँ, यह बात तुमने पहले भी बताई थी। कौन था वह व्यक्ति?” निरंजन ने पूछा।
“मैं उन्हें नहीं जानता भाई साहब, पर रहन- सहन से लग रहा था कि वह कोई ऊँचे खानदान का बहुत ही पैसे वाला व्यक्ति होगा। उसके चेहरे से अमीरी की झलक दिख रही थी। हाव-भाव से रॉयल खानदान का लग रहा था। कोई सोच भी नहीं सकता ऐसा रॉयल आदमी हाथापाई जैसी हरकत करेगा, लेकिन जाते-जाते उसका मूड ऐसा था, जैसे वह किसी का मर्डर कर सकता था।”
“इस आदमी के बारे में हमने जानने की बहुत कोशिश की, लेकिन इसका कोई सुराग तक नहीं मिला।” भाटी निराशा भरे स्वर में बोला।
“हो सकता है इस व्यक्ति का कत्ल में हाथ हो।” निरंजन बोला।
मैनेजर कुछ क्षण चुप रहा। वह दोनों को देखने लगा।
“आगे क्या हुआ मैनेजर साहब?” निरंजन बोला।
मैनेजर ने बात आगे बढ़ाई, “झगड़े के बाद सुमित साहब अपसेट हो गये थे। उनका मूड बिगड़ गया था। मेरे लाख पूछने पर भी उन्होंने उस व्यक्ति का नाम और झगड़े की वजह नहीं बताई। आधे घण्टे में सब कुछ नॉर्मल हो गया। उस समय रात के नौ या सवा नौ का समय होगा, जब सुमित अवस्थी ने डिनर का प्रोगाम बनाया। वे डिनर के लिये जा रहे थे कि अचानक एक बला-सी हसीन लड़की होटल में आयी, जिसे देख कर सुमित साहब ने डिनर का विचार त्याग दिया, वह बला सुमित साहब के पास आयी। उनसे हँस-हँस कर बात करने लगी। फिर दोनों सुमित साहब के रुम की ओर बढ़ गये। रुम में ही इन्टरकॉम में सुमित साहब ने डिनर का आदेश दिया, साथ में व्हीस्की का ऑर्डर भी। दो से ढ़ाई घण्टे दोनों साथ में रहे, फिर ग्यारह-सवा ग्यारह बजे के बीच दोनों रूम से बाहर निकले। दोनों के चेहरे से लग रहा था कि दोनों ने छ्क कर पी है। सुमित साहब तो खड़े भी नहीं रह पा रहे थे। औरत उनको संभाल कर धीरे-धीरे बाहर लाई, फिर वह कार में बैठ कर चले गये। उसके बाद क्या हुआ, मैं नहीं जानता।” मैनेजर ने कहा।
“क्या आप दोनों महिलाओं को जानते हो, जिन्होंने उस दिन सुमित अवस्थी के साथ वक्त गुजारा?” भाटी ने पूछा।
मैनेजर की नजरें नकारात्मक ढंग से झुकी।
“क्या मैं उस वेटर से मिल सकता हूँ, जिसने उसे डिनर सर्व किया?”
