Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

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rajsharma
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Re: Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

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"हा. हमारे घर के पिछले हिस्से मे किरायेदार रहते है और वहाँ बिल्कुल नही जाना. ये दादाजी की कही बात मुझे याद है. अभी 2 साल पहले ही मुझे बताया था कि अब सभी वापिस यहा रहते है." अर्जुन ने सिर्फ़ इतना कहा. उसकी आवाज़ भर्रा गई थी.

"तू जानता है छोटे, कई बार तो शुरू शुरू मे हम सबको पुराने घर भेज दिया जाता था. तुझे याद है वो घर?"

भैया के इस सवाल से अर्जुन ने सोचा लेकिन कुछ याद नही आया तो ना मे सर हिला दिया.

"ये हमारे वाले कमरे बाद मे बने थे और इनके पीछे भी 3 कमरे है दूसरी तरफ. जो बंद रहते है." अर्जुन ने हा मे सर हिलाया.

"इस घर मे पहले दादा-दादी, तेरे पापा-मम्मी, दीदी और तू रहता था. पुराने घर पर हम सब रहते थे. तेरे हॉस्टिल के पहले 4 साल तो सभी लोग एक महीने के लिए वही रहने आ जाते थे. और दादा दादी के साथ कभी रेखा चाची तो कभी मेरी मा आती थी. लेकिन ये सब तेरे पिताजी के कहने पे ही हुआ था. वो नही चाहते थे की उनका वारिस ज़िंदगी के पाठ से अलग हो जाए और अपना जीवन खराब कर ले. पूरे 4 साल लगे थे तेरे गुस्से और महॉल को ख़तम करने मे." संजीव भैया इतना बोलकर छत की तरफ देखने लगे.

"और ये लड़की प्रीति वही है?"

"हा. जब वो अमेरिका मे बीमार रहने लगी तो फिर सतीश अंकल उसको यहा अपने ही पास ले आए. अब इतना कुछ बता दिया है तो तू अपना मूह बंद रखेगा और जा कर बिना कोई सवाल करे सो जाएगा."

अर्जुन के दिमाग़ पर छाए बादल कुछ हद तक हॅट चुके थे. कुछ सवाल थे लेकिन उसके उत्तर सिर्फ़ उसके पिता रामेश्वर जी ही दे सकते थे इतना उसको पता था. कमरे आकर बिस्तर पर थोड़ी देर वो सोचता रहा और अपने आप उसकी आँखे बंद हो गई.

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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
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Re: Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

Post by rajsharma »

"मेरी प्रीति." अपने आप से कहती हुई प्रीति अपने बिस्तर पर लेटी थी. आज उसने वो देख था जो 8-9 साल पहले होता था. अर्जुन का उसको खुद से चिपकाना और किसी को उसके साथ नही खेलने देना. आज जिस तरह से उसने अर्जुन को अपने अंदर तक उतरता महसूस किया था वैसा कभी उसके साथ नही हुआ था. अपनी कलाई का दर्द भूल चुकी थी लेकिन चूड़ियाँ टूटने का दर्द बहुत था उसको. ये अर्जुन ने दिलाई थी. उनको उतार कर डब्बे मे बंद कर वो वापिस लेटी ख़यालो मे खो गई. फिर नींद मे.
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समय से पहले ही अर्जुन की नींद खुल गई थी. घड़ी मे देखा तो अभी 3:30 दिखा रही थी वो. बिस्तर से उठकर वो नीचे आया और पानी की बॉटल निकाल कर सीधा छत पर चल दिया. वहाँ पर कोई सोया हुआ था.

"माधुरी दीदी." इतना सोचकर ही उसने पानी पीकर बॉटल दीवार पर रखी और उस एक ही गद्दे पर सोए इंसान की चद्दर मे आ घुसा. ये माधुरी दीदी ही थी. उनके साथ लेटते ही अर्जुन फिर उस नशे मे खोने लगा जिसमे अक्सर वो दोनो खो जाते थे जब भी अकेले होते थे. उनके कमीज़ के उपर से ही अर्जुन ने हाथ फिराए. बड़े बड़े और मोटे उभार कमीज़ के अंदर आज़ाद ही थे. दीदी के कमीज़ के अंदर हाथ डालकर उनका एक नंगा दूध उसने हाथ मे भर लिया और सहलाने लगा. निपल कड़ा होता हुआ उसको महसूस हुआ तो वो और जोश से उनसे चिपक गया था.

