Thriller फरेब

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Re: Thriller फरेब

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“बस, हो गया काम।” चंद्रेश ने मोबाइल रखते हुए कहा।

“पुलिस यहाँ आ रही है।” राहुल के चेहरे पर घबराहट उभरी।

“तुम्हें क्या हुआ राहुल।” उसके चेहरे को घूरते हुए चंद्रेश ने पूछा।

“कुछ नहीं यार, पुलिस नाम की चिड़िया से दूर रहता हूँ।” राहुल ने कुर्सी पर पहलू बदलते हुए कहा।
निशा तटस्थ बैठी रही।

अचानक चंद्रेश राहुल के चेहरे को देखते हुए बोल उठा, “तेरे चेहरे पर यह निशान कैसे हैं राहुल?”

“यही बात मैं भी बहुत बार पूछ चुकी हूँ।” निशा ने अपनी हँसी छुपाते हुए कहा।

“कुछ नहीं यार, कल कमरे में चोर घुस आये थे। उनसे हाथापाई हो गयी थी।” राहुल ने नज़रें चुराते हुए कहा।

“पुलिस में रिपोर्ट लिखवाई।” चंद्रेश ने पूछा।

“नहीं यार, वह घर से कुछ नहीं ले गये। इसलिये रिपोर्ट नहीं लिखवाई।” राहुल ने झूठ बोलते हुए कहा।

“थानेदार साहब आ रहे हैं। मैं बात करता हूँ। ऐसे तो हम लोग सुरक्षित नहीं हैं।”

“अरे यार छोड़ मैं बात को आगे नहीं बढ़ाना चाहता।” राहुल ने अपनी घबराहट छुपा कर कहा।

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एक बड़ा-सा हाँल था, जहाँ सेन्टर में यू आकार की टेबल रखी हुई थी, जिसके पीछे पन्द्रह से बीस कुर्सियाँ रखी हुई थी। यह एक मीटिंग हॉल था। कमरे में रोशनी का भरपूर प्रबन्ध था। चारों तरफ सजावट का ध्यान रखा गया था।

दोपहर के दो बज रहे थे। अचानक एक-एक कर लोगों का आना प्रारंभ हो गया। सेन्टर चेयर को छोड़ सारी कुर्सियाँ भर गयी। ढ़ाई बज रहे थे। उस समय अयूब खान ने प्रवेश किया। मजबूत कन्धे, लम्बा चेहरा, चौड़ा माथा, मोटी-मोटी आँखें, गाल पर चाकू का पुराना घाव, जो उसे और भी खूँखार बना रहा था। पैंतालीस-पचास के बीच की उसकी उम्र थी। अयूब खान के चेहरे पर कठोरता साफ दिखायी दे रही थी। उसने काले रंग का पठानी सूट पहन रखा था। सधे हुए कदमों से चलते हुए वह आया और सेन्टर चेयर पर बैठ गया। उसने सिगार जलाया, उसकी निगाह सब तरफ घूमने लगी। सब शांत भाव से उसकी तरफ देख रहे थे। कमरे में शान्ति छाई हुई थी। वहाँ उपस्थित बीस लोगों में से कोई भी शक्ल से शरीफ नजर नहीं आ रहा था, पर उनकी वेशभूषा शानदार थी।

अचानक अयूब खान ने सन्नाटे को भंग किया, “आप सब सोच रहे होंगे कि अचानक मैंने यह अर्जेन्ट मीटिंग क्यों अरेंज की और आप सबको क्यों बुलाया?”

“हम सब यही सोच रहे हैं खान साहब, सब कुछ ठीक चल रहा है, तो फिर इस मीटिंग की क्या जरुरत आ गयी?” एक ने पूछा।

“मुझे पक्की खबर मिली है कि हमारे ग्रुप में कोई पुलिस के लिये मुखबिरी कर रहा है।” खान ने कड़वे स्वर में सबको घूरते हुए कहा।

“खान साहब आप ने हमें यहाँ बेइज्जत करने के लिये बुलाया है।” देसाई ने गुस्से से कहा।

“पिछले दो महीने में चार बार हमारा माल पकड़ा गया है। पाँच साल में यह पहली बार हो रहा है।”

“लेकिन एक आदमी के लिये सब पर शक करना गलत है।” देसाई ने दोबारा कहा।

“मैं अयूब खान, आप सब से वायदा करता हूँ कि अगले तीन दिनों में उस गद्दार को इसी हाल में आप सब के सामने वह सजा दूँगा कि कोई फिर से गद्दारी का विचार भी नहीं करेगा।” बोलते-बोलते खान का चेहरा गुस्से में लाल हो गया।

