Thriller Kaun Jeeta Kaun Hara

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Masoom
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Re: Thriller Kaun Jeeta Kaun Hara

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कमाण्डर करण सक्सेना उस कमरे में पहुंचा, जहाँ अविनाश लोहार को कैद करके रखा गया था ।
उस आदमी को थोड़ी देर बाद फांसी होने वाली थी, मगर उसके चेहरे पर भय, चिंता या अवसाद के कैसे भी कोई चिह्न न थे । वह बिल्कुल शांत नजर आ रहा था, एकदम शांत ।
मृत्यु से पहले इतनी शांति किसी बड़े संत के चेहरे पर ही हो सकती थी ।
“आओ कमाण्डर !” कमाण्डर को देखते ही वह मुस्कुराया- “कैसे हो ?”
कमाण्डर कुछ न बोला ।
“लगता है, मेरी अंतिम यात्रा का समय हो गया है ।”
“हाँ, वो समय भी हो चुका है ।” कमाण्डर ने कहा- “मगर उससे पहले मैं तुम्हें कुछ दिखाना चाहता हूँ ।”
“क्या ?”
“मेरे साथ आओ ।”
कमाण्डर, अविनाश लोहार को लेकर सेंट्रल गेस्ट हाउस के पहली मंजिल के टैरेस पर पहुंचा । उस टैरेस पर, जहाँ से वो अपार जनसमूह और वो सड़क एकदम साफ़ दिखाई पड़ रही थी, जिधर से अविनाश लोहार का काफिला गुजरना था ।
सड़क के दोनों तरफ इंसानों का वो समुद्र उमड़ा हुआ देखकर अविनाश लोहार भी भौचक्का रह गया ।
“जानते हो मिस्टर अविनाश !” कमाण्डर अपलक उस भीड़ को देखता हुआ बोला- “यह भीड़ किसके लिए उमड़ी हुई है ? तुम्हारे लिए मिस्टर अविनाश, सिर्फ तुम्हारे लिए । यह सब लोग तुम्हें सिर्फ एक नजर देखना चाहते हैं । दुनिया के सबसे खतरनाक आतंकवादी होकर भी तुम इनकी निगाह में मसीहा बन चुके हो । तुम्हारे लिए यह आज जो इतनी भीड़ उमड़ी हुई है, यह इस बात की गवाह है कि तुमने अपने बाबा को जो वचन दिया था, वह वचन आज पूरा हुआ । तुम्हारे बाबा का संदेश आज जन-जन तक पहुंच चुका है । यह तमाम लोग कह रहे हैं कि तुम्हारे साथ नाइंसाफी हुई थी । हर आदमी कह रहा है, अदालत में जो कुछ साबित होता है, वह हमेशा सच नहीं होता । मैं भी कहता हूँ कि तुम्हारे साथ नाइंसाफी हुई थी । कोर्ट में तुम्हें प्रिया का हत्यारा गलत साबित किया गया था, परंतु मैं एक बात और भी कहूँगा ।”
“क्या ?”
“अल्जीरिया में अमेरिकी राष्ट्रपति का काफिला गुजरने से सिर्फ चंद सेकेंड पहले वेलकिंगम रोड पर हेलीकॉप्टरों से जबरदस्त बमबारी की गई और जिसमें पांच सौ से ज्यादा जानें गयीं, उस प्रकरण में तुम निर्दोष नहीं थे । भूटान में रक्षा मंत्री का जो अपहरण किया गया, उसमें तुम निर्दोष नहीं थे । लीबिया में अमेरिकी दूतावास में जो बम विस्फोट हुआ, उसमें भी तुम निर्दोष नहीं थे । और लेबनान के फौजी कैम्पों पर रात के समय रॉकेट लांचरों से जो खतरनाक हमला किया गया, जिसमें कई हजार फौजी मौत की गहरी नींद सो गये, उसमें भी तुम निर्दोष नहीं थे । ऐसी और ऐसी न जाने कितनी आतंकवादी कार्रवाईयां हैं, जो तुम्हारे नाम दर्ज हैं । तुम्हें क्या लगता है अविनाश लोहार, तुम्हें इन अपराधों की सजा नहीं मिलनी चाहिये । तुम्हारे साथ जो नाइंसाफी हुई थी, उसका इतना बड़ा पारितोषिक तुम्हें मिल चुका है कि यह तमाम जनता तुम्हारी हिमायत में आज सड़क पर उतर आई है । फिर अपने अपराधों की सजा पाने के लिए ही तुम्हें गुरेज क्यों ?”