नीचे वाला हाथ तो चुचे पर था, दूसरा हाथ उसने पीछे से सलवार मे डाल उनके नंगे चुतड़ों पर फेरना शुरू कर दिया. दीदी की गरम साँसें उसकी भी गर्मी बढ़ा रही थी. अपने होंठ उसने माधुरी दीदी के होंठो पर रख उनके दोनो होंठ पीने शुरू किए तो नींद मे ही दीदी ने उसको खुद से चिपका लिया.

इतने जोश मे उसने उनका वो मॉटा दूध मुट्ठी से दबाया तो दीदी के आँखें खुल गई. अपनी आँखों के सामने अर्जुन को देख उनके होंठ भी हरकत देने लगे

अर्जुन भी ज़ोर ज़ोर से उनकी गान्ड की दरार तक उंगलिया डाल कर उनके कूल्हे मसल रहा था. मुलायम रब्बर से कूल्हे एक अलग ही मज़ा दे रहे थे. अपने कपड़े निकाल वो फिर से उनसे लिपटने लगा तो दीदी भी बैठ गई और कमीज़ और सलवार खोल कर अर्जुन के उपर हो गई. अपने मूह के पास लटकते उनके भारी दूध वो नीचे लेट कर पीने लगा और माधुरी दीदी अपनी चूत उसके लंड पर रगड़ने लगी. वो दोनो कई देर तक ऐसे ही लगे रहे.

अर्जुन ने उनके कूल्हे दबा दबा कर लाल कर दिए थे. और निप्पल भी फूल कर मोटे होने लगे थे. लंड किसी लकड़ी सा सख़्त नीचे से ही चूत में जाने की कोशिश कर रहा था. जब बर्दाश्त ना हुआ तो उसने दीदी को अपने नीचे घुमा लिया और उनके उपर आते ही चूत पर लंड लगाकर धक्का जड़ दिया.

"ऊ मा.. भाई आराम से कर. कही नही भागी जा रही तेरी बहन."

आधा लंड गीली चूत में किसी खुन्टे की तरह घुस गया था और चूत चौड़ी हो गई थी. दोनो हाथो से उनकी टांगे उपर उठा कर उसने फिरसे एक धक्का दिया और 2 इंच के लगभग लंड और आगे चला गया. दीदी तड़प रही थी और उनके चुचे हिल रहे थे. ये देख कर अर्जुन उनके उपर झुक गया और उनके दोनो उछलते फुटबॉल पकड़ कर चूमते हुए धक्के लगाने लगा. प्यार से आधा लंड ही बाहर निकाल वो एक रफ़्तार मे चुदाई करता रहा. दीदी के हाथ जब उसकी पीठ सहलाने लगे तो उसने उनके होंठ छोड़ एक धक्के मे लंड जड़ तक ठूँस दिया.

"आ भाई.. हर बार ये मेरे पेट मे दर्द देता है. हाए राम.. लेकिन इसका ये दर्द...आ मज़ा भी खूब.. आ आ देता है.. उनकी बात बीच बीच मे रुक जाती जब अर्जुन लंबे करार धक्के लगता.

"दीदी आपका जिस्म ही ऐसा है... आ.. के मैं...आ खो जाता हूँ.. " सुपाडे तक लंड निकाल फिर जड़ तक ठोकते हुए अर्जुन भी मज़े मे डूबा लगा हुआ था.

नीचे से उसके हाथ जब दीदी की गान्ड के छेद से टकराए तो उसने एक उंगली से उसको सहला भर दिया..

"आ भाई ये क्या दबा दिया.. मेरी मा..

