Incest अनैतिक संबंध
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Re: Incest अनैतिक संबंध
शानदार जानदार नई कहानी के लिए धन्यवाद राज भाई
- rajsharma
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Re: Incest अनैतिक संबंध
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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Re: Incest अनैतिक संबंध
मैं घर लौटा तो घर वालों ने उस दिन गाँव में सबको पार्टी दे डाली.क्योंकि खानदान का मैं पहले लड़का था जो ग्रेजुएट हुआ था. पार्टी ख़तम हुई और अगले दिन से ही ताऊ जी ने शादी के लिए जोर डालना शुरू कर दिया.पर मैं अभी शादी नहीं करना चाहता था. उन्हें शक हुआ की कहीं मेरा कोई चक्कर तो नहीं चल रहा, इस पर मैंने उन्हें आश्वस्त किया की ऐसा कुछ भी नहीं हे. मैं बस नौकरी करना चाहता हूँ, अपने पाँव पर खड़ा होना चाहता हु. पर वो मेरी बात सुन के भड़क गए की मुझे भला नौकरी की क्या जरुरत है? भरा-पूरा परिवार है और इसमें नौकरी करने की कोई जरुरत नहीं, वो चाहें तो उम्र भर मुझे बैठ के खिला सकते हे. पर मेरे लिए उन्हें समझाना बहुत मुश्किल था फिर मैंने उन्हें वादा कर दिया की ४० साल की उम्र तक मुझे नौकरी करने दें उसके बाद में घर की खेती-बाड़ी संभाल लूंगा और साथ ही ये भी वचन दे डाला की तीन साल बाद में शादी भी कर लुंगा. खेर बड़ी मुश्किल से हाथ-पाँव जोड़ के मैंने सब को मेरे नौकरी करने के लिए मना लिया पर डॉली बहुत उदास थी. मैंने मौका देख के उससे बात की.
मैं: आशु तू खुश नहीं है?
डॉली : चाचू... आप नौकरी करोगे तो घर नहीं आओगे? फिर मैं दुबारा अकेली रह जाऊँगी! पहले तो आप २-३ दिन के लिए घर आया करते थे पर अब तो वो भी नहीं! सिर्फ त्यौहार पर ही मिलोगे?
मैं: बाबू... ऐसा नहीं बोलते! मैं घर आता रहूँगा फिर अब अगले साल से तो तू भी बिजी हो जाएगी! बोर्ड्स हैं ना अगले साल!
डॉली : पर ..... (वो जैसे कुछ कहना चाहती हो पर बोल न रही हो)
मैं: तू चिंता मत कर मैं हर सेकंड शनिवार घर पर ही रहूँगा| ठीक है? और हाँ अगर तुझे कुछ भी चाहिए किताब, कपडे या कुछ भी तू सीधा मुझे फोन कर देना. मैं तुझे अपने ऑफिस का नंबर दे दूंगा.
डॉली : तो आप कहाँ नौकरी करने जा रहे हो? कहीं से कोई ऑफर आया है?
मैं: नहीं अभी तो नहीं .... कल जा के एक दो जगह कोशिश करता हु.
मैंने कोशिश की और आखिर एक दफ्तर में नौकरी मिल ही गई. रहने के लिए कमरा ढूँढना तो उससे भी ज्यादा मुश्किल निकला! ऑफिस से करीब घंटाभर दूर मुझे एक किराये का कमरा मिल गया.शुरू का एक महीना मेरे लिए काँटों भरा था! घर से दफ्तर और दफ्तर से घर आते जाते हालत ख़राब हो जाती! जैसे ही पहली तनख्वा हाथ आई मैंने सबसे पहले अपने लिए ई एम आई पर बुलेट खरीदी......! घरवालों के लिए कुछ कपडे खरीदे और डॉली के लिए कुछ किताबें और एक सूंदर सी ड्रेस ली! जब सबसे अंत में मैंने उसे ये तौफा दिया तो वो ख़ुशी से झूम उठी और मुझे थैंक्स बोलते हुए उसकी जुबान नहीं थक रही थी.
