Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

Post Reply
User avatar
rajsharma
Super member
Posts: 15829
Joined: 10 Oct 2014 07:07

Re: Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

Post by rajsharma »

पार्वती भारी साँसों से पैरो का काम निपटा कर प्रीति की कमर के पास आ गई. "दीदी ये आपकी अंगिया की पट्टी मैली हो जाएगी."

प्रीति बात सुनकर हल्के से मुस्कुराइ और एक तौलिया सीने से लगा लिया और फिर खुद अपनी ब्रा के हुक खोल दिए. लड़की कितनी भी मॉडर्न हो, वो एकदम से किसी के सामने नंगी नही हो सकती.

यही प्रीति ने किया था. पूरी तरह से अपने गोरे उभार उसने सफेद तौलिए से छुपाए और फिर पार्वती ने पूरी पीठ को सॉफ किया और वापिस काम करने लगी.

"दीदी आपके तो जिस्म पर एक भी निशान नही है.और ये देखिए यहा से आपकी पीठ थोड़ी ज़्यादा चौड़ी और मजबूत सी है." पार्वती ने गोर से देखा था

ऐसे जिस्म को. पहली लड़की होगी जो कही से मोटी तो दूर की बात चर्बी रहित थी. "वो क्या है ना तू भी रोज दौड़ लगाएगी, कसरत करेगी या कोई मेहनत का खेल खेलेगी तो तेरा शरीर भी ऐसा ही हो जाएगा." थोड़ी गर्दन उचका कर प्रीति ने बात कही तो पार्वती की ज़ुबान फिसल गई,

"दीदी खेल तो मेहनत का रोज ही खेल लेती हूँ लेकिन हुआ तो कुछ नही." और फिर अपनी बात को समझ कर खुद ही क्षमा माँगने लगी..

"तेरा तो बस वही ध्यान रहता है. शायद 5 साल हुए ना तेरी शादी को, फिर भी परिणाम नही दिख रहा कोई." प्रीति ने चुटकी लेते हुए कहा तो

पार्वती शर्मा कर बोली, "जी मेहनत तो लगभग रोज होती है लेकिन वो कहते है के शायद भगवान की अभी मर्ज़ी नही है तो बस फिर नही कुछ हो रहा."

कुछ देर सोचने के बाद प्रीति ने कहा. "चलो बस हो गया सारा काम. थॅंक यू अब मैं नहाने जा रही हूँ."
……………
Read my all running stories

(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma
User avatar
rajsharma
Super member
Posts: 15829
Joined: 10 Oct 2014 07:07

Re: Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

Post by rajsharma »

शाम घिर आई थी लगभग 7:30 के आसपास समय था. घर मे थोड़ी चहल पहल थी और सभी कमरो मे रोशनी हो रखी थी. रेखा जी को कोमल दीदी तैयार कर रही थी. एक रेशमी सुनेहरी सारी और सुर्ख लाल ब्लाउस मे वो बहुत आकर्षक लग रही थी. माँग मे सिंदूर, चेहरे पे सिर्फ़ एक बिंदी और हल्का काजल लगया हुआ था.
कोमल दीदी ने उनकी सारी को सेट किया और बोली, "लीजिए मा हो गया आपका तो. अब आप और ताईजी चलिए कामिनी आंटी की तरफ मैं भी अपने कमरे मे तयार होती हूँ."

"शुक्रिया बेटी." किसी गुलाब सी दिखती रेखा जी तो कोमल से कही ज़्यादा सुंदर लग रही थी. शायद उनके चेहरे का तेज उनको सबसे अलग ही दिखता था. अपनी जेठानी ललिता जी के पास गई तो वो भी अच्छे से तयार थी. एक रेशमी गहरे नीले रंग की सारी और वैसा ही ब्लाउज उनके गोरे शरीर को अच्छे से समेटे था.

"चले दीदी. माजी भी तयार है." ललिता जी ने उनकी बात सुनकर अपना पर्स और रुमाल उठाया और अपनी सास की तरफ हो ली.

