सुषमा ने पाठ दोहराते हुए एक लम्बी जम्हाई ली और बोली‒“कुछ समझ में आया....बेबी!”
सुषमा ने यह कहकर दृष्टि उठाई तो बेबी मेज पर रखी हुई कापी पर सिर रखे गहरी सांसें ले रही थी।
“अरे....यह तो सो गई....बेबी....ऐ बेबी....”
सुषमा से चौंककर पलटते हुए देखा और फिर मुस्कराकर उठती हुई बोली, “मैंने सोचा था कल सप्लिमेंट्री का पहला पेपर है आज जरा पाठ पूरे करा दूं किन्तु, यह तो एक पाठ भी पूरा न कर सकी।”
“ग्यारह बजने वाले हैं ना....” शंकर ने मुस्कराकर कहा।
“ग्यारह....” सुषमा चौंककर उठती हुई बोली, “उफ! बहुत देर हो गई....भैया शायद आ गए होंगे....कमरे की चाबी मेरे पास है अच्छा मैं चलती हूं।”
फिर सुषमा ने उठते-उठते बेबी की ओर देखा.....उसके भोले-भाले चेहरे पर सोते में भी एक मुस्कराहट थी। सुषमा ने मुस्कराकर बेबी के बालों पर हाथ फेरा, फिर उसे गोद में उठाकर बिस्तर पर लिटा दिया और उसे चादर ओढ़ाते हुए बोली, “बहुत कमजोर हो गई है बेचारी....दोहरा परिश्रम करना पड़ता है ना....शंकरजी....! आप इसके स्वास्थ्य का ध्यान रखा करें....”
“स्वास्थ्य का ध्यान....” शंकर फीकी-सी मुस्कराहट के साथ बोला, “मैं तो बहुत ध्यान रखता हूं....घर में किस चीज की कमी है? हजारो रुपये महीने की आमदनी है और खाने वाले केवल दो ही है....किन्तु केवल खाने-पीने से ही स्वास्थ्य थोड़े बनता है सुषमा देवी।” बच्चों को उचित देखभाल की भी आवश्यकता होती है....आज पांच वर्ष हो गए इसकी मां को मरे हुए....जब यह केवल चार ही वर्ष की थी तब से सिर पर मां की छाया नहीं पड़ी। मुझे दिन भर काम पर गैरेज में रहना पड़ता है....घर पर नौकरानी ही होती है, न जाने कैसे खिलाती पिलाती है....मुझे स्वयं निरन्तर यही चिन्ता रहती है, किन्तु समझ में नहीं आता क्या करूं?
शंकर सुषमा के मुंह की ओर देख रहा था। सुषमा ने सिर पर साड़ी का आंचल ठीक किया और बोली, “आप ठीक ही कहते हैं शंकरजी! मां के बिना बच्चों का जीवन ऐसे ही होता है जैसे तपती धूप में नन्हे कोमल पौधे....”
“किन्तु मैं इसकी मां को भगवान के घर से वापस नहीं ला सकता। स्वयं भी सोचता हूं कि बेबी को एक मां की छाया की आवश्यकता है, यदि ब्याह करूंगा भी तो ऐसी औरत से जो बेबी को प्यार करे!”
“यह भी आप ठीक कहते हैं....” सुषमा ने ठंडी सांस लेकर कहा, “यदि सौतेली मां से भी स्नेह न मिला तो बेचारी का जीवन नष्ट हो जाएगा....”
यह कहकर सुषमा दवात का ढक्कन बन्द करके द्वार की ओर बढ़ी। शंकर ने कहा, “जबसे तुमने बेबी को पढ़ाना आरम्भ किया है वह तुमसे हिलमिल गई है....दिन भर तुम्हारी ही बातें करती है....”
“बच्चे तो प्यार के ही भूखे होते हैं शंकरजी! मैं जब भी बेबी को देखती हूं मुझे अपना बचपन याद आ जाता है....यही विवशता और भोलापन होता है हर बे-मां के बच्चे के चेहरे पर...”
“यही तो मैं भी सोचता हूं....जितना बेबी तुम्हें चाहती है उतना ही तुम भी उसे प्यार करती हो....तुम मां की ममता का मूल्य जानती हो....तुम उसे भरपूर ममता दे सकती हो....”
“जी....” सुषमा ने चौंककर शंकर की ओर देखा।
“मेरा मतलब है....कल तुमने तनख्वाह मांगी थी....यह तुम्हारे पैसे रखे हैं...”
शंकर ने जेब में से दस-दस के पांच नोट निकालते हुए सुषमा की ओर बढ़ा दिए। सुषमा मुस्कराहट के साथ बोली, “कल शाम मैंने अपना वेतन मांगा था....आपने पचास रुपये दे दिए थे...”
“ओह....मुझे याद ही नहीं रहा....मैं जानता हूं तुम्हारे भैया की क्या आय है....किसी समय भी आवश्यकता पड़ सकती है....इन्हें अगले महीने की पेशगी समझकर रख लो....”
“धन्यवाद! शंकरजी! यदि पेशगी की आवश्यकता पड़ गई तो भैया कुछ अधिक समय तक टैक्सी चला लिया करेंगे।”
“फिर भी आवश्यकता तो किसी समय भी पड़ सकती है....अभी चार पांच दिन पहले की ही तो बात है तुम्हारे भैया की टैक्सी का एक्सिडेन्ट हो गया था.....ढाई तीन सौ रुपये मरम्मत में लग गए थे....रख लो समय पर काम आएंगे।”
सुषमा ध्यान से शंकर का चेहरा देखती रही....शंकर की आंखों का पीला प्रकाश धीरे-धीरे लाल रंग में परिवर्तित होता जा रहा था। उसने कुछ रुककर धीरे से कहा, “बहुत देर हो रही है शंकरजी! भैया मेरी प्रतीक्षा कर रहे होंगे....मैं जा रही हूं...”
सुषमा ने द्वार की ओर बढ़ने के लिए पहला पग उठाया ही था कि शंकर दोनों बांहें फैलाकर उसका रास्ता रोककर खड़ा हो गया। सुषमा ध्यानपूर्वक उसके चेहरे पर उत्पन्न भावों का निरीक्षण करती बड़बड़ाई “शंकरजी....”