खैर दिन बीतने लगे और ऑफिस में मुझे एक सुंदरी पसंद आई.परन्तु कभी हिम्मत नहीं हुई की उससे कुछ बात करूँ! बस काम के सिलसिले में जो बात होती वो होती. इसी तरह एक साल और निकला और अब डॉली बारहवीं कक्षा में थी और इसी साल उसके बोर्ड के पेपर थे. सेंटर घर से काफी दूर था और इस बार भी मुझे डॉली को पेपर के लिए लेके जाना था. मैं आज जब उसे सेंटर छोड़ने गया तो उसकी सहेलियां मुझे देख के कुछ खुस-फुसाने लगी और हँसने लगी. मैंने उस समय कुछ नहीं कहा और निकल गया और वापस दो घंटे बाद पहुँचा और बाहर उसका इंतजार करने लगा. जब वो वापस आई तो हमने पहले पेपर चर्चा किया और फिर मैंने उससे सुबह हुई घटना के बारे में पूछा. तब उसने बताया की उसकी सहेलियों को लगा की मैं उसका बॉयफ्रेंड हूँ! "क्या? और तूने क्या कहा?" मैंने चौंकते हुए पूछा. "मैंने उन्हें बताया की आप मेरे चाचू हो और ये सुनके उनके होश उड़ गए!" और ये कहते हुए वो हँसने लगी. मैंने आगे कुछ नहीं कहा और उसे घर वापस छोड़ा और मैं फिर से दफ्तर निकल गया.दफ्तर पहुँचते-पहुँचते देर हो गई और बॉस ने मेरी एक छुट्टी काट ली! खेर मुझे इस बात का इतना अफ़सोस नहीं था.
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डॉली : चाचू... आप नौकरी करोगे तो घर नहीं आओगे? फिर मैं दुबारा अकेली रह जाऊँगी! पहले तो आप २-३ दिन के लिए घर आया करते थे पर अब तो वो भी नहीं! सिर्फ त्यौहार पर ही मिलोगे?
मैं: बाबू... ऐसा नहीं बोलते! मैं घर आता रहूँगा फिर अब अगले साल से तो तू भी बिजी हो जाएगी! बोर्ड्स हैं ना अगले साल!
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मैं: तू चिंता मत कर मैं हर सेकंड शनिवार घर पर ही रहूँगा| ठीक है? और हाँ अगर तुझे कुछ भी चाहिए किताब, कपडे या कुछ भी तू सीधा मुझे फोन कर देना. मैं तुझे अपने ऑफिस का नंबर दे दूंगा.
डॉली : तो आप कहाँ नौकरी करने जा रहे हो? कहीं से कोई ऑफर आया है?
मैं: नहीं अभी तो नहीं .... कल जा के एक दो जगह कोशिश करता हु.
मैंने कोशिश की और आखिर एक दफ्तर में नौकरी मिल ही गई. रहने के लिए कमरा ढूँढना तो उससे भी ज्यादा मुश्किल निकला! ऑफिस से करीब घंटाभर दूर मुझे एक किराये का कमरा मिल गया.शुरू का एक महीना मेरे लिए काँटों भरा था! घर से दफ्तर और दफ्तर से घर आते जाते हालत ख़राब हो जाती! जैसे ही पहली तनख्वा हाथ आई मैंने सबसे पहले अपने लिए ई एम आई पर बुलेट खरीदी......! घरवालों के लिए कुछ कपडे खरीदे और डॉली के लिए कुछ किताबें और एक सूंदर सी ड्रेस ली! जब सबसे अंत में मैंने उसे ये तौफा दिया तो वो ख़ुशी से झूम उठी और मुझे थैंक्स बोलते हुए उसकी जुबान नहीं थक रही थी.