खान का रौद्र रुप देख कर उपस्थित सभी लोग कांप गये। हाल में चुप्पी छा गयी। खान की नजरों ने वहाँ बैठे लोगों का निरीक्षण किया, फिर कहा, “हमारा नशे का धन्धा फल-फूल रहा है। इसमें मुनाफा भी काफी अच्छा है। मैं इसे और बढ़ाने की सोच रहा हूँ।” शांत स्वर में अयूब खान बोला।

“मैं आपकी बात का सर्मथन करता हूँ।” बशीर खान बोला। सब लोगों के सिर सर्मथन में हिले, एक को छोड़ कर।

“तुम क्या कहते हो देसाई?” अयूब खान ने देसाई से प्रश्न किया।

“आप जानते हैं खान साहब मैं नशे के व्यापार से नफरत करता हूँ। यह जहर हमारी युवा पीढी को खत्म कर रहा है।
” देसाई के स्वर में नफरत उभरी।

“तुम कब से देशभक्त हो गये देसाई?” खान बोला

“मैं अपने धन्धे से खुश हूँ खान साहब?”

“इसका मतलब तुम हमारी खिलाफत करोगे?”

“ऐसा तो मैंने नहीं कहा, लेकिन मैं नशे के धन्धे को नहीं अपनाऊँगा।” हठी स्वर में देसाई बोला।

“ऐसा कितने लोग महसूस करते हैं?” खान ने सबको घूरते हुए पूछा। किसी ने भी विरोध नहीं किया।

“देख देसाई, मुझसे अलग होकर धन्धा करना तुझे फलेगा नहीं। मैं तुझे सोचने की मोहलत देता हूँ। तू अपना जवाब बदल दे या अपना धन्धा बन्द कर दे।” खान ने चेतावनी देते हुए कहा।

“मेरा स्वर हमेशा ऐसा ही रहेगा खान साहब।” देसाई का स्वर दृढ़ हो गया।

“देखते हैं। आज से तीन दिन बाद हम यही मिलेंगे। उस दिन गद्दार आप सबके सामने होगा।” कहते हुए खान उठा और मीटिंग से बाहर निकल गया।

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साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
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Re: Thriller फरेब

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जीप चंद्रेश मल्होत्रा के ऑफिस के बाहर रुकी। निरंजन और भाटी बाहर निकले। चंद्रेश उन्हें लेने बाहर आया।
“आइये सर।” चंद्रेश स्वागत वाले स्वर में बोला।

भीतर पहुँच कर चंद्रेश ने भाटी का परिचय निशा और राहुल मकरानी से कराया। राहुल मकरानी को देखते ही भाटी बोल उठा, “यह आपके चेहरे को क्या हुआ मकरानी साहब? कही लड़ाई तो नहीं हो गयी।”

“नहीं सर, कल कुछ ज्यादा चढ़ गयी थी। सीढ़ियों से गिर गया था।” राहुल ने घबराते हुए कहा।

चंद्रेश ने विचित्र नज़रों से राहुल को घूरा। वह कुछ कहने ही जा रहा था कि निशा ने आँख के इशारे से उसे कहने से मना कर दिया। चंद्रेश ने अपने होंठ सी लिये।

“सीढ़ियों से गिरने के तो यह निशान नहीं लगते। यह तो ठुकाई के निशान लगते हैं। खैर, हमें क्या ...?” भाटी ने अपनी मूंछो पर हाथ फेरते हुए कहा।

“सर, यह निशा मुझे और वंशिका को तब से जानती हैं जब हम कॉलेज में पढ़ा करते थे। यह वंशिका को अच्छी तरह पहचानती है।” चंद्रेश का स्वर उत्तेजना से भरा हुआ था।

“कहाँ पढ़ती थी आप के साथ।” भाटी ने चंद्रेश से पूछा।

“जी हम सुखाड़िया कॉलेज में साथ में पढ़ा करते थे।”

यह सुनते ही निरंजन के होंठ गोल हो गये और मुँह से सीटी बज उठी।

“क्या हुआ निरंजन?” भाटी ने सवाल किया।

“कुछ नहीं सर, इसके बारे में बाद में बात करेंगे।” निरंजन ने भाटी के सवाल को टाल दिया।
भाटी ने राहुल को देखा।