“मुझे कोई गुरेज नहीं है ।” अविनाश लोहार शांतमुद्रा में बोला- “मैं फांसी पर चढ़ने के लिए तैयार हूँ ।”
“परंतु तुम्हें इस जनसमूह के बीच में से गुजारकर यहाँ से तिहाड़ जेल तक ले जाना काफी जटिल हो गया है । तमाम अधिकारियों को शक है कि पब्लिक तुम्हें फांसी पर चढ़ाने के लिए तिहाड़ जेल तक नहीं जाने देगी । जानते हो, तुम्हें तिहाड़ जेल तक ले जाने की जिम्मेदारी मुझे सौंपी गई है । इंटरपोल चीफ ने कहा है, तुम हमारी पहली और आखरी उम्मीद हो कमाण्डर ! अगर तुम हार गये, तो हम सब समझेंगे कि हम हार गये, कानून हार गया । परंतु मैं कुछ और ही कहता हूँ ।”
“क्या कहते हो ?” अविनाश लोहार का विचलित स्वर ।
“मैं कहता हूँ, अगर आज अविनाश लोहार को इस गेस्ट हाउस से तिहाड़ जेल तक ले जाने का काम कोई कर सकता है, तो खुद अविनाश लोहार कर सकता है । अविनाश लोहार के अलावा इस काम को दूसरा कोई शख्स अंजाम नहीं दे सकता ।”
अविनाश लोहार चौंक पड़ा ।
उसने हैरानी से कमाण्डर की तरफ देखा ।
“मैं कुछ गलत नहीं कह रहा हूँ अविनाश लोहार ! बल्कि मैंने एक-एक शब्द बहुत सोच-समझकर कहा है । बोलो, मेरी मदद करोगे ?”
“हां, कमाण्डर !” अविनाश लोहार भी जैसे धमाकाई व्यक्तित्व का मालिक था- “मैं आपकी मदद करूंगा ।”
कमाण्डर करण सक्सेना को लगा, जैसे उसके सिर से कोई बहुत भारी बोझ उतर गया हो ।
☐☐☐
आनन-फानन कुछ नए काम किए गये ।
वहीं टेरेस पर माइक लाया गया । एक कैमरे को वहाँ फिट किया गया और फिर अविनाश लोहार के जनता के नाम एक संबोधन की भी व्यवस्था की गई ।
सबसे पहले ‘इण्डिया टीवी’ पर और उस पांच किलोमीटर लंबे रास्ते पर जगह-जगह लगे विशालकाय पर्दों पर कमाण्डर करण सक्सेना अवतरित हुआ ।
सड़क के दोनों तरफ जो जनसमूह उमड़ा हुआ था, विशालकाय पर्दों पर कमाण्डर करण सक्सेना को देखते ही उनके बीच निस्तब्धता छा गई ।
गहरी निस्तब्धता !
“दोस्तों !” कमाण्डर ने पब्लिक को संबोधित करना शुरू किया- “मैं कमाण्डर करण सक्सेना आपसे रू-ब-रू हूँ । मैं जानता हूँ, इस समय आप अविनाश लोहार को देखना चाहते हैं । अविनाश का काफिला बस निकलने ही वाला है, परंतु उससे पहले मिस्टर अविनाश लोहार की इच्छा है कि वह आप लोगों से चंद शब्द कहें ।”
अविनाश लोहार कुछ कहना चाहता है ।
उस बात को सुनकर हंगामा मच गया चारों तरफ ।
जबरदस्त हंगामा !