खैर दिन बीतने लगे और ऑफिस में मुझे एक सुंदरी पसंद आई.परन्तु कभी हिम्मत नहीं हुई की उससे कुछ बात करूँ! बस काम के सिलसिले में जो बात होती वो होती. इसी तरह एक साल और निकला और अब डॉली बारहवीं कक्षा में थी और इसी साल उसके बोर्ड के पेपर थे. सेंटर घर से काफी दूर था और इस बार भी मुझे डॉली को पेपर के लिए लेके जाना था. मैं आज जब उसे सेंटर छोड़ने गया तो उसकी सहेलियां मुझे देख के कुछ खुस-फुसाने लगी और हँसने लगी. मैंने उस समय कुछ नहीं कहा और निकल गया और वापस दो घंटे बाद पहुँचा और बाहर उसका इंतजार करने लगा. जब वो वापस आई तो हमने पहले पेपर चर्चा किया और फिर मैंने उससे सुबह हुई घटना के बारे में पूछा. तब उसने बताया की उसकी सहेलियों को लगा की मैं उसका बॉयफ्रेंड हूँ! "क्या? और तूने क्या कहा?" मैंने चौंकते हुए पूछा. "मैंने उन्हें बताया की आप मेरे चाचू हो और ये सुनके उनके होश उड़ गए!" और ये कहते हुए वो हँसने लगी. मैंने आगे कुछ नहीं कहा और उसे घर वापस छोड़ा और मैं फिर से दफ्तर निकल गया.दफ्तर पहुँचते-पहुँचते देर हो गई और बॉस ने मेरी एक छुट्टी काट ली! खेर मुझे इस बात का इतना अफ़सोस नहीं था.
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Re: Incest अनैतिक संबंध
आज डॉली का आखरी पेपर था और मैं जानता था की उसके सारे पेपर जबरदस्त गए हैं! पर आज जब वो पेपर दे कर निकली तो उसने सर झुका के एक ख्वाइश पेश की; "चाचू.... आज मेरा पिक्चर देखने का मन है!" अब चूँकि मैं उसका दिल तोडना नहीं चाहता था सो मैंने उससे कहा; "आज तो देखना मुश्किल है क्योंकि अगर हम समय से घर नहीं पहुंचे तो आज बवाल होना तय है! तू ऐसा कर कल का प्रोग्राम रख, कल दूसरा शनिवार भी है और मेरी ऑफिस की भी छुट्टी हे."
"पर कल तो कोई पेपर ही नहीं है?" उसने बड़े भोलेपन से कहा. "अरे बुधु! ये तू जानती है, मैं जानता हूँ पर घर पर तो कोई नहीं जानता ना?" मेरी बात सुन के वो खुश हो गई. हम घर पहुँचे तो डॉली बहुत चहक रही थी और आज रात की रसोई उसी ने पकाई. मुझे उसके हाथ का बना खाना बहुत पसंद था. क्योंकि उसे पता था की मुझे किस तरह का खाना पसंद हे. इसलिए जब भी मैं घर आता था तो वो बड़े चाव से खाना बनाती थी और मैं उसे खुश हो के 'बक्शीश' दिया करता था! अगले दिन दुबारा स्कूल ड्रेस पहन के नीचे आई तो भाभी ने उससे पूछा; "कहाँ जा रही है?" इससे पहले की वो कुछ बोलती मैं खुद ही बोल पड़ा; "पेपर देने और कहाँ?" मेरा जवाब बहुत रुखा था जिसे सुन के भाभी आगे कुछ नहीं बोली.