ऋतु दीदी और अलका दीदी तो शायद एक घंटे से ही तयार हो रही थी. जहाँ ऋतु दीदी ने झिलमिल सा सुर्ख लाल सूट पहना था जिसके नीचे पंजाबी सलवार थी और बड़ी बड़ी आँखें काजल से और भी बड़ी लग रही थी. बालो की एक गूँथ कर की हुई चोटी उन्हे बिल्कुल ही किसी सरदार्णि जैसा दिखा रही थी. रंग भी फक्क सफेद था. पूरा शरीर दमक रहा था. वैसा ही कुछ अलका दीदी लग रही थी. लंबा कद और आसमानी रंग का फ्रॉक वाला कुर्ता जिसके नीचे सफेद चूड़ीदार पाजामी और खुले हुए बाल. एक काली लंबी बिंदी से चेहरा किसी अप्सरा से कम ना लग रहा था उनका भी. दोनो ऐसे ही कितनी देर तक निहारती रही खुद को.

दादी जी के कहने पर माधुरी दीदी ने आज एक क्रीम कलर की शिफॉं की सारी और हल्के हारे-नीले रंग का बिना बाजू का ब्लाउस पहना था. वो तो आज जैसे दुल्हन को ही टक्कर देने जा रही थी. इतने सादगी वाले पहनावे मे उनका शरीर और उनके उभार जानलेवा लग रहे थे. कोमल दीदी ने भी अपनी बड़ी बहन का अनुसरण करते हुए एक चमकदार काली सारी और काला ही मैचिंग बिना बाह का ब्लाउस पहन लिया. माधुरी दीदी ही उनको सज़ा रही थी. दोनो ने पहले भी कई बार सारी पहनी हुई थी तो वो सहज थी इस पहनावे मे. समय 8 के उपर होने को आया था तो चारो बहने भी चल दी अपने पड़ोस के फंक्षन मे. किसी ने एक बार भी अर्जुन को याद नही किया इस दौरान. सब शायद ये सोच रही थी की दूसरी ने उठा दिया होगा.



मल्होत्रा जी का घर जैसे पूरा रोशनी मे नहाया हुआ था. गलियारे और बाहर के आँगन मे खाने का कार्यक्रम था तो स्टॉल्स सजे थे वहाँ. बड़े ड्रॉयिंग रूम जो बाहर की तरफ ही था वहाँ पर सभी बड़े पुरुष एकत्रित थे अपनी महफ़िल सजाए. कोई 20-22 लोग सोफे दीवान पर गोलाई से बैठे थे और उनके सामने ऐसे ही टेबल लगे थे.

गप्पो का दौर चल रहा था. कॉल साहब तो शराब पीने वाले व्यक्ति थे तो उनको भी अच्छी सोहबत मिल गई थी. मल्होत्रा जी के संबंधी भी उनका साथ दे रहे थे. पंडित जी भी जूस/शरबत का गिलास हाथ मे थाम कर उनके किस्से सुन रहे थे और अपने सुना रहे थे. पिछले आँगन मे बड़े बड़े स्पीकर बज रहे थे. ये आँगन कुछ ज़्यादा ही खुला था क्योंकि यहा ज़्यादा कमरे नही बनाए गये थे जैसा की रामेश्वर जी के घर मे थे. कुछ छोटी उमर की लड़किया ऐसे ही नाच रही थी. अधिकतर लोग तो पड़ोस के ही थे या फिर सगे संबंधी मल्होत्रा जी के.

दूसरी मंज़िल पर भी 2 कमरे और नीचे की तरह एक बड़ा ड्रॉयिंग रूम था. यहा जवान लोगो का पीने पिलाने का दौर चल रहा था. मल्होत्रा जी के बड़े बेटे ने ये प्रोग्राम सावधानी और एहतियात से किया हुआ था. अपने दोस्तो को यही से सेवा के बाद उन्होने बाहर भेजना था क्योंकि घर मे इस बात की सख्ती थी की बाहर के लोग शराब पीकर तो अंदर आ नही सकते.

