विधवा माँ के अनौखे लाल

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rajsharma
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Re: विधवा माँ के अनौखे लाल

Post by rajsharma »

अगले दिन जीशान देर तक सोया रहा और उधर शाज़िया अपने सारे काम को निपटाने के बाद जब देखती है कि जीशान अपने कमरे से बाहर नही आया तो वो पहले सोचती है कि खुद आएगा जब आना होगा और वो हॉल में बैठ कर टीवी देखने लगती है।

सुबह खत्म दोपहर चढ़ने को आई 12:30 हो रहे थे और जीशान अभी भी नही आया था तो अंत में थक हार कर शाज़िया ही उसके कमरे में जाने का सोचती है कितना भी गुस्सा क्यों न हो आखिर थी तो वो एक माँ ही ना और अपने बच्चे को वो ऐसे नही देख सकती थी खैर वो उसके कमरे की तरफ बढ़ी जहा जीशान अपने योजना के अगले कड़ी को अंजाम देने वाला था उसने आने की आहट सुन कर अपने लंड को टाइट कर लिया वैसे भी वो अपने माँ के नंगे बदन के बारे में सोच सोच कर तुरंत गरम हो जाता था और उधर शाज़िया जब उसके कमरे में दाखिल हुयी तो उसके आंखे चौड़ी हो गयी क्योंकि उसका बेटा बेड पर अपना लंड निकाले सोया हुआ था और वो भी पूरा अकड़ा हुआ जो कम से कम 7 इंच लंबा और 3 इंच मोटा था।

शाज़िया के पैर जहा थे वही के वही जम गए मानो काटो तो खून नही वो कुछ सेकण्ड्स तक उसको ऐसे ही नीहारती रही इससे दृश्य ने उसके अंदर एक तूफान खड़ा कर दिया था और जब वो सोची की नही ये गलत है और वो पलटने को हुई तो जीशान ने अपना अगला चाल चला और वो बेड पर पलट गया और सोने की एक्टिंग करते हुए चादर को अपने कमर तक खींच लिया तभी शाज़िया ने उसे उठाने की सोची औऱ उसे आवाज लगाई जीशान उठने की एक्टिंग करता हुआ उठा और शाज़िया की ओर देख कर मुस्कुराते हुए बोला गुड मोर्निग मा सॉरी वो रात को देर से सोया था।तुरंत उसने बात को पलटते हुए कहा मा प्लीज अब तो माफ कर दो मुझे।।।

शाज़िया भी उसके इस सवाल का जवाब दे कर जल्दी से जल्दी वह से निकलना चाहती थी क्योंकि उसके बेटे का लन्ड ने उसे व्याकुल कर दिया था अंदर ही अंदर उसके वर्षो के सोये हुए योवन को जगा दिया था मगर वो अभी इसके भाव अपने चेहरे पे लाना नही चाहती थी इसलिए उसने जवाब दिया ..... ठीक है बेटा माफ किया तुझे चल अब हाथ मुह धो कर नहा ले फिर खाना देती हु।

इधर जीशान समझ जाता है कि उसका काम जल्दी ही बनने वाला है और अब वो अपनी माँ के तरफ से होने वाले हरकतों को बड़े ही ध्यान से देख रहा था और देखे भी क्यों ना आखिर उसने मा की सोई हुयी काम की ज्वाला में आग लगानी शुरूआत जो कर दी थीं।
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
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Re: विधवा माँ के अनौखे लाल

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Re: विधवा माँ के अनौखे लाल

Post by rajsharma »

इधर शाज़िया की बेचैनी बढ़ी हुई थीं आखिर उसे हुआ क्या है वो अपने बेटे के प्रति आकर्षित हो रही थी जो वो करना नही चाह रही थी मगर इस काम मे उसका शरीर उसका साथ नही दे रहा था।उस दिन भी जीशान ने कोई भी मौका नही छोड़ा अपनी माँ को अपना लन्ड दिखाने में और नतीजा ये हुआ कि शाज़िया की बेचैनी उसके चेहरे पे जाहिर होने लगी थी मगर जीशान भी जानबूझ कर इस खेल का मजा ले रहा था। अनीस को गए हुए आज तीसरा दिन था शाज़िया नहा कर किचन का काम निपटा कर हॉल में बैठ कर टीवी देख रही थी मगर उसका ध्यान उसके बेटे के लन्ड पर लगा हुआ था।इधर जीशान को कॉलेज जाना था नही क्योकि उसके आखिरी साल के इम्तिहान आने को थे और उनके डेट्स फाइनल हो चुके थे तो वो चैप्टर्स के रीविशन में लगा हुआ था। और साथ साथ ये भी ध्यान लगाए हुए था कि उसकी माँ की हालत कैसी है

