Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

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rajsharma
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Re: Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


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Re: Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

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"चल भाई जल्दी चल आज पहला पेपर है." लाल सूट मे किसी गुलाब सी अलका ने अर्जुन को कुर्सी से उठाया और वो भी मुस्कुराता हुआ उनके पीछे चल दिया

"वैसे दीदी इम्तिहान आपका और सज़ा मुझे. ये क्या बात हुई?", अर्जुन को वहाँ रुकना भी था इतनी देर जबतक पेपर ख़तम नही होना था.

"सज़ा के बाद ही तो फिर मज़ा मिलता है." इठलाती हुई वो चुन्नी सर पर कर जा लगी अर्जुन की पीठ से और स्कूटर चल दिया कॉलेज की तरफ.

"वैसे आज कुछ और प्लान है क्या आपका पेपर के बाद?", अर्जुन स्कूटर चलाते हुए भी अलका दीदी मे खोया था. आज तो उसका दिल कर रहा था की बस उनको बाहो मे भर ले सारी दुनिया से बचा कर.

"क्यो? ऐसा तो कुछ नही है. पेपर ही देना है फिर वापिस घर." ये बात भी अलका दीदी ने छेड़ते हुए कही

"ठीक है."

"ओह तो बॉयफ्रेंड को बुरा लग गया? वैसे मैं सोच रही थी के पेपर के बाद तेरे साथ ढेर सारी बातें करूँगी. लेकिन अगर तेरे दिल मे मेरे लिए जगह नही है तो फिर मैं क्या कर सकती हू." अपने छोटे भाई को मनाते हुए अलका उसके पेट पर हाथ फेरने लगी.

थोड़ी देर मे दोनो कॉलेज मे थे. अर्जुन वही पार्क मे बैठ गया और दीदी सामने वाली बिल्डिंग मे चली गई.

आज पार्क लगभग खाली था. शायद एक ही क्लास का पेपर था. पिछली बार के विपरीत इस बार तो कॅंटीन की तरफ भी सन्नाटा ही पसरा था. कुछ 40-45 मिनिट बाद एक जानी पहचानी आवाज़ सुनाई दी. "हीरो आज यहा अकेले अकेले." ये नुसरत थी जो एक बिल्कुल ही तंग सूट पहने उसके पास आ गई थी.

"आज आपका पेपर नही है क्या?", उसने उपर से नीचे तक नुसरत को देखने के बाद पूछा. नुसरत ने भी अर्जुन की आँखों की हरकत देख ली थी.

"अर्रे ये सब्जेक्ट मेरा ऑप्षनल था तो पास होने लायक करके बाहर आ गई. बाकी सब तो अभी डेढ़-2 घंटे तक नही आने वाली." फिर वही बैठ कर पूछा, "कॅंटीन चलेगा मेरे साथ? यहा कुछ करने को है नही तो चल आज मैं तुझे जूस पिलाती हू." अपने होंठ चबाती अगले पल वो उठ खड़ी हुई तो अर्जुन भी साथ हो लिया. पूरी कॅंटीन ही उजाड़ पड़ी थी. काउंटर पर भी एक लड़का था जो शायद समान ठीक कर रहा था.

नुसरत ने बिल्कुल आख़िर की टेबल चुनी और अर्जुन को अंदर धकेलते सी हुई उसके साथ ही बैठ गई. "क्या लेगा बता. आज तेरी सेवा मैं करूँगी."

अर्जुन कुछ ज़्यादा सोच नही पा रहा था. ये ग़लत हो रहा है या सही लेकिन अगले ही पल उसने धीमे से कहा, "एक्सक्यूस मी. हॅव टू गो वॉशरूम. डोंट माइंड"

बोलकर वो बाहर की तरफ निकला और नुसरत ने अपने अनार उसकी कमर से रगड़ दिए. ऐसे ही वो कॅंटीन के गेट के साथ बने वॉशरूम मे गया और अपना मूह पानी से धो कर बाहर आया. रुमाल से सॉफ करते हुए काउंटर पर जा कर उसने एक जूस और एक कोला लिया. वापिस वही आकर बैठ कर नुसरत की तरफ कोला की बॉटल कर दी. अब दोनो आमने सामने थे. नुसरत अर्जुन के इस रवैये से हैरान और चुप थी. वो भी 2 घूँट लेने के बाद वॉशरूम चली गई और यहा अर्जुन ने जूस ख़तम किया और कॉलेज के बाहर आकर खड़ा हो गया. आधे घंटे बाद उसको अलका दीदी बाकी सब लड़कियो के साथ ही बाहर आती दिखी.