“आप भी वंशिका मल्होत्रा को जानते होंगे।” भाटी ने राहुल से सवाल किया।

“जी सर, अच्छी तरह, तभी तो आपको बुलाया।” राहुल ने गहरी सांस लेते हुए कहा।

“चलो फिर देर किस बात की, दूध का दूध और पानी का पानी कर देते हैं।” भाटी ने उठते हुए कहा।

भाटी को उठता देख चारों उठ खड़े हुए और पुलिस जीप की तरफ बढ़ गये। बाहर निकले तो राहुल मकरानी को दूर से रंगा-बिल्ला दिख गये, जो दूर टी-स्टॉल पर चाय पी रहे थे। घबराकर राहुल ने नज़रें घुमा दी। निशा ने राहुल की तरफ देखा फिर स्टॉल पर खड़े रंगा-बिल्ला को देखा। उसके चेहरे पर चिन्ता के भाव आ गये। बाकी तीनों का ध्यान इस तरफ नहीं गया। सब पुलिस जीप में सवार हो गये। जीप कॉटेज की तरफ रवाना हो गयी।

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Re: Thriller फरेब

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जीप कॉटेज के बाहर आकर रुकी। चंद्रेश जीप से उतरा। बाकी सब उसके पीछे-पीछे कॉटेज के अन्दर आ गये। मल्होत्रा के चेहरे पर उत्तेजना और खुशी के भाव थे।

“कहाँ गयी मेरी प्यारी धर्मपत्नी जी, देखो आप से मिलने कितने सारे लोग आये हैं।” चंद्रेश ने जोर से चिल्ला कर कहा।

वंशिका अन्दर से बाहर आयी। उसके चेहरे पर नींद की खुमारी नजर आ रही थी। उसने सब को देखा फिर निशा ओबेराय को देख कर खुशी से बोल उठी।
“हाय निशा, कैसी हो? बहुत दिनों बाद दर्शन दिये। अपनी इस प्यारी सहेली को भूल गयी थी क्या?”

निशा ओबेराय ने चौंक कर चंद्रेश की तरफ देखा।

“कहाँ है नकली वंशिका, यह तो सच में असली वंशिका ही है।” उसने हैरानी से वंशिका को देखा और गले लग गयी।

“तुमसे मिले काफी टाइम हो गया था। मुझे नहीं मालूम हमारी मुलाकात इस तरह होगी।” अब हैरानी की बारी चंद्रेश मल्होत्रा की थी।

“क्या बक रही हो निशा? क्या तुम्हें यह वंशिका दिखायी दे रही है। अपने बाल नोंचते हुए चंद्रेश बोला।

“अपने को संभाल चंद्रेश, भाभी से कोई झगड़ा हुआ है, जो तू ऐसा कह रहा है।” राहुल ने समझाते हुए चंद्रेश से कहा।

“तू भी इससे मिल गया, हे भगवान ये क्या हो रहा है? यह कैसी सजिश है, जिसमें मैं फंस गया।” चंद्रेश ने हताश स्वर में कहा।

भाटी और निरंजन मजे लेने वाले अन्दाज में सोफे पर बैठ गये और सारा नाटक देखने लगे।

“ओह! तो अब सारी बात समझ में आ गयी।” वंशिका ने व्यंग्य भरी नज़रों से सब को देखते हुए बोली।

“क्या समझ गयी तू?” चंद्रेश ने पागलपन भरे स्वर में कहा। वह अपना माथा पकड़ कर बैठ गया।

राहुल ने चिन्तित नज़रों से उसे देखा, “क्या हो गया हैं चंद्रेश तुझे? तू अपनी पत्नी को नहीं पहचान पा रहा है। यह तू गलत कर रहा है।” अफसोस भरे स्वर में राहुल बोला।
“तू मेरा दोस्त नहीं हो सकता राहुल।” चंद्रेश ने अपनी भड़ास निकालते हुए कहा।

“बस बहुत हुआ नाटक।” वंशिका सबको गुस्से से घूरती हुई बोली।

“वंशिका संभाल अपने आपको।” निशा अहिस्ते से बोली।

“क्या संभालना अपने को निशा। जब पति अपनी पत्नी पर ही शक करता है। सबके सामने उसे बेइज्जत करने लगा हो। इनका आप सब को यहाँ लाने का मकसद क्या था ? मेरी पहचान करवाना ?” वंशिका रोने लगी।