कुछ 15-16 लोग थे जो बियर और विस्की का लुत्फ़ ले रहे थे और 3-4 वेटर उनको खाने पीने का समान उपलदबध करवा रहे थे. यू तो वो सभी सभ्या घरो से थे और कुछ परिवार से ही थे. फिर भी कोई व्यक्ति ऐसा नही था जो ज़्यादा या जल्दबाज़ी मे शराब पी रहा था. अधिकतर तो वो लोग कल होने वाली शादी और अपने कम धंधे की बात कर रहे थे. अच्छी ख़ासी महफ़िल तीन तरफ सजी थी इस बड़े घर मे.
Read my all running stories

(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma
User avatar
rajsharma
Super member
Posts: 15829
Joined: 10 Oct 2014 07:07

Re: Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

Post by rajsharma »

तकरीबन 8 बजे ही अर्जुन बाथरूम से नहा कर बाहर आया. संजीव भैया बिल्कुल तयार सोफा पर बैठे थे. उन्होने एक अच्छी सी फॉर्मल शर्ट और पैंट पहनी थी और भूरे चंदे के पोलिश किए हुए जूते. संजीव भैया ऐसे ही तयार होते थे जब भी कहाँ जाना होता था. उनका व्यक्तित्व भी इस तरह अच्छा लगता था.

"तयार हो जा छोटे नही तो फिर थानेदार साहब ने वहाँ नही पाया तो दोनो की क्लास पक्का लग जाएगी."

"बस 10 मिनिट भैया." बोलकर वो कमरे मे घुसा और तौलिया निकाल कर अलमारी से नये कपड़ो से एक जोड़ी निकल कर पहन ने लगा. कुछ देर बाद वो बाहर निकला तो अब हैरान होने के बारी संजीव भैया की थी.

काला घुटनो तक का पठानी कुर्ता जो उसकी चौड़ी छाती पर कसा हुआ था और कंधे पर भी. नीचे एक तंग पाजामी थी गोल सिलवट वाली और पैरो मे खुंडई वाली चमड़े के भूरी राजस्थानी जूती. उसके बालो के कुंडल भी कानो से नीचे आते उसके चेहरे को भरपूर रौनक दे रहे थे. 6 फीट लंबे चौड़े शरीर वाला लड़का किसी काल्पनिक कहानी के शूरवीर सा लग रहा था.

"तेरा तो कायाकल्प ही हो गया छोटे. ये सब कैसे और कब हुआ.?" टेबल पर से एक पुरुषो वाला इत्र उठाकर अपने छोटे भाई के कुर्ते पर छिड़कते हुए भैया बस उसको ही देख रहे थे.

अर्जुन बस मुस्कुरा रहा था.

"ये सब तुझसे तो होने वाला नही है और ना ही मैं इस घर मे किसी को जानता हूँ जो तेरा ऐसा परिवर्तन
कर दे. कौन ही अब भाई को भी नही बताएगा.?"

भैया की बात सुनते उसने कहा. "चलो रास्ते मे बताता हूँ."

मार्केट मे जब अर्जुन ने अपने कपड़े खरीदते हुए एक शर्ट पहन कर प्रीति को दिखाई थी तभी उसने ये कुर्ता उसको थमा दिया था. "मेरे कहने से बस एक बार पहन कर देख लो फिर जीतने यहा लोग खड़े है उनको देख कर खुद फैंसला करना." प्रीति की कही बात सही साबित हुई थी और उस दुकान पर खड़े लोगो ने भी अर्जुन को प्रशंसा भरी निगाहो से देखा था. एक लड़की जो वहाँ अपनी सहेली के साथ थी उसने तो अपनी सहेली को चुटकी काट ते हुए अर्जुन दिखाया था.
और यहा भैया की पारखी नज़रे भी कमाल कर गई थी.