आशा और नुसरत भी उनके साथ ही थी.

"तू बाहर क्यू आकर खड़ा हो गया? अंदर मैं तुझे सब तरफ देख कर आई हू."

"वो वहाँ ज़्यादा कुछ करने को था नही तो मैने सोचा के बाहर ही घूम लू. ये जगह भी कुछ खास बुरी नही है." उसने अपना ध्यान सिर्फ़ अलका दीदी पर ही रखा और वही नुसरत और आशा उसको एकटक देख रही थी.

"चलो यहा से मुझे कही ज़रूरी काम भी जाना है." जब अर्जुन को लगा की इस से पहले की नुसरत कोई बात शुरू करे वो यहा से चल दे यही बेहतर रहेगा.

"ठीक है. चल. बाइ नुसरत-बाइ आशा." इतना बोलकर अलका दीदी भी ताज्जुब से उसके पीछे बैठ गई.
.
.
"किसी ने कुछ कहा क्या?"

"अपनी उस फ्रेंड को बोल देना के मुझ से थोड़ा दूर रहे. जिस तरह से वो मुझे देखती है और पास आने की कोशिश करती है मुझे ज़रा भी पसंद नही."

भाई की ये थोड़ी गुस्से मे कही बात अलका ने सुनकर दोनो हाथ उसकी कमर मे डालकर पीछे से ही उसके गाल को चूम लिया.

"और अगर ये सब मैं करू तो क्या तू मुझे भी दूर करेगा?"

"आप तो मेरी जान हो दीदी. और मैं खुद ये चाहता हू के आप ही मेरे साथ ये करो."

"वैसे अर्जुन, वो इतनी भी बुरी नही है." अपनी बाहें थोड़ा और कसते हुए अलका दीदी ने जब ये बात कही तो अर्जुन ने अब थोड़े हल्के मूड मे जवाब दिया
"मैने आपको ये तो नही कहा के वो बुरी है. बस एक सीमा होती है किसी भी चीज़ की. और ये हर इंसान के लिए अलग होती है. आपका तो मेरी जान पर भी हक़ है लेकिन वो आपकी दोस्त है बस यही मैं मानता हू."

"अच्छा बाबा अब गुस्सा मत कर और मुझे किसी ऐसी जगह ले चल जहाँ सिर्फ़ हम दोनो हो और आराम से बातें कर सके."

उनकी ये मीठी बात सुनकर अर्जुन ने स्कूटर नये सेक्टर की तरफ जाने वाली बाहर की सड़क पर ले लिया. 15 मिनिट बाद एक पेड़ के नीचे स्कूटर डबल स्टॅंड पर लगा था और अलका दीदी सीट पर बैठी थी. अर्जुन उनके सामने खड़ा था बिल्कुल पास. यहा इस वक़्त तो दूर तक कोई परिंदा भी नही था लेकिन पेड़ होने से धूप उन दोनो पर नही गिर रही थी.

"वैसे जगह अच्छी लेकर आया है तू. यहा कब आया?"

"वो रोज सुबह आता हू ना दौड़ लगाने तो यही तक आता हू. और मुझे लगा कि इस से शांत कौन सी जगह होगी."

अलका बड़े प्यार से अर्जुन को देख रही थी जिसका सर बिल्कुल उसके मूह के उपर था. अर्जुन भी खड़े हुए दीदी को ही देख रहा था. उनके बाल एक रब्बर बॅंड के नीचे बिल्कुल सीधे थे और खुले होने के बावजूद सलीके से बिल्कुल पीठ की सीध मे थे. लाल सूट इतना टाइट था की उनके उभार ज़्यादा बाहर निकले थे और पेट बिल्कुल अंदर लग रहा था.

उपर वाला होंठ देख अर्जुन ने दीदी का सर दोनो हाथो मे थाम हल्के से दोनो होंठो मे लेकर चूम लिया.

"ये क्या हरकत थी?" ऐसे खुले मे अपने भाई द्वारा चूमने से दीदी थोड़ा घबरा गई लेकिन उन्हे उसकी हिम्मत और प्यार देख कर अच्छा भी लगा.

"दीदी यहा आओ आप." इतना कहकर वो उन्हे पेड़ के पीछे बने पेड़ो के बड़े से झुंड के बीच ले गया. तकरीबन 15-16 सफेदे के सीधे लंबे और मोटे पेड़ एक साथ थोड़े से हिस्से मे लगे थे. आसपास छाया दार पेड़ भी थे जो इन सफेदो के सामने थे.