“बहुत धैर्य कर चुका हूं सुषमा...” शंकर कंपकंपाती हुई आवाज में बोला, “कई दिनों से साहस बटोर रहा था कि तुमसे मन की बात कह दूं....जबसे तुमने बेबी के हृदय में प्यार का पौधा लगाया है, चुपके-चुपके दबे पांव तुम मेरे हृदय में भी उतरती चली आई हो, तुम्हें घर में देखता हूं तो कभी-कभार यों अनुभव होता है कि बेबी की मां घर में चल-फिर रही है....कई रातें बिस्तर पर करवटें बदलते-बदलते तुम्हारे ही विषय में सोचते हुए गुजर जाती हैं....आंख लग जाने पर स्वप्न में भी तुम बेबी की मां के रूप में ही आती हो....अब और सहन करना मेरे वश में नहीं सुषमा....बिल्कुल नहीं....मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ता हूं....मेरी बेबी को एक मां दे दो....मेरे हृदय की दहकती हुई ज्वाला पर अपने शीतल भीगे होंठों का अमृत जल छिड़क दो....”
सुषमा के होंठों पर सन्तोषमय मुस्कराहट फैल गई। उसने धीरे से कहा, “मुझे बेबी से अत्यधिक प्यार है शंकरजी....इसी कारण मेरे मन में आपके लिए भी सहानुभूति है, क्योंकि आप बेबी के पिता हैं....मां के बाद उस अबोध का एकमात्र सहारा है....आप मेरे भैया को भी बहुत निकट से जानते हैं....उन्होंने जिन परिस्थितियों में एक मां और एक बाप बनकर मुझे पाला है....उन परिस्थितियों ने उन्हें कितना विद्रोही बना दिया है....मैं इसीलिए भैया से आपकी शिकायत न करूंगी कि कहीं कल आपकी बेबी को भी बाप की छाया से वंचित न होना पड़े....”
शंकर की सांसें और तेज हो गई थीं और उसकी आंखों से चिंगारियां निकलने लगीं। सुषमा ने उससे बचकर द्वार से निकलने का प्रयत्न किया किन्तु शंकर ने झपटकर उसे बांहों में दबोच लिया और हांफता हुआ बोला, “आज की रात मेरी है सुषमा....आज की रात मेरी है....कल सुबह तुम स्वयं रो-रोकर भैया से कहोगी कि वह तुम्हारे फेरे शंकर के साथ करवा दें....मैं उस समय भी तुम्हें अपनी पत्नी बनाना स्वीकार कर लूंगा.....क्योंकि मैं किसी दशा में भी तुम्हें छोड़ नहीं सकता....मुझे तुम्हारे शरीर, अंग प्रत्यंग में पदमा दिखाई दे रही है....तुम सुषमा नही हो पदमा..... हो मेरी पदमा.....”
“छोड़ दीजिए शंकरजी!” सुषमा कांपते स्वर में विनयपूर्वक बोली “भगवान के लिए मुझे छोड़ दीजिए...”
“यह असम्भव है....अब मुझसे तुम्हें कोई नहीं छुड़ा सकता....मैं जानता हूं कि तुम शोर नहीं मचाओगी....यदि तुमने शोर मचाया तो बात तुम्हारे भैया के कानों तक भी अवश्य ही पहुंचेगी....तुम्हारा भैया यदि आवेश में आकर मेरे प्राण भी ले लेगा तो वह भी फांसी के तख्ते पर लटकेगा....और तुम....तुम अपने भाई को अपने सामने फांसी लगते नहीं देख सकतीं....”
“हां, हां, मैं शोर नहीं मचाऊंगी,” सुषमा बिलबिला कर बोली “मुझे भैया के जीवन से अधिक अपनी इज्जत प्यारी है....रास्ते वाले क्या जानेंगे कि मैं लुट गई या बच गई किन्तु ऊपर भगवान भी तो है शंकरजी उसके कठोर दण्ड से बचिए....भगवान के लिए मुझे जाने दीजिए...”
किन्तु, शंकर तो पागल सा हो रहा था....वासना ने उसे अंधा कर रखा था....उसने बलपूर्वक सुषमा को बिस्तर की ओर खींचने का प्रयत्न किया....उसी समय सुषमा ने पूरी शक्ति से स्वयं को शंकर के चंगुल से छुड़ाना चाहा.....इस खींचातानी में सुषमा का ब्लाउज मसक कर पीठ से हट गया किन्तु यह तो वासना का चढ़ा हुआ भूत था जिसने उसे इतना बल भी दे दिया था। उसका सांस अत्यधिक फूला हुआ था और उसकी टांगें कांप रही थीं। सुषमा के दोनों हाथ स्वतन्त्र थे.....एक हाथ से वह अपने मुंह पर से शंकर का हाथ हटाने का प्रयत्न कर रही थी और दूसरे हाथ से शंकर की पीठ पर घूंसे मारे जा रही थी।
शंकर को एक छाया सी दिखाई दी। शंकर ठिठककर रुक गया। किन्तु, दूसरे ही क्षण उसने सन्तोष की सांस ली....वह छाया लड़खड़ाती हुई उसके पास से बिना कोई ध्यान दिए निकलने लगी‒शंकर ने सोचा कोई बेसुध शराबी होगा....उससे क्या भय है....किन्तु, ज्योंही वह लड़खड़ाता हुआ व्यक्ति उनके पास से निकलने लगा सुषमा ने हाथ बढ़ाकर जोर से उसका हाथ पकड़ लिया। वह व्यक्ति लड़खड़ा कर उसकी ओर मुड़ गया। घबराहट में शंकर की पकड़ ढीली पड़ गई। सुषमा एक बार पूरे बल से मचली और शंकर के कंधे से कूद गई। उसने उस व्यक्ति का हाथ अब भी नहीं छोड़ा था। धरती पर पैर पड़ते ही वह उस राह चलते व्यक्ति से चिपट गई और हांफती हुई बोली, “बचाओ....भगवान के लिए मुझे बचाओ।”
“आं....” वह आगंतुक आंखें फाड़कर देखता हुआ बोला, “कौन.....कौन है?”