अब शाज़िया की हालात बहुत ही ज्यादा खराब हो चली थी और वो मन ही मन इस बात को स्वीकार कर चुकी थी कि आज नही तो कल उसकी ये बेचैनी उसे मरवा देगी।उसी दिन दोपहर में जीशान अपने कमरे से निकल कर हॉल में आया जहा शाज़िया भी मौजूद थी और वो बिना अंडअनीसयर के हाफ पैंट में आ कर बैठ गया और माँ को बोला
जीशान -क्या कर रही हो मा अकेले

शाज़िया -कुछ नही बस टीवी देख रही थी

तभी जीशान अनीस की बात निकालता है और कहता है की माँ भइया को आने में अभी 4 दिन है उनसे मेरी बात हुई थी अभी वो काम से गये है शाम को कहा है तुमसे बात करवा दु

शाज़िया - ठिक है करा देना बात और बता तेरी तैयारी कैसी चल रही है

जीशान - अच्छी चल रही है माँ मैं पास हो जाऊंगा मा तुम देखना तुम्हे निराश नही करूँगा बस एक मौका तो दो

शाज़िया उसकी बात पे उसकी तरफ देखती है सवालिया नजरो से तभी जीशान कहता है मेरा मतलब की एग्जाम तो देने दो एक बार और मुस्कुरा देता है।

लेकिन शाज़िया समझ जाती है कि उसका ईशारा किस तरफ था और वो भी सिर नीचे कर के हल्के से मुस्कुरा देती है । अब बस इन्तेजार था तो आगाज होने का।।

और इसकी शुरुआत शाज़िया खुद ही करती है क्योकि वो जानती थी कि जीशान उसे किस नजरो से देखने लगा था और इधर की हुई घटनाओ के बाद ये साफ हो गया था उनके बीच जल्दी ही एक नए रिश्ते का जन्म होने वाला था ।


शाज़िया ने खुद को बहुत समझाने की कोसिस की मगर सब बेकार क्योकि जीशान लगातार उसको अपने लन्ड के दर्शन दिलवा रहा था कभी नंगा लन्ड तो कभी पैंट के भीतर से।
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Re: विधवा माँ के अनौखे लाल

Post by rajsharma »

उसी दिन रात को खाना खाने के बाद शाज़िया हॉल में बैठी होती है और टीवी पे सीरियल देख रही थी और जीशान वही फ़ोन में कुछ कर रहा होता है तभी अनीस का फोन आता है।

जीशान - हा भइया कैसे हो कोलकाता कैसा लगा

अनीस - अच्छा शहर है भाई और बता खाना पीना हो गया मा कहाँ है उससे बात करा दे तभी वो शाज़िया को फोन देता है और माँ बेटे कुछ देर तक बात करते है और फिर फोन कट जाता है और वो फोन जीशान की तरफ बढा देती है।

तभी शाज़िया कराहती हुई सोफे से उठती है और कमरे की तरफ जाने लगती है तो जीशान उसे टोकता है
जीशान -माँ।।क्या हुआ मा कराह क्यू रही हो कही चोट लगी है क्या।

शाज़िया - नही बेटे बदन में दर्द है काम करते करते थक जाती हु ना कोई बात नही काल सुबह तक ठीक हो जाएगी।

तभी जीशान बोलता है माँ चलो मैं मालिश कर देता हूं इससे आराम भी मिलेगा और नींद भी अच्छी आएगी औऱ शाज़िया कुछ ऐसा ही सोच रही थी मगर फिर भी वो बोलती है

शाज़िया - नही बेटा रहने दे अपने आप ठीक हो जाएगी तू टेंशन मत ले

जीशान - नही मा मैं मालिश कर देता हूं न ओर इसमें टेंशन कैसी अपनी माँ की मालिश कर देना उसके दर्द से निजात दिलाने में कही किसी बेटे को टेँशन होती है भला तुम भी मा कैसी कैसी बाते करती हो चलो कमरे में मैं मालिश कर देता हूं