अर्जुन ने दीदी को एक पेड़ से सटा दिया.
"यहा से तो हमें कोई नही देखेगा ना?" अभी इतना ही कहा था उसने की दीदी ने उसको ऐसे खड़े हुए ही अपने पर खींच लिया. और बेहद जोश से उसके पूरे चेहरे को चूमने के बाद अब वो उसके होंठ चूमने लगी. अर्जुन का एक हाथ खुद ही अपने एक उभार पर रख दिया. दोनो जैसे दुनिया भुला कर एक दूसरे का मुखरस पीने लगे.

ये चुंबन इतना गहरा और लंबा था कि कब अर्जुन के हाथ सलवार के अंदर जा अलका दीदी के चूतड़ मसलने लगे

उन्हे पता ही ना चला. इधर अलका दीदी के हाथ भी टीशर्ट के अंदर से अर्जुन की पीठ को दबाते हुए उसको अपने सीने से भीच रही थी. जब साँस उखड़ने लगी तो दोनो अलग हुए लेकिन अर्जुन के हाथ वही थे. और अब तो वो हल्के हल्के से गान्ड की दरार मे दोनो हाथ डाल कर अलग अलग हिस्से को टटोल रहा था दबा रहा था. उसका लंड अलका दीदी की चूत से थोड़ा उपर ठोकर मार रहा था.

सलवार थोड़ी खुली थी नीचे से तो हाथ चुतड़ों से नीचे जाकर चूत के अंतिम सिरे तक आ गये. यहा दीदी की कच्छी जो पीछे से गान्ड की दरार मे फसी थी ठीक चूत के उपर थी.

"आ भाई मत कर यहा. अभी ये ठीक नही है.", अलका दीदी तो कब से चाहती थी के अर्जुन उन्हे दबाए, कपड़े उतार के उन्हे चूमे, चूमे और जी भर के प्यार करे. लेकिन एक तो ये वैसी जगह नही थी और दूसरा वो चाहती थी की उनकी चुदाई आराम से हो और बिस्तर पर हो ना की किसी सुनसान जंगल सी जगह जहाँ लेटने की जगह भी ना हो.

"मैं तो बस हाथ लगा कर देख रहा था कि आपकी वहाँ से कैसी है. उस दिन आपने मेरे किया था जैसे." और फिर एक बार दोनो एक लंबे चुंबन मे उलझ गये. अलग होने के बाद साँसें दुरुस्त कर दोनो स्कूटर पर बैठ गये. अलका दीदी ने अपना सूट भी ठीक किया जो अर्जुन के मसलने से थोड़ा अपनी जगह से उठ गया था.

"अब चले दीदी?" और उनकी हाँ सुनते ही दोनो घर चल दिए..
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संतुलन (बॅलेन्स)

(बड़ा ही छोटा सा एक शब्द है "संतुलन" जिसको इंग्लीश मे "बॅलेन्स" कहते है. जैसे की एक अच्छे शरीर के लिए अच्छा आहार, पर्याप्त नींद और कड़ी महंत ज़रूरी होती है उतना ही ज़रूरी है इंसान की ज़िंदगी मे संतुलन का होना. ज़्यादा भोजन, ज़रूरत से अधिक या कम नींद और बिना मेहनत किया शरीर रोगी हो जाता है वैसे ही ज़िंदगी बिना सही संतुलन के एक ऐसा पेंडुलम बन जाती है जिसकी कोई दिशा नही होती. कोई लक्ष्य हाँसिल नही होता और अगर कुछ होता है तो सिर्फ़ ज़िंदगी बर्बाद.)

दोपहर को दादाजी ने एक प्लेट मे कई फलों (फ्रूट्स) को काटकर अर्जुन के सामने रख दिया. "अब ये भी खाने ज़रूरी है तुम्हारे लिए. देखो एक अच्छी खुराक ही एक अच्छा शरीर देती है. और अधिक मेहनत मतलब ज़्यादा अच्छी खुराक और उतना ही आराम."

अर्जुन को भी उनकी बात सही लगी क्योंकि पिछले 3 दिन से वो कुछ ज़्यादा ही मेहनत कर रहा था. और उसको शाम को भी नींद गहरी आ जाती थी. फल खाते हुए उसने अपनी बात कुछ इस तरह रखी.
"दादा जी मैं कुछ पूछना चाहता हू."

"हा बेटा अगर मुझे पता होगा तो ज़रूर तुम्हारी बात का जवाब दूँगा."