दीदी की चूत इतने मे झड् गई.. चूत से निकलता पानी जब अर्जुन की उस उंगली पर पड़ा तो उस वो गीली उंगली वापिस छेद पर दबाई. उसका नाख़ून तक का भाग अंदर चला गया....

"हाए रे.. ये कैसा नशा है.. अर्जुन भाई.. मर जाउन्गी मैं.. " वो गान्ड के इस हमले से पागल हो उठी थी..

अर्जुन भी उंगली अंदर करते हुए धक्के बढ़ाता जा रहा था... पूरी उंगली गान्ड के अंदर बाहर हो रही थी और चूत हवा मे उठी पूरा लंड खाने लगी थी... 10 मिनिट मे ही दीदी फिर से अकड़ने लगी.. और जैसे ही वो झड़ी तो अर्जुन ने भी लंड दोनो टाँगे उठा उनकी गान्ड की लकीर पर सटा दिया.. उसका सारा सफेद पानी गान्ड के छेद पर दबाव से गिरा.. अपनी गान्ड पर गरम वीर्य महसूस कर के दीदी को लगातार झटके लगे.. मज़े मे वो बिस्तर पर गिर पड़ी थी..

"तूने ये कॉन्सा नया जादू किया रे.. कसम से ऐसा लग रहा है के हवा मे हूँ मैं.. "

दीदी की बात सुनकर अर्जुन ने झुक कर उनके होंठ चूमे और कपड़े पहन लिए. दीदी ने भी जैसे तैसे कपड़े पहने और अर्जुन को जाता देख वापिस वही लेट गई.
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दीदी की बात सुनकर अर्जुन ने झुक कर उनके होंठ चूमे और कपड़े पहन लिए. दीदी ने भी जैसे तैसे कपड़े पहने और अर्जुन को जाता देख वापिस वही लेट गई.
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अभी शरीर बिल्कुल हल्का महसूस हो रहा था और अर्जुन को उम्मीद थी की आज फिर पार्क मे प्रीति आएगी और वो उसके साथ बात करेगा. कुछ देर बाद वो पार्क के अंदर था. आज भी बुजुर्ग मंडली वही थी जिन्होने मुस्कुरा कर अर्जुन का अभिवादन किया और उसने भी भागते हुए ही प्रतिउत्तर मे गर्दन हिला दी. पता ही
नही चला कब वो 5 चक्कर पूरे कर चुका था. थकान ज़रा भी नही थी लेकिन आचार्य जी को अकेले टहलते देख उनकी तरफ हल्के कदमो से बढ़ गया.

"नमस्कार सर."

"कैसे हो बेटा. सब कुशल मंगल?" उन्होने ये बात कही तो अर्जुन ने सिर्फ़ हा मे सर हिलाया.

"ये वृक्षो को देख रहे हो. कितने दयालु होते है ये. हम इंसानो को ज़िंदगी भर फल, छाया, जीवदायिनी हवा और फिर मरने के उपरांत लकड़ी देते है.

हम सिर्फ़ इनको एक बार पानी देकर अपना कर्तव्य पूरा समझ बस इनसे ही आशा करते रहते है."

"आचार्य जी वृक्ष हमें प्यार देते है और हमारी वासना उनके प्रति जीवन भर रहती है." अर्जुन ने उनके पिछले पाठ को आज उनकी बात से जोड़ दिया था.

"सही बात कही बेटा." उन्होने नंगे पाव ही घास पर चलते हुए अर्जुन के कंधे पर हाथ रख लिया और एक फुलो से लदी डाल दिखाने लगे.

"ये खूबसूरत फूल देख रहे हो बेटा. यहा देखो तितलियाँ और मधुमाखिया मंडराती है लेकिन किसी नीम या बबुल के पेड़ पर तुमने कभी उन्हे देखा है?"

"नही सर. उनको फुलो से पराग लेना होता है जो उनका भोजन और जीवन का आधार रहता है." अर्जुन की ये ख़ास बात थी की हर विषय को महत्व से समझा था उसने. सिर्फ़ रट् मार कर प्रथम आने वाला लड़का नही था.