वो अपनी माँ को कमरे में जाने का बोल कर खुद अपने कमरे में आता है और फटाफट अपने सारे कपड़े उतार देता है सिवाय हाफ पैंट के और तेल की शीशी के साथ वापिस मा के कमरे में जाता हैं और बोलता है।

जीशान - मा तुम बेड पे लेट जाओ मैं तुम्हारी मालिश किये देता हूं ।

शाज़िया जब उसे इस हालत में देखती है तो पूछती है कि तूने कपड़े क्यों उतार दिए तो जीशान कहता है कि मालिश करने के दौरान उसके कपड़ो में तेल न लग जाये इसलिए उसे उतार दिये।इस जवाब पर शाज़िया कुछ नही कहती और घूम जाती है।
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इधर शाज़िया के मन मे भी हजारों तरह की तरंगें उठ रही थी ये सोच सोच कर की अगला पल क्या लाने वाला है उसकी जिंदगी में इसी उधेड़बुन में वो बेड पे लेट जाती है और जीशान एक कुटिल मुस्कान के साथ तेल की शीशी ले कर बेड के किनारे खड़ा हो जाता है और कहता है।

जीशान - मा, तुम अपनी साड़ी को घुटनो तक ऊपर कर लो ताकि मैं तेल से तुम्हारे पैरो की मालिश कर सकू।

शाज़िया बिना कुछ बोले अपनी साड़ी ऊपर कर लेती आई हैं मगर घुटनो से नीचे ही रखती है क्योकि अभी भी उसे शर्म औऱ मर्यादा उसे ये करने की इजाजत नही दे रहा था मगर वो अपने शरीर के हाथों मजबूर हो चली थी तभी ,,,,

जीशान - मा घुटनो तक बोला है क्या तुम भी ,,,,,,ऐसे में मालिश कैसे करूँगा और वो खुद ही उसकी साड़ी को घुटनो के थोड़ा ऊपर तक उठा देता है जिससे शाज़िया की जाँघे भी थोड़ी बहुत दिखाई देने लगी थी और जीशान मन ही मन अपनी जीत पर गौरवान्वित हो रहा था होता भी क्यों ना आखिर वो अपने मंशा को पूरा करने के करीब आ गया था

वो अपनी माँ को कमरे में जाने का बोल कर खुद अपने कमरे में आता है और फटाफट अपने सारे कपड़े उतार देता है सिवाय हाफ पैंट के और तेल की शीशी के साथ वापिस मा के कमरे में जाता हैं और बोलता है।

जीशान - मा तुम बेड पे लेट जाओ मैं तुम्हारी मालिश किये देता हूं ।

शाज़िया जब उसे इस हालत में देखती है तो पूछती है कि तूने कपड़े क्यों उतार दिए तो जीशान कहता है कि मालिश करने के दौरान उसके कपड़ो में तेल न लग जाये इसलिए उसे उतार दिये।इस जवाब पर शाज़िया कुछ नही कहती और घूम जाती है।

इधर शाज़िया के मन मे भी हजारों तरह की तरंगें उठ रही थी ये सोच सोच कर की अगला पल क्या लाने वाला है उसकी जिंदगी में इसी उधेड़बुन में वो बेड पे लेट जाती है और जीशान एक कुटिल मुस्कान के साथ तेल की शीशी ले कर बेड के किनारे खड़ा हो जाता है और कहता है।

जीशान - मा, तुम अपनी साड़ी को घुटनो तक ऊपर कर लो ताकि मैं तेल से तुम्हारे पैरो की मालिश कर सकू। शाज़िया बिना कुछ बोले अपनी साड़ी ऊपर कर लेती आई हैं मगर घुटनो से नीचे ही रखती है क्योकि अभी भी उसे शर्म औऱ मर्यादा उसे ये करने की इजाजत नही दे रहा था मगर वो अपने शरीर के हाथों मजबूर हो चली थी तभी
जीशान - मा घुटनो तक बोला है क्या तुम भी ऐसे में मालिश कैसे करूँगा और वो खुद ही उसकी साड़ी को घुटनो के थोड़ा ऊपर तक उठा देता है जिससे शाज़िया की जाँघे भी थोड़ी बहुत दिखाई देने लगी थी और जीशान मन ही मन अपनी जीत पर गौरवान्वित हो रहा था होता भी क्यों ना आखिर वो अपने मंशा को पूरा करने के करीब आ गया था
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