"वो बात ऐसी है की मैं आजकल शाम को कुछ ज़्यादा ही सोने लगा हू. लेकिन फिर रात को मेरी नींद 4 घंटे मे ही पूरी हो जाती है. कही ये कुछ ग़लत तो नही."

रामेश्वर जी गोर से उसकी बात सुनकर बोले, "बेटा ये शरीर जो है ये कई बार खुद निर्णय लेता है. जैसे जब हम काम करते है तो ना चाहते हुए भी नींद जल्दी आ जाती है. लेकिन अगर वही काम हम 2 हिस्सो मे करे तो शरीर भी थोड़े समय मे इसके लिए तयार हो जाता है. फिर वो भी 2 छोटे हिस्सो मे इस नींद को पूरा कर देता है. हा बिना मेहनत ऐसा होना तो सिर्फ़ किसी रोग की निशानी होता है. तुम चिंता मत करो हम इसके बारे मे भी सोचेंगे."

उनकी बात सुनकर वो निश्चिंत होकर वापिस खाने मे लग गया और प्लेट खाली करने के बाद रसोईघर मे रख अपनी साइकल वाली बॉटल मे ग्लूकोस मिला पानी भर स्टेडियम चल दिया.

"सही टाइम से आए हो बेटे. चलो कल वाला ही सब आज भी दोहराओ. बलबीर, अर्जुन के साथ ट्रैनिंग शुरू करो." साइकल स्टॅंड मे खड़ी कर अर्जुन बस बॉक्सिंग अकॅडमी के अंदर आया ही था कि बिना किसी बातचीत के कोच जोगिंदर जी ने उसको बलबीर के साथ जिम भेज दिया. और वो भी चुपचाप चल दिया
"यही सोच रहे हो की सीधा कसरत करने आ गये?" बलबीर ने चलते हुए ही अर्जुन के मन की बात उसको बता दी.

"हा. पर उन्होने ऐसा क्यो किया?"

"देखो छोटे भाई जैसे तुम साइकल चला कर आए हो तो शरीर अभी गरम ही है. अब और दौड़ लगाने से कोई फायेदा नही. तो जितना ज़रूरी है उतना हो गया. अब चलो."

अर्जुन को बात समझ आ गई थी. वही जिम के बाहर विकास एक और पहलवान से बात कर रहा था. उसको देख कर बलबीर नज़र नीचे कर अंदर चल दिया

लेकिन अर्जुन ने विकास को अपनी तरफ देखते पाया तो हाथ हिला कर अभिवादन किया. "कैसे हो भैया?" विकास ने भी उसके सर पर हाथ फेर दिया. "दिल लगा के सिर्फ़ मेहनत कर. ऑल्वेज़ स्टे फोकस्ड." आख़िरी बात उसने इंग्लीश मे कही थी. मतलब ये तगड़ा गाँव का दिखने वाला पहलवान पढ़ा लिखा इंसान था.

"जी भैया." और वो अंदर आ गया.

"छोटे भाई तू इनको कैसे जानता है.?" अब बलबीर ने बात छेड़ी जो विकास और अर्जुन की बात सुनकर हैरान सा था.

अर्जुन ने ज़मीन पर पुश-उप लगाते हुए ही जवाब दिया, "क्यो भैया वो कोई ग़लत इंसान है?"

"धीरे बोल मेरे भाई. कोई सुन ना ले. लेकिन विकास पूनिया य कोई ऐसा वैसा शख्स नही है और वो सिर्फ़ उन्हीं से बात करता है जो उसके साथ ट्रैनिंग लेते है. ना वो हंसता है और ना ज़्यादा बोलता है. लेकिन तेरे साथ दोनो किए."

"हा वो मुझे अच्छे इंसान लगे और उन्हे शायद मैं भी." अर्जुन ने सरलता से जवाब दिया और फिर दोनो मशीन की ओर चल दिए.

"ये कुश्ती मे 2 बार का नॅशनल गोल्ड है. और अब एशियन चॅंपियन्षिप के लिए तयार हो रहा है." बलबीर की बात सुनकर अब चौंकने की बारी अर्जुन की थी. बात को वही ख़तम कर दोनो कसरत करने लगे. बेंच पर रोड से वजन लगाते हुए फिर से वही कल वाली लड़किया दिखाई दी जो आज उनकी तरह कंधे की कसरत कर रही थी मशीन पर. थी तो कमाल की दोनो लेकिन अर्जुन के दिमाग़ मे वापिस विकास की बात आ गई. "फोकस" और वो सब नज़र अंदाज कर अपने 3 सेट पूरे कर बाहर आने लगा. ट्रकपंत से रुमाल निकल पसीना सॉफ कर वो बलबीर के साथ ही बॉक्सिंग एरिया मे आ गया.