"बहुत खूब बात कही. अब इस बात को इंसान की जिंदगी से जोड़कर देखो. और बताओ क्या समझे."

अर्जुन ने काफ़ी देर इस बात पर विचार किया. उसको बात समझ आ रही थी लेकिन सही शब्द नही मिल पा रहे थे.

"ज़्यादा मत सोचो बेटा. जिसको ज़रूरत होती है वो उसके पास ही जाता है जो उसको पूरा कर सकता है. लेकिन फरक है एक पहले वाली बात और इस बात मे. एक मधुमखी पराग लेने के बावजूद फूल को नुकसान नही देती. वो बदले मे उसके नन्हे बीज ज़मीन पर बिखेर उन पेड़ो का विस्तार करती है. आज का पाठ यही
है. निस्वार्थ प्रेम करो इन वृक्षो की तरह. और अगर तुम्हे लगता है की इस प्रेम मे तुम्हे सामने वाली से लेना पड़े तो इतना ज़रूर करना की उनके चरित्र का अच्छा विस्तार हो, आत्मा को सुकून मिले और तुम उनकी अपेक्षा पर खरे उतरो. स्वार्थ प्यार को ही नहीं उस व्यक्ति को भी ख़तम कर देता है. जब एक घड़ा पानी चाहिए होता है तो सिर्फ़ उतना ही लेना चाहिए. अन्यथा तुमने तो सुना होगा की ज़्यादा के चक्कर मे नदी की दीवार देह जाती है तो खेत और नदी का वो भाग दोनो बर्बाद हो जाते है." कहते हुए वो वहाँ से आगे बढ़ चले और अर्जुन उनके साथ चलता रहा.

"कोई प्रश्न चल रहा है दिमाग़ मे बेटा?" उन्होने उसको चुप देखा तो पूछ लिया

"सर, एक सवाल परेशान कर रहा है कुछ दिनों से."

"बेटा मैं तो अंतर्यामी हूँ नही. और जीतने समस्या बताई ना जाए तो उसका हाल नही होगा." मुस्कुरा दिए

"अगर ज़िंदगी मे पहले कुछ भी घटा हो लेकिन फिर समय बीत जाए और तब तक सब ठीक हो तो क्या उन पुरानी बातो पर विचार कर के कुछ हाँसिल होगा?"

"तुम क्या चाहते हो?" उन्होने पलट कर सवाल कर दिया.

"मैं सिर्फ़ सच और उस सब बात के पीछे का कारण जान ना चाहता हूँ."

"सच क्या होता है बेटा? सच और झूठ जैसा कुछ नही होता अमूमन. एक इंसान किसी बात को अलग तरीके से कहता है. लेकिन दूसरे ने अगर वो वैसा नही पढ़ा हो तो वो उसको झूठ कहेगा. दोनो मे से कोंन सॅचा कोंन झूठ उसको फिर लोगो का मत (वोट) साबित करता है. लेकिन क्या यही सब सच है? जिसने तुम्हारे अतीत मे जो भी किया हो उसके पीछे कुछ मकसद रहा होगा. ज़रूरी नही के हर व्यक्ति जो तुम्हे दुख दे वो तुम्हारा दुश्मन हो और जो तुम्हारे साथ हर वक्त मीठी बातें करे वो दोस्त. ऐसी बातें मन को विचलित करती है, इसको काबू करना सीखो. अतीत से सिर्फ़ मीठी यादें ही लेना सही है और या फिर ग़लतियो से सीखना."

अर्जुन अब निरुत्तर था. वो भी तो अब जो सब कुछ हुआ उसको बदल नही सकता था. और जो भी ज़िंदगी मे उसके पिता ने किया था उसके साथ वो भी तो किसी बात को ध्यान मे रख कर किया होगा. संजीव भैया ने भी कहा था कि जब मैं पैदा हुआ तो उनको मुझमे उम्मीद नज़र आई थी. आज यही सब है जो मैं इतने अच्छे से पढ़ पा रहा हूँ और ये शरीर जो पैदा होने पर रोगी था वो आज स्वस्थ है.
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