☐☐☐
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इंटरपोल पुलिस का चीफ जैकी, रॉ चीफ गंगाधर महंत और दूसरे बड़े-बड़े अधिकारी टीवी चैनल पर वह जो प्रोग्राम देख रहे थे, उस प्रसारण को सुनते ही वह सब भी चौंक पड़े ।
“कमाण्डर को यह क्या हो गया है ?” गृहमंत्री ने चौंककर कहा ।
“सचमुच यह कमाण्डर का बहुत गलत कदम है ।” इंटरपोल पुलिस चीफ ने भी कहा- “इस तरह तो अविनाश लोहार को पब्लिक के बीच और भी ज्यादा सिंपैथी मिलेगी । अविनाश लोहार के इस प्रसारण को फौरन रोको, फौरन !”
“नहीं !” गंगाधर महंत बोले- “प्रसारण रोकने की कोई जरूरत नहीं है । मैं कमाण्डर करण सक्सेना को अच्छी तरह जानता हूँ । वो ऐसा कोई कदम नहीं उठाएगा, जिससे हमें नुकसान हो ।”
“लेकिन अविनाश लोहार आखिर क्या बोलेगा ?”
“वह जो बोलेगा, बहुत जल्द सामने आ जायेगा, बस थोड़ा सब्र रखें ।”
☐☐☐
फिर अविनाश लोहार टीवी चैनल पर और उन विशालकाय पर्दों पर नमूदार हुआ ।
पब्लिक के बीच हंगामा सा मच गया ।
अविनाश लोहार !
अविनाश लोहार ! !
चारों तरफ शोर उमड़ा ।
भयंकर शोर ।
“शांत हो जाइए ।” अविनाश लोहार ने अपने दोनों हाथ उठाकर सबसे कहा- “शांत !”
पब्लिक के बीच ऐसी खामोशी तारी हो गई, जैसे वहाँ कोई था ही नहीं ।
जैसे अब सब जिंदा लाश में तब्दील हो गये हों ।
वह आदमी सचमुच मसीहा बन चुका था ।
“मैं जानता हूँ, आप लोग मुझसे बहुत प्यार करते हैं ।” अविनाश लोहार की जज्बातों से भरी हुई गरजदार आवाज उस पांच किलोमीटर लंबे रास्ते पर लाउडस्पीकरों के जरिए जगह-जगह गूंजी- “बहुत दर्द है आपके दिल में मेरी मौत को लेकर । आप नहीं चाहते, मुझे फांसी हो । आप लोगों ने एक आतंकवादी को फरिश्ता बना दिया है । मैंने आज तक सिर्फ सुना था कि पब्लिक की आवाज में बड़ी ताकत होती है । पब्लिक की आवाज को कोई दबाकर नहीं रख सकता । आज मैंने यह नजारा अपनी आंखों से देख भी लिया । मैं हैरान हूँ कि आप सब लाखों लोग मेरे लिए उमड़े हुए हैं, सिर्फ मेरे लिए । आपके चेहरे पर जो दर्द है, मेरे लिए जो प्यार है, वह मैं पढ़ रहा हूँ । आखिर एक अनाथ प्यार की पोथी ही तो सबसे अच्छी तरह पढ़ना जानता है, क्योंकि प्यार ही उसे बचपन से नहीं मिला होता और जिसे जो चीज नहीं मिलती, वही उसका मूल्य भली-भांति जानता है, परंतु आज एकाएक इतना ढेर सारा प्यार आप लोगों ने मुझे दे दिया है कि अगली-पिछली सारी कमी पूरी हो गई । अब इस जिंदगी से कोई शिकायत नहीं रही, कोई गिला नहीं रहा । इसमें कोई शक नहीं कि आज से छः साल पहले मेरे साथ नाइंसाफी हुई थी । उन चारों दरिंदों ने मिलकर ‘प्रिया हत्याकांड’ में जबरदस्ती मेरे खिलाफ सबूत प्लांट किए थे । पूरे सिस्टम को खरीद डाला था, लेकिन यह भी सच है दोस्तों ! एक आतंकवादी बनकर मैंने कुछ अपराध किए । आज भी लेबनान के उन फौजियों की लाशें मेरी आंखों के गिर्द घूम-घूम जाती हैं, जिनके कैंपों पर रात के समय मैंने रॉकेट लॉन्चरों से बहुत खतरनाक हमला किया था और वह बेचारे सोते-के-सोते