हम दोनों घर से बाहर निकले और बुलेट पर बैठ के सुबह का शो देखने चल दिये. थिएटर पहुँच के मैंने उसे पिक्चर दिखाई और फिर हमने आराम से बैठ के नाश्ता किया. फिर वो कहने लगी की मंदिर चलते हैं तो मैं उसे एक मंदिर ले आया. दिन के बारह बजे थे और मंदिर में कोई था नहीं, यहाँ तक की पुजारी भी नहीं था. हम अंदर से दर्शन कर के बाहर आये और डॉली मंदिर की सीढ़ियों पर बैठने की जिद्द करने लगी. तो उसकी ख़ुशी के लिए हम थोड़ी देर वहीँ बैठ गए, तभी अचानक से डॉली ने अपना सर मेरे कंधे पर रख दिया और मेरा हाथ अपने दोनों हाथों के बीच दबा दिया. मैंने कुछ नहीं कहा पर मन ही मन मुझे अजीब लग रहा था. पर मैं फिर भी चुप रहा और इधर-उधर देखने लगा की हमें इस तरह कोई देख ना ले.तभी मुझे कोई आता हुआ दिखाई दिया तो मैंने हड़बड़ा के डॉली को हिला दिया और मैं अचानक से खड़ा हो गया.मैं जल्दी से नीचे उतरा और बुलेट स्टार्ट की और डॉली को बैठने को कहा पर ऐसा लगा मानो वो वहाँ से जाना ही ना चाहती हो. वो अपना बस्ता कंधे पर टंगे खडी मुझे देख रही थी. "क्या देख रही है? जल्दी बैठ घर नहीं जाना?" मैंने फिर से उसे कहा तो जवाब में उसने सर ना में हिलाया तो मैंने जबरदस्ती उसका हाथ पकड़ा और बैठने को कहा और वो बैठ ही गई. हम वहाँ से चल पड़े इधर डॉली ने पीछे बैठे हुए अपना सर मेरी पीठ पर रख दिया. शुरू के पंद्रह मिनट तो मैं कुछ नहीं बोला पर अंदर ही अंदर मुझे अजीब लगने लगा. घर करीब २० मिनट दूर होगा की मैंने बाइक रोक दी और डॉली से पूछा:
मैं: क्या हुआ पगली? तू कुछ परेशान लग रही है?
डॉली : हम्म
मैं: क्या हुआ? बता ना मुझे?
वो बाइक से उत्तरी और मेरे सामने सर झुका के खड़ी हो गई. मैं अभी भी बाइक पर बैठा था और बाइक स्टैंड पर नहीं थी.
डॉली : मुझे आपसे एक बात कहनी हे.
मैं: हाँ-हाँ बोल|
डॉली : वो... वो.... मैं आपसे बहुत प्यार करती हूँ!
मैं: अरे पगली मैं जानता हूँ तू मुझसे प्यार करती हे. इसमें तू ऐसे परेशान क्यों हो रही है?
डॉली : नहीं-नहीं आप समझे नहीं! मैं आपसे सच-मुच् में दिलों जान से प्यार करती हूँ!
मेरा ये सुनना था की मैंने एक जोरदार थप्पड़ उसके बाएँ गाल पर रख दिया. मैं सोच रहा था की ये मुझसे चाचा-भतीजी वाले प्यार के बारे में बात कर रही है पर इसके ऊपर तो इश्क़ का भूत सवार हो गया था!
"तेरा दिमाग ख़राब है क्या? जानती भी है तू क्या कह रही है? और किसे कह रही है? मैं तेरा चाचा हूँ! चाचा! तेरे मन में ऐसा गन्दा ख्याल आया भी कैसे? नशा-वषा तो नहीं करने लगी तू कहीं?" मैंने गरजते हुए कहा.
डॉली की आँखें भर आईं थी पर वो अपने आँसू पोंछते हुए बोली; "प्यार करना कोई गन्दी बात है? आपसे सच्चा प्यार करती हूँ! प्यार उम्र, रिश्ते-नाते कुछ नहीं देखता! प्यार तो प्यार होता है!" डॉली की आवाज जो अभी कुछ देर पहले डरी हुई थी अब उसमें जैसे आत्मविश्वास भर आया हो. उसका ये आत्मविश्वास मेरे दिमाग में गुस्से को निमंत्रण दे चूका था
इसलिए मैं चिल्लाते हुए बाइक से उतरा और बाइक छोड़ दी और वो जाके धड़ाम से सड़क पर गिरी. मैंने एक और थप्पड़ डॉली के दाएँ गाल पर दे मारा और जोर से चिल्ला के बोला; "कहाँ से सीखा तूने ये सब? हाँ?.... बोल? इसीलिए तुझे पढ़ाया लिखाया जाता है की तू ये ऊल-जुलूल बातें करे? तुझे पता भी है प्यार क्या होता है?"