दूसरे ही क्षण शंकर ने उस व्यक्ति को एक घूंसा मारा और वह लड़खड़ा कर पीछे हटा। सुषमा उसके साथ ही घिसटती चली गई। वह एक सहमी हुई फाख्ता के समान थर-थर कांप रही थी....वह व्यक्ति अब और अधिक आंखें फाड़कर शंकर को देख रहा था। शंकर ने इस बार सुषमा का हाथ पकड़ कर खींचने का प्रयत्न किया....किन्तु सुषमा ने उस व्यक्ति की कमीज गले से थाम ली और वह दूर तक उसके साथ खिंचता चला आया और फिर उसने एकाएक सुषमा का हाथ पकड़ कर जोर से झटका दिया। सुषमा का हाथ शंकर की पकड़ से स्वतंत्र हो गया। शंकर भन्ना कर फिर सुषमा की ओर झपटा। इस बार उस व्यक्ति ने हाथ घुमाकर शंकर की कनपटी पर मारा और शंकर का पूरा शरीर झनझना उठा। वह न केवल हड़बड़ा कर पीछे हटा बल्कि ठोकर खाकर पीठ के बल गिर पड़ा। वह व्यक्ति यों हाथ फैलाए हुए शंकर पर झुका हुआ झूम रहा था जैसे उस पर प्रहार करने वाला हो। इसी समय शंकर के कानों से एक आवाज टकराई, “सुषमा....”
यह सुषमा के भाई चन्दर की आवाज थी। शंकर के शरीर में सन्नाटा-सा दौड़ गया। दूसरे ही क्षण वह फुर्ती से उठा और तीर के समान अपने मकान की ओर भागता चला गया। सुषमा के मस्तिष्क का सन्नाटा धीरे-धीरे गहरा होता जा रहा था। इसी सन्नाटे में उसने चन्दर की आवाज सुनी थी....और फिर उसे अनुभव हुआ कि वह अब बिल्कुल सुरक्षित है....उसका मस्तिष्क तरंग में बेसुध सा झकोले खाने लगा।
चन्दर ने परछाइयों को हिलते हुए देखा था। धुंधली रोशनी में वह केवल सुषमा की झलक ही पहचान सका था....उसके पांव में स्फूर्ति आ गई थी...वह भागता हुआ उनके पास पहुंचा...और... एकाएक उसके मस्तिष्क को एक तीव्र धक्का लगा। सुषमा एक अनजाने व्यक्ति की बांहों में बेसुध पड़ी हुई थी....उसका ब्लाउज पीछे से फटा हुआ था, बाल बिखरे हुए थे और साड़ी का आंचल सड़क पर पड़ा था। वह व्यक्ति आंखें फाड़फाड़कर सुषमा को ध्यानपूर्वक देखता हुआ कह रहा था, “मैं....मैं तुम से प्यार करता हूं संध्या....मैं तुमसे प्यार करता हूं....तुम.....तुम....बेवफा नहीं हो सकतीं....सब....सब कमीने हैं.....मैं.....मैं सबको जान से मार दूंगा....”
और अचानक उस व्यक्ति की आंखें क्रोध की तीव्रता से फट गईं और वह बड़े कठोर भाव से सुषमा को देखने लगा....उसने दोनों हाथों से सुषमा की गर्दन पकड़ ली‒
चन्दर को सहसा ऐसा अनुभव हुआ जैसे उसके पूरे शरीर में एक ज्वालामुखी फूट पड़ा हो....उसका समस्त शरीर क्रोध की अधिकता से आग उगलने लगा था....उसने दोनों हाथों की मुट्ठियां कसकर बन्द कर लीं और आगे बढ़कर झटके से उस व्यक्ति को हाथ से पकड़ करे खींचा। सुषमा एक निराश्रित स्तंभ के समान उस व्यक्ति की बांहों से छूटकर एक ओर जा गिरी....वह व्यक्ति झटके से एक पग पीछे हट गया और आंखें फाड़-फाड़कर चन्दर को देखने लगा। चन्दर ने दांत भींचकर कहा, “तुम हो बाबूजी। अभी पिछला भी कुछ शेष तुमसे चुकाना है....टैक्सी की मरम्मत में ढाई सौ रुपये लगे थे....किन्तु तुम्हारी मरम्मत तो अब भगवान भी न कर सकेगा....वह टैक्सी का मुआमला था....तुम दारू पिए हुए थे सो क्षमा किया जा सकता था....किन्तु; दारू पीकर एक शरीफ लड़की को तुम टैक्सी समझो....यह अपराध तो कदापि क्षमा नहीं किया जा सकता।”
“भाग जाओ....” वह व्यक्ति लड़खड़ाता हुआ बोला, “तुम सब कमीने हो....नीच हो....”
अचानक चन्दर का भरपूर घूंसा उस व्यक्ति की कनपटी पर पड़ा और वह लड़खड़ा कर पीछे हटता हुआ आंखें फाड़-फाड़ कर चन्दर की ओर देखने लगा। चन्दर ने उछल कर अब उस व्यक्ति के पेट में पांव से ठोकर मारने का प्रयत्न किया किन्तु, दूसरे ही क्षण चन्दर की टांग को खींचकर एक ओर झटका दिया और चन्दर मुंह के बल जा गिरा। जितने समय में चन्दर उठकर उसका सामना करता वह व्यक्ति स्वयं ही औंधे मुंह सड़क पर जा गिरा।
सुषमा अब तक कुछ सुधि में आ चुकी थी। उसने अपने आप को संभाला और आंखें फाड़कर देखा। उसकी दृष्टि चन्दर पर पड़ी। पहले उसे चन्दर का धुंधला-धुंधला प्रतिबिम्ब सा दिखाई दिया और फिर उसका चेहरा स्पष्ट दिखाई देने लगा। वह बड़े खूंखार ढंग से चाकू लिए उस व्यक्ति की ओर बढ़ रहा था। अचानक सुषमा चीखती हुई उठ बैठी, “भैया...!