जोगिंदर जी एक लड़के का हाथ पकड़ कर खड़े थे और वो थोड़ा दर्द मे था शायद. जिग्यासा से अर्जुन उनकी तरफ बढ़ गया.

"नज़र हटी और दुर्घटना घाटी" उन्होने ये बात अर्जुन की तरफ देख कर कही और वो लड़का चीख पड़ा.

"अब यहा अच्छे से गरम पट्टी बाँध ले सोमवीर और हमेशा याद रखना के हर काम का सही तरीका एक ही होता है. मुक्का ग़लत लगा तो खुदका ही नुकसान हो सकता है." और वो लड़का अपने साथी की तरफ चल गया पट्टी बंधवाने.

"देखो बच्चे. ये हाथ सिर्फ़ हवा मे नही चलाने. खुद को महसूस होना चाहिए के ये कितनी दूर जा रहे है और कितनी तेज. अभी देखा इस लड़के को? सीधा हाथ दे मारा कीट पर और इसका कंधा उतर गया. आज का तुम्हारा पहला लेसन यही है. " राइट एफर्ट्स इन राइट डाइरेक्षन". चलो जाओ."

अर्जुन फिर से बलबीर के साथ लग गया लेकिन अब थोड़ा जोश था और वो गोर से हर बात समझ रहा था बलबीर जो भी बता रहा था.

"हाथ इस से आगे नही. अपना पैर इतना आगे और फिर उसके दूसरी साइड वाला हाथ इस तरह." हर बारीक बात वो अर्जुन को समझा रहा था.

"देख छोटे भाई आज की प्रॅक्टीस तो हो गई. कोच साहब ने भी तुझे कुछ समझाया तो एक बात मेरी भी सुन ले. ज़ोर जो है वो सांड़ मे भी होता है लेकिन एक हल्का सा चीता उसको एक मिनिट मे ज़मीन पर लिटा लेता है. कैसे?

"अपने नुकेले दांतो से" अर्जुन ने फटाक से बात कही तो बलबीर हंस दिया. "वो उसकी सांस की नली, गर्दन के नीचे, पीठ पर या पेट पर वार करता है लेकिन समय, जगह और अपनी ताक़त और दिमाग़ से. तो मेरा कहने का मतलब है की ज़ोर कम भी हो तो चलता है लेकिन दिमाग़ सही जगह रहना चाहिए.

कब, कहा और कैसे सबसे ज़रूरी है. कब करना है, कहा करना है कैसे और कितना करना है ये मायने रखता है." बलबीर की बातें समझ मे आई तो अर्जुन का दिमाग़ बाहर निकलते हुए एक बात की तरफ गया.

"बेटा यहा, बेटा बस इतना, बेटा धीरे, बेटा ज़ोर से..." उसको ताईजी की बात याद आ गई चुदाई के वक्त की.

फिर सुबह कभी प्रभाकर जी की भी और स्टेडियम आने से पहले कही दादाजी की बात भी. कोच साहब ने और विकास भाई ने भी तो इस से जुड़ी बात ही कही थी. एक ने कहा था फोकस मतलब 'ध्यान बनाए रखना' और दूसरे ने कहा था 'सही मेहनत सही दिशा मे' इन सब बातों का मूल मंत्र एक ही तो था संतुलन (बॅलेन्स).


"आए हीरो ऐसे हंसता हुआ क्यू घूम रहा है? कंपनी बाग मे घूम रहा है क्या तू?", इस जोरदार जनाना आवाज़ को सुनकर अर्जुन के पैर रुक गये.

"गुड ईव्निंग मिस. वो बस कोच साहब ने कुछ समझाया था लेकिन समझ मे अभी आया तो ख़ुसी हुई थी की समझ मे आ गया. सॉरी अगर ये ग़लत लगा आपको."

"नीरा ही चिकना घड़ा है ये लड़का तो." मंजुला ने मन मे सोच फिर थोड़ा नर्मी से बोली, "कोई बात नही. तू कौनसा खेल खेल रहा यहा?

"जी बोक्षींग मे हू."

"अच्छा. और तू रहता कहा है? हॉस्टिल का तो तू है नही."

"जी यही इसी शहर के #### सेक्टर मे." ऐसे ही सवाल जवाब हो रहे थे के एक टेन्निस बाल उनकी तरफ आकर अर्जुन के पैरो मे रुक गई.