“चुप कर वंशिका इस तरह रोने से काम नहीं चलेगा। यह सच है कि हम सब तेरी पहचान करने ही आये थे, पर इसमें गलत क्या है?” लम्बी सांस लेती हुई निशा बोल उठी।

“ये मेरी पत्नी नहीं हो सकती। पता नहीं आप सब लोग मुझे गलत ठहराने पर क्यों लगे हुए हैं?” चंद्रेश ने गुस्से में कहा।

“चंद्रेश, हम तुम्हारे दुश्मन नहीं हैं। ये वंशिका ही है। पता नहीं तुझे क्या हो गया है?” चिन्ता भरे स्वर में राहुल बोला।

“आप लोगों का किसी बात में मनमुटाव हो गया हो, तो कृपया शान्ति से मामला निपटा लीजिये नहीं तो आप ही लोगों की इज्जत नीलाम होगी। इसमें पुलिस का कोई रोल ही नहीं होना चाहिये।” अजीब-सी उलझन भरी नजरों से सब को देखती निशा बोल उठी।

“अब कौन-सी इज्जत बाकी रह गयी है।” व्यंग्य भरी नज़रों से सब को देखती हुई वंशिका बोली।

निरंजन और किशोर सिंह भाटी शांत भाव से बैठे यह ड्रामा देख रहे थे और आनंद भी ले रहे थे। दोनों में से कोई भी कुछ नहीं बोल रहा था।

“मुझे समझ में नहीं आ रहा राहुल और निशा क्यों झूठ बोल रहे हैं। मेरा विश्वास कीजिये भाटी साहब ये औरत मेरी पत्नी नहीं हो सकती। कल इसे जीवन में मैंने पहली बार देखा है।” जले-भुने स्वर में चंद्रेश ने कहा।

“हम झूठ नहीं बोल रहे भाटी साहब।” दोनों ने चंद्रेश के शब्दों का विरोध किया।

“मामला काफी टेढ़ा हो गया है।” भाटी ने निरंजन को देखते हुए बैठे-बैठे कहा।

“यहाँ तो चंद्रेश साहब की वाट लग गयी है। उनके गवाह ही उनके विरोध में बोल रहे हैं।” निरंजन व्यंग्य भरी निगाहों से सब को देख कर बोला।

“हम किसी के विरोध में नहीं बोल रहे हैं। हम तो बस सच्चाई का साथ दे रहे हैं।” राहुल उखड़े स्वर में बोला।

वंशिका रोये जा रही थी और निशा उसे चुप करने का प्रयास कर रही थी। रोते-रोते वंशिका की आँखें लाल हो गयी। वंशिका ने अपने आँसू रूमाल से पोंछते हुए कहा, “मैं कल से बार-बार यही साबित कर चुकी हूँ कि मैं ही इनकी पत्नी वंशिका हूँ, फिर भी ये मुझे अपनी पत्नी नहीं मान रहे।”

“मैं तुझे मरते दम तक अपनी पत्नी स्वीकार नहीं कर सकता, क्योंकि मैं जानता हूँ कि तू मेरी पत्नी नहीं हैं। तू तो कोई नागिन है, जो मेरे घर को तबाह करने आयी हुई है।” चंद्रेश ने तेज स्वर बोला।

भाटी ने अपनी मूंछो पर हाथ फेरा और जेब से सिगरेट निकाल कर सुलगाई। उसने कुर्सी पर पहलू बदला और गहरी साँस लेते हुए सब को देखा। फिर उसके चेहरे पर मुस्कान आ ठहरी। वह उठा और चहल-कदमी करता हुआ बोला, “कहानी खत्म, ड्रामा खत्म, वाह ! क्या सीन हैं। इस कहानी में सब कुछ मिला। चंद्रेश साहब के गवाह के बदलते रुप, वंशिका मैडम की शानदार अदाकारी मजा आ गया।” व्यंग्यभरी नज़रों से उसने सब को देखा।

वंशिका ने चिहुँक कर भाटी को देखा, “ आपको क्या लगता है कि मैं मजाक कर रही हूँ, नाटक कर रही हूँ?” गुस्से भरे स्वर में वंशिका बोली।

“पुलिस में नौकरी करते हुए हमें सत्ताइस साल हो गये मोहतरमा, हमने सत्ताइस साल में घास नहीं छीली है मैडम। आपको अभिनय के लिये बेस्ट एक्ट्रैस का खिताब मिलना चाहिये।”