रह गये थे । इसी तरह अलजीरिया में अमेरिकी राष्ट्रपति का काफिला गुजरने से पहले हेलीकॉप्टर से मैंने जो बमबारी की, उस हादसे को भी मैं कभी नहीं भूल सकता । उसमें पांच सौ से ज्यादा निर्दोष आदमी मारे गये । दोस्तों ! यह सारे गुनाह मेरे सिर हैं । मेरे अंदर अगर एक अच्छा आदमी मौजूद है, तो एक बुरा आदमी भी है । और उस बुरे आदमी को आज उसके कुकृत्यों की सजा मिलनी ही चाहिये । उसे फांसी होनी ही चाहिये । कानून ने मुझे जिस सजा से नवाजा है, वह बिल्कुल सही सजा है । मैं सचमुच इस सजा का हकदार हूँ ।”
दर्शकों की सांसें तक थम गईं ।
हर कोई स्तब्ध रह गया ।
यह सबकी जिंदगी का पहला वाकया था, जब फांसी पर चढ़ने वाला व्यक्ति खुद अपनी जबान से कह रहा था कि उसे सही सजा दी जा रही है ।
जब वो खुद कन्फेशन कर रहा था ।
यह वाकई बड़ी बात थी ।
बहुत बड़ी ।
“दोस्तों !” अविनाश लोहार ने थोड़ा रुककर पुनः पहले जैसी ही जज्बाती और गरजना भरी आवाज में कहा- “थोड़ी ही देर में मेरा काफिला आप सब लोगों के बीच में से गुजरेगा । मुझे उम्मीद है, आप शांति और धैर्य बनाए रखेंगे । यह मेरी अंतिम यात्रा है और इस यात्रा में मैं शान्ति की कामना कर रहा हूँ । मुझे अपनी मौत का कोई दुःख नहीं है, क्योंकि एक ‘आतंकवादी’ बनने के बाद मैंने सोचा भी नहीं था कि मेरी मौत ऐसी यादगार होगी । इतनी लोगों की दुआएं और जज्बात मेरे साथ होंगे । मैं अकेला इस यात्रा पर नहीं जा रहा हूँ बल्कि आप लोगों का यह ढेर सारा प्यार भी मेरे साथ है, जो मुझे शक्ति प्रदान कर रहा है । बस आप लोग काफिले के दौरान शांति बनाए रखें, यही मेरा नम्र निवेदन है । अगर आप लोगों ने ऐसा किया, तो मुझे अच्छा लगेगा ।”
उसके बाद अविनाश लोहार ने पहले की तरह ही अपने दोनों हाथ उठाकर सबसे विदा ली ।
“अलविदा दोस्तों ! अलविदा साथियों !”
हंगामा मच गया चारों तरफ ।
अविनाश लोहार !
अविनाश लोहार !!
अविनाश लोहार के गगनभेदी नारों से सारा आकाश तक थर्रा उठा ।
☐☐☐
“दैट्स वंडरफुल !” इंटरपोल चीफ उस प्रसारण को सुनते ही खुशी से चिल्लाया- “रिअली एक्सीलेंट ! सचमुच कमाण्डर ने यह कमाल का काम किया है ।”
गृहमंत्री, रॉ चीफ गंगाधर महंत और अन्य पुलिस ऑफिसरों के चेहरे भी खुशी से चमक उठे ।
“मैं क्या कहता था ऑफिसर !” गंगाधर महंत बोले- “करण को मैं अच्छी तरह जानता हूँ । वह ऐसा कोई कदम नहीं उठाएगा, जिससे हमें नुकसान हो ।”
“इसमें कोई शक नहीं ।”
☐☐☐
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फिर वो क्षण भी आया, जब ठीक तीन बजे काफिला अपने गंतव्य तिहाड़ जेल की तरफ रवाना हुआ ।
अविनाश लोहार को एक बुलेटप्रुफ गाड़ी में बिठाया गया । कमाण्डर करण सक्सेना उसी बुलेटप्रुफ गाड़ी में अविनाश लोहार के साथ बैठा और उनके साथ तीन कमांडोज और बैठे । जिनमें से एक ने ड्राइविंग सीट संभाली ।
उस बुलेटप्रुफ गाड़ी के आगे-पीछे दो-दो गाड़ियाँ और रवाना हुईं ।
उन गाड़ियों में कमांडोज भरे हुए थे ।
हथियारबंद कमांडोज !