“हाँ-हाँ, क्यों नहीं?” मैनेजर ने इन्टरकॉम पर सुरेश को भेजने को कहा। थोड़ी देर में सफेद वर्दी पहने सुरेश हाजिर हुआ। वह पुलिस को देख कर घबरा गया।
“घबराओ नहीं सुरेश। हमें यह बताओ कि जिस दिन सुमित अवस्थी का मर्डर हुआ, तुमने उनको डिनर सर्व किया, तब अन्दर का माहौल कैसा था?” सुरेश के डरे चेहरे को देख कर भाटी बोला।
“सर, जब मैं डिनर देने गया, उस समय वहाँ हँसी-मजाक का हल्का-फुल्का माहौल था। सुमित सर बार-बार मैडम के गले में हाथ डाल रहे थे, पर मैडम मजाक भरे अंदाज में उनका हाथ झिड़क देती। दोनों ही चाहते थे कि मैं जल्द से जल्द रुम से निकल जाऊँ, ताकि उनकी प्राईवेसी में कोई दखल ना पड़े।” सुरेश ने डरते हुए कहा।
“अच्छा एक बात बताओ। तुमने व्हीस्की पहले दी थी या डिनर के साथ दी थी?” निरंजन ने पूछा।
“सर व्हीस्की, भुने काजू और रोस्टेड चिकन तो उन्होंने पहले ही मँगवा लिया था। रुम के अन्दर पहुँचने पर डिनर का मैंने उनसे पूछा तो उन्होंने एक घण्टे बाद लाने को कहा।”
“यानी तुम दो बार रुम में गये थे?”
सुरेश का सर सहमति में हिला।
“अच्छा एक बात बताओ। जब डिनर देने गये, उस समय कैसा माहौल था? दोनों में से कौन ज्यादा नशे में दिख रहा था।” निरंजन ने पूछा।
“साहब नशे में तो सुमित साहब ही थे। गिलास तो दो ही रखे थे, पर लग नहीं रहा था कि मैडम पी रही हो।” सुरेश सावधानी से बोला।
“यह बात तुम कैसे कह सकते हो?” भाटी ने पूछा।
सुरेश ने रहस्यमय स्वर में कहा, “सर, वहाँ पास ही एक छोटा मिनी प्लांट रखा था। जब मैं पहली बार गया था, तो सूखा हुआ था, दूसरी बार में वह मुझे गीला दिखायी दिया, जैसे उसमें कुछ डाला गया हो।” निरंजन सीधा होकर बैठ गया।
“यह बात तुमने पहले क्यों नहीं बताई?”
“सर, मैं गरीब आदमी कहाँ पुलिस के चक्कर काटता।” सुरेश ने डरे स्वर में कहा।
“यह बात छुपा कर तुमने बहुत गलत किया है।” भाटी ने गुस्से में उसे देखते हुए कहा।
“मुझे माफ कर दो सर।” सुरेश के स्वर में घबराहट उभरी।
“और कुछ बताना चाहते हो?” निरंजन ने पूछा।
सुरेश ने नकारात्मक ढंग से गर्दन हिला दी।
“ठीक है, अब तुम जा सकते हो।” निरंजन ने कहा।
सुरेश ऐसे गायब हुआ, जैसे गधे के सिर से सींग।
निरंजन ने भाटी को देखा और कहा, “अब सस्पैक्ट और बढ़ गये। एक तो वह व्यक्ति, जिससे सुमित का झगड़ा हुआ, दूसरी वह लड़की, जिसने सुमित को जबरदस्त शराब पिलाई और फिर वहाँ से सहारा देकर ले गयी।” भाटी का सिर सहमति से हिला।
“अच्छा, तो अब हम चलते है मैनेजर साहब। आपको एक बार और कष्ट देंगे। कुछ तस्वीर दिखा कर।” मैनेजर ने झट से सहमति से सिर हिलाया और दोनों से हाथ मिलाया।
वे बाहर की तरफ बढ़े ही थे, कि निरंजन ने मैनेजर का लैपटॉप देखा और बहुत जोर से चौंका और घूम गया। भाटी ने उसके चेहरे के बदलते हुए भाव देखे।
“क्या हुआ निरंजन? तुम चौंके क्यों?
निरंजन वापस आकर कुर्सी पर बैठ गया और भाटी से इशारा करके बोला, “बैठिये सर, अभी एक चमत्कार, एक धमाका होना बाकी हैं। हमें किसी को पहचानने के लिये तस्वीर लाने की कोई जरुरत नहीं हैं।”
“क्या कह रहे हो निरंजन?” आश्चर्य से भाटी बोला।
“आप बैठिये तो सर। हमसे बड़ा बेवकूफ कोई दूसरा ना होगा।” जबरन भाटी को बैठाते हुए निरंजन बोला।
मैनेजर ने उलझन पूर्ण नजरों से दोनों को देखा, “क्या कहना चाहते हो सर?”