यह शब्द सुनते ही चंद्रेश मल्होत्रा के चेहरे पर रौनक आ गयी। बोला, “धन्यवाद सर, जो आपने मेरी बात का विश्वास किया। यकीन कीजिये सर, ये झूठ बोल रही हैं। पता नहीं राहुल और निशा भी क्यों झूठ बोल रहे हैं?” लम्बी साँस लेते हुए चंद्रेश बोला।

“आपसे किस चिड़िया ने कहा कि मैंने आपकी बात का यकीन कर लिया है।” लापरवाही से भाटी ने कहा।

अब चौंकने की बारी वंशिका की थी। उसके चेहरे पर अजीब-सी उलझन के भाव आ गये।

“मुद्दई लाख बुरा चाहे तो क्या होता है, वही होता है, जो मंजूर-ए-खुदा होता है।” भाटी के स्वर में चंचलता भर गयी।

निरंजन बड़े मजे से भाटी की कार्यवाही देख रहा था। उसने पहली बार भाटी का यह रूप देखा था।
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Re: Thriller फरेब

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“सारे सबूत कहते हैं कि वंशिका असली है और दिल कहता है कि चंद्रेश साहब झूठ नहीं बोल रहे हैं और मैं दिल की बात पहले सुनता हूँ। लेकिन सबूतों को झूठला नहीं सकता।” उसके चेहरे पर सोच के भाव थे।

“मुझे आपकी बात समझ में नहीं आ रही सर।” गंभीर स्वर में निरंजन ने कहा।

अब सब का ध्यान भाटी की तरफ ही था।

“इन्वेस्टिगेशन लगता है तगड़ी करनी पड़ेगी।” भाटी ने चहल-कदमी करते हुए अपनी मूंछो पर हाथ फेरते हुए कहा।

अचानक कमरे के दरवाजे पर आहट हुई। सबने चौंक कर दरवाजे की दिशा में देखा। दरवाजे पर एक तीस- बत्तीस बर्षीय युवक खड़ा दिखायी दिया, जिसके बाल बिखरे हुए थे, शरीर गोरे रंग का, आँखों पर गॉगल्स टिके हुए थे। आगंतुक युवक काले कलर की जींस पहने हुए था, जो फैशन के मुताबिक जगह-जगह से फटी हुई थी। ऊपर यलो कलर का शॉर्ट कुर्ता पहना हुआ था, जिस पर राजस्थानी डिजाईन के कई जानवर बने हुए थे। वह अपनी तरफ से पूरा लापरवाह जान पड़ रहा था। उसके हाथ में गिफ्ट और मिठाई का डिब्बा था। सब अनजानी नज़रों से उसे घूर रहे थे। वंशिका उसे देख कर खुशी से फूली नहीं समा रही थी। वह दौड़ते हुए दरवाजे की तरफ भागी और दौड़ कर उसके गले लग गयी।
“कैसे हैं आप भाई साहब?” वंशिका ने मीठे स्वर में कहा।

अब चौंकने की बारी चंद्रेश मल्होत्रा की थी। उसने नवयुवक की तरफ देखते हुए कहा, “वंशिका का कोई भाई नहीं था।”

भाटी ने हैरानी से उस नवयुवक की तरफ देखा।
“आपकी तारीफ?” भाटी ने पूछा।

“तारीफ उस खुदा की कीजिये जिसने मुझे बनाया?” नवयुवक ने उसी तरह चंचल स्वर में जबाव दिया।

राहुल उसके होठों से निकले शब्द सुनकर चौंक पड़ा। निशा ने उसके चेहरे पर चौंकने के भाव देखे। फिर राहुल को उन भावों पर नियन्त्रण करते हुए भी देख लिया।

“कहानी में किरदार बढ़ते ही जा रहे हैं।” भाटी मन ही मन बड़बड़ाया।

वंशिका सबकी ओर देखते हुए बोली, “यही है वह, जिसने मुझे बचाया था।” वंशिका के स्वर में आभार के भाव थे।

नवयुवक ने वहाँ उपस्थित सभी लोगों पर नजरें घुमाई और मीठे स्वर में कहा, “बन्दे को सागर कहते हैं।”

“आप ठीक समय पर आये सागर भइया, ये सब मुझे गलत ठहरा रहे हैं।” वंशिका के स्वर में शिकायत के भाव थे।