जिनके पास अत्याधुनिक गनें थीं ।
पूरी सुरक्षा बरती जा रही थी ।
काफिले की सबसे पिछली गाड़ी में गृहमंत्री, इंटरपोल चीफ, गंगाधर महंत तथा अन्य पुलिस ऑफिसर बैठे ।
और उसके बाद वो काफिला रवाना हुआ ।
पब्लिक के बीच हडकंप सा मचा ।
हर कोई उस बंद गाड़ी में बैठे अविनाश लोहार की एक झलक देखने को व्याकुल था ।
जबकि अविनाश लोहार हाथ उठा-उठाकर सबका अभिवादन कर रहा था ।
उन लोगों का इतना प्यार देखकर उसकी आँखें सजल हो आयी थीं ।
☐☐☐
काफिला चलता रहा ।
बहुत मंथर गति से चलता रहा ।
काफिले ने आधा रास्ता तय कर लिया, परन्तु कोई घटना न घटी ।
सब कुछ शांति के साथ हो रहा था ।
अलबत्ता कमाण्डर करण सक्सेना और अधिकारियों की सांसें अभी भी हलक में अटकी थीं ।
तभी एक घटना और घटी ।
बड़ी अप्रत्याशित घटना ।
ऐसा घटना, जिसकी उस पल किसी ने कल्पना भी नहीं की थी ।
सब कुछ एकदम से हुआ और हंगामाई अंदाज में हुआ ।
वह बैसाखी बगल में दबाये खड़ा एक बहुत फटेहाल लंगड़ा बूढ़ा था, जो अविनाश लोहार की एक झलक देखने के लिए बेरकेट्स के पास तक खिंचा चला आया था । उस समय अविनाश लोहार को फांसी देने के अहसास से उसका दिल रो रहा था, उसकी आँखों में आंसू थे ।
अविनाश लोहार की कार को उसने जैसे ही अपने नजदीक आते देखा, वो चीख उठा ।
“अरे दुष्टों, यह आदमी अपराधी नहीं है ।” वह हिड़कियों से रो पड़ा- “यह तो फ़रिश्ता है, फ़रिश्ता ! भला जो आदमी खुद अपने जुर्म कबूल कर ले, उससे बड़ा फ़रिश्ता कौन होगा ।”
“हाँ, हाँ !” तुरंत कई जज्बाती नौजवान हलक फाड़कर और चिल्ला उठे- “यह आदमी अपराधी नहीं है । अपना जुर्म कबूल करने पर तो भगवान भी माफ़ कर देता है । हम तो फिर भी इंसान हैं ।”
“हम अविनाश लोहार को फांसी नहीं होने देंगे ।”
“अविनाश लोहार नहीं मरेगा ।”
चारों तरफ हंगामा मच गया ।
काफिला जैसे ही नजदीक पहुंचा, उत्तेजित नौजवान बैरकेट्स लाँघ-लाँघकर काफिले की तरफ झपट पड़े ।
कुछ काफिले के सामने सड़क पर लेट गये ।
मजबूरन काफिला रोकना पड़ा ।
और !
काफिले के रुकते ही कुछ नौजवानों ने बुलेटप्रुफ गाड़ी को चारों तरफ से घेर लिया था ।
फिर न जाने कहाँ से लोहे की छड़ें भी वहाँ आ गईं ।
उसके बाद वह लोहे की छड़ें दनादन बुलेटप्रुफ कार की विंडस्क्रीन पर बजाने लगे ।
“हम अविनाश लोहार को किसी हालत में फांसी नहीं होने देंगे । अविनाश लोहार नहीं मरेगा ।”
वह लोहे की छड़ विंडस्क्रीन पर दनादन बजाते हुए एक ही बात चिल्ला रहे थे ।
अगली-पिछली गाड़ियों से कमांडोज फ़ौरन धड़धड़ाते हुए बाहर निकले और उन्होंने बाहर निकलते ही हवाई फायरिंग की ।
“क्या हो रहा है यह ?” वह चीखे- “पीछे हटो सब ! पीछे !”
परन्तु !