"आए हेल्लो. जस्ट पास दिस बॉल इफ़ यू डॉन’ट माइंड." बड़ी मीठी आवाज़ आई दोनो के कान मे तो अर्जुन और मंजुला दोनो ने आवाज़ की तरफ देखा तो ये एक बेहद आकर्षक सी लड़की थी लगभग अलका दीदी जितनी लंबाई, घुटनो से उपर हारे रंग की स्कर्ट, टाइट कसी हुई सफेद टीशर्ट और गोरे-गुलाबी चेहरे पे दिलकश सी मुस्कान. टीशर्ट और चेहरे पर पसीना आया हुआ था. जहाँ मंजू उस लड़की की तरफ गुस्से मे देख ही रही थी के अर्जुन ने बॉल उसकी तरफ उछालते ही कहा, "इट'स ऑलराइट मिस." और वहाँ से जवाब आया, 'थॅंक्स, सीया."

थोड़ा आगे जाकर एक बार फिर पीछे मुड़कर अर्जुन को देख मुस्काई और वापिस खेलने मे लग गई.

"ये रांड़ ने मूड की ऐसी तैसी फेर दी.", गुस्से मे मंजुला लाल हो गई थी "चल लड़के अब निकल यहा से." उसने थोड़ी बेरूख़ी से बोला लेकिन अर्जुन ने उसकी तरफ छोटी सी मुस्कान से देखते हुए कहा, "बाइ, कल बात करेंगे मिस."

"वाह मंजू तू इसके चक्कर मे थी और ये तेरा ही चक्कर काट के निकल लिया." पास आती हुई सुमन जो इन दोनो पर ही नज़र गड़ाए थी बोली

"कुछ भी बोल सुमन लड़का ना शरीफ भी है और पक्का भी. आज तो वो विकास भी इसके सर पे हाथ फेर रहा था. और ये टेन्निस वाली अँग्रेज़ भी इस्पे लाइन मारने लगी है." उस लड़की की इंग्लीश के चक्कर मे मंजू ने उसका नाम अँग्रेज़ रख दिया था. दोनो हँसने लगी और इधर अर्जुन साइकल निकल चल दिया गाते की तरफ. तकरीबन एक किमी आगे आया था, जोकि आज थोड़ी स्पीड से साइकल चला रहा था इतने मे उसके बराबर मे एक स्कूटी साथ चलने लगी.

"तो बाइसिकल से रोज आते हो स्टेडियम?" ये वही टेन्निस वाली थी. पीछे कंधे पर टेन्निस रेकेट टंगा था बॅग मे और माथे पे बालो को आगे आने से रोकने के लिए एक सफेद हीरबॅंड. कंधे तक भूरे बालो की एक चोटी बना रखी थी.

" हाई मेरा नाम प्रीति है और इस साल ही अंडर 19 टेन्निस मे आई हू. 2 साल पहले की अंडर 16 की रन्नर- अप."

अब अर्जुन ने भी गर्दन हिलाई हल्लो . "मेरा नाम अर्जुन शर्मा है और यहा स्टेडियम मे मेरा दूसरा दिन था, बॉक्सिंग."
\

"वैसे लगते नही हो के बॉक्सिंग टाइप वाले होगे." ये बात कह कर जो उसकी खिलखिलात देखी अर्जुन ने वो बस उसके मोती जैसे दाँत और गुलाबी होंठ देखता रह गया.

"आगे देखो ऐसे तो तुम घर की जगह हॉस्पिटल पहुच जाओगे."

"हः. सॉरी. वो ऐसा है की मैं ये सब प्रोफेशनल नही कर रहा. सिर्फ़ कोचैंग ले रहा हू वो भी मेरे दादा जी के कहने पर. गेम तो मुझे सिर्फ़ 2 ही पसंद है. एक बॅडमिंटन और एक क्रिकेट. लेकिन यहा नया हू और अब तो खेले हुए भी एक साल होने को आया. बोरडिंग मे 5 साल मैं स्कूल टीम मे था." उसने अब ध्यान सड़क पर रखते हुए कहा. दोनो मध्यम गति से चला रहे थे.

"तो बोरडिंग से वापिस घर आए हो. अगर बुरा ना मानो तो रहते कहाँ हो तुम?"

"जी #### सेक्टर मे."

"कमाल की बात है. वही मेरा घर है." प्रीति ने थोड़ा हैरानी से कहा. ये सेक्टर ज़्यादातर बड़े सरकारी लोगो या फिर रईस लोगो से भरा था.

"इसमे कमाल की क्या बात हुई. एक शहर है तो कही तो रहेंगे ही. कमाल तो तब होता है जब आपका घर पास मे होता."ये बात अर्जुन ने वैसे ही कही थी.