और फिर वह झपटकर हवा की सी फुर्ती से चन्दर और उस व्यक्ति के मध्य आती हुई बोली, “क्या कर रहे हो भैया....क्या कर रहे हो?”
“सामने से हट जा सुषमा! मैं इस कुत्ते का सिर धड़ से अलग कर दूंगा...”
“किस अपराध में इसे मारोगे भैया?” सुषमा हांफती हुई बोली “इस अपराध में कि उसने तुम्हारी बहिन का सतीत्व एक कुत्ते से बचाया है।”
“इसने? इसने बचाया है तुम्हें?”
“हां भैया....यदि समय पर यह व्यक्ति देवता बनकर न पहुंच जाता तो...तो...” कहते कहते सुषमा ने दोनों हाथों से अपना चेहरा छिपा लिया।
“कौन था? कौन था वह दुष्ट मैं उसकी बोटियां करके फेंक दूंगा।”
“वह....” सुषमा ने झट कहा, “पता नहीं कौन था? मैं शंकर जी के यहां से निकलकर यहां पहुंची ही थी कि उसे कुत्ते ने पीछे आकर मुझे दबोच लिया था।”
“किधर गया वह भाग कर?”
“मैं तो बेहोश हो गई थी....न जाने किधर गया....अब तक पता नहीं कहां पहुंचकर छिप गया होगा।”
“खैर....तू देखकर पहचान तो लेगी?”
“अंधेरा था गली में भैया। इसलिए शायद ही पहचान सकूं....”
चन्दर सुषमा को कुछ देर ध्यानपूर्वक देखता रहा....! फिर हल्की-सी सांस लेकर बोला, “अच्छी बात है....चल घर...”
“किन....किन्तु भैया...” सुषमा ने सड़क पर पड़े उस व्यक्ति की ओर देखकर करुणामय स्वर में कहा, “इस गरीब को क्या यों ही पड़ा रहने दोगे?”
“मेरे यहां शराबियों के लिए कोई स्थान नहीं है।” चन्दर ने कठोर स्वर में उत्तर दिया।
“शराबी! किन्तु? भैया, इसके मुंह से तो शराब की दुर्गन्ध नहीं आ रही...”
चन्दन ने ध्यान से उस व्यक्ति की ओर देखा, फिर उसके पास बैठकर झुककर उसका मुंह सूंघकर बोला, “अरे....सच ही यह शराब तो नहीं पिए है....” फिर उसका हाथ थामते हुए चौंककर बोला, “अरे.....इसे तो बहुत सख्त बुखार है....फुंक रहा है इसका पूरा शरीर आग के समान....”
“सूरत भी तो देखा कैसी हो रही है भैया! यह किसी भारी कष्ट में पड़ा दिखाई देता है...”
“और अब हमें भी अपने साथ किसी कष्ट में डालेगा।” चन्दर झुककर उसे बांहों पर उठाते हुए बड़बड़ाया।
“मेरे भगवान! भार तो देखो....पहलवान है, पूरा पहलवान....”
Romance लव स्टोरी
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कोठरी में पहुंचकर चन्दर ने अजनबी को बिस्तर पर लिटा दिया और अपनी दोनों बांहों को दबाता हुआ बोला, “हाथ तोड़ दिए इसने तो मेरे....अरे घर में कोई सैरिडॉन इत्यादि भी होगी.....इसे तो बहुत तेज बुखार है....”
“गोली तो कोई नहीं है...” सुषमा ने चिन्ता भरे स्वर में कहा।
“फिर क्या करूं? इस समय दवा-दारू ही कहां से मिलेगी?”
“पास ही तो वैद्यजी का घर है...चले जाओ....रात में और दशा खराब हो गई....और भगवान न करे कहीं यह मर गया तो कोई आपत्ति न आ पड़े....”
“मर....मर....मर गया ....अरे बाप रे...” चन्दर ने घबराकर अजनबी को उठाने का प्रयत्न किया और सुषमा उसे पकड़ते हुए बोली‒
“अरे....अरे....यह क्या कर रहे हो?”
“मर गया तो न जाने किस संकट में पड़ जाएं....मैं इसे बाहर ही डाल देता हूं...”
“तुम्हारा दिमाग क्या खराब हो गया है भैया! एक बीमार आदमी को यों ठिठुरती शीत में सड़क पर फेंक आओगे तो न मरता भी मर जाएगा।”
“यह भी तू ठीक कहती है....” चन्दर बड़बड़ाया, किस जंजाल में फंसा दिया तूने?
“जंजाल कह रहे हो भैया! इसने तो आज मेरी लाज बचाई है...”
“अरे हां....इस साले का एहसान भी तो है हम पर....देखभाल तो करनी ही पड़ेगी...चाहे आगे चलकर स्वयं भूखे ही रहना पड़े....वाह भगवान! तू भी कहेगा कि मैंने आदमी बनाए हैं....”
चन्दर बड़बड़ाता हुआ कोठरी से बाहर निकल गया। सुषमा ने अजनबी को रजाई ओढ़ा दी। पहली बार उसने ध्यानपूर्वक उसके चेहरे पर दृष्टि डाली। दाढ़ी बढ़ी हुई, लजीला, पीला-पीला सा चेहरा....ऐसे लगता था कई दिनों से मुंह नहीं धुला....सिर के बालों में धूल अटी हुई थी....गोरे....गोरे, भरे चेहरे पर विशेष चिन्ता और निराशा के चिन्ह थे....उसके होंठों पर पपड़ियां जम गई थीं। सुषमा का हृदय धड़क उठा।
थोड़े समय बाद घर में पांव की आहटें गूंजी और इसके साथ ही चन्दर वैद्य जी को कंधे पर उठाए भीतर आया। वैद्य जी कह रहे थे, “अरे, अरे....क्या करता है रे....उतार, उतार मुझे....”