नौजवानों के ऊपर अविनाश लोहार को बचाने का इतना जूनून सवार था कि किसी ने कमांडोज की बात नहीं सुनी ।
किसी ने गोलियों की परवाह नहीं की ।
कमांडोज कोई अगला एक्शन लेते, उससे पहले ही नौजवानों ने कार की विंडस्क्रीन को तोड़ डाला और अंदर बैठे अविनाश लोहार को जबरदस्ती बाहर निकालने की कोशिश की ।
तुरंत कमाण्डर हरकत में आ गया ।
वह कार से बाहर निकला और ‘मार्शल आर्ट’ के कुशल योद्धा की तरह उन नौजवानों के ऊपर झपटा ।
उसने जूड़ो के किक्स का प्रयोग किया ।
नौजवानों की चीखें गूँज उठीं ।
वो हलक फाड़कर चिल्लाते हुए इधर-उधर गिरे ।
तभी दो नौजवानों ने अविनाश लोहार को टूटी हुई विंडस्क्रीन से बाहर खीच लिया ।
“रुक जाओ !” कमांडोज चिल्लाये- “रुक जाओ, वरना हम शूट कर देंगे ।”
मगर नौजवान रुकने वाले कहाँ थे ।
तब कमांडोज ने उन्हें निशाना बनाकर ट्रेगर दबाना चाहा ।
और, तब पहली बार ध्यान भंग हुआ कमाण्डर का ।
“नहीं !” वह नौजवानों को भूलकर कमांडोज की तरफ घूमा और उन्हें आदेश देता हुआ चीखा- “नहीं, कोई नौजवानों पर गोली नहीं चलाएगा, कोई नहीं ।”
मगर कमाण्डर के आदेश के बावजूद कुछ कमांडोज ने फायरिंग कर ही दी ।
धांय ! धांय ! ! धांय ! ! !
गोलियों की आतिशबाजी सी छूटी ।
एक नौजवान तो चीखता हुआ वहीं कार के पास ढेर हो गया । उसके दो गोलियां पेट में लगी थीं ।
जबकि एक अन्य नौजवान की टांग में गोली लगी ।
वह लंगड़ाता हुआ वहाँ से भागा ।
“ब्लडी बास्टर्ड !” कमाण्डर आक्रोश में गरजा- “मैंने तुम लोगों से कहा न, कोई फायरिंग नहीं करेगा, कोई नहीं ।”
कमाण्डर उन कमांडोज की तरफ झपटा, जिन्होंने फायरिंग की थी ।
कमांडोज ठिठक गये ।
उन्होंने तुरंत फायरिंग बंद कर दी ।
परंतु इस बीच एक जबरदस्त गड़बड़ हो गयी ।
कमाण्डर के ध्यान भंग होने का उत्तेजित नौजवानों को फ़ायदा मिला और अविनाश लोहार को लेकर उस अफरा-तफरी के बीच वहाँ से गायब हो गये ।
वो कहाँ गायब हुए, यह फिर कुछ पता न चला ।
अविनाश लोहार कमाण्डर के हाथ से निकल गया था ।
☐☐☐
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“यह हम सबके लिए डूब मरने की बात है ।” इंटरपोल चीफ हलक फाड़कर चिल्ला रहा था- “हम सबके लिए । हम एक आदमी को कुशलतापूर्वक ‘तिहाड़ जेल’ तक नहीं ला सके । जबकि दो हजार लोगों की सिक्योरिटी उस पांच किलोमीटर लम्बे रास्ते पर तैनात थी । ब्लैक कैट कमांडोज तैयार थे । मेटल डिटेक्टर और स्पेशल डिक्टा मशीन जैसे अत्याधुनिक उपकरणों का प्रयोग किया जा रहा था । लेकिन फिर भी अविनाश लोहार को वह लोग हमारे पंजे से निकालकर ले गये ।”
वह ‘तिहाड़ जेल’ का एक कमरा था, जिसमें पुलिस अधिकारियों की एक मीटिंग चल रही थी और उसे इंटरपोल चीफ बड़े क्रोधपूर्ण अंदाज में संबोधित कर रहा था ।