"अच्छा तो हाउस नंबर बताओ." जब प्रीति ने इतनी बात कही तो अर्जुन थोड़ी देर चुप कर गया.

"अर्रे यही सोच रहे हो ना के पहली बार ही इस लड़की को देखा और आज ही घर का अड्रेस पूछने लगी." और हँसने लगी..

"नही वो बात नही है. मेरा घर का नंबर है 7-8." झेन्पते हुए अर्जुन ने कहा क्योंकि वो वही सोच रहा था जो प्रीति ने बोला था.

"तुम पंडित अंकल की फमिलि से हो?" दोनो अब अपने ही सेक्टर की खाली सड़क पर आ चुके थे.

"आप दादाजी को कैसे जानती हो.?" अर्जुन ने ब्रेक लगा कर साइकल वही रोक दी तो प्रीति ने थोड़ा सा आगे.

"5 नंबर घर है हमारा. कॉल पूरी मेरे दादा जी है. और 12त चंडीगढ़ से करने के बाद अभी मैं यही आ गई हू."

फिर अर्जुन को छेड़ते हुए बोली
"मतलब ये हुआ के ये तो फिर कमाल ही हो गया." और अर्जुन ये बात सुनते ही शर्मा कर वापिस साइकल चला आगे बढ़ा. प्रीति ने उनके घर के सामने ब्रेक लगा लिए तो अर्जुन भी संकोचवश रुक गया की ऐसी कैसे अपने घर के अंदर चला जाऊ एक लड़की को बाहर छोड़ कर.

"आप भी आइए घर मे."औपचारिकता से उसने पूछा

"नही अभी नही लेकिन जल्दी ही आउन्गी." इतना ही कहा था कि बगीचे से रामेश्वर जी के साथ कॉल पूरी बाहर आते दिखे.

"चले दादू."

"चलो बेटी मैं बस आ रहा हू पंडित जी के साथ."

अर्जुन ने उन्हे प्रणाम किया तो कॉल पूरी रामेश्वर जी से बोले. " पट्ठा तो मजबूत होता जा रहा है. फौज की तैयारी तो नही."

रामेश्वर जी मुस्कुरा दिए और बोले,"फौज मे 8 घंटे की नींद नही मिलती इसलिए मेरा पोता नई जाएगा." दोनो दोस्त हंस दिए और अर्जुन खिसिया कर
अंदर चला गया.
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rajsharma
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Re: Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

Post by rajsharma »

घर मे आया तो अंदर आँगन मे ज्योति बैठी थी कोमल दीदी के साथ और पास मे ही रेखा जी और ललिता जी बैठ कर रात के खाने के लिए सब्जी खा रही थी. ज्योति ने अर्जुन को देखते ही एक आह सी ली जो किसी को नही दिखी.

"आ गया मेरा बेटा. चल नहा ले फिर दूध देती हू तुझे."रेखा जी ने प्यार से अर्जुन को बोला तो वो वही अंदर वाले बाथरूम मे ही चल दिया तौलिया ले कर.

"आंटी कहाँ रहता है आजकल ये.? संदीप तो सारा दिन या तो घर मे पड़ा रहता है या बिना वजह घूमता फिरता है." ज्योति जान ना चाहती थी के अर्जुन उनके घर क्यो नही आ रहा

"बेचारे के पास टाइम कहा है. सुबह प्रॅक्टीस, फिर अपनी बहनो को स्कूटी सिखाना, कॉलेज ले जाना, स्टेडियम भी शुरू करवा दिया इसका और अब वहीं से आ रहा है. थोड़ी देर सोएगा फिर घर के काम और आधी रात से पहले सोना." बेटे की पूरी दिनचर्या उन्होने बता दी

"और आधी रात की बाद आपनी ताई की चूत खुली करना." ये बात ललिता जी ने मन मे कही.

"कुछ भी कहो आंटी जी आपका बेटा अभी भी बिल्कुल शरीफ है. नही तो मैने तो अपने घर मे ही देखा है. संदीप सारा दिन कहाँ रहता है कुछ पता नही. वैसे काम तो वो भी कोई ग़लत नही करता लेकिन दोस्त बहुत है उसके."

"बेटा इसके तो दोस्त ही सब घर मे ही है." ये बात ताईजी ने कही थी. कुछ देर बाद ज्योति उठ कर चली गई तो ऋतु दीदी ने अलका को कुछ इशारा किया और उसने भी सर झटक दिया.