चन्दर ने वैद्य जी को उतार कर फर्श पर खड़ा कर दिया। वैद्य जी ने उसे घूंसा दिखाकर कहा, “मैंने कह दिया कई बार....इतनी रात गए मैं किसी के घर नहीं जाता....”
“नहीं जाते....तभी तो उठाकर लाया हूं....और अब जब आ ही गए तो रोगी को देखो....”
“आ गया हूं? है....!” वैद्य जी ने चौंककर इधर-उधर देखा।
“किधर है रोगी....” सुषमा ने मुस्कराकर अजनबी की ओर संकेत किया।
वैद्य जी मुंह-ही-मुंह बड़बड़ाकर अजनबी को देखने लगे। चन्दर वैद्य जी से बोला, “ध्यान रखना वैद्य जी। मरने न पाए....मेरे पास दवा दारू के पैसे तो हो सकते हैं अर्थी उठाने के लिए नहीं...”
“अरे....मरेगा नहीं तो क्या जीवित बचेगा....इसके पेट में तो घास का तिनका भी नहीं....जाने कब से भूखा है?”
“धत् तेरी....चन्दर मुंह बनाकर बोला, फिर वह सुषमा की ओर देखकर कहने लगा, “सुन लिया तूने....अब झोंक चूल्हा....मेरे लिए तूने पांच रोटियां रखी होंगी....उनमें से एक रोटी भी कम नहीं करूंगा....वैसे भी इतनी बड़ी देह को उठाकर लाया हूं....भूख बढ़ गई है....”
“हां...” वैद्य जी ने कहा, “रोटी खिला दो बुखार में जिससे चार दिन में ठीक होना हो तो चार सप्ताह लग जाएं....अरे अभी इसे दूध दिया जाएगा....केवल दूध....”
“दूध...” चन्दर चौंककर बोला, “तुम्हारा दिमाग तो ठीक है वैद्य जी....मां के दूध के बाद यहां केवल चाय में थोड़ा-सा दूध देखने को मिला है...इस हट्टे-कट्टे व्यक्ति के लिए इतना दूध कहां से लाऊंगा?”
“वह तो किसी प्रकार प्राप्त करना ही पड़ेगा....चल मेरे साथ मैं दूध दिए देता हूं...दूध के साथ एक पुड़िया दवाई भी दे देना....एक पुड़िया दो घन्टे बाद....फिर चार पुड़ियां कल....भगवान ने चाहा तो कल शाम तक बुखार टूट जाएगा....”
“और साथ ही मेरी कमर भी टूट जाएगी....क्या हर पुड़िया दूध के साथ दी जाएगी?” चन्दर ने घबराकर पूछा।
“नहीं, इस समय एक पुड़िया दूध के साथ....फिर एक पुड़िया सुबह दूध के साथ.....”
“हे भगवान!” चन्दर ने लम्बी सांस ली।
वैद्य जी खड़े हो गए। चन्दर ने झुककर उन्हें फिर कंधे पर उठा लिया। वैद्य जी गड़बड़ाकर बोले, “अरे...अरे क्या करता है?”
तुम्हारा नियम नहीं टूटना चाहिए वैद्य जी! रात में तुम कहीं आते-जाते नहीं, मैं ही उठाकर लाया हूं.....मैं ही वापस पहुंचाऊंगा।
“गोली तो कोई नहीं है...” सुषमा ने चिन्ता भरे स्वर में कहा।
“फिर क्या करूं? इस समय दवा-दारू ही कहां से मिलेगी?”
“पास ही तो वैद्यजी का घर है...चले जाओ....रात में और दशा खराब हो गई....और भगवान न करे कहीं यह मर गया तो कोई आपत्ति न आ पड़े....”
“मर....मर....मर गया ....अरे बाप रे...” चन्दर ने घबराकर अजनबी को उठाने का प्रयत्न किया और सुषमा उसे पकड़ते हुए बोली‒
“अरे....अरे....यह क्या कर रहे हो?”
“मर गया तो न जाने किस संकट में पड़ जाएं....मैं इसे बाहर ही डाल देता हूं...”
“तुम्हारा दिमाग क्या खराब हो गया है भैया! एक बीमार आदमी को यों ठिठुरती शीत में सड़क पर फेंक आओगे तो न मरता भी मर जाएगा।”
“यह भी तू ठीक कहती है....” चन्दर बड़बड़ाया, किस जंजाल में फंसा दिया तूने?
“जंजाल कह रहे हो भैया! इसने तो आज मेरी लाज बचाई है...”
“अरे हां....इस साले का एहसान भी तो है हम पर....देखभाल तो करनी ही पड़ेगी...चाहे आगे चलकर स्वयं भूखे ही रहना पड़े....वाह भगवान! तू भी कहेगा कि मैंने आदमी बनाए हैं....”
चन्दर बड़बड़ाता हुआ कोठरी से बाहर निकल गया। सुषमा ने अजनबी को रजाई ओढ़ा दी। पहली बार उसने ध्यानपूर्वक उसके चेहरे पर दृष्टि डाली। दाढ़ी बढ़ी हुई, लजीला, पीला-पीला सा चेहरा....ऐसे लगता था कई दिनों से मुंह नहीं धुला....सिर के बालों में धूल अटी हुई थी....गोरे....गोरे, भरे चेहरे पर विशेष चिन्ता और निराशा के चिन्ह थे....उसके होंठों पर पपड़ियां जम गई थीं। सुषमा का हृदय धड़क उठा।
थोड़े समय बाद घर में पांव की आहटें गूंजी और इसके साथ ही चन्दर वैद्य जी को कंधे पर उठाए भीतर आया। वैद्य जी कह रहे थे, “अरे, अरे....क्या करता है रे....उतार, उतार मुझे....”
चन्दर ने वैद्य जी को उतार कर फर्श पर खड़ा कर दिया। वैद्य जी ने उसे घूंसा दिखाकर कहा, “मैंने कह दिया कई बार....इतनी रात गए मैं किसी के घर नहीं जाता....”
“नहीं जाते....तभी तो उठाकर लाया हूं....और अब जब आ ही गए तो रोगी को देखो....”