“जहाँ तक मैं समझता हूँ ।” कमाण्डर बोला- “यह सब कमांडोज की जरा सी गलत हरकत के कारण हुआ ।”
“कमांडोज की गलत हरकत के कारण ?” गृहमंत्री चौंके ।
“हां ! कमांडोज को फायरिंग नहीं करनी चाहिये थी । हवाई फायरिंग तक सब कुछ ठीक था, लेकिन भावुक हो रहे उन नौजवानों को प्वाइंट ब्लैंक शूट करना कहाँ की अक्लमंदी थी । वह अपराधी तो नहीं थे सर, और न ही आदी मुजरिम थे, जो मरने-मारने पर उतर आए । वह तो वक्ती जज्बात की रौ में बहकर वो कदम उठा बैठे थे ।”
“लेकिन उन्होंने वह एक्शन उन नौजवानों को रोकने के लिए लिया ।”
“मगर उससे वो रुके कहाँ ? मेरा सारा ध्यान अविनाश लोहार पर था और मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि मेरे जीते जी वह नौजवान अविनाश लोहार को वहाँ से उठाकर नहीं ले जा सकते थे । क्योंकि वह कुशल लड़ाका तो थे नहीं और न ही उनका हमला योजनाबद्ध था । हम सब मिलकर बिना हथियारों के ही मामले को बड़ी आसानी से अपने काबू में कर सकते थे । जबकि फायरिंग करने से हम सबका ध्यान भंग हो गया । खासतौर पर मेरा तो हुआ, जिसका फायदा उन नौजवानों को मिला ।”
पुलिस अधिकारियों की नजरें झुक गईं ।
उनमें कई कमांडोज भी थे ।
वह चूंकि उस घटना के चश्मदीद गवाह थे, इसलिए अच्छी तरह जानते थे कि कमाण्डर करण सक्सेना ठीक कह रहा है ।
“जो हुआ सो हुआ ।” गंगाधर बोले- “अब यह सोचो कि हम लोगों का अगला कदम क्या होना चाहिये ?”
“पांच बजने में अब सिर्फ बीस मिनट बाकी हैं ।” इंटरपोल चीफ ने अपनी रिस्टवाच देखते हुए कहा- “कम से कम अब मुझे यह तो नहीं लगता है कि आज ठीक पांच बजे अविनाश लोहार को फांसी हो पायेगी ।”
“नहीं, अविनाश लोहार की फांसी आज ही होगी दोस्तों, और ठीक पांच बजे ही होगी ।”
वह एक नई आवाज थी, जो एकाएक उस कमरे में गूंजी ।
उस आवाज ने सबको चौंकाकर रख दिया ।
सबने फौरन आवाज की दिशा में पलटकर देखा ।
☐☐☐
अगले कुछ क्षण और भी ज्यादा विहंगमकारी थे ।
पलटते ही वह सब यूं चिहुंके, जैसे उनके ऊपर एक साथ हजारों बिच्छु ने आक्रमण कर दिया हो ।
उन सबके सामने अविनाश लोहार खड़ा था ।
अविनाश लोहार !
“त... तुम ?” सब एक झटके से अपनी-अपनी कुर्सियां छोड़कर खड़े हुए ।
“तुम यहाँ कैसे ?” कमाण्डर ने पूछा ।
“दरअसल जो नौजवान मुझे जबरदस्ती उठाकर ले गये थे कमाण्डर !” अविनाश लोहार बोला- “मैंने उन्हें एकांत में प्यार से समझाया कि मैं सचमुच अच्छा आदमी नहीं हूँ । मैंने वाकई कुछ गुनाह किए हैं, जिनकी मुझे सजा मिलनी चाहिये । जब मैंने उन्हें प्यार से समझाया, तो बात उनकी समझ में आ गई, हालांकि मुश्किल से आई, मगर आ गई और उन्होंने मुझे छोड़ दिया ।”
वो घटना ऐसी थी, जिसने सबके दिमाग पर वज्रपात कर डाला ।
“वह नौजवान अब कहाँ हैं ?”