"वो क्या हुआ भैया आज जब मार्केट गया था मल्होत्रा अंकल के काम से तो दादा जी ने कुछ पैसे दिए थे 2 ड्रेस लेने के लिए. वही एक दुकान पर ये पोशाक भी एक मूरत पर सजाई थी. मैने पहन कर देखी तो अच्छी लगी और फिर लेली. एक और भी ली है वो कल शादी के लिए रखी है." नीचे आते हुए उसने बात अपनी तरफ से बनाने की कोशिश करी थी. वो नही चाहता था की प्रीति का नाम ले.

"मैं मेरे भाई को कही ज़्यादा जानता हूँ. हा लेकिन तेरी इज़्ज़त भी करता हूँ तो मैं इतना समझ सकता हूँ के कुछ बात है जो तू अभी नही बताना चाहता. जब ठीक लगे तो बता देना. और हर तरह से तेरा ये बड़ा भाई तेरे साथ है. घबराना नही." संजीव भैया भी समझ चुके थे उनका छोटा भाई अब बड़ा हो रहा है और बात पक्का लड़की की है.

"आपको बिना बताए चैन नही आएगा भैया. लेकिन अभी ऐसा कुछ नही है." और दोनो बातें करते मल्होत्रा जी के घर के बाहर आ गये. कोई 8-9 कार और इतने ही दोपहिया वहाँ गली मे खड़े थे. अच्छी रौनक लगी थी. छत से नीचे तक आती लाइट की लड़ियों से पूरा घर गली मे जगमग हो रहा था.

कपिल, मल्होत्रा जी का बड़ा बेटा कोई 34-35 साल का पहली मंज़िल पर बाहर खड़ा था. उसने वही से संजीव भैया को आवाज़ लगाई तो भैया अर्जुन को साथ लेकर उपर चल दिए.

"आओ पंडित जी. पड़ोस मे रहते हो लेकिन देखो आज महीने बाद दर्शन दिए है." कपिल ने अर्जुन से हाथ मिलाया फिर अर्जुन की तरफ देख कर बोले, "भाई ये गबरू कोंन है? बड़ा तगड़ा दोस्त है तेरा"

संजीव भैया हंसते हुए बोले, "क्या भैया ये मुन्ना है. आप हमारे यहा नही आते और ये घर से बाहर नही निकलता. जब तक आप घर आते हो ये तो सो चुका होता है."

बात भी सही थी. कपिल की धागा फॅक्टरी थी शहर से बाहर और वो 10 बजे जाता था और 10-11 बजे रात मे ही आता था.

"अर्रे मुन्ना इतना बड़ा हो गया. सुना था बाऊजी से की हॉस्टिल से तू वापिस आ गया लेकिन जाकर तो तू ताड़ सा लंबा हो गया रे." अर्जुन को अपने साथ प्यार से लिए वो अंदर चल दिए. सजीव भैया भी साथ हो लिए. यहा पर हवा मे शराब की हल्की महक थी और सब खा पी रहे थे. कपिल ने सबसे दोनो को मिलवाया. संजीव भैया तो अधिकतर को जानते ही थे. अर्जुन आज पहली बार सबसे मिल रहा था.

"ये मेरे देल्ही वाले चाचा जी के सबसे छोटा बेटा है राजन, अभी कॉलेज मे है 2न्ड एअर मे." उन्होने बियर पी रहे एक लड़के से अर्जुन को मिलवाया जो वहाँ खड़े अभी युवको मे शायद सबसे छोटा था लेकिन अर्जुन से बड़ा.

लंबे बाल, थोड़ा भारी शरीर, घुटनो से फटी जीन्स की पैंट और कुछ अधिक ही स्टाइल वाला था वो.
" हल्लो ड्यूड. हाउ आर यू?" उसने हाथ बढ़ाया, दूसरे हाथ मे बियर की बॉटल थी.

"थॅंक यू. आई आम आब्सोल्यूट्ली फाइन. होप यू आर टू." अर्जुन से ऐसे प्रतिउत्तर की शायद उस लड़के को उम्मीद नही थी. लेकिन फिर भी दोनो बात करते रहे जब तक राजन की सारी इंग्लीश ख़तम नही हो गई.