“आ गया हूं? है....!” वैद्य जी ने चौंककर इधर-उधर देखा।
“किधर है रोगी....” सुषमा ने मुस्कराकर अजनबी की ओर संकेत किया।
वैद्य जी मुंह-ही-मुंह बड़बड़ाकर अजनबी को देखने लगे। चन्दर वैद्य जी से बोला, “ध्यान रखना वैद्य जी। मरने न पाए....मेरे पास दवा दारू के पैसे तो हो सकते हैं अर्थी उठाने के लिए नहीं...”
“अरे....मरेगा नहीं तो क्या जीवित बचेगा....इसके पेट में तो घास का तिनका भी नहीं....जाने कब से भूखा है?”
“धत् तेरी....चन्दर मुंह बनाकर बोला, फिर वह सुषमा की ओर देखकर कहने लगा, “सुन लिया तूने....अब झोंक चूल्हा....मेरे लिए तूने पांच रोटियां रखी होंगी....उनमें से एक रोटी भी कम नहीं करूंगा....वैसे भी इतनी बड़ी देह को उठाकर लाया हूं....भूख बढ़ गई है....”
“हां...” वैद्य जी ने कहा, “रोटी खिला दो बुखार में जिससे चार दिन में ठीक होना हो तो चार सप्ताह लग जाएं....अरे अभी इसे दूध दिया जाएगा....केवल दूध....”
“दूध...” चन्दर चौंककर बोला, “तुम्हारा दिमाग तो ठीक है वैद्य जी....मां के दूध के बाद यहां केवल चाय में थोड़ा-सा दूध देखने को मिला है...इस हट्टे-कट्टे व्यक्ति के लिए इतना दूध कहां से लाऊंगा?”
“वह तो किसी प्रकार प्राप्त करना ही पड़ेगा....चल मेरे साथ मैं दूध दिए देता हूं...दूध के साथ एक पुड़िया दवाई भी दे देना....एक पुड़िया दो घन्टे बाद....फिर चार पुड़ियां कल....भगवान ने चाहा तो कल शाम तक बुखार टूट जाएगा....”
“और साथ ही मेरी कमर भी टूट जाएगी....क्या हर पुड़िया दूध के साथ दी जाएगी?” चन्दर ने घबराकर पूछा।
“नहीं, इस समय एक पुड़िया दूध के साथ....फिर एक पुड़िया सुबह दूध के साथ.....”
“हे भगवान!” चन्दर ने लम्बी सांस ली।
वैद्य जी खड़े हो गए। चन्दर ने झुककर उन्हें फिर कंधे पर उठा लिया। वैद्य जी गड़बड़ाकर बोले, “अरे...अरे क्या करता है?”
तुम्हारा नियम नहीं टूटना चाहिए वैद्य जी! रात में तुम कहीं आते-जाते नहीं, मैं ही उठाकर लाया हूं.....मैं ही वापस पहुंचाऊंगा।
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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Re: लव स्टोरी
वैद्य जी टांगें हिला-हिलाकर ‘अरे’ अरे ही करते रह गए और चन्दर उन्हें उठाए हुए कोठरी से बाहर निकल गया। सुषमा ने मुस्कराकर उन्हें जाते हुए देखा और फिर अजनबी को देखने लगी। वह अब धीरे-धीरे कराह रहा था। सुषमा उसके ऊपर झुक गई। थोड़े समय बाद अजनबी ने आंखें खोल दीं और ध्यानपूर्वक सुषमा को देखने लगा। फिर उसने धीरे-से आंखें बन्द कर लीं मानो उसने कुछ न देखा हो। उसके होंठों पर एक हल्की-सी मुस्कराहट रेंग गई और वह न जाने किस कल्पना में डूबा बड़बड़ाया, “संध्या! ....मैं जानता था....मेरी संध्या मुझे धोखा नहीं दे सकती....मेरी संध्या....”
“मैं संध्या नहीं...” सुषमा ने अजनबी पर झुककर धीरे से कहा, “मैं संध्या नहीं हूं।”
अजनबी ने धीरे से आंखें खोल दीं और फिर आंखें झपकाकर सुषमा को देखते हुए आश्चर्य से बोला, “कौन.....कौन हो तुम....?”
“आपकी तबीयत ठीक नहीं है...” सुषमा ने सहानुभूति भरे स्वर में कहा, “भैया आपके लिए दवा लेने गए हुए हैं....”
“भैया....कौन भैया? मैं कहां हूं?’’
अजनबी ने उठना चाहा किन्तु, सुषमा ने शीघ्र ही उसके सीने पर हाथ रखकर फिर उसे लिटाते हुए कहा, “लेटे रहिए....आपकी तबीयत ठीक नहीं है।”
अजनबी फिर सुषमा को देखता हुआ लेट गया। इससे पूर्व कि वह कुछ और बोलता चन्दर वापस लौट आया। उसके एक हाथ में दूध का गिलास था और दूसरे हाथ में दवाई की पुड़िया। अजनबी चन्दर को यों देखने लगा जैसे उसे पहचानने का प्रयत्न कर रहा हो। चन्दर ने सिर हिलाकर कहा, “आ गए होश में....देख लीजिए....ध्यान से देख लीजिए....आपके हिसाब में एक सौ पचास रुपये के साथ एक रुपया बारह आने और लिख दिए गए हैं....”
अजनबी कुछ न बोला। वह अब भी ध्यान से चन्दर को देखे जा रहा था। चन्दर ने सुषमा से कहा, “ले.....झट से दूध गर्म करके ले आ साहब को दे दे....मेरी तरकारी भी गर्म कर दे....भूख के मारे प्राण निकले जा रहे हैं....न जाने किस अशुभ व्यक्ति का मुंह देखा था घर से निकलते समय....”
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“मैं संध्या नहीं...” सुषमा ने अजनबी पर झुककर धीरे से कहा, “मैं संध्या नहीं हूं।”
अजनबी ने धीरे से आंखें खोल दीं और फिर आंखें झपकाकर सुषमा को देखते हुए आश्चर्य से बोला, “कौन.....कौन हो तुम....?”