डॉली की आँखों से आंसुओं की धरा बहे जा रही थी पर वो उसका आत्मविश्वास आज पूरे जोश पर था इसलिए वो भी मेरे सामने तन के जवाब देने लगी; "प्यार या प्रेम एक अहसास है. प्यार अनेक भावनाओं का, रवैयों का मिश्रण है जो पारस्परिक स्नेह से लेकर खुशी की ओर विस्तारित हे. ये एक मज़बूत आकर्षण और निजी जुड़ाव की भावना हे. किसी इन्सान के प्रति स्नेहपूर्वक कार्य करने या जताने को प्यार कहते हे. प्यार वह होता है जो आपके दुख में साथ दें सुख में तो कोई भी साथ देता हे. प्यार होता है तो हमारी ज़िन्दगी बदल जाती हे. प्यार तो एक-दूसरे से दूर रहने पर भी खत्म नहीं होता जब किसी इंसान के बिना आपको अपना जीवन नीरस लगे! एक दिन वह दिखाई न दे तो दिल बुरी तरह से घबराने लगे. आपको भूख कम लगने लगे या खाने-पीने की सुध न रहे. अखबार में पहले उसकी, फिर अपनी राशि देखें.जब भी वह उठकर कहीं जाए तो आपकी निगाहें उसका पीछा करती रहें.मेरे लिए तो यही प्यार है!" उसने खुद पर गर्व करते हुए जवाब दिया.
इधर डॉली के प्रेम की परिभाषा सुन के मेरे तो होश ही उड़ गए! "तुझे किसने कहा मैं तुझसे प्यार करता हूँ?" मेरे पास उसकी परिभाषा का कोई जवाब नहीं था तो मैंने उससे सवाल करना ही बेहतर समझा. "बचपन से ले के आज तक ऐसा क्या है जो आपने मेरे लिए नहीं किया?
मेरा स्कूल जाना, मुझे पढ़ाना, मेरे लिए नए कपडे लाना, मेरा जन्मदिन मनाना वो भी तब घर में कोई मेरा जन्मदिन नहीं मनाता. मुझे अनगिनत दफा आपने डाँट खाने से बचाया, जब जब मैं रोइ तो आप होते थे मेरे आँसूं पोछने! और भी उदाहरण दूँ?" उसने फ़टाक से अपना जवाब दिया.
"मैंने ये सब इसलिए किया क्योंकि मुझे तुझ पर तरस आता था. घर में हर कोई तुझे झिड़कता रहता था और तुझे उन्हीं झिड़कियों से बचाना चाहता था." मेरा जवाब सुन वो जरा भी हैरान नहीं लगी.
"प्यार किसी की दया, भावना और स्नेह प्रस्तुत करने का तरीका भी हे. किसी इन्सान के प्रति स्नेहपूर्वक कार्य करने या जताने को भी प्यार कहते हे. ये आपका प्यार ही था जो हमेशा मेरा हित और भला चाहता था. आप बस इस सब से अनजान हो!"
"पर कल तो कोई पेपर ही नहीं है?" उसने बड़े भोलेपन से कहा. "अरे बुधु! ये तू जानती है, मैं जानता हूँ पर घर पर तो कोई नहीं जानता ना?" मेरी बात सुन के वो खुश हो गई. हम घर पहुँचे तो डॉली बहुत चहक रही थी और आज रात की रसोई उसी ने पकाई. मुझे उसके हाथ का बना खाना बहुत पसंद था. क्योंकि उसे पता था की मुझे किस तरह का खाना पसंद हे. इसलिए जब भी मैं घर आता था तो वो बड़े चाव से खाना बनाती थी और मैं उसे खुश हो के 'बक्शीश' दिया करता था! अगले दिन दुबारा स्कूल ड्रेस पहन के नीचे आई तो भाभी ने उससे पूछा; "कहाँ जा रही है?" इससे पहले की वो कुछ बोलती मैं खुद ही बोल पड़ा; "पेपर देने और कहाँ?" मेरा जवाब बहुत रुखा था जिसे सुन के भाभी आगे कुछ नहीं बोली.