अर्जुन बाथरूम से निकल बाहर आया तो उपर का हिस्सा बेपर्दा था, जोकि नई बात नही थी लेकिन ऋतु, कोमल और ललिता जी तीनो उसके चौड़े सीने को आँखो मे भर रही थी.

"मा मेरा दूध उपर ही दे देना. मैं कपड़े पहन रहा हू अपने कमरे मे."

"ठीक है तू चल उपर"
……………………………………..

एक मिनिट हुआ होगा उपर आए की ऋतु कमरे का दरवाजा हल्का सा ढलका के दूध ड्रॉयिंग रूम मे रख अर्जुन के कमरे मे दबे पाव घुस गई. और पीछे से लिपट गई. अर्जुन ने अभी तौलिया खोलने के लिए बस हाथ बढ़ाया ही था और ये घटना घाट गई.

"कोंन?"

"भाई और कोंन होगा?" लेकिन इसके बाद दोनो ही चुप हो गये. नीचे से तौलिया निकल कर ज़मीन पर था और घूमने के वजह से वो हल्का अकड़ा हुआ सीधा ऋतु दीदी की दोनो जाँघो के बीच पाजामे से उनकी चूत पर जा लगा था. लंड आधा ही खड़ा था तो अब ऐसे लग रहा था कि एक डंडा दोनो के बीच कनेक्षन बना रहा हो.

पतले कपड़े के उपर से चूत पर मोटा गरम लंड लगते ही ऋतु दीदी की साँस रुक गई. लेकिन उस से बड़ी ग़लती हो गई जब वो डर से अर्जुन के गले जा लगी. लंड चूत को कसके रगड़ता हुआ गान्ड के नीचे पहुच गया. और दूसरे ही पल चूत ने एक बूँद भी टपका दी.

"दीदी सॉरी वो मुझे पता नही था कि आप हो नही तो मैं कपड़े बस पहन ही रहा था." महॉल को इतना शांत और दीदी को डरा हुआ देख अर्जुन कुछ भी बोल रहा था.

"तू सॉरी मत बोल भाई."अभी भी वो वैसे ही खड़ी थी लेकिन अब लंड सर उठाने लगा तो वो अपनी एडी उपर कर पंजे के बल खड़ी होने लगी. दोनो के होंठ पास आ गये. कहाँ तो ऋतु दीदी लंड से बचने के लिए उपर हुई थी. और अब लंड खड़ा होकर उनकी गान्ड की दरार मे कसने लगा था. चूत तो पूरी उसपर टिक सी गई थी.

"अया.. मज़े की सिसकी से होंठ खुले तो ऋतु दीदी ने अर्जुन को ही चूम लिया.

"भाई तुझे बुरा लगा क्या?"

"दीदी बुरा तो नही लगा लेकिन मैं नंगा हू. या तो आप कपड़े उतार लो नही तो मैं पहन लेता हू." उसने ये बात कही तो मज़ाक मे थी लेकिन अगले ही पल वो बिस्तर पर था और उसके उपर दीदी लेटी हुई उसके होंठ चूस रही थी. लंड अब खुलकर झटके ले रहा था उनकी चूत और गान्ड पर
"भाई हम ऐसे भी ठीक है ना." दीदी ने ये बात कही तो अर्जुन ने पाजामे के अंदर हाथ डाल कर उनके कूल्हे वैसे ही पकड़ लिए जैसे दिन मे अलका
दीदी के पकड़े थे. फरक इतना था कि ऋतु दीदी ने नीचे कच्छी नही पहनी हुई थी और उनके चूतड़ तो बिल्कुल ही गद्देदार और मुलायम थे. गान्ड की फाँक को अलग करते उसके हाथ जब चूत की तरफ बढ़े तो वही पर उसका लंड चिपका हुआ था.

"आ भाई. ये कैसी आग लगा रहा है. " ऋतु दीदी मज़े की लज़्जत मे तड़प उठी. पहली बार उनकी गान्ड पर किसी मर्द का हाथ लगा था, वो भी अपने उस छोटे भाई का जिस से वो तब से प्यार करती थी जब मतलब भी नही पता था. इस एहसास मे डूबकर ऋतु दीदी ने अपनी कमर उसके लंड पर हिलानी शुरू कर दी और दोनो के होंठ चुंबक की तरह चिपक गये. थोड़े हाथ बाहर निकाल अर्जुन ने दीदी का पाजामा जाँघो से नीचे सरका दिया
और लंड वापिस स्प्रिंग सा उछलता हुआ चूत पर जा लगा. लंड के थप्पड़ से ऋतु दीदी उचक सी गई.
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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