"भाई थोड़ी तुम भी पी कर देखो. जन्नत सा मज़ा है इस बॉटल मे. ठंडी और गरम दोनो." ये बात आँख मारते हुए कही जैसे बियर पीना कोई महान
काम हो.

"नही भाई. मैं ऐसा कुछ नही पीता. मेरे लिए यही सही है." उसने अपने शरबत के गिलास को दिखाया.

"क्या संजीव भाई अकेले पी रहे हो थोड़ा अपने छोटे भाई को भी सीखा दो." उसने पास मे खड़े भैया का ध्यान अपनी और किया. भैया उनके ही किसी रिश्तेदार से बातें करते हुए कोला मे मिलकर विस्की को धीरे धीरे पी रहे थे.

"जब इसका टाइम आएगा तो मैं खुद अपने भाई को पिलाउन्गा. राजन, ये अभी उतना भी बड़ा नही है तो अभी इसको इस सब की ज़रूरत नही." उन्होने इतनी बात कही और फिर प्यार से अपने भाई की तरफ मुस्कुरा कर वापिस सामने वाले से बातों मे लग गये.

अर्जुन का वहाँ दिल नही लग रहा था. तभी कपिल भैया ने कहा, "मुन्ना तुझे नीचे आंटी बुला रहे है. पीछे के दरवाजे से ही नीचे चला जा."

"हा शायद वही ठीक जगह है इसके लिए." राजन ने हल्के नशे मे ये बात कही तो कपिल ने थोड़े गुस्से आँख दिखाई.संजीव भैया ने कुछ नही कहा और ना ही अर्जुन ने. वो बस बाहर निकल गया और भैया ने वापिस दरवाजा लगा लिया.
Read my all running stories

(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma
User avatar
rajsharma
Super member
Posts: 15829
Joined: 10 Oct 2014 07:07

Re: Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

Post by rajsharma »

(^%$^-1rs((7)
Read my all running stories

(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma
User avatar
rajsharma
Super member
Posts: 15829
Joined: 10 Oct 2014 07:07

Re: Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

Post by rajsharma »

अर्जुन का वहाँ दिल नही लग रहा था. तभी कपिल भैया ने कहा, "मुन्ना तुझे नीचे आंटी बुला रहे है. पीछे के दरवाजे से ही नीचे चला जा."

"हा शायद वही ठीक जगह है इसके लिए." राजन ने हल्के नशे मे ये बात कही तो कपिल ने थोड़े गुस्से आँख दिखाई.संजीव भैया ने कुछ नही कहा और ना ही अर्जुन ने. वो बस बाहर निकल गया और भैया ने वापिस दरवाजा लगा लिया.
नीचे तो महॉल जबरदस्त था. संगीत बज रहा था और कुछ महिलाए और लड़किया नाच रही थी. आँगन की किनारे कोई 20 कुर्सिया लगी थी जिनपर लोग बैठे थे. हर कोई खूब साज संवार कर आया हुआ था. अपनी मा, दादी और ताईजी को वही मल्होत्रा आंटी के साथ बैठा देख वो सीढ़िया उतरताउनकी तरफ चल रहा था और आँगन मे खड़ी सब लड़कियो की नज़र बस उधर ही थी जिधर से अर्जुन आ रहा था.

"ये कोंन है रे?" एक लड़की ने ये बात कही तो माधुरी दीदी ने नाचते हुए पीछे की तरफ देखा और उनके पाव भी रुक गये. उनके साथ ही कोमल दीदी के भी. "मेरा छोटा भाई है. लेकिन पहचान मे तो नही आ रहा." माधुरी दीदी मंत्रमुग्ध से बोली यही हाल कोमल का भी था.

"तो तेरे भाई से बात करवा ना माधुरी?" ये लड़की मल्होत्रा जी के परिवार से ही थी जिसको दोनो बहने जानती थी.