“हमारे आने का आपको कैसे पता चला, जो आपने रिसेप्सनिष्ट को फोन कर हमें डायरेक्ट अन्दर बुला लिया? “
“मैंने यहाँ आपको देखा लैपटॉप पर।” मैनेजर ने उलझनपूर्ण ढंग से निरंजन को देखा।
भाटी भी तब तक निरंजन के कहने का मतलब समझ गया।
“वाह निरंजन, गुड जॉब।” भाटी मुस्करा कर बोला।
“आप समझ गये सर, मेरे कहने का मतलब।”
भाटी की गर्दन हाँ में हिली। मैनेजर दोनों को पागलों की तरह देख रहा था।
“मैनेजर साहब, आपके यहाँ सी. सी. टीवी कैमरे लगे हैं तो उस दिन की फुटेज भी हमें मिल जायेगी, जिस दिन सुमित अवस्थी का मर्डर हुआ।”
मैनेजर सब समझ गया, “होनी तो चाहिये सर। हम हर महीने की डी.वी.डी. बना कर साल भर अपने पास रखते हैं। ताकि जरूरत पड़ने पर काम आ जाएं। साल भर बाद उसे नष्ट कर देते हैं।”
“बन गया काम।” निरंजन मुस्कुरा कर बोला।
“तो मैनेजर साहब, उसे दिखाने का इंतजाम कीजिये।” भाटी उत्सुकता से बोला।
मैनेजर भीतर गया और कुछ डी.वी.डी. में से एक निकाल कर उसे लैपटॉप पर लगा दी। थोड़ा आगे-पीछे करने के बाद उस दिन का सीन दिखने लगा। शाम पाँच बजे जिस महिला ने कदम रखा, उसे देखकर भाटी और निरंजन दोनों ही चौंके।
“यह तो निशा ओबरॉय है।” निरंजन बोला।
डी.वी.डी. आगे बढ़ी। आठ बजे निशा वापस चली गयी। तभी थोड़ी देर बाद उन्हें स्क्रीन पर गुस्से में भरा सुमित अवस्थी दिखायी दे रहा था, लेकिन जिस व्यक्ति से झगड़ा हुआ, वह नहीं दिखायी दिया।
“वह व्यक्ति कहाँ है? कैसेट में नहीं आया।” भाटी ने पूछा।
“सर, उनका झगड़ा गार्डन में हुआ था। वहाँ सी.सी. टी.वी. कैमरा नहीं था। वो गार्डन से ही बाहर चला गया था। इसलिये नहीं आया।”
भाटी ने समझते हुए गर्दन हिलाई।
सवा नौ बजे के करीब एक कयामत दिखायी दी, जो भड़कीली ड्रैस पहने हुए स्क्रीन पर आयी, जिसने सुमित के साथ हँस-हँस कर बात की, फिर वो दोनों रुम में चले गये। सवा ग्यारह बजे वे दोनों नशे की हालत में बाहर निकले। लड़की भी नशे में लग रही थी। वह सुमित को संभाले बाहर निकल गयी। वह सब के लिये अपरिचित थी। मैनेजर ने लैपटॉप बन्द किया।
“मैनेजर साहब, एक काम कर सकते हो? इस डी.वी.डी. की एक कॉपी और इस लड़की और निशा ओबरॉय की प्रिन्टेड तस्वीर निकालने का बंदोबस्त कर दो।”
मैनेजर ने सहमति से सिर हिलाया। थोड़ी देर में उनके काम की चीज उनके हाथ में थी। दोनों का चेहरा चमक रहा था।
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma
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