हम दोनों घर से बाहर निकले और बुलेट पर बैठ के सुबह का शो देखने चल दिये. थिएटर पहुँच के मैंने उसे पिक्चर दिखाई और फिर हमने आराम से बैठ के नाश्ता किया. फिर वो कहने लगी की मंदिर चलते हैं तो मैं उसे एक मंदिर ले आया. दिन के बारह बजे थे और मंदिर में कोई था नहीं, यहाँ तक की पुजारी भी नहीं था. हम अंदर से दर्शन कर के बाहर आये और डॉली मंदिर की सीढ़ियों पर बैठने की जिद्द करने लगी. तो उसकी ख़ुशी के लिए हम थोड़ी देर वहीँ बैठ गए, तभी अचानक से डॉली ने अपना सर मेरे कंधे पर रख दिया और मेरा हाथ अपने दोनों हाथों के बीच दबा दिया. मैंने कुछ नहीं कहा पर मन ही मन मुझे अजीब लग रहा था. पर मैं फिर भी चुप रहा और इधर-उधर देखने लगा की हमें इस तरह कोई देख ना ले.तभी मुझे कोई आता हुआ दिखाई दिया तो मैंने हड़बड़ा के डॉली को हिला दिया और मैं अचानक से खड़ा हो गया.मैं जल्दी से नीचे उतरा और बुलेट स्टार्ट की और डॉली को बैठने को कहा पर ऐसा लगा मानो वो वहाँ से जाना ही ना चाहती हो. वो अपना बस्ता कंधे पर टंगे खडी मुझे देख रही थी. "क्या देख रही है? जल्दी बैठ घर नहीं जाना?" मैंने फिर से उसे कहा तो जवाब में उसने सर ना में हिलाया तो मैंने जबरदस्ती उसका हाथ पकड़ा और बैठने को कहा और वो बैठ ही गई. हम वहाँ से चल पड़े इधर डॉली ने पीछे बैठे हुए अपना सर मेरी पीठ पर रख दिया. शुरू के पंद्रह मिनट तो मैं कुछ नहीं बोला पर अंदर ही अंदर मुझे अजीब लगने लगा. घर करीब २० मिनट दूर होगा की मैंने बाइक रोक दी और डॉली से पूछा:
मैं: क्या हुआ पगली? तू कुछ परेशान लग रही है?
डॉली : हम्म
मैं: क्या हुआ? बता ना मुझे?
वो बाइक से उत्तरी और मेरे सामने सर झुका के खड़ी हो गई. मैं अभी भी बाइक पर बैठा था और बाइक स्टैंड पर नहीं थी.
डॉली : मुझे आपसे एक बात कहनी हे.
मैं: हाँ-हाँ बोल|
डॉली : वो... वो.... मैं आपसे बहुत प्यार करती हूँ!
मैं: अरे पगली मैं जानता हूँ तू मुझसे प्यार करती हे. इसमें तू ऐसे परेशान क्यों हो रही है?
डॉली : नहीं-नहीं आप समझे नहीं! मैं आपसे सच-मुच् में दिलों जान से प्यार करती हूँ!
मेरा ये सुनना था की मैंने एक जोरदार थप्पड़ उसके बाएँ गाल पर रख दिया. मैं सोच रहा था की ये मुझसे चाचा-भतीजी वाले प्यार के बारे में बात कर रही है पर इसके ऊपर तो इश्क़ का भूत सवार हो गया था!
"तेरा दिमाग ख़राब है क्या? जानती भी है तू क्या कह रही है? और किसे कह रही है? मैं तेरा चाचा हूँ! चाचा! तेरे मन में ऐसा गन्दा ख्याल आया भी कैसे? नशा-वषा तो नहीं करने लगी तू कहीं?" मैंने गरजते हुए कहा.