"वो अभी छोटा है. उसको बकश दे." मन मारकर उन्होने ये बात कही. बीच आँगन मे सभी खड़े थे तो शरम से दोनो बहने वापिस हल्के कदमो से संगीत पर पाव थिरकने लगी. हम आपके है कौन फिल्म का गाना चल रहा था.

अर्जुन आकर अपनी दादीजी के पास खड़ा हो गया. वो सभी भी बस उसको ही देख रहे थे. रेखा जी तो पहली बार अर्जुन को ऐसे देख कर यही सोच रही थी की ये तो पूरा जवान हो गया है. वही हाल ललिता जी का भी था लेकिन उनको उसकी जवानी का पता पहले चल चुका था.

"ये है मेरा प्यारा बेटा अर्जुन." कौशल्या देवी ने ये बात कामिनी जी की एक रिश्तेदार से कही तो अर्जुन ने उनको नमस्कार किया.

"कौशल्या जी, लड़का तो आपका बड़ा अच्छा है. मैने तो देखते ही इसको अपनी पोती के लिए पसंद कर लिया था." उन्होने ये बात कही तो वो लड़की जो माधुरी दीदी से उसके बारे मे पूछ रही थी किसी अदृश्य डोर से खींची वही आ खड़ी हुई.

"हाहाहा. कैसी बात करती हो सुमित्र जी. बच्चा है ये अभी. इसकी शादी को अभी 10 साल पड़े है."

"कुछ भी कहो बहन मेरे पोते तो इस से उमर मे बड़े है लेकिन इसके आसपास भी नही दिखते." और अपनी आँखों से काजल उतार कर उन्होने अर्जुन के कान के पीछे लगाया और आशीर्वाद दिया.

"बेटा तू कुछ खा ले. तेरी बहने भी यही है आसपास." ताईजी को लगा के अर्जुन को यहा से थोड़ा दूर ही रखना चाहिए.

"जी ताईजी ." बोलकर वो वहाँ से कुछ कदम गलियारे की तरफ बढ़ा ही था कि फिर टकरा गया किसी से.

पीछे से खिलखिलाने की आवाज़ सुनकर होश आया तो सामने खड़ी अप्सरा को देख कर सुन्न हो गया. प्रीति काले सूट मे और खुले बालो मे आँखें बंद किए खड़ी थी. उसका हाथ अपने बाए कंधे पर था. नीचे उसका पर्स गिरा पड़ा था और साथ ही चाट-पापडी की प्लेट.

"ज़्यादा ज़ोर से लगी? सॉरी ध्यान नही था और एकदम से मुड़ा तो सामने तुम आ गई." अर्जुन की आवाज़ सुनकर प्रीति ने नज़रे उपर की तो फिर वही हुआ जो हर बार उसके साथ होता था. खो गया उन आँखों मे जिनमे हल्का काजल लगा था. और वो भीनी खुसबू जो उसकी सांसो मे समा रही थी.

"नही मैं ठीक हूँ." उसने इतना कहा तो अर्जुन ने नीचे झुक कर पर्स उठाया और आगे बढ़ाया. प्रीति अपने रुमाल से अर्जुन के कुर्ते पर लगे दही के छोटे से निशान को सॉफ करने लगी.

"प्रीति ये मेरा भाई है अर्जुन. और अर्जुन ये है प्रीति, कॉल अंकल की ग्रॅंडॉटर." अलका दीदी ने ये कहा जो पीछे से अब उनके पास ही खड़ी थी.

"हम मिल चुके है." प्रीति ने एक बार झुकी नज़रो से कहा और फिर बगल से निकल कर आँगन की तरफ आ गई.

"तू कब मिला रे इस से? और आज तो लगता है तू किसी शोरुम से तैयार हो कर सीधा इधर आ गया." ऋतु दीदी ने अपने छोटे भाई को बड़े प्यार से देखा.

वो तो जैसे उनकी नज़रो मे बस गया था. अलका दीदी भी बस अर्जुन को ही देख रही थी. "ये इम्तिहान मेरी जान ना ले ले." मन मे सोचा उन्होने.
Read my all running stories

(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma
Post Reply