“आपकी तबीयत ठीक नहीं है...” सुषमा ने सहानुभूति भरे स्वर में कहा, “भैया आपके लिए दवा लेने गए हुए हैं....”
“भैया....कौन भैया? मैं कहां हूं?’’
अजनबी ने उठना चाहा किन्तु, सुषमा ने शीघ्र ही उसके सीने पर हाथ रखकर फिर उसे लिटाते हुए कहा, “लेटे रहिए....आपकी तबीयत ठीक नहीं है।”
अजनबी फिर सुषमा को देखता हुआ लेट गया। इससे पूर्व कि वह कुछ और बोलता चन्दर वापस लौट आया। उसके एक हाथ में दूध का गिलास था और दूसरे हाथ में दवाई की पुड़िया। अजनबी चन्दर को यों देखने लगा जैसे उसे पहचानने का प्रयत्न कर रहा हो। चन्दर ने सिर हिलाकर कहा, “आ गए होश में....देख लीजिए....ध्यान से देख लीजिए....आपके हिसाब में एक सौ पचास रुपये के साथ एक रुपया बारह आने और लिख दिए गए हैं....”
अजनबी कुछ न बोला। वह अब भी ध्यान से चन्दर को देखे जा रहा था। चन्दर ने सुषमा से कहा, “ले.....झट से दूध गर्म करके ले आ साहब को दे दे....मेरी तरकारी भी गर्म कर दे....भूख के मारे प्राण निकले जा रहे हैं....न जाने किस अशुभ व्यक्ति का मुंह देखा था घर से निकलते समय....”
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Re: लव स्टोरी
एक विचित्र-सा शांतिमय सन्नाटा राज के पूरे शरीर में फैला हुआ था....एक गहरे उन्माद के समान....कभी ऐसे ज्ञात होता जैसे वह हुआ था....वह गहरे उन्माद के समान....कभी ऐसे ज्ञात होता जैसे वह गहरी और मीठी नींद सो रहा हो कभी यों लगता कि वह जाग रहा है और जो कुछ दिखाई दे रहा था स्वप्न नहीं था वास्तविकता थी....उसके शरीर के नीचे सख्त और खुरदरी जमीन नहीं बल्कि नर्म और कोमल बिस्तर था। अर्धनिद्रा की सी दशा में उसने आंखें बन्द कर लीं। उसे यों अनुभव हो रहा था मानों वह अपने घर में नर्म और गुदगुदे बिस्तर पर सो रहा है.....उसके होंठों पर एक सांत्वना भरी मुस्कराहट फैल गई।
अचानक उसे अपने शरीर पर एक नर्म रेशमी सरसराहट-सी अनुभव हुई और उसने आंखें खोल दीं। एक साड़ी का आंचल उसके पास ही लटका हुआ था और नीचे गिरी हुई रजाई सरककर उसके शरीर पर आ गई थी। उसने आंखें खोलने का प्रयत्न किया किन्तु, फिर आनन्ददायक गर्मी उसके शरीर में फैल गई और उसने आंखें बन्द कर लीं....उसके मस्तिष्क पट पर कल्पना में एक चेहरा उभरा....कभी ऐसा लगता कि वह चेहरा संध्या का था और कभी उस लड़की का जिसने कुछ देर पहले उसे दवाई पिलाई थी....फिर इन्हीं चेहरों के साथ एक और चेहरा उभरा....यह चेहरा उस टैक्सी ड्राइवर का था जिससे उसकी झड़प हुई थी....किन्तु; वह टैक्सी ड्राइवर कहां था; यह तो जय का चेहरा था....नहीं टैक्सी-ड्राइवर....इसी विश्वास और सन्देह की खींचातानी में धीरे-धीरे वह गहरी नींद में खो गया।
कुछ ही क्षण बाद राज के कंधों से दो नर्म-नर्म हाथ टकराए और इन हाथों ने उसे करवट बदलने में सहायता दी....अजनबी ने आंखें खोल दीं....वही रात वाला चेहरा उसके सामने था।
“अब जाग जाइए और दवा पी लीजिए...” कांपते हुए होंठों से आवाज निकली।
राज जाग उठा। थोड़ी देर बाद वही लड़की एक प्याली में दूध लाई और दवाई वाली पुड़िया खोलकर राज के मुंह में डालना ही चाहती थी कि राज ने कराह कर कहा, “ठहरो....मैं बैठ जाऊं।”
लड़की ने दूध की प्याली और दवाई की पुड़ियो को मेज पर रखा और उठकर बैठने में राज की सहायता की....उसकी पीठ से तकिया लगा दिया फिर अपने हाथ से उसने दवाई राज के मुंह में डाली और दूध का प्याला उसके होंठों से लगा दिया। राज जब दूध पी चुका तो लड़की ने तौलिए से उसका मुंह साफ किया और बोली, “अब लेट जाइए....”
“नहीं...” राज ने कमजोर आवाज में कहा, “लेटे-लेटे उकता गया हूं....”
“अब आपका ताप भी हल्का है....लड़की ने राज का माथा छू कर कहा, “शाम तक तीनों पुड़ियां खा लेंगे तो बिल्कुल उतर जाएगा....”
“मुझे यहां कौन लाया?” राज ने लड़की को ध्यान से देखते हुए पूछा।
“भैया उठाकर लाए थे....आप गली में बेहोश होकर गिर गए थे....”
“वह टैक्सी ड्राइवर तुम्हारा भाई है?”
“हां...चन्दर मेरा भाई ही है....मेरा नाम सुषमा है। मैं ट्यूशन करके लौट रही थी...रास्ते में एक गुण्डे ने मुझसे अशिष्टता करना चाही....आपने मुझे बचा लिया था....फिर आप बेहोश हो गए थे।”
“मैंने बचा लिया था?” राज ने आश्चर्य से पूछा।
“हां....आप उस समय अर्ध-चेतना की दशा में थे...रात वैद्य जी आपको देखने आए थे....कह रहे थे आपने दो तीन दिन से कुछ नहीं खाया।”
“बहुत कुछ खाया-पिया था इन दो तीन दिनों में...” राज फीकी-सी मुस्कराहट के साथ बोला, “अपने खून के धक्के.... अपने प्यार के धक्के....दूसरों की स्वार्थता...हवा और मिट्टी....कितना कुछ तो खाया है.....जो चीजें जीवन के चौबीस वर्षों में नहीं खाई वे अड़तालीस घण्टों में खाने को मिल गईं....”