डॉली की आँखें भर आईं थी पर वो अपने आँसू पोंछते हुए बोली; "प्यार करना कोई गन्दी बात है? आपसे सच्चा प्यार करती हूँ! प्यार उम्र, रिश्ते-नाते कुछ नहीं देखता! प्यार तो प्यार होता है!" डॉली की आवाज जो अभी कुछ देर पहले डरी हुई थी अब उसमें जैसे आत्मविश्वास भर आया हो. उसका ये आत्मविश्वास मेरे दिमाग में गुस्से को निमंत्रण दे चूका था
इसलिए मैं चिल्लाते हुए बाइक से उतरा और बाइक छोड़ दी और वो जाके धड़ाम से सड़क पर गिरी. मैंने एक और थप्पड़ डॉली के दाएँ गाल पर दे मारा और जोर से चिल्ला के बोला; "कहाँ से सीखा तूने ये सब? हाँ?.... बोल? इसीलिए तुझे पढ़ाया लिखाया जाता है की तू ये ऊल-जुलूल बातें करे? तुझे पता भी है प्यार क्या होता है?"
डॉली की आँखों से आंसुओं की धरा बहे जा रही थी पर वो उसका आत्मविश्वास आज पूरे जोश पर था इसलिए वो भी मेरे सामने तन के जवाब देने लगी; "प्यार या प्रेम एक अहसास है. प्यार अनेक भावनाओं का, रवैयों का मिश्रण है जो पारस्परिक स्नेह से लेकर खुशी की ओर विस्तारित हे. ये एक मज़बूत आकर्षण और निजी जुड़ाव की भावना हे. किसी इन्सान के प्रति स्नेहपूर्वक कार्य करने या जताने को प्यार कहते हे. प्यार वह होता है जो आपके दुख में साथ दें सुख में तो कोई भी साथ देता हे. प्यार होता है तो हमारी ज़िन्दगी बदल जाती हे. प्यार तो एक-दूसरे से दूर रहने पर भी खत्म नहीं होता जब किसी इंसान के बिना आपको अपना जीवन नीरस लगे! एक दिन वह दिखाई न दे तो दिल बुरी तरह से घबराने लगे. आपको भूख कम लगने लगे या खाने-पीने की सुध न रहे. अखबार में पहले उसकी, फिर अपनी राशि देखें.जब भी वह उठकर कहीं जाए तो आपकी निगाहें उसका पीछा करती रहें.मेरे लिए तो यही प्यार है!" उसने खुद पर गर्व करते हुए जवाब दिया.
इधर डॉली के प्रेम की परिभाषा सुन के मेरे तो होश ही उड़ गए! "तुझे किसने कहा मैं तुझसे प्यार करता हूँ?" मेरे पास उसकी परिभाषा का कोई जवाब नहीं था तो मैंने उससे सवाल करना ही बेहतर समझा. "बचपन से ले के आज तक ऐसा क्या है जो आपने मेरे लिए नहीं किया?
मेरा स्कूल जाना, मुझे पढ़ाना, मेरे लिए नए कपडे लाना, मेरा जन्मदिन मनाना वो भी तब घर में कोई मेरा जन्मदिन नहीं मनाता. मुझे अनगिनत दफा आपने डाँट खाने से बचाया, जब जब मैं रोइ तो आप होते थे मेरे आँसूं पोछने! और भी उदाहरण दूँ?" उसने फ़टाक से अपना जवाब दिया.
"मैंने ये सब इसलिए किया क्योंकि मुझे तुझ पर तरस आता था. घर में हर कोई तुझे झिड़कता रहता था और तुझे उन्हीं झिड़कियों से बचाना चाहता था." मेरा जवाब सुन वो जरा भी हैरान नहीं लगी.
"प्यार किसी की दया, भावना और स्नेह प्रस्तुत करने का तरीका भी हे. किसी इन्सान के प्रति स्नेहपूर्वक कार्य करने या जताने को भी प्यार कहते हे. ये आपका प्यार ही था जो हमेशा मेरा हित और भला चाहता था. आप बस इस सब से अनजान हो!"
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`·.¸.·´ -- raj sharma
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`·.¸.·´ -- raj sharma
(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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