“चिन्ता मत कर बहना, अब तेरा ये भाई आ गया है।” उसने सब को देखते हुए कहा और लाया हुआ सामान टेबल पर रख दिया।

“टेढ़े-मेढ़े जबाव देने के लिये हाजिर है, यह टेढ़ा-मेढ़ा आदमी।” उसके चेहरे पर मुस्कान आ गयी।

“आप कहाँ से पधारे।” उलझन भरी निगाहों से देखते हुए भाटी ने कहा।

“पधारे तो हम बत्तीस साल पहले ही थे, लेकिन लगता है हमारे जन्म लेने का कारण वंशिका को अपना हक दिलाना है।” गहरी साँस लेते हुए उसने जवाब दिया।

“जो भी पूछा जाये, उसका सीधा जवाब दो स्मार्ट बॉय, यह पुलिस की कार्यवाही है। अमिताभ जी का शो कौन बनेगा करोड़पति नहीं है।” भाटी ने कड़क स्वर में कहा।

“मुझे वंशिका ने फोन करके यहाँ बुलाया था।” उसके स्वर में व्यंग्य की जगह गंभीरता आ गयी।

“क्यों बुलाया था?” भाटी ने पूछा।

“क्योंकि इनके पतिदेव इन्हें अपनी पत्नी नहीं मान रहे थे।”

“तो आप इसमें क्या कर सकते हो?”

“इनके पति को समझाने की कोशिश करता।” सागर बोला।

अचानक निरंजन बोल पड़ा, “आपने इनको क्यों बचाया?”

“क्यों, किसी को बचाना जुर्म है क्या कानून की नजर में? अजीब मुसीबत है किसी को बचाओ, तो मुसीबत, नहीं बचाओ तो मुसीबत।” व्यंग्यभरे स्वर में सागर बोला। निरंजन कट के रह गया।

“ये आपको कहाँ मिली थी?” भाटी ने प्रश्न पूछा।

“इनका कार से एक्सीडेन्ट हो गया था। काफी दिनों तक इनकी याददाश्त गायब रही। याददश्त वापस आने पर यह अपने घर जाने की जिद करने लगी। मैं भी इनके साथ ही आने वाला था, लेकिन किसी कारणवश आ नहीं सका।” साधारण स्वर में सागर ने जबाव दिया।

“आपका पेशा क्या है?” निरंजन ने सवाल किया।

“झूठ को सच और सच को झूठ साबित करना ही मेरा पेशा है।”

“मतलब?” निरंजन ने पूछा।

“वकालत करता हूँ इंस्पेक्टर साहब।” लापरवाही से सागर ने जवाब दिया।

“तभी पुलिस का खौफ नहीं है।” भाटी बोला।

“क्या? पुलिस से डरना चाहिये?” सवालिया निगाह से भाटी को देखता सागर बोला।

तभी राहुल निशा की तरफ देख कर बोला, “हमें चलना चाहिये इंस्पेक्टर साहब। अब तो हमारी यहाँ कोई जरूरत नहीं है।”

“जाइये जनाब, आपकी तो क्या, अब तो हमारी भी यहाँ कोई जरुरत नहीं है।” भाटी ने उठते हुए कहा।

“इंस्पेक्टर साहब, अब मेरा क्या होगा?” बेचैनी से चंद्रेश ने कहा।

“आपकी चाल पीट गयी है चंद्रेश साहब, आप के गवाह खुद ही मुकर गये, इसमें हम क्या कर सकते हैं।” उखड़े स्वर में भाटी बोला।

“लेकिन यह सब झूठ है।”

“हम कुछ भी नहीं कर सकते हैं। चलो निरंजन।” भाटी ने बाहर की तरफ कदम बढ़ाते हुए कहा।

निरंजन भी उठ खड़ा हुआ और चंद्रेश के कन्धे पर हाथ रख कर बोला”संभालो अपने आपको।”

दरवाजे के पास आकर भाटी ठहर गया और घूम कर सागर की तरफ देखते हुए बोला, “मुझे लगता है हमारी मुलाकात बहुत जल्द होगी। तब जाकर पता चलेगा कि आप कितने पानी में हैं।” विश्वास भरे स्वर में भाटी बोला।

“शौक से भाटी साहब, उस वक्त का इस नाचीज को भी इन्तजार रहेगा।” शांत भाव से मुस्करा कर सागर ने जबाव दिया। भाटी और निरंजन घूम कर वापस चले गये।
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साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma
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