“ओह....” सुषमा ने राज को ध्यान से देखते हुए सहानुभूति प्रकट की, “आप बहुत दुखी जान पड़ते हैं....”
“दुखी.....हूं....” राज गर्दन झटक कर बोला, “दुखी उसे कहते हैं जो सिर पर चोट खाए घाव दबाए बैठा हो....आज तक मैंने अपना जीवन व्यर्थ गंवाया है....किन्तु; आज से मेरे जीवन का उद्देश्य आरम्भ होता है....जो दुख मेरे पास एकत्र हुए हैं, उन्हें सुरक्षा से रखूंगा और एक दिन उन्हीं लोगों को बांटूंगा जिन्होंने ये दुख मुझे दिए हैं....” यह कहते-कहते राज की आंखों में अंगारे से सुलगने लगे.....उसके चेहरे पर एक भयानक निश्चय की रोशनी छा गई।
अचानक उसे अपने शरीर पर एक नर्म रेशमी सरसराहट-सी अनुभव हुई और उसने आंखें खोल दीं। एक साड़ी का आंचल उसके पास ही लटका हुआ था और नीचे गिरी हुई रजाई सरककर उसके शरीर पर आ गई थी। उसने आंखें खोलने का प्रयत्न किया किन्तु, फिर आनन्ददायक गर्मी उसके शरीर में फैल गई और उसने आंखें बन्द कर लीं....उसके मस्तिष्क पट पर कल्पना में एक चेहरा उभरा....कभी ऐसा लगता कि वह चेहरा संध्या का था और कभी उस लड़की का जिसने कुछ देर पहले उसे दवाई पिलाई थी....फिर इन्हीं चेहरों के साथ एक और चेहरा उभरा....यह चेहरा उस टैक्सी ड्राइवर का था जिससे उसकी झड़प हुई थी....किन्तु; वह टैक्सी ड्राइवर कहां था; यह तो जय का चेहरा था....नहीं टैक्सी-ड्राइवर....इसी विश्वास और सन्देह की खींचातानी में धीरे-धीरे वह गहरी नींद में खो गया।
कुछ ही क्षण बाद राज के कंधों से दो नर्म-नर्म हाथ टकराए और इन हाथों ने उसे करवट बदलने में सहायता दी....अजनबी ने आंखें खोल दीं....वही रात वाला चेहरा उसके सामने था।
“अब जाग जाइए और दवा पी लीजिए...” कांपते हुए होंठों से आवाज निकली।
राज जाग उठा। थोड़ी देर बाद वही लड़की एक प्याली में दूध लाई और दवाई वाली पुड़िया खोलकर राज के मुंह में डालना ही चाहती थी कि राज ने कराह कर कहा, “ठहरो....मैं बैठ जाऊं।”
लड़की ने दूध की प्याली और दवाई की पुड़ियो को मेज पर रखा और उठकर बैठने में राज की सहायता की....उसकी पीठ से तकिया लगा दिया फिर अपने हाथ से उसने दवाई राज के मुंह में डाली और दूध का प्याला उसके होंठों से लगा दिया। राज जब दूध पी चुका तो लड़की ने तौलिए से उसका मुंह साफ किया और बोली, “अब लेट जाइए....”
“नहीं...” राज ने कमजोर आवाज में कहा, “लेटे-लेटे उकता गया हूं....”
“अब आपका ताप भी हल्का है....लड़की ने राज का माथा छू कर कहा, “शाम तक तीनों पुड़ियां खा लेंगे तो बिल्कुल उतर जाएगा....”
“मुझे यहां कौन लाया?” राज ने लड़की को ध्यान से देखते हुए पूछा।
“भैया उठाकर लाए थे....आप गली में बेहोश होकर गिर गए थे....”
“वह टैक्सी ड्राइवर तुम्हारा भाई है?”
“हां...चन्दर मेरा भाई ही है....मेरा नाम सुषमा है। मैं ट्यूशन करके लौट रही थी...रास्ते में एक गुण्डे ने मुझसे अशिष्टता करना चाही....आपने मुझे बचा लिया था....फिर आप बेहोश हो गए थे।”
“मैंने बचा लिया था?” राज ने आश्चर्य से पूछा।
“हां....आप उस समय अर्ध-चेतना की दशा में थे...रात वैद्य जी आपको देखने आए थे....कह रहे थे आपने दो तीन दिन से कुछ नहीं खाया।”
“बहुत कुछ खाया-पिया था इन दो तीन दिनों में...” राज फीकी-सी मुस्कराहट के साथ बोला, “अपने खून के धक्के.... अपने प्यार के धक्के....दूसरों की स्वार्थता...हवा और मिट्टी....कितना कुछ तो खाया है.....जो चीजें जीवन के चौबीस वर्षों में नहीं खाई वे अड़तालीस घण्टों में खाने को मिल गईं....”
“ओह....” सुषमा ने राज को ध्यान से देखते हुए सहानुभूति प्रकट की, “आप बहुत दुखी जान पड़ते हैं....”
“दुखी.....हूं....” राज गर्दन झटक कर बोला, “दुखी उसे कहते हैं जो सिर पर चोट खाए घाव दबाए बैठा हो....आज तक मैंने अपना जीवन व्यर्थ गंवाया है....किन्तु; आज से मेरे जीवन का उद्देश्य आरम्भ होता है....जो दुख मेरे पास एकत्र हुए हैं, उन्हें सुरक्षा से रखूंगा और एक दिन उन्हीं लोगों को बांटूंगा जिन्होंने ये दुख मुझे दिए हैं....” यह कहते-कहते राज की आंखों में अंगारे से सुलगने लगे.....उसके चेहरे पर एक भयानक निश्चय की रोशनी छा गई।
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