“वो नीचे खड़े हुए हैं ।”
कमाण्डर तेजी से उस कमरे की खिड़की की तरफ झपटा और उसने नीचे झांककर देखा ।
नीचे सचमुच कई सारे नौजवान खड़े हुए थे ।
उस समय उन सबकी आंखों में आंसू थे ।
वह सब रो रहे थे ।
वो ऐसा हृदयविदारक दृश्य था, जैसा कमाण्डर ने अपनी जिंदगी में पहले कभी नहीं देखा था ।
सबने खिड़की के नजदीक पहुंचकर नीचे खड़े उन नौजवानों को देखा ।
वह सब भी प्रभावित हुए बिना न रह सके ।
☐☐☐
फिर उस पूरे घटनाक्रम में एक नया मोड़ और आया । वह मोड़ अभी तक के तमाम मोड़ों से ज्यादा सनसनीखेज था ।
इंटरपोल चीफ ने कमाण्डर और तमाम अधिकारियों के साथ एक बंद कमरे में गुप्त मीटिंग की ।
मीटिंग दस मिनट तक चलती रही ।
उस मीटिंग में क्या बातें हुईं, सब कुछ रहस्य बना रहा । अलबत्ता इंटरपोल चीफ ने कमरे से बाहर आकर अविनाश लोहार को जो फैसला सुनाया, वह सचमुच ऐतिहासिक फैसला था ।
“मिस्टर अविनाश !” इंटरपोल चीफ ने बाहर आकर अविनाश लोहार के दोनों कंधे कसकर पकड़ लिए और गर्व से उसे देखता हुआ बोला- “हम सबने मिलकर आज वो फैसला लिया है, जो दुनिया के इतिहास में कभी नहीं लिया गया । दुनिया इस फैसले को युगों-युगों तक याद रखेगी । यह फैसला कानून की किताबों के अंदर स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जायेगा । हम तुम्हारी फांसी की सजा माफ करते हैं अविनाश ! क्योंकि जो अविनाश लोहार हमारा कैदी था, जो दुनिया का सबसे खतरनाक आतंकवादी था, वह तो कहीं है ही नहीं । वह तो हमें कहीं नजर ही नहीं आ रहा । सच तो ये है मिस्टर अविनाश, दुनिया का वो सबसे खतरनाक आतंकवादी कब का मर चुका है । जबकि हमारे सामने जो इस वक्त खड़ा है, वह बबलू है, सिर्फ और सिर्फ बबलू । एक सीधे-सादे बबलू के लिए ही इतना अपार जनसमूह उमड़ सकता है, किसी आतंकवादी अविनाश लोहार के लिए नहीं । और अगर तुम्हारे अंदर एक बुरा आदमी जिंदा होता, तो तुम इस तरह कभी वापस ही नहीं आते । कभी इसी तिहाड़ जेल में मासूम बबलू का अविनाश लोहार के रूप में कायाकल्प हुआ था । हमें उम्मीद है, हमारे सामने खड़ा यह शख्स इस बार जब तिहाड़ जेल से बाहर निकलेगा, तो अविनाश लोहार बनकर नहीं निकलेगा बल्कि वही मासूम बबलू बनकर निकलेगा ।”
कानून का फैसला सुनकर अविनाश लोहार की आंखें सजल हो उठीं ।
पब्लिक को फैसला बताया गया, तो पब्लिक के बीच अपार हर्ष की लहर दौड़ गई ।
मुरझाए चेहरे खिल उठे ।
अपार जनसमूह अविनाश लोहार की जय-जयकार करता हुआ तिहाड़ जेल में अंदर ही घुस आया और अविनाश लोहार को अपने कंधों पर उठा लिया ।
उस क्षण अविनाश लोहार की आंखों में खुशी के आंसू थे, वहीं उसकी आंखों में रह-रहकर अपने बाबा की तस्वीर भी घूम रही थी ।
सुलेमान लोहार की तस्वीर !
“तेरे मेरे बीच खून का रिश्ता भले न सही ।” उसे ऐसा लगा, जैसे सुलेमान लोहार की आवाज उसके कानों में गूंजी हो- “लेकिन तू सचमुच मेरा बेटा है रे ! तूने मुझे दिया वचन बहुत अच्छी तरह निभाया, बहुत अच्छी तरह ।”
बाबा की तस्वीर के साथ-साथ उस क्षण एक और तस्वीर अविनाश लोहार की आंखों के गिर्द घूम रही थी और वो तस्वीर प्रिया की थी ।


समाप्त
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